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प्रिय अन्तर्वासना पाठको अप्रैल 2019 प्रकाशित हिंदी सेक्स स्टोरीज में से पाठकों की पसंद की पांच बेस्ट सेक्स कहानियाँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं…
प्रिया से सपनों के साकार होने जैसे हसीन मिलन की रात के बाद से तो दिन ऐसे पंख लगा कर उड़े कि कब प्रिया की शादी सर पर आन पहुंची … पता ही नहीं चला. चूँकि मेरा घर प्रिया के मायके और ससुराल वाले घर के ऐन सेंटर में पड़ता था और शादी वाला होटल-कम-बैंक्वेट हॉल जोकि मेरे ही एक जानकार का था और जिसे मैंने बहुत कम पैसों में बुक करवा कर दिया था, वो भी मेरे घर से सिर्फ कोई एक-डेढ़ किलोमीटर दूर था. लिहाज़ा! प्रिया की शादी में सेंट्रल-पॉइंट मेरा ही घर था.
यूं तो मैं भाग-भाग कर जिम्मेवारी से प्रिया की शादी के काम निपटा रहा था लेकिन बार-बार मेरे दिल में प्रिया के मुझ से दूर चले जाने का सोच कर ही हूक़ सी उठती थी पर प्यार की रिवायत तो यही थी कि दिल का दर्द, दिल ही में रखना पड़ता है. बकौल शायर ज़नाब सुदर्शन फ़ाकिर साहब “होठों पे तबस्सुम हल्का-सा, आंखों में नमी सी ऐ ‘फ़ाकिर’ … हम अहले-मुहब्बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं.”
प्रिया और मेरे सम्बन्धों के बारे में मेरी कहानी हसीन गुनाह की लज़्ज़त-1 पढ़ें!
ख़ैर! प्रिया के पापा, यानि मेरे साढू भाई के स्वर्गीय ताऊ जी के एक बेटे बहुत सालों से शिमला में सेटल्ड थे. उम्र थी कोई पैंसठ साल लेकिन खूब तंदरुस्त और हट्टे-कट्टे. मिलिट्री से अर्ली रिटायरमेंट लेकर शिमला में ही सरकारी ठेकेदारी में जम कर पैसे कूट रहे थे. उनके दो बेटे थे (दोनों शादीशुदा) और एक अविवाहित बेटी थी … कोई पैंतीस-छत्तीस साल की और नाम था वसुन्धरा! वसुन्धरा सुधा से दो-एक साल छोटी थी.
प्रिया के पापा के ये फर्स्ट कज़न साहब अपनी पत्नी और बेटी वसुन्धरा समेत प्रिया की शादी से तीन दिन पहले से ही मेरे ही घर में अड्डा जमाये हुए थे. सुधा तो इन लोगों से पहले भी एक-आध बार मिल चुकी थी लेकिन मैं इन सबको पहली बार ही मिल रहा था. वसुन्धरा पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगड़ से इंग्लिश लिट्रेचर में पी एच डी थी और डगशाई में किसी हाई-फ़ाई इंग्लिश स्कूल में वाईस-प्रिंसिपल थी.
डगशाई शिमला से कोई 60-62 किलोमीटर दूर सोलन ज़िले में एक छोटा सा, शांत सा हिल-स्टेशन है. चंडीगढ़-शिमला रोड पर धरमपुर से दायीं ओर साइड-रोड जाती है डगशाई को.
वहीं डगशाई में वसुन्धरा अकेली ही रहती थी. दीगर तौर पर महीने, डेढ़ महीने बाद वो शिमला चक्कर मार तो लेती थी लेकिन रहती डगशाई में ही थी … वो भी अकेली. पहाड़ी लोगों के विपरीत वसुन्धरा वैसे तो खुले-खुले हाथ-पैरों वाली, करीब 5’6″ लम्बी, गोरी-चिट्टी, क़दरतन एक खूबसूरत स्त्री थी लेकिन बन कर ऐसे रहती थी कि खुदा की पनाह! चेहरे पर कोई मेकअप नहीं, कोई क्रीम नहीं, होंठों पर कोई लिपस्टिक नहीं, भवों की कोई थ्रेडिंग नहीं, कोई नेल-पालिश नहीं, कोई मैनीक्योर-पैडीक्योर नहीं. शैम्पू-कंडीशनर से वसुन्धरा के सिर के बालों का शायद ही कभी वास्ता पड़ा हो.
