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मेरा नाम पायल है, मैं तेईस साल की और एक बच्चे की माँ हूँ।
मेरे स्वभाव में दो बातें शामिल हैं, एक तो मुझे गुस्सा बहुत आता है, दूसरा मैं काफी उत्तेजक तथा कामुक हूँ। क्रोध में मैं अपना मानसिक संतुलन खो बैठती हूँ, इसी गुस्से की वज़ह से मैं तीन वर्ष पूर्व मायके आ गई थी, पति के लाख मनाने पर भी वापस नहीं गई।इसकी एक खास वजह यह थी कि वे मुझे ठीक तरह चोद कर संतुष्ट नहीं कर पाते थे, ऐसा समझ लीजिये कि वे मेरी चुदाई इच्छा पूरी नहीं कर पाते थे, उनके पास रह कर भी मेरी भावनाएं इधर उधर भटकती थी।
मायके आकर मैंने एक नौकरी पकड़ ली थी। यहाँ मेरी मुलाक़ात एक युवक से हुई जो देखने में सुन्दर और स्वभाव से बहुत चंचल था। छोटी छोटी मुलाकातों में उसकी ओर खिंचती चली गई। उसका नाम प्रशांत था। प्रशान्त की चाहत ने दिल में एक आग और तड़प पैदा कर दी।
प्रशान्त को मालूम था कि मैं शादीशुदा और एक बच्चे की माँ हूँ। पता नहीं कहाँ से मेरे दिल में यह डर बैठ गया कि प्रशान्त मेरे प्रेम को ठुकरा न दे। ऑफिस में कई बार उससे बात होती थी मगर दिल का हाल होठों पर आने से पहले ही मेरे होंठ काँप उठते थे।
मेरी एक सहकर्मी है जिसका नाम जिमी है, वह गोवा की रहने वाली है, वो आधुनिक ख्यालों की है।
एक दिन बातों बातों में पता चला कि उसका तलाक हो चुका है। मैंने उसे अपनी परेशानी बताई। बस उस दिन से जिमी से मेरी दोस्ती हो गई, दरअसल मुझे एक ऐसे ही दोस्त की तलाश थी।
एक दिन प्रशान्त मेरे पास खड़ा होकर एक फाईल देख रहा था, उसे देख कर मेरी कामना भड़क रही थी, दिल में आग सी लगी थी। प्रशान्त उस आग से बेखबर था।
मैं अपने ख्यालों में ऐसा खोई बैठी थी कि मुझे इस बात का अहसास नहीं रहा था कि जिमी मेरा चेहरा देख कर मेरे दिल की बात पढ़ रही है।
मेरे हाथ में भी फाईल थी, प्यार में अन्धी होकर जिसे मैंने उल्टी पकड़ रखी थी, फाईल उल्टी है या सीधी मुझे इस बात का अहसास ही नहीं था, बस इतना जरूर पता था कि मेरी जांघों के बीच मेरी चूत तड़प रही है और अपनी जांघों को भींच कर उसे दबाना है, उसे भींच भींच कर मैंने नींबू की तरह निचोड़ दिया था, चूत के रस की चिपचिपाहट मुझे अपनी जांघों के बीच महसूस हो रही थी।
कुछ देर बाद प्रशान्त वहाँ से चला गया, मगर कुछ ही देर में जालिम मेरी चूत में एक आग सी भड़का गया, समझ में नहीं आ रहा था कि अब मैं इस चूत की आग को कैसे ठंडा करूँ, तभी मेरी नजर अपनी अँगुलियों पर गई जिनके बीच एक मोटा सा पेन फंसा था।
‘ओह, प्रशान्त काश तुम मेरे दिल की बात समझ सकते, काश मैं तुम्हें दिखा पाती कि इस पेन की तकदीर तुमसे कितनी अच्छी है!’
