This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000
लेखिका : नेहा वर्मा
मैंने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा ही था कि मेरे सामने मेरी जवानी का लुफ़्त उठाने के लिये लोगों की नजरें उठने लग गई थी। उनकी नजरें जैसे मेरे उभारों को मसल कर रख देना चाहती थी। जिसे देखो उसकी नजरें मेरी उभरती हुई चूंचियों पर ही पड़ती थी, मानो अन्दर मेरी नंगी चूंचियों को टटोल रही हो। फिर उनकी नजरें सीधी मेरी टाईट जीन्स में चूत को ढूंढती थी, कि शायद वहां कुछ नजर आ जाये। सबसे अधिक मेरे सुडौल चूतड़ों को लोगों की नजरें सहलाती थी। क्या बच्चे, क्या जवान और फिर बूढ़े तो कमाल ही करते थे, उनकी आंखों में चमक आ जाती थी और बड़ी आस भरी नजरों से मेरी जवानी को ताकते थे।
उनकी इस कमजोरी को मैं जानती थी, और जान कर के मैं इस बात का आनन्द उठाती थी। मैं भी उसके लण्ड की ओर चुपके से देखा करती थी और उसके उठान को देख कर मेरी चूत भी फ़डक उठती थी। उनके ढीले पेण्ट में से कुछ तो हिलते हुये दिख ही जाता था। बूढों में ये खास बात होती है कि वे लड़कियों की बात अपने मन में ही रखते हैं और युवा और जवान इसे सभी को बताते हैं।
घर पर आकर मैं वासना की मारी मोमबत्ती को ऊपर से लौड़े का शेप देकर उसे कभी गाण्ड में तो कभी चूत में घुसा लेती थी। इसी चक्कर में मेरी चूत की झिल्ली फ़ट चुकी थी, पर मैंने यह मोमबत्ती चूत और गाण्ड में घुसेड़ना बन्द नहीं किया। पर मुझे इसको घुसेड़ने से पत्थर जैसा अह्सास होता था। चूत का दाना मल कर और चूंचियों की घुन्डियाँ मसल मसल कर अपना रति-रस निकाल ही लेती थी। मेरी उमर के जवान युवक युवतियाँ इस बात को समझते होंगे कि जवानी मात्र एक बला है और ये सभी को चोदने या चुदवाने को प्रेरित करती है। पर लण्ड कोई मिलता ही नहीं था। बस मर्द कहने को ये मेरे शर्मा अंकल ही थे जिनसे मैं चुदने का भरकस प्रयत्न कर रही थी। उनकी पत्नी लगभग तीन वर्ष पहले एक बीमारी में चल बसी थी। तब से वो कुंवारा सा जीवन यापन कर रहे थे।
उन्हीं बूढ़ों में से … बूढ़े तो नहीं पर हां… उसके नजदीक ही थे… मेरे मकान मालिक भी थे। कहने को तो वो मुझे बेटी कहते थे पर जवान लड़कियों में मर्दों को पहचानने की एक खास नजर होती है। मैं भी उन्हें खूब पहचानती थी। उनके बेटी कहने का अन्दाज मेरे दिल को घायल कर देता था। क्योंकि कहीं पे निगाहे कहीं पे निशाना रहता था। मुझे लगता था कि अंकल की यह वासना भरी कभी तो उन्हें मुझे चोदने पर विवश करेगी। शायद यही रिश्ता बना कर मेरे नजदीक रहना चहते थे। मेरे कॉलेज से आने के बाद मुझे वो खाना खिलाते थे फिर मैं सो जाती थी। शाम को शर्मा अंकल कार में घूमने जाते थे और मुझे जरूर पूछते थे।
झील की पाल पर वो दूसरे बुजुर्ग लोगों के साथ घूमते थे और मैं जवान लडकों के झुण्ड के बीच इठलाती हुई टहलती थी। अधिकतर तो यह होता था कि कोई ना कोई मेरी क्लास का साथी मिल जाता था, और अन्य लड़के बेचारे आह भरते हुए मेरी अदा पर फ़्लेट हो जाते थे। मेरे उभरे हुए मटके जैसे गोल-गोल चूतड़ उनके दिल में कहर ढाते थे। मुझे याद है कि एक बार मेरे पीछे एक मेरा क्लास का साथी पिट भी चुका था… यानि मेरे पीछे झगडा…।
