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“ये तो स्ट्रॉंग होगा?” “ज्यादा नहीं। ट्राय करके देखिए न!”
कुछ देर हिचकती रही फिर ग्लास उठा लिया।
“चीयर्स, फॉर पूना!” “चीयर्स!” इस बार उसकी हँसी खुली हुई थी। मैं थोड़ा उसकी ओर सरक गया। उसकी साड़ी मेरी बाँहों से रगड़ खाने लगी। “वाकई पूना सुंदर जगह है।” “आपने पूना देख लिया?” “मुझे लगता है पूना वाली उससे भी सुंदर है।” वह शरमा गई। मैंने जाम का घूँट लिया और फिर ग्लास उसके गिलास से टकराया- चियर्स फॉर पूनावाली!”
उसके कानों का झुमका हँसी करता हिल रहा था। उसे मुँह से छूकर स्थिर करने के लिए मैंने मुँह बढ़ाया। जूड़े के नीचे बालों के जड़ की सोंधी गंध … “अरे रे रे … गिर जाएगा।” उसने अपना गिलास सम्हाला। मैंने भी अपना गिलास संभाला।
हम अगल-बगल इतने पास बैठे थे कि सामने देख रहे थे। दीवार में टंगी उस तस्वीर को जिसमें एक स्त्री-पुरुष की ऐब्स्ट्रैक्ट सी रेखाकृति थी। एक के शरीर की रेखाएँ दूसरे के शरीर से होती गुजर रही थीं- हमारे सान्निध्य को अर्थ पदान करती। “सुदंर है ना?” “बहुत!”
मैं उसकी साड़ी से खेलने लगा- सुंदर है … यह भी आपका सेलेक्शन है? “ये उन्होंने मेरे बर्थडे पर दी थी।” “उनकी च्वाइस अच्छी है।” “हाँ!” उसने कुछ गर्व से कहा।
मैंने हाथ बढ़ाकर उसकी ठुड्डी को पकड़कर अपनी ओर घुमा लिया- उनकी ये वाली च्वाइस भी!
वह कुछ करती या कहती, उससे पहले ही मैंने बढ़कर उसके होंठों को अपने होंठों से छू लिया। “बहुत अच्छी है। वेरी वेरी स्वीट … एक्सलेंट च्वायस!”
वह हकबकाई सी मेरी आँखों में देखने लगी। पराए पुरुष का पहला दुस्साहस। पनीली आँखें, जहाँ नशे की लाली घुल रही थी। मदिरा भींगे चमकते होंठ … मैंने खुद पकड़कर उसके ग्लास से अपना ग्लास टकरा दिया- चियर्स फॉर योर हसबैंड, मिस्टर पूना वाला! न चाहते हुए भी वह हँस पड़ी। गिलास से उसने घूँट लिया तो मुझे तसल्ली सी मिली।
गिलासों में पेय खत्म हो चले थे। “और डालूँ?” मैंने पूछा। “काफी हो गया।” “एक छोटा सा और … आखिरी!”
मैंने वोदका की बोतल उठा ली। वह कहीं शून्य में देख रही थी। यह ऐसा समय था जब मैं उसे गौर से देख सकता था। मदिरा ने से जैसे उसके पूरे बदन में रक्त का संचार बढ़ा दिया था। चेहरे, गले, कंधे में खास किस्म की चमक दिख रही थी। त्वचा पर पसीने की हल्की परत। इसे (रति के क्षणों में) चाटूंगा। यह पसीना अंदर स्तनों पर भी होगा? नहीं चोली में सोख लिया गया होगा। गोल गले की चोली। उभारों की शुरुआत के जरा सा नीचे काटती हुई। गोलाइयों के बीच का मादक अंधेरा। काँख से फुलझड़ी की चिन्गारियों की तरह निकलती हुईं सिलवटें। कुछ सिलवटें सामने उभार पर जाकर समाप्त होतीं। सामने का उभार एक बड़े फूले समोसे सा। मुलायम कच्चा समोसा, दबाकर आकृति बदल दो। इस विचित्र उपमा पर मुझे हँसी आई।
“क्या बात है?” “कुछ नहीं।” “बेवकूफ दिख रही हूँ?’ अपने को देखने लगी। “यू आर लुकिंग परफेक्ट, सो लवली!”
