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लेखक : जय कुमार
हम लोग पौने चार बजे हरिद्वार पहुँच गये।
कमल के पापा ने मुझे अवाज़ लगाई- जय बेटे, अब बताओ कि पहले किस जगह पर चलें?
मैंने कहा- अंकल जी, पहले हर की पैड़ी पर चलते हैं। पहले नहाते हैं, फिर मनसा देवी पर चढ़ाई करेंगें।
उन्होंने कहा- ठीक है।
और हम लोग पर्किग की तरफ जैसे ही चले, तभी मैंने देखा कि सुनील सामने बाईक लेकर के खड़ा हुआ है। मैंने ड्राइवर से गाड़ी रोकने को कहा, मैं सुनील से मिलने के लिये गाड़ी से बाहर आया, सुनील ने मुझे देखते ही मुझे बाँहो में भर लिया और हम दोनों आपस में बात करने लगे। कमल मेरे पास आया और मैंने उसका सुनील से परिचय कराया।
सुनील ने कहा- अगर आपको कोई भी परेशानी हो तो मुझे फोन कर देना बस ! अब मैं निकलता हूँ।
और यह कहकर सुनील अपने किसी दोस्त की बाईक पर बैठा और चल दिया।
मैंने कमल से कहा- गाड़ी को पार्किंग में लगाओ, मैं आ रहा हूँ !
मैंने बाईक उठाई और उनसे पहले ही हर की पैड़ी पर पहुँच गया। मैंने देखा कि मोनी मेरा बैग अपने साथ लेकर आ रही है, मैं तो अपना बैग भूल ही गया था।
जब सब लोग हर की पैड़ी पर पहुँच गये तो मैंने कहा- अंकल जी, इस समय कम भीड़ है, हम लोग यहाँ पर नहा लेते हैं, ये नारी स्नान-गृह में नहा लेगीं।
तभी मोनी ने कहा- पापा, हम लोग वहाँ पर नहीं जाएँगे, वहाँ पर तो बहुत ही ज्यादा गन्दगी होती है। हम सभी आप लोगों के ही साथ ही नहाएँगे।
अंकल ने कहा- हाँ बेटी मोनी, तुम ठीक कह रही हो, यही ठीक है।
हम सब लोग नहाने लगे तो मैंने मोनी को अवाज दी तो मोनी गीले ही कपडों में ही मेरे पास आई और कहने लगी- जय नहाने भी नहीं दोगे क्या?
मैंने कहा- मोनी, मेरा बैग दो !
मोनी बोली- आप अपना समान भी नहीं उठा सकते? मेरे पास नहीं है !
और कहने लगी- अब मैं आपको कैसी लग रही हूँ?
मैंने कहा- मोनी, तुम ये फालतू की बात मत करो ! मैंने कुछ पूछा है?
तो कहने लगी- सामने बैग रखा है ना।
मैंने देखा कि मोनी सही कह रही है, मैंने कहा- मोनी अब जा कर नहा लो !
मैंने अपना बैग उठाया और तौलिया, निकर लेकर अपने कपड़े उतार कर बैग में रखे और जैसे ही नहाने के लिये छलांग लगाने वाला था कि मैंने देखा कि सब लोगे मुझे ही घूर रहे हैं।
तो मैंने कहा- अंकल जी, मेरे बारे में फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं, मुझे तैरना आता है।
यह कहकर मैंने छलांग लगा दी। मैं जैसे ही पानी से बाहर आया तो देखा कि सारे लोग मुझे ही देख रहे हैं। मैं दूसरी तरफ निकल गया और उधर से छलांग लगाई और उन लोगों के पास पहुँच गया।
मैंने कमल से कहा- यार, यह जंजीर पकड़ कर क्या नहाते हो? आओ मेरे साथ नहाओ ना !
कमल कहने लगा- नहीं पानी बहुत ही तेज हैं और मुझे डर लगता है।
और हम सब लोग हँसने लगे। मोनी कहने लगी- जय, मुझे एक बार अपने साथ उस तरफ ले जा सकते हो?
मैंने कहा- नहीं, मैं नहीं ले जाऊँगा।
मोनी ने कहा- क्यों डर गये क्या?
मैंने कहा- नहीं ऐसी बात नहीं !
तो कहने लगी- एक बार मुझे पार कराओ ! और अपने पापा से बोली- पापा, जय से कहो ना !
तो कमल के पापा कहने लगे- जय, एक बार इनको पार करा दो ना ! ये बहुत ही जिद्दी हैं !
