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मधुर आज खुश नज़र आ रही थी। मुझे लगता है आज मधुर ने खूब ठुमके लगाए होंगे। खुले बाल और लाल रंग की नाभिदर्शना साड़ी … उफफ्फ … पता नहीं गौरी को यही साड़ी पहनाई थी या कोई दूसरी! पर कुछ भी कहो मधुर इस समय बाजीराव की मस्तानी ही लग रही थी।
मधुर रसोई में घुस गयी। वो शायद गौरी को रात के खाने के बारे में समझा रही थी। मैं हाथ मुँह धोकर कपड़े बदलकर बाहर आकर टीवी देखने लगा। आज शनिवार था तो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ तो आने वाला था नहीं … मैं कॉमेडी शो देखने लग गया।
खाना निपटाने के बाद हम अपने कमरे में आ गये। मधुर शीशे के सामने खड़ी होकर अपने आप को निहार रही थी। “मधुर आज तो गुप्ताजी के यहाँ पार्टी में तुमने खूब रंग जमाया होगा?” “ना बस थोड़ा सा ही डांस किया.” “वैसे तुम इस साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लगती हो.” मधुर ने कोई जवाब नहीं दिया वो बाथरूम में घुस गयी।
मैंने अपने पाजामे का नाड़ा खोल दिया था और अपने अंगड़ाई लेते पप्पू को हाथ से सहलाने लगा। कोई 15 मिनट के बाद वो बाथरूम से बाहर आई और फिर बिस्तर पर मेरी ओर करवट लेकर लेट गयी। उसने ढीला सा गाउन पहन रखा था। उसने बालों की चोटी नहीं बनाई थी बाल खुले थे।
अब उसने एक हाथ से मेरे पप्पू को पकड़ लिया और सहलाने लगी। उसने मेरे होठों पर एक चुम्बन लिया और फिर मेरी आँखों में झांकते हुए बोली- प्रेम! “हूं …” मैं भी उसे अब अपनी बांहों में भर लेना चाहा। “वो आज गुलाबो फिर आई थी?” “पर तुमने उसे उस दिन 8-10 हज़ार रुपये दे तो दिए थे? अब और क्या चाहिए उसे?” “ओहो … तुम्हें तो आजकल कुछ याद ही नहीं रहता? वो मैंने तुम्हें बताया था ना?” “भई अब मुझे क्या पता तुमने कब और किस बारे में बताया था?” मेरा मूड कुछ उखड़ सा गया था। ये मधुर भी कब की बात कब करती है पता ही नहीं चलता।
“वो दरअसल उन लोगों ने नगर परिषद में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के अंतर्गत गरीब परिवार वालों को घर में शौचालय (टॉयलेट) बनाने के लिए मिलने वाले अनुदान के लिए अप्लिकेशन लगा रखी है। तुम्हारा वो एक फ्रेंड अकाउंटेंट है ना नगर परिषद में?” “हाँ तो?” “वो निर्मल निर्मल करके कोई है ना?” “हाँ निर्मल कुशवाहा? क्या हुआ उसे?” “अरे उसे कुछ नहीं हुआ गुलाबो की फाइल उसी के पास पेंडिंग पड़ी है। तुम कहकर बेचारी का यह काम करवा दो ना प्लीज?”
मधुर मेरे ऊपर थोड़ा सा झुक सी गयी थी और उसने मेरे सिर को हाथों में पकड़कर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकराने लगी थी। अब उसने अपनी एक मांसल जांघ मेरे दोनों पैरों के बीच फंसा ली थी। मधुर को जब कोई काम करवाना होता है तो वो इसी प्रकार मेरे ऊपर आ जाती है और फिर हम विपरीत आसन में (जिसमें पुरुष नीचे और स्त्री ऊपर रहती है) खूब चुदाई का मज़ा लेते हैं।
“तो क्या गुलाबो के यहाँ टॉयलेट नहीं है?” मुझे बड़ी हैरानी हो रही थी। “यही तो बात है? तुम जरा सोचो बेचारों को कितनी बड़ी परेशानी होगी? जवान बहू बेटियों को भी बाहर खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है.”
