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गौरी ने जो बताया, वह मैं उसी की जबानी आप सभी को बता रहा हूँ:
प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मैं माफ़ी चाहता हूँ आपको लग रहा होगा यह कथानक अपने मूल विषय से भटक रहा है और थोड़ा लंबा भी होते जा रहा है पर मुझे पूरा यकीन है इस देशी सुहागरात का किस्सा सुन और पढ़कर आप सभी मस्ती से झूम उठेंगे और आपको इसकी प्रासंगिकता का अंदाज़ा भी हो जाएगा। हालांकि यह किस्सा गौरी की जबानी है पर इसमें तोतली भाषा के स्थान पर साधारण शब्दों का प्रयोग किया गया है।
अथ श्री एक देशी सुहागरात सोपान प्रारंभ:
कमलेश भैया (घर का नाम कालू) की शादी नवम्बर माह में थी। गुलाबी सी ठण्ड थी। शादी बहुत अच्छे ढंग से हो गई थी और आज उनकी सुहागरात थी।
मैंने और अंगूर दीदी ने भाभी को खूब सजाया था। उनके जूड़े और बाजुओं पर मोगरे के गज़रे भी लगा दिए थे। नाक में नथ, कानों में सुन्दर झुमके, कलाइयों में कोहनियों तक लाल रंग की चूड़ियाँ, पैरों में पायल और अँगुलियों में बिछिया।
हाथों में मेहंदी और पैरों में महावर तो पहले से लगी थी हमने उनका खूब मेकअप भी किया था।
अंगूर दीदी ने उन्हें यह भी समझा दिया था कि हमारे भैया को ज्यादा तरसाना मत जल्दी से अपना खजाना उन्हें सौम्प देना वरना वो फिर सारी रात तुम्हारी हालत बिगाड़ देंगे।
भाभी लंबा घूंघट निकाल कर बैड पर बैठ गई थी। हमने कमरे में ट्यूब लाइट जला कर रोशनी कर दी थी। बैड के पास रखी छोटी टेबल पर एक थर्मोस में केशर और शिलाजीत मिला गर्म दूध, पानी की बोतल और मिठाइयां और पान की दो गिलोरी का इंतजाम करके रख दिया था। अंगूर दीदी ने क्रीम की एक शीशी भी टेबल पर रख दी थी। लगता है अंगूर दीदी सुहागरात की पूरी एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) बनी हुई थी।
हमने सुहागरात का कमरा (छत पर बना चौबारा) भी थोड़ा सजा दिया था। बैड पर नई सफ़ेद चादर बिछा दी थी और उस पर गुलाब की पत्तियाँ भी बिखेर दी थी।
मैंने गौर किया अंगूर दीदी वैसे तो हमेशा खिसियाई सी ही रहती है पर आज तो वह बहुत ही खुश नज़र आ रही थी। उन्होंने आज गहरे सुनहरी रंग का लाचा (भारी लहंगा, छोटी कुर्ती और चुन्नी वाला एक परिधान) पहन रखा था। कलाई में सोनाटा की घड़ी, हाथ में बढ़िया मोबाइल और ऊंची एड़ी की सैंडिल और कंधे पर लेडीज पर्श। इन कपड़ों में तो वह दुल्हन सी लग रही थी।
ऐसे ही कपड़े पहनने का मेरा भी कितना मन होता है आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं। मैंने तो मौसी और माँ-बाप दोनों के यहाँ अभाव ही देखे हैं। काश! मेरी शादी किसी अच्छे घर में हो जाए तो मैं भी अपनी इन दमित इच्छाओं को पूरा कर लूं। ओह … मैं भी कई बार क्या-क्या ख्वाब देखने लग जाती हूँ।
