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मेरी देसी पोर्न कहानी के चौथे भाग में अब तक आपने पढ़ा कि मेरी पेंटी देने के बहाने मेरी सहेली के मामा मुझे एकांत में ले गए और मेरी चूत को सूंघने लगे. अब आगे:
मेरी सहेली के मामा ने अब मेरी कमर को पकड़कर अपनी हाथों से कस लिया और मेरी चुत पर जीभ नीचे से ऊपर की तरफ रगड़ रगड़ के चाटने लगे. मुझे कुछ नहीं समझ आ रहा था कि ये मेरे साथ क्या हो रहा था और वह क्यों ऐसा कर रहे हैं. मुझे पहले तो बहुत अजीब और गंदा लगा कि कोई मेरे नीचे चुत को चाट रहा है. आज पहली बार में ही दो बार मेरी चूत को दो अलग अलग मर्दों ने चाटा था. पहले झाड़ी के पीछे वह पटेल ने चाटा था और अब यह मामा भी वही कर रहे थे.
जब मामा मेरी चूत पर जीभ चलाने लगे, तब मुझे पता नहीं पूरे शरीर में क्या क्या अजीब सा लगने लगा और मैं बिल्कुल कांपने लगी. वह अपनी जीभ को मेरी चुत के अन्दर पूरी डाल दे रहे थे. वहीं पर जीभ को चलाते हुए रगड़ रहे थे. मैं बिल्कुल मदहोश, बेहोश या जो भी था हुए जा रही थी. अभी तो मुझे ये शब्द भी आ रहे हैं, उस वक्त तो मुझे कुछ पता भी नहीं था कि यह क्या हो रहा है.
आज लिखने में वह सब लिख पा रही हूं पर उस रात सच में मुझे कुछ नहीं पता था कि इसे क्या कहते हैं और यह क्या हो रहा है.
तभी वो मामा ने मेरी टांगों को और फैलाया और अपनी जीभ को पूरा अन्दर चुत में जैसे घुसा दिया. मेरे हाथ अपने आप मामा के बालों में चले गए. मैंने उनके सर के बालों को जोर से पकड़ लिया और अपने आप ही उनका सर और दबाने लगी.
तब मामा बोले- बंध्या, तू अब बहुत जवान हो गई है. तू मौका मिलने पर यह सब अभी किया कर … लड़कों या मर्दों को ये सब करने का मौका दिया कर … तभी तुझे असली मजा मिलेगा. चढ़ती जवानी में अलग ही नशा और मजा होता है. तू अपनी सहेलियों और भाभियों से सब पूछ लिया कर, इसमें डरने की कोई जरूरत नहीं है.
मैं उनकी बातें ध्यान से सुन रही थी, तभी मेरी चुत के अन्दर से कुछ रिसने लगा, रस सा आने लगा. उसे मामा बहुत जोर से चूसने लगे.
वे मेरी चूत से टपकते रस को चाटते हुए बोले- बंध्या तेरी चुत तो बह चली है, बहुत स्वादिष्ट मस्त रस आ रहा है. अब तू फुल चुदासी हो गई है, कहो तो लंड डाल दूं.
मैं कुछ नहीं बोली, तो मामा खड़े हो गए और कस के मुझे अपनी बांहों में भर लिया. उन्होंने अपने ज़िप को खोल कर अपना लंड बाहर निकाल कर मेरे हाथ में रख दिया. मैं बिल्कुल अकड़ रही थी, तो वे मुझसे बोले- बोल क्या करना है बंध्या? तुझे चुदवाना है तो बोल … वैसे तू जान ले, नहीं चुदवायेगी तो तू तड़पती रहेगी. तेरी यह तड़प सच में कोई लौड़ा घुसवाने से ही मिटेगी.
मैं मना करने की स्थिति में नहीं थी.
मैं बोली- मुझे कुछ नहीं पता मामा जी, जो आपको ठीक लगे वही करिए. तो मामा बोले- ठीक है थोड़ा-थोड़ा देखता हूं, पर अभी पूरी चुदाई नहीं हो सकती है. फिर तुझे कल दिन में मिलेंगे. हम यहीं गांव में बहन के यहां तेरे लिए रुक जाएंगे. मैं तो रुकूंगा या फिर गांव से आ जाऊंगा. सोनम से तुझे बुलवा लूंगा और सब जमा लूंगा. तू चिंता नहीं करना, तेरी प्यास बुझा दूंगा.
