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लेखक : जय कुमार
एक दिन मेरे दोस्त कमल का फोन आया- यार जय, कल हम सभी लोग हरिद्वार जा रहे हैं, पापा ने कहा है कि तुमको भी हमारे साथ चलना है।
मैंने कहा- कमल मैं आप लोगों के साथ कैसे जा सकता हूँ, अचानक आप कह रहे हो, मैं आप लोगों के साथ नहीं जा सकता।
मैंने फोन रख दिया। 10-15 मिनट के बाद कमल के पापा का फोन आया- जय बेटे, तुम हमारे साथ क्यों नहीं चलना चाहते? मुझे मालूम है कि तुम हरिद्वार साल में एक दो बार जरूर जाते हो।
मैंने कहा- अंकल जाता तो हूँ पर मुझे काफी सारे काम भी तो करने हैं, मेरे तो सारे काम रुक जाएँगे अंकल।
तो अंकल कहने लगे- कोई बात नहीं, मैं कौन सा तुमको रोज-रोज कहता हूँ, तुम कल तैयार रहना ! अब मैं कुछ नहीं जानता !
और यह कहकर फोन काट दिया।
अगले दिन दोपहर को दो बजे कमल का फोन आया- जय, हम लोग रात को दस बजे निकलेंगे, तुम तैयार रहना !
मैंने कहा- ठीक है।
और मैंने भी आपनी पैकिंग शुरु कर दी और एक छोटे बैग में दो जोड़ी कपड़े रखे और एक बकाडी की बोतल रखी और फिर मैं सो गया।
रात को साढ़े नौ बजे फिर से कमल ने फोन किया- हम लोग निकल रहे हैं, तुम तैयार रहना।
मैंने उनके आने से पहले ही दो पैग बकाडी के लिये और फिर नहाने चला गया, टीशर्ट, लोअर पहना, खाना खाया और बाहर ही निकलने वाला था कि घण्टी बजी। मैंने दरवाजा खोला तो कमल सामने खड़ा था। मैंने उसको अन्दर बुलाया तो कमल कहने लगा- सभी लोग आपका इन्तज़ार कर रहे हैं, जल्दी करो !
और मेरा बैग उठाया और बाहर चला गया। मैंने एक और पैग जल्दी से मारा, घर को ताला लगाया और गाड़ी के पास जाकर देखा कि कमल के परिवार के सभी लोग स्कोर्पियो गाड़ी में बैठे थे, बीच वाली सीट पर कमल के मम्मी-पापा और अगली सीट पर कमल बैठा था, पीछे वाली सीट पर उसकी बहन और पत्नी बैठी थी।
मैंने कमल के मम्मी-पापा को नमस्ते किया और कमल को पीछे वाली सीट पर बैठने को कहा। तो कमल के पापा कहने लगे- जय बेटे, तुम थके होंगे, तुम पीछे बैठ जाओ, रास्ते में साईड भी तो देखने वाला चाहिए।
मैं पिछ्ली सीट पर बैठ गया। मैंने मन ही मन सोचा कि यार जय, आज कहाँ फँस गया। मैंने अपना फोन निकाला और कानों में ईयरफ़ोन लगा कर गाने सुनने लगा। दिल्ली में तो काफी भीड़-भाड़ थी तो हम लोग एक घण्टे में गाजियाबाद पहुँचे और हम लोगों को गाजियाबाद पार करने में साढ़े ग्यारह बज गये। सब लोग सो गये, मैं भी सोने की कोशिश करने लगा तो मैंने देखा कि कोई हाथ मेरे पैर को सहला रहा है। तो मैंने ऐसे ही उसको अपने हाथ से पकड़ कर अलग कर दिया पर फिर से वो हाथ अबकी बार मेरी जांघ को सहालाने लगा तो मैंने आँखें खोलकर कर देखा तो कमल की पत्नी नीता मेरे जांघ पर हाथ फेर रही थी।
अबकी बार मैंने गुस्से से हाथ हटा दिया और सोने की कोशिश करने लगा तो देखा कि कमल की बहन अपने को सोने का बहाने बनाते हुये अपनी भाभी के कान में कुछ कह रही है।
मैंने उनकी हरकत पर कोई गौर नहीं किया क्योंकि सभी लोग तो सो चुके थे, मैं भी सोने की कोशिश करने लगा। पर थोड़ी देर के बाद नीता मेरी सीट पर आकर बैठ गई और कमल की बहन मोनी पूरी सीट पर अपने पैर फैला कर सो गई।
पहले मैं नीता और मोनी के बारे में बता दूँ- नीता की फिगर 28-32-34 और मोनी की फिगर 30-32-36, दोनों का रंग दूध की तरह साफ और लम्बाई नीता की 5 फीट 4 इंच और मोनी की 5 फीट 6 इंच और नीता की उम्र 26 साल और मोनी की 20 साल थी। दोनों ही एकदम से देखने में स्मार्ट और सुन्दर जो भी देखे बस देखता ही रह जाये।
नीता ने कुछ देर सोने का नाटक किया और फिर से मेरी जांघ पर हाथ घुमाने लगी। अबकी बार मैंने नीता का हाथ पकड़कर नीता के कान में कहा- भाभी जी, यह आप क्या कर रही हो?
