जब मस्ती चढ़ती है तो…-1

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प्रेषिका : बरखा

लेखक : राज कार्तिक

मेरे सभी दोस्तों का धन्यवाद जिन्होंने मेरी सुहागरात की दास्तान

पिया संग मेरा हनीमून

को सराहा और मुझे अपनी मस्ती की एक और दास्ताँ लिखने के लिए प्रेरित किया। मैं कोई लेखिका नहीं हूँ पर जब मैंने अपनी दास्ताँ अपने एक मित्र राज को बताई तो उसने मुझे अपनी कहानी आप लोगों तक पहुँचाने को कहा।

दोस्तों मुझे तो आप जानते ही हो। मैं बरखा एक शादीशुदा औरत हूँ। मैंने शादी से पहले अपनी मौसी के संग मज़े किये। फिर मेरी शादी हो गई और मैंने शिमला जाकर अपने पिया संग हनीमून भी मनाया। जिंदगी बहुत खुशहाल मोड़ पर थी और मैं अपने पिया संग एक मस्त जिंदगी जी रही थी। मेरे पति अजय भी मुझे बहुत प्यार करते हैं। उनके प्यार की निशानी मेरी बेटी है। मेरे पति मेरी हर ख्वाहिश को पूरा करते है और मैं भी उनको बहुत प्यार करती हूँ।

पर कुछ बातें इंसान के हाथ में नहीं होती…

बात तब की है जब मेरी ननद रजनी कुछ दिनों के लिए मेरे पास रहने आई और फिर जैसे सब कुछ बदल गया। रजनी के बारे में बता दूँ। रजनी मेरी बड़ी ननद यानि मेरे पति की बड़ी बहन है, शादीशुदा है और दो बच्चों की माँ है। अगर शारीरिक बनावट की बात करें तो सुन्दर है और शरीर भी भरा भरा सा है, बड़ी-बड़ी चूचियाँ और मोटी सी गाण्ड उसकी सुंदरता पर चार चाँद लगाते हैं, बेहद आकर्षक भी है और सेक्सी भी। उसका ज्यादा समय सेक्स के बारे में बातें करने में ही बीतता है।

अजय यानि मेरी पति को अपनी कम्पनी के काम से एक महीने के लिए बाहर जाना पड़ा तो मैंने रजनी को अपने पास बुला लिया। क्यूँकि एक तो मेरी बेटी अभी छोटी थी और मैं अकेली भी थी। रजनी आ गई और एक दो दिन ऐसे ही बीत गए।

पर एक रात…

मैं रात को पेशाब करने के लिए उठी तो रजनी अपने बिस्तर पर नहीं थी। मैंने पहले तो सोचा कि वो भी पेशाब करने गई होगी पर जब बाथरूम में जाकर देखा तो वो वहाँ नहीं थी। मैं पेशाब करके अंदर आई तो मुझे रसोई से कुछ आवाज आई। ध्यान से सुना तो ये किसी की मस्ती भरी सिसकारियाँ थी। मैं डर गई पर फिर मैंने हिम्मत करके रसोई में जाकर देखा तो यह रजनी थी जो एक बैंगन को अपनी चूत में घुसा कर अंदर-बाहर कर रही थी। उसकी आँखें बंद थी और वो पूरी तन्मयता से अपनी चूत में बैंगन अंदर-बाहर कर रही थी। उसे तो मेरे आने का भी पता नहीं लगा था।

मैं वहीं खड़ी उसको देखती रही। मुझे तभी मौसी का वो लकड़ी वाला मस्त कलंदर याद आ गया जिसने मुझे पहली बार सेक्स का अनुभव करवाया था। मैं सोच में डूबी हुई थी की रजनी की मस्ती भरी आह ने मुझे जगाया। रजनी झड़ चुकी थी और वो अब उस बैंगन को चाट रही थी जो कुछ देर पहले उसकी चूत की गहराई नाप रहा था।

“जीजी…(हमारे राजस्थान में ननद को जीजी कह कर बुलाते हैं)”

रजनी ने एकदम चौंक कर आँखें खोली।

“जीजी… आप यह क्या कर रही थी?”

