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अब तक आपने पढ़ा था कि नम्रता और मैं खुली छत पर नंगे घूमने का मजा लेने लगे थे. फिर वहीं चुदाई का मजा लेने के बाद अपने लंड चूत के माल को 69 की पोजीशन में चूसने लगे थे.
अब आगे..
फिर नम्रता मेरे ऊपर से हटकर मेरे बगल में लेटी और मेरे होंठ पर अपने होंठ रखते हुए प्यार से चूसने लगी, लेकिन मेरी मंशा तो कुछ और ही थी, मैंने नम्रता को अपने से अलग किया.
तो नम्रता बोली- क्या हुआ, अच्छा नहीं लग रहा है क्या? मैं- नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है, एक बार तुम मेरे मुँह पर बैठ जाओ. नम्रता- क्यों क्या हुआ.. मेरी चूत को और चाटना चाहते हो क्या? मैं- नहीं इसकी महक को अपने नथुनों में बसाना चाहता हूं.
नम्रता उठी और मेरी नाक के पास अपनी चूत लायी. एक अजीब सी गंध, जिसका नशा मेरे सिर पर चढ़कर बोल रहा था.
दो मिनट बाद वो हटी और बोली- कैसी लगी मेरी बुर की महक. मैं- कहो नहीं यार.. नशा सा कर दिया है तुम्हारी बुर ने. नम्रता- अच्छा, अब मैं भी तुम्हारे लंड को सूंघकर देखती हूं कि मुझे मदहोश कर पाता है कि नहीं.
इतना कहते हुए लंड को मुट्ठी में लिया और खोल को नीचे करते हुए बहुत तेज-तेज सांसों के साथ सूंघने लगी. उसने अपना पिछवाड़ा मेरी तरफ कर रखा था, मेरी जब नजर उधर गयी, तो मैं उसके नाजुक और मुलायम कूल्हे को सहलाने लगा.
लंड सूंघने के बाद वो मुझसे बोली- शरद तुम्हारे वीर्य में जो नशा है, वही नशा तुम्हारे लंड को सूंघने में भी है. इस 6-8 घंटे में ही मेरी जिंदगी कितनी बदल गयी है, जहां मैं अपने आदमी से खुलकर सेक्स शब्द नहीं बोल सकती थी, वहीं आज मैंने एक रंडी की तरह बुर, लौड़ा, गांड, एक से एक गंदी गाली तुम्हारे साथ शेयर की और चूत को कुतिया की तरह चुदवायी. मैं शर्म हया सब भूल गयी.
इस तरह की बातें करते हुए पता नहीं कब हल्की रोशनी के साथ पौ फटने लगी, ध्यान ही नहीं रहा.
अचानक नम्रता को ध्यान आया और बोली- यार हम लोग छत पर हैं, आओ नीचे चलें, दिन होने वाला है. कहीं किसी ने देख लिया तो खामख्वाह का बतंगड़ बन जाएगा.
उसकी बात मुझे ठीक लगी, हम दोनों नीचे आ गए और बिस्तर पर लेटकर जीभ लड़ाने लगे.
मैं उसकी पीठ सहलाते हुए बोला- नम्रता.. कैसे पूरी रात बीत गयी, पता ही नहीं चला. एक राउंड और हो जाए.
नम्रता मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई और बोली- तुमने मेरे मन की बात छीन ली, मैं भी एक राउन्ड और चाहती थी और कभी भी इनका फोन आ सकता है. सो इनके फोन आने के बाद हम लोग सोएंगे.
इतनी बात सुनने के बाद मैं उसके निप्पल को मुँह में भरकर चूसने लगा, तो मुझे हटाते हुए बोली- दो मिनट रूको.
नम्रता उठकर रसोई की तरफ चल गयी. मैं बिस्तर पर ही इंतजार करने लगा. कुछ एक-दो मिनट बाद ही वो एक कटोरी लेकर आयी और सिरहाने पर पीठ टिकाकर और अपने दोनों पैरों को सीधा फैलाकर बैठ गयी.
अभी भी उसके हाथ में कटोरी थी, एक हाथ में कटोरी लेकर अपने मम्मे के नीचे लगाया और अपने मम्मे को दबाने लगी, मैं कौतूहल पूर्वक उसको इस तरह से करते हुए देखकर उठ कर बैठ गया और नजरें वहीं गड़ा दीं.
