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मैंने स्नेहा का चेहरा पकड़ा और चेहरा घुमाकर सीधा उसके होठों पर किस कर दिया और कसकर पकड़े रहा। स्नेहा आंखें खोलकर देख रही थी अब और उसकी साँसें अटक रही थी तब मैंने उसे छोड़ा। मगर इतना करने पर भी उसने कोई विरोध नहीं किया था। स्नेहा हांफ रही थी और बोली- मुझे लगा था गाल पर किस करोगे पर आपने तो … सांस रुक गई थी मेरी! बस अब चलो।
मैं पार्किंग से बाइक निकाल कर मॉल से बाहर निकला जहां स्नेहा खड़ी थी अपना चेहरा छुपाकर। उसे बिठाया और होस्टल से कुछ दूरी में छोड़कर घर लौट गया।
शाम को उसने बताया कि उसे किस ठीक लगा मगर वो उसके लिए तैयार नहीं थी। मैं- अब पता नहीं कब मौका मिलता। आज मिला था इसलिए होंठों में किस किया था। वो सब छोड़ो, ये बताओ कि अब कब मिलोगी? स्नेहा- रोज़ मिलो मॉल में, मैं आ जाऊंगी। मैं- रोज़ तो नहीं, जब आऊंगा तब बता दूंगा। तुम आ सकोगी तो आ जाना।
अब स्नेहा कभी-कभी क्लास बंक करके मुझसे मिलने लगी। और हम एक दूसरे के जिस्म को छूने लगे थे जब भी मौका मिलता। फिर एक दिन हमने फ़िल्म देखने का प्लान बनाया और फ़िल्म देखने गए। हॉल में ज़्यादा लोग नहीं थे, फ़िल्म थोड़ी पुरानी हो गयी थी, 5-6 कपल्स ही थे। हमें भी कौन सा फ़िल्म देखनी था। बस एक दूसरे को आज खुश करना था। मैंने सोच लिया था कि आज स्नेहा को इतना तो खोल ही दूंगा कि फिर चुदने की चाहत हो उसकी।
मैंने टिकट्स भी उसी वक़्त मोबाइल में एक एप्प से बुक किया था जिस जगह सीट्स खाली मिले। मैंने सबसे ऊपरी वाली जगह कार्नर के 2 टिकट बुक किये थे। स्नेहा भी आज ज़्यादा खुश दिख रही थी।
फ़िल्म शुरू हुई तो मैंने स्नेहा के सिर से हाथ ले जाकर उसके एक बूब्स पर हाथ रख दिए और उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रख लिया था जिससे मुझे आसानी हो। मैंने उसके बूब्स धीरे धीरे पहले सहलाए फिर दबाने लगा। स्नेहा ने भी अपना हाथ मेरी जांघों पर रखा और नोचने लगी। फिर मैंने स्नेहा को थोड़ा सीट में पीठ के बल नीचे खिसकाया और उसकी यूनिफार्म का टॉप ऊपर करके और ब्रा को बूब्स से नीचे करके अपने होंठों से चूसने लगा।
जैसे ही मेरे होंठ उसके निप्पल्स को लगे, उसके मुंह से हल्की सी और बड़ी कामुक सिसकारी निकली ‘उहह हहह’। दस मिनट ऐसे ही में उसके एक बूब को चूसता रहा और दूसरे को सिर्फ दबा पा रहा था। अब मैंने स्नेहा का टॉप नीचे किया और उठकर सीट अदला-बदली के लिए बोला जिससे स्नेहा समझ गई। सीट बदली करते ही वो नीचे खिसकी और मुस्कुराई। और मैंने भी देर न करते हुए उसका टॉप उठाया और उसके दूसरे बूब्स को भी चूसने लगा। इस बार भी स्नेहा वेसे ही सिसकी जिस तरह जब मैंने उसके पहले बूब्स के निप्पल को अपने होंठों में दबाया था।
मैंने दोनों को अच्छे से चूसा और मसला और दूसरे बूब्स को मुँह से निकालने से पहले अपने होंठों में दबाकर खींचा जिससे थोड़ा दर्द के मारे स्नेहा का बदन ऊपर को हुआ और मेरे सिर को अपने बूब्स से हटाया और मुझे घूरके अपने बूब्स को सहलाने लगी और धीरे से बोली- दर्द होता है।
फ़िल्म थी ‘जलेबी’ और जिसने भी फ़िल्म देखी होगी तो उसके बोल्ड सीन्स भी देखे होंगे। बूब्स चुसाई के बाद हम फ़िल्म देखने लगे। अब उसी बोल्ड सीन को देखकर मुझे फिर सेक्स चढ़ी और स्नेहा का हाथ पकड़कर अपने पैन्ट के अंदर डालने लगा तो स्नेहा हाथ झटककर बोली- क्या कर रहे हो? मैं- कोई तुम्हारे लिए तरस रहा है बस उससे मिलवा रहा हूं। स्नेहा- तो थोड़ा तरसने दो उसे, सब आज ही करने का इरादा है क्या? हम धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे।
