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मेरे प्यारे दोस्तो! इस कहानी को पढ़ने वाली लड़कियों, भाभियों और आंटियों को मेरा प्यार!
मेरे बचपन के दोस्त सिद्धार्थ की शादी को तीन महीने ही हुए थे। उसकी पत्नी का नाम कीर्ति है। उसकी शादि चूंकि कीर्ति के परिवार वालों ने हमारे शहर में आकर की थी तो उनकी देखरेख का काम मैंने ही किया था। इसी कारण कीर्ति भी मुझे पहचानने लगी थी। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मैं मन ही मन सोचने लगा कि बेटा सिद्धार्थ तेरी तो किस्मत ही खुल गई क्योंकि कीर्ति बहुत सुन्दर है, 5’4″, लम्बे बाल, गुलाबी होंट, आंखें बड़ी बड़ी और नशीली और आवाज कोयल की तरह है। कीर्ति और सिद्धार्थ दोनों एम एस सी पढ़े हैं।
अब मैं सिद्धार्थ के घर कम ही जाने लगा और सिद्धार्थ इस बात की शिकायत भी करता कि मैं उसके घर नहीं आता। तो मैंने एक दिन कहा कि मैं आने लगूंगा तो भाभी मन ही मन कहेंगी कि अमित जब देखो यहीं पड़ा रहता है। यह बात सुन कर वो नाराज़ हो गया और कहने लगा कि अमित तू ऐसी बात करता है और कीर्ति कहती है कि अमित जी आते ही नहीं हैं, क्या अमित जी मुझसे नाराज़ हैं। यह बात सुनकर मुझे कुछ अजीब सा लगा पर मैंने सिद्धार्थ से कल आने का वायदा किया, वैसे तो हमारे घर पास पास ही हैं।
अगले दिन मैं उसके घर गया तो मुझे कीर्ति भाभी मिली, वो रसोई में नाश्ता बना रही थी। मैंने भाभी को हेलो बोला और सिद्धार्थ के बारे में पूछा।
कीर्ति मुझे देख कर काफ़ी प्रसन्न हुई और बोली- अमित जी! आज आप कैसे सुबह सुबह आ गए! चलो आए हो तो अपने दोस्त से ही मिलने आए होंगे।
मैंने कहा- नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं, बस काफ़ी दिनों से कुछ ज्यादा काम आ गया था, इसलिए नहीं आया।
कीर्ति बोली- सिद्धार्थ बाज़ार गए हैं, आज शाम को उन्हें ओफ़िस के काम से इन्दौर जाना है, इसलिए घर का सामान लेने गए हैं। आप बैठिए, मैं नाश्ता लाती हूँ।
मैंने कहा- नहीं भाभी, मैं नाश्ता नहीं करूंगा। तो कीर्ति बोली- अमित जी! एक बार नाश्ता कर के देखें कि मैं कैसा नाश्ता बनाती हूँ। तो मैं कीर्ति भाभी को मना नहीं कर पाया। फ़िर भाभी ने पूछा- आप चाय लेंगे या जूस? तो मैंने कहा- भाभी, मैं तो सुबह चाय ही लेता हूँ।
भाभी दो कप चाय ले आई और हम साथ साथ ही नाश्ता करने लगे। मैंने कीर्ति की ओर देखा, वो काले रंग के गाऊन में थी। कीर्ति के दूध के समान गोरे रंग पर काला गाऊन काफ़ी जच रहा था। शायद कीर्ति ने ब्रा नहीं पहनी थी फ़िर भी उसकी छाती काफ़ी आगे को उभरी हुई थी। उसे देख कर मेरे मन में अजीब सी हरकत होने लगी लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जो कीर्ति को बुरा लगे।
थोड़ी देर बाद सिद्धार्थ भी आ गया और मुझे देख कर बहुत प्रसन्न हुआ, बोला- अच्छा हुआ अमित तुम मुझे यहाँ पर ही मिल गए।
मैंने पूछा- कुछ काम था क्या?
