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प्रेषक : सावन शर्मा
हाय दोस्तों ! कैसे हो !
दोस्तों आप लोगों ने याद किया और मैं हाज़िर हो गया आप लोगों के लिए फिर से एक नया अनुभव लेकर !
दोस्तों फिर एक नया अहसास, सेक्स से भरा, मज़े से भरा और साथ ही ढेर सारी मस्ती, जो मैंने महसूस की वही मस्ती लेकार आया हूँ आप सभी के लिए !
कसम खुदा की क्या वो हसीं सूरत थी,
चढ़ती उसके हुस्न पे जवानी की मस्ती थी,
छलक गया यौवन उसकी नज़र से वो कातिल,
कि जिसमें डूब गई मेरी जवानी की कश्ती थी !
दोस्तों अबकी बार मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ राजस्थान घूमने गया था। जाते वक़्त हम भरतपुर से होकर गुजरे थे तो सभी ने योजना बनाई कि भरतपुर पक्षी अभयारण्य देख कर ही आगे जायेंगे। इसलिए हम लोगों ने टिकेट लिए और अंदर चले गए। अभयारण्य का दायरा कई किलोमीटर में फैला हुआ था।
चलते चलते हमारा ग्रुप बिखर गया और मोबाइल से हम एक दूसरे के संपर्क में रहे। मज़े की बात, मैं अपने ग्रुप से अकेला अलग हो गया। काफी दूर चलकर एक परिवार के कुछ लोग वहां से निकले, वो अलग साइकलों पर थे। वहां घूमने के लिए साईकलें मिलती हैं। उन लोगों में से एक लड़की पीछे रह गई। मैंने देखा उसकी साईकल के पैडल फ्री हो गए थे। वो थोड़ी आगे तक बढ़ी और रुक कर चेन को देखने लगी। इतने में उसका फॅमिली परिवार आगे निकल गया।
मैं पास से गुजरा तो उसने कहा- अगर आप को बुरा न लगे तो कृपया मेरी साईकल की चेन लगा दोगे?
मैंने उसे एक नज़र भर देखा तो देखता ही रह गया ! हुस्न इतना कातिल कि किसी को फनाह करने के लिए किसी और चीज़ कि जरूरत ही न पड़े !
नीली जींस उस पर लाल टॉप !
माशा अल्लाह ! शरीर का हर एक अंग अलग अलग दिखाई दे रहा था। टॉप के ऊपर के खुले बटन मानो उसकी छुपती खूबसूरती को बेशर्मी से जग-जाहिर कर रहे थे। गोरे से चेहरे पर ऊपर से ढलते हुए सुनहले बाल उसके हुस्न की बिजली को मेरे अंग अंग पे गिरा रहे थे। कमर इतनी नाजुक कि अगर जोर से पकड़ लूँ तो लचक जाये, बिलकुल हल्की फुल्की ! लेकिन एक उत्तम बदन की मलिका !
खैर मैंने अपनी हसरतों को काबू किया और बिना कुछ बोले उसकी चेन लगा दी हाथ चेन पर और नज़र उस हुस्न की परी पे !
और इसी गुस्ताखी में दब गई मेरी ऊँगली चेन में। ऊँगली में मामूली सी चोट लगी थी, थोड़ा सा खून निकल आया, मैंने सोचा अब फ़िल्मी स्टाइल में ये दुपट्टा फाड़ेगी और मेरी ऊँगली पर बांधेगी, लेकिन यहाँ तो सीन ही उल्टा हो गया, उंगली से खून बहता देख कर वो तो गश खाकर बेहोश हो गई। वो गिरने लगी तो मैंने सीधे ही उसे अपनी बाँहों में ले लिया।
हमने तो खुदा से माँगा कि
उसके हाथों का छूना नसीब हो जाये,
हम देख लें उसे नज़र भर के,
तेरी हम पर इतनी रहामत हो जाये,
के वो बेखौफ आ गए बाँहों में मेरी,
के न अब उनसे दूर रहा जाये!
न उनको खुद से दूर किया जाये !
