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प्रेषक : विक्की कुमार
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्ते ! हर व्यक्ति की जिन्दगी में कुछ ऐसे हसीन पल आते हैं, जिन्हें याद कर वह प्रसन्नता का अनुभव करता है। ऐसा ही एक खुशनुमा अनुभव मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ।
मैं एक कम्पनी के अन्तर्राष्ट्रीय विभाग में मार्केटिंग का कार्य देखता हूँ। हालांकि मैं एक इन्जीनियर हूँ किन्तु मुझे घूमना-फिरना व नये-नये लोगों से मिलना बहुत अच्छा लगता है, अतः मैंने जीवन-यापन के लिये मार्केटिंग का कार्य पसन्द किया। इस कम्पनी से पहले मैं जिस कम्पनी में था, उसके कार्य से मैंने पूरा भारत कई कई बार घूमा है, अतः उसमें मुझे बोरियत होने लग गई थी। अब मैं कुछ नया चाहता था, जब मुझे इस नई कम्पनी में मुझे अन्तर्राष्ट्रीय मार्केटिंग विभाग में ऑफर मिला तो मैं बहुत खुश हुआ कि चलो दुनिया देखने को मिलेगी। अल्प समय में ही मैंने अपने बॉस को अपने बेहतरीन कार्य से खुश कर लिया, उसके फलस्वरुप मैं अब तक दुनिया के सभी महाद्वीपों में 35 से ज्यादा देश घूम चुका हूं। कुल मिलाकर एक शानदार जिन्दगी जी रहा हूँ।
लगभग तीन वर्ष पूर्व एक ऐसी यादगार घटना हुई जो मैं कभी भूल नहीं सकता हूँ।
हुआ यह कि एक कार्य के सिलसिले में मुझे बर्लिन जाना था। तो मैंने अपना विमान नई दिल्ली स्थित इन्दिरा गान्धी इन्टरनेशनल एयरपोर्ट से ही लिया। हर बार विदेश आते समय मैं एक ही तरीका अपनाता हूँ कि किसी भी देश जाना होता है तो मैं यात्रा के मध्य में एक बार अपनी फ्लाईट ट्रान्सफर जरूर करता हूँ ताकि उस नये देश में रुक कर उस नगर को भी देखता चलूँ। इस प्रकार एक नये देश, नई संस्कृति को लगभग निशुल्क देखने का मौका मिल जाता है। इस बार यदि मैं चाहता तो बर्लिन जाने के लिये जर्मन एयर लाइन लुफ्तहन्सा से भी जा सकता था, लेकिन मेरा मन तुर्की के खूबसूरत शहर इस्तन्बुल को देखना का हो रहा था, अतः मैंने अपना टिकट टर्किश एयर लाईन से बुक कराया ताकि मैं इस्तन्बुल होकर बर्लिन जा सकूँ।
इस्तन्बुल के लिये मेरी उड़ान का समय सुबह के चार बजे था, किंतु मैं रात लगभग बारह बजे ही एयरपोर्ट पहुँच गया क्योंकि होटल में मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैंने सोचा कि इससे तो एयरपोर्ट पर ही चलकर समय बिताउँगा, क्योंकि वहाँ का नजारा बहुत रंगीन होता है।
मैं एक जगह बैठ कर देशी-विदेशी लड़कियों को देख कर नयन-सुख का आनंद ले रहा था। यदि कोई लड़की पसंद आ जाती तो उसका चक्षु चोदन भी कर लेता था। अब बैठे बैठे और कर भी क्या सकता था। नई दिल्ली से इस्तन्बुल का यात्रा समय लगभग आठ घंटे का था। अब इंतजार करते करते मैं भगवान से यही खैर मना रहा था कि बगल में कोई जवान विदेशन बैठा देना। लेकिन मेरे पुराने अनुभवों को देखकर ऐसा लगता था कि हो सकता है कि कोई सत्तर वर्ष की देशी बुढ़िया आ जाये। लेकिन समस्या यह थी कि यहाँ मेरी कोई मर्जी नहीं चल सकती थी क्योंकि बोर्डिंग पास बनाने वाले लोगों से तो मेरी कोई जान पहचान तो थी नहीं !
