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कृति भाटिया मैं अपने पाठकों से देरी के लिए माफ़ी चाहती हूँ ! और शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ अन्तर्वासना की पूरी टीम का कि उन्होंने मेरी कहानी अधूरी होने के बावजूद प्रकाशित की।
मैं अपनी पिछली कहानी टीचर्स डे में एक जगह ऐसी छोड़ी थी जहाँ पे में चाहती थी कि मेरे पाठक मुझसे सवाल करें…पर वो सवाल केवल मुझे एक ही इन्सान ने पूछा था .. जिसका जवाब मैं उन्हें दे चुकी हूँ .!!
साथ ही मेरी मेरे पाठकों से गुजारिश है कि मेरी कहानी पढ़के ये ना सोचें कि मैं एक अदद पार्टनर की तलाश मैं हूँ मैं जैसी हूँ सम्पूर्ण हूँ .. मुझे किसी की जरूरत नहीं इसलिए मुझे भद्दे और अश्लीलता भरे मेसेज ना करें, मेरी मेरे पाठको से इल्तिजा है की वो अगर ईमेल करके अपने विचार प्रस्तुत करेंगे तो अच्छा रहेगा.
अब कहानी पे आते हैं ..
टीचर्स डे के अगले दिन रविवार था यानि छुट्टी .. मैं सारा दिन उसके बारे मैं सोचती रही कि वो ऐसा क्यूँ है… जब मैं उस से बात नहीं करती तो मुझे दूर से निहारता है और जब मैं उसे अपनी और आकर्षित करती हूँ तो मुझे डांट देता है…
रात होते होते मैंने ये तय किया कि मैं उस से कल जाके बात करुँगी…
मैं अपने स्कूल की हेड गर्ल थी और सुबह पहले पीरियड से पहले और प्रार्थना के बाद मैं और मेरा एक सीनियर जो हैड बॉय था स्कूल का राउंड लगाते थे ये देखने के लिए की किसी क्लास में कोई दिक्कत तो नहीं है या कोई अध्यापक अगर अनुपस्थित है तो किस टीचर को उस क्लास में भेजना है.
मैं सीनियर हेड गर्ल थी तो मुझे 8 वीं क्लास से लेकर 12 वीं क्लास तक का राउंड लगना होता था .. और जूनियर हेड बॉय और हेड गर्ल जो 7वीं क्लास के थे वो पहली से लेकर 7 वीं क्लास का राउंड लगाते थे.
इसी तरह हर क्लास से होते हुए मैं अंत में 12 वीं क्लास के कामर्स सेक्शन में पहुँची… अटेंडेंस चेक करने के बाद बच्चों को काउंट किया और डायरी में नोट किया उसके बाद क्लास के मॉनिटर को बुलाके क्लास की कन्डीशन के बारे में पूछा (ऐसा हम हर रोज़ करते थे क्यूंकि 12 वीं में सब सीनियर होते हैं और सेनियर स्कूल अथॉरिटी की चीजों का नुकसान भी बहुत करते हैं जैसे कि ट्यूब लाईट तोड़ना या फ़िर खिड़कियों के शीशे तोड़ना ) उसके बाद .. मैंने सभी हौसेस के कैप्टेन्स को बुलाया ये बताने के लिए कि अगले महीने एन्नुअल फंक्शन है और इस बार मॉनीटरिंग कमिटी कि मीटिंग में डिस्कशन होगा और सब लोग अपने अपने हॉउस की तैयारी करके आएंगे.
