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नमस्कार मित्रो, सभी चूत की रानियों व लन्ड के राजाओं को मेरा प्रणाम। अन्तर्वासना की कृपा से मेरी पिछली कहानी ट्रेन के डिब्बे में गांड मरवाने का सुख को आप लोगों का भरपूर प्यार मिला।
मित्रो, इस बार यह कहानी मेरी नहीं बल्कि मेरी एक पाठिका व महिला मित्र की है जो बिहार से तालुक्कात रखती हैं. आगे की कहानी उन्ही के शब्दों में सुनना उचित होगा. तो चलते है कहानी की तरफ।
मैं जोया (नाम बदला हुआ) बिहार के एक छोटे से गांव से हूं। मेरे निकाह को लगभग 6 साल बीत गए पर अभी तक मुझे कोई बच्चा नहीं हुआ। शायद इसकी भी जिम्मेदार मैं खुद हूँ क्योंकि बचपन से ही मेरे घर में मुझ पर बहुत बंदिशें थी. पर सच ही कहा जाता है कि जिस घर में ज्यादा तालें हों, चोरी भी वही होती है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, ज्यादा बंदिशें होने की वजह से मैं घर वालों की नजर में बेहद सीधी पर अंदर से बहुत ही बिगड़ैल हो चुकी थी। कम उम्र से ही मुझे चुदाई का शौक लग गया। स्कूल में लड़के मेरी गिनती रंडियों में करते थे जिसके कई बॉयफ्रेंड होते हैं।
उन्ही चुदाइयों का नतीजा था जो मैं 19 साल की उम्र में ही एक औरत के जैसे खिल गयी थी और पूरे गांव की नजर में चढ़ गई थी। घर वालों से ये बातें ज्यादा दिन छिपी न रह सकी और इसी के चलते उन्होंने जल्दबाजी में मेरा निकाह तय कर दिया।
खैर निकाह हुआ और मुझे अपनी वासना, अपनी चुदाई, चोदू सब पीछे छोड़ना पड़ा।
मेरा शौहर मुझे खुश रखने की पूरी कोशिश करता। मैंने भी उसे ही अपना सब कुछ मान लिया था।
वैसे तो मैं खुश थी, छोटा परिवार था उनके अब्बू और अम्मी और वो खुद बस इतना ही था. समस्या थी तो बस एक … मुझे बहुत पहले से ही चुदने की लत लग गयी थी और मैंने बहुत से लन्ड लिए, जिसमें मुझे कुछ बहुत ही बड़े बड़े लन्ड मिले। अब उनके सामने मुझे अपने शौहर का लन्ड छोटा लगता।
मेरे शौहर सऊदी अरबिया में काम करते थे जहाँ जाने पर वो दो दो साल वापस नहीं आते, पर वो जब भी आते 3 य 4 महीनों के लिए, हम दिन रात खूब चुदाई करते।
मेरी सासू माँ की तबियत अक्सर खराब रहती, उनकी किडनी में समस्या थी जिसके चलते अक्सर उन्हें ले कर घर से 200 किलोमीटर दूर एक हकीम के पास ले जाना होता।
इस हफ्ते उन्हें हकीम के पास ले जाना था. पर अब्बू को फुरसत नहीं मिल पा रही थी. तो अब्बू ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें ले कर जाऊं. वहां उनके दोस्त (जिनका वहीं पर घर है) बाकी सब संभाल लेंगे। मैंने हामी भर दी।
इतवार को सुबह सुबह अब्बू ने हमें बस पर बैठा दिया, हम अपने पते पर रवाना हो गए।
चूंकि लम्बा सफर था तो पहुँचते हुए दोपहर हो गयी। छह घंटे का सफर था तो लम्बा … पर हम सकुशल पहुंच गए। वहां अब्बू के दोस्त मिले. उन्होंने अम्मीजान को हकीम से रूबरू करवाया. इन सब में सब में शाम होने को आ गयी।
अब्बू के दोस्त हमें घर पर ही रुकने की जिद करने लगे. चूँकि इतना लंबा सफर थकान तो बहुत हो गयी थी पर अम्मी की घर वापस जाने की जिद की वजह से हम वापस अपने गाँव की ओर रवाना हो गए। अब्बू के दोस्त हमें बस स्टैंड तक छोड़ने आये।
उस दिन बस में बहुत भीड़ थी, बैठने की जगह भी मुश्किल थी. फिर अब्बू के दोस्त बस में गये, कंडक्टर से बात की और मुझे समझाया कि भाभीजान को कंडक्टर अपनी सीट पर एडजस्ट कर लेगा और तुम सबसे पीछे चली जाओ वहां एक सीट खाली है। अपनी अम्मी को वहां मत ले जाना क्योंकि पीछे की सीट पर झटके बहुत लगते हैं और भाभीजान की तबीयत नासाज है।
मैंने वैसा ही किया, अम्मीजान को दवाइयां देकर मैं पीछे चली गयी।
लगभग 40 मिनट के सफर के बाद एक जगह बस रुकी. वहां बहुत से लोग बस पर चढ़े. वे शायद एक ही गांव के रहे होंगे क्योंकि उन्होंने एक ही रंग के कपड़े पहन रखे थे और सब के हाथ में डंडे थे।
अब बस में भीड़ बहुत ज्यादा हो गयी थी, खड़े होने वालों की तो हालत खराब थी। मुझे तो सीट मिल गयी थी तो मैं आराम से सो गई।
लगभग 1 घंटे बाद खराब सड़क की वजह से लग रहे झटकों से मेरी नींद टूट गयी, मैं उठ कर बैठ गयी। तभी मैंने देखा कि उम्रदराज महिला उस भीड़ में खड़ी थी, इनसे ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था.