बाहर जब भैया के कदमों की आहट सुनाई दी तो मैं और अंगूर दीदी सुहागरात वाले कमरे के दरवाजे पर आकर खड़े हो गई। भैया ने बिना कुछ बोले हमें पांच सौ रुपये बाड़-रुकाई (एक रस्म का शगुन) के दिए तो हम लोगों ने उन्हें अन्दर जाने दिया।
भैया ने कुर्ता पाजामा पहना हुआ था और हाथ की कलाई पर एक गज़रा भी बांधा हुआ था। वे जल्दी से कमरे में घुस गए और अन्दर से दरवाजे की सिटकनी (कुण्डी) लगा ली।
अब वो दोनों आजाद पंक्षी थे बिना किसी खटके और डर के हुड़दंग मचा सकते थे। मैं नीचे जाने के लिए सीढ़ियों की ओर जाने लगी तो अंगूर दीदी ने मुझे इशारे से रुकने के लिए कहा। उसने सीढ़ियों पर लगे दरवाजे को अन्दर से बंद करके सांकल (कुण्डी) लगा दी और फिर मेरा हाथ पकड़कर चौबारे के पिछली ओर बनी खिड़की के पास ले आई।
उन्होंने अपनी एक अंगुली होंठों पर रखकर मुझे खामोश रहने का इशारा किया। मेरी समझ में कुछ नहीं आया। अब वह खिड़की से कमरे के अन्दर झांकने लगी। यह कमरा पुराना बना हुआ था और खिड़की के दरवाजों के बीच में थोड़ा गैप सा था जिसकी झिर्री से अन्दर का नजारा देखा जा सकता था। बाहर तो घुप्प अन्धेरा था पर अन्दर पूरी रोशनी थी।
फिर अंगूर दीदी ने मुझे भी अन्दर देखने का इशारा किया। मैंने डरते-डरते पहले तो इधर उधर देखा और फिर खिड़की दरवाजों के बीच की झिर्री से अन्दर देखने की कोशिश की।
भाभी बैड के एक कोने में बैठी हुई थी। उसने अपना घूंघट दोनों हाथों से कसकर पकड़ रखा था। भैया उसके पास आकर बैठ गए और अपना हाथ बढ़ाकर उसका घूंघट उठाने की कोशिश करने लगे। पर भाभी ने अपना घूंघट नहीं उठाने दिया अलबत्ता उन्होंने अपना घूंघट और जोर से कस लिया।
दो-तीन कोशिशों के बाद जब बात नहीं बनी तो भैया ने उसके पैरों की पिंडलियों पर हाथ फिरना चालू कर दिया। अब भाभी ने एक हाथ से उनको परे हटाने की कोशिश की। फिर भैया ने दूसरे हाथ से घूंघट को थोड़ा सा हटाया तो भाभी के पीछे हटते हुए मुंह से मना करने के अंदाज़ में ऊं … ऊं … की आवाज निकली और उन्होंने अपनी कोहनी को ऊंचा करते हुए भैया का हाथ परे हटा दिया।
मेरी कुछ समझ नहीं आया कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? सुहागरात के बारे में मैंने ज्यादा तो नहीं पर थोड़ा बहुत सुना जरूर था कि इस रात को पति पत्नी पहली बार मिलते हैं और फिर पति अपनी पत्नी को कुछ गिफ्ट देकर उसका घूंघट उठता है और फिर दोनों आपस में शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं। पर यहाँ तो मामला कुछ और ही लग रहा है। भाभी तो मरखने सांड की तरह भैया को हाथ ही नहीं लगाने दे रही।
फिर मैंने अंगूर दीदी से पूछने की कोशिश की। अंगूर दीदी ने मुझे फिर चुप रहकर देखने का इशारा किया और वह फिर से अन्दर झांकने लगी। अब मैंने भी फिर से अन्दर देखना शुरू कर दिया।
