तीन पत्ती गुलाब-4

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इस भयंकर प्रेमयुद्ध के बाद सुबह उठने में देर तो होनी ही थी। मधुर ने चाय बनाकर मुझे जगाया और खुद बाथरूम में घुस गयी। आज उसे अपनी मुनिया की सफाई करनी थी सो उसे पूरा एक घंटा लगने वाला था। मैं बाहर हाल में बैठकर चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अखबार पढ़ रहा था। आज गौरी नज़र नहीं आ रही थी अलबत्ता एक थोड़े साँवले से रंग की लड़की रसोई से सफाई की बाल्टी और झाड़ू पौंछा लेकर आती दिखाई दी। ओह … यह तो गुलाबो की दूसरी लड़की थी। मुझे फिर कुछ आशंका सी हुई? गौरी क्यों नहीं आई? क्या बात हो सकती है? पता नहीं कल के वाक़ये (घटनाक्रम) के बाद उसने फ़ैसला कर लिया हो कि अब उसे यहाँ काम नहीं करना? पर मधुर तो उसे यहाँ स्थायी तौर पर ही रखने का कह रही थी … फिर क्या बात हो सकती है?

हे लिंग देव कहीं तकदीर में फिर से लौड़े तो नहीं लग गये?

अब मेरी नज़र उस लड़की पर पड़ी। वो नीचे बैठकर पौंछा लगा रही थी। उसने हल्के आसमानी रंग की कुर्ती और जांघिया पहन रखा था। पौंछा लगाते समय वो घुटनों के बल होकर आगे झुक रही थी। झुकने के कारण उसके छोटे-छोटे चीकुओं की झलक कभी-कभी दिख रही थी। गेहुंए रंग के दो बड़े से चीकू हों जैसे। एरोला ऊपर से फूला हुआ शायद निप्पल अभी पूरी तरह नहीं बने थे। ऐसे लग रहे थे जैसे चीकू पर जामुन का मोटा सा दाना रख दिया हो।

हे भगवान … क्या रसगुल्ले हैं। उसकी छाती का उठान भरपूर लग रहा था। बायाँ उरोज थोड़ा सा बड़ा लग रहा था। अभी उसे ब्रा पहनने की सुध कहाँ होगी। मुझे लगा मेरा लंड अंगड़ाई सी लेने लगा है। जब से सुहाना को देखा है उसके टेनिस की बॉल जैसे उरोजों को नग्न देखने की मेरी कितनी तीव्र इच्छा होती होगी आप अंदाज़ा लगा सकते हैं।

मैं भला यह मौका हाथ से कैसे निकल जाने देता। मैं टकटकी लगाए उसके उन नन्हे परिंदों को ही देख रहा था। काश वक़्त थम जाए और यह इसी तरह थोड़ी झुकी हुई रहे और मैं इस दृश्य को निहारता रहूँ।

मुझे अचानक ख्याल आया अगर मैं इसे बातों में लगा लूँ तो वो जिस प्रकार पौंछा लगा रही है बहुत देर तक उसके इन नन्हे परिंदों की हिलजुल देखकर अपनी आँखों को तृप्त कर सकता हूँ। “अंकल आप अपने पैल थोड़े ऊपल कल लो.” अचानक एक मीठी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। लगता है यह भी गौरी की तरह ‘र’ को ‘ल’ बोलती है।

“ओह … हाँ …” हालांकि मुझे उसका अंकल संबोधन अच्छा तो नहीं लगा पर मैंने चुपचाप अपने पैर ऊपर सोफे पर रख लिए. अलबत्ता मेरी नज़रें उसकी झीनी कुर्ती के अंदर ही लगी रही। “क्या नाम है तुम्हारा?” “मेला नाम?” उसने हैरानी से इधर उधर देखते हुए पूछा जैसे उसे यह उम्मीद नहीं थी कि मैं उस से बात करूंगा। हे भगवान इसकी काली आँखें तो सुहाना (मेरी बंगाली पड़ोसन की युवा बेटी) से भी ज्यादा बड़ी और खूबसूरत हैं।

“हाँ तुम्हारा ही तो पूछ रहा हूँ?” “मेला नाम सानिया मिलजा है” (सानिया मिर्ज़ा) मुझे नाम कुछ अज़ीब सा लगा पर मैंने मुस्कुराते हुए कहा- बहुत खूबसूरत नाम है. वह हैरान हुई मेरी ओर देखने लगी।

