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मैं अपनी पत्नी अंशु की चूत चाट रहा था और उसके यार से गांड मरवा रहा था. फिर अंशु की चूत गीली हो गयी और उपिंदर के लौड़े ने पानी छोड़ दिया. सुबह सुबह मज़ा आ गया।
दिन भर काम और बाद में शाम हो गयी। मैं तैयार होने लगी। ब्लाउज पेटीकोट में थी तब उपिंदर आया, मेरी एक चुम्मी ली और बोला- आज दुल्हन बन रही है, वो भी दो दो दूल्हों की। पर सुहागरात तेरी नहीं होगी. मैं मुस्कुराई, उसकी जांघों के बीच में हाथ रख के धीमे से दबाया- पता है मुझे … इसका स्वाद आज बदलेगा.
मम्मी आयी, उपिंदर ने दरवाज़ा खोला, उसे देख कर मम्मी हैरान हो गयी- अरे उपिंदर तुम? और फिर चुप हो गयी। उपिंदर ने धीरे से मम्मी के चूतड़ों को सहलाया। मम्मी फुसफुसा के बोली- यहां कुछ मत करो, ये अंशु का घर है. मैं दूसरे कमरे से सब देख रही थी।
अंशु अंदर गयी, मम्मी के पैर छुए। और फिर जैसे ही सीधी हुई उपिंदर ने उसे पीछे से बांहों में भरा, उसके गाल को चूमा- पता है अभी मैंने आंटी के चूतड़ सहलाए तो आंटी बोली कुछ मत करो ये अंशु का घर है. “ठीक तो बोली मम्मी.” कह कर अंशु ने मम्मी का पल्लू गिराया और दोनों चुचियाँ मसली- अपने घर में शुरुआत तो अंशु ही करेगी. और दोनों खिलखिला के हंस पड़े।
उपिंदर ने मम्मी को बांहों में भर के होंठों का भरपूर चुम्बन लिया- मालिनी, आज खुशी का दिन है। अभी थोड़ी देर में अंशु और मैं हम दोनों तेरे दामाद बन जाएंगे। कामिनी तैयार हो रही है. अंशु ने मम्मी को पीछे से पकड़ा हाथ आगे लाके चुचियाँ थाम लीं- लेकिन वो सुहागरात आज नहीं मनाएगी. “क्यों?” “क्योंकि उसके मज़े तो हम दोनों कल से ले रहे हैं, आज उसकी मम्मी का रंगारंग प्रोग्राम करेंगे.”
मैं कमरे में आयी लाल साड़ी में पूरी सजी हुई, सोफे पे बैठ गयी। उपिंदर मेरे पास आया, अंशु फ़ोटो लेने लगी। मम्मी मेरे पीछे खड़ी थी। “मम्मी आप साड़ी में जंच नहीं रही!” “ठीक है मैं बदल के आती हूँ.” “नहीं बदलने की ज़रूरत नहीं, इसे उतार दीजिये.” “क्या? मैं सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में?”
अंशु ने आगे बढ़ के मम्मी की साड़ी और ब्लाउज उतार दिया- नहीं जी, ब्रा और पेटीकोट में … बल्कि पेटीकोट भी बड़ा है. वो एक कैंची लेके आयी और जांघों के पास से नीचे का पेटीकोट काट दिया। मम्मी सिर्फ ब्रा और एक छोटी सी स्कर्ट में थी। जांघें नंगी थीं और पीछे चूतड़ों पे पैंटी दिख रही थी। “अब मस्त फ़ोटो आएगी.”
मम्मी ने मेरे सिर से आँचल थोड़ा सरकाया और उपिंदर ने मेरी मांग में सिंदूर भर दिया। अंशु बोली- कामिनी अब से घर में तू बिना सिंदूर के नहीं रहेगी। हम दोनों में से किसी एक से रोज़ लगवाया करेगी. “जी ठीक है.”
फिर उपिंदर फ़ोटो लेने लगा।
और अंशु ने मुझे मंगल सूत्र पहनाया- मेरी जान ये तुझे 24 घण्टे पहन के रखना है, घर में भी बाहर भी! “जी पतिदेव!” फिर मेरे दोनों पतियों ने मेरे होंठों को चूमा।
उसके बाद… “आ जा मालिनी, अब तुझे बेटी की शादी की बधाई देते हैं.” “उपिंदर, तुम प्रोग्राम शुरू करो, मैं बाद में आती हूँ.”