फिर मैंने कहा- जैसे ही पानी के अन्दर जाये तो अपने हाथ और पैर पानी के हिसाब से बैलेंस के साथ चलाये, पानी बहुत ही तेज है।
तो मोनी कहने लगी- मैं कमल भईया की तरह से डरपोक नहीं हूँ !
हम सब लोग हँसने लगे और मोनी पानी में कूद गई और मैं भी मोनी के पीछे पानी में कूद गया और मैंने देखा कि मोनी तो तैरना जानती है पर कुछ डूबने का नाटक करने लगी।
मैं भी अब कम रहने वाला नहीं था, मैंने पानी के अन्दर जाकर मोनी को अपने ऊपर लिया और धीरे धीरे किनारे की तरफ बढ़ने लगा। मोनी ने मुझे कस कर पकड़ लिया और हम दोनों किनारे पर पहुँच गये।
मोनी कहने लगी- जय, मजा आ गया ! एक बार और हो जाये?
मैंने मोनी को देखकर कहा- लगता है तुम सभी घर वाले ज्यादा ही रोमांटिक हो !
मोनी कहने लगी- अभी आपने देखा ही क्या है? आप धीरे-धीरे सब कुछ समझ जाओगे।
मोनी के कपड़े शरीर से चिपके हुऐ थे और बहुत ही सुन्दर लग रही थी।
मैंने कहा- चलो बातें छोड़ो और सभी लोगों के पास चलते हैं !
और फिर से हम लोग पानी के अन्दर गये और पार करके बाहर आ गए।
नीता ने कहा- एक बार मुझे भी पार कराओ ना?
मैंने मोनी से कहा- मोनी, अपनी भाभी को तैरना सिखा दो !
तो मोनी कहने लगी- ये पेटिकोट मैं तैरेंगी?
और कहकर हँसने लगी तो नीता बोली- मोनी तुझे मैं छोड़ूँगी नहीं ! देख लेना !
और वो सभी लोग नहाने लगे।
मैंने अपने कपड़े बदल लिये और अपने बैग को लेकर एक तरफ जाने लगा। तभी अंकल ने आवाज लगाई- जय, बच्चों ने भी तो कपड़े बदलने हैं, यहीं पर रुको।
और मुझे मन मार कर वहीं पर रुकना पड़ा। जब सभी लोग नहा कर बाहर आये तो मैंने कहा- अंकल आप अपने कपड़े यहीं पर बदल लो और बाकी को उधर लेडीज वाले हॉल में भेज दो !
तो आन्टी कहने लगी- बेटा, वहाँ पर तो बहुत गन्दा होता है, मैं नहीं जाऊँगी। हम यहीं पर कपड़े बदल लेंगे। जय तुम कमल के साथ यह चादर पकड़ लेना !
और हम दोनों ने एक घेरा बना कर चादर पकड़ ली। आन्टी, नीता और मोनी ने एक एक करके अपने कपड़े बदल लिये और गीले कपड़े एक पोलिथिन में डाल लिये।
मैंने कहा- अंकल, अब किस जगह पर चलोगे?
तो अंकल ने कहा- जय, तुम ही बताओ कि पहले कहाँ चलें !
मैंने कहा- मनसा देवी चलते हैं !
तो सब लोग कहने लगे- ठीक है। मनसा देवी ही चलते हैं !
सब गाड़ी में बैठ गये, मैंने कहा- कमल, आप लोग चलो, मैं आपको वहीं पर मिलता हूँ।
तो कमल कहने लगा- तुम कैसे आओगे?
तो मैं कहने लगा- मेरे पास बाईक है, चलो, मैं आपको रास्ते में मिलता हूँ !
तो कमल कहने लगा- यह बाईक कहाँ से आ गई?
मैंने कहा- दोस्त की है ! चलो, मैं वहीं पर मिलता हूँ।
वो सभी लोग अप्पर रोड पर मनसा देवी की तरफ चल दिये। मैंने भी अपना बैग कन्धे पर रखा और उन लोगों से पहले ही मनसा देवी वाले रास्ते पर पहुँच गया। थोड़ी देर में ही सब लोग पहुँच गये तो मैंने कहा- अंकल, किस रास्ते से चलना है?
अंकल ने कहा- सीढ़ियों वाले रास्ते से चलते हैं !
मैंने कहा- ठीक है अंकल, मैं आप लोगों को ऊपर ही मिलता हूँ !