उसे लगा होगा उसका अज़ीब सा नाम सुनकर मैं शायद कोई अन्यथा टिप्पणी करूंगा। मुझे थोड़ा-थोड़ा याद पड़ता है एक दो बार अनार या अंगूर ने इसका जिक्र तो किया था पर उन्होंने तो इसका नाम मीठी बाई बताया था. मधुर ने एक बार हँसते हुए बताया था कि जिस दिन यह पैदा हुई थी, सानिया मिर्ज़ा ने टेनिस में शायद कोई बड़ा खिताब जीता था तो गुलाबो ने इस नये कॅलेंडर का नाम सानिया मिर्ज़ा ही रख दिया था। खैर नाम जो भी हो इसके चीकू तो कमाल के हैं।

मैं उसे बातों में लगाए रखना चाहता था- वो आज गौरी क्यों नहीं आई? “कौन गौली?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा। “अरे वो तुम्हारी बड़ी बहन है ना?” “ओह … अच्छा … तोते दीदी?” “हाँ हाँ!”

गौरी ‘क’ और ‘र’ का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाती इसीलिए घर वालों ने शायद उसे ‘तोते’ नाम से बुलाना शुरू कर दिया होगा। कई बार बचपन में अंगूठा चूसने वाले बच्चों के साथ या अनचाहे बच्चे जिनकी परवरिश ठीक से ना हुई हो उनके साथ अक्सर ऐसा होता है। यह एक प्रकार का मेंटल डिस-ऑर्डर (दिमागी असंतुलन) होता है या फिर कई बार जीभ में लचीलापन कम होने की वजह से भी ऐसा होता है। ओह … मैं भी क्या बेहूदा बातें ले बैठा।

“उस पल आज छिपकली गिल गई.” “छिपकली? कमाल है छिपकली कैसे गिर गई?” “मुझे क्या मालूम?” “ओह!” “उस पल तो हल महीने गिलती है?”

ओह … मैं भी निरा उल्लू ही हूँ। यह तो माहवारी का जिक्र कर रही थी। मुझे थोड़ी हंसी सी आ गई। एक बार तो मेरे मन में आया उसे भी पूछ लूँ कि कभी उस पर छिपकली गिरी या नहीं? पर ऐसा करना ठीक नहीं था।

सानिया मेरे से कोई एक कदम की दूरी पर उकड़ू सी बैठी थी। अब मेरी नज़र उसकी जांघों के बीच चली गयी। पट्टेदार जांघिया उसकी पिक्की के बीच की लकीर में धंसा हुआ सा था। याल्लाह … !!! उसके पपोटे तो किसी जवान लड़की की तरह लग रहे थे। उसकी जांघों का ऊपरी हिस्सा अन्य हिस्सों के बजाए कुछ गोरा नज़र आ रहा था। उम्र के हिसाब से उसकी जांघें भी थोड़ी भारी लग रही थी। नितम्ब भी गोल गोल खरबूजे जैसे ही तो थे। बस कुछ समय बाद तो यह मीठी बाई छप्पन छुरी बन जाएगी।

मैं मन्त्र मुग्ध हुआ इस नज़ारे को अपनी आंकों में कैद कर लेना चाहता था। काश वक़्त थम जाए और मैं इस मीठी कचोरी को ऐसे ही देखता रहूँ। “तुम किस क्लास में पढ़ती हो?” “मैं?” उसे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि मैं इतना बड़ा आदमी (उसकी नज़र में) उस से इस प्रकार घुलमिल कर बात कर रहा हूँ।

“मम्मी स्कूल भेजती ही नहीं?” “ओह … क्या तुम पढ़ना चाहती हो?” मैंने पूछा। “हाँ मैं तो बहुत पढ़ना चाहती हूँ औल बड़ी होकल पुलिस बनाना चाहती हूँ?” “अरे वाह! ठीक है मैं तुम्हारी मधुर दीदी से बोलूँगा तुम्हारी मम्मी को समझाएगी और तुम्हें पढ़ने स्कूल जरूर भेजेगी।

“सच्ची में?” उसे शायद मेरी बातों का यकीन ही नहीं हो रहा था। “हाँ पक्का! अच्छा तुम्हारा जन्मदिन कब आता है?” “पता नहीं? … क्यों?” उसने हैरान होते पूछा। “क्या घरवाले तुम्हारा जन्मदिन नहीं मनाते? “किच्च … कभी नहीं मनाया.” उसने बड़े उदास स्वर में कहा।

