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इस वाक्य का अर्थ मेरी समझ में नहीं आ रहा था। पता नहीं गौरी मेरे बारे में क्या सोचती होगी? क्या पता उसे मेरी मेरी इन भावनाओं का पता है भी या नहीं? पर मुझे नहीं लगता वो इतनी नासमझ होगी कि मेरे इरादों का उसे थोड़ा इल्म (ज्ञान) ना हो। खैर इतना तो पक्का है अब वो मेरी छोटी-मोटी चुहल से ना तो इतना शर्माती है और ना ही बुरा मानती है।
“गौरी एक बात पूछूं?” “हओ” “मेरा मन तो करता है मैं तुमसे बस बातें करता ही जाऊं? क्या तुम्हारा मन नहीं करता?” “मेरा तो बहुत मन होता है … मैं तो चाहती हूँ ति साले दिन बातें ही तीये जाऊं.” “पर करती तो हो नहीं?” “तलती तो हूँ.” “कहाँ करती हो? हर बात पर तो शर्मा जाती हो.”
गौरी अब फिर से मंद-मंद मुस्कुराने लगी थी। माहौल बिल्कुल हल्का हो गया था। “आप बातों-बातों में मुझे फंसा लेते हो तो मुझे शल्म आ जाती है?” “अब तुम एक तरफ तो अपना भी कहती हो और फिर शर्माती भी हो?” “आप जानबूझ तल ऐसा तलते हैं.”
“अच्छा भई अब बातों में नहीं फंसाऊंगा, वैसे ही फंसा लूँगा.” “हट!” हा हा हा … हम दोनों ही हंसने लगे थे।
“अच्छा गौरी वो तुमने कल वाली बात तो बताई ही नहीं?” “तोंन सी बात?” “ओह … तुम भी निरी भुलक्कड़ हो? वो कल शाम को तुम बता रही थी ना कि मधुर भी मेरे बारे में कोई बात बताती है?” “ओह … अच्छा वो वाली बात?” “हाँ?” “आप बुला तो नहीं मानोगे?” “किच्च”
“वो … वो … मधुल दीदी ने बताया ति वो आपसे बहुत प्याल तलती है.” “यह तो मुझे पता है? पर इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है?” “उन्होंने बताया था कि वो … आपको तई बाल प्याल से ‘लव लड्डू’ बुलाती हैं.” और फिर वो खिलखिलाकर हंस पड़ी। “अच्छा! मधुर ऐसा बोलती है? आज आने दो मैं उसकी अच्छे से खबर लेता हूँ.”
“अले … नहीं … दीदी मुझे माल डालेगी। मैं इसलिये तो आपतो बताती नहीं हूँ। अब मैं तभी तोई भी बात आपतो नहीं बताऊँगी.” गौरी की डर के मारे रोने जैसी शक्ल हो गई थी। “हा … हा … हा …” गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा। हालांकि आज मौक़ा बहुत अच्छा था मैं उसके और मजे ले सकता था पर मैं उसे और ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था।
मैंने उससे कहा “अरे नहीं यार … मैं तो मजाक कर रहा था। भला मैं तुम्हारी कोई बात मधुर को कैसे बता सकता हूँ?” “आपने तो मेली जान ही निताल दी थी.” “अरे मेरी जान! मैं तुम्हारी जान कैसे निकाल सकता हूँ? तुम भी तो हमारी अपनी ऐसी बातें मधुर को थोड़े ही बताती हो? तो फिर मैं भला कैसे बता सकता हूँ बोलो?” “हूँ.” अब गौरी की जान में जान आई।
हमने नाश्ता ख़त्म कर लिया था। गौरी बर्तन उठाकर रसोई में चली गई थी। वैसे नाश्ता तो बहाना था गौरी को सामान्य बनाना था और उसे इस बात के लिए पक्का करना था कि हमारे बीच हुई बातों को वो गलती से भी मधुर को ना बता दे। वैसे भी मधुर बहुत शक्की किस्म की औरत है उसे हमारे इस किस्सा-ए- तोता-मैना की जरा भी भनक लग गई तो लौड़े लग जायेंगे।
इस आपाधापी में 11 बज गए थे। मैं आँखें बंद किये सोफे पर ही लेट सा गया। आज मेरा प्रोग्राम शाम चार बजे तक फुल रेस्ट करने के साथ-साथ गौरी के साथ अगले प्लान के अनुसार गप्पे लगाने का था।
गौरी भी आज अच्छे मूड में लग रही थी। मेरे ख्यालों में उसका जवान जिस्म ही घूम रहा था। अभी तक तो सब कुछ मेरे प्लान के मुताबिक़ ही चल रहा था। बात-बात में गौरी का शर्माना अब थोड़ा कम होने लगा था और उसे भी अब रोमांटिक बातों में थोड़ा मजा आने लगता था।
