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प्रेषक : विजय पण्डित
मेरी उम्र 24 वर्ष की हो चली थी। मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। अब तक की जिन्दगी में मैंने बस एक बार गाण्ड मरवाई थी और हाँ, उसी लड़के की मारी भी थी। पर लड़कियाँ मुझसे कभी नहीं पटी थी। यूँ तो मैं देखने में गोरा चिट्टा था, चिकना था, सुन्दर था, खेल में सबसे आगे रहता था, छः फ़ीट लम्बा युवक था। पर मेरी किस्मत … मेरे भाग्य में कोई भी ऐसी लड़की नहीं थी जिसे चोद सका। बस मैं अपने लण्ड के साथ खिलवाड़ करता रहता था। समय असमय बस जब भी लण्ड ने जोर मारा, साले को रगड़ कर चुप करा देता था। फिर मेरी किस्मत जागी, पर मिली भी तो मुझे अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद, वो भी एक शादीशुदा महिला थी।
तब रश्मि कोई 26-27 वर्ष की रही होगी, नई नई शादी हुई थी, दिखने में सुन्दर है, शरीर के उभार आकर्षक हैं। मेरी उस छोटे से परिवार से बहुत बनती थी। उसका पति कमलेश एक सरकारी कार्यालय में अधिकारी था। वो बहुत खुश मिज़ाज़ किस्म का युवक था। यदि बाज़ार का कोई काम होता था तो वो अक्सर मुझसे कहता था कि यार तू अपनी भाभी को लेजा और शॉपिंग करवा ला।
रश्मि यह सुन कर खुश हो जाया करती थी। उसे मेरा साथ बहुत अच्छा लगता था। मेरी दिल की कलियाँ भी चटकने लगती थी। मेरी नजरें रश्मि के अंगों को घूरते हुये उसमें घुस सी जाती थी, रश्मि भी मेरी नजरों को पहचानने लग गई थी। शायद उसके मन में भी लड्डू फ़ूट रहे होंगे ! वो मुझे मतलबी नजरों से निहारती रहती थी, पर कहती कुछ भी नहीं थी।
बरसात के दिन थे, मौसम बहुत सुहाना हो चला था। रविवार के रोज रश्मि ने पिकनिक पर जाने की जिद कर दी। कमलेश बहुत ही सुस्त किस्म का था, छुट्टी के दिन उसे बस सोना पसन्द था। पर स्त्री-हठ के आगे किसकी चलती है, हम लोग खाना पैक करके एक बांध की तरफ़ चल दिये। गाड़ी मैं ड्राईव कर रहा था। कमलेश मारुति वैन में पीछे लेट गया था। रश्मि मेरे साथ आगे की सीट पर थी। कमलेश को सोया देख कर रश्मि शरारत के मूड में आ गई थी। वो मेरी जांघ पर हाथ मार मार कर हंसी ठिठोली करने लगी थी। मुझे उसकी हरकत से न जाने कैसा सरूर सा आने लगा था। मैंने एक बार तो उसका हाथ हटाया भी था, पर वो कहाँ मानने वाली थी। मेरे तन में सनसनी सी फ़ैल गई थी।
पिकनिक स्थल तक पहुंचते पहुंचते तो वो मेरी जांघ तक दबाने लगी थी। मेरे लण्ड के उठान को देख कर वो मन ही मन हर्षित भी हो रही थी। रश्मि की तड़प देख कर मैं भी खिल उठा था।
मैंने वैन को एक वृक्ष के नीचे खड़ा कर दिया। वैन के अन्दर ही रश्मि ने चाय निकाली। कमलेश ने चाय पीने को मना कर दिया और उसने अपनी व्हिस्की की बोतल निकाल ली। मुझसे पूछने पर मैंने मना कर दिया। एक दो पेग पीने के बाद वो तो नशे में खो गया। हमने उसे बहुत कहा कि चलो झरने के बहाव में पानी में खेलें। पर कमलेश ने मना कर दिया।
हमने अपने कपड़े लिये और पानी के बहाव की ओर चल दिये। वहीं पर दूर दो तीन जोड़े और भी थे जो पानी में अठखेलियाँ कर रहे थे।
“चलो पानी में खेलते हैं … अपने कपड़े उतार लो और चड्डी में आ जाओ !” रश्मि मेरी तरफ़ देख कर मुस्कराती हुई बोली।
“और आप रश्मि जी… ?” मैंने कपड़े उतारते हुये कहा।
“मैं तो बस ऐसे ही पानी में खेलूंगी।”
“यहाँ कौन देखने वाला है, तुम्हारे साहब तो नशे में टुन्न है, और वो लोग तो बहुत दूर हैं।”
“तुम तो हो ना … ”
“मेरा क्या? मैं कोई गैर हूँ क्या?” मैंने मुस्कुरा कर कहा।
मेरी बात सुन कर वो जोर से हंस पड़ी।
“चल शैतान कहीं का !”
