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प्रेम गुरु द्बारा सम्पादित एवं संशोधित
प्रेषक – जीत शर्मा दिलवाला
मेरा नाम जीत शर्मा है। पर जानने वाले मुझे जीतू दिलवाला कहते हैं। इस का एक कारण है। वैसे तो मैं रोहतक हरियाणा का रहने वाला हूँ पर पिछले 7-8 साल से दिल्ली में ही जॉब करता हूँ और यहीं बस गया हूँ। गाँव वाले और दूसरे लोग पहले तो दिल्ली-वाला कहते थे पर अब दिलवाला कहने लगे हैं।
मैं जानता हूँ जब भी हरियाणा या वहाँ के लोगों का नाम आता है, एक बात सभी के दिमाग में जरूर आती है कि यहाँ के लोग उज्जड, लट्ठमार और मोटी बुद्धि के होते हैं। वैसे तो अपनी अपनी सोच होती है। पर एक बात मैं जरूर बताना चाहूँगा कि हरियाणा के लोगों की बुद्धि का तो मैं नहीं कह सकता पर हाँ उनकी कई और भी चीजें मोटी और बड़ी होती हैं मेरी कहानी पढ़ कर आपको भी अंदाजा हो ही जाएगा।
बात उस समय की है जब मैं +2 में पढ़ता था और उम्र थी तकरीबन 18 साल। अब अगर मेरा लंड पूरा 7″ लम्बा और 1½” मोटा है तो इसमें मेरा क्या दोष? यह तो हरियाणा वालों को परमात्मा की देन है भाई। लंड के चारों और काले काले झांट आने शुरू हो गए थे और वह बड़ा ही परेशान रहने लगा था। जब देखो बस अड़ियल घोड़े की तरह खड़ा हिनहिनाता ही रहता था। मुझे सेक्स के बारे में ज्यादा तो पता नहीं था पर साथ पढ़ने वाले कई दोस्तों से चुदाई के बारे में सुना था। कई बार सोचता था कि अगर कोई चोदने को मिल जाए तो मैं भी बस गंगा नहा लूं।
आप तो जानते है कि हम हरियाणा वालों कि अंग्रेजी तो बस पैदल ही होती है, इसलिए अंग्रेजी का ट्यूशन रखना पड़ा। साली मास्टरानी 34-35 साल की उम्र में भी एक दम पटाका ही लगती थी। घनी कसूती चीज थी! कसम से एक दम टोटा लगती थी साली। जी तो करता था कि इसे ही पेल दूँ पर डरता था कि कोई ऊंच नीच हो गई तो मेरा बाप तो मुझे जान से ही मार डालेगा।
पहले तो मैं अकेला ही ट्यूशन पढ़ने वाला था पर कुछ दिनों से वहाँ मोना नाम की एक लड़की भी अंग्रेजी का ट्यूशन पढ़ने आने लगी थी। वैसे पूरा नाम तो माधुरी गोडबोले था पर सभी उसे मोना ही कह कर बुलाते थे। माँ बाप ने नाम बड़ा सोच समझ कर रखा था। एक दम माधुरी दीक्षित की छोटी बहन लगती थी उस समय।
लड़की का बाप किसी बैंक में मेनेजर था। थोड़े दिनों पहले ही ट्रान्सफर होकर रोहतक आया था। मराठी परिवार था। लौंडिया थोड़ी चुलबुली सी थी। रंग तो थोड़ा सांवला था पर नैन नक्श तीखे, मोटी मोटी आँखें, गोरा, लम्बा कद, छछहरा बदन और सर के बाल कन्धों तक कटे हुए। पूरी क़यामत ही लगती थी। चूतड़ बहुत मोटे तो नहीं थे पर थे गोल मटोल।
शुरू शुरू में तो मुझे वो कुछ नकचढ़ी सी लगी। कई बार जब मुझे अंग्रेजी के कोई प्रश्न समझ नहीं आते थे तो वो साली मास्टरानी भी मुझे ताऊ कह दिया करती थी। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हरियाणा में ताऊ शब्द किसी कम पढ़े लिखे, उज्जड और लट्ठमार आदमी के लिए प्रयोग किया जाता है।
