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अब तक आपने पढ़ा था कि नम्रता और मेरी चुदाई सारी रात छत पर चलने के बाद कमरे में भी होने लगी.
दमदार चुदाई के बीच ही उसके पति का फोन आ गया था, जिसमें नम्रता ने अपने को भी चुदासी बातों से गरम कर दिया था और वो मुठ मारने जाने की कह कर फोन बंद करके चला गया.
अब आगे..
खैर जब उसकी चूत की थैली में भरा हुआ रस जब मैंने पूरा खाली कर दिया, तो वो मेरे ऊपर से हट गई. नम्रता ने मेरे सीने पर अपना सर रख दिया और अपनी टांगों की कैंची बनाकर एक टांग मेरे पैर के नीचे और दूसरा मेरे कमर पर चढ़ा दी.
मैं जकड़ चुका था, हिल भी नहीं सकता था. हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई, पूरी रात चुदाई के खेल के कारण सो नहीं सका और अब नींद मुझे जकड़ रही थी. मेरी पलकें बार-बार झपकी मार रही थीं और इस बीच मुझे कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला. लेकिन नींद भी ज्यादा देर तक की नहीं थी. मोबाईल की घंटी ने मेरे साथ-साथ नम्रता को भी जगा चुका था. फोन मेरी बीवी का था. मेरी नजर तुरन्त ही घड़ी पर गयी, तो देखा कि कॉलेज जाने का टाईम हो रहा था.
सही समय पर फोन आया था, मैं उठकर बैठ गया. मुझसे चिपक कर नम्रता भी बैठ गयी.
जैसे ही मैंने फोन रिसीव किया, उधर से मेरी बीवी की मधुर आवाज आयी- हैलो.. मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, तो बोली- क्या कर रहे है आप? मैं- बस वही.. जब आप देती नहीं हो तो उसके बाद मुझे अपने आप करना पड़ता है? बीवी- क्या बोल रहे हैं, मैं कुछ समझी नहीं.
मैं अब जिस भाषा का इस्तेमाल अपनी बीवी के साथ करने जा रहा था, अनूमन मैं उसके साथ नहीं करता, पर जिस तरह से नम्रता ने अपने पति देव के साथ बात की थी और जिस तरह पूरी रात हम दोनों के बीच भाषा का यूज किया था, उससे मेरी थोड़ी हिम्मत खुल गयी थी. तो दोस्तो अब शब्दों पर ध्यान दीजियेगा.
मैं- अरे यार इसमें समझने वाली क्या बात है.. जिस दिन तुम अपनी चूत चोदने देने से मना कर देती हो, तो मैं हस्तमैथुन करता हूं न.. वही कर रहा हूं.
नम्रता ने मेरे यह शब्द सुनते ही मेरे लंड पर अपना शिकंजा कस लिया और खेलने लगी.
बीवी- छी: … सुबह-सुबह आप गन्दी बात करने लगे. मैं- अरे इसमें गन्दी बात क्या है? सही बताओ, जिस दिन तुम अपनी चूत चोदने देने से मना कर देती हो.. तो मैं सड़का मारता हूं कि नहीं. बीवी- आप बहुत गन्दे हो गए हो, स्कूल नहीं जाना है क्या? जाईये तैयार हो जाईये.. बॉय.
ये कहकर उसने फोन काट दिया. मोबाईल किनारे रखकर नम्रता की ठुड्डी को हिलाते हुए बोला- ये सब तुम्हारा ही कमाल है. पहली बार उससे इस तरह बोला है. नम्रता- तो मैं अपने इनसे कहां ऐसी बातें करती हूं.. पर पता नहीं आज कैसे मेरे मुँह से निकल गया. फिर वो चुटकी बजाते हुए बोली- चाय पीना है? मैं- हां पिला दो.
नम्रता उठी और चाय बना लायी. हम दोनों ने चाय पी और चाय पीने के कुछ देर बाद मेरा प्रेशर बनने लगा. मैं उठा और बाथरूम के अन्दर घुसा और आदत के अनुसार दरवाजा अन्दर से बन्द करने लगा.
नम्रता दरवाजे को धक्का देते हुए बोली- दरवाजा क्यों बंद कर रहे हो? मैं- कुछ नहीं यार प्रेशर बन रहा है, इसलिए पेट खाली करना है. नम्रता- तो इसमें दरवाजा क्यों बंद करना, हमारे तुम्हारे अलावा कौन है? जब तक तुम हगोगे, तब तक मैं ब्रश कर लूंगी.
इतना कहने के साथ ही नम्रता भी अन्दर घुस गयी और ब्रश करने लगी, इधर मैं भी बैठ गया और पड़-पड़ की आवाज के साथ-साथ मल बाहर आने लगा.