मेरे काफी बोलने के बाद भी जब वो नहीं मानी तो मैं नाराज़ होने का नाटक करने लगा तो स्नेहा खड़े लंड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ के दबाने लगी। मैंने फिर ‘प्लीज’ बोला तो उसने इशारा करते हुए पैंट का बटन खोलने के लिए बोला जिससे वो अपना हाथ अंदर ले जा सके। मैंने पैंट का बटन खोला। स्नेहा ने अपना हाथ अंदर किया। स्नेहा के लंड को छूते ही मेरा लंड और अकड़ा जिसे स्नेहा ने अपने हाथमें पकड़ा और दबाने लगी। उसके पकड़ने से ही मुझे लग गया कि मेरा लंड उसके हाथमें फिट नहीं आ रहा। मेरा लंड उसके हाथमें झटके मार रहा था जिससे स्नेहा समझ गई और लंड को हिलाने और दबाने लगी थी। उसके लंड को दबाने पर मेरी आँखें आनंद से बंद हो रही थी। जैसे ही इंटरवल हुआ, स्नेहा ने अपना हाथ पैंट से निकाल लिया और मैंने आँखें खोली।
तब स्नेहा बोली- खुश? मैंने धीरे से डायलाग मारा- पिक्चर अभी बाकी है मेरी प्यारी स्नेहा। और उसके गाल खींच दिए। मैंने पूछा- टॉयलेट जाना है तो हो आओ। तो स्नेहा बोली- मैं अकेले नहीं जाऊंगी। तुम भी साथ चलो।
तो हम दोनों हॉल से निकले और टॉयलेट की तरफ गए और स्नेहा गर्ल्स टॉयलेट में गई और मैं बॉयज टॉयलेट में घुसकर बाथरूम गया और कुंडी लगा दी। अब टॉयलेट करके अपने लंड को अच्छे से पानी से धोया और अपने जैकेट से पॉकेट परफ्यूम लेकर थोड़ा लगा दिया। बाहर निकला तो स्नेहा खड़ी थी। फिर हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ते हुए अंदर गए और अपनी सीट में आकर बैठे।
मूवी शुरू हुई और मैं भी। मैंने स्नेहा के कान में बोला- अपनी सलवार खोलोगी? मेरे बोलने की देर थी बस, उसने अपनी सलवार में हाथ डाला और नाड़ा खोल दिया और अपनी पॉकेट से पैंटी निकाल कर मुझे दे दी और मुस्कुराई। मैंने यह उम्मीद नहीं की थी। अब हाल में सेक्स तो हो नहीं सकता था तो मैंने उसकी सलवार में हाथ डाला तो हल्के रोये थे चूत के ऊपर मगर चूत की दरार बिल्कुल साफ और चिकना महसूस हुआ मुझे और ठंडक से मुझे लग गया कि टॉयलेट में धोयी हुई है।
मैंने स्नेहा की चूत को छुआ और छूते ही स्नेहा ने अपने होंठ दबा दिए। पहले तो मैंने चूत की दरार को हल्के हल्के सहलाया फिर चूत की क्लिट को छुआ और अपनी बीच की उंगली को थोड़ा अंदर दबाया। अभी मेरा हाथ ज़रा सा भी अंदर नहीं घुसा था कि स्नेहा ने मेरे हाथ को पकड़ा और अपने होंठों को दबाते हुए इशारे से मना करने लगी। मैंने मान लिया मगर अपना हाथ नहीं हटाया चूत से।
अब मेरा एक हाथ स्नेहा की चूत को सहला रहा था और दूसरे हाथ में स्नेहा की पैंटी को लेकर सूँघा। पैंटी थोड़ी नेट जैसी थी साइड से और चूत को पूरा छुपाने लायक थी मगर पीछे से गांड को पूरा ढकने लायक नहीं थी। पैंटी से बहुत ही अच्छी महक आ रही थी जो मुझे और ज़्यादा मदहोश कर रही थी। अब एक तरफ स्नेहा की चूत और दूसरी तरफ उसकी पैंटी की खुशबू मुझे जन्नत जैसी महसूस होने लगी। स्नेहा मूझे पैंटी सूँघते हुए देख रही थी।