उन जवान बूढों के बीच भी मैं खूब इतराया करती थी और उनकी चहेती बन गई थी। वे तथाकथित बूढ़े कभी कभी मुझे बेटी कहकर मेरे गालों पर प्यार भी कर लेते थे और उनकी तबीयत फिर से रंगीन होने लगती थी। मुझे मालूम था कि यह प्यार नहीं है, उसमें मुझे वासना की महक आती थी। फिर आता था दौर सामने बनी दुकानों पर आईसक्रीम या चाट खाने का, अंकल मुझ पर खूब खर्चा करते थे। वहां से सीधे घर पर आते थे। जब कभी मैं अंकल के साथ नहीं होती थी तो वो मुझे जरूर पूछा करते थे।
अंकल घर पर आकर मुझे कमरे में छोड़ने आते थे, फिर मैं उन्हें एक गरमा-गर्म चाय पिलाती थी। इस दौरान मैं उनकी दिल की इच्छा पूरी कर देती थी। उन्हीं के सामने मैं अपने कपड़े बदलती थी, उन्हें जानबूझ के अपने जवान सुडौल चूतड़ पेण्टी के ऊपर से दिखाती थी। शमीज के ऊपर से ही उन्हें मेरे छोटे छोटे उभरते हुये मम्मे भी दर्शाती थी और घर के कपड़े पहन लेती थी। उन्हें यह दर्शाती थी कि जैसे मुझे सेक्स के बारे में कुछ नहीं मालूम। पर उन्हें क्या पता था कि मैं उन्हें मजबूर करके चुदवाऊंगी और साथ में पैसे भी वसूलूंगी। और एक दिन ऐसा आ ही गया कि शर्मा अंकल ने मुझे लपेटने की कोशिश की और मैं झम से उनकी गोदी में जा गिरी और हो गया वासना का गर्मा-गर्म खेल। फिर तो मैं खूब चुदी और आज तक उन्हें नहीं छोड़ा है। जानते हो इसका राज… जी हां वो मेरी सारी जरूरतें पूरा करते थे।
आज भी मैं शर्मा जी के सामने कपड़े बदल रही थी। हमेशा की तरह उनका लण्ड खड़ा हो गया। मेरी जवानी की गहराईयों और उभारों को वो बडी बेदर्दी से नजरें जमा कर अन्दर तक देख रहे थे। वासना के मारे मेरी भी चूत के पास पेण्टी गीली हो गई थी। मैंने जानकर अपनी चूत का गीलापन उन्हें दिखाया। गीलापन देख कर उनकी आंखे चमक उठी। अब शायद उनके मन में आया होगा कि इस पार या उस पार। उन्होंने अचानक ही कहा “अरे नेहा बेटी, देख ये तेरे पांव पर क्या लगा है…!”
उनका नाटक मुझे मालूम था। मैं जान कर के उनके बहुत पास चली आई कि उन्हें मेरे शरीर का स्पर्श भी हो जाये। पहले तो मुझे शरम सी लगी, फिर मैंने अपना दिल कड़ा करके अपनी छोटी सी स्कर्ट जांघ तक उठा कर कहा,” ये यहां…?”
और उन्होंने मेरी जांघ सहला दी। उनका लण्ड खड़ा हो कर सलामी दे रहा था।
“अंकल ये तो तिल है… ये देखो यहाँ पर भी है… ये देखो !” मैंने अपना स्कर्ट और ऊंचा करके चूतड़ तक उठा दिया। ऐसा करने में मुझे बहुत शरम आई। मेरे गोरे गोरे चूतड़ देख कर उनसे रहा नहीं गया। मैंने उन्हें जानकर के उकसाया। उन्होंने अपना हाथ मेरे तिल पर फ़ेरते हुये एक चूतड़ पर भी घुमा दिया। चूतड़ पर हाथ लगते ही मेरा पूरा शरीर जैसे झनझना गया। मुझे लगा कि ये बुड्ढा तो अब मुझे चोद के ही मानेगा। मैंने अपनी चूंची पर तिल भी अपनी कमीज पूरी ऊपर उठा कर दिख दी। और मेरा दिल जोर से धड़क उठा। मेरे छोटे छोटे चूचुक देख कर अंकल तो पागल से हो गये। मैंने आंखे बंद कर ली, बस इन्तज़ार था चूचियों के पकड़े और दबाये जाने का… जैसे इन्तज़ार सफ़ल हुआ… उन्होने इस बार भी चूची के तिल को मेरी चूंची के साथ सहला दिया। उनका लण्ड पूरे उफ़ान के साथ पटकियाँ मार रहा था।
“अरे हां रे तेरे तो बहुत से तिल हैं…” उनकी आंखे फ़टी जा रही थी और लण्ड पैण्ट में ही तम्बू बना रहा था।
“अंकल और हाथ से सहलाओ ना… मुझे तो अच्छा लगने लगा है।” मैंने घायल पंछी के गले पर जैसे चाकू रख दिया। शर्मा जी अब बदहवास से होने लगे। उन्होने मुझे अपनी जांघो पर बैठा लिया और मेरी चूंचियां बड़े प्यार से सहलाने लगे। पंछी फ़ड़फ़ड़ा उठा…
“बेटी, तुम्हारे मम्मे तो बड़े प्यारे प्यारे हैं, रोज ही मुझसे मालिश करवा लिया करो!”