(आपको बता दूँ हमरे स्कूल में 5 हॉउस थे पृथ्वी-भूरा, अग्नि-पीला, जल-नीला, आकाश-लाल, मोक्ष-गुलाबी..जिनके अपने अपने कलर की टी -शर्ट थी .. जोकि बच्चे बुधवार और शनिवार को सफ़ेद पैन्ट/ स्कर्ट के साथ पहनते थे। हर विद्यार्थी किसी ना किसी हाऊस से जुड़ा था। वरुण्जल हाऊस का कैप्टन था और मैं मोक्ष हाऊस की। गुलाबी मेरा पसन्दीदा रंग है। )
हमें ऊपर से सभी हाऊस के कैप्टन्स से सम्पर्क करने के आदेश थे। जब सभी कैप्टन्स अपनी अपनी सूचनाएं ले कर वापिस जाने लगे तो मैंने वरुण को रोका और कहा कि रिसैस में आकर मुझसे मिले अतिरिक्त सूचना के लिए, क्योंकि बार बार उसकी कक्षा में जाने से सबके मन में शक़ पैदा होता, इसलिए मैंने उसे इस तरह बुलाया था।
वो रिसैस में मेरी कक्षा में आया। इससे पहले कि मैं उससे कुछ कहती, उसने मुझे कहा कि मुझे पता है कि तुम्हें क्या कहना है। मैंने उस से पूछा कि क्या कहना है मैं भी तो जानू?
तो उसने कहा तुम मुझे थंक्स करना चाहती हो न कि उस दिन मैंने तुम्हें बारिश में तुम्हारे घर तक ड्राप किया .. एक बार तो में सकपका गई कि जो मैं कहना चाहती थी वो भी नहीं कहने दिया और जाने क्या राग अलापे जा रहा है ..
और हडबडाहट में मैंने कहा हाँ मैं यही कहना चाहती थी. बस मेरी मुंह से ये सुन के वो चला गया… मुझे बहुत गुस्सा आया ..
अगले हफ्ते मॉनीटरिंग कमेटी कि मीटिंग थी .. एक बड़ी लम्बी मेज़ थी जिसके एक तरफ़ सभी कक्षाओ के मोनिटर्स बैठे और एक तरफ़ हाउस के कैप्टेन्स और वाइस कैप्टेन्स। एक तरफ़ मैं थी और मैं ठीक उलटी साइड पर मेरा साथी था मीटिंग में ये तय हुआ कि ऑडिटोरियम, लाईट्स, साउंड, म्युझिकल इंस्ट्रुमेंट्स का प्रबंध स्कूल की तरफ़ से होगा और परफॉर्मेंस के आधार पर अंत में ग्रुप और सोलो ईनाम बांटे जायेंगे. ईनाम में एक घड़ी दी जायेगी सोलो पेरफोरमेर्स को और ग्रुप परफॉर्मेंस के सभी प्रतिभागियों को एक एक पारकर का पेन दिया जाएगा और कोई भी ग्रुप 5 लोगों से ज्यादा का नहीं होगा।
ज्यूरी में हमारी स्कूल की प्रधानाचार्या, मुख्य अतिथि, ड्रा से नाम निकाले हुए 2 अभिभावक और 2 अध्यापक होंगे. साथ ही होस्ट और होस्टेस का नाम भी हम ही निश्चित करेंगे उनके लिए नोटिस बोर्ड पे वोलंटियर्स को आगे आने का मौका दिया जाएगा.
कुछ दिनों बाद अलग अलग परफॉर्मेंस के ऑडिशन शुरू हुए उनमें से हमने 6 ग्रुप फाइनल किए जिनमें से 4 प्ले फाइनल में जाने के लिए चुने गए.
सोलो में हमने 4 सिंगेर्स और 4 डांसर्स को चुना. 2 लड़के दो लड़कियाँइन दोनों ही भागों में. उसके बाद पिछले साल के सबसे अच्छे शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए इनाम में स्वर्ण रजत और कांस्य पदक देने पर विचार हुआ और खेल में भी इसी तरह करने की योजना तय हुई. जो कि प्रधानाचार्या और हमारे मुख्य अतिथि बच्चों को उनके माता पिता के साथ प्रदान करेंगे. उसके बाद अंत में एक जोरदार प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम रखने का प्रस्ताव आया ताकि सभी लोग मुस्कराते हुए साल को अलविदा करें. साथ ही वार्षिकोत्सव के निमंत्रण पत्र ठीक एक सप्ताह पहले सभी बच्चों के माता पिता के पहुँचा दिए जायें ताकि वो उस दिन का कोई अन्य कार्यक्रम न रखें.