वो मेरी बाँहों में बेहोश थी और मैं सर से लेकर पाँव तक उसे देखे जा रहा था। दिल में डर था कि वो होश में आते ही मुझसे दूर हो जायेगी। लेकिन मैंने उसके गालों को छुआ और उसके चेहरे को हिला कर उसे बेहोशी से जगाया। उसने आँख खोली और मेरी बाँहों में लेटी हुई एक टक मुझे देख रही थी। उसके चेहरे पर सर्दी में भी पसीना छलक आया। मैंने अपने रूमाल से उसका चेहरा साफ़ किया। उसके गोरे गालों को छूकर मेरी उँगलियाँ मदमस्त हो रही थी। खैर वो मेरी बाँहों से अब दूर हो गई और उसने सॉरी कहा।
उसने कहा- मेरी वजह से आप को चोट लग गई !
मैंने भी बिना सोचे समझे कह दिया- अगर मुझे चोट ना लगती तो आप को बाँहों में लेने का मौका कहाँ मिलता !
वो इस बात पर नाराज़ भी हो सकती थी लेकिन वो शरमा गई और मेरी हिम्मत बढ़ गई। तभी उसकी मम्मी का फ़ोन आ गया, उसने अपने बेहोश होने की बात छोड़ कर बाकी सब अपनी मम्मी को बता दिया। उसने मुझसे कहा- मेरे घर वाले आगे मेरा इंतज़ार कर रहे हैं और वो आपसे भी मिलना चाहते हैं।
मैंने उससे उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम मधु बताया। उसने मेरा नाम पूछा, मैंने भी अपना नाम बता दिया। उसने कहा- अपनी ऊँगली दिखाओ ! मैंने कहा- रहने दो तुम बेहोश हो जाओगी।
तो उसने कहा- कोई बात नहीं तुम मुझे थाम लेना !
चलते चलते हम बात करते रहे और एक दूसरे को अपने नंबर दे दिए। कुछ दूरी पर उसके परिवार वाले मिल गए। उसके घर वाले बिल्कुल आजाद विचारों वाले थे। उनसे बात करके मैं अपने दोस्तों के पास जाने लगा। जाते जाते मधु ने अपना रूमाल मेरी ऊँगली पे लपेट दिया। वो रूमाल मैंने अपने दोस्तों से छुपाया, कह दिया- यार मेरी तबियत ठीक नहीं है, मैं यही बैठता हूँ, तुम घूम आओ !
वो लोग चले गए। मैंने मधु को फ़ोन किया और काफी देर तक उससे बात की। वो लोग भरतपुर में ही होटल पार्क में ठहरे थे। मैंने शाम को अपने दोस्तों से कहा- यार ! मेरी तबियत ठीक नहीं है, इसलिए मैं आज यहीं रुकना चाहता हूँ, तुम लोग जयपुर पहुँचो, मैं कल आकर तुमको मिलूँगा।
वो लोग वहाँ से निकल गए। अब मैंने भी जाकर होटल पार्क रेज़िडेन्सी में एक कमरा बुक कराया। मधु और उसका परिवार पहली मंज़िल पर थे और मैं दूसरी मंज़िल पर !
मैंने मधु को इसके बारे में बताया कि मैंने भी तुम्हारे होटल में ही कमरा ले लिया है, तो यह सुन कर मधु कुछ उत्साहित सी हो गई। मुझे लगा शायद मधु भी यही चाहती थी। एक बार फिर हमारी मुलाकात डिनर के समय पर हुई। अब की बार मधु ने एक जामुनी रंग की साड़ी पहनी हुई थी। कसम से क्या कयामत थी वो उस वक्त ! और उस पर बैक-लैस ब्लाऊज़ उस कयामत को और भी भड़का रहा था।
भोजन के बाद उसके घर वालों ने मुझे फ़िर अपने साथ बुला लिया और हम सभी पार्क में टहलने लगे। अब मैंने मौका देख कर टहलते टहलते मधु की नंगी कमर पर हाथ रख दिया। चलते चलते मधु ठहर सी गई लेकिन कुछ ही पलों में मैं मधु से दूर हो गया। फ़िर हम लोग अपने अपने कमरों में चले गए।