अंशु और मैं बैठ के शराब पीने लगे और उपिंदर ने मम्मी को बिस्तर पे दबोच लिया, उसके ऊपर लेट के होंठों को खूब चूसा। ब्रा उतार दी। चुचियाँ को तबियत से दबाया। फिर पेटीकोट और चड्डी भी उतार दी, अपने से चिपका के मम्मी के उभारों को मसलता रहा।
अंशु ने मेरे पल्लू के अंदर हाथ डाला और मेरे उभार दबाए। “ये क्या कर रही हो?” “ये तो मेरा हक है.” मैं मुस्कुराई- हर हक तुम्हारा है पर कपड़े खोल के करो न! “ले मेरी जान!” और उसने मेरे ऊपर के कपड़े उतार दिए और मेरे निप्पल मसलने लगी।
उधर बिस्तर पे: “आ मालिनी, अपने होंठों का कमाल दिखा.” मेरी मम्मी शुरू हो गयी। पहले लण्ड को हाथ में पकड़ा, जांघों को चूमा, लौड़े को ऊपर से नीचे तक चाटा और फिर मुंह में ले लिया।
मैं अपनी चुचियाँ दबवाते हुए देख रही थी कि मेरी माँ घुटनों पे थी, झुकी हुई लण्ड चूस रही थी। अंशु बोली- कैसे मज़े लेके चूस रही है। मस्त माल है तेरी माँ! चूतड़ देख … चौड़े, चिकने और गांड भी टाइट लग रही है। चूत को भी एकदम चिकनी कर के रखती है. “क्या बात पतिदेव … सास बहुत पसंद आ रही है?” “रानी अब मेरी सास नहीं है, अब वो मेरी और मेरे यार की रखैल है.”
और वहाँ यार का लौड़ा फ़नफना रहा था। गहराई में घुसने को तैयार- चल मालिनी, अब मैं तुझे पेलूँगा, आ जा मेरे लंड के नीचे. “उपिंदर, आज मेरी गांड मार लो!” “क्यों?” “मुझे पता नहीं था कि तुम मिलोगे, तो आज मैंने पिल नहीं खाई, कुछ गड़बड़ होने का खतरा हो सकता है.”
अंशु भी बिस्तर पे चढ़ गयी। “मालिनी, ध्यान से सुन, आज सुहागरात है और आज तू न नहीं करेगी। सुबह मैंने कामिनी को अपनी चूत चुसवाई थी और मेरे प्रेमी ने उसकी गांड मारी थी। और अब हम दूसरा प्रोग्राम करेंगे। तू मेरी गांड का स्वाद लेगी और अपने दूसरे दामाद से चुदवाएगी.”
और अंशु नंगी हो गयी, मेरी मम्मी के चेहरे पे बैठ गयी। उसके चूतड़ों ने मेरी माँ के गालों को दबोच लिया और गांड होठों से जुड़ गयी। हाथ झुका के उसने चुचियाँ दबानी शुरू की- उपिंदर नए रिश्ते के उद्घाटन करो। पेल दो लौड़ा इसकी भोसड़ी में!
उपिंदर ने अपना लौड़ा मेरी मम्मी की चूत में घुसा दिया और चुदाई शुरू हो गयी। दो तीन धक्कों में ही मम्मी भी मस्त हो गयी और मज़ा लेने लगी। उसकी जीभ अंशु के चूतड़ों के बीच में मचलने लगी। उपिंदर के धक्के तेज़ हो गए … घमासान चुदाई … और फिर उपिंदर ने मेरी मां के अंदर अपना बीज डाल दिया। सब पूरे प्रोग्राम से बहुत खुश थे।
इस तरह शादी और सुहागरात के बाद सब सो गए। उपिंदर और मम्मी एक कमरे में मैं और अंशु दूसरे में। बिस्तर पे लेटने के बाद मैंने अंशु से कहा- मम्मी ने पिल नहीं ली थी और उपिंदर ने चोद दिया। कुछ गड़बड़ हो गयी तो? “मेरी जांघों के बीच में मुंह लगा, बताती हूँ!” मैं चूत को प्यार करने लगी.
