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दृश्यम द्वितीय चरण:
मेरी करबद्ध प्रार्थना। हर महिला की निजी पसंद नापसंद का सम्मान करें। उनको कभी भी हीन दृष्टि से ना देखें। स्त्री जाती का ऋण हम जन्मों जन्मों तक चुका नहीं सकते।
यह कहानी सत्य तथ्यों पर आधारित है पर पूर्णतया सत्य भी नहीं है। इसमें साहित्यिक दृष्टि से और खास कर इस माध्यम और पाठकों के परिपेक्ष में जो कुछ भी उचित परिवर्तन, सुधार, संक्षिप्तीकरण विस्तृति करण बगैरह करना चाहिए वह करने के पश्चात यह कहानी पाठकों के सामने प्रस्तुत की जा रही है।
मेरी हर कहानी साधारण तयः सरल और स्त्री पुरुष के जातीय प्यार और कुछ जातीय (सेक्सुल) नवीनीकरण या साहसिकता से भरी हुई होती है। पर यह कहानी थोड़ी सी अलग है। इसमें जातीय साहसिकता की सिमा लांघ कर मानसिक विकृति कई लोगों के दिमाग में कैसे घर कर जाती है यह दर्शाने की कोशिश की गयी है।
मेरी हर कहानी की तरह यह शायद पाठकों को यह कहानी भी लम्बी लगे तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। मैं जानता हूँ की हर कहानी की तरह यह कहानी सिर्फ चुदाई की कहानी नहीं है। अतः ज्यादातर पाठकों को यह नागवारा गुजर सकती है। ——————- पांच साल के बाद
सिम्मी और अर्जुन शर से अपने गाँव आ चुके थे। सिम्मी की शादी कुछ दूर एक बड़े शहर में एक प्रतष्ठित बड़े घराने में हो चुकी थी। अर्जुन कॉलेज में एम्.कॉम पूरा कर नहीं पाया क्यूंकि उसके पापा का अचानक ही देहांत होगया।
अर्जुन को तुरंत पापा का ठेकेदारी का काम सम्हालना पड़ा क्यों की घर की जिम्मेदारी अब उसके कंधे पर आ गयी थी। अर्जुन इस जिम्मेदारी से बिलकुल पीछे नहीं हटा। छुट्टियों में अर्जुन वैसे भी पापा की मदद कर देता था। उसे काम के बारे में अच्छाखासा अनुभव तो था ही।
उसके आक्रमक स्वभाव और फ़ुर्तीसे काम करने की क्षमता के कारण अर्जुन ने बिज़नेस को काफी आगे बढ़ा लिया था। उसकी कंपनी पहने कोई बीस कामगारों को रोजगार देती थी, उसके कारोबार सम्हालने के बाद उनकी संख्या ५० तक हो गयी। उनकी कंपनी एक बड़े विश्व प्रतिष्ठित आयल कंपनी के साथ काम करने लगी जिसके कारण अर्जुन ने अच्छा खासा नाम कमाया और उसकी कंपनी खासा मुनाफ़ा भी करने लगी।
इन पांच सालों में ज़माना काफी बदल चुका था। भारत में कंप्यूटर और सेल फ़ोन तकनीक का बहुत बड़ा विकास हो चुका था। घर घर में सेल फ़ोन आ गया था। अर्जुन युवावस्था में ही काफी अच्छाखासा पैसा कमाने लगा था। गाडी घर और सारी आराम देने वाली चीजें उसने बसालीं थीं।
अर्जुन बड़ा ही होनहार, आक्रमक और काबिल कारोबारी तो था ही पर उसके दिमाग का पुराना कीड़ा भी पनपता जा रहा था। जो मानसिक विसमता कॉलेज में शुरू हुई थी वह अर्जुन के खाली समय में उसके दिमाग में हावी होने लगी थी। सेल फ़ोन और कंप्यूटर के माध्यम से अश्लील या कामोद्दीपक वस्तुएं नेट के द्वारा लोगों के दिमाग में और दिमाग के द्वारा घरों में पहुँच रहीं थीं। पहले जो जातीय सम्भोग परदे के पीछे होते रहते थे वह अब आम लोगों को सेल फ़ोन और कंप्यूटर के परदे पर सुलभ तरीके से दिखने लगे थे।
नवयुवा और युवतियां को अपनी जातीय कामनाओं की पूर्ति के लिए पहले ज्यादा आसानी से मौके मिलने लगे। सेल फ़ोन द्वारा छिपकर संदेशों का आदान प्रदान सहज रूप से होने के कारण यह बड़ा ही सुलभ हो गया।