(मैं मन ही मन बड़बड़ा रही थी)
अब मैं वहाँ रूक नहीं सकती थी, मैंने पेन संभाला और चुपचाप बाथरूम की ओर चल दी। मैं अपनी कल्पनाओं में इतनी खो गई थी कि इस बात का पता भी नहीं चला कि दबे पांव कोई मेरे पीछे पीछे आ रहा है। मैं प्रशान्त को देख कर उत्तेजना में इतनी पागल हो जाती थी।
उस दिन भी ऐसा ही मामला था, मैं जल्द से जल्द बाथरूम में जाकर उस पेन के साथ अपनी कल्पनाओं में खो जाना चाहती थी। बाथरूम में पहुँच कर मैंने अपनी साड़ी अपने पेट तक उठा कर पकड़ ली, मुझे पेन्टी पहनने की आदत बिल्कुल नहीं है, (मजबूरन मासिक के दिनों में पेन्टी का सहारा लेना पड़ता है), मुझे इस बात का ख्याल ही नहीं रहा कि दरवाजे की कुण्डी नहीं लगाई है।
मैंने अपनी एक टांग उठा कर अपना पैर दीवार से सटा लिया अब मैं झुक कर अपनी चूत साफ़ देख सकती थी, उसका गीला गीला अहसास मुझे पागल बना गया। मैंने पेन सीधा पकड़ कर उसका मोटा भाग चूत की ख़ास जगह पर रखा तो उसकी फुदफुदाहट मुझे महसूस हुई- सीई .ई.. ई… मत तड़प मेरी रानी… यूँ न तड़प!
मैंने उसे पेन से सहलाया- हूँ… अब तेरा इस पेन के सिवा दूसरा सहारा नहीं है मेरी बिल्लो, मैं मजबूर हूँ… कि तेरे लिये इसके अलावा कुछ और नहीं कर सकती, आज तो तू इसी से अपना छोटा सा दिल बहला ले… कल से यहाँ तेरे लिये एक मोटी मोमबत्ती लाकर रख दूंगी!
मैं पागलों की तरह अपनी बेजुबान चूत से बातें कर रही थी, उसकी फूलाहत और छोटा सा मासूम मुंह मुझसे देखा नहीं जा रहा था, मैंने चूत के छोटे से मुँह पर पेन भिड़ा कर जैसे ही आगे धकेला कि धड़ाम से किसी ने दरवाजा खोला, मेरा मुंह दरवाजे की तरफ ही था, मेरी चूत में आधा पेन घुस चुका था और आधा मैंने पकड़ रखा था।
अचानक दरवाजा खुलने से मैं डर गई, सामने जिमी खड़ी थी- वाह… पायल वाह… तू इस बेचारी चूत को अच्छा पागल बना रही है, ऐसे तो तू इसका सत्यानाश कर डालेगी! उसका इशारा मेरी चूत की तरफ था।
‘ऊँ ऽऽ… फिर क्या करूँ? मैंने कहा- इस बेचारी को तो कोई सहारा ही नहीं दे रहा, बस अब तो ले देकर इसकी किस्मत में ऐसी चीजें ही रह गई हैं! मैंने अपनी चूत मे फंसा पेन निकाल कर उसे दिखाया।
‘ऐसी बात नहीं है पायल, इसकी तो मैं ऐसी चुदाई करवा दूंगी कि इसका दिल हमेशा खुश रहेगा।’ मैंने मचल कर कहा- क्या यह नेक काम हो सकता है?
‘अरे हाँ यार, अपनी ऑफिस में तो ऐसे ऐसे लंगूर है जो हर समय चूत चाटने को तैयार रहते हैं, जैसे वो अपना बूढ़ा चपरासी बाबू लाल!’ जिमी ने कहा।
‘नहीं मेरी चूत का दिल तो किसी और पर है!’ मैंने कहा।
‘हाँ बाबा मैं जानती हूँ कि तेरी चूत का दिल प्रशान्त पर आ गया है, बड़ा गलत आदमी चुना है इसने! वो तो एकदम सन्यासी टाइप का आदमी है।’
‘फ़िर कैसे बात बनेगी?’ मैंने कहा- यह कमीनी (चूत) तो उसी के इश्क की लात खाना चाहती है, ये कमीनी प्यार करने लगी है उसकी लात से!
‘वाह.. ..वैरी गुड!’ वह मेरी चूत की तरफ देख कर मुस्कराई- क्या इसने उसकी लात को देखा है? ‘नहीं रे!’ मैंने एक ठंडी सांस ली- बस यह इसकी कल्पना ही समझ ले!