आईलाआआ … ! क्या गौरी भी खुले में सु-सु करने जाती है? ओह … उस बेचारी को तो बड़ी शर्म आती होगी? ईसस्स्स्स … ! वो शर्म के मारे सु-सु करने से पहले इधर उधर जरूर देखती होगी … फिर अपनी आँखें झुकाए हुए धीरे धीरे अपनी पैंटी नीचे करती होगी और उकड़ू बैठ कर अपनी खूबसूरत मखमली बुर से सु-सु की पतली सी धार निकालती होगी.
याल्ला … इसे देखकर तो लोगों के लंड खड़े हो जाते होंगे … और फिर वो सभी मुट्ठ मारने लग जाते होंगे! ये तो सरासर गलत बात है जी … बेहूदगी है ये तो … इससे तो हर जगह गंदगी फ़ैल जाएगी और सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की तो … ?
“क्या हुआ?” मधुर की आवाज़ से मैं चौंका। “ओह … हाँ बहुत खूबसूरत?” “क्या बहुत खूबसूरत?” मधुर ने फिर टोका। मैं तो गौरी की सु-सु की मधुर आवाज़ की कल्पना में ही में डूबा था मैं बेख्याली में पता नहीं क्या बोल गया।
मैंने बात सँवारी- हाँ … मेरा मतलब था बहुत सुन्दर विचार है मैं उससे बात करूँगा … तुम निश्चिन्त रहो समझो उसका काम हो गया. “थैंक यू प्रेम!” कहकर मधुर ने मेरे ऊपर आकर अपनी चूत में मेरे लंड को घोंट लिया। और फिर आधे घंटे तक उसने अपनी चूत और नितम्बों से खूब ठुमके लगाए। मुझे आश्चर्य हो रहा था आज मधुर ने डॉगी स्टाइल में करने को क्यों नहीं कहा। आज तो वह खालिश घुड़सवारी के मूड में थी।
काश कभी ऐसा हो कि गौरी भी इसी तरह मेरे ऊपर आकर घुड़सवारी करने को कहे तो मैं झट से मान जाऊँ। फिर तो उसके नितम्बों पर थपकी लगाता रहूँ और उसकी मस्त गांड के छेद में भी अपनी अंगुली डालकर उसे और भी प्रेमातुर कर दूँ।
इन्हीं ख्यालों में खोया मैं मधुर की पीठ, कमर और बालों में हाथ फिराता रहा। पता नहीं कब हमारा स्खलन हुआ और कब नींद आ गई।
सुबह कोई 8 बजे मधुर ने मुझे जगाया। मधुर नहा कर तैयार हो चुकी थी। मुझे लगा कि वह कहीं जाने वाली है। पर आज तो सन्डे था? फिर मधुर आज इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गयी? “प्रेम! आज मुझे आश्रम जाना है। तुम भी चलोगे क्या?”
