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अब तक आपने पढ़ा था मैंने और नम्रता ने सारी रात चुदाई के बाद एक दूसरे के हस्तमैथुन के द्वारा निकला हुआ रस भी चाटा. इसके बाद बाजार जाकर खाना आदि खाया. फिर मैंने उधर से एक कुप्पी खरीद ली. जिसका उपयोग हम दोनों अपने अपने मूत्र को एक दूसरे की गांड चूत में करने वाले थे.
अब आगे..
एक बार फिर लोगों की नजरों से बचते हुए मैं नम्रता के घर के अन्दर घुस गया. हम दोनों ही सोफे पर धंस कर बैठ गए और टीवी ऑन कर लिया.
थोड़ी देर तक टीवी देखते रहने के बाद, नम्रता अपनी बुर पर हाथ फेरते हुए बोली- शरद, अपने कपड़े उतारकर पीठ के बल लेट जाओ, तुम्हारी गांड में कुप्पी डालकर मुझे मूतना है.
उसकी बात को मानते हुए मैं नंगा होकर जमीन पर लेट गया. नम्रता भी तब तक अपने कपड़े उतार चुकी थी. वो मेरे पैरों के बीच बैठ गई. उसने मेरे कूल्हे पर तड़ाक-तड़ाक कर के दो तमाचे जड़ दिए और कुप्पी को गांड के अन्दर डालने लगी.
मेरी गांड टाईट थी, तो कुप्पी अन्दर कैसे जाती. नम्रता ने गांड को अच्छे से चाटने लगी और अपने थूक से मेरी गांड को अच्छे से गीला करने के बाद एक बार फिर वो कुप्पी अन्दर डालने लगी. इस बार गांड गीली होने की वजह से कुप्पी का किनारा अन्दर घुस गया.
ये देख कर नम्रता बड़ी खुश हुई और फिर उसके बाद कुप्पी को गोल-गोल घुमाते हुए उसने कुप्पी के लम्बे भाग को पूरा अन्दर पेल दिया.
फिर चहकते हुए बोली- नम्रता खुश हुई तुम्हारी गांड में कुप्पी डालकर, अब मैं तुम्हारी गांड के अन्दर मूतूँगी.
कुछ ही सेकेण्ड्स के बाद मुझे मेरी गांड के अन्दर गर्म-गर्म पानी का अहसास होने लगा. एक अजीब सा अहसास था, उस गर्म गर्म मूत की वजह से मेरी सांस तेजी-तेजी चलने लगी. वो गर्म मूत पूरा मेरी गांड के अन्दर नहीं जा रहा था, कुछ बूंदें ही मेरी गांड के कोमल हिस्से पर लग रही थीं.
कुछ देर बाद बड़ी निर्दयता से नम्रता ने वो कुप्पी को बाहर खींच लिया.. मैं आहह्ह करके रह गया. उसका वो गर्म पानी मेरी कमर पर, कूल्हे पर और आस-पास फैल गया था.
मैं उठा, तो थोड़ा गुस्सा करते हुए नम्रता बोली- तुम्हारी गांड के अन्दर मूत तो गया ही नहीं. मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा- नहीं कुछ बूंदें अन्दर गयी थीं.. और मुझे बहुत मजा आया. इस पर नम्रता खुश होते हुए पूछने लगी- सही में अन्दर मूत गया है? मैं- हां यार बिल्कुल, मुझे अन्दर तुम्हारी गर्म गर्म पेशाब का अहसास हुआ था. अभी मैं भी करूंगा, तो तुम्हें भी मजा आएगा.
इसी के साथ मैंने उसे चित्त लेटने के लिए कहा. क्योंकि मैं उसकी उस चूत को चाटने के लिए बेकरार हो रहा था, जिसमें अभी उसके कुछ मूत्र के अंश लगे थे.
जैसे ही नम्रता लेटी, मैंने उसकी बुर में जीभ लगा दी और उसके उस कैसेले स्वाद से भरी हुई चूत को चाटने लगा. फिर मैंने खड़ा होकर उसके दोनों पैरों को पकड़कर अपनी कमर तक उठा लिया. नम्रता ने भी कैंची बनाकर मेरी कमर को जकड़ लिया. अब मैं कुप्पी लेकर धीरे-धीरे उसकी चूत के अन्दर डालने लगा. जब कुप्पी पूरी तरह से चूत के अन्दर चली गयी, तो मैंने उसकी टांगों को ढीला करके नीचे की तरफ सरका दिया.