ताऊ संबोधन सुन कर मोना तो खिलखिल कर हंस पड़ती और मैं मन मसोस कर रह जाता। जी में तो आता कि इस कमेड़ी (कबूतर से थोड़ी छोटी एक चिड़िया) की गर्दन ही दबोच लूं। पकड़ कर रगड़ दूं साली फड़फड़ाती रह जाए। पर यह कैसे संभव था।
फिर ट्यूशन के बाद वो मेरी बोली का बड़ा मज़ाक उड़ाती। कहती कि हरियाणा के लोगों की बुद्धि मोटी होती है और ऊपर का माला खाली होता है। यहाँ के लोग पूरे सांड ही होते हैं। मेरी पूरी कोशिश रहती थी कि मैं हिंदी में ही बात करूँ पर कई बार अनजाने में मेरे मुंह से हरयानवी में कुछ शब्द निकल जाते थे तो वो हंसती हुई मेरा मज़ाक उड़ाती और मेरी और इस तरह देखती जैसे कह रही हो कि सचमुच मेरी अक्ल घास चरने गई है।
मैं भला खिसियाते हुए हँसने के सिवा और कर भी क्या सकता था? मैं भी उसे महाराष्ट्र की में में (बकरी) या फिर कमेड़ी कह कर चिढ़ाया करता था।
पर जब उसे पता चला कि मैं क्रिकेट का बहुत अच्छा खिलाड़ी हूँ तो हमारी आपस में पटने लगी। वो भी अपने स्कूल कि लड़कियों की क्रिकेट टीम की कैप्टेन थी। ट्यूशन के बाद अक्सर हम दोनों साथ साथ क्रिकेट कि प्रैक्टिस करने चले जाते थे। कई बार तो लड़के और लडकियां दोनों ही मिल कर क्रिकेट खेलते थे। मोना बहुत अच्छी बैटिंग करती थी। क्रिकेट खेलते समय उसके स्तन तो ऐसे हिलते थे जैसे शॉट लगने के बाद टेनिस की बाल उछलती है। साली के क्या मस्त गोल गोल चुंचे थे। कोई देखे तो बस एक टक देखे ही चला जाए।
जब कभी वो चोका लगा देती तो उसकी ख़ुशी देखने लायक होती थी। उसका मुस्कुराता चेहरा देख कर तो मैं तो लट्टू की तरह घुमने ही लगता। हे गोपी किशन अगर इस चिड़िया की चूत एक बार मिल जाए तो मैं अगले सावन में हरिद्वार जाकर गंगा स्नान कर आऊं। चलो हरिद्वार तो थोड़ा दूर पड़ेगा मैं कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर में ही सात डुबकी तेरे नाम की जरुर लगा आऊंगा।
रविवार था, अक्तूबर का महीना था। उसकी टीम का किसी दूसरी स्कूल की लड़कियों की टीम के साथ मैच था। मोना अपनी टीम की कैप्टेन थी। संयोग की बात है उस दिन उसका जन्म दिन भी था। मैंने उसे जन्मदिन की बधाई दी और साथ में उसकी टीम के जीतने की कामनाएं भी की। मोना ने थैंक्स कहा तो मैंने कहा कि मिठाई खिलानी होगी ऐसे कोरी थैंक्स से काम नहीं चलेगा।
‘बोलो क्या मिठाई चाहिए तुम्हें?’ उसने जिस तरह से अपनी आँखें नचाई थी मैं तो उस का मतलब सोच सोच कर हैरान और रोमांचित ही होता रहा था ।
‘रै बावली मांग के कोई मिठाई थोड़े ही खाई जावे सै याऽ तो खिलाने वाले की श्रद्घा होवे सै?’ मैंने ठेठ हरयानवी में कहा तो वो खिलखिला कर हंस पड़ी। मैं तो उसकी इस हंसी पर मर ही मिटा।
‘रै ताऊ किम माँगना सै मांग ले नई तो फेर या छोरी काबू ना आवेगी?’ उसने भी हरयानवी भाषा में मुझे कहा। उसकी बात पर मैं भी हंस हंस कर जैसे लोट पोट ही हो गया। मोना मेरी देखा देखी कुछ हरयानवी बोलने लगी थी ।
‘चलो बाद में बताऊंगा क्या खाना है। पर तुम फिर अपने वादे से मुकर ना जइयो?’
‘ओके प्रोमिस। चलो आज अगर हमारी टीम जीत गई तो मैं अपनी पसंद की मिठाई तुम्हें खिलाऊँगी?’