ओह … तो मधुर मैडम आज आश्रम जाने वाली हैं। मेरे लिए गौरी के साथ समय बिताने का बहुत अच्छा मौक़ा था। मैंने बहाना बनाया- ओह … सॉरी जान! मुझे आज बॉस के घर जाना है, मैं नहीं चल पाऊंगा। “तुम्हें तो बस कोई ना कोई बहाना ही चाहिए?” “अरे नहीं यार वो आज भोंसले से प्रमोशन के बारे में बात करनी है उसने ही बुलाया है।” “ठीक है.” कहकर मधुर रसोई की ओर चली गई और मैं बाथरूम में।
गौरी चाय बना कर ले आई थी। मधुर और मैं चाय पीने लगे। मैं सोच रहा था ये मधुर भी इन बाबाओं के चक्कर में पड़ी रहती है। चलो धार्मिक होना अपनी जगह अच्छी बात पर है आजकल इन बाबाओं के दिन अच्छे नहीं चल रहे। किसी दिन किसी बाबा राम या रहीम ने ठोक-ठाक कर इस पर सारी कृपा बरसा दी तो यह फिर मधु की जगह हनी (हनीप्रीत) बन जायेगी।
इतने में बाहर गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई। “अच्छा प्रेम मैं जाती हूँ वो मोहल्ले की सारी लेडीज भी आज आश्रम जा रही हैं। आज गुरूजी का जन्मोत्सव है। हम लोग दोपहर तक लौट आयेंगे।” “अरे कुछ खा-पीकर तो जाओ?” “नहीं … वहाँ आरती और भजन के बाद नाश्ता-भोजन आदि की सारी व्यवस्था की हुई है। तुम्हारे नाश्ते और लंच के लिए मैंने गौरी को बता दिया है।” इतने में फिर हॉर्न की आवाज आई। ओहो … क्या मुसीबत है … ‘आईईईई … ‘ बोलते हुए मधुर बाहर लपकी।
मधुर के जाते ही गौरी रसोई से बाहर आ गई। आज गौरी ने गोल गले की टी-शर्ट के नीचे लेगीज पहन रखी थी। काले रंग की लेगीज में कसे हुए नितम्ब देख कर तो मेरा लंड उछलने ही लगा था। किसी तरह उसे पाजामें में सेट किया। साली ये गौरी भी आजकल इतनी अदा से अपने नितम्बों को जानबूझकर लचकाते हुए चलती है कि इंसान क्या फरिश्ते का भी मन डोल जाए।
“आपते लिए नाश्ते में त्या बनाऊँ?” “मधुर ने बताया होगा?” “दीदी ने तो सैंडविच बनाने को बोला है पल आपतो तुछ औल पसंद हो तो वो बना देती हूँ?” रहस्यमई ढंग से मुस्कुराते हुए गौरी ने पूछा। मैंने मन में सोचा मेरी जान मेरा मन तो बहुत कुछ खाने पीने और पिलाने का करता है। बस एक बार हाँ कर दो फिर देखो क्या-क्या खाता और खिलाता हूँ। पर मैंने कहा “नहीं आज सैंडविच ही बना लो। तुम्हें भी तो पसंद हैं ना?” “हओ.” “तुम्हें सैंडविच बनाना तो आता है ना?” “हओ … दीदी ने सिखाया है” “ठीक है पर जरा कड़क बनाना। कड़क और टाईट चीजों में ज्यादा मज़ा आता है.” “वो ब्लेड लानी पलेगी.” गौरी मुस्कुराकर मेरी देखते हुए बोली। “तुम बाहर मिठाई लाल की दुकान से जाकर ब्रेड ले आओ फिर हम दोनों मिलकर सैंडविच बनाकर खाते हैं।”
गौरी ब्रेड लाने पड़ोस में बनी दुकान पर चली गयी। जाते समय जिस अंदाज़ से वह अपनी कमर को लचका रही थी मुझे लगता है कल उसके सौंदर्य की जो प्रशंसा की थी यह उसी का असर है।
उसके जाने के बाद मैं बाथरूम में घुस गया। मैं अक्सर सन्डे या छुट्टी के दिन सेव नहीं बनता पर आज मैंने नहाने से पहले शेव भी की और अच्छा परफ्यूम भी लगा लगाया।
जब मैं बाथरूम से बाहर आया तो देखा गौरी अभी ब्रेड लेकर नहीं आई है। कमाल है ब्रेड लाने में कोई आधा घंटा थोड़े ही लगता है। ये भी कहीं गप्पे लगाने में लग गयी होगी? इतने में गौरी हाथ में ब्रेड और कुछ सब्जियाँ हाथ पकड़े आ गई।