अब मामा अपने लंड को खड़े खड़े ही मेरी चुत के आस पास रगड़ने लगे. मेरे अन्दर जो चल रहा था, उसे बता नहीं सकती. मेरा पूरा बदन टूट रहा था. मुझे कुछ होश नहीं रहा. यह पहला इस तरह का एहसास था, मुझे अपने आप ही लगने लगा कि मामा बस कुछ कर दें, मेरी यह तड़प मिटा दें और मुझे छोड़ें नहीं, बस ऐसे ही बांहों में कसे रहें. जो अन्दर बेचैनी है, यह सब शांत हो जाए.
तभी मामा ने मुझे बहुत जोर से अपनी बांहों में कसके दीवार में पीछे चिपका दिया और अपने हाथ से अपने लंड को पकड़ कर मुझसे बोले- बंध्या तू अब कुछ मत कहना … मेरे पास कोई कंडोम भी नहीं है … पर अब बर्दाश्त नहीं हो रहा … मैं क्या करूं. तुझसे भी नहीं रहा जा रहा. मैं तेरी हालत समझ रहा हूं.
इतना कहके मामा ने अपने एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर दूसरे से मेरी चुत में हाथ लगाया. मैंने एकदम से उन्हें अपने बांहों में कस लिया. पहली बार मैंने उन्हें बांहों में जकड़ा और पकड़ा या यूं कहिये कि किसी भी मर्द को पहली बार मैंने बांहों में लिया. वह भी तब जब मैं मजबूर हो गई थी.
जैसे ही मैंने मामा को बांहों में कसा, मामा बोले- बंध्या, तू तो चुदवाने को एकदम पागल हो रही है … तू अब चिंता नहीं करना, मैं सब इंतजाम कर दूंगा. पर अभी बिना कंडोम के तुझे चोदना पड़ेगा. मैं टेबलेट लाकर दे दूंगा, बता चोद दूं … चुदना तेरा जरूरी है. नहीं तो तू ऐसे ही तड़पती रहेगी. पहली बार अपने आप से मेरे मुँह से निकल गया- हां मामा कर दो घुसा दो. यह कहके मैंने उन्हें कसके अपनी बांहों में लिपटा लिया. मैंने भाभियों और सहेलियों से सुना था, वही मन में आ गया कि अब मामा मुझे चोदेंगे.
मैंने मामा को जैसे ही कहा कि कर दो … घुसा दो. इतना सुनते ही मामा ने कहा कि मान गया बंध्या कि तू बहुत सेक्सी लड़की है … बहुत चुदक्कड़ है. मैंने बहुत सुना है इस तेरे गांव के बारे में कि यहां की लड़कियां बहुत चुदक्कड़ और सेक्सी गर्म होती हैं. आज तुझे देख कर यकीन भी हो गया. अब देख तुझे कैसे मस्त चोदता हूं.
मामा का इतना कहना हुआ कि तभी उस जगह पर कोई बुड्ढा सा आदमी अचानक अन्दर आ गया. बुड्ढा जैसे ही आया, हमें उसके आने का पता हो गया. उसके अन्दर आते ही एकदम मामा जल्दी मुझे छोड़ कर दूर खड़े हो गए. वहां पर अंधेरा था और हम दोनों कोने में थे, तो वह नहीं देख पाया. जल्दी-जल्दी मामा ने अपना पैंट ठीक किया. मैंने जल्दी-जल्दी सलवार ऊपर करके नाड़ा बांधा और कुर्ते को नीचे किया.
तभी मामा बोले- कौन हो तुम? वह बोला- पंडित जी का लगुआ हूं … मवेशियों को भूसा डालने आया हूं. मवेशियों की देख रेख मैं ही करता हूं.