जिस प्रकार अब वो अपने नितम्बों को थिरकाकर चलती है मुझे लगता है अब उससे अपनी जवानी का बोझ ज्यादा दिन तक नहीं उठाया जा सकेगा। लगता है अब गौरी फ़तेह की मंजिल ज्यादा दूर नहीं रह गई है। पता नहीं गौरी की गांड या चूत मारने को कब मिलेगी पर मन कर रहा है आज नहाते समय लंड को खूब तेल लगाकर उसके नाम से मुठ ही मार ली जाए।
मैं अभी अपने प्लान के बारे में सोच ही रहा था कि मोबाइल की घंटी बजी। इस समय कौन हो सकता है? कहीं मधुर तो नहीं? जब तक मैं फोन उठाता घंटी बंद हो गई। आजकल लोगों में सब्र (पेशेंस) तो है ही नहीं। बस मोबाइल पर मिस कॉल दे दो सामने वाला अपने आप गांड मरायेगा (फोन मिलाएगा)।
एक सर्वे के अनुसार मिस कॉल दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा मारी जाने वाली चीज़ है। गांड तीसरे नंबर पर और मुठ अभी भी पहले नंबर पर है। भेनचोद भोंसले का फोन था। मुठ मारने के प्रोग्राम की ऐसी तैसी कर दी। अब उससे बात करने की मजबूरी थी। बात करने पर पता चला कि वह आज शाम को कहीं जा रहा है इसलिए अगर अभी मिलने आ सको तो ठीक रहेगा। लग गए लौड़े! पूरे सन्डे की माँ चुद गई।
मैंने गौरी को बताया कि मुझे भोंसले साहब के घर जरुरी काम से जाना पड़ेगा. तुम दोपहर का खाना खा लेना, मेरे लिए बाद में बना देना। “ओह …” आज गौरी ने ‘हओ’ के बजाय ‘ओह’ कहा था। उसके चहरे से लग रहा था जैसे मेरा अभी जाना उसे भी अच्छा नहीं लग रहा है। पता नहीं क्यों?
मैं कोई 12 बजे के आसपास तैयार होकर घर से निकला था।
रास्ते में मिठाई का एक डिब्बा खरीदा। फिर कार से भोंसले के घर पहुँचने में आधा घंटा लग गया।
डोर बेल बजाते ही थोड़ी देर में घर का दरवाजा एक कमसिन फुलझड़ी ने खोला। सर पर नाइके के टोपी, आँखों पर चश्मा, मध्यम कद, दो चोटी बनाए जवानी की दहलीज पर दस्तक देते भरे पूरे दो उरोज और पाजामे के अन्दर सिमटी पतली-पतली टांगों के ऊपर क़यामत ढाते दो गोल नितम्ब और पतली कमर।
मेरी निगाहें तो उसकी एक सटीक अनुपात में क्रमशः नीचे से ऊपर की ओर बढ़ती हुई मखमली जाँघों से हट ही नहीं रही थी। रंग गोरा तो नहीं कहा जा सकता पर इतना सांवला भी नहीं था। शरीर का रंग कैसा भी हो कुंवारी चूत के अन्दर का रंग तो एक ही होता है और वह है गुलाबी और इसी गुलाबी रंग के पीछे, दुनिया के सारे लंड दीवाने होते हैं। रेशमी बालों में छुपी अनमोल वाटिका में खिले पुष्प की पंखुड़ियों की खुशबू मदहोश कर देती है। ऐसी लड़कियों के शरीर की खुशबू लंड को एकदम खड़ा कर देती है और वो मस्ती में झुमने लगते हैं।
किसी भी लंड के लिए ऐसी लड़कियों की गुलाबी चूत को सूंघना, चाटना और चोदना एक दिवास्वप्न ही होता है। आप मेरी हालत का अंदाजा बखूबी लगा सकते हैं मैंने अपने लंड को कैसे काबू में किया होगा।
मैं अवाक उसे देखता ही रह गया। एक बार तो मुझे भ्रम सा हुआ कहीं निशा (दो नंबर का बदमाश वाली) तो नहीं?
“प्रेम भैया?” उसने सुखद आश्चर्य से मेरी ओर देखते हुए पूछा। जैसे अमराई में कोई कोयल कूकी हो। ओह! लगता है यह भोंसले की लड़की पारुल है। उसकी आवाज तो बहुत मधुर थी पर उसका ‘प्रेम भैया’ बोलना मुझे कतई अच्छा नहीं लगा। “हा … हाँ … भ … भोंसले साहब हैं?” भेनचोद यह जबान भी खूबसूरत लौंडियों को देखकर पता नहीं क्यों गड़बड़ा जाती है। “हाँ हाँ … आप अन्दर आइये वो आपकी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं.”