“गड़बड़ हो जाए … यही तो हम चाहते हैं.” “मतलब?” “उपिंदर का बड़ा मन है तेरी माँ को गर्भवती करने का!” “हाय राम!” “घबरा मत, एक बार वो प्रेग्नेंट हो जाए, फिर सफाई करवा देंगे.” “लेकिन बात फैल जाएगी.” “कुछ नहीं होगा। मेरा भाई है न राजेश, उसकी एक जान पहचान की लेडी डॉक्टर है.” “ठीक है.” फिर हम दोनों भी सो गए।
सुबह मुझे अंशु ने उठाया- इधर आ! मैं गयी, देखा कि मम्मी नंगी घोड़ी बनी हुई थी और उपिंदर दनादन चोद रहा था। “अब समझ गयी तू कि पूरी कोशिश है। मुझे पूरा भरोसा है कि रात में सोने से पहले भी तेरी मम्मी चुदी होगी!”
मम्मी के जाने का टाइम हो गया, उसने मुझे माथे पे चूमा, फिर बोली- अपने दामादों को कहाँ चूमूँ? अंशु बोली- जहाँ कल तूने प्यार नहीं किया था, वहाँ! “मैं समझी नहीं?” उपिंदर और अंशु दोनों ने अपने नीचे के कपड़े उतार दिए। मम्मी समझ गयी, उसने चूमा अंशु की चूत को और उपिंदर की गांड को।
फिर उपिंदर ने मेरी मम्मी को कस के बांहों में भरा और बोला- मालिनी, तुझे एक बार और चोदने का मन कर रहा है. मम्मी मुस्कुराई- अब अपनी बीवी की लेना! और उसके बाद मम्मी खुशी खुशी चली गयी.
अब मैं बहुत खुश रहती थी। लगता ही नहीं था कि मैं आदमी हूँ। औरतों के कपड़े पहनती थी, घर में रहती थी। वो डॉक्टर की दवाइयों से छाती के उभार पहले से अच्छे हो गए थे। अंशु से चुचियाँ दबवाती थी, उसकी चूत चूमती थी उसकी गांड को प्यार करती थी। उपिंदर का लण्ड चूसती थी उससे मरवाती थी। कई बार वो मेरे सामने अंशु को चोदता था। कभी अंशु को काम के सिलिसले में बाहर जाना होता था तो मैं उपिंदर के घर जा के रहती थी। उसकी भी तो मैं पत्नी थी आखिर।
घर से बाहर बहुत कम निकलती थी क्योंकि मुझे अब पैंट कमीज़ पहनना ज़रा अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन मैं नहा के आयी तो देखा कि अंशु फ़ोन पे बात कर रही थी- हाँ डॉक्टर, बहुत इम्प्रूवमेंट है। अब तो ए साइज कप की ब्रा फिट आने लगी है। हाँ दवाइयां रेगुलर हैं और अब वो दवाइयां लेता नहीं है. (वो मेरी तरफ देख के मुस्कुराई) दवाइयां लेती है। हाँ आज ही ले आती हूँ आप देख लीजिए और कोई दवाई बदलनी हो तो बता दीजिएगा.
“डॉक्टर आशा थीं। चल अभी चलते हैं उनके घर पे ही दिखा देंगे.” “ठीक है.” “क्या पहनेगी?” “अब बाहर जा रही हूँ तब तो …” “ऐसा कर टाइट टॉप और जीन्स पहन ले। कौन से सड़क पे घूमना है। गाड़ी में जाना है, आ जाना है.” “ठीक है.”
हम डॉक्टर आशा के घर पहुंचे। “आओ आओ अंशु, कैसी हो?” “जी, अच्छी हूँ.” “और ये अजय, इसका कुछ नाम रखा?” “हाँ, कामिनी!” “नाम अच्छा है। वैसे इसके उभारों में इम्प्रूवमेंट तो है। हॉर्मोनल दवाइयां सूट कर रही हैं.” “कामिनी खड़ी हो जा और खोल के दिखा अपनी!”
