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प्रेषक : गोटी
मेरा नाम गोटी है, बचपन से लेकर जवानी तक मैं मुट्ठीमार ही रहा, जब मैं मुठ्ठी मारता तो सभी की तरह यही सोचता कि काश मेरे पास कोई हसीना होती और मैं भी उसकी चूत मार पाता ! मैं मूल-रूप से बड़ौत का रहने वाला हूँ। बारहवीं तक तो मैं वहीं रहा और उसके बाद मेरठ आ गया।
अब मैं आपको अपनी आप-बीती बताता हूँ कि चूत का लालच क्या-क्या करवा सकता है। यह बात तब की है, जब मैं १० वी क्लास मैं था. हमारे घर के ठीक सामने वाले मकान में एक परिवार में दो हसीनाएँ अपने शराबी बाप के साथ रहती थी, बड़ी वाली लड़की नॉएडा से स्नातिकी करके आई थी और छोटी वाली अभी गयारहवीं कक्षा में पढ़ती थी। दोनों ही बहनें पटाखा थी।
मोहल्ले के सभी लड़के छोटी वाली लड़की को पटाना चाहते थे, क्योंकि उसमें कुछ अलग ही बात थी। मैं भी उन लड़कों में से एक था और हर रोज उसके बारे में सोचकर मुट्ठी मारता था।
एक दिन मैं जब अपनी छत पर घूम रहा था और उसे उसकी छत पर एक टक देख रहा था तो एकदम उसने मुझे देखा और मुस्कुराने लगी। तभी मैं समझ गया कि अब मेरी तमन्ना पूरी होने वाली है। धीरे-धीरे हम एक दूसरे से प्रेम-पत्रों से बात करने लगे क्योंकि उन दिनों बात करने का कोई अच्छा साधन नहीं था।
एक दिन उसने मुझे रात को मिलने के बारे में पूछा। मैंने तुरंत उससे उस रात उसके घर आने की बात लिखकर चिठ्ठी उसके दरवाजे पर फेंक दी, वो चिठ्ठी उठाने नीचे चली गई और मैं ख़ुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था।
उस दिन तो मेरा लौड़ा अलग ही तेवर में दिख रहा था। मैंने तुरंत बाज़ार जाकर निरोध के 2-3 पैकेट ले लिए। अब मैं रात होने का इन्तजार कर रहा था।
ख़ुशी-ख़ुशी में मैंने रात को खाना भी नहीं खाया। धीरे-धीरे रात के बारह बज गए। मैं रजाई से निकल कर उनके घर के बराबर वाली दीवार से उनकी छत पर पहुँच गया। उनकी छत पर एक कमरा था जिसमें वो पढ़ा करती थी। उसी कमरे में मिलने के बारे में मैंने चिठ्ठी में लिखा था।
जैसे ही मैंने दरवाजा खटखटाना चाहा तो दरवाजा पहले से ही खुला मिला। उस वक़्त मेरी खुशियाँ सातवें आसमान पर थी। कमरे में काफी अँधेरा था, मैं धीरे-धीरे उसका नाम पुकारते हुए उसके बेड पर पहुँच गया जिस पर की रजाई में कोई सोया हुआ था तब मुझे लगा कि वो शायद शरमा रही है और सोने का नाटक कर रही है।
मैं उसके बराबर में लेटकर उसकी रजाई में हाथ देते हुए कहने लगा- जानू, इतना मत शरमाओ !
मैं उसकी गांड पर हाथ फेर रहा था तो मुझे लगा कि उसकी गांड अनुमान से कुछ ज्यादा ही मोटी थी। कुछ देर बाद उसने बिना पलटे अपने पजामे का नाड़ा खोल दिया जो कि मैंने सोचा भी नहीं था कि वो इतनी जल्दी तैयार हो जाएगी।
अब मेरा लौड़ा मुझे इन्तजार करने की इजाजत नहीं दे रहा था, मैंने एकदम से उसकी रजाई उससे यह कहते हुए अलग कर दी- जानू, अब और इन्तजार मत करवाओ।
यह कहते ही मुझे पसीना आ गया क्योंकि रजाई के अन्दर वो नहीं उसका शराबी बाप था।
वो मुझे और मैं उसे देखते ही रह गए !
