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प्रेषिका : श्रेया आहूजा
मुझे भी मज़ा आने लगा। मैंने मौसी का हाथ पकड़ लिया और अपने आनन्द के अनुसार मौसी के हाथ की गति निर्धारित करने लगी।
मेरा मज़ा बढ़ता ही जा रहा था और एक बार तो ऐसा लगा कि मैं मर ही जाऊँगी इस आनन्द के सागर में डूब कर ! मेरी सांसें थम गई, मेरे चूतड़ अपने आप डण्डे के साथ-साथ उछलने लगे और फ़िर तो ऐसा लगा कि जैसे मैं बादलों में तैर रही हूँ, उड़ रही हूँ ! मेरी आंखें बद थी, मेरे होश खो गए थे, मुझे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ, किस दुनिया में हूँ।
यह था मेरे जीवन का प्रथम यौन चरमोत्कर्ष ! पहला पूर्ण यौन-आनन्द ! आनन्द की पराकाष्ठा !
इतना सब होने के बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा था कि मैं कहाँ हूँ, किस हाल में हूँ। शायद मौसी ने ही मुझे साफ़ किया होगा, मेरे कपड़े ठीक किए होंगे।
सुबह उठी तो मैंने अपने को मौसी के कमरे में पाया। मेरा अंग-अंग दर्द कर रहा था, मेरी जांघें जैसे जल रही थी, जांघों के बीच योनि में चीस मार रही थी। तभी रात की पूरी घटना मेरे दिलो-दिमाग में घूम गई। मुझे अपने पर शर्म भी आई और गुस्सा भी ! और साथ ही मौसी पर बहुत क्रोध आया कि मौसी ऐसा कैसे कर सकती हैं !
अपने दाएँ-बाएँ देखा तो मौसी वहाँ नहीं थी। उठ कर अपने कमरे में जाना चाहा तो उठा ही नहीं गया, टांगें तो हिलाए नहीं हिल रही थी।जैसे कैसे खड़ी हुई तो कदम ही आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। पेट में भी दर्द महसूस कर रही थी और योनि का दर्द तो असहनीय था। दर्द के मारे मेरा हाथ अपनी योनि पर गया तो लगा जैसे यह मेरे शरीर का हिस्सा ही नहीं है। मैं अपनी योनि को काफ़ी अच्छी तरह पहचानती थी, लेकिन यह तो आज काफ़ी बड़ी और सूजी हुई लग रही थी। चल कर अपने कमरे में जाना मुझे दुश्वार हो गया था फ़िर भी येन-केन-प्रकारेण मैं अपने कमरे में पहुंच गई और दर्द की एक गोली पानी के साथ निगल ली, वही गोली जो मैं अक्सर माहवारी में होने वाले दर्द के लिए लेती थी।
गोली खाकर मैं अपने बिस्तर पर बैठी ही थी कि मौसी अन्दर आ गई ! मौसी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी जो मुझे ऐसे लगी जैसे मेरा मज़ाक उड़ा रही हो !
मौसी ने मेरे पास आ कर मेरे सिर पर हाथ रखा तो मैंने गुस्से से मौसी का हाथ एक तरफ़ झटक दिया और बोली- हाथ ना लगाइयो मन्ने !
मौसी ने झुक कर मेरे सिर पर चूम लिया और बोली- घणी दुक्खे के?
मैं बोली- मौसी ! तन्नै करया के यो !
मज़्ज़ा नी आयो के? मौसी बोली।
मेरे मुख से निकल पड़ा- मेरी गाण्ड पटी पड़ी अर तन्नै मज़्ज़ै की सूझरी !
मौसी बोली- गाण्ड किक्कर पट गी तेरी? मन्ने तै तेरी फ़ुद्दी मै बाड़या ता ! गाण्ड किसी होर तै पड़वाई आइ के?
मैं मौसी की जांघ पर जोर से हाथ मारते हुए बोली- चुप होज्या इब नैइओ मैं तन्नै मारुंगी ! बोहोत दर्द हो रहैया।
मौसी मुझे पुचकारते हुए बोली- नाराज नी हुआ करते ! सब ठिक्क होज्यागा ! तेरे धोरै दर्द की गोली हो तो खाले !
मौसी मेरे पास बिस्तर पर बैठ गई मेरे गालों पर अपने दोनों हाथ रख कर मेरा चेहरा अपने हाथों में लेकर चूम लिया और फ़िर अपनी छाती पर दबा पर मुझे प्यार करने लगी।
मेरी आंखों से आंसू बहने लगे जो मौसी की चोली को भिगो रहे थे। मौसी को भी मेरे रोने का अहसास हुआ तो मेरे चेहरे को अपने वक्ष से उठा कर मेरे होंठ चूमते हुए बोली- रोवै ना मेरी बच्ची !
और मेरे होंठों को चूसने लगी।
तभी मेरी मम्मी ने मुझे आवाज लगाई। मैंने मौसी को कहा- मौसी देखना तो मम्मी क्या कह रही हैं?
मौसी बोली- तू यहीं रहना अभी कुछ देर तक जब तक गोली का असर नहीं होता। जिज्जी को मैं देखती हूँ कि क्या कहती हैं।
और इस तरह से मौसी और मेरे समलिंगी सम्बन्ध बन गए। कभी मैं मौसी के घर चली जाती और अक्सर मौसी हमारे घर आती ही रहती थी। हन दोनों मिल कर हर प्रकार से यौन-आनन्द लेती थी, उसी लकड़ी के डण्डे से, एक दूसरे को चूम कर, एक दूसरे की चूचियाँ चूस कर, योनि में उंगली करके योनि को चाट कर ! यानि हर तरह से !
इसी तरह मेरी और मौसी के बीच वासना की ज्वाला दो-तीन साल तक जली। तभी मेरे रिश्ते की बात चली और मेरी शादी हरियाणा के हिसार शहर में तय हो गई !
मेरी शादी हो गई ! बिदाई के वक़्त सबसे ज्यादा मैं मौसी से लिपट कर रोई …
मौसी : अपना ख्याल रखना …
मैं : मौसी आप भी अपना ख्याल रखना ….
मेरे पति एक प्रसिद्ध दवा कम्पनी में विक्रय-प्रबन्धक हैं।
पति के साथ सुहागरात का किस्सा अगले भाग में !
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