मैंने उसे पीछे से समेटने के लिए बाँह बढ़ाई। ये आखिरी पैग मैं उसे अपने हाथों से पिलाऊंगा। लेकिन वह बिस्तर से उतरने लगी। “एक मिनट!” कहकर बाथरूम की ओर बढ़ गई। कमरा अचानक से निःशब्द हो गया।
न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बाथरूम की ओर चला गया। बेहद हल्की आवाजें- पेशाब की हिस्स … हिस्स, फ्लश का चलना, फर्श पर पानी का गिरना। छिः मैं कैसा गंदा हूँ। पर औरत से जुड़ी कौन सी बात उत्तेजक नहीं होती? वह धो-पोंछकर तैयार हो रही है। सोचकर मेरे लिंग की उद्दंडता बढ़ गई। मैं चादर तकिए ठीक करने लगा।
वह आई … कुछ लहराती हुई। मैं उसे थामने के लिए बढ़ा मगर उसकी ‘मैं ठीक हूँ’ की घोषणा से रुक गया। वह मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। लगा, जैसे शिक्षक के सामने कोई छात्रा खड़ी हो गई हो- सिर्फ आँखों में विनम्रता की जगह इंतजार का फर्क। मैंने उसकी कमर को हाथों से घेर लिया। उसकी गहरी द्रवित आँखों में मेरा प्रतिबिम्ब उभर रहा था।
“मुझे यकीन नहीं हो रहा, यह सब सच है।” “मुझे भी … यकीन नहीं था कभी सचमुच आपसे मिलूंगी इस तरह।” “सिर्फ लीला और नीता …” वह हँस पड़ी- लीला और नीता, हाँ! “बंद कमरे में … अपने अपने जीवन साथियों से दूर … ”
उसका चेहरा थोड़ा संकुचित हुआ। मन में पर पुरुष से मिलने का पाप-बोध। “अपने जीवन साथियों को बताकर, उनकी सहमति से मिल रहे हैं। विलक्षण है! है ना?” वह कुछ नहीं बोली। मेरी आँखों में देख रही थी।
मैंने कहा- मुझे आशा नहीं थी आप इतनी सुंदर निकलेंगी। “आप भी बहुत हैंडसम, बहुत स्मार्ट …” कहते कहते वह लजा गई। मैंने उसके झुके ललाट को मुँह उठाकर हल्के से चूम लिया। उसके वक्ष-उभारों के बीच अपना चेहरा रख दिया। धक … धक … धक … साड़ी की मोटी तह के नीचे धड़कन सुनाई देने लगी।
उसने मेरी गर्दन को बांहों में घेर लिया। मैंने उसके झुके कंधे पर साड़ी पिन को खोल दिया। खोलते ही साड़ी की रेशमी तहें कंधे से लहराकर गिर पड़ीं। नीता ने झट उसे छाती पर संभाला। कंधों पर चोली की संक्षिप्त पट्टी को छोड़कर खुले हिस्से जैसे नग्नता का उद्धोष करने लगे। गोरे, गोल, भरे, कंधे। सबसे ऊँची जगह पर पट्टी में सिलाई की जोड़। सीने और पीठे के हिस्सों को सम्हालती। कैसी उम्दा किस्मत है इस कपड़े की! ऐसे सुंदर बदन से लिपटने की!
मैं उसकी पीठ की तरफ लटकते पल्लू को समेटकर साड़ी को अपनी तरफ खींचने लगा। उसने सीने पर हाथ का दबाव कम न किया। मैंने तनिक झुककर उस हाथ को चूमा। ‘उफ’ उसने मेरा सिर हटा दिया। मैंने उसके हाथ को पकड़कर साड़ी खींचना शुरू किया। उसका रोकना कमजोर पड़ने लगा। मादक चीरहरण!
