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दोस्तो, यह मेरी एक आपबीती कहानी है, मेरा नाम पीयूष है, प्यार से सभी मुझे पप्पू कहते हैं। मेरी उम्र अब 35 साल है लेकिन यह बात उन दिनों की है जब समाज में ज्यादा चुदाई का चक्कर नहीं चलता था, ज्यादा टीवी के चैनल नहीं थे, ज्यादातर औरतें अपने घर के काम-काज में मशगूल रहती थी, सबके लम्बा चौड़ा परिवार रहता था उन्हें अपने परिवार के काम से फुर्सत नहीं रहती थी।
अब मैं अपनी आपबीती पर आता हूँ।
मैं तब 18 साल का था और बारहवीं में पढ़ता था। मेरा एक दोस्त था जिसका नाम सुनील था। मैं अक्सर उसके घर या वो मेरे घर पढ़ने आता था। उसकी एक बड़ी बहन जिसे हम सब निक्की दीदी कहते थे, कॉलेज में पढ़ती थी, बहुत सुन्दर थी, बहुत सलीके से और साधारण रहती थी, उसको देखने का मन तो करता था लेकिन डर भी लगता था क्योंकि वह मेरे और सुनील को अक्सर अच्छे से पढ़ाई करने को कहती, फालतू इधर-उधर घूमने पर डांट भी लगाती।
सुनील के पापा किसी आफिस में काम करते थे जहाँ ऊपरी कमाई भी होती थी जिससे उनके घर में उस समय की सारी एशो-आराम की चीजें थी, ऊपर से उनका गाँव भी नजदीक था, जहाँ से उनका अनाज आदि भी आता रहता था। कुल मिला कर सुनील के घर की आर्थिक स्थिति मेरे घर की स्थिति से काफी बेहतर थी।
उसकी मम्मी जिसे हम सब कुक्कू आंटी कहते थे, एक 42 साल की सुन्दर और सेक्सी महिला थी उनके बदन का आकार 38-34-40 रहा होगा, उनके स्तन अक्सर बाहर आने को उतावले रहते, वह अक्सर बिना बाजू का गहरे गले का ब्लाउज़ पहनती थी। चूँकि हमारी कालोनी में सबसे ज्यादा सम्पन परिवार सुनील का था इसलिए कुक्कू आंटी के इतराने और घमण्डी आदत से सभी वाकिफ थे। इसलिए कालोनी की सभी महिलाएँ जिसमें मेरी मम्मी भी शामिल हैं, कुक्कू आंटी की “निंदा-पुराण” ज्यादा करते थे। मेरे कानों में भी संयोग-वश कभी-कभी कुक्कू आंटी की “निंदा-पुराण” का रस पड़ जाता था, जिससे मेरे मन में उनके प्रति जिज्ञासा बढ़ गई।
कभी वर्मा आंटी कहती- कुक्कू का हब्बी तो रोज़ ड्रिंक करता है।
कभी शर्मा आंटी कहती- कुक्कू को अपने हब्बी की ऊपरी कमाई और गाँव की खेती-बाड़ी पर बहुत घमंड है।
धीरे-धीरे औरतों की बातें छुप कर सुनने की आदत ही हो गई मुझे क्योंकि उनकी बातचीत का मुख्य विषय कुक्कू आंटी की अनुपस्थिति में “कुक्कू आंटी” ही रहता था।
एक दिन तो कुक्कू आंटी की “निंदा-पुराण” में हद हो गई।
गोगी आंटी कह रही थी- कुक्कू को अपने बूब्स पर बहुत घमंड है। वर्मा आंटी- क्यों न हो, गाँव में उसका एक और खसम भी है। गोगी आंटी- कौन है? और तेरे को कैसे मालूम? वर्मा आंटी- शंकर! वही जो उसके गाँव से अनाज-दाने के बहाने अक्सर आता है।
अब मेरे लण्ड के खड़े होने की बारी थी। मेरा ध्यान अब सिर्फ कुक्कू आंटी और उसके वक्ष पर रहने लगा।
धीरे-धीरे मैं सुनील के घर का सारा भूगोल, इतिहास जान गया। अब मुझे मालूम हुआ कि पास वाला गाँव सुनील का ननिहाल है, वहीं से सारा मालपानी आता है। सुनील के पापा रोज शराब पीते थे, कुक्कू आंटी का शंकर (गाँव का नौकर) से गहरा? सम्बन्ध था।
