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नमस्कार दोस्तो, आपका चहेता लेखक संदीप साहू एक बार फिर आप लोगों की सेवा में हाज़िर है.
आपने मेरी पिछली कहानी गीत मेरे होठों पर पढ़ी और आपके हजारों की तादाद में ईमेल आए. जिसके लिए आप सभी का शुक्रिया.
उस सेक्स कहानी में आपने गीत की चढ़ती जवानी के बाद यौवन की मस्ती के दौर को पढ़ा था.
पतली-दुबली गीत अब गजब की खूबसूरत माल और कटीले कामुक बदन की मल्लिका बन चुकी थी. उसकी सहेलियों में मनु का शरीर पहले से भरा-पूरा था इसलिए अब उसकी कसावट में कमी आ गई थी. दूसरी सहेली परमीत का बदन भरा हुआ होने के बावजूद अब भी कसा हुआ भी था, पर वो नाजुक जिस्म की मल्लिका नहीं लगती थी.
गीत ने कहानी आगे बढ़ाते हुए मुझे बताया कि परमीत के घर लेस्बियन सेक्स के मजे और दीदी के डिल्डो से चरमानंद की प्राप्ति के बाद, मेरा मन लंड और वैसे ही कामुक पलों के लिए आतताई होने लगा था. इसीलिए मौका देखकर हम लेस्बियन सेक्स कर लिया करती थी. कभी मनु, कभी परमीत तो कभी दीदी के साथ संबंध बन जाते थे.
पर परमीत के यहां उसकी फैमली के आ जाने के बाद सबका एक साथ मिलना कम ही हो पाता था और ज्यादातर हम खुद ही चूत में डिल्डो या केला डालकर खुद को शांत कर लिया करती थी. लेस्बियन सेक्स के साथ हम सभी बियर और सिगरेट का मजा भी लेने लगे थे.
एक दिन मनु के घर वाले दिन भर के लिए बाहर गए थे तो हमने दिन में ही मजे करने का प्रोग्राम बना लिया.
मैं परमीत और मनु हम तीनों मजे करते हुए जब एक दूसरी के साथ लेस्बीयन सेक्स चुदाई कर रही थी तो परमीत ने कहने लगी- यार, तुम लोगों से चुदाई करके जीवन का आनन्द ही आ जाता है. लेकिन मैं सोचती हूँ कि कब तक डिल्डो से ही काम चलाएंगे, हमें कोई लंड भी नसीब होगा या नहीं. मैंने कहा- कुतिया, तू अभी नकली से मजे कर … चुदाई के बाद हम असली लंड से चुदाई के बारे में बात करेंगे. परमीत ने कहा- हां यार मैं मजे तो कर ही रही हूँ, लेकिन सोचती हूँ उस दिन वाला संजय का लंड फिर मिल जाता, तो कितना मजा आता.
परमीत ने जब ये बात कही, तब मैं झड़ने वाली थी. उसकी बातों के जवाब में मेरे मुँह से निकल गया- आहह संदीप … आह … ऐसे ही चोदते रहो … आहह संदीप लव यू यार! यह कहते हुए मैं झड़ गई.
सच कहो, तो मैं संदीप के लंड की कल्पना की वजह से ही जल्दी झड़ी थी.
फिर दोनों ने भी चरम सुख को पा लिया और हमने बिस्तर को घर को व्यवस्थित करके खुद भी नादान बन कर बातें करने बैठ गए. इस दौरान दोनों ने मुझे संदीप के नाम से चिढ़ाया और उसे जल्दी पटाने की बात कही. मैंने भी परमीत को संजय से नजदीकी बढ़ाने और कोमल से बदला लेने की सलाह दे डाली. हम दोनों ने मनु से भी कहा कि तू भी किसी के लंड का जुगाड़ कर ले.
ये बात भले ही मजाक के तौर पर हो रही थी, पर सच में अब मुझे किसी की जरूरत महसूस होने लगी थी.
मैं मनु के घर से वापस आ गई और आज के मजे की वजह से मुझे जल्दी नींद भी आ गई. लेकिन एक दो दिनों बाद चूत की खुजली फिर से बढ़ने लगी और मुझे लंड की याद आने लगी.