“वो…वो…?

रजनी थोड़ी हकला गई। उसका हकलाना देख कर मेरी हँसी छूट गई।

“अरे जीजी.. बहुत खुजली हो रही है चूत में…? हमारे ननदोई सा चोदे कौनी के तमने?”

मुझे हँसता देख कर रजनी भी कुछ सामान्य हुई और वो भी हँस पड़ी और बोली- भाभी… इस निगोड़ी चूत को लण्ड लिए बिना सब्र ही नहीं होता। जब तक लण्ड से एक बार चुदवा न लूँ तब तक तो नींद ही नहीं आती !

“पर मेरी रानी अब तो इस चूत से दो दो बच्चे निकाल चुकी है अब भी यह शांत नहीं हुई?”

“पता नहीं भाभी? पर बस रहा ही नहीं जाता। तुम्हारे ननदोई जी भी अब चोद नहीं पाते हैं सही से तो रसोई के बैंगन खीरे और मूली से ही काम चला रही हूँ।”

मेरी हँसी छूट गई। रजनी भी अब उठ खड़ी हुई थी। हम दोनों ऐसे ही बातें करते करते अपने बिस्तर पर आ गए और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही सेक्सी बातें करते रहे। रजनी की सेक्सी बातें सुन कर मेरी चूत में भी खुजली होने लगी थी। ऊँगली से सहला सहला कर मैंने भी अपनी चूत को किसी तरह शांत किया और फिर हम सो गए।

सुबह उठ कर हम दोनों ने मिल कर नाश्ता तैयार किया और एक साथ बैठ कर खाने लगे।

तभी घर के बाहर सब्जी वाले ने आवाज लगाई,”आलू ले लो… बैंगन ले लो… खीरा ले लो…”

आवाज सुनते ही हम दोनों जोर से हँस पड़ी।

मैंने रजनी से पूछ लिया- जीजी… ले कर आऊँ क्या मोटा सा खीरा रात के लिए?

वो भी बेशर्मी से हँस कर बोली- फिर तो दो लेना, एक मेरे लिए और एक तुम्हारे लिए !

दिन में भी रजनी ज्यादातर सेक्स की ही बातें करती रही। तो बातों बातों में मैंने रजनी को अपनी और मौसी की दास्तान सुना दी। रजनी मेरी बात सुन कर मस्त हो गई और बार बार लकड़ी के मस्त कलंदर के बारे में पूछने लगी। मैंने टालने की बहुत कोशिश की पर रजनी नहीं मानी। तब मैंने अपने संदूक में से अपना पहला प्यार अपना लाडला मस्त कलंदर निकाल कर रजनी को दिखाया। बेचारा मेरी शादी के बाद एक बार भी प्रयोग में नहीं आया था।

“हाय भाभी… यह तो बहुत मस्त है… देखो तो तुम्हारे ननदोई के लण्ड से भी मोटा और लम्बा…!”

“ह्म्म्म !” मैंने हामी भरी।

रजनी ने उसको ऐसे मुँह में लेकर चाटा जैसे असली लण्ड हाथ में आ गया हो। रजनी तो उसको अपनी साड़ी के ऊपर से ही चूत पर रगड़ने लगी। देख कर मेरी फिर से हँसी छूट गई। रजनी वहीं सोफे पर टाँगें फैला कर लेट गई और अपनी साड़ी ऊपर करके पेंटी के बराबर में से मस्त कलंदर को चूत पर रगड़ने लगी।

“जीजी, क्यों तड़प रही हो… साड़ी उतार कर अच्छे से डाल लो इसे अपनी चूत में !” मैंने कहा।