होस्टेस के लिए कोई उपयुक्त लड़की न मिलने पर सभी ने सर्व सम्मति से ये मन कि होस्टेस के लिए मुझे ही आगे जन होगा. और जो प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम था वो वरुण के जिम्मे लगाया गया.
धीरे धीरे वक्त गुज़रा और वार्षिकोत्सव का दिन आ ही गया हम लोग सभागार के मंच के एक दम पीछे थे सभी बच्चों को धीरज बंधा रहे थे कि मंच पे जाके घबराएँ नहीं.
मैंने एक गुलाबी रंग का पटियाला सलवार कमीज़ पहनी थी और बाल खुले थे कानों में प्लेटिनम टोप्स और चेहरे पे सिर्फ़ काजल और लिप गार्ड थी। वरुण ने सफ़ेद कुरता और ब्लू जींस पहनी थी. परदा खुला और मैंने शुरुआत की और सभी का स्वागत करते हुए सबको शान्ति पूर्वक बैठ जाने को कहा और सरस्वती वंदना से वार्षिकोत्सव का शुभ आरंभ किया.
सभी कार्यक्रमों के मंचन के बाद वरुण की बारी थी उसके स्टेज पे आते ही पूरा सभागार ठहाकों से गूँज उठा पहले मैंने उसे नहीं देखा पर दर्शकों के हँसने की आवाज सुनते ही मैंने गर्दन घुमा के जब उसकी तरफ़ देखा तो नाक पे चेरी जैसा कुछ था आंखें लाइनर से जबरदस्ती बड़ी बना राखी थी गलों पे जोकर जैसा गुलाबी रंग था और कपड़े… लाल रंग की निकर और पीले रंग की पोल्का डोट्स की शर्ट पहनी जिस पे फ्लेयर्स लगे थे वो पूरा एन्टीक पीस लग रहा था, और ऐसे चल रहा था जैसे सच मुच के जोकर चलते हैं.
फ़िर उसने मेरी तरफ़ देखा और गिर गया जान बूझ कर और मेरे पास आ के बोला जी क्या मैं ले सकता हूँ… मैंने कहा क्या .. उस वक्त माइक ओन था. सब लोग सुनते ही हंस पड़े .. फ़िर कहने लगा जी मैं तो माइक की बात कर रहा हूँ.
उसे माइक सौंप के मैं परदे के पीछे चली गई और फ़िर जो उसने अपने चुटकुलों से समां बंधा कि मैं परदे के पीछे होते हुए भी अपनी हँसी नहीं रोक पा रही थी। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि हमारे कार्यक्रम का ये भाग इतना सफल होगा उसने कई सवाल किए जैसे कि
दुनिया मैं ऐसा कौन सा गेट है जिसमें कोई घुस नहीं सकता >> कोलगेट ऐसी कौन सी कली है जो कभी नहीं खिलती >>> छिपकली
उसका कार्यक्रम ख़त्म होने ही वाला था कि अचानक फायर अलार्म बजने लगा. जल्दी जल्दी मैं सभी को सभागार से निकाल कर पास के ही एक मैदान मैं ले जाया गया.
मैं और मेरे साथ के समिति के सदस्य सभी को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे .. और सभी अभिभावकों को अपने बच्चे घर ले जाने की इजाज़त दे दी गई. सब घर चले गए. अगले दिन क्लास में ये अफवाह सुन ने को मिली कि सभागार की किचेन के पास जो फायर अलार्म था वो बजा था और शायद गैस के धुंए की वजह से फायर अलार्म बज उठा हो.
पर बाद में जब प्रधानाचार्य ने आके असेम्बली में खेद प्रकट किया और हमें सूचित किया कि हमारे स्कूल का हेड बॉय शौचालय में धुम्रपान कर रहा था जिस वजह से फायर अलार्म बजा चूँकि किचेन और शौचालय दोनों पास ही थे इसीलिए इस बात का पता नहीं लग पा रहा था कि वजह क्या थी.