वैसे संदीप और संजय पहले भी हमारे पास आने की कोशिश करते थे, पर हम लोगों ने ही कभी भाव नहीं दिया था. पर अब हालत कुछ और थी. मैं खुद ही संदीप के पास आने का बहाना ढूंढ रही थी. उधर परमीत ने संजय से करीबी बढ़ा ली थी. मनु किस पर डोरे डाले, वो आज भी नहीं समझ सकी थी.
मेरी किस्मत पहले लहराई.
एक दिन जब हम कॉलेज जा ही रहे थे, तो कैंपस में संदीप ने पीछे से आवाज लगाई- गीत … ओ गीत … जरा एक मिनट रूको तो सही.
उसकी आवाज ने मेरे दिल में हलचल मचा दी … मैं अपनी सहेलियों समेत रूक गई.
संदीप ने मनु और परमीत से कहा- गीत को छोड़ दीजिए और आप लोग चले जाइए, ये थोड़ी देर में आ जाएगी. इस पर परमीत ने छेड़ते हुए कहा- ना बाबा … हम अपनी सहेली को अकेले छोड़कर नहीं जाएंगी.
पर मैंने जाने का इशारा किया, तो वो लोग चली गईं और जाते-जाते कह गईं- हमारी सहेली नाजुक है, जरा ख्याल रखना. इस बात पर मैंने शर्माने जैसा चेहरा बनाया.
संदीप ने कहा- जी … मैं समझा नहीं! तो परमीत ने और जोर से कहा- समझ जाओगे बच्चू!
इस पर संदीप ने कोई जवाब नहीं दिया और वो भी शरमा कर मुस्कुराने लगा.
उनके जाते ही मैंने नखरे दिखाते हुए कहा- जल्दी बताओ क्या काम है? संदीप ने भी नखरे दिखाते हुए कहा- काम तो कुछ नहीं है. तो मैंने कहा- तो मुझे रोका क्यूँ? संदीप ने आंखें नचाते हुए कहा- बस यूँ ही.
अब मैं झल्ला कर पैर पटकते हुए जाने लगी, तो संदीप ने लपक कर मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- अरे जरा रुको तो, इतनी जल्दी नाराज होना भी अच्छी बात नहीं.
ऐसे भी मेरा गुस्सा दिखावे का था और अब उसके स्पर्श से मन में प्रेम तरंग हिलौरें मारने लगी. मैंने जवाब में कुछ नहीं कहा … बस चुपचाप खड़ी हो गई.
संदीप ने पास ही पेड़ के नीचे बने हुए चबूतरे पर बैठ कर बात करने के लिए आग्रह किया. मैं तो उसके नीचे लेटने के लिए तैयार थी, तो उसके बैठने की बात भला कैसे टालती.
हम उधर पर चिपक कर तो नहीं पर पास-पास ही बैठ गए.
संदीप ने कहा- सॉरी यार, शायद मैंने आज ज्यादा ही गुस्ताखी कर दी. इस पर मैंने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा- छोड़ो … अब कुछ सोचना कैसा. हम फ्रेंड बन गए. उसने कहा- हम तो फ्रेंड पहले से ही हैं, गर्लफ्रेंड बनोगी … तो कहो!
मैंने सोचा नहीं था कि वो इतनी बेबाकी से ये बात कह देगा. मैं सन्न होकर खामोश बैठी रही.
तभी संदीप हंसते हुए कहने लगा- अरे इतना सोचो मत … मैं मजाक कर रहा था.
मुझे हाथ आई खुशी वापस छिनते नजर आई, पर मैं मौन ही रही.
फिर वो मजाक के लिए माफी मांगने लगा, तो मैंने कहा- छोड़ो सारी बात और ये बताओ कि तुमने मुझे क्यों रोका है?
तो संदीप ने एक गहरी सांस ली और कहा- मुझे पता है तुम्हारा बर्थडे अगले महीने की दस तारीख को आएगा, पर मेरा बर्थडे तो कल ही है. अगर तुम मेरे बर्थडे पर आओगी, तो मुझे बहुत खुशी होगी. मैंने कहा- मुझे घर में इजाजत नहीं है कि मैं किसी लड़के की बर्थडे पार्टी में जाऊं. इस पर संदीप ने कहा- अरे पार्टी नहीं रखी है, मैं तो सिर्फ तुम्हें बुला रहा हूँ. मेरे घरवाले भी होंगे, चाहो तो तुम अपनी फैमिली वालों के साथ आ जाओ.
