दीवाने तो दीवाने हैं-1

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प्रेषिका : शमीम बानो कुरेशी

इन दिनों मैं बनारस में अपनी दुकान पर भी बैठने लगी थी। मात्र साड़ियाँ व औरतों के ही कपड़े थे। कुछ रेडीमेड, कुछ थान, फिर चड्डी ब्रा इत्यादि। मजे की बात तो यह थी कि मेरे जिस भाग में चड्डी ब्रा बिकती थी वहाँ लड़के बहुत आते थे, अपनी गर्लफ़्रेन्ड के लिये मंहगी से मंहगी चड्डी और ब्रा खरीदते थे। मैं भी मौका देख कर उन चूतियों को दाम बढ़ा चढ़ा कर बेचती थी। उन हरामियों को तो देख कर ही एकदम समझ जाती थी कि लड़का जब पारदर्शी चड्डी या ब्रा खरीदता था तो यह अवश्य ही उसे चोदने के समय पहनाता होगा।

मेरा पड़ौसी रशीद जो मेरा दोस्त भी था, एक दिन मेरी दुकान पर आया और बोला- बानो, तू कब फ़्री रहती है?

“क्यू क्या बात है?”

“बस तुझसे बात करनी थी !”

“भोसड़ी के, अब साला आशिकी झाड़ेगा !”

“बानो, तू तो ना जाने क्यू मुझसे उखड़ी उखड़ी सी रहती है, मेरा कसूर क्या है?”

“भड़वे, यह देख, सभी अपनी दोस्त के लिये कितनी अच्छी अच्छी ब्रा और चड्डियां ले जाते हैं, और तेरी तो भेन की, मेरे लिये कभी कुछ लाया है?”

“सच बानो, ये ले पांच सौ रुपया, और ले ले अपने लिये एक मस्त सी ब्रा और चड्डी, बस अब तो खुश है ना?”

“बस एक ही? मादरचोद, चूत तो तेरी है नहीं, अपनी गाण्ड में घुसा ले इसे। ऐसे फ़ोकटिये तो अल्लाह किसी के पास ना भेजे !”

रशीद का मुख लटक सा गया।

“मेरे पास तो अभी इतने ही हैं !”

“अरे रे रे … रशीद भाईजान, ये ब्रा और चड्डी ले ले बस … पर ये गाण्ड जैसा मुँह मत बना, अब मां चुदा तू अपनी !” मैंने उसे अपनी पसन्द की चार सौ की एक चड्डी और एक ब्रा दे दी।

रशीद ने शाम को मुझे फोन किया- बानो, आज घर में कोई नहीं है, अपना गिफ़्ट तो ले जा !

मेरे मन में खलबली सी मचने लगी। साला चार सौ का गिफ़्ट भी तो लाया है…हाय मेरा आशिक दीवाना … मेरा क्या जाता है अगर मैं उसे खुश कर देती हूँ तो। बेचारा मुझे अब तो गिफ़्ट भी तो देने लगा है। मैंने अपना आजकल के फ़ैशन वाला ऊँचा सा सलवार कुर्ता पहना और रशीद के घर चली आई। घर के बाहर से ही मुझे तेज इतर की महक आई। उह, लगता है लल्लू पूरी तैयारी में है।

“अरे बानो, तू तो सच में आ गई?”

“अब चल मुझे चूतिया मत बना। मेरा गिफ़्ट मुझे दे !”

“ना ना… ऐसे नहीं… इसे पहनना पड़ेगा… बोल क्या कहती है?”

“अरे हरामी … तू तो साले … तेरी अम्मां की … ला मुझे दे … क्या करेगा, मुझे नंगी देखेगा भोसड़ी के?”

“तेरी बातों से मन मचल जाता है यार…”

“ला इधर दे… तेरे सामने बदलूँ या कमरे में जाना पड़ेगा?”

रशीद तो यह सब सुन कर थर्रा सा गया। उसे क्या मालूम था कि मैं तो उसके सामने ही कपड़े बदल सकती हूँ। मैंने अपना कुर्ता उतारा। अन्दर मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। पहनने की आवश्यकता भी नहीं थी। वो तो वैसे भी सीधे और तने हुए थे। मुझे देख कर रशीद तो पगला ही गया। फिर मैंने अपना पायजामा उतार दिया। भीतर चड्डी भी नहीं पहनी थी। मेरी चूत और गाण्ड देख कर उसके पसीने छूटने लगे। मैंने उसकी चड्डी और ब्रा पहन ली। और वैसे ही खड़ी होकर उसे घूम घूम कर दिखाने लगी।

“अब बता कैसी है?”