सिद्धार्थ बोला कि मैं एक सप्ताह के लिए इंदौर जा रहा हूँ और तुम्हारी भाभी को बाज़ार से कुछ सामान की आवश्यकता थी इसलिए तुम और कीर्ति बाज़ार से सामान ले आना। मैंने कहा- तुम चिन्ता मत करो।
फ़िर अगले दिन कीर्ति का फ़ोन आ गया कि अमित जी आज हम बाज़ार चलें अगर आप को कोई और काम ना हो तो।
मैंने कीर्ति को शाम पांच बजे का समय दिया और शाम को जब मैं भाभी के घर गया तो वो बाज़ार जाने के लिए तैयार थी। आज भाभी ने सफ़ेद कमीज़ और काले रंग की जींस पहन रखी थी और आज भी काफ़ी सुन्दर दिख रही थी। मैंने भाभी को बताया कि मैं कार ले कर आया हूँ तो भाभी ने कहा कि बाज़ार में कार बहुत तंग करती है इसलिए आओ अपनी बाईक ले लो। फ़िर मैं बाइक ले आया और वो बाईक पर लड़कों की तरह बैठी। ब्रेक लगने पर भाभी की चूची मेरी कमर से लग जाती। मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि कम से कम भाभी और मैं आपस में स्पर्श तो हुए।
खरीदारी के बाद मैंने भाभी से पूछा कि आप क्या खाएंगी तो वो बोली कि कुछ भी जो आप खाएं। हमने एक होटल में जाकर कुछ खाया पिया और घर की ओर चल दिए। शाम के साढ़े सात से ज्यादा बज गए थे तो भाभी को घर छोड़ कर मैं बोला- भाभी मैं चलता हूँ।
भाभी बोली-मैं चाय ला रही हूँ, काफ़ी थक चुके हैं! फ़िर मैंने और भाभी ने चाय पी और थोड़ी देर बाद मैं अपने घर आ गया।
आज भाभी के साथ रहने से हम दोनों काफ़ी खुल गए थे और मजाक भी कर लेते थे। अगले दिन रविवार होने के कारण मैं कीर्ति के घर गया तो भाभी एक किताब पढ़ रही थी। मुझे देख कर बोली- अच्छा हुआ अमित जी आप आ गए, मैं बहुत बोर हो रही हूं। अगर आप कहें तो कोई मूवी देखने चलें?
मैंने हाँ कर दी तो भाभी बोली- मैं तैयार हो कर आती हूँ।
जब भाभी आई तो मैं देखता ही रह गया क्योंकि भाभी लाल रंग की साड़ी और ब्लाऊज़ में थी। मैं भाभी को देखता ही रहा तो वो बोली- अमित जी क्या हुआ! कहाँ खो गए?
मैंने तुरन्त कहा- भाभी जी! आपको देख कर खो गया हूँ, आप बहुत सुन्दर लग रही हैं। तो भाभी हंसने लगी। फ़िर हम दोनों माल आ गए और मूवी देखने लगे। अच्छी मूवी थी। जैसे ही हम माल से बाहर निकले तो मेरे एक अच्छे मित्र ने मुझे देखा और पुकारा- अमित!
मैंने देखा तो वो रमण था। मैं रुका और रमण और उसकी पत्नी से मिला और कीर्ति से मिलवाते हुए कहा- यह कीर्ति है…
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि रमण बोल पड़ा- भाभी जी नमस्ते! और मुझसे बोला- यार! शादी भी कर ली और बताया भी नहीं!
मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं…!
लेकिन मेरी बात काट कर रमण बोला- भाभी चलो, हमारे घर चलते हैं, तो मैंने मना किया और कहा कि बाद में आऊँगा। पर रमण ने कहा कि नहीं आज ही!
तो हम रमण के घर चल दिए। घर आकर रमण ने कहा- यार! शादी में क्यों नहीं बुलाया? इससे पहले कि मैं कुछ कहता। कीर्ति बोल पड़ी- रमण जी! हमारी लव मैरिज़ है और अचानक ही हो गई, इसी कारण किसी को भी नहीं बुला पाए। रमन और उसकी बीवी ने हमें खाना खाने के बाद ही आने दिया। अब रात भी हो चुकी थी। हम घर के लिए निकले और मैंने कहा- भाभी जी! आपने ऐसा क्यों कहा?