नीता ने कहा- जय, कुछ तुम करो और कुछ मैं करती हूँ, सफर आराम से कट जायेगा।
मैंने कहा- नहीं भाभी जी, यह सब अच्छी बात नहीं है, अगर किसी को पता चल गया तो क्या होगा? हम दोनों ही बदनाम हो जायेंगे।
नीता कहाँ मानने वाली थी, नीता पर तो काम वासना का भूत सवार हो चुका था, नीता ने मेरे लोअर में हाथ डाल दिया और कहने लगी- अब की बार मुँह से कुछ मत बोलना, नहीं तो मैं बहुत कुछ बोलूँगी। बस तुम मजा लो और दो !
यह कह कर मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और बोली- जय, तुम पूरा मजा लो !
और यह कहकर मेरे लण्ड को पकड़ लिया जो कि अभी सोया हुआ था। नीता की अंगुलियाँ अपना कमाल दिखाने लगी, मेरा लण्ड भी अपने पूरे आकार में आने लगा। नीता एक हाथ से मेरे लण्ड को सहला रही थी और दूसरे हाथ से मेरी छाती सहलाने लगी।
मैं भी पूरा गरम होने लगा। नीता अपने काम में पूरी मस्त हो चुकी थी उसको किसी की कोई परवाह नहीं थी। मैंने तभी देखा कि मोनी अपने शरीर में कुछ हरकत कर रही है और हिल-डुल रही है और अपने एक हाथ को अपनी चूत पर फिरा रही है और दूसरे हाथ से अपनी छाती को मसल रही है।
तो मैंने नीता को रुकने को कहा पर नीता रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और मेरी गाण्ड फटी जा रही थी। मैंने नीता को एक तरफ धकेल दिया और उठने के लिये हिला ही था कि इतने में ही मोनी उठ गई और मुझे धीमे से बोली- जय, आराम से बैठ जाओ, आपको कोई प्रोब्लम नहीं होगी। भाभी को खुश कर दो, सब लोगों की मैं गारंटी लेती हूँ।
मैं सोच में पड़ गया कि माजरा क्या है। गाड़ी में अन्धेरा था और सब लोग सो चुके थे। बस जब कोई गाड़ी आती तो उसकी रोशनी गाड़ी के अन्दर आती तो वो ही दिखाई देती और सब लोग आराम से सो रहे थे, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है।
मैंने अपनी जेब से फोन निकाला और अपने दोस्त सुनील को फोन किया- सुनील यार, मुझे माफ करना, इस समय फ़ोन किया !
तो सुनील ने नीन्द में ही जवाब दिया- जय भाई, क्या बात है बताओ?
मैंने कहा- यार, हम लोग किसी जरूरी काम से हरिद्वार आ रहे हैं और मुझे एक कमरा और एक बाईक चाहिए, वो भी सवेरे बहुत ही जल्दी !
तो सुनील ने कहा- कोई बात नहीं जय ! जैसे ही ज्वालापुर पहुँचो, मुझे फोन कर देना, मैं खुद आ जाऊँगा यार ! अब मुझे सोने दो ना यार !
