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कहानी के तीसरे भाग में अभी तक अपने पढ़ा था कि एक बार चुदाई के बाद मैं और जेठजी उनके बेडरूम में खाना खाने की तैयारी करने लगे थे. मैं दो प्लेट में खाना लगाकर जेठजी के कमरे में आ गयी.
अब आगे:
जेठजी- दो प्लेट में क्यों? एक में ही खा लेते ना! मैं समझ गयी कि जेठजी रोमांटिक हो रहे हैं. मतलब इस बार और मज़ा आने वाला है. मैं- अब लेकर आ गयी हूं तो खा लेते हैं. जेठजी- ह्म्म.
इसके बाद हम दोनों ने अपनी अपनी प्लेट ले ली. जेठजी बेड पर और मैं स्टूल पर बैठ कर खाना खाने में लग गए.
मेरी नज़र बार बार जेठजी पर ही जा रही थी. आज जेठजी के खाने का तरीका देख कर लगा, जैसे वो जल्दी से खाना खत्म करना चाहते हों. उनकी जल्दी मैं भी समझ रही थी, पर इस बार मैं उन्हें तड़पाना चाहती थी, इसलिए मैं अपना खाना आराम आराम से खा रही थी.
अभी मैंने आधा खाना भी खत्म नहीं किया था, उससे पहले ही जेठजी ने अपना खाना खत्म कर दिया और हाथ मुँह धोकर मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगे. मैं भी उनकी मुस्कुराहट का मतलब समझ रही थी, फिर भी मैं आराम आराम से ही खाने में लगी रही.
कुछ देर में ही मेरा भी खाना खत्म हो गया. मैंने चुपचाप अपनी और जेठजी का प्लेट को उठाया और बिना जेठजी की तरफ देखे रसोई में चली गयी. अभी मैंने सारे बर्तनों को सिंक में रखा ही था कि इतने में जेठजी ने पीछे से आकर मुझे फिर से पकड़ लिया और मुझे बेसिन के पास से हटाकर रसोई के बीचों बीच करके अपनी तरफ घुमा दिया.
मैं उन्हें धक्का देकर अपने से अलग करते हुए बोली- क्या भैया जी, अभी भी आप मुझे श्वेता भाभी ही समझ रहे हैं क्या? इस बार तो मैंने अपनी नाइटी पहनी है.
जेठजी मुझे फिर से अपनी बांहों में जकड़ते हुए बोले- नहीं, इस बार मैं तुम्हें श्वेता नहीं, जस्सी ही समझ रहा हूं. मैं- अच्छा … फिर भी आप मुझसे चिपकते जा रहे हैं? जेठजी- हां … पिछली बार अनजाने में गलती हो गयी थी, लेकिन इस बार जानबूझ कर गलती करनी है. इतना बोल कर जेठजी ने अपने होंठ मेरे होंठों से जोड़ दिया और मेरे होंठों का रसपान करने लगे.
मन तो मेरा भी यही चाहता था कि बाकी कामों के बारे में सोचना छोड़ कर इस पल का मज़ा लूं, पर फिर दिमाग में आया कि पूरी रात बाकी है और जेठजी को भी तो तड़पाना है … इसलिए मैं उन्हें अपने से अलग करते हुए बोली- ठीक है, आपको जो करना है बाद में करना … क्योंकि अभी मुझे बहुत काम करना बाकी है.
इतना बोल कर मैं फिर से बेसिन के पास चली गयी और बर्तन धोने लगी. अभी कुछ ही सेकंड्स बीते ही होंगे कि जेठजी ने पीछे से ही मुझे फिर से अपनी बांहों में जकड़ लिया और मेरी गर्दन को चूमते हुए बोले.
जेठजी- काम तो कल सुबह भी हो जाएगा जस्सी, अभी मुझे और मत तड़पाओ प्लीज! जेठजी की तड़प देखकर मुझे मज़ा आ रहा था, उन्हें और तड़पाने के लिये मैं थोड़ा गुस्से का नाटक करते हुए बोली- नहीं, सुबह आप को भी आफिस जाने की जल्दी होती है और मुझे भी … ये सब काम अभी खत्म नहीं किया, तो सुबह दोनों को लेट हो जाएगा, अभी आप चुपचाप जाकर हॉल में या अपने बेडरूम में बैठिए … और मुझे मेरा काम खत्म करने दीजिए.
