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हैलो! नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम सन्दीप सिंह है. मैं भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले का रहने वाला हूं। मेरी हाइट करीब 5.7 फीट है। मैं सदैव व्यायाम करता हूं। जिससे मेरा शरीर बिल्कुल फिट है। मेरे लंड का साईज करीब 7 इंच लम्बा और करीब 2.5 इंच मोटा है। हमारी ज्वाइंट फैमिली है.
मैं सन् 2012 से ही इस साइट का नियमित पाठक हूं। अन्तर्वसना के बारे में मुझे तब पता चला जब मैं ट्रेनिंग ले रहा था। ट्रेनिंग के दौरान मेरी मुलाकत एक व्यक्ति से हुई जो हमारे साथ ही ट्रेनिंग ले रहा था। वह राजस्थान के किसी जिले का रहने वाला था। आज मैं सेंट्रल गवर्नमेंट में एम्प्लोई हूं और अच्छी पोस्ट पर काम कर रहा हूं.
यूं तो मेरी जिन्दगी में बहुत से ऐसे वाकये हुए हैं जो मैं आप लोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ लेकिन शुरूआत सबसे दिलचस्प किस्से के साथ करते हैं. यह किस्सा उस वक्त का है जब मैं इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी होने के बाद कॉलेज में गया था. चूंकि मैं अपनी कॉलेज की फीस और पढ़ाई का खर्च खुद ही उठाना चाहता था इसलिए मैंने एक इंस्टिट्यूट में टीचर की जॉब भी कर ली थी.
मुझे इंस्टिट्यूट में गणित और विज्ञान पढ़ाना था. शुरूआत में तो बड़ा ही अजीब लगता था और शर्म-सी भी आती थी. इसलिए मैं थोड़ा घबराता था. क्लास खत्म होने के बाद मैं ऑफिस में आकर बैठ जाता था.
इंस्टिट्यूट में हफ्ता भर आराम से निकल जाता था. फिर वीकेंड पर मेरी कॉलेज की क्लास होती थी. इस तरह से मैं काफी व्यस्त रहने लगा था. समय जल्दी से निकल रहा था और कब मुझे इंस्टिट्यूट में पढ़ाते हुए दो महीने बीत गये, कुछ पता ही नहीं चला.
तीन महीने बाद सर्दियां शुरू हो गईं. मीठी-मीठी ठंड लगने लगी थी. सुबह-शाम स्वेटर पहनना पड़ता था. मगर दिन में गर्मी लगती थी तो उसको निकालने का दिल भी कर जाता था.
इंस्टिट्यूट में एक लड़की थी जिसका नाम प्रिया था. वह अक्सर मेरी तरफ देखती रहती थी मगर मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया था. चूंकि मैं देखने में अच्छा था और मेरी बॉडी भी काफी फिट थी इसलिए लड़कियां जल्दी ही मुझे पसंद कर लेती थीं.
मगर प्रिया में मेरी कोई रूचि नहीं थी. उसकी फीगर तो अच्छी थी लेकिन वह देखने में अच्छी नहीं लगती थी. मैंने धीरे-धीरे उसकी तरफ ध्यान देना शुरू किया. वह मुझसे बात करने के बहाने खोजती रहती थी. कभी साइंस का कोई सवाल लेकर आ जाती थी तो कभी मैथ्स का. कई बार तो वो एक ही सवाल को दो बार ले आती थी जिससे मुझे उसकी चोरी के बारे में पता लगने लगा था कि यह जान-बूझकर ऐसा करती है. मगर फिर भी मैं उसकी तरफ कोई ऐसा भाव नहीं रखता था जिससे उसको लगे कि मैं भी उसमें रूचि रखता हूं.
उसने मुझ पर लाइन मारने की बहुत कोशिश की लेकिन मैं उसको इग्नोर कर देता था. ऐसा भी नहीं था कि मुझे लड़कियों में कोई रूचि ही नहीं थी मगर प्रिया जैसी लड़कियों की तरफ मैं कम ही ध्यान देता था.