ब्रश करते-करते वो सहसा मेरी तरफ घूमी और बोली- अरे हां तुम जब हग लेना तो मुझे बता देना, मैं तुम्हारी गांड साफ कर दूंगी.
उधर वो ब्रश करने लगी और इधर मैं हगने लगा. वो शीशे से मुझे देख रही थी. कुल्ला कर चुकी थी. मेरी तरफ घूमी और अपने हाथ को वॉश बेसिन में टिका कर मुझे देख रही थी.
मैं भी फारिग हो चुका था. मैंने इशारे से मेरे फारिग होने की सूचना दी, वो पास बैठी और मग में पानी लेकर मेरी गांड धोने लगी. मैं वहां से हटा और नम्रता ने वो जगह छेंक ली.
इधर मैं ब्रश लेकर ब्रश करने लगा और शीशे से नम्रता की चूत से सीटी की आवाज के साथ मूत्रधार और पड़-पड़ की आवाज के साथ टट्टी को गिरते देख रहा था.
थोड़ी देर बाद जब मुझे अहसास हुआ कि उसने अपने पेट को खाली कर लिया, तो मैं उसकी गांड धुलाने लगा.
अब बारी थी नहाने की. मैंने सोचा कि वो साथ-साथ नहायेगी, जैसा कि मूवी में या कहानियों में अक्सर लड़के और लड़की को साथ नहाने की बात कही जाती है, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
मेरे पूछने पर वो बोली- नहीं मैं तुम्हारे साथ नहीं नहाऊंगी. उसने पास पड़ी कुर्सी उठायी दरवाजे के पास लगा कर बैठते हुए बोली- तुम नहाओगे, मैं देखूंगी और मैं नहाऊंगी तो तुम मुझे देखना.
उसके कहे अनुसार ही काम हुआ, हम दोनों ने एक-दूसरे को नहाते हुए देखा. मुझे समझ में तो कुछ नहीं आया, लेकिन जैसा वो कहती जा रही थी, मैं करता जा रहा था.
फिर नंगे ही उसने एक स्वादिष्ट सा नाश्ता बनाया और नंगे ही हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. उसके बाद थोड़ी देर तक टीवी देखकर और इधर-उधर की बातें करते हुए टाईम पास किया गया.
उससे बात करते-करते मैंने नम्रता से कहा- नम्रता तुम्हें याद है, तुमने मुझे मेरी बर्थ-डे पर एक गिफ्ट दिया था. नम्रता- हां याद है तुमने मुझसे मेरी चूत का रस चाटने के लिए मांगा था. मैं- हां.. आज फिर मुझे वही गिफ्ट चाहिये. अन्तर बस यह है कि उस दिन तुमने टॉयलेट में मेरे लिए हस्तमैथुन किया था.. आज तुम मेरे सामने हस्तमैथुन करके मुझे अपनी चूत का रस निकाल कर पिलाओ और मैं तुम्हारे सामने हस्त मैथुन करूँगा और तुम्हें अपना रस पिलाऊंगा. नम्रता- हां यार ये आईडिया तो अच्छा है.
ये कहते हुए उसने अपने दोनों पैरों को कुर्सी के हत्थे पर टिका दिया. इस तरह उसकी चूत खिली हुई नजर आने लगी और दोनों पुत्तियां लहसुन की कली की तरह दिख रही थीं.
अब नम्रता अपने दाहिने मम्मे के निप्पल को चुटकी से मसलने लगी और बीच-बीच में नाखून भी चलाती. वो दूसरे हाथ की उंगली अपने फांकों के बीच चलाने लगी. नम्रता ने हस्तमैथुन करने की शुरूआत तो कर दी थी. अभी मेरी नजर उसकी खुली हुई फांकों पर थी और उसकी चूत का गुलाबी द्वार भी खुला हुआ था.
फिर नम्रता ने अपनी चूत के अन्दर उंगली डालने के साथ ही अपने बाएं मम्मे को हाथ में लिया और उसको मुँह की तरफ उठाते हुए मुझे नशीली नजर से देखते हुए तन चुकी निप्पल पर जीभ फिराने लगी. यही नहीं, जो उंगली उसकी चूत पर चल रही थी, उस उंगली को वो बड़े ही सेक्सी तरीके से मुँह में रखकर चूसती और फिर उंगली को वापस चूत के अन्दर डाल कर अन्दर बाहर करती. जैसे कि वो उंगली से ही अपनी बुर की चुदाई कर रही है.
