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दोस्तो, आपकी प्यारी कोमल एक नई सेक्स कहानी के साथ एक बार फिर से आपके सामने हाज़िर है.
मेरी पहली सेक्स कहानी मैं कैसे बन गई चुदक्कड़ को लेकर आप सबके बहुत सारे सन्देश मुझे प्राप्त हुए. बहुत सारे लोगों ने मुझसे हमेशा सत्य घटना वाली सेक्स कहानी लिखने का मशविरा दिया है. आप सभी की सलाह मानकर मैंने अपनी कुछ सहेलियों से संपर्क किया और वो अपनी सेक्स जिंदगी की कहानी बताने के लिए तैयार भी हो गई हैं. इसलिए मुझे कई सेक्स कहानियां प्राप्त हो गई हैं जो मैं धीरे धीरे आप लोगों के सामने प्रस्तुत करती रहूँगी.
आज इसी कड़ी में मैं आपको मेरे घर के पास की ही एक भाभी की कहानी बताने जा रही हूं, जो एक किराये के मकान में रहती हैं. इसमें आप जानेंगे कि कैसे भाभी का अपने मकान मालिक से सेक्स का रिश्ता शुरू हुआ.
भाभी का नाम मल्लिका है. उनकी बताई हुई कहानी को मैंने लिखा भर है, बाकी जो कुछ भी हुआ है, वो सब भाभी अपनी जुबानी आपको बता रही हैं. आगे की दास्तान मल्लिका भाभी की जुबानी कुछ इस तरह से है.
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम मल्लिका है मेरी उम्र 27 साल है. मेरी शादी को 3 साल पूरे हो चुके हैं, पर अभी कोई बच्चा नहीं है. ऐसा नहीं है कि मेरे पति या मुझमें कोई कमी है. बस अभी हम दोनों ही बच्चा नहीं चाहते थे क्योंकि अभी हम लोग किराये के मकान में रहते हैं और जब हमारा खुद का घर होगा, तब हम बच्चे के बारे में सोचेंगे.
मैं आगे बढ़ने से पहले अपने बारे में बता दूँ. मैं 5 फुट 6 इंच लम्बी हूं, गोरी हूं और एक मस्त फिगर की मालकिन हूँ. मेरी ब्रा की साइज 36, कमर 30 की है और गांड 36 की है. मेरे कॉलेज टाइम में लड़के मुझ पर जान देते थे. पर मैंने शादी के बाद ही पहली बार अपने पति के साथ सेक्स किया था.
हम लोग शहर में एक किराये के मकान में रहते हैं. यहां मैं और मेरे पति ही रहते हैं. हमारा अपना घर यहां से 160 किलोमीटर दूर गांव में है. मेरे पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. अपने काम के कारण उनको ज्यादातर बाहर आना जाना लगा रहता है.
जिनके यहां हम लोग किराये से रहते हैं, उनके यहां चार लोग रहते हैं. मकान मालिक, उनकी पत्नी और उनके 2 बेटे. हम लोग घर के पीछे वाले रूम में रहते हैं और सामने मकान मालिक लोग रहते हैं.
घर पर मैं हमेशा साड़ी ही पहनती हूं. पर कभी कभी गाउन भी पहन लेती हूं. मेरे दूध काफी बड़े हैं, इसलिए ब्लाउज से मम्मों के बीच की लकीर साफ़ साफ़ दिखाई दिया करती है. जब भी मैं बाहर जाती हूं, तो लोगों की नज़र मेरे दूध और गोरी कमर पर ही टिकी रहती है.
मैं अक्सर अपने मकान मालिक के यहां उनकी बीवी से मिलने बातचीत करने जाती रहती हूं. उनकी उम्र 40 साल की है, फिर भी हम दोनों में काफी जमती है.
उनके पति 45 साल के हैं. वो हमेशा मुझे एक अलग ही निगाह से देखा करते थे. मुझसे बात करने का कोई न कोई बहाना निकालते रहते थे.