दूसरी टीम ने टास जीता और पहले बैटिंग का फैसला लिया। मैच 25-25 ओवर का था। उस टीम ने 123 रन बयाये थे। अब मोना की टीम की बारी थी। उनकि टीम के 8 खिलाडी 115 रन बनते बनते आउट हो चुके थे बस मोना का ही विकेट बाकी बचा रह गया था जिस पर विश्वास किया जा सकता था। अंतिम ओवर था।
मैं मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ रहा था। काश कुछ ऐसा हो कि मोना की टीम जीत जाए। बड़ी मुश्किल घड़ी थी। हम सभी मोना का हौसला बढ़ा रहे थे। उस काली लड़की ने पहली बाल फेंकी, मोना ने एक रन ले लिया। अगली बाल पर सामने वाली खिलाड़ी एक रन लेने के चक्कर में रन आउट हो गई। अब तो लगने लगा कि रही सही उम्मीद भी गई।
अब मोना को बाल फेस करनी थी। मैं जानता था मोना स्पिन बोलिंग इतना अच्छा नहीं खेल सकती पर मैंने उसे कल इस तरह प्रैक्टिस कराई थी कि वो डट कर उसका मुकाबला कर सकती थी। मोना ने वही किया और इस गेंद पर 4 रन बन गए। अगली बाल खाली गई। अब जीत के लिए 4 रनों की दरकार थी। हे भगवान् बस एक चोका लगवा दे। उसने अगली कमजोर बाल पर शॉट तो लगाया पर जानबूझ कर रन नहीं लिया। अब तो बस एक बाल पर एक चोके की जरुरत थी।
सबकी साँसें जैसे रुक सी गई थी। अन्तिम गेंद पर मोना ने एक चोका जड़ दिया। और इसके साथ ही मोना की टीम जीत गई। सभी खिलाड़ी और दर्शक तालियाँ बजाने लगे।
विपक्षी टीम की कैप्टेन से हाथ मिला कर मोना मेरी और भागती हुई आई। मैंने उसे बाहों में भर लिया। इस से पहले कि मैं कुछ समझता उसने मेरे होंठों पर एक चुम्मा ले लिया। मैंने इसकी कल्पना तो मैंने सपने में भी नहीं की थी कि वो ऐसा करेगी। मैं तो उस एक चुम्बन की लज्जत से अन्दर तक रोमांच से भर गया। अब मुझे अपनी बुद्धि के मोटा या पतला होने का अब कोई गम नहीं था।
उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाया। मैं तो सतरंगी दुनिया में ही गोते लगाने लगा था। मेरा लंड तो आज कुतुबमीनार बना था। मैंने बड़े प्यार से आज मुट्ठ लगाई तब जाकर मुझे नींद आई।
अगले दिन जब मैं ट्यूशन पर पहुँचा तो मोना वहाँ पहले से ही विराजमान थी। उसकि आँखों की खुमारी देख कर तो लगता था कि उसे भी कल रात नींद नहीं आई होगी। उस दिन मास्टरानी ने हमें क्या पढ़ाया कुछ याद नहीं। आखिर उसे बोलना ही पड़ा ‘आज तुम दोनों का ध्यान कहाँ है भाई। आपस में कोई लड़ाई झगड़ा तो नहीं कर लिया?’
‘नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं है!’ मैंने मोना की ओर देखते हुए जवाब दिया तो मोना ने भी अपनी मुंडी मेरे समर्थन में हिला दी।
उस दिन के बाद तो जैसे सब कुछ ही बदल गया। हम लोग घंटों प्रेम रस में डूबे रहने लगे थे। एक दो बार तो मैंने उसका चुम्मा भी ले लिया था और उसके स्तन भी भींच दिए थे। बस उसे चोदने का मौका नहीं मिल रहा था। मुझे लगने लगा था कि वो भी चाहती तो है पर शर्म के मारे कुछ कह नहीं पा रही है।
अगले 3-4 दिन मोना ट्यूशन से गायब रही। आप मेरी हालत का अंदाजा लगा सकते हैं पर मैं मोना की याद में सिवा मुट्ठ मारने के क्या कर सकता था।
चौथे दिन मोना ट्यूशन पर सही वक़्त पर आ गई। आज तो मोना क़यामत ही लग रही थी। उसने लाल रंग का टॉप और सफ़ेद रंग की पैंट पहन रखी थी। आज मास्टरानी को कुछ काम पड़ गया था। उसके कुछ मेहमान आने वाले थे इस लिए बाज़ार जाना जरुरी था। कहती थी कि तुम दोनों बैठकर पढ़ लो मैं एक डेढ़ घंटे में आ जाती हूँ, मुझे देर हो जाए तो तुम घर बंद करके चाबी पड़ोस वाली काँता आंटी को दे जाना और हाँ आपस में लड़ाई मत करियो।
हमें तो जैसे बिन मांगे मुराद ही मिल गई थी, उसे क्या पता कि हमारे बीच अब लड़ाई नहीं, घमासान होने वाला है?