फिर एक दिन प्रिया इंस्टिट्यूट के लॉन में बैठी हुई लंच कर रही थी. मैं भी स्टाफ रूम से लंच करके बाहर पानी की टंकी के पास हाथ धोने के लिए जा रहा था. मेरी नजर प्रिया पर पड़ गई. उसके साथ दो-तीन लड़कियां और भी बैठी हुई थीं. वे सब की सब आपस में खिल-खिलाकर हंस रही थी. मेरा ध्यान उनकी तरफ गया. मैंने देखा कि एक लड़की उनमें बहुत खूबसूरत थी. उसको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे खेत में खरपतवार के बीच में कोई सूरजमुखी का फूल खिला हुआ है. हंसती हुई बहुत ही प्यारी लग रही थी.
नजर उसकी छाती पर गई तो आसमानी रंग के नीले सूट में उसकी चूचिचों के उभार भी काफी सुडौल व गोल लग रहे थे. उन पर उसने सफेद रंग का दुपट्टा डाला हुआ था जो उसके गले पर वी-शेप बनाता हुआ उसके चूचों पर होता हुआ नीचे की तरफ नुकीला होकर उसके पेट तक पहुंच रहा था. रेशमी से बाल थे उसके जो धूप में चमक रहे थे. लाल होंठ और गोरे गाल. एक बार उस पर नजर गई तो बार-बार जाने लगी.
उस दिन पहली बार मुझे इंस्टिट्यूट में कोई लड़की पसंद आई थी और मेरे मन में कुछ-कुछ होने लगा था. मगर मैं टीचर था इसलिए इस तरह की बातें नहीं कर सकता था. उस दिन मैं हाथ धोकर वापस आकर स्टाफ रूम में आ बैठा.
अगले दिन लंच के टाइम में फिर प्रिया के साथ मैंने उसी लड़की को बैठे हुए देखा. अब प्रिया मुझे काम की स्टूडेंट लगने लगी थी. मगर अभी तक ये पता नहीं था कि प्रिया की उस लड़की से बात होती है या नहीं. अगर होती है तो वो दोनों कितनी अच्छी दोस्त हैं इस बारे में मुझे कुछ खास अंदाजा नहीं था.
मगर उस दिन के बाद से लंच के समय मैं जान-बूझकर बाहर निकलता था. हफ्ते भर में मुझे पता लग गया कि वो प्रिया की सहेलियों में से एक है. अब प्रिया की तरफ मैंने ध्यान देना शुरू कर दिया क्योंकि प्रिया ही एक ऐसी लड़की थी जो मेरी बात उससे करवा सकती थी. इसलिए प्रिया को घास डालना शुरू कर दिया मैंने और जल्दी ही उसके नतीजे भी दिखाई देने लगे.
अब जब भी मैं लंच टाइम में बाहर जाता तो वो खूबसूरत लड़की भी एक बार नज़र भर कर मेरी तरफ देख कर नज़र फेर लेती थी. दिल पर कटारी चल जाती थी उसकी मुस्कान से. अब रात को उसके ख्याल आने शुरू हो गये थे और एक दिन मैंने उसके बारे में सोच कर मुट्ठ भी मार डाली.
जैसे-जैसे दिन गुजर रहे थे उसकी तरफ मेरा आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था. इधर प्रिया भी समझ चुकी थी कि मैं उसकी दोस्त को पसंद करता हूँ. इसलिए पहले प्रिया को अपने झांसे में लेना जरूरी था.
एक दिन ऐसे ही छुट्टी के वक्त मैंने प्रिया से पूछ लिया कि वह लंच में किनके साथ बैठी रहती है तो उसने बताया कि वह बाहरवीं कक्षा की लड़कियों के साथ लंच करती है.
फिर मैंने बहाने से उन सब का नाम पूछा तो पता चला उस खूबसूरत सी लड़की का नाम मनमीता (बदला हुआ) था. प्रिया से उसकी अच्छी पटती थी. अब अगला टारगेट मनमीता तक पहुंचना हो गया था. मगर इसके लिए प्रिया की मदद की जरूरत थी. प्रिया भी मेरे दिल की बात जान चुकी थी. इसलिए जब मैं प्रिया से मनमीता के बारे में बात करता था तो उसके चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान फैल जाती थी.