तो अंकल ने कहा- तुम हमारे साथ नहीं चलोगे क्या ?
मैंने कहा- नहीं, मैं तो बाईक से जाता हूँ ! आप मेरे साथ चलो !
अंकल ने कहा- नहीं जय, मुझे तो डर लगता है।
तभी मोनी कहने लगी- जय, मैं चलती हूँ !
मैंने कहा- नहीं, मैं अकेले ही ठीक हूँ !
तो नीता ने कहा- पापा मुझे कुछ थकावट हो रही है, क्या मैं जय के साथ चली जाऊँ?
अंकल ने कहा- आप लोगों की जैसे मर्जी।
मैंने कहा- अंकल ये साड़ी पहने हुए हैं और चढ़ाई बहुत ज्यादा है।
तो नीता ने कहा- मैं अपने कपड़े बदल लेती हूँ।
मैंने कहा- नीता जी, आप रहने दो, मैं मोनी को ले जाता हूँ, मोनी ने जीन्स पहनी हुई है।
तो नीता नराज होने लगी- आप मुझे क्यों नहीं ले जाना चाहते?
मैंने कहा- कोई बात नहीं ! मोनी, तुम चलो मेरे साथ !
तो मोनी कहने लगी- नहीं जय, भाभी दो मिनट में कपड़े बदल कर आ जाएँगी। हम अपनी भाभी की किसी भी बात को मना नहीं करते।
तो कमल कहने लगा- जय, मोनी ठीक कह रही है, नीता आपके साथ चली जायेगी।
नीता ने गाड़ी से बैग निकाला और पास के लॉज़ में चली गई और पाँच मिनट में कपड़े बदल कर आ गई और कहने लगी- जय, अपना बैग मुझे दो !
तो मैंने अपना बैग नीता को दिया। नीता ने बैग अपनी कमर पर लटका लिया और सब को बाय किया। हम लोग बाईक पर बैठ कर चल दिये। नीता मुझसे चिपक कर बैठ गई।
तभी अंकल ने कहा- जय बेटे, जरा सँभल कर जाना !
मैंने कहा- ठीक है !
और हम लोग चल दिये। थोड़ी दूर जाने के बाद मैंने नीता से कहा- नीता जी, मुझे भूख लगी है ! कुछ खा लिया जाये?
तो नीता ने कहा- हाँ जय, भूख तो मुझे भी लगी है, बताओ क्या खाओगे?
मैंने कहा- देखते हैं क्या मिलता है?
और मैंने एक होटल के पास बाईक खड़ी की, अन्दर गये, होटल वाले से पूछा- क्या-क्या है खाने के लिये?
तो उसने कहा- हमारे यहाँ सवेरे-सवेरे छोले भटूरे मिलते हैं।
मैंने नीता से पूछा- छोले भटूरे खाओगी क्या?
तो कहने लगी- आप जो भी खिला दो, मैं तो वही खा लूँगी।
छोले भटूरे खाकर हम दोनों चल दिये। जब तक रास्ता सीधा था तब तक तो नीता मुझसे चिपक कर बैठी रही पर जैसे ही हम दोनों चढ़ाई पर चढ़ने लगे तो नीता डरने लगी क्योंकि रास्ते में मोड़ और चढ़ाई बहुत ही ज्यादा थी। नीता कहने लगी- जय, अगर कुछ हो गया तो हम दोनों तो जान से हाथ धो बैठेंगे।
मैंने कहा- नीता, इसीलिये तो मैंने आपको पहले ही मना किया था ! पर आप कहाँ मानने वाली थी? चलो आप उतरो और मेरे पीछे पीछे आओ।
तो नीता कहने लगी- नहीं जय, मुझे डर लगता है, और थक भी बहुत गई हूँ।
क्योंकि रास्ते में भीड़भाड़ भी नहीं थी तो मैंने कहा- डरने की कोई बात नहीं, बस आप मेरे से चिपक कर बैठ जाओ और हिलना डुलना मत ! बात भी मत करना !
तो नीता कहने लगी- ठीक है !
नीता मेरे से चिपक कर बैठ गई पर दो-तीन मोड़ के ही बाद नीता रोने लगी- जय, मुझे बहुत ही डर लग रहा है !
मैंने कहा- नीता, डरने की कोई बात नहीं ! थोड़ी देर आँखें बन्द करके बैठी रहो। जल्दी ही पहुँच जायेंगे।
नीता आराम से बैठ गई, पर जैसे ही मोड़ आता वो चिल्लाना शुरु कर देती। तभी मुझे एक दुकान नजर आई और मैंने बाईक रोककर नीता से कहा- आप आराम से बैठो, मैं अभी आया !
