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सबसे पहले मैं अपने पाठको को धन्यवाद देना चाहूंगी जिन्होंने मुझे ढेर सारे मेल किये। आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे उत्साहित किया कि मैं आपको अन्तर्वासना डॉट कॉम पर वो दास्ताँ सुनाऊँ जो मेरा पहला-यौन-अनुभव था या यूँ कह लीजिये कि मेरी पहली चुदाई!
दिसम्बर के महीने के आखिरी दिनों में पंजाब में बहुत से कश्मीरी आते हैं यहाँ कारोबार के लिए, जिन्हें हम झाँगी कहते हैं।
जब कश्मीर बिल्कुल बर्फ से ढक जाता है और वहाँ का कारोबार ठप्प हो जाता है तो ये कश्मीरी यहाँ आकर ऊनी कपड़ों का, शाल और कम्बल का स्टाल लगाते हैं।
ऐसे ही दो झांगी ने हमारे यहाँ कमरा किराये पर लिया, एक अंजुम जिसकी उम्र करीब 25 की और दूसरा मुश्ताक जिसकी उम्र 35-37 की थी।
उस वक़्त मेरी उम्र बीस साल थी, कॉलेज में बी.ए. की पढ़ाई कर रही थी, मेरी कामवासना चरम पर थी और मेरी जवानी लुटने को बेताब थी। मेरे सीने के उभार मसले जाने को तरस रहे थे, योनि में भी हलचल सी थी। मैं तब तक एकदम कोरी थी, कुंवारी थी, बिनचुदी थी.
सुबह की चाय हम उन्हें देते थे। दो दिन तक तो छोटू मेरा छोटा भाई उन्हें चाय देने गया। तीसरे दिन उसकी तबीयत ख़राब थी, इसलिए मैं उन्हें चाय देने गई।
जैसे ही अंदर पहुँची, मुश्ताक बाथरूम में था और अंजुम बिस्तर पर सिर्फ कच्छे में था। मुझे देख कर एकदम उठा और जल्दी से चादर ओढ़ ली।
मुझे हसीं आ गई और मैं शरमा कर भागती हुई नीचे आ गई पर मेरे अंदर हलचल सी हो गई थी क्योंकि मैंने उसके कच्छे के अंदर फुफकारता हुआ नाग देख लिया था और बार बार उसी के बारे में सोचती रही।
जब वो नौ बजे के करीब नीचे आया तो मेरी नज़रें उससे मिली, मैं फिर हँस पड़ी।
वो भी मुस्कुराता हुआ मेरे अंगों को नापने लगा। उसकी नज़र मेरे उभारों पर टिकी हुई थी जिसे मैं भांप गई थी और मैं भाग कर अंदर चली गई।
उनके जाने के बाद मैंने अपने वक्ष को टटोला। उस वक़्त मैं 32 इंच की ब्रा पहनती थी। उस दिन इनमें अजीब सी हलचल हो रही थी क्योंकि उसकी गोलाइयों को आज किसी ने बड़ी तीखी नज़रों से नापा था। सारा दिन मैं उसी के बारे मैं सोचती रही, रात भर भी सो न सकी।
अगले दिन भी सुबह मैं ही चाय लेकर गई, वो भी मेरा इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही आई, वो पठानों जैसी आवाज़ में बोला- मेमसाब! आप कल क्यों हँस रही थी?
मैं चाय रख के भागने को हुई, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैंने कहा- छोड़ो! अगर नीचे जल्दी न गई तो घर वालों को शक हो जायेगा। उसने कहा- मेम्शाब, एक बार गले मिल के किस तो दे दो! और मुझे बाँहों में भर के बेतहाशा चूमने लगा।
मैंने कहा- अंजुम छोड़ो, तुम्हारा साथी आ जायेगा! उसने कहा- रात को जब सब सो जायेंगे तब आओगी? मैंने कहा- यहाँ तुम्हारा साथी होगा! कैसे आऊंगी? वो बोला- वो कम्बल लेकर सोया रहेगा, आओगी? मैंने कहा- नहीं, मुझे डर लगता है! अब छोड़ो मुझे! उसने कहा- पहले वादा करो कि रात को आओगी! मैंने कहा- अच्छा देखूँगी!
किसी तरह अपने को छुड़ा कर भाग आई लेकिन उसने मेरी चूचियों को स्पर्श कर लिया था और मैं भी गर्म हो चुकी थी इसलिए मैंने भी आज अपनी जवानी लुटाने का मन बना लिया था।
रात को जब वो आया तो उसने इशारे से मुझसे पूछा- आओगी? मैंने भी हाँ में सर हिला दिया।
रात को साढ़े बारह बज़े जब सब गहरी नींद में सो गए, मैं उसके कमरे में चली गई वो मेरा इंतज़ार कर रहा था। उसने कहा- ओये जानेमन! हम तुम्हारा कब से इंतज़ार करता है! आ जाओ हमारा कम्बल में!
फिर कम्बल में आने के बाद उसने अपनी बाँहों में जकड़ लिया। उसका दूसरा साथी सोया हुआ था या सोने का नाटक कर रहा था। धीरे-धीरे उसने मेरी स्वेटर और कमीज़ ऊपर सरका दी और मेरे पेट को चूमता हुआ ब्रा के पास तक होंठ ले आया। पहले ब्रा के ऊपर हाथ फेरता रहा, फिर हल्के से ब्रा ऊपर सरका दी। दोनों चूचियों को अपने हाथ में लेकर मसलने लगा। मैंने आँखें बंद कर ली और मस्ती से भर गई।
मेरे चुचूक सख्त हो गए थे। फिर उसने मेरा दूध पीना शुरू कर दिया और दूसरे चुचूक को हाथ से सहलाता रहा। मेरी योनि पूरी तरह गीली हो रही थी। मैं पूरी गर्म हो गई थी और आँखें बंद की हुई थी। तभी मुझे एहसास हुआ मेरी एक चूची तो अंजुम के मुंह में थी तो दूसरी भी कोई चूस रहा है।
मैंने आँखें खोली तो देखा मुश्ताक भी चूची-पान कर रहा था। मैं अब क्या बोलती! बल्कि और ज्यादा ही मस्त हो गई। अब आप ही बतायें कि जिसके दोनों स्तन चूसे जा रहे हों वो कैसे सब्र कर सकती है। मैं तो स्खलित हो गई और दोनों के बालों में हाथ फेरने लगी।
आगे की फ्री सेक्स स्टोरी दूसरे भाग में! [email protected]
कहानी का अगला भाग : लुटने को बेताब जवानी-2
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