अब मेरा ध्यान निक्की दीदी से बिलकुल हट गया, सिर्फ कुक्कू आंटी का ख्याल आता। मैं अक्सर कुक्कू आंटी के चूचों को ध्यान में रख कर मुठ मारता, सोचता कि काश मुझे कुक्कू आंटी के मम्मे दबाने मिल जाएँ जिससे मेरी जिंदगी सफल हो जाए।
उस उम्र में इससे ज्यादा की उम्मीद रखना ही बेकार था। अब मैं अक्सर सुनील के घर जाता और कोशिश करता कि ज्यादा से ज्यादा कुक्कू आंटी के आसपास रहूँ और उनसे बातचीत करूँ।
कभी मैं उनके वक्ष को घूरता तो कुक्कू आंटी अपने चूचों को ढकने का असफल प्रयास करती।
निक्की दीदी को शायद मालूम हो गया कि अब मैं उस पर ध्यान न दे कर आंटी में ज्यादा रुचि ले रहा हूँ।जब भी मैं आंटी को घूरता या उनका वक्ष को निहारता तो निक्की दीदी यह देख कर मुस्कुरा देती।
मैं करूँ तो क्या करूँ, समझ में नहीं आ रहा था। कुक्कू आंटी के चूचे कोई चॉकलेट या आईसक्रीम तो नहीं थे जो मैं आंटी से मांग लेता।
एक दिन जब मुझे मालूम था कि सुनील गाँव गया है तो मैं जानबूझ कर उसके घर गया।
मुझे मालूम था कि उस वक़्त वहाँ सिर्फ कुक्कू आंटी होगी। निक्की दीदी कालेज और अंकल जी आफिस गए होंगे।
मैंने उनके दरवाज़े की घण्टी दबाई तो कोई नहीं आया। करीब तीन-चार मिनट तक कोई जवाब नहीं आया तो मैं उनके पिछवाड़े तरफ से अन्दर जाने लगा। पिछवाड़े के दरवाज़े की कुण्डी ढीली थी जो बाहर से अन्दर हाथ डालने पर खुल जाती थी।
दरवाजा खोलने के बाद मैं दबे पांव अन्दर गया। अन्दर वाला आँगन पार करने के बाद जब मैं सुनील के मम्मी-पापा के बेडरूम के पास गया तो मुझे अन्दर एक औरत और एक मर्द के आपस में बात करने की आवाज़ सुनाई दी।
मैंने खिड़की का एक पल्ला जरा सा खोला तो अन्दर का दृश्य देख कर मेरी आँखे फटी रह गई, कुक्कू आंटी नंगी पलंग पर बैठी थी, शंकर उनके शरीर के अंगों को चूम रहा था!
चूमते-चूमते जब उसका मुँह वक्ष के पास गया तो वह उनके चुचूक चूसने लगा। तभी आंटी ने उसके बाल पकड़ कर जोर से अपने मुँह में चिपका लिया।
थोड़ी देर बाद उसके मुँह को आंटी ने अपनी चूत पर जोर से दबाया तो वह पागलों की तरह आंटी की चूत को चाटने लगा।
आंटी- शंकर, चूस साले चूस! ऐसी किस्मत तेरे बाप को भी नसीब नहीं होगी कि अपनी मालकिन की चूत चाटे! शंकर- हाँ मालकिन, अब तो बस आप ही का सहारा है जहाँ भोजन और चोदन दोनों का जुगाड़ हो जाता है। आंटी- देख रे, अब उठ और अपनी दूसरी ड्युटी शुरू कर! दूसरी ड्युटी मतलब मालिश! शंकर- जी मालकिन!
अब शंकर आंटी की मोटी टांगों की तेल से मालिश करने लगा, मालिश करते करते उसकी उंगली आंटी जांघ से होते हुए आंटी की चूत में घुस जाती तो आंटी मुस्कुराती हुई उसके बाल पकड़ लेती। आंटी- बेटा, थोड़ा आराम से!
अब मेरे लण्ड का बुरा हाल हो रहा था, एक मन करता कि मैदान में कूद जाऊँ, एक मन करता कि अभी नहीं! शंकर तो साला नौकर जात कहीं दोनों को बदनाम न कर दे।
अब आंटी पलट कर कमर से ऊपर तक बेड पर लेट गई, पैर नीचे लटक रहे थे, शंकर ने एक शीशी उठाई जिसमें शायद शहद था, उसे उसने आंटी के चूतड़ों पर डाल दिया और शहद को दोनों कूल्हों पर धीरे-धीरे फ़ैलाने लगा, फिर उसे चाटने लगा।
आंटी सिसकार कर बोलने लगी- ऊउईई मां! शाबाश बेटा! आराम से!
कहानी का अगला भाग: कुक्कू आंटी-2
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