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हम दोनों घाट से उठे, मैंने अपनी चप्पल हाथों में ही ले ली और और खाना खाने के लिए चल दिए और खाना खाकर कमरे की तरफ चल दिए…
कमरे में पहुँच कर पलक ने अपना बैग उठाया और मुझे कहा- तू टीवी देख और जब मैं मैसेज करूँ तो मेरे कमरे में आ जाना !
मैंने कहा- अब मैं कही नहीं जाने दूंगा तुझे और मैं टीवी नहीं देखता तू भी जानती है।”
वो बोली- प्लीज यार मान जा ना ! थोड़ी देर की बात तो और है ! मैं बुलाती हूँ ना तुझे !
मुझे मालूम था कि यह लड़की और कुछ सोच कर आई है, मैंने कहा- ठीक है, जा !
और मैंने फ़िर से लोअर और टीशर्ट पहन लिया और मैं मोबाइल पर ऑरकुट पर दोस्तों से बात करने लगा। मैंने करीब आधे घंटे तक ऑरकुट पर एक एक सेकंड गिन कर बिताया होगा कि तभी पलक का मैसेज आया- आ जा मेरे कमरे में ! दरवाजा खुला है, तू आकर बंद कर देना।
मैंने अपने कमरे को ताला लगाया और उसके कमरे की तरफ गया, उसने दरवाजा खोल ही रखा था, मैं अंदर गया तो सारी रोशनी बंद थी पर कमरे में गुलाब की खुशबू फैली हुई थी। मैंने दरवाजा बंद किया और बत्ती जलाई तो मैं पलक को देख कर दंग ही रह गया…
उसने एक पारदर्शी लाल साड़ी पहन रखी थी और साड़ी के नीचे ना ही ब्लाउज था ना ही पेटीकोट पर सिर्फ लाल रंग की ही ब्रा और पैंटी पहनी हुई थी जो साड़ी के बाहर से ही दिखाई दे रहे थे, रेशमी बालों से उसने एक जूड़ा बना रखा था जिस पर गुलाब का एक फूल लगा हुआ था, गुलाब मुझे बहुत पसंद है लम्बे बालों वाली लड़कियों पर, आँखों में हल्का सा काजल और होंठों पर लाल लिपस्टिक लगा रखी थी… माथे पर लाल बिंदिया !
कुल मिला कर उसका रूप ऐसा लग रहा था मानो कोई अप्सरा जमीन पर ही उतर आई हो।
पलक को ऐसे देख कर उस आधे घंटे के हर सेकंड की कीमत पूरी तरह से वसूल होते हुए लगी।
मैं थोड़ी देर तक तो बस उसे निहारता ही रहा…
और वो बोली- ऐसे क्या देख रहा है? मेरे पास नहीं आएगा क्या?
मैंने कहा- सोच रहा हूँ, पास आया तो तुझे बाँहों में भर लूँगा और तू इतनी सुंदर लग रही है कि डर है तुझे छू लूँ तो तू गन्दी ना हो जाये कहीं?
मेरी बात सुन कर वो मेरे पास आई और उसने मुझे बाँहों में भर लिया और मेरे होंठों को चूमने लगी..
और मैंने भी उसे बाँहों में भर कर उसका साथ देना शुरू कर दिया।
हम दोनों थोड़ी देर तक ऐसे ही एक दूसरे को चूमते रहे, फिर मैंने उसे उठाया और बिस्तर पर ले जाकर लिटा दिया, मैं उसके ऊपर लेट गया।
जब उसे बिस्तर पर लिटाया तो एक और आश्चर्य मेरा इन्तजार कर रहा था, बिस्तर पर उसने दूसरी चादर बिछा रखी थी सिल्क फिनिश वाली साटन के कपड़े की, और तभी मैंने ध्यान दिया कि एक वैसी ही चादर और रखी हुई थी।
मैंने उसे देखा और पूछा- तू यह सब कब से प्लान कर रही थी?
तो वो आँखे मटका कर मुस्कुराते हुए बोली- कई दिनों से !
“कई दिन ! मतलब?”
वो बोली- सच कहूँ तो जब रितु ने मुझे बताया कि तूने उसे उस दिन कैसे पागल कर दिया था, तब से मेरा भी बहुत मन हो रहा था तो मैंने सब प्लान करना शुरू कर दिया।
उसकी बात सुन कर मैं मचल गया, वो मेरी बाँहों में तो थी ही, मैंने उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसके स्तनों को सहलाना शुरू कर दिया, मैंने कहा- तो मोहतरमा की और कोई इच्छा है जिसमें कुछ खास हो या सिर्फ एक ही इच्छा थी?
तो वो बोली- है पर बाकी बाद में बताऊँगी लेकिन अभी की इच्छा यही है कि अब तू मुझे जैसे चाहे वैसे कर ! पर मेरा कौमार्य भंग होने के बाद तू तेरे इसको बाहर निकाल कर मेरी चूत का खून मुझे दिखायेगा।
“पर तुझे दर्द होगा बार बार अंदर-बाहर करने में !” मैंने कहा।
बोली- एक ही बार तो होगा ना? और यह मेरी इच्छा है ! अब कर ना !