“गौरी.. बहुत देर लगा दी? कहाँ रह गयी थी? “वो … संजीवनी आंटी?” “कौन संजीवनी?” “वो … सामने वाली बंगालन आंटी!” “ओह … क्या हुआ उसे?” “हुआ तुछ नहीं.” “तो?” “उसने मुझे लोक लिया था.” “क्यों?” मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी। “वो … वो मुझे घल पल ताम तलने ता पूछ लही थी.” “फिर?” “मैंने मना तल दिया.” “क्यों?” “अले आपतो पता नहीं वो एत नंबल ती लुच्ची है.” “लुच्ची? क्या मतलब … कैसे? ऐसा क्या हुआ?” मैंने हकलाते हुए से पूछा।
“आपतो पता है वो … वो … ” गौरी बोलते बोलते रूक गयी। उसका पूरा चेहरा लाल हो गया और उसने अपनी मोटी-मोटी आँखें ऐसे फैलाई जैसे वो राफेल जैसा कोई बड़ा घोटाला उजागर करने जा रही है। अब आप मेरी उत्सुकता का अंदाज़ा लगा सकते हैं। “वो … वो क्या … ?? साफ बताओ ना?” मेरे दिल की धड़कन और उत्सुकता दोनों ही प्राइस इंडेक्स की तरह बढ़ती जा रही थी। “वो … वो … तुत्ते से तलवाती है.” “तुत्ते … ?? क्या मतलब?? तुत्ते क्या होता है?” मुझे लगा शायद वो डिल्डो (लिंग के आकार का एक सेक्स टॉय) की बात कर रही होगी। फिर भी मैं अनजान बनते हुए हैरानी से उसकी ओर देखता रहा। “ओहो … आप भी … ना … … वो तुत्ता नहीं होता???” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा जैसे मैं कोई विलुप्त होने के कगार पर पहुंची प्रजाति का कोई जीव हूँ और फिर उसने दोनों हाथों से इशारा करते हुए कहा- वो … भों … भों …
और फिर हम दोनों की हंसी एक साथ छूट पड़ी। हाय मेरी तोते जान!!! मेरी जान तो उसकी इस अदा पर निसार ही हो गयी। उसकी बातें सुनकर मेरा लंड तो खूंटे की तरह खड़ा हो गया था। मेरा मन तो उसे जोर से अपनी बांहों भरकर चूम लेने को करने लगा। पर इससे पहले कि मैं ऐसा कर पाता गौरी मुँह में दुपट्टा दबाकर रसोई में भाग गई। उसे शायद अब अहसास हुआ कि वो अनजाने में क्या बोल गई है।
मैं उसके पीछे रसोई में चला आया। शर्म के मारे उसने अपना सर झुका रखा था। उसके चहरे का रंग लाल सा हो गया था और साँसें तेज चलने लगी थी। “अरे क्या हुआ?” “किच्च …” उसने ना करने के अंदाज़ में अपनी मुंडी हिलाते हुए अपने मुंह से आवाज निकाली। “तो फिर रसोई में क्यों भाग आई?” “वो … वो … आप बाहल बैठो, मैं नाश्ता बना तल लाती हूँ”
“गौरी यह तो गलत बात है?” “त्या?” “एक तो तुम बात-बात में शर्माती बहुत हो?” गौरी ने अपनी निगाहें अब भी झुका रखी थी। “आओ हॉल में बैठ कर सैंडविच के लिए तैयारी मिलकर करते हैं तुम सारा सामान लेकर हॉल में आ जाओ.” “हओ”
थोड़ी देर बाद गौरी ट्रे में ब्रेड, प्याज, हरि मिर्च, धनिया, उबले आलू आदि लेकर हॉल में आ गई। उसने सामान टेबल पर रख दिया और स्टूल पर बैठ गई। मुझे लगा गौरी कुछ गंभीर सी लग रही है। मैं चाहता था वो सामान्य हो जाए। इसके लिए उसके साथ कुछ सामान्य बातें करना जरुरी था।
मैंने बातों का सिलसिला शुरू किया- गौरी एक काम कर? “हओ?” “मैं प्याज, टमाटर, हरी मिर्च और धनिया काट देता हूँ और तुम जल्दी से आलू छील लो.” “हओ.” हम दोनों अपने काम में लग गए।
साला ये प्याज काटना भी सब के बस के बात नहीं। जैसे सभी औरतें छिपकली से डरती हैं उसी तरह ज्यादातर आदमी प्याज काटने से डरते हैं। मैंने पहले 3-4 हरी मिर्च काटी और फिर प्याज छीलकर काटने लगा। ऐसा करते समय गलती से मेरा हाथ आँख के पास लग गया। लग गए लौड़े! एक तो प्याज की तीखी गंध और ऊपर से हरी मिर्च? थोड़ी जलन सी होने लगी और आँखों में आंसू भी निकल आये। मेरी नाक से सुं-सुं की आवाज निकलने लगी।