मैं भागने की सोच ही रहा था कि उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
अब मैं हाथ जोड़कर कहने लगा- अंकल आज के बाद कभी आपकी बेटी की तरफ देखूँगा भी नहीं !
उसका बाप कहने लगा- अभी तेरे बाप को बुलाता हूँ !
यह सुनते ही मैं डर गया और धीरे-धीरे रोने लगा।
वो मुझे देखने लगा और बोला- अगर तू मेरा लौड़ा सहलाएगा तो मैं तुझे जाने दूँगा !
मैंने बिना देर करते हुए उसका कच्छा नीचे किया और उसके सोये हुए लंड को सहलाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसका काला लंड खड़ा होना शुरू हो गया। इस दौरान उसने बराबर में रखा देसी शराब का पव्वा उठाया और पीना शुरू कर दिया। जैसे ही उसका लौड़ा खड़ा हुआ, उसने अपना लंड मेरे हाथ से छुड़ाया और लंड मेरे मुँह में देने लगा।
मेरी मजबूरी थी इसलिए मुझे अपना मुँह खोलना पडा। उसका लंड पूरे 9 इंच लम्बा और सामान्य से कुछ ज्यादा ही मोटा था। उसने मेरा सर पकड़ा और गले तक लंड पहुँचा कर मेरा सर आगे-पीछे करने लगा।
और इस तरह उसने मेरे मुँह में ही वीर्य झाड़ दिया और वीर्य गटक जाने को कहा।
जैसे ही उसने अपना लौड़ा मेरे मुँह से निकाला, मैं तुरंत कमरे से निकलने लगा।
तभी उसने मेरा हाथ पकड़कर कहा- ढक्कन नहीं खुलवाएगा मुझसे?
मैंने कहा- अंकल, मैं कुछ समझा नहीं?
उसने कहा- चिंता मत कर ! अभी समझ जायेगा तू !
यह कह कर उसने मुझे नंगा किया और बिस्तर पर उल्टा लिटा दिया। उस वक़्त मैं सोच रहा था कि जो भी होना है, अब जल्दी हो जाए !
वो भूखे कुत्ते की तरह मेरी गांड पर टूट पड़ा, दर्द के मारे मेरी चीख निकल गई क्योंकि आज पहरेदार का ढक्कन जो खुल रहा था। उसने अपना बदबूदार बनियान मेरे मुँह में ठूंस दिया।
मैंने सुना था कि जब लड़की के साथ पहली बार सेक्स करते हैं तो उनकी चूत से खून निकलता है, आज मेरी गांड कि हालत कुछ ऐसी ही थी। मेरी गांड से खून निकल रहा था लेकिन वो खून की परवाह न करते हुए धक्के मारता ही रहा। उसका लंड जल्दी से झड़ने का नाम नहीं ले रहा था क्योंकि उसने शराब पी हुई थी। लगभग बीस मिनट बाद उसका लंड मेरी गांड में और वो मेरे ऊपर सो गया। दस मिनट इन्तजार करने के बाद मैंने उसे बराबर में धकेल दिया और जल्दी से अपने कपड़े उठाकर भागा और गली में आकर कपड़े पहन लिए।
इस दिन के बाद मैंने कसम खा ली कि मुठ्ठी और चूत के बारे में कभी सोचूंगा भी नहीं !
लेकिन कहते हैं न “लवड़ा मेहरबान तो गधा पहलवान !” और बारहवीं कक्षा के बाद मेरी बचपन की तमन्ना पूरी हो ही गई जिसे मैं आपको अगली कहानी में बताऊंगा।
आप मुझे जरूर बताना कि आपको यह कहानी कैसी लगी।
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