तभी मेरे दिमाग में एक ख्याल आया। अन्तर्राष्ट्रीय यान छुटने के लगभग तीन घंटे पहले एयरलाइन के काउंटर शुरु हो आते हैं। तो मैं करीब एक बजे टर्किश एयर लाईन के काउंटर के पास में एक तरफ हट कर खड़ा हो गया ताकि उस यान से जाने वाले यात्रियों पर नजर रख सकूँ।
लगभग पौने घंटे तक खड़े रहने के बाद मेरी हिम्मत भी जवाब देने लगी क्योंकि मेरी मनपसन्द कोई लड़की या औरत अकेली आती नहीं दिख रही थी। मैं निराश हो चला था कि तभी अचानक मेरा दिल व दिमाग दोनों की घंटियाँ बजने लग गई। एक बेहद खूबसूरत ब्लांड विदेशन लाईन में लगने की ओर अग्रसर हुई, तो मैं भी एक पल गवांए बगैर उसके पीछे खड़ा हो गया क्योंकि एक सेकंड की देरी का मतलब था कि उसके और मेरे बीच में किसी और का आकर खड़े हो जाना।
अब वह गौरी-चिट्टी विदेशन ठीक मेरे आगे लाइन खड़ी थी। मैं सोचने लगा कि अब कैसे उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर उससे दोस्ती का सिलसिला शुरु करूँ। लेकिन उसका ध्यान तो आगे की तरफ था, वह पीछे पलट कर नहीं देख रही थी।
लगभग दस मिनट के बाद ऐसे ही लाईन आगे खिसकी तो मैंने अपनी सामान वाली ट्राली से उसे हल्की सी टक्कर मार दी। तो उसने पलट कर पीछे देखा तो मैंने उससे माफी मांग कर कहा- आपको चोट तो नहीं आई? यह सब मेरी गलती से हुआ है।
उसने भी कहा- नहीं, कोई बात नहीं ! मुझे चोट नहीं लगी है !
उसके बाद मैंने उससे कहा- आप मेरे सामान का ध्यान रखना, मैं इमिग्रेशन के फार्म लेकर आता हूँ, क्या मैं एक फार्म आपके लिये भी एक ले आऊँ?
तो उसके हाँ करने पर उसके लिये भी एक फार्म लेकर आ गया। अब उसके पास लिखने के लिये पैन नहीं था अतः मैंने उसका यात्रा विवरण उससे पूछकर इमिग्रेशन फार्म में भरा तो पता चला कि उसका नाम क्रिस्टीना है, वह फ्रेन्च है और वह नई दिल्ली से इस्तन्बुल होकर पेरिस जा रही है।
फार्म भरने के दौरान मेरी उससे थोड़ी जान-पहचान तो हो ही चली थी कि इतने में उसका नम्बर आ गया था। जब तक उसको बोर्डिंग-पास इश्यु हुआ, तब तक मैं यही खैर मनाता रहा कि उसके पास की सीट खाली हो।
जैसे ही मेरा नम्बर आया तो टिकट काउंटर पर खडी आफिसर से मैंने कहा- कृपया मेरी सीट क्रिस्टीना के पास वाली ही देना !
तो उसने पूछा- क्या आप साथ में हो ?
तो मैंने कहा- हाँ !
उसने भी ज्यादा पूछ्ताछ नहीं की क्योंकि शायद उसने हम दोनों को बात करते हुए देख लिया था। मुझे यह तो पता चल गया कि क्रिस्टीना की सीट खिड़की वाली है और मेरी उसके पास बीच वाली। अब समस्या मात्र कार्नर में गली वाली सीट के यात्री की थी। मैंने सोचा- अब यहाँ तक ठीक हुआ है, शायद आगे भी अच्छा ही होगा।
अब प्रफुल्लित मन से अपना सामान जमा करा कर व बोर्डिंग पास लेकर क्रिस्टीना को ढूंढने दौड़ा। हालांकि मुझे पता था कि वह कहीं नहीं जा रही, आखिरकार उसे मेरे पास ही तो बैठना है, लेकिन मेरा बावरा मन एक भी पल नहीं गंवाना चाहता था। मुझे वह आगे ही खड़ी मिल गई, वह इमिग्रेशन काउंटर ढूंढ रही थी कि मुझे देखकर खुश होती हुई बोली- अब किधर से आगे जाना है?