मेरे झूठे गुस्से का असर जेठजी पर हुआ, अब वो चुपचाप वहीं खड़े खड़े कभी बर्तनों को, तो कभी मुझे घूर रहे थे. मैं चुपचाप अपने काम में लगी रही.
तभी अचानक जेठजी ठीक मेरे बगल में आकर बेसिन के पास खड़े हो गए और मेरे द्वारा मले बर्तनों को धोने लगे. जेठजी की इस हरकत पर मुझे हंसी आ गयी … जल्दी ही हमने बर्तन धो कर रख दिए.
उसके बाद मैं रसोई साफ करने लगी, जेठजी अभी भी वहीं रसोई में ही खड़े खड़े मेरे फ्री होने का इंतजार कर रहे थे.
कुछ ही देर में मैं भी काम से फ्री हो गयी … स्लैब के सहारे खड़ी होकर जेठजी की तरफ देखा, तो वो मुझे ऐसे देख रहे थे, जैसे पूछना चाह रहे हों कि और कौन सा काम बाकी है?
जेठजी का चेहरा देख कर मेरे चेहरे पर अपने आप ही मुस्कुराहट आ गयी, जिसे जेठजी ने अपने लिए ग्रीन सिग्नल समझ लिया. जेठजी मेरे पास आकर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
सच कह तो मैं भी इसी बात का इंतजार कर रही थी और अब जब मौका बन गया, तो मैं भी जेठजी का साथ देने लगी. रसोई में ही मेरे होंठ और जेठजी के होंठों के बीच लड़ाई सी होने लगी. कभी मैं उनके होंठों को अपने दांतों से पकड़ कर खींचती, तो कभी चूसती और यही सब जेठजी भी मेरे होंठों के साथ कर रहे थे.
इस दौरान जेठजी के हाथ और मेरे हाथ एक दूसरे के पिछवाड़े का मुआयना करने में बिजी थे. बीच बीच में जेठजी मेरे दोनों चूतड़ों को कस कर दबा देते, तो मैं भी उनके चूतड़ों को अपनी पूरी ताकत से दबा देती.
कोई 5-7 मिनट तक वैसे ही चुम्मा-चाटी के बाद जेठजी अपना एक हाथ मेरे पिछवाड़े से हटा कर मेरे चुचे पर रख दिए और मेरे दोनों चूचों को बारी बारी से मसलने लगे.
अब मेरा खुद पर से कंट्रोल छूट गया, मैंने खुद को एकदम ढीला छोड़ दिया … या यूं कह लीजिए कि मैंने खुद को पूरी तरह से जेठजी को सौंप दिया.
जेठजी लगातार मुझे चूमे जा रहे थे. कभी गर्दन पर चूमते, कभी गालों पर … तो कभी होंठों पर … साथ ही साथ वो मेरे चूचों को कभी प्यार से सहलाते जाते, तो कभी कस कर दबा देते. मेरे साथ इतना कुछ हो रहा था, जिसका असर मेरी टांगों के बीच हो रहा था. मतलब मेरी चूत रानी पानी पानी हुई जा रही थी.
अब तो मेरी और मेरी चूत दोनों की बेताबी बढ़ने लगी. हम दोनों ही जल्दी से जल्दी जेठजी के लंड से मिलना चाहते थे. इसी बेताबी के कारण मैं जेठजी को खींचते हुए हॉल में लेकर आ गयी. लगभग उन्हें धक्का देते हुए सोफे पर गिरा कर उनके ऊपर चढ़ गई और उन्हें चूमने चाटने लगी.
जेठजी का लंड जो अब तक एकदम कड़क और पूरी तरह तन चुका था. वो मेरी चूत के आस-पास चुभने लगा था. जेठजी को मेरे इस रूप का अंदाज़ा ही नहीं था, वो एकदम भौंचक्के से मेरी हरकतों का मज़ा ले रहे थे.
मैंने जेठजी की टी-शर्ट को निकाल फेंका और उनकी गर्दन से होते हुए सीने को चूमने लगी. जेठजी भी खुद को रोक नहीं पाए … और मुझे पकड़ कर अपने नीचे कर लिया. उन्होंने मेरे टॉप को मेरे शरीर से अलग कर दिया. ब्रा तो मैंने पहनी ही नहीं थी … तो टॉप निकलते ही जेठजी को मेरे चूचों के दर्शन हो गए.