उसकी बात सुन कर मुझे और जोश आ गया, मैंने उसकी साड़ी को पहले उसके सीने पर से हटा दिया और फिर कमर पर भी साड़ी की गांठ खोल दी और फिर उसकी पूरी साड़ी उसके बदन से अलग कर दी।
अब वो सिर्फ लाल रंग की पैंटी और ब्रा में थी जिसमें से उसके स्तन बाहर निकलने को बेचैन हो रहे थे।
मैंने पलक को हल्का सा ऊपर उठाया और पीछे से उसकी ब्रा के हुक को खोलने लगा, और फिर उसकी तरफ देख कर मैंने उससे कहा- अब तो निकाल सकता हूँ ना?
तो उसने सिर्फ हाँ में सर हिला दिया।
उसके बाद मैंने उसकी ब्रा का हुक खोला और बिना उसकी ब्रा को उसके सीने पर से हटाये मैं उसकी पैंटी उतारने लगा तो वो बोली- रुक ना !
और उसने मेरी टीशर्ट उतार दी और बोली- तू घूम कर अपनी टाँगें मेरे सर की तरफ कर और फिर उतार इसे।
मैं नहीं जानता था कि वो क्या करने वाली है लेकिन जैसा उसने कहा, मैंने वैसा ही किया और जब मैं धीरे धीरे उसकी पैंटी उतार रहा था तो उसी वक्त वो मेरा लोअर और अंडरवियर भी उतार रही थी।
जब मैंने उसकी पैंटी उतारी तो उसी वक्त मैं भी पूरा प्राकृतिक अवस्था में आ चुका था पर मेरा लण्ड तना हुआ था।
मैं उसकी चूत को चूसना चाहता था और मुझे लगा भी कि वो 69 करना चाहेगी पर वो मुझ से बोली- अब तू जैसा चाहे वैसा कर मैं कुछ नहीं करने वाली अब।
मैंने कहा- ठीक है !
और मैं पलट कर वापस सामान्य स्थिति में आ गया..
अभी भी पलक की ब्रा उसके उभारों पर ही थी और उसने दोनों हाथों से चूत को ढक रखा था।
मैंने उसके हाथों को हटाने की कोशिश नहीं की पर उसके स्तनों पर पड़ी हुई खुली ब्रा को मैंने उसके कंधों पर से नीचे करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे ब्रा को मैं उसकी बाँहों से सरकाता हुआ उसकी चूत पर लेकर आया और उसकी ही ब्रा से उसकी चूत को ढक कर उसे सहलाने लगा जो पहले ही गीली हो चुकी थी और उसके हाथों को मैंने वहाँ से हटा दिया।
उसके बाद मैंने ब्रा को भी हटा कर नीचे फैंक दिया।
क्या गजब की सुन्दर लग रही थी ! ऐसा लगता था जैसे बदन का एक एक हिस्सा सांचे में ढाल कर बनाया हो ! कहीं से भी जरा सा भी ज्यादा नहीं, कम नहीं ! ऐसा लगता था मानो खजुराहो की कोई मूर्ति सजीव रूप ले कर आ गई हो। बदन पर एक भी दाग नहीं ! और पूरी चिकनी चूत सिर्फ थोड़े से बाल चूत के ऊपर थे जो जानबूझ कर छोड़े हुए लग रहे थे।
मैंने उसे देख कर उसकी चूत पर एक चुम्बन दे दिया और फिर मैं उसकी चूत को चाटने लगा तो मचलने लगी और मचलते हुए ही बोली- मुझे इस बार इस तरह से स्खलित नहीं होना पर इस बार तू अंदर डाल कर ही मुझे स्खलित करवाएगा, समझ गया ना?
मैंने उसकी चूत को चूसना बंद कर दिया और उसकी चूत को फैला कर देखा तो उसकी कुँवारी चूत का कुंवारापन दिख रहा था।
वो बोली- क्या कर रहा है?
मैंने कहा- कुछ नहीं ! सिर्फ तेरी चूत का कुंवारापन देख रहा हूँ।
बोली- अब और नहीं संदीप… अब मुझे करना है, जल्दी कर अब !
मैंने कहा- वैसलीन कहाँ है? तू जरूर लाई होगी।
तो उसने मुस्कुराते हुए लेटे लेटे ही तकिये के नीचे से वैसलीन निकाल कर मुझे दे दी…
मैंने थोड़ी सी वैसलीन मेरे लण्ड पर लगाई, थोड़ी उसकी चूत के किनारों पर और उसकी चूत पर लण्ड रख दिया…
मैंने उससे कहा- चीखेगी तो नहीं?