आज मैं पहली बार अपने सामने किसी औरत को इस तरह हस्तमैथुन करते हुए देख रहा था. इसी बीच नम्रता ने अपनी उंगली पर बहुत सारा थूक उड़ेला और फिर अपने चूत की मालिश उसी थूक से करने लगी. साथ ही साथ वो अपनी चूची को मसलती, या फिर निप्पल पर अपनी जीभ चलाती, नहीं तो बीच में चूत को फ्री छोड़ कर दोनों हाथों का प्रयोग अपने मम्मे को दबाने के लिए करती.
फिर वो खड़ी हुई और पास पड़ी हुई टेबिल के पास आ गयी. टेबिल के कार्नर पर अपनी गांड टिका कर थोड़ा आगे झुकते हुए गांड में पैदा हुई खुजली को मिटा रही थी. मतलब अपनी गांड को उस टेबिल के कोने से रगड़ रही थी. फिर वो पलटी और इस बार उसने अपनी चूत को उस कोने पर टिका दिया और उसी तरह से अपनी चूत को रगड़ने लगी.
फिर उसने उसी टेबिल पर लेटकर अपनी दोनों टांगों को हवा में उठा लिया और एक हाथ की उंगली चूत में चालू कर दी. वो दूसरे हाथ की उंगली गांड के अन्दर-बाहर कर रही थी और साथ आह-आह की आवाजें भी निकाल रही थी. उसके हाथ बहुत तेज गति से चल रहे थे.
आह-आह करते हुए उसने अपनी चूत को मुट्ठी में भर के भींच लिया और कस-कस कर मसलने लगी.
फिर आह-आह करते अचानक वो सुस्त पड़ने लगी, मुझे लगा कि उसका माल निकल गया है.
मैंने झुकते हुए अपनी नजर को उसकी चूत पर गड़ा दिया, नम्रता ने भी अपने हाथ को चूत से हटाकर अपने मम्मों पर रख लिया. पर यह क्या, अभी भी उसकी चूत में कहीं भी मुझे रस नहीं दिखा.
एक बार फिर नम्रता अपनी ऐड़ियों को टेबिल पर टिकाकर पैर फैला लिए और अपने दाहिने हाथ को चूत पर बड़े प्यार से फेरने लगी और उसी प्यार से मम्मों को सहलाने लगी.
एक बार फिर उसके हाथ की गति बढ़ रही थी और कस-कस कर आह-ओह की आवाज के साथ-साथ अपनी चूत को मसल रही थी.
ये सीन देख कर मेरा भी हाथ रूक नहीं रहा था, अपने आप सुपाड़े पर चलने लगा. नम्रता के निप्पल टाईट होने लगे थे, जो अभी तक सूखे हुए अंगूर की तरह लग रहे थे. वो अब टाईट होने के बाद रस भरे अंगूर नजर आने लगे. उसके हाथ अपनी चूत पर और गति से चल रहे थे. जितनी गति से उसके हाथ चूत पर चल रहे थे, उतनी ही गति से वो अपने दोनों दानों को मसल रही थी.
फांकों को भींचते हुए उसने अब अपनी उंगली चूत के अन्दर डालती, फिर वही उंगली मुँह में लेकर चूसती और फिर चूत के अन्दर पेल देती. मैं अपने लंड को सहलाते हुए अपनी नजर उसकी चूत पर ही गड़ाये हुए था. वो मस्तानी औरत की तरह आह-ओह करते हुए उंगली से अपनी चूत की चुदाई कर रही थी.
अब उसके एक हाथ की दो उंगलियां चूत के अन्दर-बाहर हो रही थीं, तो दूसरे हाथ की एक उंगली गांड के अन्दर बाहर आ जा रही थी.
तभी उसका जिस्म अकड़ने लगा, उंगलियां तेजी के साथ अन्दर बाहर होने लगी थीं. कभी उसके दोनों पैर आपस में जुड़ जाते, तो कभी अलग हो जाते. बस अगले पल ही उसका पूरा जिस्म ढीला हो गया और कसे हुए पैर अलग हो गए.
मैंने उसकी चूत से निकलते हुए सफेद गाढ़े रस को देखने के बाद अपनी जीभ चूत के मुहाने से टिका दिया. वो सफेद गाढ़ा रस ठीक मेरी जीभ पर ही गिर रहा था. मेरा हाथ भी अपने लंड को चैन नहीं ले रहा था और लंड की घिसाई शुरू कर चुका था.
उधर नम्रता भी अपने सांसों पर काबू पा रही थी, इधर उसकी चूत से निकलने वाला सारा रस मेरे अन्दर समा चुका था. उसके रस को चूसने के बाद मैं खड़ा हुआ और अपने बाएं हाथ का एक अंगूठा उसकी चूत के अन्दर डाल कर बाकी चार उंगिलयों से उसकी चूत को सहला रहा था और मेरा दाहिना हाथ मेरे लंड की घिसाई में तल्लीन था.