बस वो उन पर टूट से पड़े. पहले हाथ से अच्छे से दोनों चूचों का मुआयना करने बाद जेठजी ने अपना मुँह ही लगा दिया और एक बच्चे की तरह मेरे चुचे चूसने लगे. कुछ देर की चुसाई के बाद एकाएक जेठजी रुक गए और मेरी आंखों में देखने लगे. मैंने भी मौका देखकर जेठजी को पलट कर नीचे कर दिया और एक बार फिर से उनके ऊपर आ गयी.
कुछ देर तक मैं उनके होंठों को … या यूं कह लीजिए कि हम एक दूसरे के होंठों को चूमते और चूसते रहे. फिर मैं चूमते हुए ही धीरे धीरे नीचे की तरफ जाने लगी. मैंने पहले कुछ देर तक सीने को चूमा, फिर पेट को चूमा. उसके बाद मैं रुक गयी और जेठजी की तरफ देखा. जेठजी मेरी तरफ ही देख रहे थे, जैसे वो जानने को बेचैन से थे कि आगे मैं क्या करने वाली हूँ?
मैं उनकी मनोदशा समझ गयी और अब मुझसे भी और देरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए मैं पहले खुद जेठजी के ऊपर से हट गयी और सोफे से उतर कर ठीक जेठजी के दोनों टांगों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गयी. जेठजी का लंड शॉर्ट्स के अन्दर बेचैन हुआ जा रहा था और बार बार झटके पर झटके खाये जा रहा था.
अब और देर करना मुझे भी ठीक नहीं लगा, इसलिए मैंने जेठजी के शॉर्ट्स को पकड़ कर नीचे की ओर खींच दिया. आहहहा … क्या नज़ारा था … जेठजी का लंड, जिसे पहले राउंड में मैं देखने को तड़प गयी थी और पूरी चुदाई के दौरान देख ही नहीं पायी थी. अब उनका लंड ठीक मेरी आंखों के सामने था. लाल सुपारे के साथ गेहुंआ रंग का जेठजी का लंड, जो अभी आसमान की तरफ मुँह उठाये खड़ा था … बीच बीच में कभी वो मेरी तरफ हल्का सा झुक जाता, फिर एक झटके और अकड़ के साथ आसमान की तरफ देखने लगता.
जेठजी के लंड के शिश्नमुण्ड से हल्का हल्का चमकीला द्रव्य पदार्थ निकल रहा था, जिसे हम अंग्रेजी में प्रीकम बोलते हैं.
मेरा अनुमान एकदम ठीक था, जेठजी का लंड मेरे पति के लंड से करीब आधा पौना इंच ज्यादा लंबा और मोटा था.
कुछ देर तक जेठजी के लंड को पकड़ कर मैं ऊपर नीचे करती रही, पर मैं ज्यादा देर खुद को रोक नहीं पायी और गप्प से उनके लंड को अपने मुँह में भर लिया. अब जाकर मुझे थोड़ा सुकून मिला. जैसा कि आप लोग जानते हैं कि पहली बार की चुदाई के दौरान भी मैं जेठजी का लंड चूसना तो चाहती थी, पर शर्म और झिझक की वजह से कह और कर नहीं पायी थी. इस बार जब सब कुछ खुद करने का सोच लिया था, तो मैं इसमें पीछे क्यों रहती. मुझसे जितना अन्दर तक हो पा रहा था, मैं जेठ जी का लंड उतना अन्दर तक अपने मुँह में ले कर अपना मुँह ऊपर नीचे करने में लगी थी.
कुछ ही देर में जेठजी के मुँह से आह आह निकलने लगा. मैं भी पूरी शिद्दत से लगी रही और उनके लंड को चूसती रही.
कभी उनका पूरा लंड मुँह के अन्दर लेने की कोशिश करती, तो कभी सिर्फ सुपारे को दोनों होंठों के बीच फंसाकर चूसती. बीच बीच में मुँह ऊपर नीचे करके अपने जेठ को मैं मुखमैथुन का पूरा मज़ा तो दे रही थी. जेठजी मस्त हो कर मेरी इन सब हरकतों का मज़ा ले रहे थे.
