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ज़िन्दगी बड़ी अच्छी चल रही थी। मेरे पास लण्ड अब भी था पर मैं मन से और लिबास से औरत थी और अपने दोनों पतियों अंशु और उपिंदर के साथ प्यार से रहती थी।
अंशु काम के सिलसिले में बाहर गयी हुई थी। मैं उपिंदर के घर पे थी। रात हो चुकी थी। खाने के बाद बिस्तर प्रोग्राम बस अभी खत्म हुआ था, मेरे गांड में उसका पानी झड़ चुका था और मैं प्यार से उसके लौड़े से वीर्य चाट रही थी।
तभी उसका फोन बजा। “अंशु है.” कह कर उसने स्पीकर ऑन कर दिया। “कैसे हो उपिंदर? क्या कर रहे हो?” “मैं अच्छा हूँ, बस अभी अभी अपनी पत्नी के साथ रात का कार्यक्रम खत्म किया है.” “कामिनी वहीं है, उसकी आवाज़ नहीं आ रही.” “क्योंकि उसके मुँह में मेरा हथियार है.” “समझ गयी। अच्छा मैं तो सुबह आ ही रही हूँ। तुमने कुछ सोचा कि कल परसों होली पे क्या करना है?” “करना क्या है, मेरे पास सफेद रंग वाली पिचकारी है, एक बार तेरे अंदर और एक बार कामिनी के अंदर छोड़ दूंगा.” “वो तो हम रोज़ करते हैं। कुछ मस्त सोचो.” “ठीक है, सोचूंगा.”
अगले दिन
अंशु आ गयी। मैंने बुलाया था तो मेरी बहन शैली भी आ गयी। क्योंकि अंशु को शैली के बारे में नहीं पता था, इसलिए मैं अजय के रूप में था। हम छत पर ही होलिका दहन कर रहे थे। मौका देख के अंशु ने उपिंदर से कहा कि शैली को बुला कर सब चौपट कर दिया। कामिनी भी कितनी असहज है पैंट कमीज़ में। उपिंदर कुछ नहीं बोला। होलिका दहन शुरू हो गया।
“मैं अभी आता हूँ!” कह कर नीचे आया, फटाफट कपड़े बदले और ब्रा पैंटी लहंगा चोली पहन के चैन आया। फिर ऊपर गयी और कोने से देखने लगी।
उपिंदर ने मुझे देख लिया और बोला- आ शैली त्योहार की बधाई तो हो जाए. शैली मुस्कुरा के खड़ी हुई और उपिंदर से गले मिली और उपिंदर ने उसे छोड़ा नहीं, चिपका लिया ज़ोर से। शैली भी लिपट गयी। उपिंदर धीरे धीरे उसकी पीठ सहलाने लगा। अंशु हैरानी से देख रही थी।
फिर उपिंदर ने शैली के होंठों से अपने होंठ जोड़ दिए और चूसने लगा। उसका हाथ शैली की पीठ से फिसल के नीचे आया, स्कर्ट को ऊपर तक उठाया और कच्छी के ऊपर से उसके चूतड़ दबाने लगा। अंशु बहुत हैरान थी।
अच्छे से मज़े लेकर दोनों अलग हुए तो शैली बोली- अरे अंशु, जीजा जी, आप क्यों अकेली खड़ी हैं, अपनी कामिनी के साथ शुरू करिए, पीछे देखिए. अंशु ने मुझे देखा और हम दोनों लिपट गए। “तो तुम तीनों मिले हुए थे.” हम सब हँस पड़े।
अंशु ने शैली की चुचियाँ पकड़ीं और ज़ोर से मसली- तू पहले से उपिंदर का लेती है? “अंशु, उपिंदर तो तबसे मेरा जीजा है जब दीदी उसकी गर्लफ्रेंड थी, और जीजा के साथ तो आपको पता ही है.” शराब शुरू हो गयी, हल्की फुल्की बातें चलती रही।
सबको थोड़ा नशा हो गया तो अंशु बोली- उपिंदर, अब आगे क्या प्रोग्राम है? “प्रोग्राम क्या, हम दोनों के पास बीवी भी है, साली भी है, मज़े लेंगे.” “आज के शो की हेरोइन तो साली ही होगी.” “तो उतारूं इसके कपड़े?” “नहीं ये सब से बाद में नँगी होगी.” “तो क्या करें?”