मुझे भी उनसे बात करने में कोई हिचक नहीं होती थी. इसका एक कारण ये भी था कि मैं भी अपनी सेक्स लाइफ से उतनी खुश नहीं थी … क्योंकि पति हमेशा बाहर रहते थे … और सेक्स में भी उनका उतना इंट्रेस्ट नहीं था. कभी कभी ही हम लोग सेक्स करते थे. उनका लंड भी साधारण ही था. मैं शादी के बाद बहुत कम बार ही संतुष्ट हो पाई थी. पर जैसा कि मैंने ऊपर बताया था कि मुझे इस सबसे बच्चा होने में कोई दिक्कत नहीं थी. बच्चा पैदा होना एक अलग बात होती है और शरीर की संतुष्टि होना एक अलग बात होती है.
इन सभी कारणों के चलते कहीं न कहीं मेरे दिल में सेक्स के लिए एक हलचल रहती थी. टीवी पर भी कोई कामुक सीन देखकर मैं बड़ी जल्दी गर्म हो जाती थी. पति के न रहने पर अक्सर उंगलियों का सहारा लिया करती थी. मगर एक मर्द की कमी बनी रहती थी.
मेरे दिन इसी तरह गुजर रहे थे. मुझे क्या पता था कि मेरी किस्मत में अभी क्या लिखा था.
एक दिन मेरी मकान मालकिन कुछ दिनों के लिए अपने मायके जा रही थीं. उनके दोनों बच्चों के स्कूल की छुट्टियां चल रही थीं, तो वो घूमने के लिए अपने पीहर जा रही थीं.
उस दिन सुबह सुबह ही वो निकल गईं, जाते वक्त मुझसे मिल कर गईं और उन्होंने मुझसे कहा कि घर की तरफ थोड़ा ध्यान दिए रहना.
अब उनके यहां उनके पति ही रह गए थे. मैं भी अपना दिन भर का काम निपटा कर सो गई.
गर्मियों के दिन थे, शाम के 6 बज चुके थे. दोपहर की थकान मिटाने के बाद मैं उठी और सोचने लगी कि पति काम से आते होंगे … क्यों न पहले नहा लूं, फिर कुछ काम करूंगी.
मैं बाथरूम में चली गई और अपनी साड़ी उतार कर नहाने लगी. उस वक्त मैं बस ब्रा पेंटी में थी. गर्मियों में ठंडा ठंडा पानी मुझे काफी अच्छा लग रहा था. मैं यूं ही धीरे धीरे ठंडा पानी अपने ऊपर डाल रही थी.
तभी अचानक से दरवाजे की घंटी 3 बार बजी. मैं समझी कि मेरे पति आ गए क्योंकि वो हमेशा 3 बार ही घंटी बजाया करते हैं. मैं बाथरूम से वैसे ही ब्रा पेंटी में बाहर निकली और दरवाजा खोल दिया.
मैंने सामने देखा, तो मेरे मकान मालिक सामने खड़े थे. मेरी हालत तो जैसे काटो तो खून नहीं, मैं उनके सामने लगभग नंगी खड़ी थी. मेरे मुँह से निकला- अरे आप!
इतना कहकर जोर से बाथरूम की ओर भागी और तुरंत ही तौलिया लपेट लिया. मेरी सांसें काफी तेज़ी से चल रही थीं,
मैंने वहीं दरवाजे की आड़ से आवाज लगाई- हां बोलिए कोई काम है क्या? वो बोले- अरे शायद तुम्हारा फ़ोन बंद है … तुम्हारे पति ने मेरे पास फ़ोन किया है, लो उससे बात कर लो … उसे कोई जरूरी काम है शायद.
उस समय मेरी सोचने समझने की शक्ति एकदम खत्म हो गई थी. मुझसे ये भी कहते नहीं बना कि मैं अभी कुछ देर में उनसे बात करे लेती हूँ. अभी तो मेरे सारे कपड़े अन्दर कमरे में थे. मैं सोचने लगी कि अब क्या करूँ. मैंने तौलिया को अच्छे से कस लिया और हिम्मत जुटाते हुए बाहर आ गई.
उन्होंने कहा- तुम्हारा फ़ोन क्यों बंद है? “अरे हां … वो मेरे फोन की बैटरी निल हो गयी थी.”