थोड़ी ही देर बाद उसके निप्पल से दूध की बूंदें गिरने लगीं. उसने अपने दोनों मम्मों से काफी दूध निचोड़ा और कटोरी को फिर बगल की टेबिल पर रख दिया. फिर उठी और वाशरूम की तरफ चल दी. इस बार मैं भी उसके पीछे हो लिया. बाथरूम के अन्दर वो खड़े होकर मूतने लगी, मैं वहीं बाहर खड़े होकर उसे मूतते हुए देखने लगा. मूतने के बाद वो मुड़ी और मुझे देखकर आंखें मटकाईं, जैसे पूछ रही हो कि पीछे-पीछे क्यों आए हो.
जवाब बनता था तो मैं बोल दिया- मूतने आया हूं. मेरी बात सुनकर बोली- ओके मूत के आओ, तब तक मैं हम दोनों के लिए दूध बनाती हूं.. पूरी रात बहुत मेहनत हुई है. मैंने कहा- कहां यार तीन-चार राउन्ड ही तो हुआ है? नम्रता- हां तुम्हारा बस चलता तो मेरे बुर का भोसड़ा बना देते, वो तो कुदरत की देन है कि दुबारा तैयार होने में समय लगता है.. नहीं तो तुम, इधर एक राउण्ड बुर फाड़ते और तुरन्त ही दूसरे राउण्ड के लिए तुम तैयार हो जाते.
मैंने इस कॉम्पीलिमेन्टरी कमेन्ट के लिए नम्रता को शुक्रिया बोला, लेकिन मैं भी जानता था कि नम्रता मेरे जिस्म का रस तो निचोड़ ही चुकी है.
इधर नम्रता इठलाते हुए और अपनी गांड मटकाते हुए किचन की तरफ चल दी. मैं भी पेशाब करके किचन में आ गया. वो दूध गैस पर चढ़ाकर उसे गर्म कर रही थी. मैंने उसको पीछे से अपने दोनों बांहों का घेरा बना कर आगोश में ले लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा. उसने भी अपने हाथ को पीछे किया और मेरे सुपाड़े को नाखून से खरोंचती और फिर अपने कूल्हे के बीच में लंड को फंसाने की कोशिश करती या फिर कूल्हे के ही ऊपर हल्की थपकी देती. दूध गरम होने तक वो ऐसे ही मेरे लंड से खेलती रही.
फिर उसने गर्म दूध को गिलास में निकाला और हम दोनों कमरे में आ गए.
जैसे ही नम्रता पलंग पर बैठी, मैं भी उसके बगल में बैठकर उसके मम्मे दबाते हुए बोला- जानू दूध तुमने यहां से निकाला और मुझे पिला ये दूध रही हो. मेरी नाक को कस कर दबाते हुए बोली- पहले अपना ही दूध पिलाउंगी, फिर ये दूध हम दोनों मिलकर पिएंगे.
ये कहकर उसने अपनी टांगें एक बार फिर सीधी की और टांगों को फैला कर मुझे उसके बीच में आने का इशारा किया. मैं पेट के बल लेटकर उसकी टांगों के बीच आ गया.
नम्रता ने अंदाज लगाया कि मेरा मुँह खासकर होंठ का हिस्सा उसकी चूत पर सैट नहीं हो रहा है, तो उसने अपनी गांड के नीचे तकिया रखा. इस तरह मेरा मुँह और उसकी चूत आमने सामने हो गए.
फिर उसने कटोरी उठायी और फांकों को फैलाकर कटोरी से चूत पर अपना दूध गिराते हुए बोली- लो मेरी जान दूध पिओ. वो दो-दो, तीन-तीन बूंद करते हुए दूध को अपनी चूत पर गिरा रही थी और मैं जीभ लगाकर फांकों के बीच गिरते हुए उस मीठे दूध के साथ उसकी चूत के कसैलेपन का स्वाद एक साथ ले रहा था. वो दूध गिराती जा रही थी और मैं उस दूध को चूत सहित चाटता जा रहा था.