अंशु ने मुझे और उपिंदर को कुछ समझाया, फिर शैली से बोली- किसी रंग का नाम ले। “पीला.” “और कोई.” “हरा.” “और कोई.” “सफेद.”
उपिंदर ने हाथ खड़ा कर दिया। अंशु बोली- खोल के दिखाओ। शैली बोली- मैं कुछ समझी नहीं? अंशु मुस्कुराई- हमने फैसला किया था कि तू जिसके अंडरवियर का रंग पहले बताएगी, उसी की गांड को पहले प्यार करेगी.
उपिंदर ने पैंट और सफेद अंडरवियर उतार दिया और दीवार पे दोनों हाथ रख के खड़ा हो गया। शैली उसके पीछे बैठी, चूतड़ों को चूमा- हाय कितने दिनों बाद ये जवां मर्दाने चूतड़ और गांड मिल रही है प्यार करने को! फिर उसने चूतड़ फैलाये और उसके होंठ और जीभ शुरू हो गए। कभी चाटती, कभी चूमती, कभी चूसती।
अंशु बोली- साली दीवानी हो गयी है. शैली तृप्त होकर खड़ी हुई। “अब एक और रंग बोल, देखते हैं अगली बारी मेरी है या तेरी दीदी की?” “गुलाबी.”
अंशु ने तुरन्त सलवार उतार दी। नीचे गुलाबी कच्छी थी, वो भी उतार दी। “शैली, मैं तो तुझे लिटा के तेरा चेहरा अपने चूतड़ों के बीच में लूंगी.” शैली लेट गयी। अंशु उसके चेहरे पे बैठ गयी, उसके चूतड़ शैली के गालों से और गांड का छेद होंठों से जुड़ गया। प्रोग्राम शुरू हो गया।
अंशु ने शैली का टॉप और ब्रा ऊपर सरकाई और चुचियाँ दबाने लगी। नीचे शैली के होंठ और जीभ अपना काम कर रहे थे- मस्त है साली, चुचियाँ ज़ोरदार हैं और चूस के मज़ा भी खूब देती है।
फिर मेरी बारी आयी। “मैं ऐसे प्यार नहीं करवाऊँगी.” “फिर कैसे?” “पहले मेरे दोनों पति मेरी बहन को नँगी करें, थोड़ा दबाएं, मसलें, उसके बाद!”
उपिंदर और अंशु ने एक मिनट में मेरी बहन शैली के कपड़े उतार दिए और जी भर के चूमा, उसकी चुचियाँ दबाईं, चूतड़ मसले और एक साथ दोनों छेदों में उंगली की।
मैंने अपने कपड़े उतारे और उल्टी लेट गयी, टांगें चौड़ी की और चूतड़ थोड़े ऊपर उठा दिए- आ जा बहना! शैली मेरे पीछे घुटनों और कोहनियों पे आ गयी और मेरी गांड चूमने चाटने लगी।
“सच शैली … तेरी जीभ और होंठ मस्त काम करते हैं.” “दीदी, तेरी गांड भी टेस्टी है.”
और तभी जैसी मुझे उम्मीद थी, उपिंदर ने शैली के पीछे जाकर उसकी चूत में लण्ड पेल दिया और धक्के मारने लगा।
शानदार प्रोग्राम चल रहा था. मेरी बहन मेरी गांड को प्यार कर रही थी और उपिंदर से चुदवा रही थी। होलिका दहन शुभ हो रहा था। तूफानी चुदाई हुई मेरी बहन की।
फिर अंशु बोली- मेरी साली, मेरी चूत का स्वाद यहीं लेगी या बिस्तर पे? “बिस्तर पे … रात भर आज मैं आपके साथ सोऊंगी और दीदी उपिंदर जीजा के साथ।” हम सोने चले गए।
“उपिंदर, कल का क्या प्रोग्राम है?” “कल रंगीन चुदाई, राजेश भी आएगा और तेरी मम्मी भी.” उसके बाद सो गए।
होली की सुबह
हम चारों ने उठकर चाय वगैरह पी और फिर रंग लेकर छत पे चले गए। गुलाल भी गीले रंग भी। शुरुआत प्यार से, हल्के हल्के एक दूसरे के चेहरों पे गुलाल लगाया। फिर उपिंदर ने मुझे पीछे से पकड़ा और अंशु ने गीले रंग से मुझे लाल पीला कर दिया। “वाह, जंच रही है दीदी.”