थोड़ी देर तक मैं उसकी चूत को इसी तरह चोदता रहा. हालांकि उसके अन्दर का रस निकलने के बाद भी उसकी चूत की गर्मी में कोई कमी नहीं आयी.
अब मैंने अपना हाथ उसकी चूत से हटा लिया और उसको गोदी में उठाकर उसी कुर्सी पर बैठा दिया और कुर्सी के हत्थे पर एक पैर को टिका कर लंड को नम्रता के नजर के सामने रखते हुए लंड को तेजी-तेजी फेंटने लगा.
नम्रता भी अपनी नजर को मेरे लंड पर टिका दी. थोड़ी देर तक मैं अपने लंड को घिसता रहा, फिर लंड ने एक बारगी फव्वारा छोड़ना शुरू किया, जो सीधे नम्रता के चेहरे से टकराने लगा.
नम्रता इससे पहले मेरे लंड से निकलने वाले रस के फव्वारे से संभल पाती, उसके पूरे चेहरे पर वीर्य रस लग चुका था और बाकी बचा खुचा वीर्य उसके हथेली पर लगा हुआ था, क्योंकि उसने अपने चेहरे को हाथों से छिपाने की कोशिश की. हालांकि बाद में अपने पर काबू पाते हुए उस रस को एक क्रीम की तरह अपने चेहरे पर लगा लिया और हाथ पर लगे रस को वो चाट गयी.
अब लंड महराज ढीले होकर मांद में आ चुके थे. हम दोनों ही लुंजपुंज होकर अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठे हुए थे. थोड़ी देर इसी तरह बैठे रहने के बाद दोनों बिस्तर पर आए और एक दूसरे से कस कर चिपक गए. नम्रता ने अपनी टांग को मेरी कमर पर रख कर मुझसे और कस कर चिपकने लगी. वो हम दोनों के बीच में हल्का सा भी गैप नहीं छोड़ना चाहती थी और शायद मैं भी नहीं छोड़ना चाहता था. क्योंकि वो जितना मुझसे चिपकती, मैं भी उसे और कसकर अपने से जकड़ लेता. मानो अभी भी हम दोनों एक दूसरे के अन्दर समा जाने की तमन्ना रखते हों.
पता नहीं ऐसा करते-करते हमें नींद आ गयी, पता ही नहीं चला. पता तो तब चला, जब हाथ की हरकतें दिमाग में चढ़ने लगीं. हमारी नींद खुल गयी, तो देखा मेरे हाथ नम्रता की चूत से खेल रहे है और नम्रता का हाथ मेरे लंड से. नींद नम्रता की भी खुल चुकी थी. मुझे भूख लग रही थी.
नम्रता की तरफ देखते हुए कहा- यार भूख लग रही है. नम्रता- भूख तो मुझे भी लग रही है.
हल्का फुल्का तैयार होकर मोहल्ले की नजर से बचते हुए हम दोनों एक रेस्टोरेन्ट पहुंचे, जहां पर खाना खाया गया और फिर पैदल ही पास की मार्केट में टहलने लगे. टहलते हुए मेरी नजर एक छोटी सी दुकान पर पड़ी, जहां पर रसोई से सम्बन्धित सामान मिल रहा था. मेरी नजर एक स्टोव में तेल डालने वाली कुप्पी पर पड़ी. मैंने तुरन्त ही उस कुप्पी को खरीद लिया.
जैसा कि औरतों की आदत होती है, नम्रता ने पूछ लिया- इस कुप्पी का क्या करोगे. मैं- देखती जाओ, बहुत काम की है. नम्रता- मतलब नहीं बताओगे.
जरा रूठते हुए नम्रता मुझसे दूर चलने लगी.
मैं- अरे बाबा गुस्सा मत हो, तुम इस कुप्पी को मेरी गांड के अन्दर डालना और फिर इसमें मूतना. तुम्हारा गर्म-गर्म मूत अपनी गांड के अन्दर महसूस करना चाहता हूं. बस इतना सुनना था कि मेरे से चिपकते हुए बोली- ये आईडिया मुझे बहुत पसंद आया. मैंने लोगों की नजर को बचाते हुए नम्रता के कूल्हे को दबाते हुए कहा- यही मजा तुम्हारी गांड और बुर के छेद को भी दूंगा.
गरम बातें करते हुए हम उसके घर के पास पहुंच गए.
मेरी हॉट चुदाई की कहानी पर आपके मेल का स्वागत है. [email protected] [email protected] कहानी जारी है.
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