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प्रेषक : विजय पण्डित
हम दोनों पड़ोसी थे, एक ही कॉलेज में और एक ही क्लास में पढ़ते थे। नोटस की अदला-बदली पढ़ाई में मदद, सभी कुछ साथ ही साथ चलता था। जाने कब धीरे धीरे यही सब कुछ प्रेम-पत्र की अदला-बदली और प्यार में बदल गया। नई और चढ़ती जवानी का प्यार था। इस प्यार में जोश अधिक था और होश कम था। रात के ग्यारह बजते बजते हम दोनों खिड़की खोल कर आपस में इशारे बाजी करते थे।
इसी तरह एक दिन काजल ने मुझे एक कुछ अजीब सा इशारा किया। मैं कुछ समझ नहीं पाया। वो बार बार मेरे लण्ड की ओर इशारा करके कहना चाह रही थी। मैंने असमन्जस में लण्ड की ओर इशारा किया तो उसके शरमा कर सर हिलाया।
मैंने पूछा- क्या करना है?
तो उसने मुठ बंद करके हिलाया। मैं कुछ झेंप सा गया। मैंने पजामे में अपना लण्ड पकड़ा और इशारा किया कि क्या ऐसे… ? उसे मुठ मार कर बताया।
उसने शरमाते हुये हाँ कहा।
मैंने समझा कि पजामा उतार कर उसे मुठ मार क दिखाऊँ। मैंने अपना पजामा उतार दिया और वो वहाँ से बार बार कुछ इशारे करती रही। मेरे शरीर के रोन्गटे खड़े होने लगे कि ये क्या मस्ता रही है। फिर भी मैंने उसे रिझाने के लिये अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। उसने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया। ये सब देख कर मेरा लण्ड कड़क होने लगा… उसका शरमाना मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने अपना लण्ड उभार कर मुठ में भर लिया और अपना सुपाड़ा बाहर निकाल लिया। वो अपनी आंखें फ़ाड़े देखती रही। मैं हौले हौले से मुठ मारने लगा। उसे गुदगुदी सी हुई।
उसके हाथ उसकी चूचियों पर पहुँच गये। मैंने इशारा किया कि अब वो अपनी चूचियाँ दिखाये।
काजल शरमा गई… उसने सर हिला कर मना कर दिया। फिर उसने अपनी नज़रें झुका कर अपनी चूचियों को देखा और उन्हें हिलाने लगी और बीच बीच में दबाती भी जा रही थी।
उसे देख कर मेरा लण्ड तन्ना उठा। मैं वास्तव में मुठ मारने लगा। अब वो मुझे बड़ी उत्सुकता से देख रही थी। कुछ ही देर में मेरे लण्ड से वीर्य उछल पड़ा। मेरा हाथ चलता रहा और पूरा वीर्य निकाल दिया।
मैंने उसे मोबाईल लगाया- काजल तुम भी तो कुछ दिखाओ !
अब चुप रहो और सो जाओ… ! उसकी खनकती हंसी सुनाई पड़ी।
अब हमारा यह रोज का कार्यक्रम हो गया, पर काजल बेईमानी कर जाती थी। वो मुझे कुछ भी नहीं दिखाती थी।
एक बार मैंने उसे अपने कमरे में आने को कहा तो वो मान गई। उस दिन घर में सब शादी में गये हुये थे। वो सावधानी से दीवार कूद कर मेरे कमरे में आ गई। यूँ तो हम कॉलेज में रोज मिलते थे पर वहाँ हम बात नहीं करते थे। हमारी दोस्ती के बारे में किसी को भी पता नहीं था। वो भी घर के पजामे में थी और मैं भी घर के पजामे में था। अन्दर भी अंडरवियर नहीं पहना था। मेरा लण्ड उसे देखते ही खड़ा हो गया था।
मजे लेगी इसके? मैंने अपना लण्ड हिलाते हुये काजल से पूछा।
अरे अन्दर तो चल… मजे लेने ही तो आई हूँ…! उसने मुझे कमरे में धकेलते हुये कहा।
चल आजा… आज तो मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं !
तेरा लण्ड तो देख ना … लगता है पजामा फ़ाड़ कर बाहर आ जायेगा ! वो धीमे से खिलखिला उठी। सच में मेरा लण्ड उसे देख कर ही बेकाबू हो रहा था।
कमरे में घुसते ही काजल बोली- विजय, तेरा लण्ड बहुत ही प्यारा है… लगता है पूरा ही अपनी चूत में घुसेड़ लूँ !
कभी खाया है लण्ड तूने?