तब शैली की बारी आ गयी। उपिंदर और अंशु ने खूब रंगा उसे कपड़ों के अंदर हाथ डाल के चुचियाँ पे, जांघों पे, चूत और चूतड़ों पे, सब जगह।
तभी राजेश आ गया। उसने और अंशु ने एक दूसरे को थोड़ा थोड़ा गुलाल लगाया, फिर मैंने और शैली ने अच्छे से उसे रंगीन कर दिया।
तब राजेश ने शैली को पकड़ा और हैप्पी होली करके उसकी कमीज फाड़ दी और एक ही झटके में सलवार का नाड़ा तोड़ दिया, वो सिर्फ ब्रा पैंटी में थी, उसे जकड़ के खूब होली खेली, चुम्मियां ली। फिर उसकी ब्रा और कच्छी भी उतार दी।
उसे पीछे से दबोच रखा था और चुचियाँ राजेश के हाथों में थी- उपिंदर, शैली का तो अब रंग चोदन शुरू करते हैं. उपिंदर ने अपने कपड़े उतारे और आकर आगे से शैली से चिपक गया। राजेश भी नंगा हो गया। शैली दोनों के बीच में अपने उभार दबवा रही थी।
तभी मम्मी भी आ गयीं। आते ही अंशु ने उनकी साड़ी खींच दी, ब्लाउज और पेटीकोट उतार दिया। “अरे अरे … रंग तो लगाने दो.” “बाद में मालिनी, देख तेरी बेटी का चुदाई प्रोग्राम शुरू हो चुका है.”
उपिंदर घुटनों पर था। सामने शैली घोड़ी बनी हुई थी, लण्ड मुँह में चूस रही थी।
अंशु ने मम्मी को नंगी करके लिटा दिया और उनका चेहरा जांघों में दबा के मुँह से चूत जोड़ के बैठ गयी। “कामिनी, अपनी मम्मी की भोसड़ी को प्यार कर!” मैं शुरू हो गयी।
उधर राजेश ने शैली की चूत में लौड़ा घुसा दिया और चोदने लगा। मम्मी बेटी का ज़ोरदार ग्रुप प्रोग्राम चल रहा था। शैली उपिंदर का लण्ड चूस रही थी और राजेश से चुदवा रही थी। मम्मी अंशु की चूत चूस रही थी और मेरे से अपनी चूत चुसवा रही थी। मस्त होली हो रही थी।
फिर अंशु, शैली और मम्मी तीनों की चूत एक साथ गीली हुई और उसी समय राजेश और उपिंदर के लौड़ों ने पिचकारी छोड़ दी।
थोड़ी देर सबने आराम किया। फिर हम चारों ने बारी बारी मम्मी को प्यार से रंग लगाया। मैं नीचे गयी, गुझिया, गुलाब जामुन और शराब ले आयी। खाना पीना शुरू हो गया।
“अंशु ज़रा खड़ी हो!” वो खड़ी हुई। मैं उसके पास गयी, थोड़ा झुकी और उसकी चूची मुँह में लेकर चूसने लगी और एक थोड़ी पतली गुझिया उसकी चूत में घुसा दी और धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगी।
उपिंदर बोला- ये गुझिया से क्यों कर रही है? “मैं यहीं से मुँह लगाकर खाऊँगी.” “मस्त आईडिया है, अपनी मां और बहन की चूत में भी फिट कर दे, हम भी खाएंगे।”
थोड़ी देर बाद
अंशु मालिनी और शैली टांगें चौड़ी करके लेटी हुई थीं, चूतों में गुझिया और मैं, उपिंदर और राजेश प्यार से गुझिया खा रहे थे। चूत रस ने गुझिया का स्वाद नशीला कर दिया था।
सब फर्श पर ही बैठे हुए थे। शराब का नशा चढ़ गया था। उपिंदर और राजेश दोनों के हथियार फिर से गर्म हो रहे थे।
उपिंदर के पास मम्मी बैठी हुई थी और वो उनके बदन को सहला रहा था। “क्यों राजेश, एक और राउंड का मूड है?” “बिल्कुल है। होली है और मेरी पिचकारी फिर तैयार है.” उपिंदर ने मेरी मम्मी के होंठों का एक भरपूर चुम्बन लिया और बोला- आ जा मालिनी, तेरी हैप्पी होली भी हो जाएगी और कामिनी और शैली के लिए होली की बढ़िया मिठाई भी तैयार हो जाएगी. “मैं कुछ समझी नहीं?” “तुझे कुछ समझना नहीं है, बस टांगें चौड़ी कर के अपनी भोसड़ी खोल के लेट जा!”