मेरी चूत में गीलापन और बढ़ गया। मैं अंकल की गोदी में बैठ गई। बैठते ही उनका खड़ा लण्ड मेरी गाण्ड से टकरा गया। मै उस पर अपनी गाण्ड दबा कर बैठ गई। अंकल कुत्ते की तरह लण्ड को बार बार उठाकर यहाँ-वहाँ मारने लगे। अब तो अंकल का लण्ड लग रहा था कि चूत में घुस ही जायेगा। पंछी अब काबू में था, अब कही नहीं जा सकता था वो।
“नेहा बिटिया, जरा ठीक से बैठ ना… अभी लग रही है !” अंकल में कसमसाते हुये कहा।
“अंकल मजा आ रहा है… और आप भी है ना इस उम्र में भी शरमाते हो !” मैं चोट पर चोट किये जा रही थी।
” ओहो… तू तो कितनी शरारती है… ये ले … बस अब तो मुझे भी मजा आया ना?”
शर्मा जी ने अपनी पैण्ट की जिप खोल दी और अपना तन्नाया हुआ नंगा लण्ड मेरी नंगी चूतड़ों की दरार में फ़िट कर दिया। मुझे उनके भारी लण्ड का नक्शा चूतड़ों के बीच महसूस होने लगा। मुझे दिल में एक मीठी सी गुदगुदी हुई और मैंने अपने अपने बदन को उनके ऊपर ढीला छोड़ दिया। जोश में अंकल ने मेरे होंठो को अपने होंठो से चूम लिया। मुझे विरोध ना करते देख कर अंकल के होंठ फिर से मेरे होंठो पर जम गये और मेरे नरम नरम अधरों का रसपान करने लग गये। मुझसे भी रहा ना गया, मैंने अपनी आंखे बंद कर ली और स्वर्ग जैसे सुख को भोगने लगी। आनन्द से भर उठी।
अंकल का लौड़ा मेरी गाण्ड में जोर मारने लगा था। मेरी गाण्ड में बड़ी तेज गुदगुदी सी होने लगी थी। मुझे मोमबत्ती की तरह उनका लण्ड गाण्ड में घुसता नजर आया।
“नेहा बेटी, आज मुझे आण्टी की याद आ गई… वो भी मेरी गोदी में मेरे लण्ड को ऐसे ही गाण्ड में घुसेड़ कर बैठती थी।” अंकल के लण्ड की टोपी पर चिकनाई की कुछ बूंदे निकल आई थी।
“अंकल, क्या मैं पेण्टी उतार दूँ… पूरा ही लण्ड गाण्ड में घुसेड़ दीजिये… मन में मत रखिये। आपका तो इतना चिकना हो रहा है !”
जाने कैसे मेरे मुख से यह निकल पड़ा। अंकल ने मुझे प्यार से खड़ा किया और आधी उतरी हुई पेण्टी नीचे खींच कर उतारने लगे।
” ये पेण्टी तो गीली हो गई है … क्या बहुत मजा आ रहा था ना।” अंकल ने चोदने के मूड़ में कहा।
“हाय अंकल … ऐसे मत कहिये ना… बस मुझे आण्टी वाला आनन्द दे दीजिये !” मैं उनके ये कहने से वास्तव में शरमा गई थी।
“नेहा, एक राज की बात बताऊं, आण्टी तो सालों से ठण्डी ही रहती थी, उनके जिस्म को हाथ भी नहीं लगाने देती थी, आखिर के दिनों में तो यूँ समझो कि हम भाई बहन की तरह रहते थे, भले ही वो मुझे राखी ही बांध दे !”