मैं बिस्तर पर था लेकिन कमबख्त नींद किस की सगी थी जो आ जाती। मैं सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन मधु की जवानी के परदे एक-एक करके मेरी आँखों पर पड़ते जा रहे थे जिन्होंने नींद को मेरी आँखों से दूर कर दिया।
रात के लगभग ११ बजे होंगे, मैंने मधु को फ़ोन किया, एक दो बार रिंग बज़ते ही उसने फ़ोन उठा लिया, ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे फ़ोन का इन्तज़ार कर रही थी। दिन में ज्यादा घूमने के कारण उसके घर वाले थक कर सो रहे थे। मैंने उसे अपने कमरे में बुला लिया। मधु ने आने में जरा भी देर नहीं की। दो तीन मिनट में वो कयामत उसी लिबास में मेरे कमरे में आ गई। कसम से, मानो, किसी दुल्हन की तरह शरमाई सी वो बेड के पास खड़ी हो गई।
मैंने भी पहले उसका अंग अंग जी भर कर देखा फ़िर धीरे से बाहों में भर लिया। मानो कोई फ़ूल मेरी बाहों में सिमट आया हो।
मैंने उसे बिस्तर पर बैठा लिया और उसके चेहरे को साड़ी के पल्लू से ढक दिया। उसने भी पल्लू को दुल्हन की तरह थामे रखा फिर धीरे से मैंने उस चाँद से घूँघट के बादलों को हटाया और उसके मदमाते होटों पर एक किस कर दिया तो वो एकदम ही मुझसे लिपट गई। मैंने उसकी सांसों की गर्मी को अपने सीने पर महसूस किया।
वो बिलकुल तैयार थी, मैंने अपना हाथ धीरे धीरे उसकी साड़ी में डालना शुरू किया, वो नीचे की तरफ झुकती सी चली गई। मैंने एक हाथ उसकी मदमस्त कर देने वाली चूचियों पे रख दिया और उन्हें दबाने लगा। वो टूट कर अब मेरी बाँहों में बिखरने लगी थी, उसने अपनी आँखें बंद कर ली और अपना नरम नाज़ुक शरीर मुझे सौंप दिया।
मेरा एक हाथ अब उसकी नरम, गरम और गुलाबी चूत पर पहुँच कर उसके साथ शरारत कर रहा था। . शायद वो अब सहन नहीं कर पा रही थी। मैंने एक एक करके उसके शरीर से सारे कपडे अलग कर दिए। अब वो गुलाब की गुलाबी कली मेरे सामने अपनी सारी पंखुडियों से बाहर आ चुकी थी।
उसके पूरे नंगे बदन को देख कर तो कोई भी अपना आप खो दे !
मैंने अपने कपड़े उतार दिए। हम दोनों एक दूसरे की बाँहों की गिरफ्त में जाने के लिए बेताब थे। मैंने बिस्तर पर जाकर मधु को कस के अपनी बाँहों में ले लिया। उसके जिस्म का अंग अंग सेक्स की आग में जल रहा था। अब इस सावन को मधु के जिस्म पर बरस कर उसके जिस्म की प्यास को बुझाना था।
मैंने मधु की खामोशी तोड़ी और उससे पूछा कि क्या कभी पहले सेक्स किया है तो उसने चेहरे को हाथों से ढक लिया और इन्कार में सर हिला दिया। यानि कि मधु बिल्कुल अनछुई थी। अब मुझे उसके साथ थोड़ी ऐहतियात बरतनी थी क्योंकि उसकी चूत बिल्कुल कोमल थी। मैंने ऊँगली से उसकी चूत को धीरे धीरे से सहलाया तो मधु कि सिसकियाँ सी छूटने लगी।
उस कमरे का माहौल आऽऽआहऽहऽहऽऽऽऽऽ ऊऽउऽउफ़ऽफ अऽअऽऽऽआ स ओऽऽऊहऽनऽऽनाऽऽऽ सावन ऽऽकरोऽऽ हम्मऽऽ……ऊऽऽऊफ ओ ओह येसऽस स से और भी सेक्सी हो गया।
मैंने उसके शरीर पर हर जगह चूमा, उस कली को हर तरफ से चूमा। अब मैंने उसकी हालत को समझते हुए धीरे से अपना लण्ड उसकी चिकनी और मुलायम चूत पर रख दिया और धीरे धीरे उसके अंदर लण्ड को डालने लगा। मधु अपने पैरों को भींचने लगी और कहा- दर्द हो रहा है !
