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राजा : मैं बेगैरत..? मैं बुज़दिल..? तो तू क्या है? रण्डियो की रानी? जब सिपाही तुझे मसल कुचल रहे थे, तब कहाँ था तेरा सतीत्व..!!!
मैं : वो तेरे आदेश का पालन कर रहे थे और अगर मैं साथ न देती तो तू उनका क़त्ल करवा देता ! मेरी वजह से किसी बेक़सूर की जान जाये, यह पाप मैं अपने सर नहीं ले सकती..!!
राजा : अच्छा !!!
यह कहते ही राजा ने मेरी चूचियों पर से कपड़ा नीचे सरका दिया। मैंने बिन कंधे का टॉप पहना था और ब्रा तो रास्ते में ही खुल चुकी थी, सो चूचियाँ उसके सामने झूलने लगी और राजा की आँखों में लालच आने लगा…
उसने मेरी चूचियाँ थामने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए, मैं दो कदम पीछे हो गई, राजा भी देखते ही देखते आगे आ गया।
मेरे मन में एक तरकीब सूझी, राजा जैसे ही और आगे बढ़ा, मैंने पानी के अन्दर ही उसके लण्ड पर दबाव बनाया, राजा मन ही मन खुश हो रहा था, तभी उसकी शरारत भरी मुस्कान, दर्द भरी कराह में बदल गयी, मैंने उसका लण्ड जो मरोड़ दिया था।
राजा लण्ड पकडे वहीं खड़ा रहा और मैं वहाँ से भाग निकली।
राजा ने मेरे पीछे सैनिक लगा दिए, मैं एक शयनकक्ष में जा घुसी, शयन कक्ष खाली था, मैंने परदे उतार कर जल्दी से अपना बदन ढका, और एक मूरत के पीछे छिप गई।
तभी दरवाजे पे दस्तक हुई…
सिपाही: महारानी जी, यहाँ कोई स्त्री आई है..??
मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था सो मैंने जवाब दिया.. अगर जवाब न देती तो वो सिपाही अन्दर चला आता .!!!
मैं कमरे के भीतर से : नहीं यहाँ कोई नहीं आया, तुम जाओ हम कुछ देर विश्राम करना चाहते हैं..!!
सिपाही: महारानी जी, क्षमा करें, महाराज का आदेश है…!!!
तब तक मैंने महारानी के वस्त्र पहन लिए थे और खिड़की की तरफ मुँह करके खड़ी हो गई और थोड़ा सा घूँघट भी निकाल लिया..
मैं : ठीक है, आ जाओ..
सिपाही कमरे में घुसा और कमरा तलाशने लगा, मेरे पास आया और सर झुका कर कहने लगा- क्षमा कीजिए महारानी जी ! यहाँ कोई नहीं है..!!
सिपाही के जाते ही मैं भी रानी के वेश में कमरे से बाहर निकली, ताज्जुब की बात तो यह थी कि कहीं पर भी कच्छी और ब्रा नाम की चीज़ नहीं थी, मैं महारानी के वस्त्रों में तो थी पर अन्दर से एकदम नंगी
! मेरे चूचे चलते-भागते हिल रहे थे, कि तभी मैं एक जगह जाकर छुपी….. और पकड़ ली गई।
जगह थी “वासना गृह”
वहाँ राजा नग्नावस्था में था, उसके आसपास उसकी बहुत सी रखैलें थी, एक की चूची एक हाथ में दूसरी की चूची दूसरे हाथ में, तीसरी छाती पर बैठी चूत चटवा रही थी, चौथी टट्टे चाट रही थी, पांचवी लण्ड
एक बार गाण्ड में लेती फिर उछल कर चूत में लेती।
परदे के पीछे से देख देख कर मैं अपना घाघरा उठा कर ऊँगली करने लगी, महारानी के कंगनों की आवाज़ से मैं पकड़ी गई।
राजा ने आपातकाल बैठक बुलाई, राज्य के सभी मर्दों को न्योता दिया गया, राजा नग्न अवस्था में ही बैठक में आया…
और राजा ने फरमान सुनाया- इस लड़की ने मुझसे चुदने से इनकार किया है, इसलिए इसकी इसी दरबार में बोली लगेगी, ऐसी बोली जैसी आज तक किसी की नहीं हुई होगी। इस बोली के बाद इसका
इसी सभा में चीरहरण होगा, उसके बाद यह रखैल तो क्या किसी की दासी बनने के लायक भी नहीं रह
जाएगी, इसके चीर और यौवनहरण के बाद इसकी चूत और गांड सिल दी जाएगी, चूचे और जबान काट
लिए जायेंगे। और हाँ, बोली लड़की की नहीं उसकी जवानी की लगेगी, चूचे, गाण्ड, गदराया बदन, जांघें,
बाहें, होंठ, बगलें जिस्म के हर हिस्से की बोली लगेगी..!!!
यह भाग यहीं समाप्त…
आगे मेरे साथ क्या हुआ?
क्या मैं अपने जीवन में सिर्फ पहली और आखिरी बार चुदी? या नहीं…?
मेरे चूचों, गाण्ड और चूत के साथ क्या हुआ..?
जानने के लिए पढ़ते रहिए “राजा का फरमान” केवल दो भाग शेष..!!!
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