उसके बाद CCTV से देखा गया कि अलार्म की आवाज़ आते ही हेड बॉय शौचालय से निकला उसके हाथ में अधजली सिगरेट थी उसने जमीन पे फेंकी और बुझा दी और बाहर की तरफ़ चला गया. इस मामले में हेड बॉय को 10 दिन के लिए स्कूल से निकाल दिया गया. और सबसे खुशी की बात तो ये थी हेड बॉय के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार वरुण ही था उसके बाद. तो जाहिर सी बात है उसे हेड बॉय बना दिया गया. और हम रोज़ साथ में स्कूल के चक्कर लगते और धीरे धीरे हम दोस्त से अच्छे दोस्त बन गए. दोस्त होने के बावजूद हम में एक दम दुश्मनों की तरह लडाई होती थी.
हालांकि हम एक दूसरे के विचारों से सहमति जताते थे पर फ़िर भी हममें लड़ाई कुछ ऐसी बातों पर होती थी जिन्हें कोई सोच भी नहीं सकता था। ऐसा ही एक मुद्दा था मेरी स्कूल ड्रेस की स्कर्ट का साईज़… बढती हाईट के साथ मेरी स्कर्ट छोटी हो चुकी थी और अब वो मेरे घुटने से ऊपर आने लगी थी। जब मैंने मां से नई स्कर्ट लाने की बात की तो उन्होंने यह कह कर टाल दिया कि अगले साल तो तुम्हारा स्कूल खत्म ही हो जाएगा तो सिर्फ़ एक साल के लिए मैं तुम्हें नई स्कर्ट लेके दूं? और मामला वहीँ दब गया.
फ़िर एक दिन मैं गेम्स पीरियड में ग्राउंड में बास्केट बाल खेल रही थी अब बास्केट में बाल डालने के लिए उछलना तो पड़ता है, तो जब बाल मेरे हाथ में आती और मैं बास्केट में डालती तो सब लड़के टक टकी लगाये मेरी जांघों को निहारने लगते ..
मुझे भी अजीब सा महसूस होता था कि बार बार मुझे ही क्यूँ मोका मिल जाता है बाल को बास्केट में डालने का .. वहीँ कुछ दूरी पर से वरुण स्टाफ रूम की तरफ़ जा रहा था उसके हाथ में नोटबुक्स थी नोटबुक्स स्टाफ रूम में रख के आने के बाद वो थोड़ी देर के लिए मेरा गेम देखने के लिए रुक गया और ये बात उसने नोटिस कर ली आख़िर लड़का है लड़कों की आदत नहीं जानेगा तो और किसकी जानेगा।
उस वक्त उसने मुझे पास बुलाके सिर्फ़ छुट्टी के समय रुकने को कहा कि उसे कोई बात करनी है। मैं आखिरी पीरियड टक यही सोचती रही कि आखिर उसे ऐसी क्या खास बात करनी है जो वो तब नहीं कर सकता था।
मैं छुट्टी के बाद गेट पे उसका वेट कर रही थी वो अपने फ्रेंड्स के साथ था .. मुझे देख उसने अपने फ़्रेन्ड्स को जाने के लिए कहा और कहा कि वो शाम को उन्हें कॉल करेगा.
