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लेखिका : वृन्दा
बस इसी तरह समय बीतता रहा.. हम समय के साथ बड़े हो रहे थे.. हम दोनों ही यौवन द्वार पर खड़े थे… वो दिन मेरे लिए बेहद कठिन था.. मेरे जीवन की पहली माहवारी..
सुबह से ही टांगों और पेट में दर्द हो रहा था.. जैसे कोई आरी से काट रहा हो… मुझे लगा शायद पेट ख़राब है और टांगों में ज्यादा चलने-भागने की थकान से हो रहा होगा .. मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया…
हमारे स्कूल में हरे रंग की स्कर्ट्स हुआ करती थी…
लंच में जब हाल में हम दोनों मिले .. तब तक मेरी हालत और भी ख़राब हो चुकी थी.. मेरे से बैठा भी नहीं जा रहा था… उसके बहुत बार कहने के बाद मैंने कुछ निवाले खाए… फिर मुझे अजीब सा कुछ महसूस हुआ .. जैसे टांगों के बीच से कुछ रिस रहा हो.. कैसे बताऊँ वो भावना व्यक्त कर पाना बहुत मुश्किल है.. सोचते हुए ही घिन्न सी आती है.. उलटी सी…
खैर कुछ ही देर में मेरी स्कर्ट भी गीली होने लगी.. काले काले धब्बे दिखने लगे.. मैं दोड़ कर शौचालय गई..
कपड़े उतारते ही मेरा तो हाल-बेहाल हो गया… चोट कहीं दिख नहीं रही थी और खून था कि बहे जा रहा था, बहे जा रहा था… टोयलेट पेपर से जहाँ तक हो सका साफ़ करती रही…पर टोयलेट पेपर भी ख़त्म हो गया… इतने में कुछ बड़ी क्लास की लड़कियाँ वहाँ आईं .. मैंने उन्हें अपनी पूरी दुविधा बताई.. और जल्द से जल्द डाक्टरी सहायता लाने को कहा…
वो सभी मुझ पे हंसने लगीं… और बोलीं..: अरे डरने की बात नहीं.. यह सभी के साथ होता है.. तेरे पास कोई कपड़ा या कुछ नीचे लगाने को नहीं है क्या..??
मैं : नहीं..!!!
लड़कियाँ : बाहर तेरा यार खड़ा है, उससे मांग ले..
वेदांत बहार खड़ा है सुन.. मुझे और डर लगने लगा…
मैं बाहर जाने लगी.. पीछे से आवाज़ आई..
लड़कियाँ : अच्छा सुन.. किसी को बताइयो मत खून आ रहा है तेरे…वरना बेकार में इसी उम्र में लुट जाएगी..
यह कहकर वो खिलखिला मेरा बेबसी पर हंसने लगी..!!!
मैं : अच्छा ठीक है….
सर्दियो का मौसम था.. मैंने स्वेटर उतार कमर पर बांध लिया..
बाहर पहुँची..
वेदांत मुझे देखते ही भड़का..: स्वेटर क्यों उतार दिया.. ?
मैं : मुझे गर्मी लग रही है.. तेरे पास रुमाल है क्या..?
वेदांत : रुमाल ??? क्यों चाहिए ??.. अब रुमाल का क्या करेगी..??
मैं : तू दे रहा है या नहीं.. …?? दे ना, परेशां मत कर.. बाद में बताऊँगी …!!
मुझे उसके सवाल बहुत परेशान कर रहे थे..खैर.. रुमाल ले जल्दी से वापिस अंदर गई.. सेट करके रुमाल लगा तो साँस आई…
बाहर आई..
वेदांत : रुमाल दे..!!!
मैं : रुमाल…??? वो तो गलती से टोयलेट में ही गिर गया…
सॉरी..
लंच के बाद एक पिरीयड ख़तम हो चुका था.. हम दोनों अपनी अपनी कक्षा में जा बैठे.. और घर लौटते वक़्त भी कुछ ज्यादा ख़ास बात नहीं हुई.. वो पूछता रहा, मैं टालती रही..
क्या बोलती उसे.. मेरी योनि जख्मी हो गई है…??? मैं असमंजस में थी, घर पहुँच कर मम्मी को बताऊँ या नहीं.. फिर मम्मी ने मेरी स्कर्ट देख ली..और शुरू उनके सवालों की झड़ी…
यह क्या है.. तुझे खून निकल रहा है, तूने बताया क्यों नहीं.. किसी और को तो नहीं बताया.. किसी को पता तो नहीं चला.. हे भगवान एक ही सांस में सारे सवाल पूछ डाले मम्मी ने.. !!!