संदीप की इस शराफत ने तो दिल ही लूट लिया. फिर भी मैंने वहां से उठते हुए कहा- बुलाने के लिए धन्यवाद, आने की कोशिश करूंगी, पर वादा नहीं कर सकती. उसने कुछ नहीं कहा.
फिर मैंने जाते हुए कहा- संदीप, अगर तुमने गर्लफ्रेंड वाली बात मजाक में ना कहकर सच में कही होती, तो तुम्हें जबाव हां में भी मिल सकता था.
मैं इतना कहकर वहां से भागने लगी, तो संदीप अपना सर खुजाने लगा. शायद उसे भी मौका गंवाने का मलाल था.
फिर उसने जोर से आवाज लगाकर कहा- कल मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा, तुम्हें आना ही होगा.
मैं क्लास में बैठी संदीप की ही यादों में खोई रही, कौन आया क्या पढ़ाया, कुछ पता नहीं. उस पर परमीत और मनु ने मुझे बार-बार संदीप के नाम से छेड़ कर और बेचैन कर दिया.
फिर जब कॉलेज से जाने के लिए मैं अपनी सहेलियों के साथ निकल रही थी, तो संदीप फिर मिल गया. उसने रोक कर कहा- मनु परमीत आप लोग भी कल गीत के साथ आइएगा. इस पर परमीत ने कहा- ना बाबा, मैं कवाब में हड्डी नहीं बनूंगी.
यह कह कर मनु परमीत ने ताली देकर जोरों का ठहाका लगा दिया.
तो संदीप ने लड़खड़ाती जुबान में कहा- जी ऐसा कुछ नहीं है.
मैं अपनी पुस्तकों से परमीत और मनु को पीटते हुए वहां से हटा ले गई.
आगे जाने के बाद मैंने पलट कर देखा, तो संदीप मुस्कुराते और शर्माते हुए मुझे ही देख रहा था. हमारी नजरें मिलीं और मेरे होंठों पर मुस्कान तैर गई. फिर मैंने भी पलकें झुका लीं. शायद शरमा के पलकें झुकाने का अर्थ हर इंसान समझता है.
रात तो मैंने बिस्तर में छटपटा कर ही काटी और दूसरे दिन सुबह से ही मैं नहा धोकर पास के मंदिर में जाकर माथा टेक आई. वैसे मंदिर जाना मेरे लिए नई बात नहीं थी, पर आज मैं भगवान से कुछ खास मांगने गई थी. मैं अपने ख्वाबों के राजकुमार संदीप की जिंदगी में खुशियों की बहार मांगने गई थी.
मेरे घर के लोग मेरी खुशी के अनजान रहस्य को समझने की कोशिश में आखिर में पूछ ही बैठे कि क्यूँ रे गीत … आज इतनी खुश क्यों है. मैं एक पल के लिए तो हड़बड़ा गई … पर दूसरे ही पल संभलते हुए कहा- आज एक सहेली का जन्मदिन है … आज उससे पार्टी लेनी है, हो सकता है आज कॉलेज से आने में देर भी हो जाए. मां ने कहा- अच्छा ऐसी बात है, पार्टी तक तो ठीक है … पर देर मत करना. नहीं तो तू अपने भैया का गुस्सा जानती ही है.
मैंने कुछ नहीं कहा, बस तैयार होने में व्यस्त हो गई. मैं आज बहुत खूबसूरत लगना चाहती थी, लेकिन साथ ही यह भी चाहती थी कि मैंने आज के लिए स्पेशल तैयारी की है, इस बात की किसी को भनक भी न लगे.
मैंने अपने पुराने कपड़े ही पहने. लेकिन बहुत से कपड़ों में से मैंने अपनी लक्की ड्रेस, पीले रंग के पटियाला सूट को पहना. जिस पर नीले रंग का दुपट्टा डाल लिया. कुरती पुरानी होने के कारण बहुत टाइट हो रही थी, जिसमें से मेरे शरीर के कटाव और बनावट स्पष्ट परिलक्षित हो रहे थे.
मैंने नार्मल से थोड़ी ऊंची सैंडल पहनी, कानों पर बड़ी सी बाली, आंखों में काजल और होंठों पर सुर्ख लाल रंग की लिपिस्टिक का शृंगार कर लिया था. एक हाथ में सुंदर घड़ी, दूसरे हाथ में सुंदर सा ब्रेसलेट और कंधे पर एक पर्स, जिसमें जेब खर्चे से बचाए हुए पैसे उपहार खरीदने के लिए रख लिए.
