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प्रेषक : बिग डिक
“लकी प्रोजेक्ट गाइड-२” में आपने पढ़ा कि स्मिता ने किस तरह मुझे बेवकूफ़ बनाया।
मुझे ‘पैशनेट और पावरफ़ुल लवर’ की संज्ञा देने के बाद उसने फ़ुसफ़ुसाते हुए मेरे कानों में कहा था “आपके फोटोग्राफ़्स नेहा ने भी देखे हैं…और वो जल जायेगी जब मैं उसको आज की बात बताऊँगी… बाय सर !”
“टेक केयर !” मैं किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा रह गया था…
फ़िर नेहा का मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम गया था…और मेरे होठों पे एक भेदभरी मुस्कान ना चाहते हुए भी आ ही गई थी…
नेहा की आँखें बड़ी-बड़ी थी…हिरणी जैसी…चेहरा गोल मासूम सा…प्यारा सा…बच्चों सा…। मैं उसको बच्चों की तरह ही समझता था…
पर अब जबसे स्मिता ने मुझे यह बताया था कि मेरा पूरा खड़ा प्रचंड लंड नेहा ने भी न सिर्फ़ देखा है…बल्कि ललचाई नज़रों से देखा है, तब से मेरी निगाहें बदल गई, मेरी नीयत बदल गई… मेरा नज़रिया बदल गया।
अब मैं उसके मासूम चेहरे को कम, उसके भरे और गदराये बदन को ज़्यादा देखता था। उसकी हिरणी जैसी आँखे मुझे सेक्सी लगने लगी थी। मैं कल्पना करता था कि उसके स्तन कितने बड़े होंगे… कितने भरे हुए…गोल-गोल.. सोचता था… उसके नितम्ब कितने पुष्ट होंगे….कितने मुलायम होंगे… सोचता था उसकी टांगें कितनी चिकनी होंगी….केले के तने जैसी।
मुझे उसके होंठ अब रसीले नज़र आने लगे थे। मैं जब भी उसको निहारता वो नज़रें झुका लेती थी… मेरी आँखों मे शायद कुछ और नज़र आने लगा था। मैं सोचता था जैसे शशि और स्मिता अपने आप आकर मेरी झोली में गिरी थीं नेहा भी गिरेगी.. और तब जबकि उसने मेरे दैत्यांग की तस्वीरें देखी थी।
मुझे तो यहाँ तक लगता था कि शशि और स्मिता ने अपनी कहानियाँ ज़रूर नेहा को सुनाई होगीं। पर नेहा तो नेहा थी… उसकी मासूमियत और औरतपन को पहले कदम बढ़ाना मंज़ूर नहीं था।
एक दिन लैब में मैं तीनों का सेशन ले रहा था… नेहा अचानक उठी और ‘एक्सक्यूज़ मी’ बोलकर बाहर टॉयलेट की तरफ़ जाने लगी। और मेरी निगाहें उसके नितम्बों पर जम गईं… मैं बोलना भूल गया… उन उठते-गिरते गोल-गोल उभरे नितम्बों को निहारता रहा।
अचानक मैंने देखा कि शशि और स्मिता मुझे देखकर मुस्कुरा रही हैं… मैं झेंप सा गया।
शशि ने कहा,”इसके लिये आपको खुद कोशिश करनी पड़ेगी .. शी इज़ डिफ़रेंट… वो खुद आपके पास नहीं आने वाली… थोड़ी शर्मीली है… बट आइ एम श्योर…. आप कुछ ना कुछ ज़रूर कर लेंगे।”
मैं ऑफ़िस में ऐसी बातें नहीं करना चाहता था, इसलिये मैंने कहा,”अब अपने काम की बात करते हैं !”
बात आई गई हो गई पर मेरे मन में नेहा को पाने की इच्छा तीव्र होती गई।
एक शनिवार को मैंने नेहा को अकेले पाकर पूछ ही लिया,”इस रविवार को क्या कर रही हो?”