हां, अभी तो खाया था ना… विक्की का…मस्त चुदाई की थी साले ने !
आज खायेगी मेरा लौड़ा…?
तेरी मर्जी… मैं तो खाने को तैयार हूँ, तभी तो आई हूँ यहाँ…! ऐ देख, मैंने तो बता दिया कि मैं तो चुदी-चुदाई हूँ… तूने भी कभी किसी को चोदा है या बस यू ही लण्ड लटकाये घूमता है?
अरे यार अब क्या कहूँ… भाभी मेरे से चुदवाती है…!
वाह तो हम दोनों एक ही थैली के हैं… निकाल अपना लौड़ा…! मेरे पजामे में हाथ मारती हुई बोली।
मेरा लण्ड पकड़ कर उसने हिलाया- लम्बा है यार … !
चल पजामा उतार … फ़टाफ़ट चुदाई कर लेते हैं, वर्ना बारह बजे तक तो सब आ ही जायेंगे।
उसने मेरे गले में हाथ डाल कर कहा- तब तक तो मेरी चूत तेरे लण्ड को खा चुकी होगी।
देखो तो सूरत से तो भोली नजर आती हो, और बाते लण्ड खाने की करती हो !
मैंने अपना पजामा उतार दिया। काजल ने भी देरी नहीं की… हम दोनों नंगे हो कर एक दूसरे को निहार रहे थे। मेरा लण्ड कड़क हो कर सीधा तना था। कड़क लण्ड देख कर उसकी चूत ने प्रेम रस की दो बूंदें निकाल दी और मेरा लण्ड थाम लिया।
हरामजादे, इतने दिन से तड़पा रहा था … पहले लण्ड क्यों नहीं घुसेड़ दिया मेरी फ़ुद्दी में ?
इतनी उतावली मत हो, बस अब देर ही कितनी है, तेरी तो मैं मां चोद दूंगा !
वो लण्ड को दबाने लगी, मेरे लण्ड की हालत बुरी होने लगी। मैं उसके कठोर स्तन हाथ में थाम कर दबाने लगा। उसके मुँह से सिसकी निकल गई, साथ में गाली भी निकल गई- भेन चोद, घुसेड़ दे लौड़े को मेरी चूत में, साली लौड़े को देखते ही मचक मचक करने लगती है … !
मेरे होंठ उसके होठो को चूमने और काटने लगे। उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया।
काजल, तेरी गाण्ड के गोले मस्त है, फ़ाड़ दूँ मदरचोद को?
चूत मारे चोदू और गाण्ड मारे गाण्डू !
दोनों को जो मार दे, वो ही शेर है मेरे पाण्डु !
वह गांव में चर्चित एक होली की गाली कविता गुनगुना उठी, फिर खिलखिलाने लगी।
अरे वाह, बहुत पुरानी होली की कविता है ये तो ! पर देख मुझे ललकार मत !
ओफ़्फ़ोह, चल ना… चोद दे ना…!
मैं उसे लेकर बिस्तर पर गिर पड़ा… उसके दोनों पैर ऊँचे उठ गये, मैंने अपने लण्ड का जोर उसकी चूत पर लगा दिया। पहले तो हम दोनों ही बेकरारी में लण्ड और चूत को यहाँ-वहाँ सेट करके चुदाई की कोशिश करने लगे, पर लण्ड इधर उधर फ़िसल रहा था। पर इसमें मजा बहुत आ रहा था। तभी लण्ड को गुफ़ा मिल गई और सुपाड़ा उसमें समा गया। उसकी तंग चूत के कारण दोनों के मुख से सीत्कार निकल पड़ी। दोनों के अधर फिर से चिपक गये। आंखे बंद हो गई।
एक दो धक्को में लण्ड चूत में पूरा अन्दर तक बैठ गया। उसकी चूत में लहर सी चल रही थी… जो मुझे महसूस हो रही थी।
मेरी कमर धीरे धीरे चलने लगी और वो आनन्द से सिसकियां भरने लगी, मुख से मस्ती भरी आहें निकलने लगी। मैं भी आनन्द से सरोबार हो गया था। दोनों की कमर एक ताल से चलने लगी थी। उसके गोल कड़े स्तन मेरी छातियो में गड़े जा रहे थे, उसके कड़े चुचूक जैसे मुझे गुदगुदा रहे थे। मैंने अपनी आँखें खोल कर काजल को देखा, वो सुख के कारण अपने नैनो में सपने समेटे, बेहाल सी थी।
शेष कहानी दूसरे भाग में !
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