मेरे कपड़े उतारने पर चड्डी में मेरे तम्बू जैसे खड़े लण्ड को देख कर वो तो जैसे मन्त्र मुग्ध सी हो गई। फिर शरमा गई। उसने भी अपने कपड़े उतार लिये, ब्रा और एक छोटी सी पेन्टी में आ गई, कपड़े उतारते ही वो पानी में उतर गई और कमर तक पानी में चली गई। उसका जवान चिकना जिस्म देख कर मेरा दिल धड़क उठा। उसके भरे बदन का जादू मुझे घायल किये जा रहा था। मेरे तन में जैसे वासना की चिन्गारियाँ फ़ूटने लगी थी। शायद उसे भी पता था कि उसे क्या करना है, उसकी चूत भी तो लप लप कर रही थी !!!
“आ जाओ ना पानी में, बहुत मजा आ रहा है …! लाओ अपना हाथ मुझे दो !”
मेरा हाथ पकड़ कर रश्मि ने मुझे अपने पास खींच लिया। मैं भी धीरे से उसके पास आ कर खड़ा हो गया और उसके वक्षस्थल को देखने लगा।
“ऐसे क्या देख रहे हो … कभी देखे नहीं क्या?”
“नहीं वो… वो… कहीं कमलेश ने देख लिया तो?”
“उंहु … वो तो सो गये होंगे … मैं सुन्दर हूँ ना? ” उसने डुबकी मारते हुये कहा।
उसका गीला बदन मेरे तन में आग भर रहा था। मुझसे यह सब सहन नहीं हो रहा था। मैंने पानी के अन्दर ही उसकी चिकनी जांघों को पकड़ लिया और सहलाने लगा।
“क्या कर रहे हो विजय … मुझे गुदगुदी हो रही है !” वो खिलखिलाती हुई बोली।
उसने अपनी ब्रा को ढीला कर लिया था। उसकी मद भरी चूचियाँ मुझे साफ़ नजर आ रही थी।
“गुदगुदी तो मुझे भी हो रही है … रश्मि तुम्हारा बदन कितना चिकना है !” मैंने यौवनावेश वश अपना मुख उसकी चूचियों पर रगड़ दिया और हाथ उसकी चूतड़ों की तरफ़ बढ़ा दिये। वो कांप सी गई। मेरा लण्ड तन्ना उठा, कुछ करने को बेताब हो उठा।
“तुम्हारा ये कैसा कैसा हो रहा है, देखो तो…” रश्मि ने नीचे देख कर हांफ़ते हुये शरमाते हुए कहा।
“उसे तो बहुत बेचैनी है … बेचारा तड़प रहा है ! क्या करें ?” मैंने वासना में डूबी हुई आवाज में कहा।
“एक बार इसे पकड़ कर देख लूँ?” वो लाज से लाल होते हुई बोली।
मैं कुछ कहता उसके पहले ही रश्मि का हाथ मेरी चड्डी की ओर बढ़ गया और धीरे से मेरे लण्ड को थाम लिया। मेरे दिल पर जैसे सैकड़ों तीर चल गये। अब वो खुलने लगी थी। हम सरकते हुये धीरे से पानी में एक चट्टान के पीछे पत्थर पर बैठ गये।
मैंने धीरे से उसके उरोजों को थाम लिया। उसने अपनी आंखें बन्द कर ली। मेरे हाथ उसके उरोजों पर फ़िसलने लगे … उसके मुख से सिसकारी सी निकलने लगी। मेरा लण्ड उसके हाथ में था। उसे वो हौले हौले से ऊपर नीचे कर रही थी। मैं तो जैसे दूसरी दुनिया में खो चला था।
“विजय, इसे बाहर निकाल लूँ ?” उसने अपनी मद भरी अधखुली आँखों से मुझे निहारते हुये कहा।
“आह, रश्मि … क्या करोगी, रगड़ोगी इसे ?” मेरे तन में झुरझुरी सी चल गई।
“बस, देखो मैं इसे कैसा मस्त कर देती हूँ…” वो कुछ कुछ मेरे ऊपर सवार सी होते हुये बोली।
मैंने धीरे से चड्डी नीचे सरका दी … पानी के भीतर ही उसने मेरा सुपाड़ा खोल दिया और चमड़ी पलट कर पीछे खींच दी।
“आह रे, मर जावां रे… विजय, तुझे तो मुझ पर रहम भी नहीं आता?” उसकी सेक्स में बेचैनी उभर रही थी।
“रहम तो आपको नहीं आता है … कभी मौका तो दो…” मेरी सांसे तेज होने लगी थी।
“किस बात का मौका … बोलो ना?” वो तड़प कर बोली।
“आपको चोदने का … हाय मेरा लण्ड तड़प जाता है तुम्हारी चिकनी चूत को चोदने का !” मैंने अपने मन का गुबार निकाल दिया।
“हाय मेरे विजय … फिर से बोलो …” वो मेरी बात सुन कर बहक सी गई।
“आपकी भोसड़ी को चोदने का…” मैंने अपना लहजा बदल दिया।
“हाय, तुम कितने अच्छे हो … फिर से कहो !” वो पत्थर से उतर कर मुझसे चिपकने लगी।
दूसरे भाग में समाप्त !
विजय पण्डित
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