मुझे दया आ गयी, मैंने उन्हें अपनी सीट दे दी। मैं खड़ी होकर सफर करने लगी।
उस धक्का मुक्की और झटकों की वजह से मैं कई बार अपने बगल की सीट पर बैठे आदमी से भिड़ जाती. शायद उसने इसका गलत मतलब निकाल लिया। उसने किनारे खिसकते हुए मुझसे सीट पर बैठने के लिए पूछा. पर मैंने धन्यवाद कहते हुए मना कर दिया।
भले ही मैं हिजाब में थी पर उसने अंदाज लगा लिया था कि मैं क्या चीज हूँ। ऊपर से मेरी उठी हुई गांड किसी सीधे इंसान को भी सोचने पर मजबूर कर दे, हरामियों का तो क्या पूछना। मेरी गांड की साइज 38 है जो मेरी बॉडी से बिल्कुल अलग है, पता नहीं ये चुदाई का कमाल है या ऊपर वाले का करिश्मा … कि मेरी गांड के शेप को देखकर कोई भी अपना आपा खो दे।
मेरे शौहर भी मेरी गांड के दीवाने थे, उनका हर दूसरा राउंड मेरी गांड में ही होता। फिर भी जबसे मेरा निकाह हुआ था, तब से मैंने कही बाहर रिश्ते नहीं रखे, खुद को संभाल कर रखा था मैंने।
खैर कहानी पर आते हैं.
अब मेरे बगल में बैठा व्यक्ति जान बूझकर अपनी कोहनी मेरी गांड से लगा कर हटा लेता। बस में पूरा अंधेरा था और ऊपर से इतनी भीड़ थी कि मैं उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी। उसने मुझसे बात करनी शुरू की जैसे कि मैं कहाँ से हूं, कहाँ गयी थी वगैरह वगैरह।
इन्ही बातों बातों में वह मेरे नितंबों पर अपनी उंगलियाँ फेर देता, मैं उसे मना नहीं कर पा रही थी।
अचानक उसने पास खड़े एक आदमी से बैठने को पूछा. भला अंधा क्या चाहे दो आंखें … वह आदमी तपाक से बैठ गया।
अब यह आदमी जिन्होंने अपना नाम मुझे मुकेश (34) बताया था मेरे ठीक पीछे आकर खड़े हो गये। अब वो मेरे इतने करीब था कि वो सांस भी लेता तो मेरी गर्दनों पर गर्म हवा आती। मेरे दिल की धड़कन तेज हो गयी थी।
अगर ये कॉलेज लाइफ के टाइम पर हुआ होता तो इतने हिंट पर तो मैं अब तक चुद चुकी होती. पर अब निकाह के बाद डर सा लगने लगा था.
पर शायद यह डर उस आदमी यानि मुकेश को नहीं लग रहा था. तभी वो अब अपने हाथों की बजाय पैंट के ऊपर से ही मेरी गांड में अपना लन्ड रगड़ने लगा था। मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे डाँट दूं कि ऐसे ही जल्दी से रास्ता बीत जाने दूँ।
मुकेश धीरे से मेरे कान के पास अपने होंठ लाकर बुदबुदाया कि मैं अपनी हिजाब को थोड़ा ऊपर कर लूं ताकि वो अपने हाथ अंदर डाल सके। इस बार मुझे लगा कि ज्यादा हो रहा है, मैंने मुँह पीछे की तरफ घुमा कर उसे घूरा, उसे डराने की कोशिश की.