उन्होंने अपने फ़ोन से मेरे पति का नम्बर लगाया और फोन मुझे दे दिया. मेरी सांस तेज़ चल रही थीं, इसलिए मेरे दूध ऊपर नीचे हुए जा रहे थे. मकान मालिक की नजर मुझसे हट ही नहीं रही थी. वो मेरे पूरे गीले बदन को अपनी नशीली आंखों से घूरे जा रहे थे.
मैं पति से बात करने लगी. पति बोले- अचानक से मुझे बाहर जाना पड़ रहा है … मैं 2 या 3 दिन में वापस आऊंगा.
ये तो मेरे लिए आम बात हो गई थी, इसलिए मैंने ओके कह कर फ़ोन काट दिया और फ़ोन उनको वापस कर दिया.
उनके चेहरे में एक अलग ही मुस्कान थी. वो बोले- क्या कोई जरूरी काम था? मैं बोली कि हां वो एक दो दिन के लिए बाहर जा रहे हैं … इसलिए बताने के लिए फ़ोन किया था. वो ‘अच्छा..’ बोल कर चल दिए और तुरन्त पलट कर मुस्कुराते हुए बोले कि ऐसे ही दरवाजा मत खोल दिया करो, कुछ पहन लिया करो. मैं शर्माते हुए बोली- अरे मैंने सोचा कि मेरे पति होंगे, इसलिए ऐसा हुआ.
फिर वो हंस कर चले गए. मैंने दरवाजा बंद किया और चैन की लम्बी सी सांस लेते हुए कपड़े पहनने लगी. मेरे मन में बार बार वही बात सोच कर अज़ीब सी शर्म चेहरे पर आए जा रही थी.
कुछ ही देर में अन्धेरा हो गया और मैं घर का काम करने के बाद बाहर आंगन में बैठी हुई थी. गर्मी काफी थी, मई का महीना चल रहा था. मुझे वहां पर ठंडी ठंडी हवा में बैठना काफी अच्छा लग रहा था.
अचानक मेरी नजर पड़ी कि मेरे मकान मालिक मेरे रूम की तरफ ही आ रहे थे. मैं झट से खड़ी हो गई. वो आकर बोले- अरे मैं अकेला था, तो सोचा कि आज तुम्हारे यहां चाय पी लूं. मैंने मन में सोचा कि इतनी गर्मी में कोई चाय पीता है क्या. पर मैं उनसे बोली- हां क्यों नहीं … आप बैठिए मैं अभी बना कर लाई.
वो वहीं आंगन में रखी कुर्सी में बैठ गए और मैं अन्दर रसोई में चली गई. चाय बनाते हुए भी मैं शाम वाली ही सोच रही थी. शायद उनके मन में भी जरूर यही बात चल रही होगी.
कुछ देर में ही चाय लेकर मैं उनके पास गई. चाय पीते हुए उनकी नजर बार बार मेरी तरफ ही आ रही थी. पर हम दोनों ही पता नहीं क्यों … कुछ बोल नहीं रहे थे.
चाय पीकर उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा और चले गए.
मैंने भी कमरे में आकर अपना खाना खाया और टीवी देखने लगी.
ऐसे ही रात के 12 बज चुके थे … मगर मेरी आंखों में न जाने क्यों नींद का नामों-निशां नहीं था. इसलिए मैं अपने रूम की छत पर चली गई और टहलने लगी.
एक मिनट बाद मेरी नजर मकान मालिक की छत पर पड़ी. वो भी अपनी छत पर टहल रहे थे. मगर वो मुझे देख नहीं पा रहे थे … क्योंकि मेरी छत पर अन्धेरा था … और उनकी छत पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी आ रही थी. मैं उनको देखे जा रही थी कि वो क्या कर रहे हैं.
मैंने ध्यान दिया कि वो अपने लंड को अपने हाथों से सहला रहे थे. मुझे बस उस वक्त यही दिमाग में आया कि शायद वो इस वक्त मेरी ब्रा पेंटी वाली छवि को याद करते हुए ऐसा कर रहे हैं.
तभी मेरे फ़ोन में मेरे पति का कॉल आ गया और रिंगटोन की आवाज से उनको भी पता लग गया कि मैं भी अपनी छत पर हूं.
मैंने कुछ देर पति से बात की और वापस रूम में चली गई. मैं बिस्तर में लेटी जरूर थी … मगर नींद अब भी मुझसे कोसों दूर थी. किसी तरह मेरी वो रात कटी.