“वंडर ला जा रहे हैं !” वंडर ला बैंगलोर से दस-बारह किलोमीटर दूर एक शानदार सा अम्यूज़मेंट पार्क है… जिसमें जॉय राइड्स के अलावा वाटर-पार्क्स भी हैं।
“बॉयफ़्रेंड के साथ?” मैंने भेदभरी मुस्कान के साथ पूछा।
“नहीं…परिवार के साथ…”
मैं मन ही मन खुश हुआ।
मैं रविवार को सुबह जल्दी उठा, नहाया-धोया, नाश्ता करके पिकनिक सैक उठाया और निकल पड़ा वंडर ला की ओर….अपने मंज़िल की तलाश में।
मैंने कुछ देर लेज़र शो देखा, क्रेज़ी राइड किया, टरमाइट राइड और न जाने क्या क्या किया पर सब बेमन से। मैं तो हर जगह सिर्फ़ नेहा को ढूंढ रहा था। चलते-चलते साइड-पाथ पे कोई भी आकर्षक पिछवाड़ा दिखता तो मैं तेजी से उसके आगे देखता कहीं नेहा तो नहीं। ग्यारह बज चुके थे और भीड़ बढ़ती जा रही थी। मैं जिगजैग राइड पे पहुंच गया जो घूमते-घूमते उलटी हो जाती है। दो चक्कर के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे फ़ाउन्टेन के पास कोई मेरी तरफ़ हाथ हिला रहा है। राइड रुकने के बाद मैंने उसे गौर से देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा…वो नेहा थी…परपल शॉर्ट स्कर्ट और पीकॉक टॉप में…सेक्सी नेहा।
राइड से उतरते ही मैं फ़टाफ़ट उसके पास गया !
“सर आप यहां कैसे?”
“तुम्हें ढूंढता हुआ चला आया..” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
उसने आंखें इस अंदाज़ में सिकोड़ी जैसे मेरे जुमले के पीछे छुपे मेरे इरादों को जानना चाह रही हो… और मेरे होंठों पर थी सिर्फ़ मुस्कान।
“आप बेशक मेरे साथ रहें पर इस तरह कि मेरे परिवार को पता नहीं चलना चाहिये कि आप और मैं एक दूसरे को जानते हैं !”
“ठीक है !”
सारा दिन मैं नेहा के साथ रहा और उसके साथ वालों किसी को पता नहीं चला। वाटर पार्क में हमने (खास तौर पर मैंने) बहुत मजे किये। शुरुआत मैंने की… वहाँ जहां पानी कमर तक था…पानी में डूबे-डूबे मैं अपने घुटने को उसकी नितम्बों के बीच रगड़ देता.. जब चार-पाँच बार के बाद कोई ऑब्जेक्शन नहीं हुआ तो मुझे लगा या तो यह इग्नोरेंट है या फिर घुटी हुई है।
जो भी हो.. शह पाकर बीच-बीच में मैं अपने घुटने उसकी चूत पे रगड़ देता। पहली बार में तो वो चिहुंक उठी पर ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही ना हो.. उसे पता ही नहीं चल पाया था शायद ! भीड़ के कारण शायद !
करीब आधे घंटे यही घटनाक्रम जारी रहा। अजीब पहेली होती जा रही थी ये नेहा, कुछ समझ में नहीं आ रहा थी चाहती क्या है?
फिर मैंने यही सिलसिला जारी रखा… नितम्ब, चूत और स्तनों को किसी भी ढंग से छू लेता। पानी के अंदर लावा जल रहा था…. मेरा लंड प्रचंड हो चुका था… पूरा लोहे का गरम रॉड… असाधारण और अनियंत्रित। मुट्ठ मारने की तीव्र इच्छा हो रही थी..पर मैं एक सार्वजनिक-स्थल में था… भीड़भाड़ में।
शाम चार बजे लहरें(वेव्स) शुरू होते हैं। ऐसा कृत्रिम माहौल बनाया जाता है जैसे समुद्र तट हो….लहरें आती और जाती हैं…फ़ेनिल उठता है और शांत हो जाता है…किनारे की रेत बह जाती है और वापिस आ जाती है….लोग गले तक जितने पानी में तैरने का मज़ा इस तरह उठाते हैं जैसे सागर तट उठाया जाता है।
मैं भी बह चला….इस जतन के साथ कि मेरा कमर के नीचे का हिस्सा कभी पानी के ऊपर ना आने पाये….और मेरा दुर्दांत लंड कहीं दिख न जाये…लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। जब लहरें उठी मैंने गोता लगाया…ऊपर आने ही वाला था कि मेरे लंड पे एक किसी के हाथ का कसाव महसूस हुआ। ऊपर आकर देखा कोई नज़र नहीं आया….