बड़ा कामुक सोच था उसका. इधर मेरा लंड भी टाईट होने लगा और आगे-पीछे होने के कारण सुपाड़े की चमड़ी चादर से रगड़ खा रही थी.
जब दूध खत्म हो गया, तो मैं उसकी दोनों पुत्तियों को दांतों के बीच लेकर ऐसे चूस रहा था, जैसे पेप्सी की बोतल में अन्त की बची हुई पेप्सी को स्ट्रा से निकाला हो.
जब मैंने अच्छे से उसकी चूत चूस ली, तो मेरे सिर को अपने हाथों में लेकर बोली- मेरी जान गिलास वाला दूध भी इसी तरह पीओगे कि गिलास से ही पीओगे?
मैं- मजा तो तुम्हारी चूत के ऊपर गिरते हुए दूध को पीने में है.
बस फिर क्या था, उसने गिलास उठाया और उसी तरह से धीरे-धीरे दूध की धार बनाकर अपनी चूत के ऊपर गिरा रही थी और मैं उसको पीने का मजा ले रहा था. हालांकि मेरा सुपाड़ा चादर से रगड़ रहा था और एक मीठी जलन हो रही थी, लेकिन इस तरह दूध पीने का मजा भी मिल रहा था.
जब दूध बिल्कुल खत्म हो गया, तो मैंने उसकी चूत और जांघ को अच्छे से चाटकर साफ किया और उसके पैरों के बीच से हटकर उसके बगल में बैठ गया.
मैं बोला- तुमने तो अपना चूत दूध तो पिला दिया और अब तुम लंड दूध पिओगी. नम्रता- हां.. तुम पिलाओगे तो बिल्कुल पीउंगी. मैं- तब ठीक है, तुम बिल्कुल सीधा लेट जाओ.
नम्रता सीधी लेट गयी, मैंने दूध का गिलास उठाया और उसकी छाती के पास आकर उकड़ू होकर इस तरह बैठ गया कि मेरा लंड ठीक उसके होंठ के ऊपर था. नम्रता ने मुँह खोल दिया. मैंने दूध की धार अपने लंड के ऊपर छोड़ना शुरू किया, मेरी धार ठीक उसके मुँह के अन्दर जा रही थी. जैसे धार टूटती, नम्रता अपनी जीभ निकालती और सुपाड़े के चारों ओर अपनी जीभ चला कर लंड को मजा देती. फिर अपना मुँह खोल देती.
नम्रता तब तक ऐसा ही करती रही, जब तक पूरा दूध खत्म नहीं हो गया. उसके बाद भी वो काफी देर तक मेरे लंड को चूसती रही.
एक बार फिर हम दोनों ने आसन बदला. मैं जाकर बेड पर बैठ गया, मेरा लंड जो लगभग 70 से 90 डिग्री के एंगल पर खड़ा था.
नम्रता आयी और उसने लंड को अपनी चूत के अन्दर लेकर अपने कूल्हे को मेरी जांघों पर टिका दिया. फिर जीभ बाहर निकाल कर मुझे वो जीभ चूसने के लिए आमंत्रित कर रही थी. मैंने भी बिना समय गंवाए उस लपलापाती हुई जीभ को अपने होंठों के बीच दबा लिया. उसकी लार को अपने अन्दर लेने लगा. मेरे लंड में एक मीठी खुजली की आग लगी थी. मैं नम्रता के कूल्हे को पकड़ कर हिला देता, जिससे जब लंड चूत की अन्दर हिलता … तो मुझे कुछ सकून मिलता.
इस पर सितम यह था कि उसकी चूत से निकलती हुई गर्म भाप, जो मेरी जांघों के आस पास टकरा रही थी, वो भी मुझे बहुत दुखी किए हुए थी. इधर नम्रता भी मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर कैद करके उसके लार को पी रही थी. लंड की खुजली का आलम यह था कि मैं जोर-जोर उसके मम्मे को दबा रहा था, पर वो हिल डुल ही नहीं रही थी. हां मेरी उंगली उसकी गांड को खोद देती, तो वो उछल पड़ती. मेरी उंगली वाली हरकत से पीछा छुड़ाने के लिए, वो अलथी पलथी मार कर बैठ गयी.
