कोई देख लेगा सर-1

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मेरे चाहने वालो के लौड़ों को मेरी चूत का आदाब !

अब तक आप सबने मेरी

लड़की से औरत बनी

शृंखला की सारी कहानियाँ पढ़ी और आप सबके इतने मेल आये कि क्या कहूँ ! आप सबका धन्यवाद !

मैंने अपनी पिछली कहानी में बताया था कि कैसे रमेश और अनिल मेरी चूत और गाण्ड को चोद चोद कर मुझे कली से फूल बना कर चले गए थे।

उनके जाने के बाद मैं बाथरूम में फ्रेश हुई और नाश्ता करके सो गई। करीब तीन बजे अनिल मेरे लिए खाना लेकर आए और हम दोनों ने खाना खाया।

उसके बाद मेरी चूत- गाण्ड में तेल गर्म करके मालिश की, मैं भी उनके लण्ड पर तेल लगा कर सहलाती रही। जब उनका लण्ड खड़ा हो गया तो वो चोदने के मूड में आ गए लेकिन मेरी चूत-गाण्ड और चूचियाँ इतनी दुःख रही थी कि मैंने मना कर दिया।

तो अनिल बोले- मुठ मार कर गिरा दो !

मैंने उनके लण्ड को हिला हिला कर गिरा दिया, सारा माल मेरी चूचियों और चेहरे पर गिरा तो अनिल ने उसकी भी मालिश कर दी।

जाते जाते मेरी चूत और गाण्ड पर पप्पी भी की। मैं फिर सो गई।

शाम को छः बजे मम्मी-पापा आ गए।

मेरी लंगड़ाती चल देख कर मम्मी ने पूछा तो मैंने कह दिया कि पैर में मोच आ गई है।

और दो दिन बाद मेरी चूत-गाण्ड का दर्द भी चला गया।

हाँ कई दिनों तक गाण्ड से पाद बहुत निकलती रही। कई बार सहेलियां मजाक करती- गाण्ड मरवा ले किसी से ! तो पाद रुक जाएगी।

उनको क्या कहती कि मराने से ही तो यह हाल है।

अगले 4-5 दिनों तक मैं बिल्कुल सामान्य हो गई। इसी बीच अनिल और रमेश मेरे घर पापा से मिलने आते रहे। अकेली पाकर मोम्मे दबा देते, चुम्मा ले लेते परन्तु कुछ और करने का मौका नहीं मिला।

कुछ दिनों तक तो सामान्य रही लेकिन 7-8 दिनों बाद मेरी चूत को लण्ड की जरुरत महसूस होने लगी। मैं रात में अपनी चूत सहलाती और सोचती कि काश कोई मोटे लण्ड वाला मर्द इस चूत को चोद चोद कर फाड़ देता,

इसका मौका जल्द ही मिल गया।

कालेज में मेरे एक प्रोफेसर थे वो मेरे चूचियों को बड़े ध्यान से घूरते थे। पहले तो शर्म आती थी लेकिन जब से रमेश और अनिल ने चोदा था, तब से उनका घूरना मुझे अच्छा लगने लगा था।

मैं अब उनसे बात करते समय मुस्करा कर ज्यादा बात करती और ऐसी ब्रा पहनती कि मेरे मम्मे ज्यादा से ज्यादा बाहर दिखें।

एक दिन मुझे अपनी फोटो अटेस्ट करानी थी, क्लास में मैंने उनसे कहा तो बोले कि मेरे कमरे में आकर करा लेना !

क्लास के बाद उनके कमरे में गई तो फोटो अटेस्ट करते वक्त उनका पैन नीचे गिर गया तो मैं झुक कर पैन उठाने लगी, जानबूझ कर मैंने अपनी गाण्ड उनकी तरफ रखी।

बस उन्होंने मेरी गाण्ड पर हाथ रख दिया।

मैंने चौंकने की शानदार एक्टिंग की और बोली- यह क्या कर रहे हैं सर?

बिना कुछ बोले उन्होंने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया।

मैं बिना विरोध किये ना ना करती रही, कहती रही- कोई देख लेगा सर ! प्लीज छोड़ दीजिये !

लेकिन कहाँ छोड़ने वाले थे वे मुझे !