और हां आज मैं सच में बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी, कपड़ों की वजह से नहीं, बल्कि अंतर्मन की खुशी की वजह से. मेरे चेहरे में निखार था, त्वचा दमक रही थी, सांसों में भी महक थी.
मैं अपनी सायकिल उठा कर कॉलेज के समय पर घर से निकली. मनु और मैंने कॉलेज से ही संदीप के घर जाने का प्लान बनाया था, क्योंकि परमीत ने अपने जाने के लिए पहले ही मना कर दिया था.
मेरे कॉलेज तक पहुंचते-पहुंचते पता नहीं कितने लोगों ने मुझे खा जाने वाली नजरों से घूरा होगा. हो सकता है ये मेरा भ्रम ही हो, पर लोगों का मुझे घूर कर देखना … मेरी खूबसूरती के लिए इनाम जैसा था.
मैंने मनु को दस बजे कॉलेज के बाहर मिलने को कहा था, पर कमीनी अभी तक नहीं आई थी. इसी गुस्से से मैं लाल-पीली होने लगी. आज कॉलेज के आस-पास सूनापन भी कुछ ज्यादा ही लग रहा था.
फिर लंबे इंतजार के बाद मनु की झलक दिखी और जब वो पास आई, तो मैंने आवाज की गति से उसे गाली देना प्रारंभ कर दिया. जब मैंने जी भर के गालियां दे लीं, तो मैं हांफने लगी और वो कुतिया मुस्कुरा रही थी.
मैंने कहा- ये क्या कमीनी … तू बेशर्म हो गई है … गाली खाकर भी मुस्कुरा रही है. उसने कहा- अपनी ही सहेली से गाली खाने में हर्ज ही क्या है … और गीत डार्लिंग वैसे भी मुझे तू गालियां नहीं दे रही थी, मुझे तो तेरे प्यार की बेचैनी ने गालियां दी हैं.
इस बात पर मैं मुस्कुराना चाह रही थी, खुशी से झूमना चाह रही थी, पर मैं अभी भी अपनी बेचैनी को प्रगट नहीं करना चाहती थी. मैं अब भी गुस्से वाला चेहरा लिए उससे सवाल कर रही थी.
मैं- तू कहना चाहती है कि तूने देरी करके कोई गलती नहीं की, तेरे हिसाब से सारा दोष मेरा ही है. मनु ने कहा- गीत रानी … घड़ी देख अभी क्या समय हुआ है. उसके कहते ही मैंने कहा- अभी ग्यारह बजने वाले हैं, जबकि मैंने तुझे दस बजे बुलाया था.
मनु सायकिल से उतर कर पास आई और मेरे हाथों को पकड़ कर मुझे मेरी ही घड़ी दिखाकर बोली- जरा ढंग से देख कुतिया … अभी दस ही बज रहे हैं और मैं समय से पहले ही तेरे पास आ गई हूँ. मैं इसीलिए कह रही थी कुतिया कि तेरी संदीप के लिए बेचैनी ही मुझे गालियां दे रही हैं. गीत तुझे प्यार नहीं बेइंतहा प्यार हो गया है.
मैं उसकी बातों से शरमा गई और उससे लिपट गई.
सच में मैं संदीप से मिलने के लिए इतनी बेचैन हो गई थी कि मैंने नौ बजे को दस बजे समझ लिया और दस बजे को ग्यारह, मतलब मैं नौ बजे से ही कॉलेज आ गई थी. शायद इसीलिए आज सूनापन लग रहा था.
मनु ने मुझे खुद से अलग किया और मेरे सर पर हाथ घुमा कर अपनी कनपटी पर टिका कर उंगलियां फेरते हुए नजर उतारी और मेरी खूबसूरती की तारीफ की.
इससे मैं और शर्मा गई, पर खुद को सामान्य दिखाने का प्रयास करते हुए कहा- चल रे कुतिया … चने के झाड़ में मत चढ़ा, तू भी तो गजब की पटाखा लग रही है. कहीं संदीप पर तेरी नजर तो नहीं है ना? इस पर मनु ने कहा- तेरे सामने तो मैं कुछ भी नहीं … और ना ही तेरे जितनी बुलंद मेरी किस्मत है. इसलिए तू मेरी चिंता छोड़ … और यहां से जल्दी चल, वहां इसी बेसब्री से तेरा इंतजार भी हो रहा होगा.
