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पहले तो आप लोगों का बहुत शुक्रिया, जिन्होंने मेरी पिछली सेक्स कहानी दोस्त की मम्मी को चोदा पढ़ी और सराहना की. मैं तहे-दिल से आप सभी का शुक्रगुजार हूँ. बहुत लोगों ने मुझसे पूछा कि मैं कहां से हूँ. मैं बताना चाहूंगा कि मैं कोलकाता से हूँ. कुछ को मेरा नाम जानने की ललक थी. तो मैं बता देना चाहता हूँ कि मैं यहाँ पार्थ (बदला हुआ नाम) के नाम से कहानियां लिखता हूँ. अनेकों के प्रश्न और शंका इस बात पर थी कि ये कहानी झूठी है. पर ऐसा नहीं है. लेकिन शक की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी.
दरअसल ये वाकिया आंखों के धोखे के कारण घटित हुआ था. हुआ यूं कि मैं एक दिन बाइक पर अपनी एक अच्छी दोस्त के साथ घूमने निकला था, अचानक उसके फ़ोन पर उसके घर से फोन आया कि किसी का गृह प्रवेश है और उसे वहां जाना है. उसके उसके माता पिता भी वहीं पहुंच रहे हैं.
उसने मुझसे कहा कि यार घर वालों को भी न बिल्कुल चैन नहीं है. कभी भी कभी भी बस उनको अपना काम करवाना होता है. मैं बोला- कोई बात नहीं, तुम वहीं चली जाओ, हम कभी फिर घूमने चले चलेंगे.
वो थोड़ी उदास हो गई थी. उसने कुछ सोचा और बोली कि तुम एक मिनट यहीं रुको. मैं एक कॉल करके अभी आयी. मैं रुक गया और वो फोन करने चली गई.
उसके बाद थोड़ी देर बाद उसने आकर मुझसे पूछा- तुम्हें आज कोई और काम है? मैं- ऐसा खास काम तो कोई नहीं है. वो- क्या तुम मुझे वहां तक छोड़ दोगे? मैं समझ गया कि उसे उसी गृह प्रवेश वाली जगह पर जाना है- अरे यार इसमें इतना क्यों पूछ रही हो, मुझे कोई काम हो या न हो, मैं तो वैसे भी तुमको उधर छोड़ दूंगा. वो हल्की सी मुस्कुराई और थैंक्यू बोलते हुए मुझे आंख मारने लगी.
मेरे लिए ये सब नार्मल था … क्योंकि वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी और हमारी दोस्ती बहुत समय पुरानी थी. मैं भी हंस दिया.
मैं- कुछ खाना है … या सीधा चलें? वो- न … कुछ नहीं खाना है यार उधर का माल ही खाने को मिलेगा न … सीधा चलते हैं.
इसके बाद हम दोनों उधर ही निकल पड़े. अचानक मैंने नोटिस किया कि उसके आचरण में कुछ परिवर्तन आ गया था. वो अभी पहले से ज्यादा चिपक कर बैठी हुई थी. मैं भी उसकी रगड़ने की सोच का मजा लेने लगा.
फिर अचानक वो बोली- यार मुझे चेंज करना है. मैं- अब क्या चेंज करना है, ये कपड़े सही तो पहने है, अच्छी तो लग रही हो.
वो धीरे से फुसफुसाते हुए खुद से बोली कि अब इसे कैसे बताऊं..
वो- कपड़े तो ठीक हैं, पर मुझे चेंज करना है. मुझे कुछ समझ नहीं आया. मैंने पूछा कि यार सही तो लग रही हो, अब क्या चेंज करना है. वो- अरे, तुम नहीं समझोगे … वो…..वो … कुछ है. मैं- कुछ प्रॉब्लम है क्या.
मैंने बाइक रोक दी.
वो- पागल, क्या हुआ. बाइक क्यों रोक दी? मैंने प्यार से कहा- अरे क्या हुआ है … क्या प्रॉब्लम है … तुम ठीक तो हो न?
मैं उसके माथे पर हाथ लगा कर चैक करने लगा. वो थोड़ा सा स्माइल करते हुए देखने लगी. थोड़ी देर तक वो यूं ही रही मेरे हाथ के स्पर्श को महसूस करती रही.
फिर होश संभालते हुए बोली- हां जी … चैक कर लिया … सब कुशल मंगल है न, अब चलिए. मैं- ठीक है जी, आप आराम से बैठिए. हम दोनों हंसने लगे.
फिर कुछ दूर जाने के बाद वो बोली- पार्थ यू आर ए नाईस गाई.