मैंने उसके मुँह को हटाते हुए कहा- बहन की लौड़ी.. मेरे लंड को चोदो.. साली मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है.
वो भी मुझसे एक कदम आगे बोली- भोसड़ा चोदे.. मादरचोद.. थोड़ा बर्दाश्त कर.. जब तक तेरी जीभ का रस अच्छे न पी लूंगी और अपनी जीभ का रस पिला न दूंगी.. तब तक तेरे लंड को नहीं चोदूंगी.
अब मैं गिड़गिड़ाने की स्थिति में आ गया और बोला- जान अगले राउन्ड में जीभ वाला खेल खेल लेंगे, नहीं तो बिना चुदे मेरा लंड तुम्हारी चूत के अन्दर पानी छोड़ देगा.
नम्रता- चल ठीक है, तू भी क्या याद करेगा भोसड़ी वाले.. किस रईस दिल औरत से पाला पड़ा है. मैं- चोद तो मादरचोदी पहले.. फिर रईसी देखी जाएगी.
उसने अपनी टांगें खोलीं और धक्के लगाने लगी. अब जब लंड की घिसाई शुरू हुई तो जान में जाकर जान आयी.
नम्रता अब तेज गति के साथ धक्के लगाती जा रही थी, जितनी तेज वो धक्के लगा रही थी, उतना ही मुझे मजा आ रहा था. जब वो धक्के लगाते हुए थक जाती, तो रूक जाती और अपने निप्पलों को बारी-बारी मेरे मुँह में भर देती और मैं उन निप्पल को पीने का मजा लेने लगता.
बेचारी काफी देर तक धक्के मारती रही, फिर बोली- भोसड़ी के तुम तो बोल रहे थे लंड चोदो.. नहीं तो माल बिना चुदे निकल जाएगा. भैन के लौड़े इतनी देर से तेरे लंड को चोद रही हूं.. अभी तक तो तेरा माल निकला नहीं.
ये कहकर वो मेरे ऊपर से उतर गयी और घोड़ी बन गयी. मैं पीछे आकर उसकी चूत में लंड पेलते हुए उसकी चूत चुदाई करने लगा.
आह ओह की आवाज के साथ वो थाप पर थाप मिलाये जा रही थी कि तभी उसके फोन की घंटी बजी. उसके पति महोदय का फोन था.
फोन देखकर बोली- इस भैन के लंड को भी अभी ही उंगली करनी थी.. साले को चुदाई के बीच फोन करने की क्या जरूरत थी?
मैं रूका और बोला- उस बेचारे को क्या मालूम कि तुम चुद रही हो, फोन उठा लो.
फोन को स्पीकर पर करते हुए और अपने को थोड़ा संयत करते और थोड़ा सेक्सी आवाज में बोली- हां बताईये.
बस इतना सुनना था, कि उसके बेचारे पति महोदय बोले- नम्रता क्या हुआ?
अब तक मैं नम्रता के ऊपर से हट चुका था और नम्रता बैठते हुए मुझे देखकर मुस्कुराकर आंख मारते हुए बोली- अब मैं कैसे आपको बताऊँ, क्या हुआ बताओ तो. मैं नहीं बता सकती आप सबके बीच में हो, कहीं किसी ने सुन लिया तो क्या सोचेंगे.
पति- नहीं ऐसा कुछ नहीं है, तुम बोलो, मैं बाहर टहलने आया हूं.
तभी मैंने नम्रता की पुत्तियों को चबा लिया. आह करते हुए बहुत जोर से चीखी.
पति महोदय बोले- यार बताओ तो क्या हुआ है? नम्रता- कुछ नहीं मेरी जान, स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी कि तभी चुल्ल उठने लगी. वहीं उंगली डालकर अपनी चुल्ल को शान्त कर रही थी. पति- मैं समझ रहा था कि तुम्हारी चुल्ल उठेगी, तुम अपने पर काबू रखो न. नम्रता आह-आह करते हुए बोली- बहुत कोशिश की.. पर बर्दाश्त नहीं कर पायी, तो उंगली से खुजली मिटाने की कोशिश कर रही थी. पति- यार तुम्हें कितनी खुजली होती है. नम्रता- तुम एक दिन अच्छे से इसकी खुजली मिटा दो, तो फिर मैं खुजली नहीं होने दूंगी. पति- अच्छा चलो, अब फोन रख रहा हूं तुम दिन ब दिन बेशर्म होती जा रही हो, तुम्हारी दो बात सुनकर मेरा भी खड़ा हो गया है. अब जल्दी बाथरूम के अन्दर जाकर इसको सही करना पड़ेगा. नम्रता- एक दिन तुम भी मेरे साथ बेशर्म हो जाओ, फिर कभी शिकायत नहीं करूँगी. पति- ठीक है, आने के बाद सोचता हूं.
