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मूल लेखक: प्रेम गुरु प्रेषिका: स्लिम सीमा
कथा-वस्तु: एक नौकरानी की प्रेम कथा मुख्य पात्र: गौरी: घरेलू नौकरानी की 18 वर्षीया लड़की प्रेम माथुर: कथा नायक मधुर: प्रेम माथुर की पत्नी अन्य पात्र कमलेश उर्फ कालू बबली-कमलेश की नव विवाहिता पत्नी संजया, सुहाना, सानिया मिर्ज़ा (मीठी) आदि
प्रेमगुरु के चाहने वालो! आपने तीन चुम्बन से तीसरी कसम तक का प्रेमगुरु की कहानियों का सफ़र तय किया।
प्रिय पाठको और पाठिकाओ, मैं भी आपकी तरह प्रेमगुरु की कहानियों की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हूँ और मैंने कई बार उनकी कहानियों के अनुवादन और सम्पादन में उनकी सहायता की है। हालांकि प्रेमगुरु ने अब कहानियाँ लिखना बंद कर दिया है पर मेरे पास उनकी लिखी कुछ अधूरी प्रेम कहानियाँ है।
प्रस्तुत कहानी ‘तीन पत्ती गुलाब’ भी मूलतः उनकी ही रचना है जो उनके मेल्स और नोट्स पर आधारित है, जिसका संपादन कर आपके लिए अन्तर्वासना पर भेजी है। मुझे उम्मीद है आपको यह कहानी जरुर पसंद आएगी। अगर आप अपनी कीमती राय इस कहानी पर लिखेंगे और मेल करेंगे तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। -प्रेम गुरु के एक प्रशंसिका स्लिम सीमा
आईलाआआआ … ! क्या गौरी भी खुले में सु-सु करने जाती है? ओह … उस बेचारी को तो बड़ी शर्म आती होगी? ईसस्स … वो शर्म के मारे सु-सु करने से पहले इधर उधर जरूर देखती होगी! फिर अपनी आँखें झुकाए हुए धीरे-धीरे अपनी पेंटी नीचे करती होगी! और उकड़ू बैठ कर अपनी खूबसूरत मखमली बुर से सु-सु की पतली सी धार निकालती होगी.
याल्लाह … इसे देखकर तो लोगों के लंड खड़े हो जाते होंगे? और फिर वो सभी वहीं मुट्ठ मारने लग जाते होंगे? ये तो सरासर गलत बात है जी … बेहूदगी है ये तो … इससे तो हर जगह गंदगी फ़ैल जाएगी. और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की तो माँ चु …!
“गौरी.. बहुत देर लगा दी? कहाँ रह गयी थी? “वो … संजीवनी आंटी?” “कौन संजीवनी?” “वो … सामने वाली बंगालन आंटी” “ओह … क्या हुआ उसे?” “हुआ तुछ नहीं” “तो?” “उसने मुझे लोक लिया था?” “क्यों?” मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी।
“वो … वो मुझे घल पल ताम तलने ता पूछ लही थी?” “फिर?” “मैंने मना तल दिया.” “क्यों?” “अले आपतो पता नहीं वो एत नंबल ती लुच्ची है.” “लुच्ची??? क्या मतलब.. कैसे??? ऐसा क्या हुआ?” मैंने हकलाते हुए से पूछा।
“आपतो पता है वो … वो … ” गौरी बोलते बोलते रूक गयी। उसका पूरा चेहरा लाल हो गया और उसने अपनी मोटी-मोटी आँखें ऐसे फैलाई जैसे वो राफेल जैसा कोई बड़ा घोटाला उजागर करने जा रही है। अब आप मेरी उत्सुकता का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
“वो … वो क्या … साफ बताओ ना?” मेरे दिल की धड़कन और उत्सुकता दोनो ही प्राइस इंडेक्स की तरह बढ़ती जा रही थी। “वो … वो … तुत्ते से तलवाती है.” “तुत्ते … ??? क्या मतलब??? तुत्ते क्या होता है?” मुझे लगा शायद वो डिल्डो (लिंग के आकार का एक सेक्स टॉय) की बात कर रही होगी। फिर भी मैं अनजान बनते हुए हैरानी से उसकी ओर देखता रहा।
“ओहो … आप भी … ना … … वो तुत्ता नहीं होता???” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा जैसे मैं कोई विलुप्त होने के कगार पर पहुंची प्रजाति का कोई जीव हूँ. और फिर उसने दोनो हाथों से इशारा करते हुए कहा- वो … भों … भों … और फिर हम दोनो की हंसी एक साथ छूट पड़ी। हाय मेरी तोते जान!!!
मेरी जान तो उसकी इस अदा पर निसार ही हो गयी। उसकी बातें सुनकर मेरा लंड तो खूंटे की तरह खड़ा हो गया था। मेरा मन तो उसे जोर से अपनी बांहों भरकर चूम लेने को करने लगा। पर इससे पहले कि मैं ऐसा कर पाता गौरी मुँह में दुपट्टा दबाकर किचन में भाग गयी। उसे शायद अब अहसास हुआ कि वो अनजाने में क्या बोल गई है। … इसी कहानी से
यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. आने वाले रविवार यानि पहली जुलाई से आप इसका पहला भाग पढ़ पायेंगे. [email protected]
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