मैंने उस से कहा- अगर टांगें भींचोगी तो दर्द होगा !
अब उसने अपने पैर खोल लिए। मैंने एक झटके से जोर से लण्ड चूत के अंदर डाला तो मधु की चीख निकल गई और लण्ड चूत के अंदर था। मधु बेहाल सी हो गई, मैंने उसे थोड़ा शांत किया, उसका चेहरा पसीने से भीग गया।
अब मैंने लण्ड को थोड़ा बाहर निकाला तो लण्ड पर खून लगा था, उसे देख कर मधु बोली- कुछ होगा तो नहीं?
मैंने कहा- कुछ नहीं होगा !
मैंने धीरे धीरे लण्ड को हिलाना शुरू किया तो मधु सिसकियाँ अब सेक्स की आवाजों में बदलने लगी थी और उसका चेहरे का डर एक चमक में बदल गया था। फिर तो उल्टा मधु सेक्स करने में मेरा साथ देने लगी। मैंने उसे धीरे से चोदा, अपने लण्ड को उसकी गहराइयों तक उतारा, जितना गहरा लण्ड चूत में जाता, उतनी ही मधु मुझसे चिपक जाती और उतनी ही जोर से उसकी सिसकी आती थी।
उसके बाद तो पता नहीं हम दोनों इतना समय खींच गए कि इतने गरम होने के बावजूद हम लगभग ४५ मिनट तक सेक्स करते रहे। काफी देर बाद मैं मधु के ऊपर निढाल सा हो गया और साथ ही साथ मधु ने भी खुद को मुझसे जकड़ लिया।
अरे ! यानि कि यारो उसका भी सेक्स पूरा हो गया था।
अब हम दोनों काफी देर एक दूजे पर निढाल लेटे रहे और आधे घंटे बाद दोबारा से एक बार फिर एक दूजे में समां गए।
और फिर मधु अपनी साड़ी पहन कर थके से कदमों से वहां से अपने कमरे में चली गई। खैर एक दूजे की कुछ मिठास दिल में लिए नींद के आगोश में समां गए।
अगली सुबह जब हम उठे और नाश्ते के लिए नीचे आए तो मैंने मधु की आँखों में एक अजीब सी चमक और चेहरे पर एक मुस्कान देखी।
सुबह ११ बजे तक मुझे होटल से चेक आउट करना था। मैंने मधु को यह बताया तो वो बोलने लगी- हम शाम ४ बजे यहाँ से चेक आउट करेंगे !
सुबह मधु के घर वाले भरतपुर घुमने के लिए निकलने लगे तो मधु ने उनसे बहाना कर दिया कि उसके सर में बहुत दर्द है। मधु की मम्मी उसके पास रुकने लगी लेकिन मधु ने कहा कि मैं थोड़ा सोना चाहती हूँ, फिर आप मेरे पास अकेली बैठी बोर हो जाओगी, इसलिए आप भी थोड़ी देर घूम आइये !
उसकी मम्मी मान गई। अब मधु अकेली ही कमरे में थी। कुछ देर बाद मैं मधु के कमरे में गया।
मेरे वहां जाते ही मधु भागकर मुझसे लिपट गई और नज़रें नीचे करके कहने लगी- सावन ! क्या रात वाला अहसास तुम मुझे अभी करा सकते हो?
उसने मेरे दिल की बात कह दी। फिर क्या था हम दोनों ने एक दूसरे के कपड़े उतार दिए और बेड पर बैठ गए। मैंने मधु के तन के हर हिस्से को किस किया। जैसे मैं उसे किस करता तो मधु उतनी ही उत्तेजित होती जाती।
फिर हमने आधे घंटे तक एक दूसरे को वो अहसास कराया, जिस अहसास को आप मेरे इस अनुभव को पढ़ने के बाद करना और पाना चाहते हो।
उसके बाद मैंने मधु को कपड़े पहनाये और उसके नरम नाज़ुक होटों पे एक प्यारा सा “गुड बाय किस” किया और मैं होटल से चेक आउट कर गया। दोस्तों ये थे मधु के साथ बिताये कुछ हसीं पल !
आपको मेरा ये अनुभव कैसा लगा?
मुझे मेल कर के जरूर बताना !
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