तो भाभी बोली- आपको बुरा लगा क्या? मैंने कहा- नहीं ऐसी कोई बात नहीं! तो वो बोली- फ़िर क्या बात है? मैंने कहा- भाभी! हमारी ऐसी किस्मत कहाँ कि आप हमारी पत्नी बनें! भाभी बोली- पत्नी नहीं पर भाभी तो हूं! मैंने कहा- हाँ! यह तो है!
फ़िर हम घर आ गए और मैंने कहा कि भाभी रात के ग्यारह बज गए, मैं चलता हूँ।
भाभी ने कहा- रुको! ज़रा मैं कपड़े बदल लूँ! और भाभी काले रंग का गाऊन पहन कर मेरे पास बैठ गई और बोली- अमित जी, शादी कब करोगे?
मैंने कहा- जब आप जैसी कोई मिल जाएगी तो कर लूंगा, आज मिले तो आज ही कर लूंगा। कीर्ति ने कहा- अगर मैं ही मिल जाऊँ तो? भाभी की इस बात को सुन कर मैं दंग रह गया और कुछ बोल नहीं पाया।
भाभी बोली- अमित जी! क्या हुआ, सांप सूंघ गया क्या? मैंने कहा- नहीं भाभी पर मैं समझ नहीं पाया कि आपने क्या कहा। तो कीर्ति ने कहा- मैं आप से प्यार करती हूँ। मैंने कहा- सिद्धार्थ?
भाभी ने कहा- सिद्धार्थ को कुछ पता नहीं चलेगा। इतना कह कर भाभी मेरे पास लेट गई और मुझे किस किया। मैंए भी उसे पसन्द करता था इसलिए मैं भी विरोध ना कर सका।
फ़िर भाभी बोली- अमित, अगर आपको मैं पसन्द नहीं तो रहने दो। मैंने कहा- नहीं भाभी! ऐसी कोई बात नहीं, आप मुझे अच्छी लगती हो। कीर्ति ने कहा- तो मुझे कीर्ति नाम से पुकारो!
मैंने कहा- कीर्ति! मैं तुमसे प्यार करता हूँ और मैंने कीर्ति को उसके लाल रंग के होटों पर किस किया और फ़िर तो मैं और कीर्ति एक दूसरे के मुँह में जीभ देने लगे। आधे घण्टे इस तरह एक दूसरे के साथ चिपके रहे। तब कीर्ति ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए, मैंने भी कीर्ति के कपड़े उतारने शुरू कर दिए।
कीर्ति बोली- अमित, आज तुम्हारी मेरे साथ पहली सुहागरात है, अभी रुको, आज हम सुहागरात मनाएंगे, मैं तैयार होती हूँ।, तुम एक अच्छी सी नग्न फ़िल्म लगाओ।
मैंने एक ब्लू फ़िल्म लगा दी और देखता रहा। काफ़ी देर बाद कीर्ति आई तो उन्हीं कपड़ों में थी जो उसने अपनी शादी के दिन पहने थे और काफ़ी सुन्दर दिख रही थी। आते ही मैंने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया और किस करने लगा। मैं कुछ जल्दी कर रहा था तो कीर्ति ने कहा- जल्दी ना करो, पूरी रात बाकी है।
मैं कीर्ति की चूची जोर जोर से दबाने लगा तो कीर्ति गर्म हो गई। मैंने एक एक कर के कीर्ति के सारे गहनें उतार दिए और फ़िर उसका ब्लाउज़ भी उतार दिया। फ़िर जब लहंगा भी उतार दिया तो कीर्ति के शरीर पर केवल ब्रा और पेंटी ही बची थी। उसकी आंखें बंद थी और वो गर्म सांसें छोड़ रही थी। मैं कीर्ति के शरीर के सब हिस्सों पर किस करने लगा और फ़िर मैंने उसकी ब्रा को भी फ़ाड़ के उसके शरीर से अलग कर दिया। जैसे ही मैंने उसकी पेंटी को हाथ लगाया तो वो गीली थी।
मैंने कीर्ति से कहा- कीर्ति! तुम तो झड़ चुकी हो। उसने कहा- हाँ!