और दुकान वाले से पूछा- पानी मिल सकता है क्या?
तो दुकान वाले ने कहा- हाँ !
और मैंने उससे एक बोतल पानी और एक गिलास प्लास्टिक का लिया। मैं चल दिया तो नीता ने कहा- जय, क्या लिया है?
मैंने कहा- पानी है !
और थोड़ा उपर चढ़ने के बाद नीता फिर से डरने लगी, मैंने कहा- नीता, ठीक है, मैं बाईक साईड में लगाता हूँ।
मैंने बाईक साईड में लगा दी। रास्ता सुनसान था, कोई इक्का-दुक्का ही आदमी नजर आता था। मैंने अपना बैग लिया और बकाडी की बोतल निकाली तो नीता कहने लगी- जय, यह तुम क्या कर रहे हो? हम मन्दिर में जा रहे हैं, आप ये?
मैंने कहा- नीता, आप किसी भी जगह पर जाओ, मन्दिर जाओ या गुरुद्वारे जाओ या मस्जिद जाओ, इससे क्या फर्क़ पडता हैं श्रद्धा तो दिल से होती है !
मैंने एक पैग लिया और फिर से एक पैग थोड़ा हल्का बनाया, नीता को कहा- यह आप पियो !
तो नीता कहने लगी- नहीं जय, मैं कैसे ले सकती हूँ !
तो मैंने कहा- नीता, तुमने मुझे कब से परेशान कर रखा है ! यह ले लो ! डर नहीं लगेगा।
नीता ने अपनी नजर झुका ली, मेरे हाथ से गिलास लिया और एक ही घूंट में पूरा पी गई और कहने लगी- जय यह तो बहुत ठीक है ! रात में तो कुछ अलग ही थी !
मैंने नीता को नमकीन खाने को दी तो नीता ने कहा- जय, एक और गिलास दो ना !
तो मैंने कहा- नहीं नीता, रात में आप सो ली थी, अब काम खराब हो जायेगा !
तो नीता कहने लगी- ठीक है, मैं भी सब समझती हूँ !
मैंने एक और पैग मारा और चल दिया, नीता से कहा- मुझे पकड़ कर बैठना और हिलना डुलना मत !
नीता मुझसे चिपक कर बैठ गई और मैं अपने हिसाब से चलने लगा क्योंकि हम लोगों को 20-25 मिनट से ज्यादा हो गए थे, मैंने स्पीड थोड़ी तेज कर दी और जल्दी अपनी मन्जिल पर पहुँच गये।
नीता से मैंने कहा- बैग मुझे दे दो !
तो मैंने देखा कि नीता तो नशे में है !
नीता ने कहा- जय, हम किस जगह पर हैं?
मैंने कहा- हम मनसा देवी पहुँच चुके हैं।
तो नीता कहने लगी- जय सच में?
मैंने कहा- हाँ !
नीता ने कहा- मजा आ गया।
नीता कहने लगी- जय, मैं जिन्दगी में तुमको कभी नहीं छोडूँगी, मैं तुम को हद से ज्यादा पसन्द करती हूँ।
मैंने कहा- उतरो ! मैं बाईक पार्किग में लगा दूँ नीता जी !
नीता को ना चाहते हुए भी उतरना पड़ा। मैंने दुकान वाले से पूछ कर बाईक लगा दी।
मैंने तभी कमल को फोन किया, पूछा- किस जगह पर हो?
कमल ने कहा- अभी तो हम लोगों को देर लगेगी पहुँचने में ! तुम कहाँ पर हो?
मैंने कहा- हम तो पहुँच गये हैं।
ठीक है, कमल ने कहा- किस जगह मिलोगे?
मैंने कहा- हम लोग मेन गेट पर मिलेंगे ! थोड़ी जल्दी आना !
तभी नीता कहने लगी- कमल को फोन करने की क्या जरुरत थी?
मैंने कहा- नीता जी, सबका सोचना पड़ेगा !
अब मैंने सोचा कि उन लोगों के आने से पहले नीता का नशा कैसे उतारूँ?
तभी मुझे सामने पकोड़े वाली दुकान नजर आई। मैंने नीता से कहा- चलो पकोड़े खाते हैं !