यह उनका मजाक था या वास्तविकता थी, पर उनका यह कथन उनके दिल की पीड़ा दर्शा रहा था। पर मैं तो मात्र लण्ड की भूखी थी। मैंने हंस कर उनकी बात टालते हुये उन्हें फिर से रूमानी दुनिया में ले आई। अंकल ने अपना लण्ड बाहर ही रखते हुये अपना पैण्ट और चड्डी उतार दी।
“लण्ड से खेलोगी…?”
“कैसे अंकल?”
“इसे हिलाओ, इसे मुठ मारो, इसकी चमड़ी ऊपर नीचे करो, मेरे लाल लाल सुपाड़े को सहलाओ, उसे प्यार करो, चूसो, टट्टों की चमड़ी को चुटकियों से मसलो, गोलियों को धीरे धीरे सहलाओ… ”
“इससे मजा आता है क्या …?”
“हां बहुत आनन्द आता है, लण्ड फ़ूल कर कड़क हो जाता है और फिर इसे चूत में लेने से असीम आनन्द आता है !”
“अरे वाह … यह तो मुझे मालूम ही नहीं था…” मेरा दिल खुशी के मारे उछलने लगा था। हाय इस अंकल की तो मैं…
“तो आओ बिस्तर पर आराम से सब कुछ करेंगे…” अंकल बिस्तर पर जा कर लेट गये।
मैंने कूलर चला दिया और साथ में सीलिंग फ़ेन भी। नंगे शरीर पर मस्त ठण्डी हवा आग का काम रही थी। मैंने अलमारी से अपनी लण्ड के आकार वाली मोमबती भी निकाल ली। अंकल यह सोच सोच कर ही अपना लण्ड कड़क किये जा रहे थे कि उन्हें अब सालों बाद शारीरिक सुख मिलने वाला है। मुझे उनकी इस हालत पर दया आ गई। उनके कहे अनुसार मैं एक एक करके उनके लण्ड के साथ खेलती रही। बीच बीच में उन्हें चूम भी लेती थी, उनकी गाण्ड में अंगुली भी कर देती थी। उनके टट्टों के साथ खेलने लगती थी, फिर हाथ में लेकर लण्ड पर मुठ मारने लगती। मैंने उनका लण्ड फ़िल्मों की तरह मुख में ले लिया और मुठ मार मार कर चूसने लगी। उनके चूतड़ भी ऊपर उठ उठ कर जैसे मुख को चोदने लगे। तभी मैंने मोमबत्ती को अपने थूक से गीला किया और उनकी गाण्ड में घुसाने लगी।
“अरे, ये क्या कर रही हो…? अच्छा धीरे से घुसाना… तो मजा आयेगा”
“अंकल आपने कभी ऐसा किया है?”
” नहीं मोमबत्ती तो नही, पर जवानी में मैंने कई बार गाण्ड मरवाई है और मारी है !”
और मैंने धीरे से उनकी गाण्ड में मोमबत्ती घुसेड़ दी। और लण्ड पर मुठ मारने लगी। लण्ड को चूसती भी जा रही थी। वो ज्यादा देर तक खेल को सह नहीं पाये और हाय कहते हुये उन्होंने अपना वीर्य छोड़ दिया। सारा वीर्य मेरे मुख में भरने लगा, मुझे बड़ी घिन आई, पर फ़िल्मों में जैसा देखा था मैंने उसे पीने की कोशिश की… सफ़ेद सफ़ेद सा, चिकना सा, लसलसा सा… पर एक बार तो मैं गटक गई। फिर किसी छिनाल की तरह उनका लण्ड पूर साफ़ कर दिया।
अंकल 50 वर्ष के थे… सो थक गये थे और उन्हें नींद आ गई। उनका शरीर अच्छा था, मुझे लगा कि 50 वर्ष शायद अधिक नहीं होते है… उनका बलिष्ठ लण्ड अभी भी किसी घोड़े की तरह ठुमक रहा था । मैं बाथ रूम में जाकर नहाई और फ़्रेश हो कर बाहर आ गई और कम्प्यूटर पर बैठ गई। रात को ग्यारह बजे उनकी नींद टूटी। उन्होंने उठ कर मुझे खाना खाने को कहा और अपने कमरे में चले गये। वहाँ से वो नहा धो कर खाना खाने बैठ गये। डिनर के बाद उन्होने मेरी बांह पकड़ी और अपने बेड रूम की तरफ़ ले चले। मैं खुशी से झूम उठी…
“अंकल अब क्या करोगे?… ठहरो मोमबत्ती तो ले लूं !” यह बात सुन कर अंकल मुस्करा उठे।
“अभी तक किया ही क्या है… अब सुहागरात के मजे ले लें !”