लेकिन मैं तो अब भी पागल हो रहा था, शायद मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह सच है। मैंने कीर्ति के शरीर से पेंटी अलग कर दी और उसकी पेंटी अपने लण्ड से रगड़ने लगा तो कीर्ति ने कहा- इसे छोड़ो, मैं हूँ ना!
उसके बाद कीर्ति ने मेरे लण्ड को पहला स्पर्श किया तो लण्ड पहले से भी ज्यादा गर्म और कड़क हो गया। वो मेरे लण्ड को आगे पीछे कर रही थी और मैं उसकी चूची को मुँह में लेकर चूसने लगा। कीर्ति के मुँह से सी सी की आवाज़ें आने लगी और वो अपने चूतड़ ऊपर करने लगी।
फ़िर कीर्ति ने मेरे लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू किया तो ऐसा लगा कि मैं उसके मुँह में झड़ जाऊँगा।
मैंने कीर्ति से पूछा- कीर्ति, तुमने सिद्धार्थ से पहले किसी के साथ यह काम किया है? तो उसने कहा- पहले मुझे पता ही नहीं था कि इसमें इतना मजा आता है। मैंने कहा- तुम्हें सिद्धार्थ के साथ मजा नहीं आता क्या?
तो कीर्ति ने कहा- आता है! लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुम्हारे ही बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ। अगर मैं तुमसे प्यार ना करती तो क्या मैं ऐसे सुहागरात मनाती।
यह सुन कर मुझे अच्छा लगा और मैंने कीर्ति के मुंह में अपनी जीभ दे दी। मैंने उससे पूछा कि तुम्हारे पास कन्डोम होगा? तो कीर्ति ने कहा- कंडोम की जरूरत नहीं है।
फ़िर मैंने कीर्ति की चूत पर अपना लण्ड रख कर अन्दर किया तो आधा उसकी चूत में चला गया। एक और झटके में मैंने पूरा का पूरा लण्ड कीर्ति की चूत में डाल दियाऔर जोर जोर से झटके मारने लगा तो कीर्ति को भी मजा आने लगा। दस बारह झटकों में मैं झड़ गया और कीर्ति भी झड़ गयी और उसकी चूत में अपना वीर्य डाल दिया।
कीर्ति ने मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया तो मेरा लण्ड पाँच मिनट में ही पहले की तरह खड़ा हो गया। फ़िर मैंने कीर्ति को घोड़ी बना कर चोदा। इस प्रकार हम सुबह के चार बजे तक चुदाई करते रहे और हमें कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
सुबह साढ़े पाँच बजे घर पर बैल बजी तो कीर्ति ने अपना गाऊन पहना और गेट पर जाकर आई तो मैंने पूछा कि कौन था?
उसने कहा- दूध वाला था। अमित! तुम चाय लोगे?
तो मैंने हाँ कर दी। कीर्ति चाय ले कर आई तो मैं नंगा ही लेटा था। मैंने कीर्ति को अपने पास खींच लिया तो उसने कहा कि अब भी कोई कमी रह गई है क्या!
मैंने कहा- हाँ! और उस कमी को पूरा करना है।
तो कीर्ति ने कहा- सुबह हो चुकी है, अमित अब रहने दो!
लेकिन मेरे लण्ड को तो गर्मी चढ़ी थी। कीर्ति मना करती रही और मैं कीर्ति को खींचता रहा। ऐसा करने से कीर्ति का गाऊन फ़ट गया और कीर्ति मुझ से लिपट गई। फ़िर हमने तीन बार काम किया और एक बार कीर्ति के मुँह में झाड़ा। कीर्ति काफ़ी खुश थी।
कीर्ति ने कहा- अब जब तक सिद्धार्थ नहीं आ जाता, आप ही मेरे पति की तरह यहाँ पर रहोगे। इस प्रकार हम एक दूसरे को मजा दिलाते रहे।
और अब जब भी सिद्धार्थ बाहर जाता है तो हम खूब चुदाई करते हैं।
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