मैंने दुबारा गोता लगाया…..इस बार उस हाथ ने मेरी अंडरवियर खींचकर मेरे लंड को अपने हाथ में लिया। हाथ नाज़ुक सा था…..शर्तिया किसी लड़की का था। ऊपर आकर फिर वही शोर-शराबा और इतने चेहरे कि समझ में न आये कि ये हरकत है किसकी। मैं बहुत अच्छा तैराक या गोताखोर नहीं हूँ इसलिये ज़्यादा देर तक साँस रोक नहीं सकता फिर भी मैंने सोचा इस बार तो जान कर ही रहूँगा कि उस्ताद के साथ उस्तादी कर कौन रहा है।
मैंने फेफ़ड़ों में हवा भरा…गोता लगाया…और आँखे पानी के अंदर भी खोल के रखा…एक लहराते बालों वाला साया मेरे पास आया….और जैसे ही उसने मेरे लंड को पकड़ा मैंने उसके बाल पकड़ लिये। और पकड़े-पकड़े ही ऊपर आ गया और जैसे ही वह चेहरा ऊपर आया, मेरी आँखे फटी की फटी रह गईं और मुँह खुला का खुला….वो लड़की कोई और नहीं बल्कि सीधी-साधी दिखने वाली नेहा थी…
मंद-मंद मुस्कुराहट के साथ… शोख और नटखट मुस्कुराहट…. लंड मेरा उसने अभी भी पकड़ रखा था… हम दोनों आमने-सामने खड़े थे…. पानी लगभग छाती तक आ रहा था…. भीगी-भीगी नेहा और भी सेक्सी लग रही थी.. भीगे बाल… भीगे गाल… भीगे से होंठ… मेरा मन कर रहा था कि उन मुस्कुराते होंठों को चूम लिया जाये… चूस लिया जाय… पर हम बहुत लोगों के बीच में थे…
मैंने लगभग फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा,”आइ वान्ट टू किस यू !”
“यहाँ नहीं … इतनी भीड़ है… मेरे कज़िन लोग भी देख रहे होंगे !”
“हमारी तरफ़ कोई नहीं देख रहा है !”
“क्यों ना हम गोता लगायें?”
“गुड आइडिया !”
हमने साँस भरी… गोता लगाया…. पानी के अंदर मैंने उसके रसीले होठों को चूस डाला…. उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी… और अपनी आँखे बंद कर ली। हमारे आस-पास पानी ही पानी था…और हम प्यासे थे…।
साँस फूल गई और हम ऊपर सतह पर आ गये… ऊपर आकर थोड़ी दूरी बना ली ताकि किसी को शक न हो। दूर से ही एक दूसरे को इशारा करते…गोता लगाते…पानी के अंदर किस करते….मैं उसके स्तन दबाता… वो अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर मेरा लंड मसलती… मैं उसकी चूत की दरार को सहला देता। यह सिलसिला कुछ पाँच-छह बार चला।
अब मुझे एक नया विचार सूझा…
मैंने उसको डूबने का इशारा किया और अपना लंड पानी के अंदर निकालकर खड़ा हो गया…जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि नीचे कोई आया मैं उसके बाल पकड़कर उसका मुँह अपने लंड पर लगा दिया। वो जितनी देर सांस रोक सकती थी उतनी देर तक मेरा लंड चूसती रही।
क्या रोमांचक अहसास था… आस-पास भीड़… चेहरे ही चेहरे… आवाज़ें ही आवाज़ें… और वहां नीचे… पानी की गहराई और नीम अंधेरे में नेहा मेरा ८ इंच का लंड बाहर निकालकर बेसाख्ता चूस रही थी… और ऐसे चूस रही थी जैसे पूरा निगल जाना चाहती हो। वो एक अच्छी तैराक, अच्छी गोताखोर और एक अच्छी सकर (लंड चूसने वाली) थी…. और मैं बेकाबू हो रहा था….
नेहा बाहर आई… थोड़ी दूर जाकर उसने इशारा किया… मैंने पूरे फेफड़े भरकर गोता लगाया… जैसे ही एक जोड़ी गदराई टांगों के पास पहुंचा…उसने अपनी अंडरवीयर नीचे सरका दी… क्लीन शेव्ड चिकने.. पकौड़े की तरह फूले फांकों के बीच दो-ढाई इंच की दरार थी जो पानी के लहरों के साथ हिलकर अजीब सा रोमांच पैदा कर रही थी। मैंने नितम्बों को पकड़कर अपनी जीभ की नोक बनाकर धीरे से उस दरार में फिराया… उसके नितम्बों में एक कम्पन सी हुई और टांगें और चौड़ी हो गई जैसे निमंत्रण दे रही हों।
मैंने जीभ अंदर गुसेड़ा और भग्नासा को कुरेदने लगा… वो चूतड़ों को आगे-पीछे करने लगी.. इतने में मेरी सांस फूल गई और मैं बाहर आ गया…नेहा से दूर…
उसके चेहरे की तरफ़ देखा तो पाया कि वो बेचैन सी थी… शायद मैं अधूरा काम करके आ गया था…. शायद वो प्यासी रह गई थी…
अचानक सायरन बजा और लोग अपने-अपने कपड़े समेटने लगे… मैंने नेहा की तरफ़ देखा… उसकी आंखों में अतृप्ति थी और आमंत्रण था…।
बेमन से चेंज रूम में जाकर कपड़े बदले…. शाम के करीब छह बज चुके थे… लॉकर रूम से सामान लिया और बाहर आ गया… प्यासा…. अतृप्त…!