जैसे ही मास्टरानी बाहर गई मैंने अन्दर से दरवाजे की कुण्डी लगा ली। मोना तो जैसे इस पल का इंतज़ार ही कर रही थी। वो दौड़ कर मुझ से लिपट गई। मैंने उसे बांहों में भर लिया। पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते रहे। मैं कभी अपनी जीभ उसके मुंह में डाल देता और कभी वो अपनी नर्म रसीली जीभ मेरे मुंह में डाल देती। मेरे हाथ कभी उसकी पीठ सहलाते कभी उसके चूतड़! साली के खरबूजे जैसे गोल गोल कसे हुए चूतड़ तो जैसे कहर ही ढा रहे थे। उसके उरोज तो मेरे सीने से लगे जैसे पिस ही रहे थे।
मेरा 7′ का लंड तो किसी अड़ियल घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। पर मैंने अभी जानकर उसकी चूत को हाथ नहीं लगाया था। मेरे हाथ अब उसकी पीठ सहला रहे थे। कोई 10 मिनट तो हमने ये चूसा-चुसाई जरूर की होगी। फिर हम अपने होंठों पर जबान फेरते हुए अलग हुए। और फिर पास पड़े दीवान पर आ गए।
मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसके टॉप के अन्दर हाथ डाल कर एक बोबे को ब्रा के ऊपर से ही पकड़ लिया आह… क्या नर्म नाज़ुक रसीला संतरा था। मैंने उसे धीरे धीरे सहलाना और दबाना चालू कर दिया। मोना की मीठी सीत्कार निकलने लगी। मैंने उसे टॉप को उतारने को कहा तो वो बोली- नहीं मुझे शर्म आती है!
‘रै बावली इब शर्म की के बात रह गई है? इस जन्नत का मज़ा ले ले!’
मेरे ऐसा कहने पर वो तैयार हो गई। उसने अपना टॉप उतार दिया अब वो सिर्फ ब्रा में थी। मैंने ब्रा का हुक खोल दिया। अब दोनों कबूतर आजाद हो गए थे। बिलकुल तने हुए छोटी छोटी लाल रंग की घुन्डियाँ। मैंने जैसे ही उनको छुआ तो मोना की एक हल्की सी सीत्कार निकल गई। मैंने अपने होंठ उन पर लगा दिए। मोना ने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ कर अपनी छाती की ओर दबा दिया। मैंने एक उरोज अपने मुंह में भर कर चूसना और दूसरे उरोज को हाथ से दबाना चालू कर दिया ।
‘ओह … जीतू चूसो और जोर से चूसो। आह… मेरे राजा चूसो … ओईई … माँ…’
मेरे लिए तो यह स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था। अब मैंने दूसरे उरोज को अपने मुंह में भर लिया। मैं कभी एक उरोज चूसता कभी दूसरा। वो कभी मेरी पीठ सहलाती कभी मेरे सर के बालों को कस कर पकड़ लेती। मैं उसकी बढ़ती उत्तेजना को अच्छी तरह महसूस कर रहा था। थोड़ी देर उरोज चूसने के बाद मैंने फिर उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मोना ने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़े रखा। वो तो मुझ से ज्यादा उतावली लग रही थी। वो तो बस सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी।
मैंने मोना से जब पैंट उतारने को कहा तो वो बोली- तुम भी तो अपने कपड़े उतारो ना? मैंने भी अपनी पैंट और शर्ट उतार दी। अब मैं भी सिर्फ अंडरवियर में ही रह गया था। मैंने धीरे से मोना की पैंट उतार दी। अब वो सिर्फ काले रंग की पेंटी में थी। उसकी चूत की दोनों फांकें उसमें बुरी तरह फंसी हुई थी। चूत के आगे का भाग गीला हुआ था।
मैंने पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूम लिया। वाह क्या प्यारी खुशबू थी। मोना ने भी मेरा लंड अंडरवियर के ऊपर से ही अपने हाथ में पकड़ लिया। वो तो कब का तरस रहा था। उसने मेरा लंड हिलाना चालू कर दिया कभी दबाती कभी हिलाती। लंड तो जैसे उसके नाज़ुक हाथों में आकर अकड़ ही गया था।