उसने अपने हेलमेट को मेरी पीठ से लगा दिया. मुझे अजीब सा लग रहा था कि इसे अचानक से क्या हुआ है. कहीं इसकी तबियत तो खराब नहीं हो गई है.
मैंने उसके कहे अनुसार उसके घर की तरफ बाइक दौड़ा दी और कुछ ही समय में हम दोनों उसके घर पहुंच गए. वो बाइक से उतर कर अन्दर आने को बोली. हम दोनों घर के अन्दर चले गए.
वो बोली- तुम थोड़ी देर रुको, मैं अभी आयी. मैं सोफे पर बैठ गया.
फिर वो बीस मिनट बाद आयी. इस बीच मैं टीवी देखने लगा था.
जब वो आयी, तो सच में यार बहुत अच्छी लग रही थी. वो नीले रंग के सलवार सूट में मस्त माल लग रही थी. मैं तो उसे बस देखता रह गया.
उसने मेरी तरफ आंख दबाते हुए कहा- कैसे लग रही हूँ? मैंने कहा- बहुत ज़बरदस्त … एकदम कबड्डी खेलने लायक माल लग रही हो. वो हंसने लगी और मुझे मुक्का दिखाने लगी. हम दोनों ने स्माइल दी.
चूंकि हम पहले ही काफी लेट हो चुके थे, तो मैंने कहा- मैडम जी, अब चलें? उसने कहा- हां सर चलिए.
फिर हम दोनों वहां पहुंच गए, जहां गृह प्रवेश था. क्योंकि हमें आते आते थोड़ी सी शाम हो गयी थी, तो ज़्यादा लोग वहां नहीं रह गए थे.
मैंने बोला- ओके तुम एन्जॉय करो, मैं चलता हूँ. वो बोली- ऐसे कैसे जनाब … हमारे साथ आए हो, अकेले तो मैं नहीं जाने दूंगी. मैं- तुमको देर लगेगी यार. वो हंसने लगी- ऐसा कुछ नहीं होगा जी. मैं- पर मैं इधर किसी को जानता भी तो नहीं हूँ. वो- मैं भी सबको नहीं जानती, मुझे अकेला लगेगा. तुम कुछ देर रुक जाओ, फिर हम साथ ही वापस चलेंगे. मैंने मज़ाक करते हुए कहा- ठीक है जी रुक जाता हूँ, पर मेरा क्या फायदा होगा?
ये कहते हुए मैंने आंख दबा दी. वो- मेरे साथ आए हो, इतनी अच्छी कंपनी दे रहे हो, तो मुझे भी सोचना पड़ेगा. वो भी हंसने लगी. मैं- चलो ठीक है.
फिर हम दोनों अन्दर जाने लगे. गेट के ठीक पास, वहां एक छोटा सा कमरा जैसा था. जहां हाथ धोने की जगह थी. ऐसा लग रहा था कि वो कमरा अभी तक पूरी तरह से बना नहीं था. उधर एक कम रोशनी वाला बल्व जल रहा था.
मैं बोला- थोड़ा रुको, मैं हाथ-मुँह धोकर अभी आया. मैं वहां चला गया.
थोड़ी देर में मुझे वहां किसी के आने का अहसास हुआ. वो कोई और नहीं मेरी सबसे अच्छी दोस्त ही थी, जो मुझसे पीछे से लिपटी हुई थी.
वो- क्यों जनाब, आज कल बहुत डिमांड की जा रही है? मैं- अब क्या करें? मांगने से ही कुछ मिल सकता है न!
उसने मेरे बालों को अपनी पकड़ में ले कर मुझे पलटाया और मेरे होंठों से अपने होंठों को मिला कर चूमने लगी. मैं भी उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे ज़ोर ज़ोर से चूमने लगा.
फिर मैंने अपनी जीभ निकाल कर उसके होंठों पर ज़ोर ज़ोर से फिराना शुरू किया, तो वो सिहर उठी और धीरे धीरे सिसकारियां लेने लगी. हमारे बीच में चुम्बन इतना ज्यादा मस्त हुआ कि हम दोनों के होंठ लाल हो गए.
फिर मैंने उसकी गर्दन पर हल्के से चूमा और वो पगली वहीं पर पिघलने जैसी हो गई. वो हल्की से कमर झुकी, उसकी छाती आगे को हुई और सर थोड़ा सा पीछे हुआ. ऐसा लगा मानो उसने खुद को मुझे सौंप दिया है.
फिर मैंने अपनी जीभ को उसके कान की बालियों तक पहुंचा कर लौ को हल्के से कुरेदने लगा.
सच मानो दोस्तो … वो तो पागल जैसे होने लगी.