उसकी हथेली से साड़ी निकलकर झूल गई और चोली में ढका वक्ष प्रदेश अपनी पूरी भव्यता से उजागर हो गया। उसे तुरंत ही उसने बाँहों के नीचे छिपा लिया। फिलहाल उस पर से ध्यान हटाकर मैंने कमर पर लगाया। वह बड़ी संतुलित विरोध के साथ मुझे रोक रही थी और मैं उसकी कमर से साड़ी को खींच रहा था। आखिर पूरी साड़ी निकलकर मेरे हाथ में आ गई- विजय के पदक जैसी। मैंने उसे एक ओर सम्हालकर रख दिया। सिर्फ साए और चोली में स्त्री का अत्यंत उत्तेजक सौंदर्य उभर आया।
“आइये!” मैंने उसकी कुहनी पकड़कर खींचकर अपने पास बिस्तर पर बिठाया। वोदका का ग्लास उसके हाथ में पकड़ा दिया- लीजिए! “चियर्स!” “चियर्स!” उसने ग्लास उठाया। “फॉर … ” “फॉर?” उसने पूछा। “फॉर दिस ब्यूटीफुल चोली।” “धत!” “यस्स … चियर्स !” मैंने ग्लास बढ़ाकर उसके ग्लास से टकरा दिया। “बोलिए चियर्स! बोलिए, बोलिए … ” मैंने जिद की।
आखिरकार उसने कह दिया- चियर्स! “हा हा हा … ” मैंने बच्चों की तरह किलकारी मारी। वह हँसने लगी। एक लूज हँसी जो आदमी सिर्फ नशे में हँसता है। मैंने घूंट भरते हुए कहा- अभी तो हमें बहुत सारे चियर्स करने हैं। साये के लिए, ब्रा के लिए … “बस बस!” उसने मुझे रोक दिया। “और जिसकी चियर्स होगी वो तो गया।” मैं ठठाकर हँसा। “आप गुण्डे हैं।” “हा हा … हा हा … तुम कितनी क्यूट हो नीता!” बेतकल्लुफी में निकल आए ‘तुम’ को मैंने तुरंत बदला- सॉरी आप … “आप मुझे तुम ही कहिए।” “तो फिर आप भी मुझे तुम कहें।” “नहीं, मैं हमेशा आपको अपने से बड़े और अनुभवी देखती रही हूँ आपकी कहानियाँ पढ़कर!” “मैं का करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया?” वह ठहाका लगाकर हँस पड़ी।
फिर बोली- नहीं लीलाधर जी, आप बहुत ही फिट, बहुत ही हैंडसम हैं। “नीता जी, आपकी बातें भी आपकी उम्र से बड़ी हैं।” “फिर ‘आप’?” “ठीक है नीता, तुमको अपने से बड़ी उम्र वालों के लिए कोई फैंटेसी रही है क्या?” “नहीं, लेकिन आपकी कहानियों ने ये फैंटेसी जगाई।” “और वो फैंटेसी क्या है?” “नहीं बताऊंगी!” “हा हा हा … मैं बताऊँ?” “ऊँ हूँ!”
मैंने अपना ग्लास उसके चेहरे के सामने उठा दिया। “मेरी फैंटेसी है ये जाम एक अद्भुत सुंदरी के होंठों से पीने की।” मैंने उसका चेहरा घुमाया और अपना गिलास उसके मुँह से लगा दिया- इसको पीना मत, बस मुँह में रखे रहना। उसने घूँट मुँह में भर ली, मैंने उसके मुँह पर अपना मुँह लगा दिया। धीरे धीरे पूरी शराब उसके मुँह से अपने मुँह में खींचता पी गया। एक सुंदरी के मुँह के गर्माहट और मुख रस से घुला जाम। पीकर धन्य धन्य हो गया। लिंग किसान के उठे हुए कुदाल की तरह तन गया।
“एक और दोगी?” वह हँस रही थी, हालांकि उसका चेहरा लाल था और सांसें तेज चल रही थीं। “क्यों, मुझे नहीं देंगे आप?” “तुम भी लोगी? क्या खूब!” मैंने शराब खींचकर खुद ही अपना मुँह उसके मुँह से लगा दिया। उसने मेरा सिर पकड़कर मुझे अच्छी तरह चूसते हुए पी लिया। फिर तो चुम्बन ही शुरू हो गए। एक दूसरे के मुंह में मुँह रगड़ते, घिसते, चूसते, जीभ से जीभ लड़ाते। अलग हुए तो दोनों हाँफ रहे थे। लिपस्टिक उसके होंठों से बाहर फ़ैल गई थी।
मैं घूमकर उसके सामने आ गया उसके नुकीले उभारों के बीच। अभी तक हम अगल बगल बैठे थे। वह अपने वक्ष को ढकने लगी, मैंने उसकी कलाइयाँ पकड़कर लीं। उसके दोनों उरोज अजब चालू सी नुकीली डिजाइन के कपों में बंद थे और यूँ अलग अलग थे जैसे दो सहेलियाँ एक-दूसरे से मुँह फुलाए दो तरफ देख रही हों। “माई गॉड, कमाल का जोड़ा है, वन्डरफुल!”
कृपया आप मेरी सेक्स कहानी पर अपने विचार कमेंट्स में एवं मेरे ईमेल [email protected] पर अवश्य भेजें। धन्यवाद.
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