मम्मी लेटी, उपिंदर ने उसकी चूत की फांकों के बीच में एक गुलाब जामुन रखा और बोला ‘पेल दे राजेश …’ राजेश ने लण्ड मेरी माँ की चूत के अंदर कर दिया, धक्के शुरू किये. “राजेश इसको अपने ऊपर ले ले!”
पोजीशन बदल गयी, राजेश नीचे मम्मी ऊपर और लौड़ा चूत में। एक गुलाब जामुन चूतड़ों के बीच गांड के छेद पे और उसे मसलता हुआ उपिंदर का लण्ड मेरी माँ की गांड में घुस गया। मेरी मम्मी की सैंडविच चुदाई शुरू हो गयी।
हम तीनों बैठे हुए चुदाई शो देख रहे थे। अंशु बीच में बैठी थी, उसने मेरे सिर पे हाथ रख के उसे अपनी जांघों के बीच में झुकाया और मैंने तुरन्त उसकी संतरे की फांकों को चूसना शुरू कर दिया। वो शैली की चुचियाँ दबाने लगी।
उधर उपिंदर करारे धक्के मार रहा था। दो लण्ड मेरे मम्मी के दोनों छेदों में अंदर बाहर हो रहे थे। वो ख़ुशी से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ कर रही थी।
“देख शैली, तेरी मम्मी को डबल चुदाई में कितना मज़ा आ रहा है.” “हाँ ये तो है। मम्मी पूरे आनन्द में है.”
शो खत्म हुआ, तीनों थोड़ी देर ऐसे ही लेटे रहे। फिर दोनों मर्द हट गए। उपिंदर बोला- कामिनी और शैली, होली की मिठाई खाओ, तुम्हारी माँ की चूत का पानी, मसला गुलाब जामुन और दो लौंडों का वीर्य! हम दोनों मम्मी की चूत और गांड चूसने चाटने लगे।
होली के रंगों का और लण्ड चूत गांड का मज़ा लेकर हम नीचे आ गए। तीन जोड़े अलग अलग बाथरूम में चले गए। मम्मी राजेश, उपिंदर शैली और मैं अंशु।
मैंने प्यार से अंशु के बदन पे साबुन लगा के उसके सारे रंग साफ किये, उसने मेरे। शॉवर चल रहा था उसके नीचे हम दोनों चिपके हुए। “कामिनी पत्नी की होली बिना सुनहरे रंग के तो नहीं होती न?” मैं मुस्कुराई, शॉवर बन्द किया और फर्श पे बैठ गयी।
अंशु की चूत ने सुनहरी बरसात की और मेरा पूरा जिस्म नहा गया।
शावर फिर शुरू हो गया। मैंने गिरते पानी के बीच में उसके चूतड़ों और गांड पे कुछ चुम्मे लिए, खड़ी हुई और उसके होंठों से होंठ जोड़ दिए। “हैप्पी होली पतिदेव”
बाद में पता चला कि मेरी माँ और बहन बाथरूम में एक बात फिर चुदी थी.
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