मैंने कहा- चलो मेरे साथ !
हम फिर इमिग्रेशन लाइन में खड़े हो गये, मात्र पाँच मिनट में ही हम अपने पासपोर्ट पर ठप्पा लगवाकर, फिर अपनी सेक्योरिटी चेकिंग के बाद अंदर हो गये। अब भी हमारे पास एक घण्टा और बाकी था। मैंने उसे काफी की पेशकश की तो उसने भी खुशी से स्वीकार कर लिया क्योंकि रात के तीन बज चुके थे और थकान हो चली थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
अब हम लाउंज के अन्दर बने एक काफी हाउस में बैठे थे। क्रिस्टीना ने अपने बारे में बताया कि वह एक आर्टिस्ट है, पेन्टिंग बनाती है और पेरिस में रहती है। वह अभी मात्र तीन दिन पहले ही दिल्ली आई थी। यह उसकी भारत की पहली यात्रा थी। वह एक दिल्ली में लगी अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में फ्रान्स का प्रतिनिधित्व करने के लिये आई थी। कल वह इस्तन्बुल पहुंचने के बाद पेरिस के लिये अगली फ्लाईट लेकर चली जायेगी। उसे दुख था कि वह दिल्ली के अलावा भारत में कोई अन्य शहर नहीं घूम पाई। उसकी ताजमहल देखने की बहुत इच्छा थी।
काफी पीते-पीते हमारी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी। मैं क्रिस्टीना के फीगर के बारे में आपको बताना ही भूल गया। वह इतनी खूबसूरत थी जैसे कोई माडल हो, उम्र लगभग तीस वर्ष, एकदम संगमरमरी गौरी चमड़ी, जैसे नाखून गड़ा दो तो खून टपक जायेगा, ब्लांड (सर पर गोल्डन कलर के लम्बे बाल), अप्सराओं जैसा अत्यन्त खूबसूरत चेहरा, बड़ी-बड़ी नीली आँखें जिनमें डूबने को दिल चाहे, तीखी नाक, धनुषाकार सुर्ख गुलाबी रंगत लिये हुए होंठ, अत्यन्त मनमोहक मुस्कान जो सामने वाले को गुलाम बना दे, लम्बाई लगभग पांच फीट छह इंच, टाईट जींस, लो कट टाप जिसमें वक्षरेखा साफ दिख रही थी। ऊपर से एक हल्की ऊनी जर्सी क्योंकि सर्दियों के दिन थे।
ओह क्षमा करें, मैं खास बात तो बताना ही भूल गया कि उसके स्तन 34, कमर 26 और गाण्ड 36 ईंची थी। इन सब बातों का सारांश यह निकलता था कि उसे पहली बार देखने पर किसी भी साधु सन्यासी का लण्ड भी दनदनाता हुआ खड़ा होकर फुंफकारे मारने लगे। सोने पर सुहागा यह कि वह एक शानदार जिस्म की मालिक होने के साथ साथ ईटेलिजेंट भी थी क्योंकि उसका सामान्य ज्ञान भी बहुत अच्छा था।
अब काफी पीने के बाद वायुयान में जाने के लिए निर्धारित गेट की ओर चले, तभी रास्ते में एक बुक-शॉप देखी तो मेरे दिमाग में एक विचार आया। मैंने क्रिस्टीना से कहा- तुम्हारे जैसी कलाकार जब भारत आई है तो मैं अपने देश की तरफ से तुम्हें एक उपहार देना चाहता हूँ।
तो उसने पूछा- क्या दोगे?