पूरी कहानी यहाँ पढ़ कर मजा लीजिये …
मेरा नाम कोमल है. मेरी उम्र अभी 24 साल की है, मैं सूरत की रहने वाली हूँ, मेरा फिगर साइज 34-30-36 है. मैं कई दिनों से अपनी कहानी बताना चाह रही थी पर किसी वजह से कहानी लिखने का समय नहीं मिल पा रहा था मगर अब मैं नियमित रूप से कहानी भेजा करुँगी. मैं जो भी कहानी यहाँ पर भेजूँगी अपनी ही जिंदगी की भेजूँगी … हमेशा बिल्कुल सच्ची घटना!
आज आपको पहले मैं अपने बारे में बता दूँ, मैं बहुत एक सामान्य परिवार से हूँ. मेरे घर पर मेरी माँ और एक छोटी बहन है। पिता जी कुछ साल पहले गुजर गए तो घर की जिम्मेदारी माँ और मुझ पर आ गई. मेरी माँ स्कूल में टीचर है उनकी जॉब से हमारा घर बस किसी तरह से चल रहा था।
19 साल की उम्र में मैंने अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी कर ली और कुछ काम की तलाश करने लगी पर मुझे मन का काम नहीं मिल पा रहा था.
पर एक दिन मेरी किस्मत बदल गई, एक शाम को 8 बजे मैं घर जाने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी थी, पर कुछ साधन मिल नहीं रहा था. तभी एक कार आकर मेरे बगल में रुकी और कार में सवार आदमी ने मुझसे पूछा- कहीं जाओगी क्या आप? मैंने ना में अपना सर हिला दिया. पर उसने बोला- डरो नहीं मुझसे, रात होने को है, अगर कहीं जाना है तो बता दो, नहीं तो कोई बात नहीं!
मैं सोचने लगी कि बात तो सही है कि रात होने वाली है. अब पता नहीं कुछ साधन मिलता भी है या नहीं. तो मैं बोली- गाँधीनगर जाना है. वो बोला- मैं वहीं से होकर गुजरूँगा चाहो, तो चल सकती हो. मैंने ओके कह दी.
उस आदमी की उम्र लगभग 45-50 के बीच रही होगी, मैं पीछे वाली सीट पर बैठ गई. कुछ दूर जाने के बाद ही उसने मुझसे पूछा- क्या करती हो? मैं बोली- अभी कुछ नहीं कर रही, अभी बस हायर सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी की है।
हम दोनों ऐसे ही बात करते रहे. उसको इतना तो पता चल गया था कि मैं काम की तलाश कर रही हूँ पर उसने कुछ बोला नहीं. ऐसे ही मेरा घर आ गया और मैं गाड़ी रोकने को बोली. गाड़ी रुकने पर मैं उतर गई और थैंक्स बोली.
उसने मुझे रुकने को कहा और मुझे अपना कार्ड दिया, बोला- अगर काम की जरूरत हो तो मेरे ऑफिस में कुछ जगह खाली हैं, अगर चाहो तो एक बार आकर देख लेना. मैंने कार्ड लिया और थैंक्स बोल के घर चल दी.
पहले तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर रात में सोते वक्त उस आदमी की याद आई, मैंने तुरंत उठकर अपने पर्स से कार्ड निकाला, देखा तो किसी सॉफ्टवेयर कंपनी का लग रहा था. मैंने वहां जाने की सोची. मगर अगले दिन रविवार था तो सोमवार को जाने का तय कर लिया.