पर यह बेकार कोशिश थी, उसे कोई असर नहीं पड़ा। वह हौले हौले मेरी गांड की शेप को नापता रहा.
फिर उसने अपनी चैन खोली और अपना लन्ड बाहर निकाला। कुछ देर वो ऐसे ही अपना लन्ड मेरी गांड पर हिजाब के ऊपर से ही रगड़ता रहा।
मुझे अंदाज हो गया कि उसका लन्ड पैंट के बाहर है। अभी 3 घंटे का सफर बाकी था और मुझमें उसके खुले हुए लन्ड की सोच सोच कर उत्तेजना पैदा हो रही थी।
मुझे चुदे हुए महीनों हो चुके थे क्योंकि शौहर वापस सऊदी जा चुके थे.
मुझसे कब तक कंट्रोल होता! मैं चाह रही थी ये बन्द हो जाये पर पता नहीं क्यों मेरी चूत से पानी रिसने लगा था और मेरी जांघों को गीला कर रहा था.
और तब उसने अपना खुला हुआ लन्ड साइड में करके मेरी उंगलियों के बीच फंसा दिया। उसके लन्ड का स्पर्श पाकर मेरे सब्र का बांध टूट गया, मैंने कस कर उसका लन्ड भींच दिया. वो मुस्करा दिया जैसे कि उसे विजय प्राप्त हो गयी हो।
उसने मेरे हाथों पर दबाव बनाते हुए मुठ मारने का संकेत किया।
यकीन मानिए उस भीड़ भरी बस में हौले हौले एक लन्ड को हिलाने का क्या आनन्द होता है। वो मेरी गांड दबाता और मैं उसका लन्ड!
इसी तरह कुछ मिनट करने पर उसका लन्ड छूट गया और मेरी हथेली में उसका माल भर गया। उसने अपना लन्ड अंदर कर लिया।
मुझे माल पिये हुए बहुत दिन हो गए थे, मैंने अपनी एक एक उंगली चाट ली।
वो तो झड़ गया था पर मेरी चूत में अब आग लगी थी. मैं उसके सोये हुए लन्ड को पैंट के ऊपर से दबोचने लगी। वो समझ गया. उसने धीरे से बताया कि आधे घंटे में स्टॉप आने वाला है वहां बस रुकेगी और वो जगह भी जानता है।
मेरी तो चूत में लावा दहक रहा था, मैंने उसका लन्ड छोड़ जल्दी से बैग लिया और अम्मीजान की तरफ गई और बैग से नींद की दवा निकाली जो डॉक्टर ने इमरजेंसी में अम्मी को देने को कहा था और उन्हें ये बोल कर खिला दिया कि हकीम जी ने ये दवा कही थी खाने को!
और मैं वहीं अम्मी के पास खड़ी रही.
नतीजा ये हुआ कि स्टॉप आने से पहले ही अम्मी सो चुकी थी।
बस रुक गयी, कंडक्टर ने बोल दिया- जिसे कुछ खाना पीना हो वो उतर जाए. बस यहां कुछ देर के लिए रुकेगी।
मेरी तो चूत में पेशाब भरा पड़ा था, बस रुकते ही मैं मुकेश को देखते हुए झट से नीचे उतर गई और ढाबे वाले टॉयलेट पूछा. उसने एक किनारे इशारा किया।
मैं उस तरफ चल पड़ी, मुकेश मेरे पीछे ही था। टॉयलेट में आते ही मैं पेशाब को बैठ गयी, लग रहा था जैसे कई दिनो से टॉयलेट ही न गई हूँ। लेडीज टॉयलेट था तो मुकेश बाहर ही रुक गया।
मैंने हिजाब उतार कर पर्स में रख लिया और लैगिंग और कुर्ती में ही बाहर निकली।
मेरी जवानी अब कहर ढा रही थी। मेरी मोटी जाँघें लैगिंग को फाड़ देना चाहती थी, चुचे बस आजाद होने को तड़प रहे थे।
मेरा ऐसा रूप देखकर मुकेश का लन्ड सलामी देने लगा। मुझे इशारा करके वो आगे बढ़ गया। मैं उसके पीछे हो ली.