तो मैंने कहा- अब तुम कलाकार हो तो निश्चित रूप से तुम्हें उसी प्रकार का उपहार ही दूंगा।
फिर उसे लेकर मैं बुक-शॉप में घुसा और पेंटिंग की कुछ किताबें देखी, लेकिन मेरा मन तो उसे वात्स्यायन की विश्व प्रसिद्ध कामसूत्र की पुस्तक देने का था। फिर मैंने कामसूत्र पर आधारित दो-तीन किताबें छांटी और उसे दिखाई कि क्रिस्टीना, यह भी विश्व प्रसिद्ध हैं, क्या तुम इसके बारे में जानती हो?
तो वह नाम देखकर चहुंकी और बोली- हाँ, मैंने इसका नाम सुना है पर कभी पढ़ी नहीं हैं और मैं इसे लेना पसंद करूंगी।
आखिरकार मैं भी तो यही चाहता था। मैंने 2800 रुपये देकर पुस्तक खरीद ली। हालांकि विदेशी लोग थोड़े उन्मुक्त होते ही है और क्रिस्टीना तो एक कलाकार भी थी, अतः मैं कोई गलतफहमी नहीं पाल सकता था कि वह पट गई है। हाँ इसकी जगह कोई देशी लड़की होती और उसे अगर मैंने कामसूत्र की किताब दी होती तो शायद दूसरी बात होती। उसके इस प्रकार के उपहार को स्वीकार करने का मतलब ही यही होता कि वह मेरे साथ बिस्तर पर लेटने को तैयार है।
अब यान में प्रवेश करने का समय भी हो चला था तो हम अपने निर्धारित गेट तक आ पहुँचे।
तब क्रिस्टीना ने पूछा- आपकी सीट नम्बर क्या है?
क्योंकि मैंने उसे यह नहीं बताया था कि हम दोनों की सीट आसपास है।
मैंने दोनों के बोर्डिंग पास मिलाकर चेक करने का नाटक किया और बताया कि हम दोनो साथ साथ ही बैठेंगे तो उसने खुशी जाहिर की। थोडी देर बाद हम वायुयान के अंदर थे। हमारी सीट यान के पिछले हिस्से में थी। बोईंग यान की एक लाइन में कुल दस सीटें थी, दोनों तरफ खिड़कियों की तरफ तीन-तीन व बीच में चार सीट थी। अब सबसे पहले खिड़की की तरफ क्रिस्टीना बैठी, फिर उसके पास वाली सीट पर मैं, व मेरे बाईं तरफ की फिर गलियारे वाली सीट के अलावा बीच वाली चारों सीटें भी खाली ही पड़ी थी। सिर्फ उस पार खिड़की की तरफ एक बुजुर्ग दम्पत्ति बैठे थे। उस दिन भीड़ कम थी। अब तक तो सब कुछ मेरे हिसाब से ही हो रहा था।
अब तक सुबह के चार बज चुके थे और उड़ान शुरु हुई। कुछ ही मिनटों में दिल्ली की लाईटें ओझल हो गई। क्रिस्टीना बातूनी किस्म की लड़की थी, अतः मुझे उसके साथ दोस्ती करने के लिये बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ी। मैंने सोचा कि बातें करते करते तो अभी समय निकल जायेगा और मैं हाथ मलता रह जाउंगा। तो मैंने फिर उसे कामसूत्र की याद दिलाई कि यह वात्स्यायन द्वारा करीब दो हजार वर्ष पहले लिखी गई थी और यह पेंटिंग तकरीबन पिछले 400 से 600 वर्षों के दौरान बनाई गई थी। इतना कहते ही उसके अंदर का कलाकार जाग उठा और उसने कामसूत्र की किताब का पैकेट खोल लिया। चून्कि कामशास्त्र मेरा पढ़ा हुआ था, अतः उसे समझाने में कोई विशेष परेशानी नहीं हुई। वह बड़ी रुचि से सुनती रही और पेटिंग भी देखती रही।