“हम्म … अच्छा तो यह बात है?” कहकर भैया ने अपने कुरते की जेब से बटुआ निकाला और उसमें से पांच सौ के दो नोट निकाल कर भाभी की ओर बढ़ाए। भाभी ने पहले तो घूंघट के अन्दर से ही नोटों की ओर देखा और फिर वही ऊं … की आवाज निकाली।
फिर भैया ने वो पांच सौ वाले नोट वापस रख कर दो हज़ार का एक नोट निकाल कर भाभी की ओर बढ़ाया तो नोट पकड़ लिया और तकिये के पास रखे अपने लेडीज पर्स में रख लिया। अब भैया उसके पास आ गए और उसका घूंघट धीरे-धीरे खोलने लगे।
भाभी थोड़ा शर्मा रही थी।
“यार बबिता जानू! तु तो आज बड़ी मस्त लगेली है?” कह कर भैया ने भाभी के गालों पर हाथ फिराने की कोशिश की तो भाभी थोड़ा सा पीछे हट गई।
आपको भैया की बोली सुनकर हैरानी हो रही होगी। दरअसल 2-3 साल पुरानी बात है एकबार कमलेश भैया ने मोहल्ले के कुछ लड़कों के साथ मिलकर किसी के साथ मार-कुटाई कर दी थी और फिर पापा के डर के कारण वह मुंबई भाग गया था और फिर वहीं किसी अस्पताल में नौकरी कर ली और अब वहीं की भाषा बोलने लग गए।
“देख जानी, अपुन को पेली (पहली) रात में कोई लफड़ा नई माँगता। अब तो तेरे को मूँ दिखाई भी दे दियेला है। अब जास्ती नाटक नई करने का … क्या?” और फिर भैया ने उसके गालों पर हाथ फिराया और फिर उसके मोटे-मोटे दुद्दुओं (सॉरी बोबे) को दबाने लगे।
अब भाभी ने ज्यादा नखरे नहीं किये। फिर भैया ने हाथ बढ़ा कर टेबल पर रखी मिठाई के डिब्बे से बर्फी का एक टुकड़ा उठाया और भाभी के मुंह की ओर बढ़ाया। “देख बे चिकनी! इसे पूरा मत खा जाना। इसी तरह मुंह में दबा के इच रखने का। अपुन बी तेरे साथ खाएंगा।”
भाभी ने अपने होंठों और दांतों के बीच बर्फी का टुकड़ा दबा लिया और भैया ने अपना मुंह उसके होंठों में दबी बर्फी पर लगा कर पहले तो आधा टुकड़ा अपने मुंह में डाला और बाद में भाभी के होंठों को अपने होंठों में दबा लिया। भाभी तो गूं … गूं करती ही रह गई।
“जिओ मेरे राजा भैया! वाह … क्या शुरुआत की है.” अचानक अंगूर दीदी की धीमी पर रोमांच भरी आवाज सुनकर मैं चौंकी।
अब तो भैया ने भाभी को अपनी बांहों में भर लिया और एक हाथ उसके सिर के पीछे करके उसके होंठों, गालों और गले पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। दूसरे हाथ से उसके बोबे दबाने लगे। भाभी थोड़ा कसमसा जरूर रही थी पर लगता है उसे भी मज़ा आ रहा था।
फिर भैया ने पहले तो अपना हाथ उसके नितम्बों पर फिराया और फिर उसकी साड़ी को ऊपर उठाने की कोशिश करने लगे। “ऊँहू … किच्च … ” भाभी ने उनका हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की। “देख जानी! तेरे को मूँ दिखाई तो पेले इच दे दी है अब नखरे काये को?”