‘काफी अक्लमंद लगती है यह!’ वह मेरे पास आकर झुकी और मेरी चूत को बड़ी बारीकी से देखने लगी, उसका यूँ मेरी चूत को देखना मुझे अच्छा लग रहा था, उसके देखने से मेरी पागल दीवानी चूत में सरसराहट बढ़ गई।
‘हूँ… इसकी अक्ल ठिकाने लगाने का मैं कोई बंदोबस्त करती हूँ, छोड़ इस पेन को! चल टेबल पर बैठते है और सोचते हैं कि इसके होश कैसे उड़ाए जाएँ!’ वह मुझे खींचते हुए बोली।
‘हाँ जिमी कुछ सोच यार! बेचारी तीन साल से आंसू बहाते हुए मेरा हर जुल्म बर्दाश्त कर रही है!’ मैंने कहा।
वह मुझे बाथरूम से खींच लाई और बाबूलाल को दो कॉफी लाने का आर्डर कर दिया, मेरे पूरे बदन में अब भी कसमसाहट हो रही थी। आज का दिन बहुत बुरा था, आज मेरी बदनसीबी में एक छोटा सा पेन भी काम न आया, जिमी गहरी सोच में डूबी थी, उसके सोचने का ढंग बता रहा था कि वह आज हर हाल में मेरी और मेरी चूत की तबियत हरी कर देना चाहती है।
‘कितने दिनों से तेरी गाड़ी का बोनट तप रहा है?’ उसने मुझसे पूछा।
‘तीन साल से यार, बुरा हाल है मेरा!’ मैंने उसे बताया।
‘किसी आदमी से तेरा पाला नहीं पड़ा?’ उसने हैरान होकर पूछा।
‘हूँ.. किसी आदमी से तो मेरा पाला नहीं पड़ा!’ मैंने कहा- हाँ तीन बेंगन और बीस मोमबत्तियाँ जरुर तोड़ चुकी हूँ मैं!
‘ठीक है, तुम्हारी बूर की हालत देखते हुए मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि फिलहाल तुम्हें बाबूलाल के पानी से अपना बोनट ठंडा करवाना होगा!’ उसने हंसते हुए कहा।
‘क्यों मजाक कर रही है यार, उस बुड्ढे के बस का है क्या मेरी चूत को ठंडा करना, क्यों मेरी तपती चूत पर नमक छिड़क रही हो?’ मैंने गुस्से में कहा।
‘मैं कौन होती हूँ तुम्हारी चूत में नमक छिड़कने वाली, वो तो आलरेडी नमकीन है!’ वो हंस कर बोली।
‘तो क्या तुम मेरी चूत का मजाक उड़ा रही हो?’ मैंने फिर गुस्से से कहा।
‘नहीं रे, तुम मेरी बात का गलत मतलब निकाल रही हो, मैं तो खुद बाबूलाल से अपनी चूत की गर्मी निकलवाती हूँ वो साठ साल का बूढा नहीं, साठ साल का जवान है!’ उसने मुझे समझाते हुए कहा।
‘ हुंह… ऐसे बुड्ढे तो टी.वी. पर च्यवनप्राश के विज्ञापन में ही दीखते हैं, मेरी गर्मी तो प्रशान्त जैसा गठीला जवान ही निकाल सकता है!’ मैंने तड़प कर कहा।
‘देख पायल, मैंने तुझसे अभी कहा कि मैं भी उससे अपनी चूत मरवाती हूँ, आदमी मेरा जांचा परखा है, फिर उसमे एक ख़ास बात है जो बहुत कम मर्दों में पाई जाती है।’ उसने कहा।