हालांकि कामशास्त्र के बारे में लोगों को गलतफहमी है कि यह पूरी किताब ही स्त्री-पुरुष सम्भोग के बारे में लिखी हुई है। उसमें ज्यादातर पाठ तो मानव-जीवन व सामाजिक व्यवहार के बारे में लिखे हुए है। इसमें मात्र एक पाठ ही सम्भोग कला और विभिन्न आसनों के बारे में है।
तो यान में मेरी कामशास्त्र की क्लास चल रही थी। इसी दौरान मैंने हम दोनो की सीटों के बीच लगा हुआ हत्था (आर्म रेस्ट) खड़ा कर कमर वाले हिस्से की तरफ चिपका दिया ताकि हम दोनों के बीच की दूरी खत्म हो जाये। अब थोड़ी ही देर में बातचीत करते हुए वह इतनी नजदीक आ चुकी थी कि होले-होले उसका जिस्म मुझे छूने लगा था। एक तरफ तो कामसूत्र की सम्भोग करती हुई पेंटिंग्स और दूसरी तरफ उसके गोरे जिस्म का स्पर्श ! मेरा लण्ड तो बिलकुल नब्बे डिग्री पर खड़ा होने लग गया पर मैं बहुत सम्भल कर बैठा था कि कहीं मेरी किसी छोटी गलती से वह नाराज ना हो जाए।
तब तक यान लगभग 35000 फीट की ऊँचाई तक पहुँच चुका था। फिर खूबसूरत तुर्की परिचारिकाओं ने लज़ीज़ खाना परोसा।
खाना खाने के बाद परिचारिका सबको औढ़ने के लिये कम्बल जैसी मोटी शाल दे कर चली गई। अब तक लोगबाग एक मूवी देख चुके थे, अतः थक कर धीरे धीरे अंदर की लाईटे बंद होने लगी, क्योंकि यात्री रात भर के जगे होने के कारण थके हुए थे। फिर एक दम अंधेरा हो गया. अब क्रिस्टीना ने भी शाल निकाली और ओढ़ कर बैठ गई और मुझसे बोली- अब नींद आ रही है, मैं थोड़ी देर झपकी लूंगी।
मैंने जी.पी.एस. मॉनीटर पर देखा कि हमारा विमान अफगानिस्तान की पहाड़ियाँ लांघ कर ईरान की सीमा में प्रवेश कर रहा था और विमान के इस्तंबुल पहुँचने में पांच घंटे का समय था। मैंने भी उसे गुड नाईट कहा, हालांकि मेरी इच्छा थी कि हम बैठे बैठे बातें करते रहें क्योंकि पता नहीं यह समय बाद में वापिस आयेगा या नहीं। मैं तो सिर्फ नाश्ते-पानी की सोच रहा था, लेकिन कहते हैं कि ऊपरवाला किसी को भूखा नहीं सुलाता है, ठीक उसी प्रकार उसने मेरे लिये 36 पकवान लगी हुई थाली का इन्तज़ाम कर रखा है तो निश्चित रुप से जमीन से 36000 फ़ीट की ऊँचाई पर तो ऊपर वाला याद आयेगा ही।
अब विमान में लगभग सम्पूर्ण अंधेरा था क्योंकि विमान के भीतर की बत्तियाँ बंद थी, दूसरी और विमान-परिचारिका आकर खिड़की भी बन्द कर गई थी। हालांकि बाहर अभी भी अंधेरा था क्योंकि जैसे जैसे हम पश्चिम की ओर जा रहे थे, तो हमें अंधेरा ही मिल रहा था, क्योंकि भारत में सूर्य पहले उगता है और पश्चिम में बाद में। कुल मिलाकर विमान में एकदम सन्नाटा छाया था, कहीं कहीं से खर्राटे की आवाज आ रही थी।
अब चूंकि मैंने सीतों के बीच का हत्था हटा दिया था, अतः हम दोनों के बीच कोई दूरी नहीं थी। थोड़ी ही देर में क्रिस्टीना नींद में झोंके खाती हुई मेरे दाहिने कन्धे पर सिर टिका कर सो गई, उसकी जांघें पहले से ही मेरी जांघों से सटी हुई थीं। हमारी सीट के सामने लगा हुआ जी. पी. एस. सिस्टम बता रहा था की बाहर का तापमान -05 डिग्री है, लेकिन मेरे अंदर तो भयानक आग लगी हुई थी, लग रहा था कि उस वक्त मेरे भीतर का तापमान हज़ार डिग्री से भी अधिक होगा। मेरा दिल बहुत तेज गति से धड़क रहा था, मुझे लग रहा था कि इसकी धड़कन की आवाज पूरे विमान में गूँज रही हो। अब मैंने सीट के सामने लगे छोटे से टीवी पर चल रही इंगलिश मूवी भी बन्द कर दी क्योंकि उससे भी हल्का प्रकाश आ रहा था।