“पापा! प्रेम भैया आये हैं?” “आओ प्रेम.” “गुड आफ्टरनून सर!” “वैरी गुड आफ्टरनून!” “बैठो.” “थैंक यू सर.”
“वो तुमने फिर क्या प्रोग्राम बनाया?” “ओह हाँ … वो जैसा आपने बताया मैं 2-3 महीने तक अपने टारगेट्स पूरे कर लेता हूँ फिर ट्रेनिंग का प्रोग्राम बना लेता हूँ.” “हाँ यही ठीक रहेगा.” “थैंक यू सर.” “यह तुम्हारे लिए बहुत बड़ी अपोर्चुनिटी (अवसर) है। इसे मिस नहीं करना चाहिए। अगर तुम चेंज लेने में इंटरेस्टेड हो तो वह भी हो सकता है। और अगर यहीं कंटिन्यू करना हो तो भी ठीक है। पर यह हैड ऑफिस पर डिपेंड करता है।”
मैं अभी कुछ सोच ही रहा था कि अचानक मेरे कानों में आवाज सुनाई पड़ी- नमस्ते प्रेम जी.
ओह … यह तो भोंसले की पत्नी माधवी थी। बिल्कुल तारक मेहता का उलटा चश्मा वाली माधवी की तरह। मध्यम कद, पतली कमर के नीचे गोल मोटे खरबूजे जैसे कसे हुए नितम्ब। साली पूरी मोरनी लगती है। गुलाबी होंठों, मस्त उरोजों से लदी, नाभि दर्शाना साड़ी पहने उसे देखते ही डिग्गी राजा की तरह मुंह से निकल जाए- वाह क्या टंच माल है! जब नाभि का छेद इतना सुंदर है तो इसके जांघों के बीचे का छेद कितना सुंदर होगा!
मैं उसे अवाक सा देखता ही रह गया। हालांकि मैं कई बार पार्टियों में उसे देखा है पर आज तो यह पूरी पटोला लग रही है। इसके नितम्ब देखकर तो लगता है यह साला भोंसले जरुर इसकी मस्त गांड का मज़ा लेता ही होगा। वरना इतने खूबसूरत नितम्बों का क्या फायदा? साली के लाल गुलाबी होंठ तो इतने रसीले लग रहे हैं कि अपने पप्पू को इसके मुंह में डाल दिया जाए तो बन्दा धन्य हो जाए।
“न .. न.. नमस्ते भाभीजी.” मैं हकलाता सा बोला। “मधुर नहीं आई क्या?” “हाँ … दरअसल आज उसकी तबियत थोड़ी खराब सी है।” “ओह.. क्या हुआ?” “कुछ ख़ास नहीं … वैसे ही जी ठीक नहीं है और सिर दर्द सा है।” माधवी कुछ रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराने लगी थी। पता नहीं क्यूं?
“आप तो बड़े दिनों बाद आये हैं बताइये क्या लेंगे?” मन में तो चूत थी, पर मैंने पानी बोला। अब बताओ होगा कोई मेरे जैसा शरीफ आदमी? “माधवी! आज गर्मी बहुत है, ठंडा ले आओ.” भोंसले ने बीच में अय्यर की तरह भांजी मार दी।
माधवी ठंडा शरबत बना कर ले आई। कुछ औपचारिक सी बातें करने के बाद मैं वापस तो लौट आया। अलबत्ता मेरी आँखें देवदास की तरह पारो नाम की उस फुलझड़ी को ही ढूंढ रही थी। साली ये चुन-चुन चिड़िया भी एक झलक दिखाकर पता नहीं कहाँ फुर्र हो गयी। मेरा ख्याल है इसकी बुर घुंघराले रेशमी बालों से ढकी होगी। रस से भरी हुई। एक बार अगर चूम लो तो झट से पानी निकल जाए फिर तो चाहे पूरा लंड एक ही झटके में डाल दो पूरा गटक जायेगी।
मेरा इरादा जल्दी से जल्दी घर पहुँचने का था पर साली किस्मत हाथ में लंड लिए हमेशा तैयार रहती है। ऑफिस में साथ काम करने वाले गुलाटी का फ़ोन आया कि उसका बाइक से एक्सीडेंट हो गया है। उसे तो ज्यादा चोट नहीं आई पर उसकी पत्नी के सर में चोट लगी है। अब अस्पताल जाना भी जरूरी था।
अस्पताल के चक्करों में घर पहुंचते-पहुँचते शाम हो गई। पूरे सन्डे की छुट्टी के माँ चुद गई। आज मेरी इच्छा मधुर को खूब जोर से रगड़ने की हो रही थी। माधवी के नितम्ब और उस फुलझड़ी को देखकर तो लंड-बार बार तुपके छोड़ रहा था।