सोमवार को मैं जल्दी उठकर तैयार हुई और ऑटो लेकर वहां पहुंच गई. वहां जाकर देखा तो बहुत ही बड़ा और शानदार ऑफिस था. मैंने वहीं बैठी एक महिला के पास जाकर कार्ड दिखाया तो उसने मुझे 1 नंबर रूम में जाने को कहा.
मैंने रूम के दरवाजे पे जाकर अंदर आने की अनुमति ली अंदर जाते ही देखी तो सामने वही आदमी था। उसने मुझे देखते ही कहा- अरे तुम … आओ आओ बैठो. मैं बैठ गई उसने कहा- जरूर तुम काम के लिए यहाँ आई होगी? मैं बोली- जी! उसने मेरे सभी कागज चेक किये और कहा- मुझे एक सेक्रेटरी की जरूरत है. अगर तुम ये काम कर सको तो तुम्हें काम मिल सकता है. घबराने की जरूरत नहीं है, तुम धीरे धीरे सीख जाओगी. मैं तुरंत हां बोल दी.
तो उन्होंने कहा- शुरु में तुमको 15 हजार मिलेंगे. बाद में तुम्हारे काम के ऊपर है कि कितना बढ़ाना है. मैंने ओके बोल दी. वो बोले- कल से ही आ जाओ! मैं खुश होकर बोली- जी जरूर!
पूरी कहानी यहाँ पढ़ कर मजा लीजिये …
मैं हूं आपका अपना राजवीर. आप मुझसे परिचित हुए थे मेरी दो लम्बी कहानियां याराना और भाई बहन ननदोई सलहज का याराना पढ़ कर! जिन पाठकों ने ये दोनों कहानियां नहीं पढ़ी हैं, वे कृपया इनको शुरूआत से पढ़ें, तभी आप इस कहानी का भरपूर मजा ले पाएंगे। जहां तक मैं आपको अपने जीवन में घटित घटनाओं को याराना के माध्यम से बता चुका था ये उसके आगे की आपबीती है।
श्लोक, रीना, मेरे (राजवीर) और सीमा के उस सामूहिक चुदाई के हसीन दौर की शुरूआत करने के बाद हमने ये खेल 8 महीनों तक कई बार खेला। मियां-बीवी का रिश्ता चारों के बीच में ऐसा बना कि कोई भी किसी के भी साथ चुदाई कर लेता था। हम अपने-अपने कमरों में बीवियां बदल कर सोते तो कभी-कभी अपनी बीवियों के साथ। कभी-कभी हम सामूहिक चुदाई का कार्यक्रम करके अपने मन की मुराद पूरी करते।
इन सब के अलावा एक और महत्वपूर्ण पहलू था हमारा व्यापार … जो कि सफलता के आयाम जल्दी-जल्दी स्पर्श कर रहा था। राजस्थान के बाद श्लोक की नजर गुजरात में अपने व्यापार के पांव जमाने पर थी। अतः अहमदाबाद में हमारे नए ऑफिस के आरम्भ के कुछ महीनों में ही शानदार परिणामों के कारण मैंने श्लोक को गुजरात में व्यापार के मालिकाना हक प्रदान किए।
व्यापार तो गुजरात में अच्छा शुरू हुआ लेकिन बुरा ये हुआ कि मेरे पिताजी के आदेशानुसार श्लोक को अब गुजरात में ही शिफ्ट होना पड़ा। अतः 8 महीनों के इस स्वर्ग स्वरूपी जीवन को जीने के बाद हमारे बिछड़ने की बारी आ गई थी। रोज की अदला-बदली की चुदाई की आदत से ऐसे दूर हो जाना जैसे एक सदमा था। मगर पैसों के लिए इस त्याग को अपनाना आवश्यक था।
शुरूआत में हमें एक-दूसरे की काफी कमी महसूस हुई पर धीरे-धीरे हमने अपने-अपने माल (बीवी) के साथ चुदाई में खुश रहना सीख लिया। यहाँ रीना और मैं, वहां सीमा और श्लोक अपने में ही रम गए। श्लोक का काम मैंने सीख लिया था लेकिन एक मालिक और मैनेजमेंट का काम संभालना बहुत ही दिमागी थकान वाला काम था। मुझे श्लोक वाला काम संभालने वाले एक व्यक्ति की जरूरत थी। अतः पिताजी की सलाह पर मैंने विक्रम को अपने पास बुलाया जो कि अपनी बिज़नेस मैनजमेंट की पढ़ाई पूरी कर चुका था।
