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प्रेम गुरु की कलम से…..
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:
यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवं – मनु स्मृति
मधुर की डायरी के कुछ अंश :
11 जनवरी, 2006
विधाता की जितनी भी सृष्टि है वो रूपवती है, संसार की हर वस्तु चाहे जड़ हो या चेतन, क्षुद्र (अनु) हो या महान सभी का एक रूप होता है। सृष्टि का अर्थ ही है रूप निर्माण और जब रूप बन जाता है तब उसमें सौंदर्य का रंग चढ़ता है।
कई बार मुझे आश्चर्य होता है कि जितने भी नव निर्माण (सृजन), अविष्कार या खोजें हुई हैं वो अधिकतर पुरुषों ने ही की हैं स्त्रियों का योगदान बहुत कम है। ओशो ने इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण बताया है। दरअसल यह सब ईर्ष्यावश होता है, पुरुष स्त्री से ईर्ष्या करता है। पर मैंने तो सुना भी था और अनुभव भी किया है कि पुरुष तो हमेशा स्त्री से प्रेम करता है तो यह ईर्ष्या वाली बात कहाँ से आ गई?
दरअसल स्त्री इस दुनिया का सबसे बड़ा सृजन करती है एक बच्चे के रूप में इस संसार को विस्तार और अमरता देकर उसे किसी और नये सृजन या निर्माण की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। चूँकि हमारा समाज सदियों से पुरुष प्रधान सत्तात्मक रहा है तो पुरुष का अहम उसे अपने आप को स्त्री से हीन (निम्नतर) मानने ही नहीं देता। अवचेतन मन में दबी इसी ईर्ष्या के वशीभूत जंगलों, पहाड़ों और रेगिस्तानों की खाक छानता है, आविष्कार और खोज किया करता है।
किसी भी स्त्री के लिए मातृत्व सुख से बढ़ कर कोई सुख नहीं हो सकता, एक बच्चे के जन्म के बाद वो पूर्ण स्त्री बन जाती है।
मैंने भी इस संसार के जीवन चक्र को आज बढ़ाने का अपना कर्म पूरा कर लिया है।
ओह… मैं भी प्रेम की संगत में रह कर घुमा फिरा कर बात करने लगी हूँ। मिक्कु अब तो तीन महीने का होने को आया है, अपनी दूसरी माँ की गोद में वो तो चैन से सोया होगा पर मेरे लिए उसकी याद तो एक पल के लिए भी मन से नहीं हटती।
आप सोच रहे होंगे- यह दूसरी माँ का क्या चक्कर है?
मैं मीनल, मेरी चचेरी बहन (सावन जो आग लगाए) की बात कर रही हूँ। उसकी शादी दो साल पहले हुई थी पर अब उसका अपने पति से अलगाव हो गया है, उस समय वो गर्भवती थी और मिक्कु के जन्म के 5-7 दिन पहले ही उसको भी बच्चा हुआ था पर पता नहीं भगवान कि क्या इच्छा थी अथक प्रयासों के बाद भी डाक्टर बच्चे को नहीं बचा पाए। मीनल तो अर्ध-विक्षिप्त सी ही हो गई थी। उस बेचारी की तो दुनिया ही उजड़ गई थी।
मिक्कु के जन्म के बाद मेरे साथ भी बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी, मेरी छाती में दूध ही नहीं उतरा ! तो भाभी और चाची ने सलाह दी कि क्यों ना मिक्कु को मीनल को दे दिया जाए। उसकी मानसिक हालत को ठीक करने का इससे अच्छा उपाय कोई और तो हो ही नहीं सकता था। मिक्कु कितना भाग्यशाली रहेगा कि उसे दो माताओं का प्यार मिलेगा। मेरे पास इससे अच्छा विकल्प और क्या हो सकता था?
मैं दिसंबर में भरतपुर लौट आई थी। मैं तो सोचती थी कि इतने दिनों के बाद जब मैं प्रेम से मिलूँगी तो वो मुझे अपनी बाहों में भर कर उस रात को इतना प्रेम करेगा कि मुझे अपना मधुर मिलन ही याद आ जाएगा।
चूँकि हमारा समाज सदियों से पुरुष प्रधान सत्तात्मक रहा है तो पुरुष का अहम उसे अपने आप को स्त्री से हीन (निम्नतर) मानने ही नहीं देता। अवचेतन मन में दबी इसी ईर्ष्या के वशीभूत जंगलों, पहाड़ों और रेगिस्तानों की खाक छानता है, आविष्कार और खोज किया करता है।
शादी के बाद के दो साल तो कितनी जल्दी बीत गये थे, पता ही नहीं चला। हम दोनों ने अपने दाम्पत्य जीवन का भरपूर आनन्द भोगा था। प्रेम तो मुझे सारी सारी रात सोने ही नहीं देता था। हमने घर के लगभग हर कोने में, बिस्तर पर, फर्श पर, बाथरूम और यहाँ तक कि रसोईघर में भी सेक्स का आनन्द लिया था। प्रेम तो मेरी लाडो और उरोज़ों को चूसने का इतना आदि बन गया था कि बिना उनकी चुसाई के उसे नींद ही नहीं आती थी।
और मुझे भी उनके “उसको” चूसे बिना कहाँ चैन पड़ता था। कई बार तो प्रेम इतना उत्तेजित हो जाता था कि वो मेरे मुँह में ही अपने अमृत की वर्षा कर दिया करता था। मेरी भी पूरी कोशिश रहती थी कि मैं उनकी हर इच्छा को पूरा कर दूँ और उन्हें अपना सब कुछ सौंप कर पूर्ण समर्पिता बन जाऊँ !