और हम लोगों ने गर्मागर्म पकोड़े खाये और बातें करते रहे। उसके बाद हम दोनों दुकान से बाहर आकर मुख्य दरवाजे की तरफ चल दिए, जगह देखकर हम लोग बैठ गये और इधर उधर की बातें करने लगे।
मैंने अचानक ही नीता से कहा- नीता जी, आप रात को क्या कर रही थी?
तो नीता कहने लगी- वही जिसके लिये तुमको बुलाया हैं !
मैंने कहा- मैं समझा नहीं तुम क्या कह रही हो?
तो नीता कहने लगी- जो रात को मैं आपके साथ कर रही थी, उसके बारे में सब लोगों को मालूम है, इसीलिये तो मोनी ने कहा था कि सबकी जिम्मेदारी मैं लेती हूँ ! समझे मियाँ?
और कहकर हँसने लगी। मुझको एकदम से झटका लगा, मैं अपना सर पकड़ कर बैठ गया और नीता मेरे सर को सहलाने लगी।
तभी मैंने नीता को कहा- मेरी एक बात का जवाब दोगी?
नीता ने कहा- हाँ ! एक नहीं दस बात पूछो !
मैंने कहा- कमल को मैं भाई की तरह मानता हूँ और उसके परिवार को बहुत सालों से जानता हूँ, क्या आपस में यह सब कुछ जायज़ हैं नीता जी? आपके परिवार वाले मेरे बारे में अब तक क्या सोचते हैं? इसके बाद और क्या सोचेंगे? आप मेरी जगह हों तो आप क्या करोगी?
नीता ने कहा- कमल के मम्मी, पापा आपको कमल की तरह से ही चाहते हैं, मेरी शादी को चार साल हो चुके हैं, कमल के परिवार ने मुझे हर खुशी दी है, कभी भी मेरी किसी भी बात या काम को मना नहीं किया। और तो और कमल ने भी मुझे तन-मन-धन हर प्रकार का सुख दिया है, कमल हर तरह से एक सम्पूर्ण पुरूष हैं, मैं भी कमल को अपनी जान से बढ़कर प्यार करती हूँ। परन्तु चार महीने पहले हम लोग अपने डाक्टर के पास गये तो डाक्टर ने कमल के वीर्य में स्पर्म कम बताये तो हम लोगों की तो पैरों तले से जमीन निकल गई। सभी ने आपस में बैठ कर बात की कि अब क्या हो सकता है।
पापा कहने लगे- नीता, मेरी बेटी, हम लोगों ने तुम्हें हर तरह का प्यार दिया है और यह कहकर रोने लगे।
मैंने पापा से कहा- चलो कोई बात नहीं ! हमारी किस्मत में जो लिखा था वही होगा ना?
हम लोगों ने कमल का इलाज अच्छे से अच्छे डाक्टर से कराया, पर कोई फायदा नहीं हुआ और आख़िर में कमल ने पापा से आपके बारे में बात की तो पापा कहने लगे- जय मेरे बेटे जैसा है, हम उसको कहें? वो खुद इस काम के लिये तैयार नहीं होगा !
यह कहकर नीता मुझे बाहों में भरकर रोने लगी।
मैंने कहा- नीता जी, घबराने की कोई जरुरत नहीं ! सब कुछ ठीक हो जायेगा।
तो नीता कहने लगी- जय, कैसे ठीक हो जायेगा?
मैंने कहा- मैं हूँ ना? मैं जरूर कोई ना कोई उपाय ढूँढ लूँगा और मैं पापा और कमल से बात कर लूँगा।
तभी मैंने कमल को फोन किया- कहाँ पर हो? कमल ने कहा- बस 5 मिनट में पहुँचने वाले हैं।
मैंने नीता को कहा- अपना मुँह धो लो, मुझे रोते चेहरे अच्छे नहीं लगते।
सामने नल था और हाथ-मुँह धोकर नीता वापस आ गई, मैंने भी हाथ-मुँह धोये और इतने में ही कमल और सब लोग आ गये, कहने लगे- जय कब पहुँचे?
मैंने कहा- 40 मिनट हो गए हैं, पर आप कहाँ रह गये थे?
कमल के पापा ने कहा- हम लोग रास्ते में नाश्ता करने लगे थे, तुमने नाश्ता किया या नहीं?