मेरे लिए बीती रात एक पहेली थी जिसे मैं सुलझाना चाहता था और इसीलिए मैंने अपने घर की छत पर विक्रम (अपने छोटे भाई) को बात करने के लिए बुलाया। मैं उसका इंतज़ार कर रहा था और इंतजार करते-करते बीते हुए समय की घटनाओं को याद करने लगा।
विक्रम यानि कि मेरा छोटा भाई. उसकी आयु 27 साल की थी. वह 3 साल पहले ही बैंग्लोर से अपनी पढ़ाई पूरी करके घर लौट था और वहाँ हमारे उत्पाद के उत्पादन के काम को देख रहा था। विक्रम की शादी वीणा (24) से हुई थी। वीणा मेरे पिताजी के मित्र की पुत्री थी। मेरे पिता और वीणा के पिता पक्के मित्र थे।
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मैं अपनी कहानी शुरू से कहूं तो मेरा जन्म एक साधारण निम्न मध्यम परिवार में हुआ, पिता जी एक सरकारी दफ्तर में चपरासी थे, मेरी माँ, एक बड़ी बहिन, दो बड़े भाई; बस यही मेरा परिवार था. पिताजी जिस दफ्तर में नौकरी करते थे उसी विभाग की पूरी कालोनी बसी थी जिसमें फोर्थ क्लास के क्वार्टर में हम सब रहते थे. हमारे क्वार्टर के पास ही अन्य स्टाफ के कमरे हुआ करते थे. मेरे दोनों बड़े भाई आवारा किस्म के नाकारा इंसान थे जिनके बारे में कुछ बताना बेकार है, बड़ी बहिन का विवाह मध्यप्रदेश के एक बड़े शहर में हो चुका था. अब घर में मैं सबसे छोटी सबकी लाड़ली बिटिया थी. घर की आर्थिक स्थिति का अंदाज आप खुद लगा लें जब पिताजी को दारु पीने की लत थी.
जब मैं स्कूल में थी तभी मेरी चूत पर मुलायम झांटें उग आई थीं, मेरे चीकू जैसे मम्में अमरूद जितने हो गए थे और मेरी चूत में एक अजीब सी मीठी मीठी सी खुजली होना शुरू हो चुकी थी. मेरे व्यवहार में परिवर्तन आने लगा था. न जाने क्यों मुझे पिताजी की शर्ट पहनना अच्छा लगता, उनके उतारे हुए कपड़े पहनना मुझे बहुत अच्छा लगता.
अक्सर मैं पूरी नंगी हो जाती और पापा के उतारे हुए पसीने की गंध वाले कपड़े पहन कर रात में सोना मुझे बहुत भाता था. मम्मी डांटती थीं कि पापा के कपड़े मत पहना कर; पर मैं पापा की लाड़ली परी थी, मुझे पापा का पूरा सपोर्ट था सो मैं हर तरह की मनमानी करती रहती थी.
कुछ समय बाद मेरे मम्में इतने विकसित हो गए कि मुझे ब्रा पहननी पड़ी और मैं आस पड़ोस के मर्दों की आँख का तारा बन गयी. मेरा गोरा रंग, लम्बा कद, कटीले नयन-नख्श, रसीले होंठ, नितम्बों की मादक उठान और मेरी छातियों का वो जानलेवा जोड़ा सबकी आँखों में खटकने लगा. बहुत जल्दी मैं लड़कों और अंकल टाइप के मर्दों की घूरती नज़रों का निशाना बनने लगी. वक़्त के चलते मुझे ये भी समझ आ गया कि ये सब लोग आखिर मुझ लड़की को यों बेशर्मी से देखते क्यों हैं और मुझसे चाहते क्या हैं.