फिर मैंने अपने होंठों से कान के पीछे वाली जगह को चूसना शुरू कर दिया. इससे वो अपना आप खोने लगी और कहा- कब से तरसा रहा था … इतना तड़पाओगे तो मर ही जाऊँगी यार. मत कर ऐसा, मत तड़पा और अब सम्भला नहीं जा रहा … रुक जा.
मैं कहां रुकने वाला था. मैं बस हल्के हल्के नर्म होंठों से अपना काम करता रहा. धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि उसे हल्का सा पसीना आ रहा है. सच मानो दोस्तों, उसके हल्के पसीने से आने वाली खुशबू और वो अहसास को शब्दों में बयान करना मुश्किल है.
वो मेरे खड़े होते लंड की चुभन को महसूस कर पा रही थी. वो मेरी छाती से अपनी पीठ करके लगी हुई थी. मेरे खड़े होते लंड पर वो धीरे धीरे अपनी गांड घिसने लगी.
मैंने उसके गले पर हल्का सा काटा और उस कटी हुई जगह पर अपनी जीभ को फिराने लगा, वो तो इससे जैसे काँप सी गयी. उसकी आंखें पूरी तरह से बंद थीं … होंठ पूरी तरह से सूखे हुए थे. वो कांपने लगी थी.
फिर मैंने उसे सीधा किया और उसके होंठों पर जीभ से गोल गोल घुमाने लगी. वो तो जैसे सातवें आसमान पर थी. उसने मेरे लंड को पकड़ा और हल्के से हिलाने की कोशिश करने लगी. उसके हाथों की गर्मी पा कर लंड को अपने असली रूप में आने को बिल्कुल भी समय नहीं लगा. उसके नाज़ुक से … कोमल से … एकदम से प्यारे से हाथ थे. उसके हाथों के कोमल से अहसास को पाकर मैं एकदम से गनगना उठा. वो हल्के हाथों से मेरे लंड को हिलाने लगी.
मैं उसके कपड़ों के ऊपर से ही उसकी चूचियों से खेल रहा था. कभी निप्पल पर हल्की सी चिकोटी काट लेता, तो कभी हल्के हाथों से दबा देता. वो भी सिहर जाती.
पहले मैंने अपना हाथ उसके पेट के बीच में रखा और कमीज़ को हल्के से ऊपर कर दिया. आह वो कोमल और मखमली सा अहसास मुझे वासना की आग में झुलसाने लगा था.
मेरे हाथों ने उसकी ब्रा को ऊपर से पकड़ लिए और कहा- ब्रा का हुक लग रहा है.
वहां मैंने अपनी नाक लगा दी और हल्के हल्के से गहरी और गर्म सांस छोड़ने लगा. वो और मचल गयी.
मुझे लगा कि वो नशे में हो गयी थी. फिर मैंने अपनी जीभ को उसकी ब्रा के बॉर्डर लाइन पर फिराया. उसके जरा से नीचे जहां ब्रा की लाइन बन जाती है, वहां जीभ को चलाना शुरू कर दिया. मेरी इस हरकत से वो पागलों जैसे हिलने लगी.
फिर मैंने जहां ब्रा का हुक लगता है, वहां जा कर अपनी जीभ से हल्के से चाटना शुरू किया और हल्के हाथों से ब्रा के ऊपर से मम्मों को दबाने लगा. वो अपना सारा भार मुझ पर डाल कर मज़े लेने लगी. साथ ही मेरे लंड और ज़ोर से हिलाने लगी.
फिर मैंने उसकी कमर पर अपने हाथों को घुमाया और जैसे एक कुम्हार घड़ा बनाते समय उस पर हाथ लगा कर हल्के हाथों से आकार देता है, मैं भी ऐसा ही करने लगा. वो और भी मस्त हो उठी और पागल होने लगी.
फिर जैसे ही मैं सलवार पर हाथ लगाने लगा, वो वो हल्का झटका देकर मुझसे थोड़ा दूर हो गई. पर मैंने उसे अपनी बांहों से दूर होने नहीं दिया.
मैं फिर से वही करने की कोशिश करने लगा, तो वो प्यारी सी आवाज़ में बोली- पार्थ मत करो न … अभी नहीं.
वो इस बात को इतने प्यार से बोली, तो मैं भला उसकी इस बात को कैसे न मानता. मैं वहीं रुक गया. उसने अपनी बांहों को मेरी बांहों में फंसा दिया और हम हग करके कुछ देर यूं ही खड़े रहे.