“ये सब नहीं यार अंकल, अब तो बस वही हो जाये…”
“हां उसी को तो सुहाग रात कहते हैं…!”
“क्या… चुदाई को सुहागरात कहते हैं … सीधे सीधे चुदाई की रात नहीं कहते?”
मेरे और अंकल के कपड़े एक एक करके उतरते जा रहे थे। अब दोनों ही मदरजात नंगे खड़े थे और हां साथ में उनका लण्ड भी खड़ा था। उनकी हालत देख कर मेरी हालत भी बिगड़ती जा रही थी। अंकल ने मुझे मुस्करा कर देखा और अपने हाथ खोल दिये, मैं पगली सी उनकी बाहों के घेरे में आती चली गई। अंकल के मुख से ठण्डी सी आह निकली। उनकी बाहें मेरी कमर पर कसती चली गई। उनका लोहे जैसा लण्ड मेरी चूत में गड़ने लगा। मैं अपनी चूत धीरे से सेट करके लण्ड लीलने का प्रयत्न करने लगी।
मेरी हालत किसी बिन चुदी कुतिया की तरह हो रही थी… चूत लण्ड मांग रही थी। चूंचियां कठोर हो गई थी। निपल कड़े हो गये थे। शरीर में तरावट आ चुकी थी। अंगुलियों की चुटकियां मेरे कड़े निपल में च्यूटी भर रही थी। पर करण्ट चूत में आ रहा था। चूत पानी से लबालब भर चुकी थी। मेरी आंखे भारी हो चली थी। मन में पहली बार लौड़ा लेने के अहसास से बदन लहक रहा था। मेरी ऐसी हालत देख कर अंकल ने प्यार से मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरी टांगें ऊपर की ओर उठने लगी।
“अंकल वो मोमबत्ती देना…!”
“अब इसकी जरूरत नहीं है… ये मेरा मोमबत्ता जो है !”
“नहीं अंकल, ये तो आपकी गाण्ड के लिये है…” अंकल हंस पड़े… वो समझ गये थे कि उन्हें भी ये मोमबत्ती अपनी गाण्ड में घुसानी पड़ेगी।
मैंने मोमबत्ती हाथ में ली और अंकल से कहा,”अंकल प्लीज… अब मत तड़पाओ…” अंकल एक जवान की तरह उछल कर मेरी टांगों के बीच में आ गये और उनका लण्ड हाथ में पकड़ कर चूत की पलकों पर रख दिया। मैंने भी चूत की पलकें खींच कर खोल दी। लण्ड ने गुलाबी चूत को देख कर फ़ुफ़कार भरी और अपना सर झुका कर आदर सहित टोपा अन्दर कर लिया। लण्ड का पहला प्यारा सा अहसास … मुझे मदहोश कर रहा था।
अंकल ने अपने तने हुये भारी लण्ड को जोर लगा कर अन्दर सरकाया। चिकनी चूत लण्ड पा कर लहलहा उठी। मैंने भी अपनी चूत ऊपर उठा कर लण्ड का तहे दिल से स्वागत किया। अंकल का पूरा लण्ड लीलने में मुझे कोई परेशानी आई।
“नेहा… तुम तो चुदी चुदाई लगती हो…!”
“हां अंकल… इस मोमबती ने मेरी चूत चोद चोद कर इण्डिया गेट बना दिया है !”