कुछ देर तक मैं वैसे ही घुटनों के सहारे बैठे बैठे ही जेठजी का लंड चूसती रही, पर जल्दी ही मेरे घुटने दुखने लगे, इसलिए मैं उठ खड़ी हुई. लंड पर से मेरा मुँह हटते ही जेठजी ने सबसे पहले अपना शॉर्ट्स जो अभी भी उनके पैरों में फंसा था, उसे निकाल फेंका और उठ खड़े हुए.
फिर मुझे चूमते हुए सोफे पर ठीक उसी तरफ लिटा दिया, जैसे थोड़ी देर पहले वो लेट कर अपना लंड चुसवा रहे थे और खुद ठीक मेरी तरह ही मेरी दोनों टांगों के बीच बैठ गए. जेठजी तो पूरे नंगे हो चुके थे, पर अभी मेरा पजामा निकलना बाकी था. वो पजामा भी ज्यादा देर मेरे शरीर पर रह न सका क्योंकि जेठजी ने पजामे को खींच कर मेरे टांगों से अलग कर दिया.
पैंटी मैंने पहनी नहीं थी. अब हम दोनों जेठ बहू एकदम जन्मजात नंगे हो चुके थे और मेरी चूत ठीक जेठजी के चेहरे के आगे थी. जैसे ही इस बात का एहसास हुआ, मैंने खुद का चेहरा अपने ही हाथों से छुपा लिया और अपनी दोनों टांगों को एक दूसरे से चिपका दिया. वैसे शर्म लिहाज़ तो मैं त्याग ही चुकी थी, पर फिर भी पता नहीं क्यों … मैं ये सब करने से खुद को रोक नहीं पायी.
जेठजी ने पहले मेरी दोनों टांगों को पकड़ कर अलग किया, फिर अपनी उंगली चूत के फांकों में फिराने लगे. मेरी चूत तो पहले से ही पानी पानी हुई थी और जेठ जी मेरी चूत के पानी को अपनी उंगली गीली करके चटखारे लेकर चाटने लगे. दो तीन बार वैसा करने के बाद जेठजी ने अपना मुँह ही चुत पर लगा दिया और मेरी समूची चूत अपने मुँह में भर कर झिंझोड़ डाली.
वो चुत के आसपास का इलाका भी चाट चूम रहे थे. मेरी जांघें चाटने लगे, काटने लगे. साथ ही जेठजी अपने दोनों हाथ ऊपर करके मेरे दोनों दूध दबाने लगे, जिससे मेरे निप्पल तन गए और मुझे चूत चुसवाने का मज़ा आने लगा.
मैंने अपने दोनों पैर उठाकर सोफे पर रख कर और फैला दिए जिससे मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी. जेठजी ने अपना मुँह मेरी खुली चूत में घुसा दिया और मेरे दोनों चूचे कसकर पकड़ लिए. अब वो मेरी चूत की गहराई में जीभ डाल कर चाटने लगे. मेरी निगोड़ी कमर बेशर्मी से खुद ब खुद ऊपर उठ उठ कर चूत उनके मुँह में देने लगी.
मैंने कहा- आह जेठजी … बस अब आ जाओ आप!
मेरी उत्तेजना चरम पर थी और मैं बिना वक्त खोये अपनी चूत में लंड लेना चाह रही थी. जेठजी भी मेरी तड़प समझ गए और बिना देरी किए ही लंड को चूत के मुहाने पर सैट करके एक ही झटके में मेरी चूत में अपना पूरा लंड घुसा दिया.
उसके बाद चूत और लंड की लड़ाई शुरू हो गयी और उससे निकलने वाली ध्वनियां वातावरण को और उत्तेजक बनाने लगीं.
अचानक से जेठजी ने अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया और रुक गए. मैंने सवालपूर्ण नज़रों से जेठजी की तरफ देखा, तो वो हल्के हल्के मुस्कुरा रहे थे. फिर उन्होंने मुझे कुतिया बनने का इशारा किया और मैं अच्छी बच्ची की तरह उनकी बात मान कर कुतिया बन गयी.