और उसके साथ मानसिक विकृतियां और भी पनपने लगीं। अपने पति या पत्नी के अलावा किसी और से सम्भोग, एक औरत को एक साथ दो मर्दों से सेक्स, या एक मर्द का दो औरतों को एक ही पलंग पर सम्भोग करना, अपनी पत्नी को किसी और मर्द से और अपने पति को किसी और औरत से चुदवाना और ऐसी कई जातीय सम्भोग की विविधताएं लोग सेल फ़ोन और कम्प्यूटरों के पर्दों पर देखने लगे। उनके मन में यह प्रयोग अपने जीवन में भी अपनाने का मन करने लगा।
अर्जुन के मन में औरत की बड़े तगड़े लण्ड से चुदाई होती हुई देखने का फितूर और भी पनपता गया। अर्जुन सेल फ़ोन पर जब भी समय मिलता यही देखता रहता था। उसे तगड़े लण्ड वाले मर्दों से औरतों की बेरहम चुदाई देखने का मौक़ा अब सेल फ़ोन पर ही मिल जाता था।
सिम्मी की कालिया से हुई चुदाई का जो उन्मादक दृश्य अर्जुन ने देखा और अनुभव किया था वह अर्जुन को और आगे नए प्रयोग करने के लिए अग्रसर कर रहा था। इससे उसका यह फितूर घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा था। यह एक अलग बात थी की सिम्मी के चले जाने के बाद उसे अपनी यह मृग तृष्णा अथवा फ़न्तासी पूरी करने का मौक़ा नहीं मिल पाया था।
अर्जुन दिखने में भी कोई हीरो से कम नहीं था। विचारों में वह आधुनिक था और स्त्रियों को सम्मान से देखता था। अपनी बहन की तरह वह भी दबंग दिमाग का था। अर्जुन किसीके ऊपर धौंस जमाता नहीं था पर किसी की दादागिरी भी बर्दाश्त नहीं करता था।
कॉलेज में कुछ पुराने राजाओं के बिगड़े हुए रईसजादे बच्चे पढ़ते थे। वह रईसजादे कॉलेज के लड़कों पर धौंस जमाते रहते थे। जब उन्होंने अर्जुन पर धौंस जमाने की कोशिश की तो अर्जुन ने पलट कर उनको धूल चटा दी। रईसजादों की बड़ी बदनामी हुई पर इस प्रसंग के बाद अर्जुन का सिक्का कॉलेज में बुलंद हो गया।
कॉलेज में अर्जुन का मन एक लड़की पर आया था, पर दादाओं पर दादागिरी करने वाला अर्जुन उस लड़की के सामने भीगी बिल्ली सम हो जाता था। जब वह मिलती तो अर्जुन की जबान पर जैसे ताला लग जाता था। कॉलेज की एक दूसरी सुन्दर लड़की अर्जुन को मैसेज भेजती रहती थी। वह लड़की अर्जुन के नजदीक के गाँव की ही थी।
अर्जुन का भी उससे कुछ आगे बढ़ने का मन किया पर जब भी अर्जुन का उससे मुखातिब होता तो न तो वह कुछ बोल पाती ना ही अर्जुन की हिम्मत पड़ती की उससे बात करे। हालांकि उनकी प्रेम कहानी सालों बाद पनपी। आगे अगर मौक़ा मिला तो उसका विवरण करूंगा।
उन्ही दिनों सिम्मी ने अपने भाई के लिए रिश्ते के बारे में बात करनी शुरू कर दी। एक घरेलु लड़की आरती से अर्जुन की शादी तय हो गयी। आरती अर्जुन से लम्बाई में नाटी थी पर बहुत ही नाजुक अंग, सुन्दर चेहरा और सुआकार बदन वाली आरती अर्जुन को भा गयी। सीधी सादी सरल स्वभाव वाली आरती ने भी अर्जुन को पसंद कर लिया और उनकी शादी हो गयी।
आरती – शादी से पहले
आरती के पिता जी पहले से ही चल बसे थे। माँ गाँव की साधारण औरत थी। आरती के पिता के देहांत के बाद आरती के मामा ही उन की देखभाल करते थे। मामा पास के एक शहर में रहते थे। आरती जब कॉलेज में जाने को हुई तो मामा ने उसका दाखिला अपने ही शहर के एक लड़कियों के कॉलेज में करवा दिया। मामा आरती का खर्चा उठाते थे। आरती मामा के घरमें ही रहने लगी।
फिर आरती के मन में भी किशोरी युवा अवस्था में साधारणतयाः होते हैं ऐसे ही माधुर्य भाव थे पर हमारी लड़कियाँ अक्सर इन भावों को मन में ही दबा कर रह जाती हैं। अक्सर इसका लाभ नजदीकी सम्बन्धी उठाते हैं। आरती पढ़ती भी लड़कियों के कॉलेज में थी तो उसे लड़कों से मिलने के ज्यादा मौके कहाँ मिलते?