मैंने कहा- हाँ अंकल हम लोग तब से दो बार नाश्ता कर चुके हैं, क्यों नीता जी।
नीता ने कहा- हाँ पापा जी ! हम लोग नाश्ता कर चुके हैं।
मैंने कहा- चलो अब दर्शन करते हैं।
हम लोगों ने प्रसाद लिया, प्रसाद चढ़ा कर वापस मन्दिर से बाहर आये तो मैंने कहा- अंकल अबकी बार इस रास्ते से चलो, यह रास्ता लम्बा तो जरुर है पर आप लोग थकोगे नहीं !
कमल कहने लगा- ठीक है !
हम लोग चलने लगे, जैसे ही हम लोग बाईक के पास पहुँचे, तो मैंने कहा- आप लोग चलो, मैं बाईक से आता हूँ !
तो अंकल कहने लगे- बेटे, नीता को भी साथ में लेते आना।
वो लोग चलने लगे तो नीता और मोनी ने आपस में कुछ बात की और कमल से बोली- भाई, मैं भी नीता भाभी और जय के साथ आती हूँ।
कमल कहने लगा- नहीं तुम हमारे साथ ही चलो।
नीता कहने लगी- कमल, मोनी हमारे साथ आ जायेगी, आप जाओ।
मैंने नीता को बीच में बैठने को कहा और मोनी पीछे बैठ गई। हम लोग धीरे-धीरे उतरने लगें तो मैंने देखा कि मोनी ने नीता का हाथ पकड़कर मेरे लण्ड पर रख दिया और अपनी भाभी को कान में कुछ कहने लगी। अब मैं कुछ ज्यादा तो कह नहीं सकता था, बाईक रोककर कहा- मोनी और नीता जी, ऐसे मजा नहीं आयेगा। यार मुँह से भी कुछ बोलो ना ! ऐसा लगे कि हम मजे कर रहे हैं, पर ध्यान रखना कि आप लोग हिलना-डुलना नहीं।
तो मोनी कहने लगी- जय, सही कह हो।
हम लोग तेज तो चल नहीं सकते थे पर कभी धीरे-धीरे तो कभी तेज !
जब हम लोग सभी लोगों के पास से निकले तो नीता और मोनी जो पहले ही शोर मचा रही थी, उनको देखकर और भी तेजी से शोर मचाया।
हम लोगों को देखकर सब लोग हँसने लगे और हम लोग उनसे आगे निकल गये। थोड़ी नीचे आने के बाद मैंने बाईक रोकी और मोनी से अपना बैग लेकर बोतल निकाल कर एक पैग मारा और जैसे ही चलने वाला था, नीता ने कहा- जय, एक मेरे लिये भी !
मैंने कहा- नहीं, अब आपको डर थोड़े ही लग रहा है। अब तो तुम्हें मजा आ रहा है।
नीता ने कहा- नहीं जय, आप मेरे बारे में सब कुछ जान चुके हो, फिर भी ऐसी बात करते हो? दो ना !
मैंने नीता की आँखों में मायूसी देखी और एक पैग बना कर दे दिया। नीता ने जल्दी से पैग खत्म किया, मैंने नीता को चूम कर कहा- दुखी होने की कोई जरूरत नहीं ! मैं हूँ ना !
नीता को बाहों में भर लिया तो इतने में मोनी कहने लगी- जय यह सब क्या चल रहा है?
अब मैं तो कुछ कह नहीं सकता था, नीता ने कहा- मोनी, कुछ नहीं।
मोनी ने कहा- भाभी, जो पानी वाला गिलास था, मुझे भी दो ना !
नीता ने कहा- मोनी, वो पानी बच्चे नहीं पीते !
तो मोनी कहने लगी- भाभी, अब मैं बच्ची नहीं हूँ ! यह देखो ! मेरा सीना तुम से बड़ा है।
और हम लोग हँसने लगे, मैंने कहा- मोनी, तुम्हें पानी चाहिए क्या?
तो वो कहने लगी- एक गिलास दो ना।
मैंने मोनी को एक हल्का पैग बना के दे दिया, मोनी ने पी लिया।
मैंने कहा- सब लोग आने वाले होंगे, जल्दी करो।
अबकी बार मोनी बीच में बैठ गई तो मैंने बाईक रोकी और मोनी को पीछे बैठने को बोला।
मोनी पीछे बैठ गई और हम मजा लेते हुए नीचे पहुँच गये और मोनी और नीता से कहा- कुछ खाना है क्या?
वो कहने लगी- हाँ !