मेरे पास आते ही उसने सीधे बोला ..’ मेरे पास दाल नहीं गली तो अपने क्लास के लड़कों को रिझाने मैं लगी हो ..’ मैंने उसे अजीब तरह से देखते हुए कहा,’ क्या बोल रहे हो दिमाग तो ठीक है .. पहले सोचो तोलो और फ़िर बोलो कि बोल क्या रहे हो…’
तो फ़िर कहने लगा तुमरे पास स्कर्ट लेने के पैसे नहीं है तो मेरे डैड की गारमेंट फैक्ट्री है मैं बनवा देता हूँ .. .बस ये सुनने की देर थी मेरा हाथ उस पे उठ गया पर उसने मेरा हाथ रोक लिया और मैंने कहा कि .. तब से देख रही हूँ बेसिर पैर कि बातें किए जा रहे हो .. अपनी हद मैं रहके बात किया करो .. जो कहना है साफ साफ कहो .. मुझे जलेबी कि तरह सीधी बातें समझ नहीं आती।
कहने लगा- तुम्हें नहीं लगता तुम्हारी स्कर्ट कुछ ज्यादा ही छोटी है? तो मैंने कहा इसमें लगने वाली क्या बात है वो तो छोटी ही है .. तो मुस्कुराते करते हुए कहता- तुम्हें ज़रा भी शर्म है के नहीं तुम्हारी क्लास के लड़के जाने तुम्हें कैसे देखते हैं जैसे तुम कोई नुमाइश की चीज़ हो !
तो मैंने कहा तुम्हें क्यूँ इत्ती जलन हो रही है अगर वो मुझे देखते हैं तो .. कुछ देर सोचने के बाद हडबडाते हुए बोला ‘तुम मेरी दोस्त हो तुम्हें हो न हो मुझे अपने दोस्तों की बहुत फिकर है और हाँ कल से अगर ये स्कर्ट पहन के आना हो तो प्लीज़ नीचे स्टाकिंग्स पहन के आना ..अब घर जाओ तुम्हें देर हो रही होगी और मैं रिक्शा से घर चली गई।
कुछ दिन बाद टेनिस टूर्नामेंट था जयपुर में हमारे ही स्कूल की जयपुर वाली ब्रांच में ..हमारे शहर में हमारा स्कूल टॉप पे था और इसीलिये हमें टूर्नामेंट के लिए बुलाया गया था .. वरुण का नाम सेलेक्ट हुआ था और उसके साथ कोई वंशिका नाम की लड़की थी जिसे मिक्स्ड डबल्स मैं उसके साथ खेलना था .. (ये बात वरुण ने ही मुझे बताई थी )
वंशिका !!! बेहद खूबसूरत चार्मिंग और फ़ैशनेबल लड़की थी उसके बाल करली थे और कमर से झूलते रहते थे, रंग सांवला, आँखों में मोटा मोटा काजल, नाक में सानिया मिर्जा टाइप नथ और कानों में बड़े बड़े बाले होते थे टाई हमेशा कालर से नीचे लटकती हुई शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए स्कर्ट इतनी छोटी कि किसी को नीचे झुक के देखने की जरूरत न पड़े पैरो में व्हाइट स्पोर्ट्स शूज़ टखने तक की जुराबें, कलाई पर अदीदास और नाइकी के बैंड्स. इसमें कोई शक नहीं कि वंशिका पूरे स्कूल में सबसे अच्छा टेनिस खेलती है। हालांकि कई और लड़कियां, जिनमें मैं भी हूं, अच्छा टेनिस खेल लेती हैं।
मैंने उसे वरुण के साथ प्रक्टिस करते हुए देखा था कई बार शाम को वरुण और वंशिका साथ में स्कूल ग्राउंड में प्रक्टिस के लिए जाया करते थे और मैं कभी कभी अपनी ट्युशन गोल करके उसे देखने जाया करती थी कि कहीं वंशिका मेरी जान पे डोरे तो नहीं डाल रही !
वरुण किसी लड़की के हाथ में आने वालों में से नहीं था। तब तक मैं उसकी बेस्ट फ्रेंड बन चुकी थ। हम दोनों बहुत झगड़ते थे पर बात किए बगैर रह भी नहीं सकते थे. 6 नवम्बर को वरुण और वंशिका को जयपुर के लिए निकलना था प्रशांत सर के साथ. 4 नवम्बर को मुझे 7 वें पीरियड में गेम्स रूम से बुलावा आया. वहां पे प्रधानाचार्या भी थी.