मैंने अब एक बार फिर से उसके होंठ, गाल, बोबे और पेट को चूमा और फिर उसके पेडू पर अपनी जीभ फिराने लगा। उसकि एक झुरझुरी सी निकल पड़ी। अधिक रोमांच में ऐसा ही होता है ।
फिर मैंने उसकी पेंटी नीचे करनी शुरू कर दी। मोना ने थोड़ा सा रोकने की कोशिश की पर मैंने उसका हाथ हटा दिया। उसकी चूत पर हल्के हल्के बाल थे। नर्म रेशमी घुंघराले बाल देख कर तो जैसे मेरी लार ही निकल गई। किसी जवान लड़की की चूत को मैंने पहली बार देखा था। काले रेशमी झांटों से लकदक उसकी चूत ऐसे लग रही थी जैसे काँटों और पत्तों के बीच कोई ताज़ा गुलाब का फूल खिला हो। मैंने झट से अपने होंठ उन पर लगा दिए।
मोना तो बस आह… उन्ह्ह… करती ही रह गई। मैंने झट से 2-3 बार उसे चूम लिया। मोना मेरे सर पर हाथ फिरा रही थी। उसने अपनी जांघें चौड़ी कर ली। एक तो उसकी चूत की फांके थोड़ी सी खुल गई और उसके अन्दर का गुलाबी रंग नज़र आने लगा। मेरा लंड तो कुलांचें ही मारने लगा था। मोना ने मेरा अंडरवियर अपने पैरों में फंसा कर निकाल दिया और लंड को जोर से पकड़ कर अपना हाथ ऊपर नीचे करने लगी।
ऐसी स्थिति में तो किसी नामर्द का लौड़ा भी उठ खड़ा हो जायेगा, मेरा तो 90 डिग्री पर तना था। मैंने उसकी चूत की फांकों को अपने दोनों हाथों से चौड़ा कर दिया। अन्दर गुलाबी रंग की चूत का छेद साफ़ नज़र आ रहा था। वो रस में डूबा था। हल्का हल्का रस बाहर आ रहा था। मैंने उसे चाट लिया। वाह… खट्टा मीठा मजेदार स्वाद तो मुझे मस्त कर गया। मोना की मीठी सीत्कार निकल रही थी। मैंने 3-4 मिनट उसकी चूत को चूसा। उसका शरीर कुछ अकड़ा और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उसका स्खलन हो गया था। कुछ देर वो ऐसे ही चुपचाप पड़ी रही।
फिर उसने आँखें खोली तो मैंने कहा,’मोना क्या मेरे ‘लंड’ को प्यार नहीं करोगी। अब उसका ध्यान मेरे 7″ के लंड पर गया। वह उठ खड़ी हुई और मेरे लंड को पकड़ कर उसका टोपा नीचे कर दिया। सुपाड़ा तो लाल टमाटर की तरह 2 इंच मोटा हो गया था।
‘जीतू! थारो यो ‘रामलाल’ तो बहोत मोटो सै!’ उसने मेरा लंड अपने नाजुक हाथों में मसलते हुए कहा। ‘बावली मुंह मैं ले के देख! घनो मजो आवेगो!’
अपने सर को एक झटका देते हुए अपने चेहरे पर आये बालों को हटाया और फिर मेरे लंड पर आई प्री कम की बूँद को पहले साफ़ किया फिर उसके सुपाड़े पर अपनी जीभ फिराने लगी। मैं तो उसका गर्म अहसास पाकर मदहोश ही हो गया। मैंने उसे पूरा मुंह में लेकर चूसने को कहा तो उसने पहले 2 इंच मुंह में लिया और फिर चूसने लगी। कोई 3-4 मिनट तक तो उसने जरुर चूसा होगा। मैं घुटनों के बल बैठा था। मेरे हाथ उसके सर पर फिर रहे थे।
लंड चूसते चूसते उसका मुंह दुखने लगा था। मैंने उसे चित्त लेटा दिया। दिन की धीमी रोशनी में भी उसका शरीर चमक रहा था। उसके गुलाबी होंठ तनी हुई गोल गोल चुंचियां, पेट के बीच गहरी नाभि, पतली कमर, सपाट चिकना पेट और उसके नीचे दो मोटी मोटी जाँघों के बीच फंसी पाव रोटी की तरह फूली छोटी सी चूत। मैं तो टकटकी लगाए देखता ही रह गया।