पार्किंग से अपनी गाड़ी उठाई… अनमना सा स्टार्ट किया…. और जैसे ही आगे बढ़ाने वाला था कि एक साया लपक के मेरे पास आया और पीछे वाली सीट पर बैठ गया… इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता… उसने अपने हाथ मेरे कमर पे कस दिये और धीरे से कहा “जल्दी चलिये..”
यह नेहा थी….
मैंने बाइक गियर में डाली और उड़ चला…. नेहा पीछे चिपक के बैठी थी, उसके उरोज मेरी पीठ में दब रहे थे… उसके बदन की गर्मी मेरे अंदर सिहरन पैदा कर रही थी…. उसके होंठ मेरी गर्दन पे आ गये थे और मैं उसके सांसों की बेचैनी महसूस कर सकता था… मन कर रहा था कि बाइक वहीं रोककर सारे बंधन तोड़ दो…
“कहाँ छोड़ दूँ तुम्हें?”
“सर आपके घर चलिये ना !” नेहा ने न शशि की तरह फोन करने का बहाना बनाया न ही स्मिता की तरह लिफ़्ट मांगने का। मेरी अधूरी हरकतों ने उसकी प्यास इस कदर बढ़ा दी थी कि उसमें शर्मो-हया या लिहाज कुछ भी बाकी नहीं रह गया था।
किसी ने एक बार मुझे बताया था “वुमन इज़ द सेकण्ड नेम ऑफ़ सरेन्डरिज़्म”…(औरत समर्पण का दूसरा नाम है)। नेहा ने मन समर्पण तो कर दिया था…अब तन समर्पण की बारी थी….
और मेरी बाइक हवा से बातें कर रही थी। एक घंटे का रास्ता हमने आधे घंटे में तय किया.. घर पहुँचे…साढ़े छह बज चुके थे…
दरवाजा खोलकर अंदर आये और अंदर आकर जैसे ही दरवाजा बंद किया नेहा मुझसे ऐसे लिपट गई जैसे बरसों बाद मिली हो…. और जनम-जनम की प्यासी हो… अपने उन्नत उरोज उसने इस कदर मेरे छाती में दबा दिये जैसे उन्हें निचोड़ डालना चाहती हो… उसके हल्के-हल्के भीगे बाल मेरे चेहरे पे आ रहे थे… उसके होंठ मेरी गर्दन पर थे… और उसके पूरे शरीर में अजीब सा कम्पन थी… ऐसा कम्पन न तो शशि में था न ही स्मिता में…ऐसी तड़प और बेचैनी न तो शशि में थी न ही स्मिता में…
मैं अपने हाथों में उसके नितम्ब थामे हुए था…. न सिर्फ़ थामे हुए था बल्कि हौले-हौले सहला भी रहा था…
मेरा लंड इस कदर अकड़ चुका था कि लगता था अभी पैंट फाड़ के निकल पड़ेगा। नेहा मुझे इतने जोर से भींचे हुए थी कि उसकी फूली हुई चूत मेरे लंड के उभार को महसूस कर रही थी… और वो अपने चूतड़ धीरे-धीरे मेरे उभरे लंड पे रगड़ रही थी। मैंने उसका चेहरा अपनी गर्दन से हटाया.. दोनों हाथों से थाम कर उसके रस के प्यालों को अपने लबों के हवाले कर दिया….हमारे निचले अंग अभी भी कपड़ों के ऊपर से ही एक दूसरे का चुम्बन कर रहे थे।
जब नेहा से जब्त न हुआ तो अचानक वो अपने हाथ नीचे ले गई और मेरे पैंट के बटन खोलकर उसे नीचे गिरा दिया और अंडरवियर कि ऊपर से ही मेरे अंग का जायजा लेने लगी… उस अंग का जिसे उसने अभी तक सिर्फ़ फ़ोटो में देखा था… उस अंग का जिसे पाने की कल्पना ने उससे उसकी मासूमियत और शर्मीलापन छीनकर मेरे घर में… मेरे तसव्वुर में ला दिया था… उसकी दोनों आंखें बंद हो गई…शायद कल्पना में…मैंने उसकी बंद आंखों को चूम लिया।
उसने धीरे से…बहुत ही नज़ाकत के साथ मेरी अंडरवियर भी नीचे सरका दी.. और मेरे लंड को दोनों हाथों में दबोच लिया… दो लसलसी बूंदें लंड के टिप पे छलक आई थीं….नेहा ने अपनी उंगली मेरे लंड की गर्दन पे (जहां सुपाड़ा खत्म होता है और लंड का दंड शुरू होता है) फ़िराना शुरू कर दिया….