“आ…अ… तू क्या चीज है बानो…”

“मादरचोद, मैं चड्डी ब्रा के लिये पूछ रही हूँ !”

“बस एक बार मेरे गले से लग जा !”

मैं मन ही मन मुस्करा उठी- तो आ जा … लग जा गले से !

ओह हरामी साला … लौड़ा देखो तो कैसे तन्ना रहा है, यह आज मुझे चोदे बिना मानेगा नहीं।

वो मेरे पास आया और मुझे ललचाई नजरों से ऊपर से नीचे देखता ही रहा। फिर हाथ बढ़ा कर मेरे शरीर को छूने लगा, मेरी पीठ को सहलाने लगा, मेरी तनी हुई सख्त हुई चूचियों को सहलाने लगा। फिर मेरी कमर और फिर चूतड़ों को अपने हाथों से सहला-सहला कर देखता रहा। फिर धीरे से उसने मेरी चूत पर हाथ रख कर सहलाया। आखिर मैं भी तो जवान थी। मेरी चूत गीली होने लगी। फिर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में लिपटा लिया।

मेरा दम घुटने लगा- अरे मादरचोद, मुझे मार डालेगा क्या?

“बानो, बस तुझे चोदना है … एक बार चुदा ले !”

“अरे जा, बाप का माल है क्या जो चुदा ले? हारामी साला !”

“प्लीज बानो, बस एक बार तो मान जा … देख तेरी चूत भी तो गीली हो गई है।”

“तो… तो क्या … बोल चोदेगा मुझे, भड़वा साला…… अच्छा चल, उधर बेडरूम में चल !”

“ऐईईईइ या…… मेरी बानोऽऽऽऽऽऽऽ … चल चल यार जल्दी चल !” रशीद तो जैसे उछल ही पड़ा।

अब मैं भी क्या करती चुदे हुए भी बहुत महीने हो गये थे। अब लण्ड मिल रहा है तो क्यूँ छोड़ना उसे।

“चल उतार दे अपनी चड्डी बनियान !” मैंने रशीद को कहा।

“ओह मेरी बानो, तुझ पर मेरी जान निछावर … ये ले अभी उतारी !”

वो तो झट से नंगा हो गया। उसका खुला हुआ सुपाड़ा बहुत सुन्दर लग रहा था। कड़क लण्ड ! आह ! यह तो काफ़ी लम्बा है… मोटा नहीं है तो क्या हुआ, लम्बा तो मस्त है, दूर तक जायेगा। मेरी चूत गुदगुदा उठी।

“आ तेरा लण्ड मल दूँ, फिर चूसूंगी !” रशीद तो खुशी के मारे बावला हुआ जा रहा था।

मैंने उसे बिस्तर के पास खड़ा कर दिया। मैं स्वयं बिस्तर पर बैठ गई और उसका लण्ड सहलाने लगी। लम्बा था शायद आठ इंच से अधिक ही होगा। मैं पहले तो उसे मलती रही। आह ! क्या सख्ती थी लौड़े में… जवान जो था… उसमें से अब थोड़ा थोड़ा रस टपकने लगा था।

मैं अपनी जीभ से उसे चाटती भी जा रही थी। मैं जितनी सख्ती से उसे चूसती थी उतना ही वो अपना प्रेम रस छोड़ता जा रहा था। मैं उसे बाखुशी जीभ में उतार कर मजे से उसका स्वाद लेती थी।

“रशीद भाई, मेरी चूत चूसेगा?”

“अरे यह चड्डी और ब्रा तो उतार, मजा आ जायेगा तेरी चूत का तो !”

“सुन रे कुत्ते, मेरी चूत को काटना नहीं, बस लप लप करके चाट लेना !”

“तो घोड़ी बन जा … पीछे से कुत्ते ही की तरह से चाटूँगा।”

मैं घोड़ी बन गई। फिर वो मेरे पीछे आ गया। मुझे अपनी गाण्ड पर ठण्डक सी लगी। वो मेरी गाण्ड सूंघ रहा था, फिर वो मेरी गाण्ड चाटने लगा।

दूसरे भाग में समाप्त!

आपकी

शमीम बानो

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