अब मेरा लंड कुप्पी के अन्दर था और मुझे अपने लंड को पकड़ने की जरूरत भी नहीं थी. इसलिए मैंने नम्रता के दोनों पैरों को पकड़कर रखा था. उसका इशारा पाते ही मेरे लंड ने भी अपनी टोंटी खोल दी. एक तेज धार के साथ कुप्पी मूत से भरने लगी. मैंने मूतना रोक दिया और कुप्पी खाली होने का इंतजार करने लगा. इधर नम्रता को भी जब मेरी गर्म पेशाब का अहसास अपनी चूत में हुआ, तो वो आह-ओह, आह-ओह करने लगी.
नम्रता- आह.. जानू बहुत गर्म है तुम्हारी पेशाब.
मेरा पूरा ध्यान उसकी चूत पर ही था. उसकी चूत के आस-पास से धार बाहर निकल रही थी, तब तक आधी कुप्पी खाली हो चुकी थी. फिर मैंने एक बार मूतना शुरू किया. कुप्पी भरने के बाद मैं मूतना रोक देता था. ऐसा दो-तीन बार किया.
लेकिन मुझे मजा नहीं आ रहा था, इसलिए मैंने कुप्पी को झटके से बाहर निकाला, तो पेशाब छलकते हुए बाहर आ निकली और थोड़ी बहुत पेशाब, जो उसकी बुर के अन्दर थी, वो भी बाहर आ गयी.
हम दोनों के कमर का हिस्सा गीला हो चुका था.
मैं- नम्रता.. इससे अच्छा तुम्हारी पेशाब लगी हुई चूत चाटना अच्छा लगता है, इसमें ज्यादा मजा नहीं आया. नम्रता मुझसे चिपकते हुए बोली- यार इससे अच्छा तो तुम्हारे गर्म जिस्म से चिपक कर ऐसे ही खड़ी रहूं और तुम मेरे जिस्म को सहलाओ और गांड में उंगली करते रहो. मैंने उसके कूल्हे को दबाते हुए कहा- इस बार तुम मुझे प्यार करो, मैं कुछ नहीं करूँगा.
बस मेरे इतना कहते ही वो मेरे होंठों को चूसने लगी और अपनी जीभ मेरे मुँह के अन्दर घुसेड़ कर मेरे तालू में चलाते हुए मजा लेने और देने लगी. वो मेरे होंठों को चूसती, उसके बाद मेरे निप्पल को दांतों के बीच लेकर काटती और अपनी जीभ से गीला कर देती.
इससे मेरे अन्दर हलचल सी होने लगी थी, लेकिन मैं बुत बनकर कमरे के बीचों बीच पैर फैलाये हुए खड़ा था.
नम्रता हल्के-हल्के अपने नाखून गड़ाकर मेरे जिस्म के एक-एक हिस्से को चाटते हुए मुझे सुकून दे रही थी. वो मेरे सीने को, मेरे निप्पल को चाटते हुए मेरी नाभि की तरफ बढ़ रही थी. फिर नाभि के अन्दर ही उसने अपनी जीभ चलाना चालू रखा.
कुछ देर वो नाभि को चाटती रही. फिर नीचे की तरफ बढ़ी और पंजे के बल बैठते हुए उसने अपने दोनों हाथ मेरी जांघों पर गड़ा दिए. मेरी जांघों के कोनों को वो चाटते हुए अंडों को मुँह में भरने की कोशिश करने लगी. इससे मेरे लंड महराज तन चुके थे, सो तने लंड को बिना हाथ लगाये, वो कभी सुपाड़े पर जीभ चलाती, तो कभी गप्प से लंड को अन्दर ले लेती और मजे से चूसती.
इसी के साथ नम्रता ने अपने एक हाथ का प्रयोग अपनी चूत पर करना शुरू कर दिया. वो अपनी उंगली को चूत के अन्दर डालकर अन्दर बाहर करने लगी. वो मेरे तने हुए लंड को भी चूस रही थी और अपनी बुर को भी चोद रही थी.