क्या कामोत्तेजक एहसास था…. पता नहीं नेहा ने यग जादू कहां सीखा था। उस दिन मुझे पता चला कि मेरा (और शायद सभी मर्दों का) सबसे सेन्सिटिव स्पॉट कहां होता….लंड की घिर्री पर जनाब !!!
मैंने नेहा को हर जगह चूमा… गाल पे… होंठों पे… कनपटी के नीचे… ईयरलोब्स पे… गले पे… कांख पे… पीठ पे… दोनों मधुघटद्वय के बीच दरार पे… तने हुए मुनक्के के आकार के चुचूकों पे…. नाभि पे (मेरी पसन्दीदा जगह)… नितम्बों पे… पिछली दरार पे… जांघों पे (आगे से भी.. पीछे से भी)… पिंडलियों पे… पैरों पे… तलवों पे… रानों पे… हर जगह…. तकरीबन हर जगह चूमा…
सिर्फ़ योनि को जान बूझ के छोड़ दिया…!!!
नेहा की उतेजना का कोई ठिकाना नहीं था… आहें…कराहें… और सिसकारियों का समां था… मैं नेहा को उसकी सहनशीलता की हद तक पहुँचा चुका था… ज्वालामुखी बस फटने ही वाला था…
अचानक नेहा ने मेरे सर के बाल पकड़े… मुझे झुकाया और अपने जांघों के बीच पहुँचा दिया… और जैसे ही मेरी नाक उस उभरी हुई योनि से टकराई… नेहा ऐंठने लगी.. और अपने कूल्हे हिलाने लगी… उसकी अंडरवियर नम को चुकी थी… उससे भीनी-भीनी खुशबू निकलकर मेरे नथुनों से टकरा रही थी… मैंने उसकी स्कर्ट उठाई… धीरे से अंडरवियर नीचे सरका दिया….और मेरे सामने था जानलेवा और कातिलाना दृश्य…
शफ़्फ़ाक….. क्लीन शेव्ड…मोटे-मोटे उभरे पकौड़ों के बीच.. एक छोटी सी घुंडी निकलने को आतुर हो रही थी… और उसके नीचे था कुछ दो-ढाई इंच का चीरा…छोटे-मोटे झरने की तरह बहता हुआ…
मैंने नेहा के दोनों नितम्ब थामे और उस घुंडी को कुरेदने लगा…
नेहा लगभग उछल रही थी… और उसी सामंजस्य में उसके दोनों घटक उछल रहे थे… कुछ देर तक योनि-कलिका को कुरेदने के बाद मैंने जीभ को पूरा चौड़ा करके दरार पे फ़िरा सा दिया..
नेहा ने पूरी ताकत से मेरे बालों को पकड़ा.. और इस तरह दबाया मानो मेरा पूरा सर अपनी योनि में घुसेड़ देना चाहती हो….
मैंने अपनी तर्जनी पे थूक लगाया और योनि में प्रविष्ट कर दिया…. नेहा ने अपने चूतड़ों के इस तरह आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया मानो वो मेरी अंगुली नहीं मेरा लंड हो…
मैंने सर उठाकर उसके मासूम चेहरे और उत्तेजना से बंद हुई आँखों को देखा…. इतना प्यार आया कि मैं अपनी अंगुली को आगे-पीछे हिलाते-हिलाते खड़ा हो गया… और उसके रसीले होंठों को चूसने लगा….