मेरे स्कूल की ड्रेस में सफ़ेद सलवार और लाल सफ़ेद रंग की चेक का कुरता हुआ करता था, कुर्ते के ऊपर सफ़ेद दुपट्टा सीने के उभार ढकने के लिए होता था. मेरे पास एक पुरानी साइकिल थी स्कूल जाने के लिए जो यदा कदा मुझे सताती रहती थी, कभी पंक्चर कभी पैडल टूटना कभी चैन टूट जाना कभी हैंडल ढीला; इन्हीं सब मुसीबतों से जूझते हुए मैंने स्कूल पास किया.
स्कूल से मेरे घर तक के रास्ते में कई स्पीड ब्रेकर्स थे जिनके पास आवारा लौंडे खड़े रहते थे. उन्हें पता था कि स्कूल से छुट्टी होने के बाद यहाँ से लड़कियों का झुण्ड साइकिल पर निकलेगा और स्पीड ब्रेकर पर उनके मम्में उछलेंगे और वे बेहद बेशर्मी से आँख गड़ा कर हमारी उछलती गेंदें देखेंगे.
मैं भी क्या कर सकती थी; बस साइकिल जितना स्लो करके स्पीड ब्रेकर के ऊपर से निकाल सकती निकाल लेती थी. फिर भी मेरे मम्में एक दो जम्प तो लगा ही लेते थे. ये आवारा लड़के यही सब देखने के लिए हमारी छातियों पर नज़रें गड़ाए खड़े रहते थे.
हाई स्कूल मैंने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर लिया और इंटरमीडिएट की ग्यारहवीं क्लास में प्रवेश ले लिया. मेरा बदन अब तक अच्छा खासा भर चुका था, मेरे चेहरे पर लुनाई आ गई थी, मेरी ब्रा का साइज़ भी बदल गया था और मैं पूरी तरह से माल बन चुकी थी. मेरी पैंटी में खुजली बढ़ने लगी थी और मेरी बुर बार बार गीली होने लगी साथ ही मम्मों में एक अजीब सी कसक, अजीब सी सनसनी मचने लगी, मीठा मीठा दर्द रहने लगा; दिल करता कोई इन्हें अच्छे से मसल डाले और आटे की तरह गूंथ दे एक बार.
मेरे जैसा ही हाल मेरी अन्य क्लासमेट्स का भी होता था और हम अक्सर सेक्स के विषय पर हंस हंस कर बातें करतीं थीं जैसे किसका पीरियड कब होता है, किसकी ब्रा का नंबर क्या है, कौन कौन अपनी बुर उंगली से सहलाती है, बुर में कहां रगड़ने सहलाने से ज्यादा मज़ा आता है, कौन कौन चुदवा चुकी है इत्यादि.
क्लास में मेरी सबसे पक्की सहेली डॉली थी. वैसे उसका नाम विनीता था पर घर में सब उसे डॉली बुलाते थे तो मैं भी उसे डॉली ही कहती थी, उसका घर भी मेरे घर के पास ही था. हम दोनों सहेलियां साथ ही अपनी अपनी साइकिल से स्कूल जातीं और साथ ही वापिस लौटतीं.
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यह किस्सा मेरी पहली पहली चुदाई का है. मैंने पहली चुदाई के लिए किसी लड़की को नहीं पटाया था बल्कि मेरी एक टीचर ने मुझे पटाकर मेरे साथ चोदन सम्बन्ध बनाए थे और एक अच्छा चोदू बनने के सभी गुर भी सिखाये थे. अगर यह कहा जाए कि मुझे चूतनिवास बनाने वाली वही थी तो गलत न होगा.