अंकल ने चूत को इण्डिया गेट नामकरण का मुस्कराते हुये स्वागत किया और अपना शरीर का सारा भार मेरे ऊपर डाल दिया। लण्ड जड़ तक बैठ चुका था। उनका हर एक धक्का बच्चे दानी पर ठोकर मार रहा था। उनका भारी जिस्म मुझे हल्का लग रहा था। लोहे जैसा लौड़ा मेरे बदन में घुसा हुआ सब सहने की ताकत दे रहा था। मेरी टांगें उनकी कमर में उठी हुई कस चुकी थी। मेरे मुख से बराबर मस्ती भरी चीखें और आहें निकल रही थी। मुझे लण्ड के द्वारा पहली चुदाई का आनन्द भरपूर आ रहा था। उनके हाथ मेरे कठोर चूंचियों को मसल मसल कर मीठी सी तरावट भरी गुदगुदी कर रहे थे। तभी मेरा हाथ उठा और अंकल के पिछवाड़े पर आ गया और उनकी गाण्ड के छेद में मैंने मोमबती घुसेड़ दी, जिसे अंकल ने एक खिलाड़ी की तरह सिसकारी भरते हुये झेल लिया। मैंने थोड़ी और कोशिश करके आधी से अधिक मोमबत्ती उनकी गाण्ड में घुसेड़ दी।
“आह्ह्ह मेरी नेहा, मेरी गाण्ड में मोमबत्ती और चुदाई का तालमेल कितना कितना ज्यादा मजा देता है…” अंकल का लण्ड और फ़ूल गया था। गाण्ड में फ़ंसा लण्ड उन्हें भी गुदगुदा रहा था। जोश में आ कर उन्होने अब अपना लण्ड कस कस कर चूत पर मारना आरम्भ कर दिया। हम दोनों की हाल एक जैसी थी। मैं पहली बार चुद रही थी और अंकल का लण्ड भी कई वर्षों बाद किसी चूत को चोद रहा था। सारा जिस्म चुदाई की मधुर कसक भरी मिठास से लबरेज हो चुका था। रति-रस बाहर आने को तड़प रहा था। मेरे दांत भिंचे जा रहे थे… शरीर में कसावट आने लगी थी। गरम चूत धुंआ सा उगलने लगी थी। शर्मा जी की सांसे जोर जोर से चल रही थी। पसीना सा छूटने लगा था। मैंने अंकल की गाण्ड में घुसी मोमबत्ती को जोर से पकड़ लिया और जोर लगा दिया। मोमबत्ती गाण्ड की गहराईयों में और धंसती चली गई।
“अंकल जीऽऽऽऽऽ, मारो लौड़ा कस कर मारो … हाय रे मेरी तो निकली रे… अंकल जी … अरे अरे रे अऽऽऽह्ह्ह्ह्ह्ह, उईईईईईऽऽऽऽऽ”
और मेरी चूत मचल उठी। रति-रस छूट गया। मैं जोर से झड़ गई। मेरा कसाव मोमबत्ती पर बढ़ता ही गया। अंत में अंकल के मुख से हाय निकल गई और उनके लण्ड ने यौवन रस की बाढ़ ला दी। उन्होंने अपना लण्ड बाहर खींच लिया था और अब भरपूर पिचकारियों की बौछार कर रहे थे। मैंने मोमबत्ती उनकी गाण्ड से निकाल दी। उनके लण्ड से ढेर सारा वीर्य निकला … उनका लण्ड अभी भी वीर्य निकालने के लिये जोर मार रहा था और दो एक बूंदे तो फिर भी निकलती ही जा रही थी। उनका बिस्तर वीर्य और मेरी चूत के पानी से काफ़ी गीला हो चुका था। अंकल मेरे जिस्म से हट कर एक तरफ़ निढाल से लुढ़क गये। उनकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी। दिल की धड़कन बहुत तेज थी। मुझे अंकल की संतुष्टि पर बहुत चैन आया… उन पर प्यार भी बहुत आया। मेरे मन के भीतर कहीं लग रहा था कि उन्हें अभी भी उनके भीतर वासना भरी कसक छुपी हुई है। उन्हें एक औरत की बेहद जरुरत है, बहन की नहीं… अंकल थकान से फिर भर चुके थे। रात बहुत निकल चुकी थी। मैं भाग कर अपने कमरे में चली आई। कोई देखने वाला, सुनने वाला कोई नहीं था, नंगी ही धम्म से बिस्तर पर कूद पड़ी और तकिया दबा कर सोने के लिये आंखे बंद कर ली…
जवान हो या बुड्ढा… लण्ड सभी के होता है … कहते हैं ना बड़े बूढे ज्यादा समझदार होते हैं … इसी का फ़ायदा उठाओ और उनसे खूब चुदो … आपको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है… उन्हें इस बात की अधिक चिन्ता रहती है… तो मेरी सहेलियों… इन्हें भी अपना साथी बनाओ… ना… ना… जीवन साथी नहीं … सिर्फ़ चुदाई का साथी
आपकी नेहा
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000