सर ने मुझसे पूछा कि क्या तुम टूर्नामेंट के लिए जाना चाहती हो. मैं कुछ समझ नहीं पाई और मैंने कहा कि सर वंशिका ने बहुत प्रक्टिस की है इस टूर्नामेंट के लिए, इसीलिए प्लीज़ उसे जाने का मौका दिया जाए।
पर उन्होंने मुझे बताया कि वंशिका के पैर में कल दोपहर को खेलते समय मोच आ गई थी शाम को एक्स-रे के बाद पता चला है कि उसका पैर भागते वक्त मुड़ने कि वजह से फ्रक्चर हो गया है और सेकंड बेस्ट प्लेयर रुपाली का मैच दूसरे स्कूल के साथ है इसीलिए वो भी नहीं चल सकती .. तो बची सिर्फ़ तुम क्या चल सकती हो तुम ..पहले मैंने बहाना बनाया सर मेरी ज्यादा प्रक्टिस भी नहीं है तो सर ने मुझे यह कहकर आश्वस्त किया वरुण अच्छा खेलता है तुम्हें उसके साथ खेल के कुछ न कुछ सीखने को ही मिलेगा.
मैंने हालात सुन के हाँ कर दी मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था .. और फ़िर अपने स्कूल का नाम रोशन करने का इस से बेहतर तरीका और क्या हो सकता है और सोने पे सुहागा तो ये था कि वरुण का साथ मिलेगा पूरे तीन दिन ..!!
शायद भगवान् भी यही चाहते थे कि हम दोनों एक दूसरे को अच्छे से समझें इसीलिए उन्होंने हमें आपस में घुलने मिलने का एक स्वर्णिम अवसर दिया था। सुबह 8 बजे हमने जयपुर जाने वाली बस ली। बस में काफी भीड़ थी इसीलिए बैठने कि सीट नहीं मिली। सर हमसे कुछ ही दूरी पर खड़े थ… वरुण और मैं दोनों साथ में खड़े थे मैंने पय्जामी और कमीज़ पहनी थी और उसने जींस और टी शर्ट। वो क्यूट लग रहा था। भीड़ हर स्टैंड के गुजरने के साथ बढती जा रही थी।
जैसे ही बस में ब्रेक लगती मेरा कन्धा उसके बाजू से टकराता था और में तुंरत पीछे हो जाती थी। उसे भी पीछे से धक्के लग रहे थे और मुझे भी. हम दोनों इतने करीब थे कि उसकी सांसें मेरे माथे को छूकर गुज़र रही थी। उसके सांसों की खुशबू लेते ही कुछ पल के लिए मुझे स्वर्ग में होने का एहसास होता।
फ़िर हमारे पास वाली एक सीट से एक अंकल उठे, उनका स्टाप आ गया था वरुण झट से बैठ गया (वो बहुत ही फुर्तीला है ) दो सीट आगे एक बूढी आंटी खड़ी थी, उसने उन्हें पास बुलाया और उन्हें सीट दी. ये देख कर में दंग रह गई कि उसके माँ बाप ने उसे कितने अच्छे संस्कार दिए हैं. वो जानता है कि बडो बूढों का आदर सम्मान कैसे किया जाता है। अब मेरे दिल में उसके लिए प्रेम ही नहीं इज्ज़त भी बढ़ गई थी। इसी बीच मैंने देखा कि हमारे अध्यापक को भी बैठने की जगह मिल गई थी।
जैसे कैसे कुछ स्टैंड के बाद हम दोनों को सीट मिल गई और हम बैठ गए। वो खिड़की की तरफ़ बैठा था. हवा का झोंका आते ही मैं उसके बदन की खुशबू को साफ महसूस कर सकती थ॥ मैं खिड़की से बाहर देखने के बहाने से उसे निहार रही थी कि वो कैसे हवा से गिरते अपने लंबे बालो को गालों पर से किस तरह से समेट रहा है।
फ़िर जब थोड़ी देर बाद उसे लगता कि मैं उसे देख रही हूँ तो मैं इस तरह खिड़की से बाहर देखती जैसे मैंने कुछ देखा ही न हो. फ़िर अचनक रास्ते में मौसम बेहद खुशगवार होने लगा आसमान में बदल छा गए मधुर मधुर हवा चलने लगी।
मैंने उस से कहा कि प्लीज़ मुझे बैठने दो .खिड़की पे .. बहुत बार कहने के बाद उसने मुझे बैठने दिया. मैंने अपने बाल खोल लिए। अब मेरी लम्बी लम्बी जुल्फें हवा में लहराने लगी जो कभी उसके गालों को चूमती तो कभी उसके बदन से लिपट जाती. वो मेरे बालों को हटाने की नाकाम कोशिश करता रहा. पर हवा काफी तेज़ थी. फ़िर मैंने आसमान से हलकी हलकी रिम झिम फुहारें गिरती देखी. और थोड़ा सा सूरज भी निकला था तब. मुझे सिर्फ़ इन्द्रधनुष का इंतज़ार था। रेनबो तो नहीं पर एक मोर नाचता हुआ जरूर दिखा जिसे देखने की इच्छा में उसने अपना हाथ मेरे कंधे पर अनजाने में रख दिया . जिसके लिए उसने मुझसे बाद में माफ़ी भी मांगी. हमारे सर जो आगे कहीं बस में खर्राटे भर रहे थे.