अब मैंने पैंटी अपने जेब में रखी और चूत से हाथ हटाया और स्नेहा को बोला- कोई देख तो रहा नहीं है, तो सलवार नीचे कर लो और थोड़ी नीचे होकर अपने पैर फैला लो। स्नेहा ने वैसा ही किया। मैं सीट से उठे बिना सीट से नीचे उतर गया और स्नेहा को सीट का रेक्लाइनर सीधा करने के लिए बोला और खुद को स्नेहा की सीट के नीचे एडजस्ट किया और अब स्नेहा की चूत मेरे सामने थी। मैंने स्नेहा को अपनी नज़र फ़िल्म में रखने के लिए बोला।
पहले तो मैंने चूत में हल्की सी फूंक मारी जिससे स्नेहा को अच्छा लगा और मुस्कुराई। फिर मैंने चूत को सूँघा। जितना सोचा था उतनी ज़्यादा अच्छी सुगन्ध तो नहीं थी मगर धोने से अच्छी लगी। मैंने चूत को चूम लिया तो स्नेहा के चेहरे में आनंद साफ झलक रहा था। मैंने अपनी जीभ से चूत की दरार को अच्छे से सहलाया और क्लिट को मुँह में लेकर क्लिट को ही चाटने लगा। अगर क्लिट को दबाता तो स्नेहा की ‘आह’ निकल जाती और किसी के सुनने का भी डर था। मगर क्लिट को चूसना भी स्नेहा से कंट्रोल नहीं हो रहा था और उसकी आँखें बंद थी और जीभ को दबाये मेरे बालों को सहला रही थीं। मुझे उसके चेहरे में आनंद के भाव और मदहोशी अच्छी लग रही थी और ये भाव उसकी सुंदरता को और मस्त बना रहे थे। मुझे वैसे भी सेक्स करते वक़्त लड़कियों के चेहरे के भाव देखना ज़्यादा अच्छा लगता है जिससे पता भी लगता है कि लड़की कैसा फील कर रही है और यही फीलिंग आपको सेक्स में ज़्यादा ज़ोर देने के लिए प्रेरित भी करते हैँ, कभी ध्यान दीजिएगा।
मैंने अब भी चूत और क्लिट को चाटना और चूसना छोड़ा नहीं था जिसे सह पाना अब स्नेहा के कंट्रोल के बाहर था। स्नेहा धीरे से मुझसे बोली- प्लीज उठ जाओ, मुझे टॉयलेट आ रहा है। मैंने उसे तड़पाने के लिए बोला- थोड़ी देर और! मैं समझ रहा था कि अब स्नेहा से कंट्रोल नहीं होगा। स्नेहा ने सिर हिला कर ‘ना’ कहा तो मैं धीरे से उठा और अपनी सीट पर बैठ गया। स्नेहा- बैठ क्या गए, मेरे साथ टॉयलेट चलो। बोलकर मेरा हाथ पकड़कर चली और टॉयलेट करके आयी और फिर हम अपनी सीट पर आकर बैठे।
स्नेहा अपने हाथों में मेरा एक हाथ लेकर बैठ गयी और उसे बीच बीच में चूमने लगी। खुशी उसके चेहरे पर झलक रही थी। इससे ज़्यादा हमने वहां कुछ नहीं किया. फ़िल्म देखकर निकले और बाहर आकर हम मॉल में बैठे तो मैंने स्नेहा को ‘थैंक्स’ बोला। उसने पूछा- किसलिए? मैंने कहा- अपनी पैंटी मुझे देने के लिए। वैसे मैंने इतना नहीं सोचा था। स्नेहा- टॉयलेट में मुझे लग गया था कि तुम अब ऐसे तो छोड़ोगे नहीं तो तुम्हारे लिए ही वो किया था। मुझे पता था कि अगला टारगेट वही होगा तुम्हारा। मैं- अच्छा, तुम्हें मज़ा नहीं आया, जो कुछ मैंने किया? स्नेहा- आपको क्या लगता है? मैं- मुझे लगता नहीं, पता है कि तुमने पूरा मज़ा लिया उसका। स्नेहा मुस्कुराई और बोली- बड़ा पता है आपको?
मैं- वैसे मुझे एक बात तुम में बहुत अच्छी लगी। तुम्हारे वो जगह बिल्कुल क्लीन और सॉफ्ट है। छूकर लगा मुझे। स्नेहा- मुझे वहां बाल पसंद नहीं हैं। पीरियड्स के वक़्त भी प्रॉब्लम होती है तो मैं बड़े होने नहीं देती। मैं- गुड गर्ल! और अपनी जीभ होंठों में फिराते हुए बोला- अब भी वहां का टेस्ट आ रहा है। स्नेहा मुस्कुराती हुई- छीः चलें अब? गंदे बच्चे! और हम मॉल से निकले और मैंने स्नेहा को ड्राप किया और आफिस गया, मुँह धोया, थोड़ा काम किया और घर लौट गया।
कहानी जारी रहेगी. [email protected]
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