“ओह … चलो कोई बात नहीं … तुम्हें मधुर के जन्मदिन पर बढ़िया गिफ़्ट दिलवाएँगे.” “अच्छा?” उसकी आँखों की चमक तो ऐसे थी जैसे किसी अंधे को आँखें मिलने वाली हो। “तुमने आज नाश्ते में क्या खाया?” “कुछ नहीं.” उसने अपनी मुंडी नीचे कर ली।

हे भगवान कैसे माँ-बाप हैं बेचारी को बिना खिलाये पिलाए ही काम पर भेज दिया। “चलो तुम भी चाय और बिस्किट ले लो.” मैंने कहा. “ना … दीदी गुस्सा होंगी, उनसे पूछ कल ही लूँगी.” उसने बड़ी मासूमियत से कहा।

साली यह मधुर भी एकता कपूर की तरह पूरी हिटलर-तानाशाह बनी रहती है। मज़ाल है उसकी मर्ज़ी के बिना कोई चूं भी कर दे।

खैर मैं तो उसे बातों में उलझाए जून महीने के अन्तिम दिनों की गर्मी में पसीने में भीगे उसके कमसिन और मासूम सौंदर्य का रसास्वादन कर रहा था कि अचानक बेडरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई। मधुर नहाकर आ गई थी; मैंने फिर से अखबार में अपनी आँखें गड़ा दी।

आप सोच रहे होंगे कि किसी कमसिन लड़की के बारे में ऐसे ख्याल रखना तो मेरे जैसे पढ़े लिखे और तथाकथित सामाजिक प्राणी के लिए और वैसे भी अगर नैतिक दृष्टि से भी देखा जाए तो कतई शोभा नहीं देता। ठीक है! मैं आपसे पूछता हूँ मैंने किया क्या है? मैंने तो एक कुशल भंवरे की तरह अपने बावरे नयनों से केवल इस नाज़ुक कली के अछूते सौंदर्य का दीदार या उसके कमसिन बदन की थोड़ी सी खुशबू अपने नथुनों में भर ली है और वो भी बिना उसकी कोमल भावनाओं को कोई ठेश पहुँचाए। आप बेवजह हो हल्ला मचा रहे हैं। दोस्तो, आप कुछ भी कहें या सोचें मैं अपने अंदर के रावण को तो मार सकता हूँ पर अपने अंदर के इमरान हाशमी को कभी मरने नहीं दूंगा।

गौरी 4 दिनों के बाद के बाद आज सुबह आई है। कहने को तो बस 4 दिन थे पर मेरे लिए यह इंतज़ार जैसे 4 वर्षों के समान था। गौरी अपने साथ कुछ कपड़े लत्ते और छोटा-मोटा सामान भी लेकर आई है। लगता अब तो यह परमानेंट यही रहेगी। मधुर ने उसके लिए स्टडी रूम में एक फोल्डिंग बेड लगा दिया है। मधुर ने उसे शायद कपड़े भी पहनने के लिए दे दिए हैं। पटियाला सलवार और कुर्ती पहने गौरी किसी पंजाबी मुटियार से कम नहीं लग रही है। इसे देख कर तो बस मुँह से यही निकलेगा … ओए होये … क्या पटियाला पैग है।

ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद आज से मधुर का स्कूल जाना शुरू हो गया है। उसे सुबह 8 बजे से पहले ही स्कूल जाना होता है। गौरी ने उसके लिए नाश्ता बना दिया था। मैं हॉल में सोफे पर बैठे हुए अखबार पढ़ने का नाटक कर रहा था अलबत्ता मेरे कान रसोई में ही लगे थे।

गौरी रसोई घर के दरवाजे के पास खड़ी थी। मधुर जरा जल्दी में थी और उसे समझा रही थी- साहब ने चाय तो पी ली है. उनके लिए नाश्ते में पोहे बना देना और लंच का तुम्हें बता ही दिया है। तू भी खा पी लेना और हाँ … मिर्चें कम डालना. “हओ.”