“ओहो … क्या मुसीबत है?” मैंने रुमाल से अपनी नाक साफ़ करते हुए कहा. अब गौरी का ध्यान मेरी ओर गया। उसे हँसते हुए मेरी ओर देखा।
“मैंने आपतो बोला था मैं तर लूंगी आप मानते ही नहीं?” “ओहो … मुझे क्या पता था प्याज काटना इतना मुश्किल काम है? मैंने 2-3 बार फिर नाक से सुं-सुं किया। आँखों और नाक से पानी अब भी निकल रहा था। “आप जल्दी से हाथ धोकल ठन्डे पानी ते छींटे मालो” “ओह … हाँ … मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और फिर अंदाजे से वाश बेसिन की ओर जाने लगा।
इतने में मैं पास रखी स्टूल से टकराते-टकराते बचा। गौरी सब देख रही थी। वह उठी और मेरा बाजू पकड़ कर वाश बेसिन की ओर ले जाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी। उसकी कोमल कलाइयों का स्पर्श मुझे रोमांचित किये जा रहा था। आज पहली बार उसमें मुझे छुआ था। “आप जल्दी से साबुन से हाथ धोओ मैं, ठन्डे पानी ती बोतल लाती हूँ.” कहकर गौरी रसोई की ओर भागी। मैं गूंगे लंड की तरह वहीं खड़ा रहा।
इतने में गौरी ठन्डे पानी की बोतल लेकर आ गई। “अले आपने हाथ धोये नहीं?” “मेरी तो आँखें ही नहीं खुल रही हाथ कैसे धोऊँ?” “ओहो … आप लुको” कहकर उसने एक हाथ से मेरी मुंडी थोड़ी नीचे की और फिर बोतल से ठंडा पानी हाथ में लेकर मेरी आँखों और चहरे पर डालने लगी।
उसके कोमल हाथों का स्पर्श और उसके बदन से आती जवान जिस्म की खुशबू मेरे-अंग अंग में एक शीतलता का अहसास दिलाने लगी। हालांकि अब जलन तो नहीं हो रही थी पर मैंने नाटक जारी रखते हुए कहा- ओहो … थोड़ा पानी और डालो आराम मिल रहा है. “हओ.”
और फिर गौरी ने मेरी आँखों और चहरे पर पानी के थोड़े छींटे और डाले। मेरा मन तो कर रहा था काश! गौरी मेरे चहरे पर इसी तरह अपनी नाजुक हथेली और अँगुलियों को फिराती रहे और मैं अभिभूत हुआ इसी तरह उसकी नाजुकी को महसूस करता रहूँ। “लाओ आपते हाथ भी धो देती हूँ.”
मैंने आँखें बंद किये अपने हाथ उसके हाथों में दे दिए। गौरी ने साबुन पकड़ाई और वाश बेसिन की नल खोल दी। मैं तो चाह रहा था गौरी खुद ही मेरे हाथों को भी धो दे पर फिर मैंने साबुन से अपने हाथ धो लिए। फिर गौरी ने हैंगर पर टंगा तौलिया उतार कर मेरे चहरे को पौंछ दिया।
शादी के शुरू-शुरू के दिनों में मधुर कई बार इस प्रकार मेरे चहरे पर आये पसीने को रुमाल या अपने दुपट्टे से पौंछा करती थी। और फिर मैं उसे अपनी बांहों में भरकर जोर से चूम लिया करता था। इन्ही ख्यालों में मेरा लंड फिर से खड़ा होकर उछलने लगा था। शायद उसे भी गौरी के नाजुक हाथों का स्पर्श महसूस करने का मन हो रहा था। “अब आँखें खोलो?” मैंने एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह एक आँख खोली और फिर बंद कर ली।
गौरी मेरी इस हरकत को देख कर हंसने लगी। “गौरी अगर तुम आज नहीं होती तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाती! थैंक यू।” “मैंने आपतो बोला था मैं तल लुंगी पर आप मानते ही नहीं? गौरी ने उलाहना सा दिया।
मैंने मन में सोचा ‘मेरी जान! मैं ऐसा नहीं करता तो तुम्हारे इन नाजुक हाथों का स्पर्श कैसे अनुभव कर पाता?’