आरती गोरी चिट्टी सी थी जैसे मकराना के संगेमरमर से कोई मूरत तराशी गयी हो। पतली कमर, गोल चेहरा, लम्बे लगभग कूल्हे तक पहंचते हुए घुंघराले बाल, छोटा कद पर उसके मुकाबले काफी भरे हुए स्तन, कूल्हे भी काफी मादक भरे हुए, चेहरे पर हलकी सी मंद मंद निखालसता भरी मुस्कान, लाल चटक होँठ और सुडौल जाँघों से सुसज्जित आरती किसी भी मर्द की नजर में आसानी से समा जाती थीं।
आरती की पढ़ाई करवाने में भी आरती के मामाजी का काफी योगदान था। आरती के मामाजी के दो बेटे थे। बड़े लड़के की शादी हो गयी थी। छोटा कमल नाम का एक लड़का था जो काफी दबंग टाइप का था। उसे पढ़ाई में बिलकुल रस नहीं था।
आधी पढ़ाई छोड़कर कमल पिताजी से झगड़ा कर कुछ दिनों के लिए घर छोड़ कर भाग गया था। बड़ी मुश्किल से कमल के पीताजी ने उसे अपने साले (कमल के मामा) के यहाँ से ढूंढ कर घर वापस लाये थे। पर वाकये के बाद कोई कमल से ज्यादा छेड़खानी नहीं करता था। तब से वह अपनी मोटर बाइक पर इधर उधर घूमता रहता था।
मामाजी ने अपने इस निकम्मे बेटे को एक ड्यूटी सौंपी थी। अपनी बाइक पर उसे आरती को कॉलेज छोड़ने जाना और कॉलेज से वापस लाने का काम दिया था। कमल आरती से सात आठ साल बड़ा था। कोई माँ बाप कमल से शादी के लिए अपनी लड़की देने को तैयार नहीं थे।
कमल की दबंगाई और निर्भीक रवैये से आरती उनसे काफी प्रभावित भी थी। बड़ा होने के कारण आरती कमल को बड़े सम्मान से देखती थी। कमल की कामुक नजर आरती पर थी। कमल आरती को इधर उधर की दुनियादारी की बातें बताता रहता था और आरती को लुभाने की कोशिश में लगा रहता था।
कॉलेज जाते और वापस आते कई बार मौक़ा देख कर कमल ब्रेक मार कर आरती के परिपक्व स्तनोँ का अपनी पीठ पर अनुभव कर लेता था। आरती यह बात समझती थी, पर इससे उसे कोई शिकायत नहीं थी। आरती के मन में भी तो युवावस्था की रंगीनियों को समझने और मादक अनुभव करने की स्वाभाविक कामना थी। आरती भी अगर भाई ऐसे ही खुश होता है तो अच्छा है यह सोच कर चुप रहती थी।
कमल धीरे धीरे अपनी कामनाओं को छोटी छोटी हरकतों से प्रकट कर आरती की प्रतिक्रया देखता रहता था। आरती कमल के अकारण ब्रेक मारने से कोई आपत्ति नहीं जताती बल्कि साहजिक रूप से वह आगे की और लुढ़क जाती और कमल से अपनी छाती सटा देती थी। इससे कमल की कामनाओं को और बल मिला और उसकी हिम्मत बढ़ी।
आरती के बड़े ममेरे भाई और भाभी खुले विचार के थे और शादी का भरपूर आनंद लेते थे। आरती की भाभी से भी काफी अच्छी पटती थी। भाभी बोलने में काफी मुंहफट थी। चूँकि आरती घर के घरेलु कामों में भाभी का काफी हाथ बटा देती थी तो आरती भाभी की काफी पसंदीदा थी।
शामको जब भी मौक़ा मिलता कमल आरती को दुनियादारी के बारे में बताने लगता। अक्सर कमल आरती को मर्द और औरत के रिश्तों के बारे बड़ी सावधानी से सांकेतिक रूप से मज़ाकिया लहजे में बताता रहता।
आरती भी उस उम्र में दूसरी लड़कियों की तरह अपने भाव बखूबी छिपा कर कभी हँस कर तो कभी कमल को घूंसा मरकर ऐसे नखरे करतीं जैसे उसे कामुक बातों में कोई भी रस नहीं। पर भाई की बतायी हुई बातों को वह ध्यान से सुनती और बड़ी उत्तेजित होती थी।
एक शाम कमल ने आरती से पूछा, “आरती अब तो कुछ ही महीनों या एकाद साल में तुम्हारी शादी किसी मर्द से हो जायेगी, तो तुम क्या करोगी?”