रजनी तो जैसे मेरी इसी बात का इन्तजार कर रही थी। उसने झट से अपनी साड़ी और पेटीकोट उतार कर एक तरफ़ फैंक दिया और पेंटी भी उतार दी। मैंने तब पहली बार रजनी की चूत देखी। अच्छे से चुदी हुई रजनी की चूत बहुत मस्त लग रही थी। मुझे मौसी के साथ बिताए दिन याद आ गए और मैं रजनी की टांगों के पास जाकर बैठ गई। रजनी मस्ती के मारे मस्त कलन्दर को अपनी चूत पर रगड़ रही थी और सिसकारियाँ भर रही थी।

तभी मैंने रजनी के हाथ से डण्डा ले लिया और एक हाथ से रजनी की चूत सहलाने लगी। रजनी की चूत पानी छोड़ रही थी। मैंने दो उँगलियाँ रजनी की तपती हुई चूत में डाल दी। रजनी की चूत पूरी गीली हो चुकी थी।

“भाभी… अब जल्दी से यह मूसल डाल ना मेरी चूत में… जल्दी कर मेरी जान !”

रजनी डण्डा अपनी चूत में लेने को बेचैन थी। मैंने भी तेल लगा कर डंडा रजनी की चूत में घुसा दिया और अंदर-बाहर करने लगी। ऐसा करने से मेरी चूत में कीड़े रेंगने लगे थे। मैं अब लकड़ी के मस्त कलन्दर से रजनी की चूत चोद रही थी और रजनी ने भी आहें भरते-भरते मेरी साड़ी जांघों तक ऊपर उठा दी और मेरी चूत पर हाथ फेरने लगी। मेरी चूत भी पानी से लबालब हो गई थी।

रजनी दो ऊँगलियाँ मेरी चूत में पेल रही थी। मेरे बदन में भी मस्ती की लहर दौड़ रही थी। मैं झट से रजनी के ऊपर आ गई और मैंने अपनी चूत रजनी के मुँह के सामने कर दी। अब हम दोनों 69 की अवस्था में थीं।

मैं रजनी की चूत मस्त कलंदर से चोद रही थी और अब रजनी ने भी अपनी जीभ मेरी चूत के मुहाने पर टिका दी थी। रजनी मस्ती में भर कर मेरी चूत चाट रही थी, मुझे मस्त कर रही थी और मैं भी पूरी मस्त होकर मस्त कलंदर को रजनी की चूत के अंदर-बाहर कर रही थी।

रजनी की सीत्कारें और मेरी मस्ती भरी सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थी और माहौल को और मस्त कर रही थी।

लगभग बीस मिनट की धमाचौकड़ी के बाद रजनी की चूत अकड़ी और झमाझम बरस पड़ी। रजनी को परम-आनन्द बहुत तेज़ी से मिला था, ढेर सारा पानी छोड़ा था रजनी की चूत ने।

इधर मेरी चूत में भी रजनी की जीभ ने कमाल कर दिया और मेरी चूत भी मस्त होकर बरस पड़ी और ढेर सारा पानी रजनी के मुँह पर फेंक दिया। रजनी सारा पानी चाट गई तो मैंने भी डण्डा बाहर निकाल कर अपनी जीभ रजनी की चूत पर लगा दी और चाट चाट कर पूरी चूत साफ़ कर दी।

हम दोनों थक कर चूर-चूर हो रही थी और नंगी ही बिस्तर पर लेट गई। मुझे तो खैर पहले भी लेस्बियन सेक्स का मज़ा पता था पर रजनी ने शायद यह सब पहली बार किया था। वो तो इस मस्ती से इतनी खुश हुई कि बहुत देर तक वो डण्डे को अपनी चूत में डाल कर ही लेटी रही।

उसके बाद रजनी करीब बीस-पच्चीस दिन मेरे साथ रही और हर रोज हमने भरपूर मज़ा लिया।

मेरी मेल आईडी – [email protected]

और राज की आईडी है – [email protected]

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