वह भी गांव की देहाती भाषा में बोला, तो मामा बोले- अच्छा अच्छा भूसा डाल दे, यह मेरी बेटी है, मेरी लड़की है, गुस्सा होकर इधर आ गई थी. इसके नये कपड़े नहीं ला पाया, सो गुस्सा होकर इधर आ गई, तो इसी को मना रहा था.
तब वह जो बुजुर्ग सा लगुआ जो मवेशियों की भूसा डालने आया था, बोला- बेटी, पापा तुझे तुम्हें आज कपड़े ला देंगे, नाराज नहीं होना और इधर क्यों आ गई … कोई बैल गाय सींग मार देते तो या कोई सांप बिच्छू भी यहां आ जाते हैं. ऐसी जगहों पर नहीं आना चाहिए. इतना उसने कहा, मैं बाहर तरफ आ गई और मेरे थोड़ी देर बाद मामा भी निकले. मैं फिर से वहीं आंगन में जहां शादी चल रही थी, जाकर बैठ गई.
थोड़ी देर में वह आशीष फिर से मेरे पास चाय लेकर आ गया. चाय देते हुए बोला- बंध्या तुम कहां चली जाती हो, मैं इधर उधर देखता रहा. मैं बोली- कहीं नहीं, यहीं अन्दर थी. तुम दिखे ही नहीं.
मैंने उससे झूठ बोला, तभी मेरी सहेली सोनम आ गई और मुझसे बोली- चल यार मेरे साथ … मैंने जीजा के जूते चुराए हैं. उधर अब शादी की अंतिम रस्म हो रही थी. कोई 15 से 20 मिनट बाद शादी पूरी सम्पूर्ण हो गई थी. सब उठ कर चले गए मैं भी सोनम के साथ चली गई.
सोनम से मैंने कहा- तुम अब मेरे को कब मिलोगी? तो उसने कहा- दोपहर में घर आ जाना. मैं दीदी की विदा के बाद वहीं चली आऊंगी. यहां तो दादा के यहां से शादी हुई है, वहां गांव में जगह नहीं थी. मैं बोली- ठीक है … मैं भी विदा होते चली जाऊंगी. फिर दोपहर बाद तुम्हारे पास आऊंगी. उसने कहा- ठीक है … आना वहीं घर में, साथ में खाना खाएंगे. मैं बोली- ठीक है.
फिर वहीं आशीष मेरे को ढूंढते हुए आया और बोला- तुम अब कहां मुझे दिखोगी? मैं बोली- पता नहीं. पर मैंने उससे बोल दिया- मैं तो कहीं नहीं दिखूंगी, तुम घर आ सकते हो. इसके बाद मेरे अन्दर आशीष के लिए बिल्कुल अलग सी फीलिंग होने लगी.
थोड़ी देर बाद 9 बजे सुबह सोनम की दीदी की विदाई हो गई और मैं अपने घर चली आई. घर आते से ही मुझे सिर्फ वह सब याद आ रहा था, जो रात में मेरे साथ झाड़ी के पीछे उन दो पटेलों ने किया और उसके बाद सार में मामा ने किया. वही सब दिमाग में चलने लगा. फिर मुझे आशीष का वह एकटक देखना, उससे मेरा आंख लड़ाना, सब याद आ रहा था.
करीब शाम को 4 बजे मुझसे रहा नहीं गया. मेरे दिमाग में यही था कि कैसे भी मुझे आशीष दिख जाए. यह सब अपने आप हो रहा था.
मैं सोनम के घर पहुंच गई. उधर मैं और सोनम बैठे ऐसे ही बातें कर रही थीं कि वहां अन्दर से आशीष निकल आया. मैं और सोनम चारपाई पर बैठे थे, तभी आशीष सामने खड़ा हो गया, तो सोनम बोली- यह मेरे भैया हैं, मेरी बुआ के बेटे हैं. मैंने कल बताया था न! फिर वो आशीष से बोली- भैया, यह मेरी फ्रेंड बंध्या है, हम दोनों साथ रहते हैं एक ही क्लास में पढ़ते हैं. यह वहां शादी में भी पूरे टाइम थी. तब आशीष ने बोला- हां मैंने तेरी फ्रैंड को खूब चाय पिलाई, खाना खिलाया, स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ी.