“और सुन आज कपड़े धोकर प्रेस कर लेना दिन में। मैं दो बजे तक आ जाऊँगी आज से तुम्हारी नियमित रूप से पढ़ाई शुरू करनी है बहुत छुट्टी मार ली तुमने!” “हओ.” गौरी ने चिर परिचित अंदाज़ में अपनी मुंडी हाँ में हिलाई।

मधुर ने बाहर जाते समय मेरे ऊपर एक उड़ती सी नज़र सी डाली तो मैंने अखबार की ओट से उसे एक हवाई किस दे दिया। मधुर मुस्कुराते हुए चली गयी। कसकर बाँधी हुई साड़ी में उसके नितम्ब आज बहुत कातिल लग रहे थे।

मैं अभी अपने आगे के प्लान के बारे में सोच ही रहा था कि गौरी रसोई से बाहर आई और थोड़ी दूर से ही उसने पूछा- आपते लिए नाश्ता बना दूँ? “ना … अभी नहीं, मैं नहा लेता हूँ फिर नाश्ता करूंगा … अभी तो बस एक कप कड़क कॉफी पिला दो.” गौरी अपने चिर परिचित अंदाज़ में ‘हओ’ बोलते हुए वापस रसोई में चली गयी।

मैं सोफे पर बैठा उसी के बारे में सोचने लगा। दिल के किसी कोने से फिर आवाज़ आई गुरु देर मत करो गौरी फ़तेह अभियान शुरू कर दो। लंड फिर से ठुमकने लगा था।

थोड़ी देर में गौरी ट्रे में कॉफी का कप लेकर आ गयी। “सल तोफी” (सर कॉफी) गौरी ने कॉफी का कप टेबल पर रखते हुए कहा। उसने अपनी मुंडी नीचे ही कर रखी थी। मधुर ने शायद उसे मेरे लिए ‘सर’ और अपने लिए ‘मैडम’ का संबोधन गौरी को बताया होगा तभी उसने ‘सर’ कहा था। “थैंक यू गौरी” मैंने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा।

वह खाली ट्रे उठाकर रसोई में वापस जाने के लिए मुड़ने ही वाली थी कि मैंने पूछा- गौरी, मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है. “अब मैंने त्या तिया?” उसने हैरानी से डरते हुए मेरी ओर देखा. “अरे बाबा तुमने कुछ नहीं किया … मुझे तुमसे माफी मांगनी है.” “तीस बात ते लिए?” “ओह … वो उस दिन मैंने तुम्हें गलती से पकड़ लिया था ना?” “तोई बात नहीं.” “ना … ऐसे नहीं” “तो?” उसने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा।

“तुम्हें बाकायदा मुझे माफ करना होगा.” “हओ … माफ तल दिया” “ना ऐसे नहीं?” “तो फिल तैसे?” “तुम्हें बोलना होगा कि मैंने आपको माफ कर दिया” गौरी कुछ सोचने लगी और फिर उसने रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा- मैंने आपतो माफ तल दिया.” गौरी के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गयी और मेरी भी हंसी निकल गयी। “थैंक यू गौरी.”

“वो दरअसल मुझे लगा मधुर होगी? इसलिए सब गड़बड़ हो गयी.” “तोई इतना जोल से दबाता है त्या? पता है आपने तितना जोर से दबा दिया था मेले तो 3-4 दिन दल्द होता लहा?” उसने उलाहना देते हुए अपने हाथों से अपने दोनों कबूतरों को सहलाते हुए कहा। “सॉरी … यार … गलती हो गयी। अब देखो मैं इसलिए तो तुमसे माफी माँग रहा हूँ ना?’ “ठीत है.” “मैं तो डर रहा था कहीं तुम यह बात मधुर को ना बता दो?” “हट!!! ऐसी बातें तीसी तो बताई थोड़े ही जाती हैं, मुझे शलम नहीं आती त्या?” उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं कोई चिड़िमार हूँ। हाए मेरी तोते जान परी मैं मर जावां …

“वैसे गौरी एक बात तो है?” “त्या?” “तुम ब्यूटी विद ब्रेन हो.” “मतलब?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा। उसे शायद इसका अर्थ समझ नहीं आया होगा। “इसका मतलब है तुम खूबसूरत ही नहीं साथ में बहुत अक्लमंद (समझदार) भी हो. इसे सुंदरता और समझदारी का संगम कहते हैं” मैं तो आज पूरा 100 ग्राम मक्खन लगाने के मूड में था।