“आप भी एत नंबल ते अनाड़ी हो? ऐसे मिल्ची (मिर्ची) वाले हाथ तोई चहरे पर थोड़े लगता है? अनाड़ी ता खेलना औल खेल ता सत्यानाश?” कह कर गौरी हंसने लगी।
साली ने किस प्रकार कहावत की ही बहनचोदी कर दी थी। मेरा मन तो कर रहा था उसे असली कहावत ही सुना दूं ‘अनाड़ी का चोदना और चूत का सत्यानाश’ पर अभी सही समय नहीं था। इसकी चूत का कल्याण या सत्यानाश होगा तो मेरे इस लंड से ही होगा।
“कोई बात नहीं, मैं अनाड़ी सही पर तुमने समय पर अपने हाथों के जादू से इस मुसीबत को दूर कर दिया।” अब गौरी के पास मंद-मंद मुस्कुराने के सिवा और क्या विकल्प बचा था।
अब हम वापस आकर बैठ गए थे। गौरी ने बचा हुआ प्याज काटा और फिर धनिया लहसुन आदि काट कर प्लेट में रख लिया और उठकर रसोई की ओर जाने का उपक्रम करने लगी। मैं गौरी का साथ नहीं छोड़ना चाहता था तो मैं भी उसके पीछे-पीछे रसोई में चला आया। “मैं नाश्ता तैयार तलती हूँ आप नहा लो और चहले पल सलसों का तेल या त्लीम लगा लो” “तुम ही लगा दो ना?” “हट!”
“गौरी आज नाश्ता करने के बाद नहाऊंगा। मैं आज तुम्हारी सैंडविच बनाने की जादूगरी देखना चाहता हूँ कि तुम किस प्रकार सैंडविच बनाती हो?” “इसमें त्या ख़ास है? आप देखते जाओ बस.” और फिर गौरी ने उबले आलू और मसाले आदि को तेल में भूना और फिर ब्रेड के बीच में लगाकर टोस्टर ऑन कर दिया। “साथ में चाय बनाऊं या तोफ़ी (कॉफ़ी)?” “आज तो चाय ही पियेंगे। क्या पता कॉफ़ी पीकर फिर से जलन ना होने लग जाए?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा। “हट!” आजकल गौरी ने इन बातों से शर्माना थोड़ा कम तो कर दिया है।
10 मिनट में उसने 5-6 सैंडविच तैयार कर लिए और साथ में चाय भी बना ली। “गौरी एक काम कर?” “हओ” “यह सब बाहर हॉल में ले चलो वहीं सोफे पर बैठकर इत्मीनान से दोनों नाश्ते का मजा लेंगे.”
हम दोनों नाश्ते की ट्रे, प्लेट और चाय का थर्मस लेकर बाहर आ गए।
गौरी स्टूल पर बैठने लगी तो मैंने कहा- यार अब यह तकलुफ्फ़ छोड़ो! गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा। मैंने उसे कहा- तुम भी स्टूल के बजाय सोफे पर ही बैठ जाओ ना … आराम से खायेंगे. गौरी असमंजस की स्थिति में थी। “ओहो … बैठ जाओ ना सर्व करने और नाश्ता करने में आसानी रहेगी.”