वो शर्म के मारे दोहरी हो रही थी। उसने अपनी शर्म छुपाने के लिए मुझे अपनी बाहों में भर लिया। अब मैं उसके ऊपर था। मेरा लण्ड उसकी चूत के ऊपर था और बस किसी बन्दूक की तरह बस घोड़ा दबाने का इंतज़ार ही कर रहा था। उसकी चूत तो मेरे चूसने और चाटने से पहले ही गीली हो चुकी थी। मेरे लंड पर भी उसका थूक लगा था। मैंने थोड़ा सा थूक अपने लंड पर और लगा लिया ताकि उसकी चूत में आसानी से चला जाए। मुझे पता था कि पहली बार लंड अन्दर डालने में बड़ी मुश्किल होती है ।
अब मैंने उसकी चूत की फांकों को खोला और उसके छेद पर अपना लंड रगड़ने लगा। मोना कसमसाने लगी। मैं थोड़ा डर भी रहा था। मैंने अभी लंड अन्दर नहीं डाला। मैं सोच रहा था कि पहला धक्का जोर से लगाऊं या धीरे। मोना ने मेरी कमर को पकड़ते हुए कहा- रै ताऊ इब तो बाड़ दे चूत में लोड़ा … के देखै सै बावली बूच? और उसके साथ ही उसने मुझे अपनी ओर जोर से खींचा। इस से पहले कि मैं मोना कि इस हरयानवी भाषा में बोली गई बात को समझता या कुछ करता मेरा शरीर उसके ऊपर धम्म से गिरा और मेरा लंड गच्च से उसकी नाज़ुक चूत के अन्दर 4-5 इंच तक समां गया।
मेरा लंड तो कब का प्यासा था। मैंने एक धक्का जोर से लगा दिया तो बचा खुचा लंड भी जड़ तक उसकी कुंवारी चूत की पतली झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर समां गया। उसके साथ ही मोना की भयंकर चीख निकल गई- अरे बाप रे मार डाला रे… मर गई रे …!’ मैं हडबड़ा उठा। सच पूछो तो मुझे कुछ पता ही नहीं चला कि मेरा लंड पूरा का पूरा उसकी चूत में घुस चुका है। मैंने अपनी बाहों की जकड़न ढीली नहीं की। वो नीचे कसमसा रही थी। जैसे कोई कमेड़ी बाज़ के पंजो में फड़फड़ा रही हो।
‘ओईईईइ माआआआ आआ … मर गईईईईइ … ओह्ह्हह ह्ह्ह्छ … बाहर निकालो …’ उसने बेतहाशा मेरी पीठ पर मुक्के लगाने चालू कर दिए और मुझे परे धकेलने की नाकाम कोशिश करने लगी। मुझे लगा कुछ गरम गर्म सा तरल द्रव्य मेरे लंड के चारों ओर लिपटा जा रहा है। हमें तो बाद में पता चला कि उसकी चूत की झिल्ली फट गई है उस से निकलता हुआ खून चद्दर को भी भिगो गया और उसकी जाँघों और गांड के छेद तक फ़ैल गया है।
‘ओह सॉरी मेरी रानी मेरी मोना बस बस … जो होना था हो गया … प्लीज अब चुप करो!’ ‘तुम पूरे सांड हो! मैं तो कहती हूँ कसाई हो! भला ऐसा भी कोई धक्का लगता है?’ ‘ओह… पर मैं क्या करूँ धक्का तो पहले तुमने लगाया था ?’
‘ओह्ह्ह्ह् ह्ह्ह्ह्ह्छ… मैं तो बावली थी पर तुम्हें तो सोचना चाहिए था?’ ‘ब्… ब् सॉरी … मेरी मोना प्लीज मुझे माफ़ कर दो!’ मैंने उसके होंठो को चूमते हुए कहा।
मोना अब भी सुबक रही थी। पर ना तो वो हिली और ना ही मेरे लंड को बाहर निकालने की कोशिश की। कुछ देर मैं ऐसे ही मोना के ऊपर पड़ा उसे चूमता रहा। मोना को इससे थोड़ी राहत मिली। उसके आंसू अब थम गए थे वह अब सामान्य होने लगी थी- जीतू, अब परे हट जाओ, मुझे दर्द हो रहा है और जलन भी हो रही है। ओह्ह्ह्छ… ओईईईइ!
‘देखो मोना जो होना था हो गया, अब तो बस मज़ा ही बाकी है! प्लीज, बस दो मिनट रुक जाओ ना आह्ह्ह्ह …’
थोड़ी देर में उसका दर्द ख़त्म हो गया और वो सामान्य हो चली थी। मैं उसे चूमता चाटता रहा। थोड़ी देर बाद बोली,’अब रुक क्यों गया ? कर न जो करना है?’ मैंने एक बार उसे फिर दबोच सा लिया और अपने लंड को थोड़ा सा बाहर निकल कर फिर धक्का लगाया।
‘आह्ह्ह्ह्छ…. थोड़ा धीरे करो लग रहा है बाबा…?’ ‘ओह अभी मज़ा भी आने लगेगा मेरी जान?’ ‘लगता है तुम तो आज मेरी जान निकाल कर ही छोड़ोगे?’ ‘अरे नहीं मेरी बावली में में! अभी देखो तुम तो और दे और दे करने लगोगी!’