फिर नम्रता खड़ी हुई और उसने अपनी उंगली को मेरे मुँह के अन्दर डाल दिया. जो भी रस उसकी उंगली में लगा था, वो सब मेरी जीभ पर उंगली चलाकर हटा रही थी.
वो पंजे के बल बैठकर अपना जलवा दिखाने लगी. इस तरह उसने कई बार किया.
जब आगे के हिस्से को उसने अच्छी तरह चाट लिया, तो मेरी टांगों के बीच से होते हुए पीछे आ गयी. मेरे कूल्हे को फैलाकर उंगली से खोदने लगी. फिर उसकी नाक का अहसास मुझे छेद में होने लगा और फिर जीभ चलने का अहसास होने लगा. मेरी गांड काफी गीली हो चुकी थी.
फिर वो आगे आयी और एक बच्चे की तरह मेरी गोदी में चढ़ गयी. उसने अपने पैरों की कैंची बनाकर मेरी कमर में फंसा दी और अपने को एडजस्ट करते हुए लंड को अपनी चूत के अन्दर लेकर मेरे होंठों को चूसते हुए धक्के लगाने लगी.
मैंने भी उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसके धक्के का अहसास करने लगा.
धीरे-धीरे उसकी चूत की थाप मेरे लंड पर बढ़ती जा रही थी. चूत और लंड के घर्षण से जो थप-थप की आवाज आ रही थी, वो पूरे कमरे में आराम से सुनाई पड़ रही थी.
काफी देर तक इस तरह वो मुझे चोदती रही. फिर नम्रता गोदी से उतरी और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पलंग तक ले आयी. उसने मुझे पलंग पर लेटाकर मेरे मुँह पर अपनी चूत टिका दी. बाकी का मेरा काम था, सो मैंने भी उसकी गीली चूत को अच्छे से चाटा.
बन्दी जब तक मेरे मुँह से नहीं हटी, जब तक कि उसकी चूत की अच्छे से चटाई नहीं हो गयी.
फिर वो नीचे आयी और बारी-बारी से अपने दोनों छेद में मेरे लंड को लेती रही और मुझे कस कर चोदती रही.
मेरे अकड़ते हुए जिस्म पर उसका पूरा ध्यान था, मेरे मुँह से ओह-ओह की आवाज सुनकर वो मेरे लंड से उतरी और 69 की पोजिशन पर आ गयी.
वो भी अब फारिग हो चुकी थी, उसकी मलाई मेरे जीभ पर लग रही थी, जबकि मैं उसके मुँह के अन्दर अपना माल छोड़ रहा था.
उसने अच्छे से मेरी चुदाई की. थकने के बाद हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर लेट गए.
मैंने उसके बालों को सहलाते हुए कहा- यार एक बात नहीं समझ में आयी, तुम्हारा एक बच्चा भी है, फिर भी तुमको अपने पति से शिकायत क्यों है? नम्रता- मेरा बच्चा तो मेरी नौकरी के चलते अपनी नानी के घर रहता है. बाकी मुझे अपने पति से कोई शिकायत नहीं है, यार.. पर वो पहले जैसा ध्यान नहीं देता. अब जब उसका मन होता है, तो मेरे साथ चुदाई कर लेता है और जिस दिन मेरी बहुत इच्छा होती है कि वो मुझे रगड़े, मसले, इतनी ताकत से चोदे कि मेरा रोम रोम मस्त हो जाए, तो उस दिन वो मेरी तरफ देखता भी नहीं है. फिर मुझे अपनी चूत से पानी निकालने के लिए उंगली करनी पड़ती है. तुम्हें तो पता ही होगा कि नींद तब तक नहीं आती, जब तक चूत का पानी बाहर न आ जाए. मैं- कहीं उसका बाहर चक्कर तो नहीं है? नम्रता- अरे मैं कब मना कर रही हूं. अगर कोई उसको अपनी चूत दे रही है, तो उसकी चूत को खूब चोदे, लेकिन मेरी भी चूत की प्यास भी तो बुझाये. मैं- हम्म.. नम्रता- देखो कल का दिन ही हमारे लिए है, परसों रात तक सभी आ जाएंगे. तो परसों तुम मेरे घर चलोगी, वहीं पर एक-दो राउन्ड चुदाई का चलेगा और फिर मैं तुम्हें मेरी बीवी की अलमारी दिखाउंगा. मैं उसके लिए अक्सर सेक्सी कपड़े लाता रहता हूं.. तुम देख लेना, जो पसंद आए, पहनकर अपने पति को रिझाने की कोशिश करना. शायद वो तुम्हारे हुस्न का एक बार फिर दीवाना हो जाए. नम्रता- चलो देखूंगी. ये बताओ क्या तुम्हारी बीवी वो कपड़े नहीं पहनती? मैं- यार यही तो बात है, तुम चाहती हो कि तुम्हारा आदमी तुमको रगड़ कर चोदे और मैं चाहता हूं कि मेरी औरत को मैं रगड़ कर चोदूं. पर दोनों जगह उल्टा है.