मेरा तन्नाया हुआ लंड उसकी रानों से टकराने लगा…
जैसे ही उसको इस बात का एहसास हुआ उसने मेरे लंड को पकड़ा और योनिद्वार पे… जहां मेरी तर्जनी आगे-पीछे हो रही थी.. वहां रगड़ने लगी… कामरस टपक रहा था… मैंने उसकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए अंगुली बाहर निकाल ली और उसकी एक टांग उठाकर अपने कमर के गिर्द लपेट लिया…योनिद्वार थोड़ा और खुल गया…
उसने अपने दोनों हाथ मेरे गर्दन पे लपेट दिये और अपना दूसरा पैर भी मेरी कमर पे लपेट दिया…मेरे नितम्बों के ऊपर उसने अपने दोनों पैरों से जकड़ बनाकर अपनी चूतड़ों को आगे-पीछे हिलाने लगी… इशारा समझते ही मैंने एक हाथ से उसके योनिपटों को फ़ैलाया…. और दूसरे हाथ से अपना लंड पकड़कर उसके अग्रभाग को नेहा के हल्के से खुले हुए योनिद्वार पे लगा दिया…
इस बार जैसे ही वो अपनी कमर को पीछे खींचकर आगे लाई… लंड का सुपाड़ा पट्ट से अंदर चला गया.. और नेहा “आआआआह” कहकर मुझसे चिपट गई… जब करीब तीस सेकंड तक वो ऐसे ही चिपकी रही तो मैं उसके नितम्बों को पकड़कर आगे-पीछे करने लगा… दस मिनट तक यूं करने के बाद नेहा की चूत काफ़ी पनीली हो गई और अब वो बहुत रफ़्तार से अपनी कमर हिलाने लगी…. धप्प..धप्प..धप्प…
धीरे-धीरे… इंच-दर-इंच मेरा पूरा लंड उसकी लसलसाई चूत में समा गया… जड़ तक समा गया…. सिर्फ़ टट्टे (अंडकोष) ही बाहर रह गये थे… और हर धक्के के साथ दोनों टट्टे उसकी गांड से ऐसे टकराते… मानो रूठ गये हों और शिकायत कर रहे हों और कह रहे हों,”हमको यहां तो अंदर जाने दो !”
तकरीबन बीस मिनट बाद नेहा ने बहुत जोर-जोर से धाप मारना शुरू कर दिया और…करीब पन्द्रह-बीस धक्कों के बाद मुझे पूरी ताकत से भींच कर चिपट गई…
उसने मुझे दोनों हाथों… दोनों पैरों और दोनों स्तनों से भींच रखा था….
मैं अभी भी अपने लंड को आगे-पीछे करने को जद्दोज़ेहद में लगा था…
एक बार बहुत जोर से मुझे भींचने के बाद जब वो निढाल सी हो गई तो मैंने उसे वैसे ही पकड़कर… अपना लंड उसकी चूत में फ़ंसाये हुए… बमुश्किल चलता हुआ बिस्तर पर ले आया…. वैसे ही उसकी कमर को पकड़कर लिटाया…और मिशनरी पोज़िशन में शुरू हो गया…
पांच मिनट बाद अचानक मैं इतनी जोर से धक्के लगाने…कि नेहा फिर से अपने गांड उछाल-उछालकर मेरा साथ देने लगी… दस मिनट बाद मेरा लंड उसकी चूत में फूलने-पिचकने लगा और मैंने एक जोरदार धक्का देकर पूरा लंड अंदर किया जो सीधा बच्चेदानी में जा टकराया… और उसके साथ ही एक हाई प्रेशर की पिचकारी उसके बच्चेदानी में छिड़काव करने लगी… और मैं भरभरा के नेहा की जवानी में समा गया…!
नेहा ने मुझे कस के अपनी बांहों में भर लिया और अपनी चूत का इस तरह संकुचन करने लगी जैसे कि मेरे लंड से निकला हुआ एक-एक क़तरा निचोड़ लेना चाहती हो… और फ़ुसफ़ुसाते हुए मेरे कानों में कहा,”देयर वाज़ नो एग्ज़ाजरेशन व्हाट स्मिता टोल्ड अबाउट यू !”(जो भी स्मिता ने आपने बारे में बताया उसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं थी)
थैंक यू शशि, स्मिता, नेहा…और वो तमाम लड़कियाँ जिन्होंने मुझे वो खुशगवार लम्हे दिये…और मुझे यह समाज-सेवा सिखाया। मैं आज भी समाज-सेवा में लगा हुआ हूं और तब तक लगा रहूंगा जब तक लड़कियों की रवानी है…सलामत मेरी जवानी है और लंड में पानी है।
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