फिर मैंने प्रिया से कहा- अगर तुम परीक्षा में अच्छे नम्बर लाना चाहती हो तो मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छा उपाय है. चूंकि प्रिया मैथ्स में बहुत कमजोर थी इसलिए उसको लालच आ गया और वो पूछ बैठी- मुझे क्या करना होगा सर? मैंने कहा- अगर तुम मनमीता से मेरी बात करवा दो तो मैं तुम्हें मैथ्स में आसानी से पास करवा सकता हूँ. प्रिया बोली- आपका काम हो जायेगा.
उसका जवाब सुनकर मन कर रहा था कि प्रिया के चूचे दबा दूं लेकिन वो अभी छोटी थी और मुझे उसमें कोई रूचि भी नहीं थी इसलिए मैं मन ही मन खुश होकर रह गया. मेरा आधा काम हो गया था. अब बाकी का आधा काम प्रिया को करना था जिसके लिये वो पूरी तरह से तैयार थी क्योंकि मैं उसको शुरू से ही नोटिस करता आ रहा था कि यह लड़की बहुत तेज है. मुझे पूरा यकीन था कि प्रिया मेरा टांका मनमीता के साथ फिट करवा देगी.
फिर एक दिन शाम को जब मैं लेटा हुआ था तो मेरे फोन पर एक अन्जान नम्बर से कॉल आया. मैंने हैलो किया तो वहाँ से आवाज आई- सर, मैं मनमीता बोल रही हूँ, प्रिया की सहेली. मनमीता नाम सुनते ही मेरे मन में लड्डू से फूट पड़े और मैंने फटाक से उठ कर दरवाजा बंद कर लिया और उससे बात करने लगा. उसकी आवाज बहुत ही प्यारी थी.
उस दिन उससे बात होने के बाद फिर तो रोज ही उससे बात होने लगी. रात को घंटों तक हम बातें करते रहते थे. वो फोन पर बात करती रहती थी और मैं दरवाजा बंद करके रजाई के अंदर लंड को सहलाता रहता था. अब उसको चोदने के लिए इंतजार करना मुश्किल हो रहा था.
बातें होते-होते मनमीता मुझसे काफी खुल गई थी. अब बस उसकी चुदाई के लिए मुहूर्त निकलना बाकी रह गया था. एक दिन वो पल भी आ गया. इंस्टिट्यूट में एक्सट्रा क्लास लगने लगी थी और कमजोर बच्चों को अलग से टाइम देने के लिए कहा गया था. सिर्फ मैथ्स की क्लास लगती थी. क्लास में तीन-चार बच्चे ही थे जिनको एक्सट्रा क्लास देनी होती थी.
उस दिन क्लास शुरू होते ही प्रिया मेरे पास आई और उसने अपनी नोटबुक में एक सवाल लिखा हुआ था. सवाल समझाते हुए मैंने देखा कि उसने किताब में एक पर्ची मेरे पास छोड़ दी थी. बाकी बच्चों से नजर बचाकर मैंने पर्ची खोलकर पढ़ी जिसमें लिखा हुआ था- मनमीता आपका इंतजार ऊपर वाली मंजिल में कर रही है.
मेरे दिल धक् से रह गया. मैंने प्रिया की तरफ देखा तो वो मुस्करा रही थी. मैंने बच्चों से कहा- तुम लोग दिए गये सवालों को मेरे बताए अनुसार हल करने की कोशिश करो, मैं थोड़ी देर में आता हूँ.
मैं जल्दी से ऊपर वाली मंजिल पर गया तो वहां आखिरी कोने वाले कमरे के दरवाजे पर मनमीता खड़ी हुई मेरा इंतजार कर रही थी. मैं नजर बचाते हुए उसके पास पहुंचा और अंदर साइड में होकर मैंने उससे पूछा- क्या बात है? आज तुम यहां कैसे रुकी हुई हो?
मनमीता ने मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड पर हाथ फिराते हुए उसको सहला दिया और मेरे सीने से लिपट गई. मेरा लौड़ा तुरंत खड़ा हो गया और मैंने उसके होंठों को वहीं पर चूसना शुरू कर दिया. मैंने उसके दुपट्टे को उतार कर डेस्क पर डाल दिया और उसके सूट के ऊपर से उसके चूचों को दबाने लगा.