“हूँ.” गौरी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी, उसे अपनी तारीफ अच्छी लगी थी। “अक्सर खूबसूरत लड़कियाँ दिमाग से पैदल ही होती हैं पर तुम्हारे मामले में उल्टा है। लगता है भगवान ने झोली भरकर तुम्हें खूबसूरती और समझदारी दी है। जैसे खूबसूरती के खजाने के सारे ताले तोड़ कर तुम्हें हुश्न से नवाजा है। क्यों सच कहा ना मैंने?” “हा … हा …” गौरी अब जोर जोर से हंसने लगी थी।

वैसे मेरे प्रेमजाल की भूमिका ठीक से शुरू हो गयी थी और अब आगे की रूपरेखा तो शीशे की तरह मेरे दिमाग में बिल्कुल साफ थी। चिड़िया के उड़ जाने का अब कोई खतरा और डर नहीं था। अब तो इसे मेरे प्रेमजाल में फंसाना ही होगा। “अरे हाँ गौरी … तुमने मूव या आयोडेक्स वगेरह कुछ लगाया था या नहीं?” “किच्च?” उसने अपनी जीभ से किच्च की आवाज़ निकालकर मना किया। हे भगवान ये जब मना करने के अंदाज़ में ‘किच्च’ की आवाज़ निकालती है तो इसके गालों में पड़ने वाले डिंपल तो दिल में धमाल नहीं दंगल ही मचा देते हैं।

“कहो तो मैं लगा देता हूँ?” “हट …” अब तो उसकी मुस्कान जानलेवा ही लगने लगी थी। मैंने अब कॉफी के कप पर नज़र डालते हुए कहा- गौरी! तुमने अपने लिए भी कॉफी नहीं बनाई या नहीं? “किच्च” “क्यों?” “मैं तो तोफी पीती ही नहीं” “अरे??? वो क्यों?” “वो … वो म … मौसी मना तलती है.” “कमाल है मौसी मना क्यों करती है भला?” “वो तहती है यह बहुत गलम होती है.” “हाँ ठीक ही तो है कॉफी का मज़ा तो गर्म-गर्म ही पीने में आता है?”

“अले आप समझे नहीं?” “क्या?” “वो … वो …” गौरी कुछ बोलते हुए शर्मा सी रही थी। “वो … वो क्या? प्लीज साफ बोलो ना?” “वो … मुझे शलम आती है?” “कमाल है कॉफी पीने में शर्म की क्या बात है?” “ओहो … पीने में नहीं?” “तो फिर?” “वो मौसी तहती हैं तुवारी लड़तियों तो तोफी नहीं पीनी चाहिए.” उसने शर्माकर अपनी मुंडी नीचे कर ली। “अरे … ??? वो क्यों? इसमें क्या बुराई है?” “नहीं … मुझे बताते शलम आ रही है.” गौरी की शक्ल अब देखने लायक थी। “प्लीज बोलो ना?” “वो … वो..” उसने अपना गला साफ करते हुए बड़ी मुश्किल से मरियल सी आवाज़ में कहा- तोफी पीने से सु-सु में जलन होने लगती है. मारे शर्म के गौरी तो दोहरी ही हो गयी।

ईसस्स् स्स्स्स… हाए मैं मर जावां।

उसका पूरा चेहरा सुर्ख (लाल) सा हो गया था और अधर जैसे कंपकपाने लगे थे। उसके माथे और कनपटी पर जैसे पसीना सा झलकने लगा था। अब मुझे समझ आया वो मेरे सामने सु-सु का नाम लेने में शर्मा रही थी। मैं मन में सोच रहा था साली अब भी इसे सु-सु ही बोलती है। अब तो यह पूरी भोस (बुर) बन चुकी होगी। इसे तो पूरे लंड की मलाई भी घोंट जाने में जलन नहीं हो सकती यह तो कॉफी है।

“अरे यह सब बकचोदी (बकवास) है?” मेरे मुंह से अचानक निकल गया। गौरी ने मेरी ओर हैरानी से देखा। उसे बकचोदी शब्द शायद अटपटा लगा होगा। पर मैं चाहता था वह इन लफ्जों को सुनने की आदि हो जाए और उसे झिझक या शर्म महसूस ना हो। “ऐसा कुछ नहीं होता … निरी बकवास और चुतियापे वाली बात है यह!” मैंने उसे समझाते हुए कहा- देखो! मैं और मधुर तो अक्सर साथ-साथ कॉफी पीते हैं उसे तो कभी सु-सु में जलन नहीं हुई. “पल मैंने तो पहले तभी नहीं पी.” “कोई बात नहीं आज तुम भी पहली बार पीकर तो देखो … कई चीजें जिंदगी में पहली बार करने में बड़ा मज़ा आता है.” मैंने हँसते हुए कहा।

