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दूसरे दिन सुबह!
कालिया सुबह चार बजे ही घर से निकल चुका था। सिम्मी ने कमरे की सारी चीज़ें फिर से ठीक ठाक कर दीं थीं। चद्दरें बदल दी थीं। पर सिम्मी पलंग को ठीक करना भूल गयी थी। सिम्मी जल्दी से वापस अपने कमरे में आ चुकी थी। सिम्मी की हालत इतनी खराब हो गयी थी की उससे चला नहीं जा रहा था।
उसकी चूत सूझ गयी थी। वह पानी भी उसके चूत पर डाल भी नहीं सकती थी। ऊपर से सिम्मी को कालिया के वीर्य जाने से हुए खतरे का मानसिक बोज था। वह इस बात को लेकर बहुत परेशान थी।
कपडे बदलते हुए सुबह जब सिम्मी की नजर चाचीजी ने दिए हुए लिफ़ाफ़े पर पड़ी तो अचानक उसे याद आया की वह लिफाफा चाची ने उसे दिया था और उसे ख़ास हिदायत दी थी हो सकता है की कालिया जब आएगा तब उसे उसकी शायद जरुरत पड़े। इसका मतलब क्या था?
सिम्मी ने जब वह लिफाफा खोला तो उसे क्या मिला? चाहिजी ने लिफ़ाफ़े के अंदर ६ गर्भ निरोधक गोलियां रखीं थीं। उन गोलियों पर लिखा था, “मॉर्निंग आफ्टर” मतलब “दूसरे दिन सुबह”।
सिम्मी समझ गयी की जब रात चुदाई हो और अगर गर्भ धारण नहीं करना हो तो महिलाओं को चाहिए की वह अगली सुबह एक गोली लें। सिम्मी को चाचीजी की दुसरदर्शिता तब समझ में आयी। वह मन ही मन चाचीजी का लाख लाख शुक्रिया अदा करने लगी। सिम्मी के मन की एक समस्या तो मिट गयी।
अर्जुन और सिम्मी के चाचा और चाची रातको जब वापस आये और सोने के लिए गए तो पलंग का एक छोर का नट बोल्ट निकला हुआ पाया। पलंग के पाँव टेढ़े हो गए थे। चाचीजी ने जब यह देखा तो मन ही मन मुस्कुराने लगी। पिछली रात उस पलंग पर जो हुआ था वह भली भाँती समझ गयी थी।
पर चाचीजी कोई कम थोड़ी ही ना थी? सारे दोष का टोकरा चाचाजी के सर पर डालते हुए चाचीजी ने हँसते हुए चाचाजी को कहा, “देखा आपने? आप अब अपने आप पर थोड़ा नियंत्रण कीजिये। शादी को इतने साल हो गए पर अभी भी आप रात को पलंग तोड़ देते हैं।”
चाचाजी ने जब पलंग का हाल देखा और चाचीजी की बात सुनकर कुछ अभिमान से कहा, “अरे, यह तो कुछ भी नहीं है। अभी तो हमारी जवानी की शुरुआत ही हुई है। देखती जाओ आगे हम कितने पलंग तोड़ते हैं।” यह कह कर चाचाजी ने फटाफट पलंग के नट बोल्ट लगा कर उसे ठीक कर दिया।
दूसरे दिन जब सब अपने अपने काम पर चले गए थे और चाचीजी और सिम्मी अकेले मिले तब चाचीजी ने सिम्मी को बुलाया। सिम्मी की टेढ़ीमेढ़ी चाल रात की कहानी बयाँ कर रही थी। सिम्मी जब चाचीजी के पास चलते हुए पहुंची तब चाचीजी ने शरारत भरी मुस्कान से सिम्मी को प्यार से अपने पास बुलाया और साथ में बैठाया।
सिम्मी के बालों को प्यार से सँवारते हुए चाचीजी ने पूछा, “बेटी यह बताओ, कल रात कैसी रही? वैसे अगर तुम नहीं भी बताओगी तो तुम्हारी चाल, तुम्हारे गाल और पलंग के हाल से मैं काफी कुछ समझ चुकी हूँ।”
सिम्मी क्या कहती” वह फर्श में नजर गाड़े चुपचाप खड़ी रही। चाचीजी ने सिम्मी को अपनी बाँहों में लेकर कहा, “अरे बेटी ऐसे जमीन में नजर गाड़े क्यों खड़ी है? मैंने जो लिफाफा दिया था उसे खोला की नहीं? उसको इस्तेमाल किया की नहीं?”