वो- तुम्हें पता है मैंने क्यों मना किया? मैं- मुझे कैसे पता होगा? वो- तो तुम रुके क्यों? मैं- क्योंकि तुमने कहा था … तुमको कुछ दिक्कत है क्या? वो- वो … वो … पार्थ सुनो न … मेरे अभी पीरियड्स चल रहे हैं. मैंने मुस्कुरा कर कहा- वाह … मुबारक हो … सही समय मेरा खड़ा किया.
ये कह कर मैं हंसने लगा.
वो मेरे सीने पर मुक्का मारते हुए कहने लगी- हंसी क्यों आ रही है? तुमको होता, तो पता चलता, तभी तो तब मैंने कहा था कि मुझे चेंज करना है और देखो तूने क्या हाल कर दिया.
मैं- अरे बाबा, इतनी सी बात थी, तो बोल देती न! वो- तुम इतने बुद्धू होगे, मुझे पता थोड़ी था. मैं- ऐसा है क्या?
मैंने हंसते हुए उसे आंख मार दी. वो भी बस मुस्कुरा कर मेरे गले से लग गयी.
फिर मैंने उसके कपड़े ठीक करने में उसकी मदद की. वो उधर से पहले निकली. उसके दो मिनट बाद मैं निकला.
कपड़े ठीक करने के बाद बाहर आकर हम वापस पार्टी में आ गए. यहाँ मेरी हालत बुरी थी, वहां उसकी, मेरा लंड फटने जैसा हो चुका था, पर मुझे अपने आपको कण्ट्रोल करना था … जो कि बहुत ही मुश्किल काम था. मेरा लंड अकड़ा हुआ था, जोकि मेरी पैंट से साफ़ दिख रहा था. मैंने सोचा कि मुझे इसका इलाज करना तो पड़ेगा, पर मैं मुठ नहीं मारूंगा. उससे लंड चुसवा कर मैं अपने लंड की आग ठंडी करूँगा.
मैं उसको ढूंढने लगा, पर वो कहीं मिली ही नहीं, शायद वो अपने अंकल से मिलने गयी होगी.
तभी फिर मुझे उसकी नीले रंग की सलवार दिख गई. मैंने समझ गया कि अपना माल मिल ही गया. मैं उसके पास जाने के लिए उठा ही था कि तभी वो फिर से वहीं जाने लगी … जिधर हम दोनों का प्रेमालाप हुआ था.
मैंने बताया था कि गेट के ठीक पास वह एक छोटा सा अधबना कमरा जैसा था, जहां हाथ धोने की जगह थी.
मैंने सोचा कि वो इशारों में मुझे बुला रही होगी. मैं भी उसके पीछे पीछे चला गया. वो कमरे में अन्दर घुसी और उसने नलका खोला. अन्दर से पानी के गिरने का आवाज़ आने लगी.
मैंने सोचा कि यही सही मौका है और मैं भी अन्दर घुस गया. मैंने चुपके से उसको हग कर लिया और चूमने लगा. पर इस बार मुझे अलग सी अनुभूति हुई, ऐसा लगा कि वो अचानक से थोड़ी सी स्थूल सी हो गयी है और इस बार खुशबू भी कुछ और ही आ रही थी. मैंने सोचा कि इसने अन्दर जाकर कुछ नया परफ्यूम लगा लिया होगा. कम रोशनी के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैंने कुछ नहीं सोचा … और न कुछ देखा. बस उसकी गर्दन पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी.
इस वक्त मेरे अन्दर तो आग पहले से ही सुलगी हुई थी … मेरे सोचने समझने की शक्ति मानो खत्म हो चुकी थी. फिर उस तरफ से भी कोई ज्यादा हरकत नहीं हुई.
कुछ देर बाद मैंने खुद ही पूछ लिया- क्या हुआ … कुछ प्रॉब्लम है? फिर भी उसकी कोई आवाज़ नहीं आयी.
फिर जैसे ही मैंने उसको सामने की तरह घुमाया मेरी गांड फट गयी.
मेरा दिमाग घूम गया क्योंकि ये तो कोई और ही थी. मुझको काटो तो खून नहीं था. मैं बस यही सोच रहा था कि ये मुझसे क्या हो गया, आखिर इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी.
इसके आगे क्या हुआ, वो मैं आपको दूसरे पार्ट में लिखूंगा कि आंखों का धोखा कैसे हुआ और क्या उसने मुझे अपने साथ सेक्स करने का सुख दिया. इस सबको मेरी अगली सेक्स कहानी में पढ़ना न भूलिए.
आपके कमेंट्स मुझे जरूर मेल करें, मुझे इन्तजार रहेगा. [email protected]
कहानी का अगला भाग: नजर का धोखा और मौसी की चूत- 2
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