‘अच्छा,ऐसी क्या खास बात है उसमें?’ मैंने हैरान होकर पूछा।
‘उसका पेन 10′ लंबा और 3′ मोटा है मेरी रानी!’ उसने जवाब दिया।
‘हूँ… कोरी बकवास! ऐसी बात सिर्फ गधों और घोड़ों में देखी जाती है, एक आदमी का इतना बड़ा सामान कैसे हो सकता है?’ मैंने कहा।
‘तो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?’ वो गुस्से में बोली।
‘अभी तक तो मुझे यही लगता है, एक आदमी का लंड इतना बड़ा हो ही नहीं सकता है।’ मैंने जवाब दिया।
‘देख पायल, मैंने तेरी चूत को बारीकी से देखा, मेरी पारखी नजरें बता रही है कि 3 साल में वह पागल हो चुकी है, क्योंकि जब तुमने उसकी मुंह पर पेन फंसाया था तो उसके मुंह से सफेद बुलबुले छुट रहे थे, जब कोई कुतिया जून के महीने में पागल होती है तो उसका मुंह 24 घंटे खुला रहता है, इस समय तेरी चूत की हालत एक पागल कुतिया जैसी ही है।’ उसने मुझे समझाते हुए कहा।
उसकी बात सुन कर मैं सोच में पड़ गई, सचमुच उसकी हालत ऐसी ही थी। उसका मुंह हर समय खुला रहता था और चिपचिपी लार बहती रहती थी। क्या सचमुच मेरी चूत एक पागल कुतिया जैसी हो गई है? इस सवाल ने मुझे हिला कर रख दिया।
‘अब मैं क्या करूँ जिमी?’ मैंने घबरा कर पूछा।
‘घबराने की कोई बात नहीं है, तेरी पगली चूत का इलाज बाबूलाल जैसा बूढ़ा डाक्टर ही कर सकता है, उसका इंजेक्शन लम्बा और मोटा है, उसकी मार से ही इसका दिमाग ठीक होगा और सारी गर्मी बाहर निकलेगी।’ उसने मुझे समझाते हुए कहा।
‘ठीक है यार, देख लेते हैं तेरे बाबूलाल को भी!’ मैंने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए कहा।
तभी बाबूलाल कॉफी लेकर आ गया, कॉफी टेबल पर रखने के बाद बोला- और कोई सेवा मेडम?
‘बाबूलाल आज रात तुम्हारा चुदाई का खेल जमाना है।’ जिमी ने कहा। मैं उन दोनों का मुंह देखने लगी।
‘आज मूड नहीं है मेडम!’ बाबूलाल ने कहा।
बड़ी हैरत की बात थी, एक मर्द एक औरत की खुली ऑफर ठुकरा रहा था।
‘क्यों…?’ जिमी ने आँख निकाल कर पूछा।
‘अब तुम्हारी चूत की धज्जियाँ उड़ चुकी है, अब मजा नहीं आता है!’ बाबूलाल बोला।
‘धज्जियाँ उड़ाने वाला भी तो तू ही है, तू मेरी बात ठुकरा नहीं सकता!’ जिमी एकदम गुस्से में बोली।
‘खेल जम जाएगा मगर…!’ बाबूलाल हंसता हुआ बोला।
‘क्या मगर? जिमी ने आंखें निकाली।
‘आज कल थोड़ी कड़की है, दारू तक के फ़ाके हैं!’ बाबूलाल मायूस होकर बोला।
जिमी ने मुझसे 500 रु. लेकर बाबूलाल को देते हुए कहा- टाइम का ध्यान रखना! ठीक 10 बजे!