सिम्मी शर्माती हुई नजरें निचीं कर चाचीजी के पाँव छूते हुए कहा, “चाचीजी, मैं बता नहीं सकती की आपके उस लिफ़ाफ़े ने मेरे दिमाग से कितना बोझ हल्का कर दिया।
आप वाकई में मेरी चाची नहीं, मेरी माँ या यूँ कहूं के मेरी बड़ी बहन जैसीं हैं। मैं आपका एहसान कभी नहीं भूल सकती। मैंने एक गोली खा ली है।” ऐसा कह कर सिम्मी चाचीजी के सामने खड़ी हो गयी।
चाचीजी ने सिम्मी के कान पकड़ बड़े ही शरारती अंदाज में पूछा, “और जो मेरा नुक्सान किया उसका क्या?”
सिम्मी चाचीजी की और देखती ही रही फिर धीरे से बोली, “नुक्सान? कौनसा नुक्सान?”
चाचीजी ने सिम्मी को अपनी बाँहों में जकड कर उसको अपनी आहोश में लेते हुए कहा, “अरी पगली! मेरे पाँव मत छू। तू मेरी भाँजी या छोटी बहन नहीं मेरी सहेली है। मैं नहीं जानती क्या हुआ होगा कल? बहुत अच्छा किया तूने। पर एक बात माननी पड़ेगी सिम्मी। जो काम तेरे चाचा दो साल में नहीं कर पाए, कालिया ने एक ही रात में कर दिया।”
सिम्मी चाची की बात सुन कर अपनी जिज्ञासा नहीं रोक पायी। सिम्मी ने चाचीजी के हाथ थाम कर उत्सुकता से पूछा, “क्या किया कालिया ने कल रात चाचीजी?”
चाचीजी ने सिम्मी को फिर बाँहों में लिया और बोली, “तेरे चाचा यह पलंग दो साल तक नहीं तोड़ पाए। कालिया ने एक रात में ही यह पलंग तोड़ दिया।” कह कर चाचीजी ठहाका मार कर हँस पड़ी।
सिम्मी चाचीजी की बात से झेंप कर खड़ी रही तब चाचीजी ने सिम्मी को अपने करीब लेते हुए कहा, “देखो सिम्मी, यह तुम दोनों ने बहुत अच्छा किया। जैसा मैंने कहा हर इंसान को प्यार चाहिए और यह बदन भी प्यार माँगता है। बेटी, तुम्हें कभी भी किसी भी निजी मामले में मेरी मदद की जरुरत पड़े तो मत हिचकिचाना।” ———————– अगले छह महीनों में कालिया और सिम्मी की कई बार चुदाई हुई। अर्जुन हमेशा दोनों के मिलन के समय द्वारपाल बन कर खड़ा होता था, ताकि उनकी प्रेम कहानी कहीं बाहर वालों को पता ना लगे। चाचीजी हर मौके पर सिम्मी का साथ देतीं रहीं। दोनों अब सहेलियां बन चुकीं थीं। धीरे धीरे सिम्मी अपनी सारी बातें चाचीजी से शेयर करने लगी थी।
चाचीजी के घर में कालिया का आनाजाना भी शुरू हो गया था। ऐसा सूना गया था की चाचीजी कालिया को समय समय पर कुछ ना कुछ काम देने लग गयीं थी और समय बे समय कालिया चाचीजी को मिलने उनके घर जाया करता था और उनके साथ काफी समय बिताया करता था। ।
सिम्मी छह महीने खतम होते ही शहर से अपने गाँव माता पिता के पास चली गयी। उसके बाद उसका कालिया से मिलना हुआ नहीं। हमारा पहला चरण यहां समाप्त हुआ। आगे की कहानी अब तक की कहानी से कई गुना ज्यादा विस्फोटक है। आगे के चरण के लिए इंतजार कीजिये।
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