गौरी ने कुछ बोला तो नहीं पर कुछ सोचते हुए मेरे पास वाले सिंगल सोफे पर बैठ गई। मैं तो चाहता था वो मेरे वाले सोफे पर ही साथ में बैठ जाए पर चलो आज साथ वाले सोफे पर बैठी है कल मेरे बगल में बैठेगी और फिर मेरी गोद में। लंड महाराज तो बैठने के बजाय और ज्यादा अकड़ गए।
गौरी ने मेरे लिए एक प्लेट में प्लेट में सैंडविच रख दिए और ऊपर सॉस डाल कर मुझे पकड़ा दिया। “तुम भी तो लो?” “मैं बाद में ले लूंगी.” “तुम भी कमाल करती हो? साथ का मतलब साथ खाना होता है। लो पकड़ो प्लेट!” मैंने अपने वाली प्लेट उसे थमा दी। और फिर दूसरी प्लेट में अपने लिए एक सैंडविच लेकर ऊपर चटनी दाल ली।
“गौरी आज चाय गिलास में पियेंगे. मुझे कप में चाय पीने में बिल्कुल मजा नहीं आता.” मेरी इस बात पर गौरी हंसने लगी। “मुझे भी गिलास में ही पीना पसंद है।” “अरे वाह! देखो हमारी पसंद कितनी मिलती है?” और फिर हम दोनों हंसने लगे।
सैंडविच स्वादिष्ट बने थे। जैसे ही मैंने दांतों से एक कौर तोड़ा तो मेरे मुंह से निकल गया- लाजवाब मस्त! गौरी ने इस बार मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा। उसे शायद इसी बात के उम्मीद थी कि मैं जरूर उसकी तारीफ़ करूँगा। “विश्वास नहीं हो तो खाकर देखो?”
अब गौरी ने भी खाना शुरू कर दिया। उसने कुछ कहा तो नहीं पर उसके चहरे से झलकती मुस्कान ने बिना कहे बहुत कुछ कह दिया था। “गौरी गिलास में चाय भी डाल लो!” चिर परिचित अंदाज में गौरी ने “हओ” कहा और थर्मस से दो गिलास में चाय डाल ली।
मैंने पहले चाय की एक चुस्की ली। चाय का स्वाद अजीब सा था शायद गौरी चाय में चीनी डालना भूल गई थी। “वाह चाय तो लाजवाब है पर …” मैंने बात अधूरी छोड़ दी। गौरी ने हैरानी से मेरी ओर देखा- त्या हुआ? “लगता है तुम चीनी डालना भूल गई?” “ओह … सॉली (सॉरी) में अभी चीनी लाती हूँ.”
“गौरी एक काम करो?” “त्या?” “तुम इस गिलास को अपने होंठों से छू लो तुम्हारे होंठों की मिठास ही इसे मीठा कर देगी.” कहकर मैं जोर जोर से हंसने लगा। गौरी को पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया पर बाद में वो ‘हट’ कहते हुए शर्मा कर रसोई में चीनी लाने चली गई।
उसने चीनी के दो चम्मच मेरे गिलास में डाल कर उसे हिलाया और फिर उसी चम्मच से अपने गिलास में भी चीनी डाल कर उसे हिलाने लगी। “अरे मेरी जूठी चाय वाली चम्मच से ही तुमने अपने गिलास में भी चीनी मिला ली?” “तो त्या हुआ? अपनो में तोई जूठा थोड़े ही होता है.”
इस फिकरे का अर्थ मेरी समझ में नहीं आ रहा था। पता नहीं गौरी मेरे बारे में क्या सोचती होगी? क्या पता उसे मेरी मेरी इन भावनाओं का पता है भी या नहीं? पर मुझे नहीं लगता वो इतनी नासमझ होगी कि मेरे इरादों का उसे थोड़ा इल्म (ज्ञान) ना हो। खैर इतना तो पक्का है अब वो मेरी छोटी-मोटी चुहल से ना तो इतना शर्माती है और ना ही बुरा मानती है।
यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे. [email protected]
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