पर प्रेम तो कहता है कि कोई भी स्त्री पूर्ण समर्पिता तभी बनती है जब पति की हर इच्छा पूरी कर दे। कई बार प्रेम मेरे नितंबों के बीच अपना हाथ और अँगुलियाँ फिराता रहता है। कभी कभी तो महारानी (मुझे क्षमा करना मैं गाण्ड जैसा गंदा शब्द प्रयोग नहीं कर सकती) के मुँह पर भी अंगुली फिराता रहता है। उसने सीधे तौर पर तो नहीं कहा पर बातों बातों में कई बार उसका आनन्द ले लेने के बाबत कहा था।
उसने बताया कि प्रेम आश्रम वाले गुरुजी कहते हैं- जिस आदमी ने अपनी खूबसूरत पत्नी की गाण्ड नहीं मारी, उसका यह जीवन तो व्यर्थ ही गया समझो ! वो तो मानो जिया ही नहीं !
छीः … कितनी गंदी सोच है। मेरा तो मानना था कि यह सब अप्राक्रातिक और गंदा कार्य होता है। यह कामुक व्यक्तियों की मानसिक विकृति की निशानी है। पर प्रेम तो इसके लिए इतना आतुर था कि उसने मुझे कई बार इससे सम्बंधित नग्न फिल्में भी दिखाई थी और कुछ कामुक साहित्य भी पढ़ने को दिया था, अन्तर्वासना पर भी कई कहानियाँ पढ़वाई। पर मुझे पता नहीं क्यों यह सब अनैतिक और पाप-कर्म जैसा लगता था। उसके बार बार बोलने पर अंत में मुझे उसे यहाँ तक कहना पड़ा कि अगर उसने फिर कभी ऐसी बात की तो मैं उससे तलाक ले लूँगी।
आजकल तो प्रेम पता नहीं किन ख़यालों में ही डूबा रहता है। रात को भी हम जब पति-पत्नी धर्म निभाते हैं तो वो जोश और आतुरता कहीं दिखाई नहीं देती। अब तो बस अपना काम निकालने के बाद वो चुपचाप सो ही जाता है। वरना तो सारी रात आपस में लिपट कर सोए बिना हम दोनों को ही नींद नहीं आती थी।
मैंने सुधा भाभी (नंदोईजी नहीं लंडोईजी) से भी एक दो बार इस बाबत बात की थी। तो उसने जो बताया मैं हूबहू लिख रही हूँ :
“अरे मेरी ननद रानी ! प्रेम में कुछ भी गंदा या बुरा नहीं हो सकता। हमारे शरीर के सभी अंग भगवान ने बनाए हैं और कामांग (लण्ड, चूत और गाण्ड) भी तो उसी की देन हैं तो भला यह गंदे और अश्लील कैसे हो सकते हैं? और जहाँ तक गुदा-मैथुन की बात है आजकल तो लगभग सभी नए शादीशुदा जोड़े इसका जम कर आनन्द लेते हैं। कुछ मज़े के लिए, कुछ प्रतिस्ठा-प्रतीक (स्टेटस सिंबल) के रूप में और कुछ आधुनिक बनाने के चक्कर में इसे ज़रूर करते हैं। आजकल नंगी फिल्में देख कर सारे ही मर्द इसके लिए मरे ही जाते हैं। कुछ औरतें तो बड़ाई मारने के चक्कर में गाण्ड मरवाती हैं
कि वो भी किसी से कम नहीं। कॉलेज की लड़कियाँ गर्भवती होने के डर के कारण और अपना कौमार्य बचाए रखने के लिए भी गाण्ड मरवाने को प्राथमिकता देती हैं !”
मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ, मैंने संकुचाते हुए उनसे पूछा था- क्या आपने भी कभी यह सब किया है?
तो वो हँसने लगी और फिर ज़ोर से निःस्वास छोड़ते हुए कहा- तुम्हारे भैया को यह पसंद ही नहीं है !
