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नमस्ते दोस्तो! मेरा नाम नयन है, अब मेरी उम्र 31 साल है पर बात तब की है जब मैं अट्ठारह साल का था. मैं बारहवी में पढ़ रहा था.
मेरे बाजू वाले घर में वीणा रहती थी. हमारा उनके यहाँ आना जाना तो था, थोड़ी मस्ती भी करता था पर गलत इरादे न उसके थे न मेरे थे.
मुझे मेरे मामा के घर जाना था. गाँव का नाम बताना यहाँ ठीक नहीं होगा लेकिन रात भर का सफ़र था, वीणा को भी गाँव जाना था, उनके बच्चे छुट्टियों में गाँव गए थे उनको वापस मुंबई लाना था. उनका गाँव मेर मामा से गांव से नजदीक था तो वो भी मेरे साथ आने को निकल पड़ी. अब उनको भी अकेले जाने से अच्छा था कि मेरे साथ जाये!
बस में भरी भीड़ थी छुट्टियाँ जो थी. हमें मुश्किल से पीछे वाली दो सीट मिली, सामान रखने की भी जगह नहीं थी. तो वीणा ने अपनी सूटकेस अपने पाँव के नीचे रख लिया. मैं खिड़की के साथ में बैठा था. बस निकल पड़ी अपने मुकाम की तरफ.
रात के 10 बजे होंगे जब हम निकले. टिकट कटवाने के बाद बस की लाइट बंद हो गई और कब नींद आई पता ही नहीं चला.
नींद में ही मेरे हाथ साथ में बैठी वीणा को लगा और मेरी नींद खुल गई. वीणा की साड़ी कमर तक ऊपर आ गई थी. मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि सूटकेस रखने की जगह नहीं होने के कारण उन्होंने जो सूटकेस अपने पैरों के नीचे रखा था उस वजह से उनके पैर ऊपर हो गए थे और साड़ी फिसल के कमर तक आ गई थी. अब मेरी हालत देखने लायक थी. क्या करूँ समझ में नहीं आ रहा था.
तो मैंने भी नींद में होने का नाटक किया और धीरे धीरे मैं उनको हाथ लगाने की कोशिश करने लगा. डर तो बहुत लग रहा था कि कहीं उनकी नींद न खुल जाए. लेकिन जो आग मेरे अन्दर भड़कने लगी थी वो मुझे शांत कहाँ बैठने दे रही थी, तो मैंने भी नींद का नाटक कर के अपना हाथ चलाना चालू रखा. अब मेरा हाथ धीरे धीरे उनकी पेंटी को छूने लगा था. मेरी नजर हमेशा यही देख रही थी कि कहीं वो नींद से न जग जाय.
बस में काफी अँधेरा था और मैं एक नई रोशनी ढूंढ रहा था. मेरा हाथ अब उनकी जांघों पे फिसल रहा था. इतने में उन्होंने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया. मेरी तो डर के मारे जान ही निकल गई. मुझे लगा कि वो जग गई लेकिन वो तो गहरी नींद में थी. अब मैं थोड़ी देर वैसे ही रुका रहा.
लेकिन इस चक्कर में हम दोनों में जो दूरी थी वो और कम हो गई और इसको मैंने ऊपर वाले की मेहरबानी समझा. अब मेरी हिम्मत बढ़ने लगी थी और मेरा हाथ अब थोड़ी और सफाई से चलने लगा था लेकिन फिर भी सम्भाल के जांघों पे हाथ फेरने के बाद अब मैंने धीरे से उनकी पेंटी में हाथ घुसाया. बाल तो एकदम साफ किये हुए थे. अब मैं उनकी चूत को धीरे धीरे सहलाने लगा लेकिन एकदम संभल के.
थोड़ी ही देर में उनके बदन से अजीब सी खुशबू आने लगी थी और मेरी उंगली गीली हो गई थी, उनकी चूत अब पानी छोड़ने लगी थी. अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि वो सच में सोई है या उनकी नींद खुल गई है. लेकिन एक बात तो ध्यान में आ गई थी कि कोई भी औरत इतना सब करने के बाद भी सो नहीं सकती. अब मेरी हिम्मत तो बढ़ गई थी लेकिन मन में डर अब भी था. कही ओ सच में सोई हुई तो नहीं. लेकिन अब रुकना मेरे बस में नहीं था सो मिने भी सोचा जब उठ जायेगी तब देख लेंगे. वासना पे किसी का जोर नहीं चलता.
मैंने हिम्मत की और एक हाथ से उनकी चुत में उंगली करना चालू रखा और दूसरा हाथ उनकी चूची की तरफ बढ़ाया और धीरे से उन्हें मसलना चालू किया. मेरी जिंदगी का यह पहला अनुभव था और इतनी आसानी से मौका मिलेगा ये मैंने सोचा भी नहीं था. उनकी हलचल तो बढ़ गई थी लेकिन वो आँखें खोलने को तैयार नहीं थी. शायद अब उनका पानी निकलने को था. तो मैंने भी मेरी उंगली की रफ्तार बढाई और उन्होंने मेरी उंगली को अपनी चुत की फांकों से दबा कर रखा. शायद वो शांत हो गई थी. लेकिन मेरा तो लंड एकदम तना हुआ था. क्या करू समझ में नहीं आ रहा था. मैंने उनका हाथ उठाया और मेरी चैन खोल के लंड को बाहर निकला और उनके हाथ में दे दिया. लेकिन वो कुछ भी करने को तैयार नहीं थी. तो मैंने फिर से उनकी चूची को दबाना चालू किया, चुत में उंगली भी डालना चालू रखा पर कुछ फायदा नहीं हुआ.
पूरी रात निकल गई जाने कितने बार ओ झड़ गई थी पर मेरे लंड से पानी नहीं निकला था. अब मेरे लंड में दर्द शुरू हो गया था. तो मैंने अपने हाथ से ही धीरे धीरे लंड हिलाना चालू किया 3-4 बार ही हिलाया था के मेरा भी पानी निकल गया. फिर नींद कब लग गई पता ही नहीं चला.
सुबह 8 बजे गाड़ी हमारे गांव में पहुँच गई. वीणा ने मुझे उठाया और हम बस से उतर गए. यहाँ से हमारे रस्ते अलग होने थे. मुझे बड़ा दुःख हो रहा था कि जिंदगी का पहला सेक्स अनुभव और वो भी अधूरा ही रह गया. मैं देख रहा था कि उनके चहरे पे कोई भाव नहीं था. मैंने रात को उन के साथ कुछ किया हो ऐसा कुछ भी नहीं जता रही थी. जैसे कुछ हुआ ही नहीं… मैं उदास था कि अब मुझे अपने मामा के यहाँ जाना था और वो अपने बच्चो को ले कर वापस मुंबई जायेगी.
लेकिन एक बात तय थी कि वो सोई नहीं थी, सोने का नाटक कर रही थी. और मुझे इस बात की ख़ुशी थी कि आज भले ही मैं कुछ नहीं कर सका लेकिन मैं जब वापस मुंबई जाऊँगा तो शायद मेरा काम बन जाये… और मैं जिंदगी का पहला सेक्स वीणा के साथ ही करूँगा.
आगे की कहानी किसी दूसरे दिन बताऊँगा. अगर आप को मेरी आगे की कहानी जाननी है तो मुझे लिखे कि आपको मेरी ये कहानी कैसी लगी. मेरा इ मेल आई डी है [email protected]
आगे की कहानी: मेरे बस के सफ़र से आगे का सफ़र-2
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