यही सब बात करते हुए मेरी नजर बाहर बदलते हुए मौसम पर पड़ी.
मैंने कहा- आओ छत पर चलें. नम्रता- यार ये कौन सी सनक है. अभी रोशनी है. मैं- अरे मैंने कल रात देख लिया है, बाउण्ड्री काफी ऊंची है. आओ मौसम बहुत सुहाना है, उसका मजा लेते हैं.
नम्रता ने भी बाहर नजर डाली और छत पर चलने को तैयार हो गयी. छत पर ठंडी हवा बह रही थी और शायद बारिश भी हो सकती थी. कोई चार पांच मिनट ही बीते थे कि मोटी-मोटी बूंदें हमारे ऊपर गिरने लगीं. दूसरी बिल्डिंग में जो कोई एक-दो लोग दिख भी रहे थे, वो भी बारिश की वजह से छत से चले गए थे. मंत्र-मुग्ध होकर नम्रता उठी और गोल-गोल होकर नाचने लगी, उसकी पायल की झनकार मेरे कानों में रस घोल रही थी.
बारिश और तेज हो गयी थी. मैं तो भीगने के उद्देशय से ही छत पर आया था. मैंने चारों ओर की छतों पर नजर दौड़ाई, पर आस-पास की छत पर कोई नजर नहीं आया. नम्रता बिंदास होकर अभी भी गोल-गोल घूमे जा रही थी. बारिश इतनी तेज हो गई थी कि छत पर बारिश का पानी जमा होने लगा और देखते ही देखते छत तालाब बन चुका था. उधर पानी में छप छप करते नम्रता की नजर मेरे तने हुए लंड पर पड़ी, वो दौड़ते हुए आयी और मेरी गोद में अपनी टांगें कैंची सी कसती हुई चढ़ गयी और लंड को चूत के अन्दर लेकर धक्के पर धक्का पेलने लगी.
कुछ 10-12 धक्के लगाने के बाद नम्रता नीचे उतरी और झुकते हुए उसने अपनी चूत का मुँह मेरे लंड की ओर कर दिया. मैं भी उसको चोदने लगा, लेकिन यह क्या, फिर वही कहानी, 10-12 धक्के के बाद वो अलग हुई और जमीन पर नागिन की भाँति लेटकर रेंगने लगी और अपनी जीभ को छत पर भर चुके पानी पर चलाने लगी.
मैं भी जमीन पर बैठ गया. मेरा लंड भी अपना कोण बना कर खड़ा हुआ था. उधर नम्रता अपनी जीभ से पानी की धार को काटते हुए मेरी तरफ बढ़ रही थी और बढ़ते-बढ़ते उसने गप से लंड को मुँह के अन्दर ले लिया. उसके बाद उसने अपने मुँह में पानी को भरा और लंड में पानी को उड़ेल दिया और सुपाड़े को वो दांत से काटने लगी.