और फोन रख दिया।
क्योंकि मेरी तो हालत खराब हो चुकी थी, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। अब तो मुझे समय बिताना था, मैंने मोनी से कहा- पानी है क्या ?
मोनी ने कहा- हाँ जय !
और मोनी ने मुझे पानी की बोतल और एक गिलास दिया तो मैंने मोनी को कहा- जरा मेरा बैग देना !
तो मोनी ने ने मेरा बैग उठा कर दिया और मैंने बकाडी की बोतल निकाली और ढक्कन खोलकर अपने गिलास में डाली कि शायद दोनों कुछ घबरा जायें, और पानी डालकर और एक ही बार में पूरा का पूरा गिलास खत्म कर दिया और अपना बैग वैसे ही अपनी सीट के नीचे रख दिया। पर उसका तो उलटा ही असर हुआ और दो ही मिनट के बाद मोनी ने कहा- जय, जो अभी आपने पानी पिया वो मुझे और भाभी को भी दो ना।
मैंने गुस्से में कहा- अपने पापा या भाई से माँग लो !
तो वो कहने लगी- सब लोग सो रहे हैं, आप ही तो जाग रहे हो, आप ही मुझे दे दो ना !
मैंने सोचा कि आज कहा फँस गया? और मैं तो यही सोच रहा था कि मोनी ने मेरे बैग से बकाडी की बोतल निकाल ली और नीता से बोली- भाभी, मैं अभी आपको जय वाला पानी देती हूँ !
और गिलास आधा से भी ज्यादा भर लिया। मैंने गिलास मोनी के हाथ से छीन लिया तो मोनी बोली- जय मैं सब की गारंटी ले रही हूँ तो आपको क्या कष्ट है? मै हूँ ना? घबराने की कोई जरूरत नहीं ! अब जय इस पानी में से आधा मुझे और आधा भाभी को दो ना।
अब मैं क्या करूँ क्या ना करूँ ? मैं तो फँस ही गया ? मैंने मोनी से कहा- ठीक है, आपको यही पानी पीना है ना तो मैं और गिलास निकाल लेता हूँ और सभी लोग लेते हैं।
मैंने अपने बैग से प्लास्टिक के दो गिलास निकाले और उनमें पानी और लिम्का डाल दी और मोनी और नीता दोनों को थमाने लगा। इतने में ही नीता ने पहले वाला गिलास उठा लिया। मुझे पता नहीं चला कि कब नीता ने गिलास मेरे पास से उठा लिया।
इतने में ही मोनी बोली- जय, मैं तो भाभी वाला गिलास लूँगी। तुम और भाभी अपना गिलास सम्भालो।
मोनी ने अपने हाथों में पकड़े दोनों गिलास एक मुझे और एक नीता को थमा दिये और नीता के हाथ से बकाडी वाला गिलास लेकर पीने लगी। उसने एक ही साँस में पीने की कोशिश की, पर वो तो नीट थी तो थोड़ी ही पी पाई।
मैंने कहा- आप यह पानी नहीं पी पाओगी।
पर मोनी कहाँ मानने वाली थी, उसने गिलास मुँह से लगाया और पीने लगी। तो मुझे भी गुस्सा आ गया, मैंने गिलास मोनी के हाथ से छीन लिया, गिलास मैंने अपने पास में रख लिया तो मोनी मुझ से बहस करने लगी। इतने में ही नीता ने हम दोनों को बातों में उलझा देखकर वो ही गिलास उठाया और एक ही बार में आधे से ज्यादा पी गई, नीता ने दुबारा में पूरा ही गिलास खत्म कर दिया और कहने लगी- जय आपकी ड्रिन्क तो बड़ी अच्छी है, पीकर मजा आ गया।
मैंने देखा कि नीता ने पूरा ही गिलास खत्म कर दिया। वह मुझसे चिपटने लगी तो अब मैंने भी अपने हथियार डाल दिये।
जैसे ही हम लोग मुजफ्फरनगर पहुँचे, मैंने ड्राइवर से कहा- गाड़ी बाई-पास से निकाल लेना !