थोड़ा सा ही अंधेरे में जाने के बाद एक छोटा सा टूटी हुई चारदीवारी सी थी। शायद पुराना बाथरूम रहा हो। मुकेश के चलने के अंदाज से लग रहा था कि यह जगह उसकी पहचानी हुई हो। मैं भी तैयार थी क्योंकि उस समय सिर्फ नशा था चुदाई का, पकड़े जाने का डर नहीं।
उस दीवाल के पीछे जाते ही मुकेश ने मुझे खींच कर मेरी चुचियों पर बरस पड़ा, कुर्ती के ऊपर से ही चूसने लगा, मेरी कुर्ती गीली होने लगी।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी लैगिंग में डाल दिया। वहां पानी की नदी बही हुई थी.
उसने मेरी चूत को मसल दिया मेरी तो सिसकारी निकल गयी। मैं उसका लन्ड तेजी से दबाने लगी. वो समझ गया, उसने अपना लन्ड आजाद कर दिया।
उसका लन्ड मस्त था, मैं पागलों की तरह उसे चूमने लगी। बड़े दिनों बाद लन्ड मिला था, लन्ड की महक ने मुझे पागल कर दिया था। मैं उसे खा जाना चाहती थी। मैंने जी भर कर उसका लन्ड चूसा पर चूत में भी तो आग लगी थी।
मैं खड़े खड़े ही चूत पर लन्ड सेट करने लगी.
पर शायद वो कुछ और चाहता था। उसने मुझे घुमा कर झुका दिया और मेरी गांड की गोलाई को चूमने लगा। उसने मेरे गांड के छेद पर जीभ लगा दी, मैं पागल हो गई।
एक तो हमारे पास समय कम था, ऊपर से चूत लन्ड मांग रही थी और ये गांड छोड़ ही नहीं रहा था। आखिर में मुझे बोलना पड़ा- यार मेरी चूत की आग शांत कर दे, अपना लन्ड खिला दे इसे। उसने कहा कि वो गांड का आनंद लेना चाहता है। मैंने विनती की उससे- प्लीज् मेरी चूत चोद दो, गांड बाद में।
उसने कहा- इतना टाइम नहीं है कि दोनों की चुदाई हो सके। मैंने उससे वादा किया कि मैं जल्द ही उसे अपनी गांड दूंगी पर अभी वो मेरी चूत चोद दे।
वह मान गया, उसने दीवाल के सहारे मुझे झुकाया और चूत पर अपना मोटा सुपारा सेट करके एक जोरदार धक्का दिया. इतने दिनों बाद चुद रही थी, ऊपर से उसका इतना मोटा लन्ड, मुझे लगा कि चूत फट जाएगी। मैंने आंखें बंद कर ली और चूत को ढीला छोड़ दिया।
तीन धक्कों में उसने पूरा लन्ड मेरी चूत में उतार दिया।
उसके ताबड़तोड़ धक्कों से मेरी चूचियाँ झूल रही थी और मेरी जांघों से थप थप की आवाज आ रही थी।
बड़े दिनों बाद मुझे ऐसा सुख मिल रहा था, मैं तो फैन हो गयी थी उसकी। उसका मोटा लन्ड मेरी नाभि तक चीर रहा था और वो दरिंदों की तरह मेरी चूचियों को भींच रहा था। उसका पागलपन मुझे आनन्द दे रहा था। वह मेरे निप्पलों को अपने नाखूनों से कुतर रहा था.
मुझे असीम सुख की प्राप्ति हो रही थी, मैंने दीवाल को कस कर पकड़ लिया, उसके धक्कों और चुचियों के मर्दन से मैं झड़ रही थी, मेरी सिसकारी निकल रही थी और मेरी चूत से लावा बाहर आ रहा था।
अभी मेरी सांसें तेजी से ही चल रही थी कि उसने मेरी चूचियों को जोर से दबाया और मुझे पलट दिया और अपना लन्ड मेरी चुत से निकाल कर सीधे मेरे होंठों पर रख दिया और अपना समंदर छोड़ दिया।
मेरे होंठों के बाहर उसके माल की मोटी परत आ पड़ी जिसे मैंने जीभ निकाल कर साफ कर दिया।
झड़ने के बाद वो दीवाल की ओट लेकर बैठ गया, मैंने भी अपने कपड़े सही किये, उसे एक भरपूर किश दी।
फिर हम बस में आ गए. हमने नंबर एक्सचेंज किये, अगले स्टॉप पर वो उतर गया।
पर मेरी वो हालत कर गया था कि पूरी रास्ते मेरी टांगें कांप रही थी।
आगे की कहानियों से जल्द ही रूबरू करूँगी आपको। तब तक के लिए विदा, खुदा हाफिज।
दोस्ती, कैसी लगी आपको ये कहानी? अपनी प्रतिक्रिया दें. [email protected]
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