बाबूलाल चला गया, ऑफिस का टाइम खत्म हो चुका था, मैं घर चली आई, घर आकर मैं खूब रगड़ रगड़ कर नहाई, कोई दस बार अपनी चूत को साबुन से धोया, आदत के अनुसार साड़ी के नीचे पेन्टी नहीं पहनी।
घर में मैंने कह दिया कि जिमी के साथ शादी में जा रही हूँ।
ठीक 9.00 पर मैं जिमी के घर पहुँच गई, उस दिन चूत की बौखलाहट मेरे नियंत्रण से बाहर थी, वह मेरी जाँघों के बीच ऐसे फुदक रही थी जैसे लोहे के पिंजरे में चूहा फुदकता है।
मैं जिमी के घर पहुंची और यह देख कर हैरान हो गई कि वो घर में सिर्फ ब्रा और पेन्टी में घूम रही थी तथा उसने दारु भी पी रखी थी, उसकी गोल गोल बड़ी बड़ी चूचियाँ टाइट ब्रा के बंधन से मुक्त होने के लिए फड़फड़ा कर एक दूसरे से टकरा रही थी।
‘क्या वो आ गया?’ मैंने सोफे पर बैठते हुए पूछा। ‘नहीं बस आता ही होगा, आदमी टाइम का बड़ा पक्का है।’ जिमी ने कहा।
‘टाइम क्या हुआ है?’ मैंने उत्साहित होकर पूछा। ‘अभी तो सवा नौ ही हुए हैं!’ जिमी ने कहा,’ बस अब दस भी बज जायेंगे, बेटी, तुम्हारी इस चूत के बारह बजाने वाला आने ही वाला है!’ उसने मेरी चूत की तरफ इशारा किया और हंसने लगी।
‘यह कमीना बाबूलाल कब आएगा, बुरा हाल हो रहा है मेरा!’ मैं बेसब्र होकर बोली। ‘रूक, जब तक बाबूलाल नहीं आता मैं तेरी खुजली मिटाती हूँ।’ यह कह कर वो कमरे में चली गई।
जब वह वापस हॉल में आई तो उसके हाँथों में एक लंबा और मोटा डंडा था जिसके दोनों तरफ़ लंड के सुपाड़े की तरह गोल गोल बने हुए थे।
‘अब देख मैं क्या करती हूँ!’ वो बोली।
‘क्या इस डंडे से मेरी चूत को मारेगी?’ मैंने घबरा कर पूछा और अपनी जांघें भींच ली।
‘नहीं यार, मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुझ जैसी पागल औरत को शादी का टिकट किसने दे दिया, एक बच्चे की माँ होकर भी पागलों जैसी बात करती है।’
‘ओह.. माफ़ करना यार अब समझ में आ गया कि यह डंडा हमारे किस काम आ सकता है!’ मैंने झेंपते हुए कहा।
‘अब समझ में आ गया है तो अपनी साड़ी भी उतार फेंक!’ उसने अपनी पेन्टी और ब्रा उतार कर फेंकते हुए कहा।
मैंने भी अपने शरीर के एक एक कपड़े को नोच कर फेंक डाला। वे कपड़े अपने शरीर पर मुझे ही बुरे लग रहे थे।
अब हम एक दूसरे के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी, जिमी मेरे गुलाबी बदन को गौर से देखते हुए बोली- वाह!… क्या मस्त चूची है तेरी!’ और जोर जोर से चूचियाँ दबाने लगी- लगता है इन्हें बहुत कमी के साथ दबाया गया है! उसने चूची दबाते हुए कहा, उसके हाथ का स्पर्श मुझे रोमांचित कर गया।
‘माल तो तेरे पास भी बढ़िया है!’ मैंने भी उसकी चूची दबाई तो वो मुझसे लिपट गई।
‘सीई… ई… ई.. .बस… अब और ना दबा… इन्हें यार! मेरा अंग अंग फड़क उठता है!’ जिमी सीसीयाते हुए बोली।
‘हाय… मेरे अंदर की आग मुझे झुलसा रही है… जिमी…’ मैं उसकी चिकनी गांड को मसलते हुए बोली।
पाँच मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के अंगों को सहलाती और नोचती रही। हम दोनों की चूचियाँ फुला कर एक दूसरे से सटी हुई थी, चुचूक से चुचूक रगड़ खा रहे थे। फिर मुझे छोड़ कर वह डंडा उठा लिया जिमी ने, मेरी आँख भी उस पर जा टिकी, वह एकदम गोल और चिकना था।
‘इसकी लम्बाई कुछ ज्यादा नहीं है क्या?’ मैंने पूछा।
‘हाँ करीब 12 इंच है, मेरे हिसाब से 6-6 इंच हम दोनों के हिस्से आ जायेगा!’ जिमी डंडे को देखते हुए बोली।
हम दोनों आमने सामने ही खड़ी थी, जिमी ने बीच में वह डंडा फंसा कर उसका एक भाग अपनी…
शेष अगले भाग में शीघ्र ही!
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