मेरी चूचियाँ दबाने लगे, उनके कठोर लण्ड का अहसास मेरी गाण्ड को हो रहा था।

मैंने कहा- सर कोई आ जायेगा, प्लीज जाने दीजिये।

तो बोले- कोई नहीं आएगा, मैं केबिन लॉक कर देता हूँ।

उन्होंने उठ कर केबिन को लॉक कर लिया और मुझे दबोच लिया।

अब तक मैं भी बेशर्म हो चुकी थी और लता की तरह उनसे लिपट गई। वे मेरे गुलाबी होंठों का रस चूसने लगे और मेरे जीन्स में हाथ डाल कर मेरी गाण्ड की गोलाइयों को दबाने लगे। मैं भी उन्हें चूमने लगी। वो मेरे टॉप में हाथ डाल कर मेरी चूचियों को सहलाने लगे, अपना लण्ड निकाल कर मुझे पकड़ा दिया।

मैं उसे हिलाने लगी।

फिर मेरा टॉप निकालने लगे, मैं रोकती ही रह गई पर मेरी टॉप निकल ही गया। अब मैं काली ब्रा और जींस में रह गई। मेरी गोरी चूचियों को देख कर उन पर गज़ब की मस्ती चढ़ गई। ब्रा को खोल कर मेरी गदराई हुई चूचियों को चूसने, काटने लगे। मैं आह उह करती रही।

मेरी चूत में अब तक चींटियाँ सी चलने लगी थी और वो लण्ड के स्वागत करने के लिए पानी निकालने लगी थी।

तब उन्होंने मेरी जीन भी निकाल दी और मुझे अपने मेज़ पर लिटा दिया, और खुद नीचे खड़े रहे।

मेरी काले रंग की पैंटी मेरी चूत को छुपाने में नाकाम हो रही थी शायद ! क्योंकि उन्होंने मेरी पैंटी एक तरफ़ करके मेरी गीली झांटों भरी चूत पर चुम्बन किये और लण्ड का सुपारा चूत के मुँह पर लगा कर धक्का मारा तो झांटों को उखाड़ता हुआ आधा लण्ड चूत निगल गई।

मैं मज़े के कारण आह आह करने लगी तो सर समझे कि मैं दर्द से आह आह कर रही हूँ तो सर रुक गए, मेरी चूचियों को चूसने लगे और थोड़ा रुक कर पूरा लण्ड डाल दिया और चोदने लगे।

थोड़े नखरे दिखाने के बाद मैं भी मज़ा ले लेकर चुदवाने लगी। कई दिनों की लण्ड की भूखी मेरी चूत गपागप सर के लण्ड को खाने लगी। चूंकि हम लोग सर के केबिन में थे इसलिए आवाज़ नहीं निकाल सकते थे, नहीं तो किसी को भी पता लग सकता था।

इसलिए हम दोनों बिना आवाज़ किये चुदाई का मज़ा ले रहे थे, मेरी चूत सर के लण्ड का भरपूर आनंद ले रही थी, अब तक सर समझ चुके थे कि मैं खेली-खाई हुई लड़की हूँ क्यूँकि वो पूरा लण्ड बेदर्दी से पेल रहे थे, मैं भी गाण्ड उठा उठा कर पूरा लण्ड ले रही थी।

करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद मेरी चूत ने हथियार डाल दिए और मैं झड़ने लगी। मेरी चूत सिकुड़ सिकुड़ कर लण्ड को अपना रज पिला रही थी, शायद लण्ड को शाबाशी और धन्यवाद रही थी अपनी संतुष्टि के लिए लेकिन सर का लण्ड तो गिरने का नाम नहीं ले रहा था। मेरी चूत अब पच-पच की आवाज़ निकाल रही थी। मेरी पकड़ ढीली हो चुकी थी लेकिन आनन्द भरपूर मिल रहा था।

फिर सर मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठ बेदर्दी से चूसने लगे और चोदते भी रहे। 5 मिनट बाद चूत से आवाज़ आनी बंद हो गई, शायद मेरा सारा रज सर का लण्ड पी गया था। अब सर काफी रगड़ कर चोद रहे थे।

फिर उनका लण्ड चूत में अपना माल छोड़ने लगा। तेज़ धार मेरी बच्चेदानी से टकरा रही थी, उनके माल के प्रेशर के कारण मैं फिर झड़ने लगी, मैंने क़स कर सर को जकड़ लिया और गाण्ड ऊपर उठा कर सारा लण्ड अंदर ले लिया।

हम दोनों की सांसें तेज़ तेज़ चल रही थी, चूत लण्ड एक दूसरे की प्यास बुझा चुके थे।

चूत से नदियाँ निकल कर गाण्ड से होकर मेज पर गिर रही थी। 2-3 मिनट बाद सर मेरे ऊपर से हटे और रुमाल से मेरी चूत साफ की। फिर मैं उठी और अपने कपड़े पहन लिए और सर से बोली- आपने अंदर ही गिरा दिया, गर्भवती हो गई तो क्या होगा?

तो सर मुझे चूम कर बोले- जान, टेंशन मत लो, मैंने नसबंदी करा रखी है।

फिर मैं कपड़े ठीक करके क्लास में आ गई। अगली क्लास सर की ही थी, मैं उनसे नज़र नहीं मिला पा रही थी, उनको देखते ही चूत में अजीब सा सनसनाहट होने लगी।

बाद में सर ने कहा- कल दस बजे दिन में मेरे घर आ जाना।

कालेज कैम्पस में ही उनका घर था।

यह तो चलता ही रहेगा और मैं लिखती ही रहूंगी।

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