जब घर पहुंचा तो मधुर आश्रम से आ चुकी थी। उसने देरी का कारण पूछा तो मैंने उसे भोंसले और गुलाटी वाली बात बताई। मैंने उसे प्रमोशन वाली बात भी बताई। मेरा अंदाज़ा था मधुर मेरे प्रमोशन की बात सुनकर झूम ही उठेगी और फिर आज पूरी रात हम दंगल और हुडदंग मचाएंगे. पर चाय पीते समय मैंने दो बातों को महसूस किया। एक तो मधुर ने मेरे प्रमोशन वाली बात पर कोई ख़ास तवज्जो (ध्यान) नहीं दिया था। और दूसरी बात आज गौरी भी कुछ उदास सी लग रही थी। पता नहीं मधुर ने कुछ बोल दिया था या कोई और बात थी? दोनों चुपचाप सी थी।
रात को मधुर से जब मैंने आश्रम के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो उसने बताया कि गुरूजी के जन्मोत्सव का प्रोग्राम था। बहुत से भक्त आये थे। गुरूजी को पहले फलों और मिठाइयों से तौला गया और फिर आरती और भजन के बाद कुछ विशेष शिष्यों को दीक्षा भी दी गई थी। मधुर ने बताया था कि उसे भी गुरूजी ने दीक्षा दी है। उसके हाथ पर कलावा भी बाँधा है। आप तो जानते हैं मेरी इन सब पाखंडों में ज्यादा रूचि नहीं रहती। मुझे तो डर था ये साला गुरूजी कहीं दीक्षा या चमत्कार के नाम पर कुछ और ही गुल ना खिला बैठे।
आज टीवी देखने का मूड नहीं था। खाना खाने के बाद जब हम लोग बेडरूम में आ गए। मेरे लंड का तनाव अब बर्दास्त से बाहर हो रहा था। मैंने मधुर को अपनी बांहों में भींच लिया। मेरी इस प्रकार जल्दबाजी को लेकर अक्सर मधुर ना नुकर और नखेरे जरूर करती है पर आज वो बिल्कुल चुप थी। “प्रेम!” “हूँ” “एक बात बताऊँ?” “हूँ?” “वो अगले सप्ताह सावन शुरू होने वाला है.” “हाँ … तो?” “वो … गुरूजी ने बोला है.” “क्या?” मेरी उलझन बढ़ती जा रही थी। ये साली मधुर की बच्ची भी बात को इतना घुमा फिर कर बोलती है कि बन्दे का पानी कच्छे में ही निकल जाए।
“वो आज दीक्षा लेते समय मैंने अकेले में गुरूजी से एक बात पूछी थी.” “क्या?” अब तो मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी। पूरे मूड की ऐसी तैसी हो रही थी। “वो … मैंने गुरूजी से बच्चे के योग के बारे में पूछा था.” “हुम् … फिर?” “गुरु जी बोले मधुर तुम एक महीना इस सावन में व्रत रखो और शरीर को शुद्ध रखकर शुक्र के पाठ करो।”
“क्या मतलब?” “ओहो … वो बोलते हैं एक महीने सावन में शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाना है।” “साला एक नंबर का फतुरा है.” “अरे नहीं प्रेम! आश्रम में मुझे 2-3 जोड़े मिले थे वो बता रहे थे कि उनको तो गुरूजी की कृपा से ही संतान सुख मिला है।” “सब बकवास है.”
“तो क्या हुआ? बस एक महीने की ही तो बात है। करके देखने में क्या अहित (हर्ज) है?” “मधुर तुम भी पढ़ी लिखी होकर किन फजूल बातों में लगी रहती हो.”
मेरा मूड का तो सारा गुड़ गोबर हो गया। कहाँ मैं आज मधुर को खूब लम्बे समय तक रगड़ने के मूड में था और यह साली लम्पट बाबाओं और राहू-केतु के चक्करों में उलझी हुई है। “प्रेम! प्लीज समझा करो। कहते हैं जब दवा काम नहीं करे तो दुआ जरुर काम करती है। क्या पता भगवान् हमारी इसी बहाने सुन ले?” “ठीक है तुम जैसा चाहो करो।”
किसी ने सच ही कहा है ‘लौडियों पे ध्यान देना और चूतियों को ज्ञान देना’ दोनों ही सूरतों में घंटा हासिल होता है। मैं दूसरी ओर करवट लेकर सो गया। आज तो सच में ही लौड़े लग गए।
यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे. [email protected]
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