उसने कुछ कहा तो नहीं लेकिन मैं उसके मन में चल रही उथल-पुथल का अनुमान अच्छी तरह लगा सकता था। “अरे भई मैंने कहा ना डरो मत … कुछ नहीं होगा. और अगर सु-सु में जलन हुई भी तो उसमें कोल्ड क्रीम लगा लेना … बस.” मैंने उसे यकीन दिलवाने की कोशिश की।

मैंने उसकी उलझन खत्म करने के लिहाज़ से कहा- अरे … यह कॉफी तो बातों-बातों में ठंडी हो गयी, अब तुम फटाफट दो कप कड़क कॉफी और बना लाओ फिर साथ साथ पीते हैं. उसे कॉफी का कप पकड़ाते हुए मैंने कहा।

अब उस बेचारी के पास कॉफी बनाकर लाने के अलावा और कोई रास्ता कहाँ बचा था। वह कॉफी का कप उठाकर धीरे धीरे रसोई की ओर जाने लगी।

हे भगवान इसके नितम्ब तो कमाल के लग रहे हैं। जब यह चलती है तो जिस अंदाज़ में ये गोल गोल घूमते हैं दिल पर जैसे छुर्रियाँ ही चलने लगती हैं। दिल तो कहता है गुरु इसने तो मुझे हलाल ही कर दिया। पता नहीं कब इनको करीब से नग्न देखने और मसलने का मौका मिलेगा। मेरा तो मन करता है इसे घोड़ी बनाकर इसके नितंबों पर जोर जोर से थप्पड़ लगाकर लाल कर दूँ और फिर प्यार से इन पर अपनी जीभ फिराऊँ और फिर अपने पप्पू पर थूक लगाकर उसे गहराई तक इसकी मखमली गांड में उतार दूँ और फिर आधे घंटे तक हमारा यह घमासान दंगल चलता रहे।

मैं इन ख्यालों में डूबा हुआ था कि गौरी कॉफी बनाकर ले आई। मेरे लिए उसने मग में कॉफी डाली थी और अपने लिए गिलास में। उसने कॉफी का कप मुझे पकड़ा दिया और खुद गिलास लेकर नीचे फर्श पर बैठने लगी तो मैंने उसे कहा- अरे नीचे क्यों बैठती हो, चलो उस टी टेबल पर बैठ जाओ. मैंने सोफे और सेंट्रल टेबल के पास रखी स्टूल (टी टेबल) की ओर इशारा करते हुए कहा।

मेरा मन तो कर रहा था इसे अपने पास सोफे पर नहीं बल्कि अपनी गोद में ही बैठा लूँ पर वक़्त की नज़ाकत थी अभी यह सब बोलने का या करने का माकूल समय नहीं आया था।

गौरी एक हाथ से उस स्टूल को थोड़ा सा खिसकाकर उस पर बैठ गयी। उसके गोल-गोल नितम्ब शायद उस स्टूल पर पूरे नहीं आ रहे होंगे तो सुविधा के लिए उसने अपनी एक टांग दूसरे पर रख ली। ऐसा करने से उसकी मांसल पुष्ट जांघें और उनके बीच पहनी पैंटी की आउटलाइन्स साफ दिखने लगी थी।

हे भगवान! उसकी सु-सु तो बस एक बिलांद के फ़ासले पर ही होगी। पता नहीं उसे देखने का मौका मेरे नसीब में कब आएगा। मुझे लगता है उसकी बुर पर हल्के मुलायम बालों का पहरा होगा। बीच की दरार तो रस से भरी होगी और उसकी भीनी भीनी खुशबू तो दिलफरेब ही होगी।

मैं टकटकी लगाए उसकी जांघों के संधि स्थल को ही निहार रहा था। गौरी ने मुझे ऐसे करते हुए शायद देख लिया था तो उसने अपनी कुर्ती को थोड़ा सा खींचकर अपनी जांघों पर कर लिया। भेनचोद ये लड़कियाँ भी आदमी की नज़रों को कितनी जल्दी पकड़ लेती हैं? काश मेरे मन की बात भी समझ जाए!