ड्राइवर ने गाड़ी बाई-पास से घुमा दी और थोड़ी दूर जाने के बाद मैंने गाड़ी रोकने को कहा। ड्राइवर ने गाड़ी साईड में लगा दी, मैं गाड़ी से उतरकर पेशाब करने के लिये चला गया। जैसे ही वापस आया तो देखा- सभी लोग आराम से सो रहे हैं।
मैं भी अपनी सीट पर जाकर बैठ गया और ड्राइवर को चलने को कहा। गाड़ी मुजफ्फरनगर से जैसे ही रुड़की के लिए मुड़ी और तेजी से चलने लगी तो मुझे फिर से नीता का हाथ अपने लण्ड पर महसूस हुआ। वो बड़े ही इत्मिनान से हाथ फिरा रही थी। अबकी बार मैंने भी सोच लिया कि जो भी होगा देखा जायेगा, और मैं भी मजा लेने लगा। तो थोड़ी ही देर में नीता अपनी सीट से मेरी सीट पर आकर बैठ गई और मेरा लोवर नीचे खिसका के मेरे लण्ड को मुँह में लेकर चूसने लगी। मेरा लण्ड अब तक अपने पूरे आकार में आ चुका था।
नीता ने कहा- जय, आपका हथियार तो बहुत ही शानदार है !
और मेरी गोलियाँ हाथ से सहलाने लगी। मुझे भी मजा आने लगा और मेरे मुँह से कोई आवाज ना निकले, इस बात का ध्यान रखने लगा।
नीता तो अपने काम में लगी हुई थी तो अचानक ही मुझे याद आया कि मोनी ने कहा था- भाभी को जो भी करना है करने दो, बाकी की मेरी जिम्मेदारी !
मैंने नीता की चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से ही सहलाने लगा। नीता की चूची हाथ में आसानी से आ गई, मेरे हाथ लगने से ही वो टाईट होने लगी। मैं भी सब कुछ भूल कर नीता का होकर रह गया। नीता मेरा लण्ड चूस रही थी और मेरी गोलियों को हाथ से बराबर सहला रही थी। मुझे भी पूरा मजा आ रहा था। मैंने भी अब कमर कस ली और सोचा जो होगा देखा जायेगा और एक हाथ नीता के पेटिकोट में डाल दिया। मैंने महसूस किया कि नीता ने तो पैन्टी ही नहीं पहनी हुई है और मेरी अँगुली सीधी ही नीता की चूत में चली गई। नीता की चूत पानी छोड़ रही थी।
मुझे तो पूरा मजा आ रहा था, एक तो मैं नीता की चूत में अँगुली डाल रहा था और ऊपर से नीता मेरा लौड़ा चूस रही थी। अब मैं भी पूरा मजा लेना लगा और नीता को भी मजा देने लगा। कुछ देर में मेरे लण्ड ने अपना पूरा पानी नीता के मुँह में छोड़ दिया। नीता की चूत तो पहले से ही गीली थी, मुझे नहीं मालूम उसकी चूत ने कितनी बार पानी छोड़ा?
अचानक ही मेरा फोन बजा तो देखा कि फोन सुनील का था। वह कहने लगा- जय किस जगह पर हो?
मैंने ड्राइवर से पूछा तो उसने बताया कि हम ज्वालापुर पहुँचने वाले हैं।
मैंने सुनील को कहा- हम ज्वालापुर पहुँचने वाले हैं !
तो सुनील ने पूछा- बाईक किस जगह पर भेजूँ?
तो मैंने कहा- हर की पैड़ी पर अपने वाली साईड में पार्किंग के लिये जैसे ही मुड़ते हैं।
सुनील ने कहा- ठीक है !
सुनील की कोठी भारत माता मन्दिर के पास थी।
मैंने फोन में समय देखा तो उस वक्त़ सुबह के तीन बजे चुके थे।
मैंने नीता से कहा- अब तुम सो जाओ।
नीता ने कहा- ठीक है ! पर आपने बाईक क्यों मँगवाई? हमारा साथ आपको अच्छा नहीं लगा?
मैंने कहा- नहीं मेरी जान, मुझे बहुत अच्छा लगा आप लोगों के साथ आकर ! अब थोड़ा सो लेते हैं।
नीता ने कहा- ठीक है।
क्रमशः
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