मैं ग्यारहवीं क्लास पास करके बारहवीं में आया था. बाली मैडम हमारी क्लास टीचर थी. क्लास टीचर होने के साथ साथ वह सीनियर क्लासों को इंग्लिश पढ़ाती थी. बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी. स्कूल में कुल छह महिला टीचर थीं परन्तु बाली मैडम के बेपनाह हुस्न के क्या कहने! मैडम अपार सौंदर्य की मालकिन तो थी हीं, उनका व्यक्तित्व भी अत्यंत भव्य और प्रभावशाली था. कपड़ों जूतों का चुनाव, चलने फिरने उठने बैठने का अंदाज़, बातचीत की शालीनता इत्यादि से लगता था कि किसी रियासत की महारानी आ गयी हैं. उनकी हर एक अदा अनूठी थी, मन को मोह लेने वाली थी. उनके संपर्क में आकर यह तो संभव था ही नहीं कि आप उनका दिल से अपने आप ही सम्मान करना शुरू न कर दें.
मैडम शादीशुदा थी और एक बहुत ही रईस घर में ब्याही थी. उसके ससुर काफी ज़मीन जायदाद के मालिक थे जिसके मैनजमेंट में ही समय लगाया करते थे. मैडम के पति एक मैरीन इंजीनियर थे और साल में एक बार तीन या चार महीने के लिए आया करते थे. मैडम को नौकरी की कोई ज़रूरत नहीं थी किन्तु वह सिर्फ टाइम पास करने के लिए स्कूल में नौकरी करती थी. इसके सिवा उनको पढ़ाने का शौक भी था. उनके घर में एक एम्बेसडर कार और ड्राइवर थे. कार रोज़ मैडम को स्कूल छोड़ने आती थी और छुट्टी के टाइम वापिस घर ले जाने आया करती थी.
सब लड़के मैडम का नाम लेकर खूब मुट्ठ मारा करते थे. मैडम स्कूल के स्पोर्ट्स क्लब की इंचार्ज भी थीं. हमारा स्कूल बॉक्सिंग में काफी नामी था. पूरे प्रदेश में मशहूर था. मैं भी एक बहुत अच्छा मुक्केबाज़ था. चैंपियन तो नहीं बना लेकिन नंबर दो तो आ ही जाता था. अच्छा हट्टा कट्टा, ऊंचा लम्बा, मज़बूत कद काठी का लड़का था और शायद हैंडसम भी था.
वैसे मैं, जब से लंड से वीर्य निकलना शुरू हुआ, तभी से बहुत ठरकी था. आस पास की सभी लड़कियां तो लड़कियां, औरतों पर भी नज़र लगाए रखता था लेकिन किसी से इश्क़ विश्क़ की पहल करने से डरता था. हाँ दो लौंडे थे, बड़े चिकने चुपड़े से, लड़कियों की तरह मुलायम से. दाढ़ी मूंछ भी नहीं आयी थी. अक्सर उनकी गांड मारा करता था. कभी गांड मारने का मूड न हो तो उनसे मुट्ठ मरवा लिया करता था. हालांकि लंड चूसने को कमीने राज़ी नहीं हुए थे.
एक दिन मैं एक खाली पीरियड में लाइब्रेरी में पढ़ाई करने का नाटक करते हुए ऊँघता हुआ टाइम पास कर रहा था, तो स्कूल का सबसे सीनियर चपरासी रामजी लाल मुझे ढूंढता हुआ आया- राजे … तुम्हें बाली मैडम ने बुलाया है … स्टाफ रूम में … चलो फटाफट! रामजी लाल को सब लोग ताऊ कहा करते थे. न जाने कब किसने यह नाम उनको दिया था और तब से ही यह नाम उनके साथ चिपक गया था. वैसे शकल सूरत और हाव भाव से लगते भी ताऊ ही थे.
“ताऊ … क्या हुआ … क्यों बुला रही हैं मैडम?” मैंने पूछा. “मेरे को क्या मालूम … मैडम बड़े बिगड़े हुए मूड में हैं … तुमने कोई न कोई शैतानी की होगी … तुम हो ही एक नंबर के शैतान लड़के.” “अरे नहीं ताऊ … क्यों मुझे बदनाम करते हो … कोई शैतानी नहीं की मैंने!”
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