“इसकी मुंह दिखाई कहाँ दी है?” भाभी ने नीचे की ओर इशारा करते हुए कहा। “ओह … चल कोई बात नहीं तू भी क्या याद रखेगी?” कहकर भैया ने जेब से पांच सौ का एक नोट निकाल कर भाभी के ओर बढाया। “किच्च …” भाभी ने ना में सिर हिलाते हुए मुंह से आवाज निकाली।
“अच्छा … एक काम कर! में (मैं) नोट फर्श पर रखेला हे लेकिन इनको अपने हाथ से नई उठाने का?” भैया ने अपने बटुए से नोट निकालते हुए कहा। भाभी ने आश्चर्य से भैया की ओर देखा तो भैया बोले “इनको तु अपनी चिकनी की फांकों से उठा सकती है तो उठा ले में (मैं) पांच सौ के नोट मोड़ कर आडे खड़े करके रखता है? तेरे पास बस पांच मिनट का टैम (टाइम) रहेंगा.” फिर भैया ने कुछ नोट आधे मोड़कर (अंग्रेजी के उलटे V के आकार में) फर्श पर रख दिए।
“आप अपना मुंह उधर कर लो, मुझे शर्म आ रही है.” भाभी ने शर्माते हुए कहा। “अपुन को ऐड़ा (बेवकूफ) समझा क्या? तुम चीटिंग किया तो?” “किच्च” “यार अब तेरे को नोट लेने का हो तो उठा ले नई तो कोई बात नहीं.”
भाभी असमंजस में थी पर मन में थोड़ा लालच भी था तो उन्होंने बेड से नीचे उतरकर पहले तो अपनी साड़ी को जाँघों तक ऊपर उठाया और फिर अन्दर दोनों हाथ डालकर अपनी पेंटी खींचकर बाहर निकाल कर बेड पर रख दी। भैया ने वह काली पेंटी झट से लपक ली और अपनी नाक से लगा कर सूंघने लगे।
“छी …” मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी भला किसी की पेंटी सूंघने में क्या मज़ा आता होगा? मैंने अंगूर दीदी से पूछा तो वह फुसफुसाते हुए बोली- तुम भी निरी पूपड़ी ही है … जवान बीवी की पेंटी से उसकी जवानी की खुश्बू सूंघकर आदमी मतवाला हो जाता है और फिर वह दुगने जोश के साथ उसकी खूब चुदाई करता है।
मैं सोच रही थी अंगूर दीदी भी कितना गन्दा बोलने लगी है।
अब भाभी ने झिझकते हुए अपनी साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाया और फिर भैया से बोली- मुझे शर्म आ रही है … आप थोड़ा सा मुंह उधर कर लो मैं चीटिंग नहीं करुँगी. “चल आज की रात तेरे को माफ़ किया … में मूँ फेरता है लेकिन चीटिंग नई करने का?”
फिर भैया ने अपनी मुंडी दूसरे तरफ कर ली और भाभी ने अपनी साड़ी को पेट तक ऊपर उठा लिया। मोटी-मोटी गदराई हुई जाँघों के ठीक बीच में उनकी बुर तो काले लम्बे झांटों से पूरी तरह ढकी हुई थी। बीच में थोड़ा काले और कत्थई से रंग का गहरा चीरा दिखाई दे रहा था और चीरे के बीच में सिकुड़ी हुई सी दो मोटी-मोटी पत्तियाँ (लीबिया)।
मुझे आश्चर्य हो रहा था भाभी ने अपनी झांटें क्यों नहीं काटी? शादी के समय तो दुल्हन अपने हाथों और पैरों के भी बाल हटवाती हैं तो भाभी ने ये बाल क्यों साफ़ नहीं करवाए।
मैंने इस बाबत अंगूर दीदी से पूछा तो उन्होंने बताया कि हमारे यहाँ के रिवाज के अनुसार सगाई होने के बाद लड़कियां अपनी बुर के बाल नहीं काटती हैं और सुहागरात मनाने के बाद उनका पति दूसरे दिन उनकी बुर के बालों को अपने हाथों से साफ़ करता है। मान्यता है कि ऐसा करने से दोनों पति पत्नी का प्रेम बढ़ता है और दाम्पत्य जीवन लंबा और मधुर बनाता है।
“क्या आपके भी बाल जीजू ने ही साफ़ किये थे?” मैंने पूछा तो दीदी गुस्सा हो गई और बोली- चुप कर हरामजादी! पता नहीं दीदी इतना गुस्सा क्यों हो रही थी?
हम दोनों फिर से अन्दर का नजारा देखने लगी।
कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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