अब क्रिस्टीना का सिर मेरे कंधे से फिसलने लगा, मैंने अपने हाथ का सहारा देकर उसे रोकने की सोची पर यह डर लगा कि कही इसकी नींद खुल गई तो हो सकता वह मेरे कन्धे से अपना सिर हटाकर दूसरी ओर खिड़की की तरफ नहीं कर ले, तो यात्रा का सारा मजा ख्रराब हो जायेगा।
अब मुझे लगा कि यदि मैंने क्रिस्टीना के सिर को नहीं सम्भाला तो उसकी नींद खुल आयेगी।
मैंने होले से अपने दाहिने कन्धे से उसका सिर मेरे सीने की तरफ लुढ़कने दिया और उसे अपने बायें हाथ के सहारे से बहुत धीरे धीरे से नीचे अपनी गोद की ओर ले आने लगा। इसी दरम्यान एक बार मैंने उसके कान में हल्के से बोला- क्रिस्टीना, यदि नींद आ रही हो तो आराम से सो जाओ !
तो वह कुनमुना कर बोली- मुझे बहुत नींद आ रही है, सोने दो।
अब मैंने अपनी बाईं तरफ की गलियारे की तरफ की सीट का हत्था भी ऊपर उठा कर सीट की बैक से मिला दिया। इस प्रकार अब मैंने तीनों सीटों को मिलाकर एक लम्बी सीट बना ली। अब मैं धीरे धीरे अपनी बाईं सीट की तरफ खिसक आया और अपने साथ क्रिस्टीना को भी आहिस्ता से अपने साथ ले आया। अब मैं सबसे बाई सीट पर बैठा था और क्रिस्टीना गहरी नींद में आराम से तीनों सीतों पर लेटी हुई थी क्योंकि उसका सिर अब मेरी गोद में था। इतना आहिस्ता आहिस्ता करने में मुझे लगभग 15 मिनट का वक्त लग गया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि उसकी नींद में कोई खलल पड़े और वह उठ कर बैठ जाये।
अब मैं खुश था कि एक विदेशन सुन्दरी मेरी गोद में लेटी हुई है। अब उसका सिर मेरे लण्ड पर टिका हुआ था तो मुझे ऐसा लग रहा था कि उसकी हालत ठीक वैसी ही होगी जैसे की महाभारत युद्ध में बाणों की शैया पर लेटे हुए भीष्म की हुई होगी। मुझे लग रहा था कि मेरा खड़ा लण्ड उसके सिर में बिल्कुल बाण की तरह चुभ रहा होगा। एक बार देखने में तो ऐसा लग रहा थी कि वह गहरी नींद में होगी। अब लगभग पांच मिनट का इन्तजार करने के बाद मैंने अपना दायां हाथ इस प्रकार से उसके पेट की ओर रखा कि जैसे किसी छोटे बच्चे को सीट से नीचे नहीं गिर आये तो सम्भालने के लिये रखना पड़ता है।
अब थोड़ी देर तक मैंने नज़र रखी कि क्रिस्टीना ने कोई हलचल नहीं की तो मैंने अपना हाथ आहिस्ता से उसके उन्नत-शिखरों की ओर खिसका दिया। अब मेरी बाहें उसके स्तन के निचले हिस्से को छूने लगी। मेरी हालत तो बिल्कुल मेरे बस में नहीं थी, हर क्षण मैं यही कोशिश कर रहा था कि कही मैं पागल होकर उस पर टूट नहीं पडूँ। पर मैंने अपना होश नहीं खोया।
आगे क्या हुआ, दूसरे भाग में पढ़ें !
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