मैंने टॉप और ब्रा उतार दी। डॉक्टर सोफे पे बैठी हुई थी। उसने हाथ बढ़ा के मेरी चुचियाँ को सहलाया, दबाया- अभी थोड़ा स्कोप और है। यही दवाइयां चलने दे! मेरे निप्पल मसले- अच्छा लग रहा है? “जी हाँ!”
“चल अब नीचे का दिखा?” मैं जीन्स खोलने लगी। “बेवकूफ, पीछे घूम। मुझे तेरे चूतड़ों की शेप देखनी है” मैं घूमी और जीन्स और कच्छी उतार दी। आशा ने मेरे चूतड़ों को सहलाया- थोड़े थोड़े औरतों जैसे हो गए हैं इसके कूल्हे!
“कामिनी किसी का लण्ड लेती है?” “ज… ज… जी क्या?” “अरे किसी से गांड मरवाती है तू?” “ये शरमा रही है बताने में। उपिंदर इसे रगड़ता है। अगर आपके हस्बैंड को पसन्द हो तो उनके पास भेज दूं?” “नहीं वो गांड नहीं मारते, वो सिर्फ चूत के रसिया हैं। लेकिन…” “लेकिन क्या आशा जी?” “अंशु तू मेरे साथ आ” “डॉक्टर साहब, मैं कपड़े पहन लूँ?” “अभी नहीं … और हाँ वो कैबिनेट से शराब निकाल के 3 पेग बना। हम आते हैं.” वे दोनों दूसरे कमरे में चली गयीं।
लेकिन मुझे आवाज़ें आ रही थीं- अंशु मेरे पति तो नहीं पर मैं लूंगी इसकी! “आप? कैसे?” “इससे!” “ये तो बिल्कुल असली जैसा है.” “और ये ऐसे कमर पे बन्ध जाता है.” “फिर तो मज़ा आएगा। आशा जी आपके पास ऐसा और है.” “हाँ है। क्यों तू भी?” “हाँ दोनों चल के मज़े लेते हैं.”
मैं सस्पेंस में थी। क्या होने वाला है। थोड़ी देर में अंशु और डॉ आशा दोनों वापस आईं। दोनों के जिस्म पे सिर्फ कच्छी, चुचियाँ नंगी और कमर में स्ट्रैप ऑन डिल्डो बंधे हुए … सोफे पे मेरे अगल बगल बैठ गयीं।
हम शराब पीने लगे। वो दोनों मेरे बदन से खेलने लगी। दबाने मसलने लगी। दोनों ने बारी बारी मेरे होंठों को चूसा, अपने होठों का रस पिलाया। आशा जी बोली- कामिनी ले इसे चूस! मैं ज़मीन पे बैठ के नकली लौड़े को चूसने लगी। वो उपिंदर वाले असली लण्ड जैसा मज़ा तो नहीं था, फिर भी अच्छा लगा।
अंशु ने कहा- कामिनी पेग बना! मैंने दो बनाए, तीसरे में शराब डाली तो अंशु ने गिलास ले लिया। “आशा जी, आपकी दवाइयों से इसकी छातियाँ बनी हैं, थोड़ा अपना पवित्र जल भी दे दीजिये.” और गिलास जांघों के बीच लगाया। “नहीं अंशु मैं गिलास में नहीं … डायरेक्ट पिलाऊंगी। आ जा कामिनी!” और उसने अपनी पैंटी उतार दी।
मैंने डॉक्टर आशा की चूत पे मुंह लगाया और वो धीरे धीरे मूतने लगी। मैंने पूरा पिया। “अंशु तू भी इसकी प्यास बुझा दे!” “नहीं आशा, मैं यहाँ से जाने से पहले इसे नहला दूंगी.” “अंशु अभी इसकी प्यास बुझा दे, बाद में हम दोनों मिल के इसे नहला देंगे.” दोनों ज़ोर से हंसी। “आजा मेरी रानी लेट जा फर्श पे!” और फिर अंशु ने मेरे ऊपर बैठ के मुझे अपना नमकीन पानी पिलाया।
कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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