मैंने कहा- इस वक्त सिर्फ छोले-भटूरे ही मिलेंगे।
हम लोगों ने छोले भटूरे खाये और बाहर बैठ कर आपस में गप्पे लड़ाने लगे। जब सब लोग आ गये तो मैंने कहा- अंकल, अब कहां चलना हैं।
अंकल और आन्टी ने कहा- बेटे, हम लोग तो बहुत थक गये हैं, अब हम आराम करेंगे।
मैंने कमल से पूछा- अब क्या प्रोग्राम क्या है?
तो कमल ने कहा- पापा, आप बताओ क्या करें।
मोनी कहने लगी- जय ने रात को किसी को फोन किया था कि मुझे एक कमरा और बाईक चाहिए, क्यों ना पापा हम भी जय के साथ चलें, हम लोग भी आराम कर लेंगे।
कमल ने कहा- पापा ये ही ठीक रहेगा। मैंने कहा कमल क्यों ना आप लोगों के लिये होटल में रुम मैं बुक करवा देता हूँ मैंने कहा- अंकल जी, वहाँ इतनी जगह नहीं होगी !
तो कमल कहने लगा- हम लोगों को करना ही क्या है, हम लोग तो आपके ही साथ काम चला लेंगे।
सब लोग गाड़ी में बैठ लिये और मैं बाईक पर चलने लगा तो मोनी ने कहा- जय मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ !
और मेरा बैग गाड़ी में रखकर मेरे पीछे बैठ गई। मैं उन लोगों के आगे-आगे चलने लगा। 10 मिनट के बाद हम लोग संगमपुरी पहुँच गये। पहुँच कर सुनील को फोन करके कहा कि हम आपकी कोठी के सामने खड़े हैं।
सुनील जल्दी से बाहर आया, कहने लगा- अन्दर नहीं आ सकता था क्या।
मैंने कहा- नहीं यार, मेरे साथ कुछ लोग और भी हैं, एक की बजाय तीन कमरे चाहिये।
सुनील कहने लगा- कोई बात नहीं ! और भी चाहियें तो बता दो वो भी हो जायेगा।
सुनील ने लड़के को आवाज लगाई- गाड़ी को अन्दर लगवा दो।
सब लोग जाकर आराम करने लगे, मैं भी सुनील से 10-15 मिनट बात करने के बाद अपने कमरे में चला गया, तौलिया लिया और बाथरूम में चला गया। फ्रेश होने के बाद नहा कर ऐसे ही नंगा कमरे में आ गया, तो मैंने देखा कि मोनी और नीता मेरे कमरे बैठी हुई हैं।
मेरी तो जान ही निकल गई और मैं उलटा ही दबे पैर बाथरूम में घुस गया, तौलिया लपेटा कस कर और दरवाजा खोल कर दोनों को बाहर जाने को कहा।
तो वो दोनों ही बोली- हम से क्या शर्म कर रहे हो? हम लोग सब कुछ देख चुके हैं जय ! बाहर आ जाओ, नहीं तो हम अन्दर आ जाएँगी।
मैंने गुस्से में कहा- मैं अंकल को फोन करता हूँ !
तभी दोनों बोली- पापा को क्या, किसी को भी कर लो हम नहीं जाएँगी। अब आप बाहर आ जाओ।
मैंने सोचा कि मैं किस मुसीबत में फँस गया? करूँ तो क्या करूँ?
मोनी बोली- जय, मैं बाहर जा रही हूँ, आप बाहर आ जाओ।
मोनी ने बाहर जाकर दरवाजा बन्द किया तो मेरी जान में जान आई और मैं बाहर निकला, देखा कि नीता दरवाजा अन्दर से बन्द कर रही है।
मैंने बाहर आकर निकर और एक टीशर्ट पहन ली, देखा कि नीता मुझे ही घूर रही है।
मैं आराम से बिस्तर पर बैठ गया, नीता भी मेरे पास आकर बैठ गई और दो तीन मिनट के बाद बोली- जय, तुम नाराज हो गये क्या? हमें क्या मालूम था कि आपका कमरा अन्दर से बन्द नहीं होगा और आप इस तरह से बाहर निकलोगे? मैं आपसे माफी माँगती हूँ, मुझे माफ करो दो, जय
मैं क्या कहूँ, यही कुछ सोच रहा था, तभी मैंने देखा कि नीता रो रही है।
मैंने नीता को गले लगाया और कहा- तुम अकेली होती तो कोई बात नहीं, पर मोनी तो मेरी और कमल की बहन लगती है।
नीता कहने लगी- नहीं, मैं आपसे कुछ कहना और माँगना चाहतीं हूँ !