मुझे अब कॉफी की याद आई। मैंने एक चुस्की ली। कॉफी ठीक ठाक ही बनी थी पर मुझे तो गौरी को इंप्रेस (प्रभावित) करना था। कॉफी की तारीफ करना तो बहुत लाज़मी बन गया था अब। और यह सब तो मेरे प्लान का ही हिस्सा था। “वाह …” मेरे मुँह से निकाला। गौरी ने चौंककर मेरी ओर देखा। “वाह … गौरी तुमने तो बहुत बढ़िया कॉफी बनाई है?” “अच्छी बनी है?” उसने आश्चर्य मिश्रित खुशी के साथ पूछा। “अरे अच्छी नहीं … लाजवाब कहो बहुत ही मस्त बनी है.” गौरी मंद मंद मुस्कुराने लगी थी।

“गौरी तुम्हारे हाथों में तो जादू है यार … बहुत ही मस्त कॉफी बनाती हो.” इस बार मैंने ‘मस्त’ शब्द पर ज्यादा ही जोर दिया था।

अब बेचारी गौरी क्या बोलती अपनी तारीफ सुनकर उसके पास सिवाय मुस्कुराने के क्या बचा था। मेरी कोशिश थी मैं उसके दिमाग में यह बैठा दूँ कि वह बहुत ही खास (स्पेशल) है और साथ ही उसे यह अहसास भी करवा दूँ कि वह बहुत ही खूबसूरत भी है। उसे रंगीन सपने दिखाना बहुत ही जरूरी था। मैं चाहता था कि उसकी कल्पनाओं को पंख लग जाएँ और वह ख्वाबों की हसीन दुनिया में उड़ना सीख ले तो मेरा काम अपने आप बन जाएगा।

“मेरा तो मन करता है गौरी तुम्हारे इन हाथों को ही चूम लूं?” मैंने हँसते हुए कहा। “अले ना बाबा … ना?” गौरी ने थोड़ा सा डरने और पीछे हटने का नाटक सा किया। “मैं सच कह रहा हूँ?” “ना आपता तोई भलोशा नहीं है? त्या पता छूते-छूते मेली अंगुलियाँ ही खा जाओ?” कहकर उसने तिरछी नज़रों से मुझे देखा और हँसने लगी। “अरे मैं तो मज़ाक कर रहा हूँ” मैंने हँसते हुए कहा।

“अरे तुम भी पीओ ना?” “हओ” गौरी ने कुछ झिझकते हुए कॉफी का गिलास हाथ में पकड़ लिया। “आप दीदी तो नहीं बताओगे ना?” “क्या?” “तोफी पीने ते बारे में?” “प्रॉमिस … पक्का … देखो तुमने भी तो हमारी वो बात मधुर को नहीं बताई तो भला मैं कैसे बता सकता हूँ?” “ठीत है.” अब उसने एक चुस्की सी लगाई, उसने थोड़ा सा मुँह बनाया शायद कॉफी कुछ कड़वी लगी होगी।

“क्यों है ना मस्त?” “थोड़ी तड़वी सी है?” “अरे तुम पहली बार पी रही हो ना इसलिए ऐसा लग रहा है। जब इसकी आदत पड़ जाएगी तो बहुत मज़ा आएगा.” “अच्छा?”

मैंने मन में कहा- हाँ मेरी जान पहली बार बहुत सी चीजें कड़वी और कष्टदायक लगती है बाद में मज़ा देती हैं। आगे आगे देखती जाओ तुम्हें तो मेरे साथ और भी बहुत सी चीजें पहली बार ही करनी हैं।

बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी और मेरे तन-मन में शीतल फुहार सी बहने लगी थी। बेकाबू होती अल्हड़ और अंग अंग से फूटती जवानी का बोझ उठाना शायद अब गौरी के लिए बहुत मुश्किल होगा। मेरे आगोश में आने के लिए अब इसकी बेताब जवानी मचलने ही वाली है। बस थोड़ा सा इंतज़ार …

बातें तो और बहुत हो सकती थी पर मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही थी। हम दोनों ने कॉफी खत्म कर ली थी। “थैंक यू गौरी इतनी मजेदार कॉफी के लिए!”

गौरी कॉफी के कप उठाकर रसोई में चली गयी और मैं बाथरूम में। गौरी फ़तेह अभियान का पहला सबक सफलता पूर्वक पूरा हो चुका था अब मंजिल-ए-मक़सूद ज्यादा मुश्किल और दूर तो नहीं लगती है।

लिंग देव तेरी जय हो!

यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे. [email protected]

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