बोली- पता नहीं।
तो मैंने लण्ड को वापस हटा लिया और उसकी चूत पर लण्ड से चोट मारने लगा…
मेरी इस हरकत से उसे मजा तो बहुत आया पर बोली- अब और मत तड़पा ना ! अंदर डाल दे।
मैंने कहा- ठीक है !
और उसकी चूत को फैला कर लण्ड टिकाने की जगह बनाई और उसकी टांगें पकड़ कर जैसे ही थोड़ा सा धक्का मारा तो वो दर्द से बिलबिला गई जबकि मेरा लण्ड तो सिर्फ उसकी कुंवारी चूत से टकराया ही था, अगर मैंने उसकी टांगों को कस कर पकड़ नहीं रखा होता तो मेरा लण्ड वहाँ से हट ही जाता।
पर चूंकि इस एक धक्के से मेरा लण्ड पूरी तरह से जगह पर आ चुका था तो यह तय था कि अब सिर्फ एक और तेज धक्का उसकी चूत को फाड़ते हुए अंदर चले जायेगा।
मैंने पलक से कहा- अब बिल्कुल मत हिलना, बिल्कुल भी नहीं।
उसने इशारे से हाँ की।
उसके बाद मैं पलक के ऊपर लेट गया और उसके होंठों को अपने होंठों से बंद करके चूसने लगा दिया और पलक अपने हाथों से मेरे सर को पकड़ कर मेरा साथ दे रही थी, मेरे दोनों हाथों से मैंने उसकी जांघों को पकड़ रखा था।
मैंने पलक को चूमना छोड़ कर उससे कहा- पलक, अगले पल में जो होने वाला है उसके बाद कभी भी पहले जैसा नहीं हो पायेगा ! सोच ले?
वो बोली- पहले से सोचा हुआ है, अब तू आगे बढ़ !
उसका इतना कहना था कि मैंने उसके होंठों को फिर से होंठों में भर लिया और एक जोरदार धक्के से मेरा लण्ड मैंने उसकी चूत में घुसा दिया जो उसकी कौमार्य झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर चला गया।
उस वक्त पलक दर्द से तड़प उठी थी, अगर मैंने पलक का मुँह अपने मुँह से बंद ना किया हुआ होता तो वो इतनी जोर से चीखी होती कि आसपास के कमरों वाले तो जरूर सुन लेते।और मेरे होंठों से उसके होंठ बंद होने के बाद भी उसके मुँह से एक घुटी सी चीख निकल ही गई।
मैंने पलक के होंठों को छोड़ा और देखा तो उसकी आँखों से आंसू निकल रहे थे … पर उसकी आँखों में एक अजीब सी खुशी भी थी।
मैंने कहा- तू रो रही है?
तो बोली- नहीं रे ! दर्द के कारण आंसू आ गए थे !
हालांकि उसे दर्द तब भी हो रहा था जो उसके चेहरे से मुझे पता चल रहा था।
मैंने कहा- थोड़ी देर रुकते हैं !
तो बोली- नहीं, मुझे बाहर निकाल कर दिखा !
मैं पीछे खींच कर लण्ड बाहर निकालने लगा तो बोली- रुक जरा..
और उसने अपनी कमर और कूल्हों के नीचे तौलिया खिसका दिया ताकि चादर पर खून न लगे।
जब मैंने लण्ड निकाला तो वो पूरी तरह खून से सना हुआ था जैसे कोई चाकू किसी के पेट में घुसने के बाद खून से सना हो।
उसने मेरे लण्ड को बड़े प्यार से देखा और फिर तकिये के नीचे से एक छोटा से टावेल निकाल कर उसे साफ कर दिया और बोली- मेरी चूत भी साफ़ कर दे ना।
मैंने उसकी चूत के आसपास जो खून लगा था और जो बह कर आ रहा था वो साफ़ करा किया और थोड़ी देर तक उसकी चूत पर ही तौलिया रख कर खून साफ करता रहा।
तब तक उसका दर्द कम हो चुका था शायद तो बोली- चल अब करते हैं।
मैंने कहा- फिर से दर्द होगा !
तो बोली- सहन कर लूँगी।
मैंने कहा- इस बार होंठ नहीं बंद करूँगा और चीखना मत !
तो बोली- हाँ ! नहीं चीखूँगी।
मैंने नीचे से तौलिया हटा दिया और फिर से उसकी चूत पर लण्ड रखा, टांगे पकड़ी और एक धक्का मारा, मेरा साढ़े पाँच इंच का लण्ड उसकी चूत को चीरता हुआ आधा अंदर चला गया, इस बार पलक चीखी नहीं लेकिन दर्द इस बार भी उसे बहुत हुआ था।
वो बोली- रुक जा जरा !
मैंने कहा- एक धक्का और ! फिर पूरा अंदर हो जायेगा, बाबू, फिर रुक जाऊँगा।
और यह कहते हुए मैंने एक धक्का और मार कर पूरा लण्ड उसकी चूत में अंदर तक घुसा दिया।
कहानी जारी रहेगी।
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