फिर अचानक वो एकदम से मेरे ऊपर चढ़ी, जिससे मैं संभल नहीं पाया और धड़ाम से जमीन पर लेट गया. मेरे जनीन पर लेटते ही वो 69 की पोजिशन में आ गयी. मैंने अपनी जीभ बाहर की और उसकी चूत से होता हुआ, जो पानी की बूंदें टपक रही थीं, उनको जीभ पर लेने लगा. पर वो अपनी गांड मटका-मटका कर मुझे चूत और गांड चाटने के लिए इशारा कर रही थी.
पहले तो मैंने उसकी फांकों के आस-पास जीभ चलाना शुरू किया, फिर फांकों को फैलाकर अन्दर लालिमा युक्त घेरे पर अपनी जीभ चलाने लगा. बरसात के पानी के साथ साथ उसकी चूत को चाटने लगा.
थोड़ी देर बाद मैंने अपने ऊपर से नम्रता को हटाया और उसको सीधा लेटाते हुए, उसके मुँह पर अपनी गांड टिका दी और उसके दोनों चूचों को भींचने लगा. नम्रता भी मेरे कूल्हे को फैलाकर मेरी गांड चाटने में मस्त हो गयी.
भारी बरसात में इस तरह का सेक्स एक अलग सा रोमांच पैदा कर रहा था. मैं जब उसके चुचे कसकर दबाता, तो वो मेरे कूल्हे को काट लेती और अंडों को कसकर भींच लेती. अच्छी तरह से गांड चटवाने के बाद मैं नम्रता की टांगों के बीच आ गया और लंड को चूत में पेलकर चुदाई करना शुरू कर दिया.
नम्रता खूब तेज-तेज चिल्ला रही थी, उस भरी बरसात में कोई सुनने वाला नहीं था.
नम्रता- आह फाड़ दो मेरी बुर को.. साले भोसड़ी के और चोद.. और कस कर चोद मादरचोद..
वो मुझे गाली बक रही थी और मैं उसे चोदे जा रहा था. जितना तेज वो चिल्लाती, उतना ही तेज मैं उसकी बुर को चोद रहा था.
अचानक उसने मेरी कमर को अपने पैरों से जकड़ लिया. मेरा लंड उसकी बुर में फंसा था और मैं हिल नहीं पा रहा था. इसलिए मैं उसके ऊपर झुककर उसके निप्पल को बारी-बारी मुँह में भरकर चूसने लगा. मेरा लंड चूत के अन्दर हुंकार भरे जा रहा था. नम्रता के झड़ने से जो पानी निकल रहा था, वो मेरे लंड को गीला कर रहा था. नम्रता पूरी तरह झड़ चुकी थी, लेकिन मेरे लंड की खुजली मिट नहीं रही थी. सो मैं अभी भी नम्रता को चोदे जा रहा था.
थोड़ी देर तो उसने बर्दाश्त किया, पर अन्त में चिल्ला पड़ी- अबे भोसड़ी के तेरा लंड क्या पूरी ताकत मेरी चूत चोदने में लगाएगा, लौड़े के.. चूत के छेद के अलावा भी और छेद हैं.
अब मैं भी चिल्ला उठा- हां मादरचोदी.. मैं सोच रहा हूं अब तेरे मुँह को चोदूं.
मेरा इतना कहना था कि वो बड़े प्यार से बोली- मेरे राजा, मैं भी कह रही हूं. आजा, मेरे राजा मेरा मुँह चोद कर मुझे अपना रस भी चखा दे हरामी.
इतना सुनने के बाद मैं उसके मुँह की तरफ आया और उसके सिर को अपनी हथेली पर लेकर उठाया और लंड को उसके मुँह पर ले गया. उसने भी लंड की गोलाई में अपने मुँह को खोलकर मेरे लंड को अन्दर ले लिया. मैं भी उसके मुँह को चोदकर अपने लंड की खुजली मिटाने लगा.
कुछ ही देर में मेरे लंड की खुजली मिट गयी और मेरे लंड ने उसके मुँह के अन्दर ही उल्टी कर दी. नम्रता ने पूरे इत्मिनान के साथ मेरे रस को पीया.
फिर जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत से बाहर आया, मैं लस्त होकर उसके बगल में लेट गया. कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे के अगल बगल लेटे हुए थे.
मेरी ये हॉट कहानी पर आपके मेल का स्वागत है. [email protected] [email protected] कहानी जारी है.
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