मैंने दरवाजा हल्का सा ढाल दिया ताकि किसी को बाहर से कुछ दिखाई न दे. उसको दीवार के सहारे लगाकर मैंने उसके चूचों को जोर से मसलते हुए उसके होंठों को चूस डाला और वह भी मेरे होंठों को वैसी ही बेरहमी से चूसने-काटने लगी. मैं उसके शर्ट को निकालना चाहता था मगर इंस्टिट्यूट में उसको नंगी करने में खतरा था इसलिए उसके कमीज को उसके चूचों के ऊपर करके मैंने उसकी ब्रा को भी ऊपर सरका दिया.
उसके गोरे चूचे जिनके गुलाबी निप्पल थे, मैंने अपने मुंह में भर लिये. उसकी गांड को दबाते-सहलाते हुए मैं उसके चूचों को चूसने लगा. उसके चूचे ब्रा से नीचे बाहर आने के बाद काफी मोटे लग रहे थे.
मनमीता मेरे तने हुए लौड़े को मेरी पैंट के ऊपर से सहला रही थी. उसने मेरी पैंट की जिप खोल ली और मेरे लंड को अंडरवियर की इलास्टिक से बाहर निकालते हुए चेन से बाहर करके उसको अपने हाथ में लेकर सहलाने लगी.
मेरा लौड़ा आग उगल रहा था और बिल्कुल गर्म हो गया था. उसके कोमल हाथों में जाकर बात मेरे लौड़े के काबू से बाहर हो गयी और मैंने उसकी सलवार को खोलकर नीचे गिरा दिया, घुटनों के बल मैं मनमीता की टांगों के बीच में बैठ गया. मनमीता ने अपने कमीज को ऊपर उठा लिया. उसकी सफेद पैंटी के बीच में गीला सा धब्बा हो गया था. मैंने उसकी कमर से उसकी पैंटी को खींच कर नीचे करना शुरू किया और उसकी भूरे रंग के हल्के बालों वाली चूत मेरे आंखों के सामने बेपर्दा होने लगी. उसकी चूत के दर्शन भर से ही आंखें धन्य हो गईं. चिपकी हुई गुलाबी होंठों वाली चूत थी उसकी.
मैंने उसकी जांघों पर हाथ रख कर उनको थोड़ी चौड़ी सी फैलाते हुए उसकी कमसिन कोमल चूत पर मैंने अपने प्यासे होंठ रखे तो मनमीता ने मेरे बालों में हाथ फिरा कर अपने आनंदमयी अनुभव का इशारा दे दिया. मैंने उसकी टपकती चूत के अंदर अपनी गर्म जीभ डाली और मनमीता अपनी गांड को दीवार से सटाए हुए थोड़ी और नीचे की तरफ आकर टांगें फैलाने लगी ताकि मेरी जीभ उसकी चूत में अंदर तक चली जाये.
मैंने उसकी चूत में तेजी से जीभ को तीन-चार बार अंदर-बाहर किया तो वह अपने चूचों को मसलते हुए सिसकारने लगी. कमरा खाली था और उसकी आनंद भरी कामुक सिसकारी कमरे में गूंज उठी. स्स्स … सर … आइ लव यू … अम्म … स्स्स … इस्स्स …आह …
वो अपनी चूत को मेरे होंठों पर फेंकने लगी. मैं भी उसकी चुदाई के लिए अब पल भर का इंतजार नहीं कर पा रहा था. मैंने अपने लंड को नीचे बैठे हुए ही एक हाथ से हिलाया तो लंड ने जैसे कह दिया हो- बहनचोद! अब तो डाल दे मुझे इस माल के अंदर … मैंने जीभ को मनमीता की चूत से बाहर निकाल कर उसको यहां-वहां से चूसा चाटा और मनमीता मुझे ऊपर उठाने लगी. मैं समझ गया अब यह भी लंड लेने के लिए मरी जा रही है.
मैंने उसकी चूत पर एक पप्पी दी और फिर उसको दीवार से सटा कर उसकी टांग को उठाते हुए उसकी चूत पर लंड को लगा दिया.
उसके हाथों को दीवार पर ऊपर दबाते हुए मैंने एक धक्का उसकी चूत में मारा और आधा लंड मनमीता की गीली चूत में गच्च से फंस गया. “उम्म्ह… अहह… हय… याह…स्स्स … सर … दर्द हो रहा है!” वह कसमसाते हुए कहने लगी. मैंने उसके चूचों को कस कर दबाया और सहलाया तथा साथ ही उसके मुंह में अपनी जीभ डाल दी.