इधर वो बात कर रही थी, उधर मैं उसकी चूत चाट-चाट कर उसे और उत्तेजित कर रहा था.
फोन काटते हुए बोली- अब जल्दी से जाकर सड़का मारेगा. मैं- तुमने उससे ऐसी बात ही कही है उससे. वो तुम्हारी चूत चोदने की कल्पना कर रहा होगा.
फोन रख कर वो एक बार फिर घोड़ी बन गयी, इस बार वो अपने सिर और छाती को बिस्तर से टिका दिया. इससे उसकी गांड और उठ गयी. मैंने उसकी गांड पर थूक उड़ेला, जीभ अन्दर तक चलाने के बाद गांड की ऊंचाई तक खड़ा होकर लंड को उसकी गांड के अन्दर पेल दिया और धक्के मारने लगा.
कभी मैं उसकी गांड मारता, तो कभी उसकी चूत चोदता. फिर मैं पलंग से नीचे उतरकर उसकी कमर तक के हिस्से को बेड के बाहर खींच लिया. उसकी कमर को पकड़ कर अपनी कमर तक किया और लंड को चूत के अन्दर पेल दिया. उसका आधा जिस्म हवा में था और वो आह-आह करके इस आसन से चुदाई का मजा ले रही थी. मुझे भी चोदने में कुछ ज्यादा ही मजा आ रहा था. मेरे अंडों की थाप कूल्हे पर टकरती हुई वापस आ जा रही थी. नम्रता भी जोश में अपनी चूचियों को भींच रही थी और दोनों मम्मे को बारी-बारी अपने मुँह की तरफ ले जाती और जीभ को निप्पल की तरफ चलाती.
फिर होंठों को गोल करके मेरी तरफ अपनी नशीली आंखों से इशारा करती. मेरा लंड नम्रता की चूत को काफी घिस चुका था और खुद भी काफी रगड़ चुका था, सो अब रस बाहर निकलने के लिए बेकरार हो रहा था.
मैंने लंड बाहर निकालकर नम्रता को बेड पर पटक दिया और खुद उसके सीने पर चढ़कर लंड को उसके मुँह के पास ले आ गया.
नम्रता ने लंड को पकड़ा और सुपाड़े को दांतों के बीच फंसाकर उस पर दांत चलाते हुए मेरे अंडों से खेल रही थी. उसने अपने दांतों के बीच मेरे सुपाड़े को इस तरह फंसाये हुए थे कि वीर्य रस सीधे उसके कंठ से ही टकराता.
तभी मेरे वीर्य की पिचकारी की धार निकलने लगी. नम्रता मेरे अंडों के साथ खेलती रही और सुपाड़े को तब तक दांतों के बीच फंसाये रही, जब तक कि लंड ढीला होकर बाहर नहीं आ गया. उसके बाद भी नम्रता ने खोल को पीछे किया और जो भी वीर्य कण लगा रह गया था, उसको भी अपने जीभ से खींचने की कोशिश कर रही थी.
अब बारी मेरी थी. मैं पसर कर लेट गया और नम्रता अपनी चूत में भरा हुआ माल लेकर मेरे मुँह पर आ गयी. उसकी चूत की वो मदमस्त महक मेरे नथुनों में भरती जा रही थी. उसकी चूत के रस चूसने के मजे लेने के साथ-साथ उसकी चूत से निकलती हुई महक का भी मैं मजे ले रहा था.
मेरी हॉट सेक्सी देसी चूत चुदाई की कहानी पर आपके मेल का स्वागत है. [email protected] [email protected] कहानी जारी है.
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