और अपनी चुन्नी फ़ैला कर बोली- इसमें मेरे लिये कुछ डाल दो !
मैंने नीता से कहा- मैं आप सब लोगों से अपने परिवार की तरह से प्यार करता हूँ, लेकिन मुझे भी तो सोचने का मौका दो !
जय तुम मोनी से शादी कर लो, कहकर नीता मेरे पैरों में गिर गई, मैंने नीता को पकड़ कर बिस्तर पर बैठाया, गले से लगा लिया और उसकी कमर को हाथ से सहलाने लगा।
नीता ने अपने सर को मेरी छाती में छुपा लिया। दो तीन मिनट तक मैं ऐसे करता रहा और नीता रोती रही। पर मैं भी इन्सान हूँ, आखिरकार मैं भी जवाब दे गया और अपने होठों को नीता के होठों पर रख कर चूमने लगा और नीता के चूतड़ों को सहलाने लगा, नीता ने पैन्टी नहीं पहनी थी। अब मैंने नीता को बिस्तर पर लेटने को कहा, पर नीता ने मना कर दिया, कहने लगी- जय आप काफी थके हो, बस आराम से लेट जाओ।
मैं बिस्तर पर लेट गया, नीता जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगी तो मैंने नीता से कहा- यहाँ पर यह सब ठीक नहीं है।
नीता कहने लगी- क्या ठीक है क्या गलत है इन बातों को छोड़ो।
मैंने कहा- नीता कमरे को लॉक कर दो।
तो नीता कहने लगी- कमरा मैंने पहले ही लॉक किया हुआ है।
वह मेरी निकर उतार कर मेरे लण्ड को चूसने लगी। मुझे भी मजा आने लगा, जैसे ही मेरा लण्ड तन कर पूरे आकार में आया, नीता मेरे लण्ड को अपनी चूत पर रखकर बैठने लगी। नीता को थोड़ा सा दर्द हुआ पर वो उसको सहन करते हुए ऊपर से धक्के लगाने लगी और मैं भी नीता का साथ देने लगा। मैं कभी उसकी चूचियों को दबाता तो कभी नीता के चूतड़ों पर हाथ चलाता।
नीता बहुत जल्दी झड़ गई और मेरे ऊपर लेट गई, मेरा लण्ड नीता की चूत में फँसा था और अभी भी अपने पूरे आकार में था।
मैंने नीता से कहा- सब ठीक है ना?
तो कहने लगी- हाँ, सब कुछ ठीक है !
मैंने नीता को बिस्तर पर लिटाया और अपने होंठ नीता की गीली चूत पर रख दिये और 2-3 मिनट तक अपनी जीभ नीता की चूत में चलाता रहा। जब नीता को मजा आने लगा तो मैंने नीता के पैर अपने कन्धोंम पर रखे और और अपना लण्ड धीरे-धीरे नीता की चूत में घुसाने लगा। जब मेरा लण्ड आराम से चलने लगा तो मैंने नीता से कहा- नीता जी, तैयार हो ना?
तो नीता कहने लगी- मैं अब तुम्हारी हूँ, जैसे मर्जी, वैसे करो।
मैं नीता को सटासट पेलने लगा और नीता भी मेरा पूरा साथ देने लगी। 6-7 मिनट के बाद मैंने नीता को कहा- अब तुम बिस्तर से नीचे आकर हाथ बिस्तर पर रख कर झुक जाओ।
नीता बिस्तर से नीचे उतर कर उसी पोज में हो गई और मैं पीछे से अपना लण्ड नीता की चूत पर रख कर धक्के लगाने लगा, फिर नीता के बाल पकड़ कर धक्के लगाने लगा। अब मैं नीता को पूरा मजा देना चाहता था और नीता भी पूरा मजा लेने लगी। मैं कभी नीता के स्तन पकड़ कर मसलता तो कभी उसके पेट को सहलाता और कभी उसके बाल पकड़ कर खीचता।
नीता के मुँह से बस यही आवाज आ रही थी- करो और करो ! आज मुझे मदहोश कर दो !
और मै तो बस नीता को पेले ही जा रहा था।
10-15 मिनट के बाद मेरा शरीर भी जवाब दे गया, मैं नीता की चूत में झड़ गया और ऐसे ही नीता को लेकर बिस्तर पर लेट गया।
3-4 मिनट बाद मैंने देखा कि नीता मेरे फोन से कमल के साथ फोन पर कुछ बात कर रही है।
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