फिर दोबारा से एक धक्का मारा तो पूरा लंड उसकी चूत में जा फंसा. आह्ह … क्या चूत थी उसकी. उसके मोटे चूचे मेरी छाती से सट गये थे. मैं उसकी गर्दन को चूमने लगा और मेरी गांड दीवार की तरफ धक्के लगाती हुई उसकी चूत में लंड को अंदर-बाहर करने लगी.
दो मिनट बाद मनमीता के मुंह से कामुक सीत्कार फूटने लगे और वो मुझे बांहों में भर कर प्यार करने लगी. मेरा जोश हर पल उबलता हुआ मेरे लंड के धक्कों को उसकी चूत फाड़ने के लिए उकसा रहा था. उसकी चूत की चुदाई करते हुए मैं तो सातवें आसमान में उड़ने लगा. बीच-बीच में उसके मोटे चूचों को भी मसल देता था.
दो-तीन मिनट तक मैंने उसकी चूत को दीवार से सटा कर चोदा. फिर पास ही पड़ी मेज पर उसको लेटा लिया और उसकी एक टांग से सलवार को निकाल कर अपने हाथ में उसकी टांग को उठाकर फैला दिया. उसकी चूत मेज के किनारे पर थी. मैंने अपने चिकने हो चुके लंड को उसकी चूत पर लगाया और उसकी चूत में लंड को धकेलते हुए उसके ऊपर लेट कर उसके चूचों को पीने लगा.
मनमीता ने मुझे बांहों में जकड़ लिया और मैंने मेज के ऊपर ही उसकी चूत में धक्के लगाने शुरू कर दिये. उसकी गोरी और मोटी चूचियों को दबाते हुए उसकी चूत में लंड के धक्के लगाते हुए जो आनंद आया मैं उसको कैसे बताऊं दोस्तो, ऐसी किस्मत बहुत कम लोगों की चमकती है जिनको ऐसी चूत नसीब होती है. तेजी से उसकी चूत को चोदते हुए मैं उसके जिस्म को भोगने लगा, उसके चूचों को पीता और दबाता रहा. चर्र … चर्र … चूं … चूं की आवाज के साथ हमारे मुंह से दबे हुए सीत्कार कमरे में गूंजने लगे. हाय … आस्स् .. ओह्ह … उफ्फ … हम्म …. स्स्स … आह आह अह्ह … हय … !
उसकी गोरी, चिकनी, मखमली चूत को चोदते हुए इतना मजा आया कि पांच-सात मिनट में ही मेरे अंदर का जोश मेरे लंड के वीर्य में उबाल ले आया और मैंने उसकी चूत में वीर्य की पिचकारी मार दी. पूरा लंड उसकी चूत में खाली कर दिया. धीरे-धीरे मैं शांत हो गया और दो मिनट तक ऐसे ही उसको मेज पर लेटा कर उसके चूचों से चिपका रहा.
मनमीता की चूत मार कर सच में मजा आ गया था. इतना सुखद अनुभव मुझे कभी नहीं हुआ था. फिर हम दोनों अलग हुए और जल्दी से मैंने अपने अध-सोये लंड को अपने अंडरवियर में वापस से अंदर डाला और चेन बंद करके दरवाजे के बाहर झांका.
तब तक मनमीता ने भी अपने कपड़े ठीक कर लिये थे. कपड़े व्यवस्थित करने के बाद पहले मैं कमरे से बाहर गया. मैंने मनमीता को थोड़ी देर बाद में आने के लिए बोला था. वैसे तो इंस्टिट्यूट में कोई नहीं था मगर चपरासी तक की निगाह से बचने के लिए एहतियात बरतना जरूरी था.
जब मैं क्लास में पहुंचा तो प्रिया मेरी तरफ देख कर मुस्करा रही थी. मैंने छुट्टी में जाते हुए उसको थैंक्स बोला तो वो कहने लगी- सर … मेरे एग्जाम का ध्यान रखना!
कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया के ज़रिये अपना प्यार देना न भूलें. अपनी जिन्दगी के कुछ और भी हसीन किस्से आपके साथ शेयर करने की अभिलाषा के साथ फिलहाल के लिए अलविदा कहना चाहता हूँ. धन्यवाद! [email protected]
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