और फिर मैंने दनादन धक्के लगाने चालू कर दिए। अब उसे भी मज़ा आने लगा था। वो भी नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा कर धक्के लगाने लगी थी। उसकी मीठी सीत्कार निकालने लगी। ‘वाह मेरे राजा आह्ह्ह्ह … बड़ा मज़ा आ रहा है और जोर से आह्ह्ह्ह्छ …’
मेरी तो बांछें ही खिल गई थी। मेरा तो जैसे बरसों का सपना पूरा हुआ था। मैंने अपने लंड को जरा सा बाहर निकाला तो मेरे लंड ने ठुमका लगा दिया। इसके साथ ही मोना की चूत ने भी संकोचन किया। चूत और लंड दोनों अपने संगम से खुश हो रहे थे ।
‘तुम बड़े शैतान निकले! मैंने कहा था ना कि तुम कुछ ना कुछ कर बैठोगे?’ ‘रै बावली यो कुछ नई सै यो तो प्रेम सै जो म्हारो यो रामलाल थारी मुनिया को कर रियो सै?’
‘ओह्ह्ह्ह्छ… अब रुक क्यों गए? जो करना है करो ना? नहीं तो हटो परे?’ अब उसकी चूत रंवा हो चुकी थी। लंड महाराज बिना किसी रुकावट के अन्दर बाहर हो रहे थे। मोना की मीठी सीत्कार फिर निकलने लगी थी। फच फच का मधुर संगीत बजने लगा था। मोना की सिस्कारियां अब भी चालू थी। मैंने उसके बोबे फिर से चूसने चालू कर दिए। ‘ओह्ह्ह्ह… आह्ह्ह्ह् ह्ह्ह्ह्छ… याया…’
मोना ने अब अपनी टांगें ऊपर करके मेरी कमर से लपेट ली और जब भी मैं धक्का लगाने के लिए अपनी कमर उठाता तो उसके चूतड़ भी मेरी कमर के साथ ही उठ जाते। अब जब मैं नीचे आता तो दच्च की आवाज के साथ लंड उसकी चूत में फिर घुस जाता।
अनोखे आनंद से हम दोनों ही मस्त हो रहे थे। मैं हौले हौले धक्के लगा रहा था और वो भी मेरे लयबद्ध धक्कों के साथ अपने चूतड़ उछाल उछाल कर मेरे साथ अपनी ताल मिलाने की कोशिश कर रही थी।
मुझे लगा उसका शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है। शायद उसका पानी निकल गया था। वो झड़ गई थी क्योंकि उसकी चूत से अब फिच फिच की आवाज की जगह धच धच की आवाज आनी शुरू हो गई थी।
वो अब थक गई थी। निढाल सी होकर उसने अपने पैर नीचे कर लिए। अब वो टांगें चौड़ी किये आराम से चित्त लेटी आँखें बंद किये बस सीत्कार ही किये जा रही थी, मेरे धक्के चालू थे।
मैंने महसूस किया कि एक ही मुद्रा में मज़ा नहीं आ रहा है। मैंने मोना को घोड़ी बन जाने को कहा। उसे पहले तो समझ ही नहीं आया। मैंने उसे समझाया। ‘तुम मुझे सांड कहती हो ना? तो सांड गाय को कैसे चोदता है मैं तुम्हें भी वैसे ही चोदना चाहता हूँ मेरी रानी?’
‘ओह फिर तो बड़ा मज़ा आएगा? मैं तुम्हारी गाय बनूँगी और तुम मेरे प्यारे सांड?’ अब मोना चौपाया बन गई और मैं उसके पीछे आ गया। अब मैंने अपने लंड को उसकी चूत के मुंह पर रख कर उसकी कमर पकड़ कर धीरे से धक्का लगाया। इस बार मैंने जानबूझ कर धक्का जोर से नहीं मारा था। अगर मैं ऐसा करता तो मोना आगे गिर पड़ती और फिर नाराज़ हो जाती। मैं भला इस कमेड़ी को कैसे नाराज़ कर सकता था। उसकी चूत तो पहले से ही रंवा थी। मेरा लंड बड़े आराम से अन्दर बाहर आ जा रहा था। मेरा लंड जब अन्दर जाता तो मैं एक ठुमका लगा देता और मोना भी अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ती तो हमारा मज़ा दुगना हो जाता।
मैंने पूछा- क्यों मोना, मज़ा आ रहा है ना? ‘ओह्ह्ह मेरे सांड बहुत मज़ा आ रहा है। मैं तो कब कि इस मज़े के लिए तरस रही थी? आह्ह्ह… या… इस्स्स्स्स…’ ‘सच? तो फिर तुमने पहले क्यों नहीं बताया?’
‘ओह तुम्हारा भी ऊपर का माला खाली है? मैं ना कहती थी कि तुम्हारी बुद्धि मोटी है? भला कोई लड़की अपने मुंह से कहती है कभी?’ ‘वाह … मेरी जान!’ मैंने कस कर एक जोर का धक्का उसकी चूत में लगा दिया। वो चिहुंक उठी- आह जरा जरा धीरे करो ना!