भाभी ने बताया कि गुदा-मैथुन तो ऐतिहासिक काल से ही चला आ रहा है। खजूराहो के मंदिर और मूर्तियाँ तो इनका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
ओह… हाँ मुझे अब याद आया कि हम भी तो अपना मधुमास मनाने खजूराहो गये थे जहाँ ‘लिंगेश्वर की काल भैरवी’ जैसे कई मंदिर देखे थे।
मैंने कहीं पढ़ा भी था कि लखनऊ के नवाब और अफ़ग़ान के पठान तो इसके बहुत शौकीन होते हैं।
मेरी तो सोच कर ही कंपकंपी छुट जाती है।
भाभी ने बताया कि यह कोई अनैतिक या अप्राक्रातिक क्रिया नहीं है, यह भी आनन्द भोगने की एक क्रिया है जिसमें पुरुष और स्त्री दोनों को आनन्द आता है। कुछ लोगों को तो इसके इतना चस्का लग जाता है कि फिर इसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता। यह तो पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेयसी के आपसी तालमेल और समझ की बात है। हाँ, इसमें कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती, उतावलापन और अनाड़ीपन नहीं करना चाहिए वरना इसके परणाम कभी भी सुखद नहीं होंगे। एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना ज़रूरी है नहीं तो आनन्द के स्थान पर कष्ट ही होगा और फिर जिंदगी बेमज़ा हो जाएगी।
भाभी ने बताया कि कई पुरुष डींग भी मारते हैं कि उन्होने अपनी पत्नी की गाण्ड मारी है पर उनके पल्ले कुछ नहीं होता।
गाण्ड मारना इतना आसान नहीं है। यह बस जवानी में ही किया जा सकता है जब लण्ड पूरा खड़ा होता है। बाद में तो छटपटाना ही पड़ता है कि हमने इसका मज़ा नहीं लिया।
बहुत समय तक पुरुषों के साथ काम करने वाली महिलाएँ उभयलिंगी बन जाती हैं और 35-36 की उम्र में हार्मोन्स बहुत तेज़ी से बदलते हैं। उस समय उनकी आवाज़ भारी होने लगती है, स्वाभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है और उनके चेहरे पर बाल (मूँछें) आने शुरू हो जाते हैं और उनका मीनोपॉज भी जल्दी हो जाता है। उन्हें साधारण सेक्स में मज़ा नहीं आता। अक्सर वो समलिंगी भी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में अगर वो गाण्ड मरवाना चालू कर दें तो उनको इन सब परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।
मैंने तो सुना था कि इसमें केवल पुरुषों को ही आनन्द आता है भला स्त्री को क्या मज़ा आता होगा। पर भाभी तो कहती है कि इसे तो स्वर्ग का दूसरा द्वार कहा जाता है। रही बात दर्द होने की तो सुनो चूत की तो झिल्ली होती है जिसके फटने से दर्द होता है पर इसमें तो ऐसा कोई झंझट भी नहीं होता। बस एक दो बार ज़रा सा सुई चुभने जैसा दर्द होता है फिर तो बस आनन्द ही आनन्द होता है। लड़की को प्रथम संभोग में थोड़ी पीड़ा होती है पर बाद में तो उसी छेद से इतना बड़ा बच्चा निकल जाता है उस दर्द से ज़्यादा तो दर्द इसमें नहीं हो सकता।
अफ्रीका महाद्वीप के बहुत से देशों में तो आज भी लड़की के जन्म के समय उनकी योनि को सिल दिया जाता है और केवल मूत्र-विसर्जन के लिए ही थोड़ी सी जगह खुली रखी जाती है। सुहागरात में पति संभोग से पहले योनि में लगे टाँके खोलता है। कुछ नासमझ तो छुरी या चाकू से योनि को चीर देते हैं ताकि लिंग का प्रवेश आसानी से हो सके। उन बेचारी औरतों की क्या हालत होती होगी, ज़रा सोचो ?