वरुण के साथ वक्त बहुत अच्छा गुज़र रहा था. उसने मुझे हंसा हंसा के मेरे गालो में दर्द करवा दिया. इसी बीच उसने मुझसे पूछा कि तुम्हारा कोई बॉय फ्रेंड नहीं है.
मैंने कहा- नहीं. उसने कहा तुम बहुत प्यारी हो तुमसे कभी किसी लड़के ने उलटी सीधी कोई बात नहीं की. मैंने कहा- कही है मेरी क्लास के लड़कों ने भी कही है और मेरे कालोनी के लड़कों ने भी. जब भी कोई ऐसी बात करता है तो मेरा एक ही सवाल उनसे होता है कि क्या वो मुझसे शादी करेंगे. अगर वो कहते हैं- हाँ तो में कहती हूँ की ये सब तो फ़िर शादी के बाद भी हो सकता है इतनी जल्दी किस बात की है. और अगर वो कहते हैं न तो मैं कहती हूँ कि जिसे ख़ुद पे ही इतना भरोसा नहीं कि वो मेरे साथ जिंदगी बिता भी पायेगा के नहीं ऐसे इन्सान को में अपना सब कुछ कैसे सोंप दूँ…!! और बात यही ख़तम हो जाती है.
मेरी बात सुनके हँसते हुए उसने कहा तुम बहुत चालू लड़की हो सही ग़लत खूब समझती हो. पर मैं तुमसे पहली और आखिरी बार कह रहा हूँ- तुम मुझे इस तरह से मत देखा करो, हम सिर्फ़ अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं. अगर एक दोस्त की तरह रहोगी तो मुझमें एक सच्चा दोस्त पाओगी और अगर तुम दोस्त बन के नहीं रहना चाहती तो मुझसे दूर रहो. मुझ पे काफी जिम्मेदारियाँहै और अभी ये उमर भी नहीं है हमारी ये सब करने की, न ही ये कोई खेल है. ऐसे जल्दी में लिए फैसलों से जिंदगी बर्बाद भी हो सकती है. मुझे अब तक समझ नहीं आया कि वो मेरे मन की बात कैसे जान लेता है.
आज का अंक यही समाप्त हुआ अगला भाग आपको जल्दी ही मिल जाएगा…!!!!
मैं अपने पाठकों को अपनी कहानी के हर एक छोटे से छोटे पहलू से अवगत कराना चाहती हूं, इसलिए प्यारे पाठको! मैं जानती हूं कि आप कुछ और ही पढ़ना चाह रहे होंगे इस कहानी में, पर अभी उसमें बहुत देर है। इसलिए संयम बनाए रखें और पढ़ते रहें। मेरी अपने पाठकों से तहे दिल से गुज़ारिश है कि वो अपनी प्रतिक्रियाएं सिर्फ़ ई-मेल से भेजें- [email protected] 0410
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