आरती ने अपना सर उठाकर कमल की आँखों में आँखें मिलाकर पूछा, “भैया ऐसा क्यों पूछते हो? जैसे दूसरे लड़के लडकियां शादी करके जो करते हैं ऐसे ही होगा। मुझे क्या पता मैं क्या करुँगी?”
कमल ने कहा, “अरे तू तो बिलकुल बुद्धू ही है। क्या तुझे पता नहीं शादी के बाद पति पत्नी क्या करते हैं?”
आरती ने सरलता से कहा, “भैया, मुझे कैसे पता मेरी शादी थोड़े ही ना हुई है?” फिर पलट कर आरती ने कमल से पूछा, “वैसे तुम्हें कैसे पता? तुम्हारी भी तो शादी नहीं हुई? तुम्हें कुछ भी अनुभव नहीं पर दिखावा ऐसे करते हो जैसे तुम बड़े ग्यानी हो!” आरती सोचती थी की शायद कमल भैया इसी बहाने उससे कुछ सेक्स के बारे में बात करेंगे। आरती के कॉलेज के बगल में ही लड़कों का कॉलेज था। कॉलेज में आते जाते कई लड़के आरती को ताड़ते रहते थे। पर किसी को आरती के करीब जाने का मौक़ा नहीं मिला।
कमल ने अपना सर पीटते हुए कहा, “अरे मेरी बुद्धू बहन, आजकल नेट पर सब देखने को मिलता है।”
आरती ने बड़ी निराशा से कहा, “पर मेरे पास तो फ़ोन ही नहीं। तुम यह सब तुम्हारे फ़ोन पर देखते रहते हो क्या?”
आरती की सीधी बात से कमल बौखला गया। फिर उसने कुछ झेंपते हुए कहा, “अरे नहीं, ऐसा कुछ नहीं पर कभी तुम भाभी से पूछना। वह तो शादीशुदा है ना? वह बता सकती है तुम्हें। तुम्हारी तो भाभी से अच्छी पटती है ना?” कह कर कमल बात टाल गया।
आरती के मामा का घर काफी बड़ा था। आरती भाई भाभी के कमरे में बिलकुल बगल वाले कमरे में ही सोती थी। अक्सर उसे रात को जब भाई भाभी की चुदाई करते, भाभी की सिसकारियां और कराहटें सुनाई देतीं थीं।
सहेलियों से बात कर आरती यह तो जानती थी शादी के बाद मर्द और औरत चुदाई करते हैं। पर उसके बारे में उसे कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी। उसे यह सब जानने की बड़ी ही उत्सुकता तो थी ही, और फिर कमल ने आरती को जानने रास्ता भी बता दिया।
उस रात आरती ने सुना की भाई भाभी के कमरे से बड़े भाई की जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी। कुछ ही देर में आवाज शांत हुई और फिर कुछ देर बाद फिर से भाभी की सिसकारियाँ और कराहटों की आवाजें सुनाई पड़ीं।
पढ़ते रहिये, कहानी आगे जारी रहेगी!
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