जेठजी अपने लंड पर और मेरी चूत पर थूक लगाया और एक ही झटके में पूरा लंड पेल दिया. जेठ का लंड फचाक से चूत में उतर गया. ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
जेठ जी का मोटा लंड मेरी बच्चेदानी से जा टकराया और वो ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे. मैं भी अपनी गांड आगे पीछे करके चुदाई का मज़ा लेने लगी.
“आह और जोर से करो जेठजी.” मैं लाज शरम त्याग कर चुदासी होकर बोली और जेठजी और जोर जोर से मुझे चोदने लगे.
मुझे पता था कि जेठजी इतने जल्दी नहीं रुकने वाले क्योंकि जेठजी करीब एक डेढ़ महीने बाद सेक्स कर रहे थे और पहली बार में ही करीब आधे घंटे तक चोदा था, तो ये तो दूसरी बार है. इस बार कम से कम आधा पौना घंटा तो मुझे जरूर चोदेंगे.
हुआ भी वही … इस दूसरी चुदाई में पता नहीं, मैं कितनी बार झड़ चुकी थी … और बीच बीच में मेरा मन कर रहा था कि जेठजी हट जाएं, तो मैं लेट कर चैन की सांस लूं, पर जेठजी कहां रुकने वाले थे.
करीब 45 मिनट तक जेठजी ने मुझे अलग अलग आसनों में जबरदस्त तरीके से चोदा … और फिर मेरे अन्दर ही झड़ कर मेरे बगल में लेट कर सुस्ताने लगे.
उसके बाद तो मुझसे जैसे उठने की हिम्मत ही नहीं बची, इसलिए मैं भी उनके बगल में ही लेटी रही.
कुछ देर बाद हम दोनों उठे और एक साथ जाकर नहाए … नहाने के टाइम भी जेठजी का लंड फिर से तन गया था पर मुझमें फिर से चुदवाने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें मना कर दिया.
उस रात और उसके बाद जब तक मेरे पति ऑस्ट्रेलिया से वापस नहीं आ गए तब तक हम दोनों एक ही कमरे में सोते और हर रात जेठजी मेरी चूत का जम कर बाजा बजाते.
अगली रात मैं पूरी दुल्हन की तरह सजी और जेठजी दूल्हे की तरह और पूरी रात में उन्होंने मुझे तीन बार चोदा.
उसके बाद हम कभी कभी तो आफिस निकलने से पहले … या सुबह ही चुदाई का मज़ा ले लेते और कई बार हमने आफिस में भी चुदाई का मज़ा लिया.
आप सबको मेरी ये सच्ची कहानी कैसी लगी, या आपका मेरे लिए या संजू आर्यन के लिए कोई सुझाव या शिकायत हों, तो कृपया कमेंट करके जरूर बताएं. जैसा कि मैंने कहानी के पहले भाग में ही बताया था कि मेरे पति और मेरे जेठानी के बीच भी शारीरिक संबंध हैं. वो कहानी भी मैं संजू आर्यन के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाऊंगी और उसके साथ साथ ही कैसे मैं अपने देवर से भी चुद गयी और कैसे पिछले होली पर हम सबने मिल कर सामूहिक चुदाई का मज़ा लिया, ये सब आप सबके साथ साझा करूंगी.
यह कोई झूठी कहानी नहीं है, ये सब मेरे परिवार में हुआ है और होली के बाद से तो किसी को भी किसी तरह की रोक टोक नहीं है. जो जिसके साथ चाहे सेक्स कर सकता है. ये सब कैसे हुआ, सब कुछ आप सबके साथ साझा करूंगी. तब तक अपना ख्याल रखिये, खुश रहिए और अपनी साथी का ध्यान भी रखिये और साथ ही साथ अन्तर्वासना पर सेक्सी कहानियां पढ़ते रहिए.
दोस्तो, मैं संजू आर्यन, जैसा कि मैंने बताया कि फिलहाल मैं अपने पाठकों के द्वारा साझा किए अनुभवों को कहानी के रूप में अन्तर्वासना के माध्यम से आप सब तक पहुंचा रहा हूं. अतः आप सबसे विनती है कि जिन्हें मेरी लेखन कला पसंद आ रही है, या जो मुझसे पर्सनली बात करना चाहते हैं, वो मुझे मेरे मेल आईडी पर मेल कर सकते हैं.
[email protected] धन्यवाद. आपका अपना संजू आर्यन
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