‘मोना, सच बताना, तुम्हें भी मज़ा आ रहा है ना?’ ‘ओह… मेरे जीतू अब कुछ मत पूछो बस इसी तरह करते रहो। मैं तो चाहती हूँ कि बस ये पल कभी ख़त्म ही न हों। मैं तो बस तुम में समां कर सब कुछ भूल जाना चाहती हूँ।’ ‘मोना, मैं भी पता नहीं कितना तड़फा हूँ तुम्हारे लिए। आज मेरी भी बरसों की प्यास ख़त्म हुई है।’
मुझे लगाने लगा कि अब मैं अपना संयम खोने वाला हूँ। किसी भी समय मेरा पानी निकल सकता है। मैंने मोना से कहा- मोना, अब मैं भी झड़ने वाला हूँ!
‘ओह जीतू! मेरे सांड अब कुछ मत बोलो! बस मुझे जोर जोर से एक बार चोद दो! फाड़ दो इस चूत को! बहुत मज़ा आ रहा है!’
अब हम दुबारा पहले वाली मुद्रा में आ गए। मोना मेरे नीचे लेटी थी और मैं उसके ऊपर था। मेरा पूरा लण्ड उसकी चूत में फंसा था। मैंने 4-5 धक्के एक साथ लगा दिए। मोना का शरीर एक बार फिर थोड़ा सा अकड़ा और वो फिर झड़ गई। और उसके साथ ही मेरा भी पिछले आधे घंटे से कुलबुलाता लावा फ़ूट पड़ा। पता नहीं कितनी पिचकारियाँ निकली होंगी। उसकी बुर मेरे गर्म गाढ़े वीर्य से लबालब भर गई। थोड़ी देर हम इसी तरह एक दूसरे की बाहों में जकड़े पड़े रहे और उस परम आनंद को महसूस करते रहे।
थोड़ी देर बाद मेरा लंड फिसल कर उसकी चूत से बाहर आ गया था। उसकी चूत से वीर्य बाहर निकालने लगा था जो उसकी जाँघों और नीचे गांड तक फैलने लगा। उसे गुदगुदी सी होने लगी थी ‘ऊईईईईई… माआआअ…’
मैंने उसकी पेंटी से उसकी चूत से झरते वीर्य रस को पौंछ दिया। पूरी पेंटी उस रस से भीग गई थी। मैंने देखा था कि अब भी कुछ खून उसकी चूत से रिस रहा था। उसकी चूत तो सूज कर पकोड़ा सी हो गई थी और आगे से थोड़ी सी खुल सी गई थी।
मेरा मन तो कर रहा था कि उसे चूम ही लूं। पर जब मैं आगे बढ़ा तो वो बोली- ओह… हटो परे सांड कहीं के!
हमने जल्दी से कपड़े पहन लिए। बेड पर जो चद्दर बिछी थी वो भी 4-5 इंच के घेरे में गीली हो गई थी। और उस पर भी हमारे प्रेम का रस फ़ैल गया था। मैंने जल्दी से उसे बाथरूम में ले जाकर पानी से धो दिया और फिर बेड पर बिछा दिया।
मैं एक बार उसे बांहों में भर कर उसका धन्यवाद करना चाहता था। मैंने उसे बांहों में भरने की कोशिश की तो वो बोली- ओह हटो परे! वो मास्टरानी आने ही वाली है। कहीं देख लिया तो मुश्किल हो जायेगी! ‘मुश्किल क्या होगी उस साली को भी पटक कर चोद दूंगा!’ मैंने कहा। ‘हाँ हाँ! तुम तो पूरे सांड जो ठहरे! सब गायों को चोद कर ही छोड़ोगे? लगता है अब तुम्हारी बुद्धि भी इतनी मोटी नहीं रही?’ वो बोली।
हम दोनों ही हंस पड़े। मैंने आगे बढ़ कर मोना को एक बार फिर चूम लिया। मोना भी मुझ से लिपट गई और उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
मास्टरानी को गए दो घंटे हो गए थे किसी भी समय आ सकती थी। हमने जल्दी से मकान पर ताला लगाया और चाबी कान्ता आंटी के हवाले करने उसके घर की ओर मुड़े तो सामने से आती मास्टरानी दिखाई दी। उसकी घूरती निगाहें मुझे और मोना को अन्दर तक चुभती हुई महसूस हुई। मुझे तो शक हो रहा था साली मास्टरानी सब जानती थी और जानबूझ कर लेट आई है। हे गोपी किशन कहीं उसे हमारी इस चुदाई का पता तो नहीं चल गया?
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