अब हम दोनों निकल पड़े. सीधे-सीधे जाने से संदीप का घर ज्यादा दूर नहीं था, पर हमें तो उसके लिए उपहार भी लेना था, इसलिए हमने मार्केट वाला रास्ता पकड़ा, जो थोड़ा घूमकर उसके घर पहुंचता था.
हमारे मन में चोर था, इसलिए पहचान वाले दुकानों को छोड़कर दूसरे की दुकान में पहुंच कर उपहार चयन के लिए दुविधा में पड़ गए. जल्दबाजी में दुकानदार को परेशान भी करने लगे. दो दुकानदारों ने तो झिड़क कर हमें भगा भी दिया. वैसे तो हमें बहुत बुरा लगा, पर सर पर तो संदीप की धुन सवार थी, इसीलिए हम दोनों सामने ही एक तीसरी दुकान पर उपहार छांटने पहुंच गए.
तीसरी दुकान में पहुंच कर हमने एक बढ़िया उपहार दिखाने को कहा.
दुकानदार युवा था और पढ़ा-लिखा लग रहा था. उसने पहले हमें बैठने को कहा, फिर पूछा कि उपहार किस मौके के लिए है और किसके लिए है?
इस पर हमने जन्मदिन का अवसर कहा और फ्रेंड के लिए बता दिया.
उस युवा दुकानदार ने मुस्कुरा कर कहा- फ्रेंड या बॉयफ्रेंड? इस पर हमने थोड़ा सख्त लहजे का प्रयोग करते हुए कहा- सिर्फ फ्रेंड है और आप अपना काम कीजिए. इस पर उसने कहा- देखिए मैं आप लोगों को काफी समय से देख रहा हूँ, आप लोग दुकानों में गए और निकल आते हैं, ऐसे में आप बिना पसंद या जानकारी के उपहार पसंद नहीं कर सकते. इस पर मनु ने मस्ती से कह दिया- अभी पटा नहीं है … इसलिए बॉयफ्रेंड नहीं कह सकते. अब समझ गए हो, तो जल्दी सामान दिखाओ.
इस पर उसने हंसते हुए बहुत से रोमांटिक एंटीक पीस दिखाया और हर एक की खूबी बताते हुए प्रशंसा करने लगा. पर हमें कोई भी दिल को छूने लायक पसंद नहीं आ रहा था. अब उसने कुछ सोचा और सीढ़ियों पर चढ़कर एक कपल वाला खूबसूरत एंटीक पीस निकाल कर सामने रख दिया.
मनु को देखते हुए उसने कहा- ये रखो … अगर इस उपहार से भी वो ना पटे, तो ये मुझे दे देना … मैं जरूर पट जाऊंगा.
उसकी इस बात पर हमने कुछ नहीं कहा. वो उपहार सात सौ रूपये का आया. हमने उसे अच्छे से पैक करवाया. इस दौरान वो दुकानदार मनु को ही ताड़ रहा था. अब हम उपहार लेकर उसके दुकान से निकल गए और वो दूर तक हमें देखता रहा.
मैंने गौर किया कि मनु भी उसे बार-बार पलट कर देख रही थी.
कुछ दिनों बाद पता चला कि वो दुकानदार मनु का ब्यायफ्रेंड बन गया था, इस तरह मनु को ही सबसे पहले बॉयफ्रेंड मिल गया. खैर ये अलग विषय है, इसकी कहानी फिर कभी.
अभी तो हम दोनों देर होने की आशंका के चलते हड़बड़ी में संदीप के घर पहुंचे.
वहां हम उसके सामने से घर की चौखट पर ही पहुंचे थे कि ‘आइये ना अन्दर आइये..’ की आवाज कानों से टकराई.
वो संदीप ही था, जो हमारे इंतजार में नजरें बिछाए बैठा था. उसे देखते ही मेरा मन खिल उठा, धड़कनें तेज हो गईं. शायद यही हाल संदीप का भी था.
कहानी जारी रहेगी.
मेरी रोमांस भरी कहानी पर आप अपनी राय इस पते पर दे. [email protected]
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