सुबह मैं फ्रेश हुई और नहा धोकर खाने की तैयारी कर ही रही थी कि मकान मालिक फिर से आ गए.
उन्होंने कहा- खाने में क्या बना रही आज … जो भी बना रही हो ज्यादा बना लेना … क्योंकि मैं आज ऑफिस नहीं जा रहा हूँ … और मेरा खाना बनाने का मन नहीं हो रहा है. मैं सामन्य स्वर में बोली- हां क्यों नहीं … बिल्कुल बना लूंगी.
दोपहर 12 बजे खाना बनकर तैयार था. मैंने सोचा कि क्यों न खाना उन्हीं के यहां दे आऊं. जैसे ही मैंने खाना पैक करने की सोचा, उनकी आवाज आई कि मल्लिका सुनो … मेरा और अपना खाना यहीं ले आओ … साथ में ही खाते हैं.
मैं कुछ बोल पाती, इससे पहले ही वो चले गए. न चाहते हुए भी मैंने हम दोनों का खाना पैक किया … और उनके घर चली गई. मेरी दिल की धड़कनें काफी तेज हो गई थीं. आज से पहले उनका इस तरह का व्यवहार मैंने कभी नहीं देखा था.
मैंने दोनों का खाना लगाया और हम दोनों ही टीवी देखते हुए खाना खाने लगे थे. उनके यहां के एसी की ठंडी हवा में भी मेरी गर्मी उनको साफ़ साफ़ दिख रही थी.
उन्होंने कहा- क्या बात है, तुमको इतना पसीना क्यों आ रहा है? मैं बोली- कुछ नहीं बस ऐसे ही.
सच बताऊं … उस दिन के बाद से ही मेरे अन्दर कुछ अज़ीब सा फील हो रहा था. शायद ये मेरे अन्दर की वासना थी, जिसे मैं अब तक समझ ही नहीं पा रही थी.
किसी गैर मर्द की प्रति मेरे अन्दर ऐसी सोच या ललक आज तक कभी मेरे अन्दर महसूस नहीं हुई थी. मैं यकीन से कह सकती हूं कि यही सब वह भी महसूस कर रहे थे.
कुछ ही देर में हम लोगों ने खाना खत्म किया और मैं हाथ धोने अन्दर की ओर चली गई. अन्दर से जब मैं आई, तो देखा कि वो बर्तन उठा रहे थे. मैंने झट से उनके हाथों से बर्तन ले लिए और इस जल्दबाजी में कुछ बर्तन नीचे गिर गए. मैं उन बर्तनों को उठाने लगी … तभी मेरा पल्लू नीचे गिर गया और मेरे बड़े बड़े मम्मों की गोलाईयां उनके सामने आ गईं.
मेरे दोनों हाथों में ही बर्तन थे, तो मैं समझ नहीं पा रही थी कि पल्लू ठीक कैसे करूं.
उन्होंने खुद से मेरे पल्लू को ठीक किया और कहा- बर्तन यहीं रख दो, कल ले जाना. मैं बोली- नहीं, मैं ले जाती हूं … अभी ही साफ़ कर लूंगी.
उन्होंने मेरे हाथ से बर्तन ले लिए और अन्दर रख आए. फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे में बैठा कर बोले कि मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है. मैं बोली- हां कहिए न … क्या बात है? “देखो मैं जो भी बात करने जा रहा हूं … तुम वादा करो कि केवल अपने तक ही रखोगी.” मैं नजरें नीचे किए हुए बोली- ठीक है आप कहिये तो..!
आज मेरे मकान मालिक मुझसे क्या कहेंगे, इसका मुझे अंदाजा तो हो ही गया था. लेकिन मुझे उनके मुँह से सुनने की अभिलाषा हो गई थी.
आगे की सेक्स कहानी में मैं आपको पूरा वाकिया बताऊंगी … और अपनी चुत चुदाई की कहानी को पूरे विस्तार से आपके सामने पेश करूंगी. आप अपने कमेंट्स मेल कीजिएगा. [email protected] कहानी का अगला भाग: मकान मालिक ने चुत की प्यास बुझाई-2
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