मैं : नहीं…!!!!
मम्मी : सुन अब यह मुसीबत शुरू हो गई है, इसे माहवारी कहते हैं … अब तुझे.. हर महीने ऐसा होगा.. और जब जब होगा, तुझे कोई कपडा या कोई नैपकिन इस्तेमाल करना है.. वो टीवी में देखती है न विस्पर जैसा .. वैसा कुछ… किसी लड़के को इसके बारे में नहीं बताना… उस जगह पे किसी को हाथ या और कुछ भी नहीं लगाने देना… और जब कभी किसी महीने माहवारी न हो तो सीधे मुझे आकर बताना..
मैं हाँ में सर हिलाती रही.. पर मम्मी का लेक्चर अभी भी चालू था…!!
और अगर कभी ज्यादा रिसाव हो तो सावधान रहना कि कपड़े गंदे न होने पाएँ… और खून देख कर घबराना नहीं.. जैसे ही नैपकिन भर जाये उसे बदलती रहना.. अक्सर ऐसे में रशेज़ या दाने और खुजली जैसी परेशानियाँ होती हैं इसीलिए वो जगह हमेशा साफ़ रखना.. बाल ट्रिम करती रहना..!!! समझ भी आ रही है या ऐसे ही हवा में सर हिला रही है..!?
मैं : आपको कैसे पता कि मेरे वहाँ बाल हैं…???
मम्मी : मेरे भी हैं… सभी के होते हैं…!!!
मैं : पर आप तो वहाँ कंघी नहीं करती…???
मम्मी : तू कंघी करती है क्या..??? अरे वहाँ कंघी नहीं करते…!!!
मैं : तो बाल उलझते नहीं हैं क्या..!!!
मम्मी : अरे इसीलिए तो ट्रिम करते रहते हैं.. हे भगवान् यह लड़की कब समझेगी ये सब बातें.. अब ज्यादा सवाल जवाब मत कर जा.. मेरी अलमारी में एक काली थैली पड़ी है, उसमें तेरे काम की एक चीज़ है उसे अपनी एक साफ़ सुथरी धुली हुई कच्छी पर लगा और पहन ले.. और तुरंत अपने गन्दी कच्छी धो ले और स्कर्ट भी वरना निशान जायेंगे…!!!
मेरे लिए तो एक और आफत आ गई.. अब इस चक्कर में कपड़े भी धोवो…
मैंने तो अपना पहला चरण यौवन द्वार पर रख दिया था.. शायद लड़कों में भी कुछ ऐसा ही होता होगा.. वो मुझे आज तक पता नहीं चला कि जब लड़के युवा होते हैं तो उनके साथ क्या विचित्र होता है…???
खैर.. अब धीरे धीरे मेरे शरीर में भी बदलाव होने लगे.. झांघें जो पहले तिलियों सी पतली थी अब थोड़ी भर गई.. ऊपरी हिस्से में भी काफी बदलाव हुए… छाती.. स्तनों के रूप में उभरने लगी.. एक गोल्फ बाल जितना आकार लेने लगी… और मैं खुद को अच्छी लगने लगी.. घर में ज्यादातर समय शीशे के सामने गुजरने लगा.. बालो को बिखेरना… फिर संवारना… लटों को कभी गालों पे झुलाना कभी आँखों पर घुमाना..
अपने पुराने छोटे हुए कपड़े फिर से पहन कर देखना.. तंग होती टी-शर्ट और घुटनों से ऊपर आती निक्कर.. मुझे वो सब पहनना अच्छा लगने लगा.. मेरी लम्बाई भी अब ५ फुट ४ इंच हो चली थी.. और वेदान्त तो पहले ही लम्बा हो हो के ऊँट बन गया था…
यौवन का यह बदलाव बेहद सुखद था.. तन और मन में आते बदलाव, कुछ कुछ होने जैसी अनुभूति होती थी चेहरे पे सदा रहने वाली मुस्कान.. लड़कों की मेरे स्तनों पर पड़ती तिरछी निगाहें अब मैं भांपना सीख गई थी… छेड़-छाड़ भी आम सी बात हो गई थी..!!!
पर क्या मेरे जिस्म में आते बदलावों को वेदान्त ने भी महसूस किया.. क्या उसमें भी मेरे प्रति आकर्षण जागृत हुआ.. आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़ते रहिये आकर्षण..
तीसरा भाग समाप्त
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