तभी अन्दर से सोनम की मम्मी ने आवाज दी, तो सोनम अन्दर अपने आंगन में गई और आशीष को बोली- आप दोनों बात करो भैया, मैं आई.
सोनम के जाते ही आशीष बोला- मैं यहां से अब एक दो दिन में अपने गांव चला जाऊंगा, पर तुम्हें नहीं भूल पाऊंगा. तुम बहुत अच्छी हो. तुम्हें मैं कैसा लगा? मैंने मुस्कुराकर आंखें नीचे कर लीं तो उसने बोला- जवाब दो … मुझे सिर्फ तुम ही तुम दिख रही हो. मुझे आशीष की हर बात बहुत अच्छी लगी.
तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोला कि इधर देखो मेरी तरफ. मैं फिर चला जाऊंगा. मैंने जैसे ही देखा तो उसने मुझे ‘आई लव यू बंध्या …’ बोला. मैं हाथ छुड़ाकर हंसकर भाग गई और उसके बाद सोनम के साथ ही रही. आशीष मेरे आगे पीछे घूम रहा था.
फिर मैं अपने घर चली गई. रात में सिर्फ आशीष को ही सोचती रही और अन्दर ही अन्दर उसे पसंद करने लगी. वो मुझे बहुत अच्छा लगने लगा.
अगले दिन मैं स्कूल से आई, तो नहा कर सोनम के घर पहुंच गई. वहां पहुंची, तो इधर उधर देखने लगी. तब सोनम ने पूछा- क्या ढूंढ रही हो? मैं बोली- कुछ भी तो नहीं.
पर मैं आशीष को देख रही थी, तभी आशीष बाहर से आया और आते ही बस जहां हम लोग बैठे, वहीं आ गया और बैठ गया. हम साथ में उसके गोटी और चंदा का खेल खेलने लगे. खेलते समय वह बीच बीच में मेरा हाथ दबा देता और फिर मुझे चुपके से छू लेता. वह मुझे इतना अच्छा लगने लगा कि मैं बता नहीं सकती.
इस सारी हरकत को सोनम देखने लगी और उसकी मम्मी भी जब भी आएं, तो मुझे आशीष को हंसते बात करते देखें, तो शायद उन्हें भी शक हो गया था.
सोनम ने मुझसे पूछा- तुम्हें आशीष भैया बहुत पसंद हैं क्या? मैं उनसे तो पूछ नहीं सकती, तुम ही बता दो … तो मैं आगे चलकर तुम्हें अपनी भाभी बनवा दूंगी. इस बात पर मैंने सोनम को गले से लगा लिया और उसे अपने दिल की बात बता दी. मैं बोली- हां सोनम मैं आशीष को प्यार करने लगी हूं. मुझे वह बहुत पसंद है. मैं अभी उससे कुछ बोल नहीं पाई. तो उसने कहा- तू सब बता दे, उसने तुझे कहा? मैं बोली- हां उसने मुझे आई लव यू बोल दिया. तो सोनम ने भी मुझे गले लगा लिया और बोली- तब तो अब मैं तुझे भाभी बोलूंगी. मैंने उसे चिकलोटी काट कर बोला- हट!
पर मैं अन्दर से बहुत खुश हुई. वह मेरा साथ देने लगी. इस तरह से तीन चार दिन गुजर गए. मैं उसके साथ पूरा दिन गुजार देती. मेरी मम्मी मुझे डांटने लगीं कि तू सारा दिन सोनम के यहां रहती है, ना घर में कोई काम करती और ना पढ़ाई कर रही है. मैं बोली- वहां पढ़ने ही तो जाती हूं. पर सच बताऊं तो अब मैंने किताब छूना बंद ही कर दिया था. मेरा पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था. बस सारा दिन आशीष मेरे सामने रहे और मैं उसके पास रहूं, यही मेरी इच्छा रहती थी.
मेरे पहले प्यार की सच्ची कहानी को अपना प्यार जरूर दीजियेगा. मुझे आपकी मेल का इन्तजार रहेगा. [email protected] कहानी जारी है.
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