एक और बात भाभी ने बताई थी कि जब हम अपने गुप्तांगों, पेट या बगल (कांख) में हाथ लगाते हैं तो कुछ भी अटपटा नहीं लगता, ना कोई रोमांच या गुदगुदी होती है पर यही क्रिया जब कोई दूसरा व्यक्ति करे तो कितनी गुदगुदी और रोमांच होता है। बस यही गुदा मैथुन में होता है। जब एक बार इसे कर लिया जाता है तभी इसके स्वाद और आनन्द की अनुभूति होती है।
चलो मान लो कि स्त्री को मज़ा नहीं भी आता है पर यह सच है कि उसे इस बात की कितनी बड़ी ख़ुशी होती है कि उसने अपने पति या प्रियतम को वो सुख दे दिया जिसके लिए वो कितना आतुर था। यह सब करते समय और बाद में उसके चेहरे पर खिली मुस्कान और संतोष देख कर ही पत्नी धन्य हो जाती है कि आज वो अपने प्रियतम की पूर्ण समर्पिता बन गई है।
मैंने इन दिनो में महसूस किया है कि प्रेम आजकल हमारे पड़ोस में रहने वाली नीरू बेन (अभी ना जाओ छोड़ कर) के मटकते नितंबों को बहुत ललचाई दृष्टि से देखता है।
और कई बार मैंने देखा था कि अनार (हमारी नौकरानी गुलाबो की बड़ी बेटी) जब झुक कर झाड़ू लगाती है तो प्रेम कनखियों से उसके उरोज़ और नितंबों को घूरता रहता है।
मैंने एक बार अपनी नौकरानी गुलाबो से भी पूछा था। वो बताती है कि उसका पति भी दारू पीकर कई बार उसके साथ गधा-पचीसी (गुदा-मैथुन) खेलता है। उसे कोई ज़्यादा मज़ा तो नहीं आता पर अपने मर्द की खुशी के लिए वो झट से मान जाती है।
यही कारण है कि गुलाबो 40-45 साल की उम्र में भी स्वस्थ बच्चा पैदा कर सकती हैं क्योंकि वो हर प्रकार के सेक्स में सक्रिय रहती हैं और आदमी भी घोड़े की तरह जवान बना रहता है।
और फिर हमारे महिला मंडल की तो लगभग सभी महिलाएँ तो गाण्डबाज़ी के किस्से इतना रस ले लेकर सुनाती हैं कि ऐसा लगता है कि इनके पतियों के पास सिवाय गाण्ड मारने के कोई काम ही नहीं है। नीरू बेन तो यहाँ तक कहती है कि वो तो जब तक एक बार उसमें नहीं डलवा लेती उसे नींद ही नहीं आती।
बस एक मोहन लाल गुप्ता की पत्नी यह नहीं करवाती। पीठ पीछे सारी महिलाएँ उसकी हँसी उड़ाती रहती हैं कि बांके बिहारी सक्सेना की तरह उसके पति के पल्ले भी कुछ नहीं है।
भाभी कहती है कि अपने पति को भटकने से बचाने के लिए तो यह ब्रह्मास्त्र है। वरना वो दूसरी जगह मुँह मारना चालू कर देता है। कई बार पत्नी की यह सोच रहती है कि जहाज़ का पक्षी और कहाँ जाएगा, शाम को लौट कर जहाज़ पर ही आएगा पर अगर उसने जहाज़ ही बदल लिया तो?
प्रेम के साथ मेरी सगाई होने के बाद मीनल तो मुझे छेड़ती ही रहती थी, वो तो गुदा-मैथुन का गुणगान करने से थकती ही नहीं थी। अपनी सहेली शमा के बारे में बताती थी कि वो तो अक्सर इनका आनन्द लेती है उसका मियाँ तो 5 साल बाद भी उस पर लट्टू है। पति को अपने वश में रखने का यह अचूक हथियार है।
कई बार जीत रानी (रूपल- इनके मित्र जीत की पत्नी) से तो जब भी बात होती है तो वो गुदा-मैथुन की चर्चा ज़रूर करती है। वो तो बताती है कि जीत ने तो सुहागरात में ही इसका भी आनन्द ले लिया था। मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि कोई सुहागरात में ऐसा भी कर सकता है।
रूपल ने बताया था कि वो भी मेरी तरह हस्तरेखा और ज्योतिष में बहुत विश्वास रखती है। जीत ने उसे जब बताया कि उसे दो पत्नियों का योग है तो रूपल ने उसे गाण्ड के रूप में दूसरी पत्नी का सुख दे दिया था।
हे लिंग महादेव ! प्रेम के हाथ में भी ऐसी रेखा तो है… ओह… हे भगवान… कहीं ??? ओह… ना…??? मैं तो कभी अपने इस मिट्ठू को किसी दूसरी मैना के पास फटकने भी नहीं दे सकती। मैंने अपने मान में निश्चय कर लिया कि प्रेम की खुशी के लिए मैं वो सब करूँगी जो वो चाहता है। मैं प्रेम को यह सुख भी देकर उसकी पूर्ण समर्पिता बन जाऊँगी। मनु स्मृति में लिखा है :
संतुष्टो भार्यया भर्ता भर्ता भार्या तथैव च:।
यस्मिन्नैव कुले नित्यं कल्याण तत्रेव ध्रुवम्।।
पहले तो मैंने सोचा था कि हम किसी दिन बाथरूम में ही यह सब करेंगे पर बाद में मैंने इसे 11 जनवरी के लिए स्थगित कर दिया।
आपका प्रेम गुरु
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