वासना का मस्त खेल-12

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अब तक इस मस्त मस्त कहानी में आपने पढ़ा कि सुलेखा भाभी अपने शरीर को‌ कड़ा सा करके मेरे लंड को अपनी चुत के मुँह पर लगाकर झटके से मेरे खड़े लंड पर बैठ गईं. जिससे उनकी चीख निकल गई. अब आगे …

मेरे लंड को अपनी चुत से खाने के बाद सुलेखा भाभी ने एक बार फिर अब मेरी तरफ डबडबाई सी नजरों से देखा. शायद मेरे इतने बड़े लंड को एक बार में ही अपनी चुत में लेने से सुलेखा भाभी को पीड़ा हुई थी, मगर वो सारा दर्द पी गईं और खुद ही मेरे दोनों हाथों को पकड़कर अपनी चूचियों पर रखवा लिया.

मैंने भी अब उनकी दोनों चूचियों को अपने हाथों में थामकर उन्हें जोर से मसल दिया, जिससे सुलेखा भाभी के मुँह से फिर से एक तीव्र आवाज निकल गई ‘इईईई … श्श्शशश … आआ ह्ह्ह्ह्ह …’ उनकी मीठी सीत्कार सी फूट पड़ी.

मेरे हाथों में अपनी चूचियां थमाकर भाभी ने अब खुद मेरे सीने पर हाथ रख लिए और धीरे धीरे अपनी कमर को आगे पीछे हिलाकर धक्के लगाने शुरू कर दिए. जिससे मेरा लंड अब उनकी चुत की गीली दीवारों पर घिसने लगा और सुलेखा भाभी के साथ साथ मेरे बदन में भी आनन्द की लहरें उठने लगीं.

सुलेखा भाभी को देखकर मुझे प्रिया की याद आ गयी. प्रिया ने भी तो उस दिन मेरे साथ ऐसे ही तो किया था, जरूर उसने ये सब शायद कभी ना कभी भाभी को ही देखकर सीखा था.

धीरे धीरे भाभी की कमर की हरकत अब तेज‌ होने‌ लगी थी, इसलिए मैंने भी‌‌ अब उनकी चूचियों को जोरों से मसलना शुरू‌ कर‌ दिया. इससे‌ भाभी के मुँह से अब मादक सिसकारियां फूटना‌ शुरू हो गईं. भाभी ने अपनी आंखें बन्द कर रखी थीं. मगर उनके चेहरे के भाव अब लगातार बदल रहे थे. वे मजे से मेरे लंड को अपनी चुत से खाते हुए अपने खुद के होंठों को ही काट रही थीं.

उनकी मादक अदा देख कर मुझसे भी रहा नहीं गया, मैंने उठकर उनके होंठों को चूमने की कोशिश की, मगर सुलेखा भाभी ने मुझे धकेलकर फिर से बिस्तर पर गिरा दिया और दोनों‌ हाथों से मेरी टी-शर्ट को पकड़ कर उसे ऊपर खींचने लगीं. मैंने भी उठकर उनका सहयोग किया और अपनी टी-शर्ट को पूरा ही निकालकर एक बाजू रख दिया.

मुझे ऊपर से नंगा करके सुलेखा भाभी अब मुझ पर लेट गईं और अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को मेरे नंगे सीने पर रगड़ते हुए जोरों से धक्के लगाने शुरू कर दिए.

मैं तो जैसे अब पागल ही हो गया था क्योंकि नीचे से तो सुलेखा भाभी की गर्म गर्म चुत मेरे लंड की मालिश कर रही थी और ऊपर से भी उनकी बड़ी बड़ी और भरी हुई चूचियां मेरे सीने को गुदगुदाने लगी थीं. आनन्द से मेरे दोनों हाथ अब अपने आप ही सुलेखा भाभी की पीठ पर से रेंगते हुए उनके बड़े बड़े और गोलाकार नितम्बों पर आ गए. मैंने अपने दोनों हाथों से उनके नितम्बों को पकड़ लिया और उनको प्यार सहलाते हुए सुलेखा भाभी को आगे पीछे हिलाने में उनका सहयोग करने लगा जिससे सुलेखा भाभी की कमर की‌ हरकत अब और भी तेज हो गयी.

मेरे ऊपर लेटकर धक्के लगाने से भाभी के होंठ, तो कभी गाल अब बार बार मेरे होंठों को छू रहे थे. मुझसे रहा नहीं गया इसलिए मैंने अपने दोनों हाथों से उनकी‌ गर्दन‌ को‌ पकड़कर उनके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसने लगा. मगर इससे सुलेखा भाभी के धक्के कुछ धीमे हो गए.

अब ये बात शायद सुलेखा भाभी को मंजूर नहीं हुई, इसलिए भाभी ने मेरे होंठों को अब एक बार तो जोर से चूमा. वे मेरे होंठों को छोड़कर फिर से ऊपर अपने हाथों के बल हो गईं और जोरों से धक्के लगाने लगीं. मेरे हाथ भी अब फिर से भाभी के नितम्बों पर आ गए, मगर इस बार मेरे‌ हाथों की उंगलियां फिसलती हुईं उनके नितम्बों की गहराई में घुस गयी थी‌. इसलिए मैंने अब अपनी एक उंगली से उनके गुदाद्वार को सहलाना शुरू कर दिया.

अब तो सुलेखा भाभी जैसे पागल ही हो गईं. उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे कंधों को पकड़ लिया- इईईई … श्श्शशश … आआ ह्ह्ह्हहह … उम्म्ह… अहह… हय… याह… इईईई … श्श्शशश … आआह्ह हह …’ की सिसकारियां भरते हुए अपनी चुत की गीली दीवारों को वो अब जोरों से मेरे लंड पर घिसने लगीं.

सुलेखा भाभी को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं उन्हें चोद रहा हूँ बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे कि भाभी मुझे चोद रही हों. भाभी चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आई थीं और सांसें भी उखड़ गयी थीं. मगर फिर भी वो ऐसे ही जोरों से अपनी चुत को मेरे लंड पर घिसते हुए धक्के लगाती रहीं जिससे कुछ ही देर बाद अचानक से‌ उनके‌ हाथ मेरे कंधों पर कस गए और उनकी सिसकारियां मदमस्त कराहों में बदल गईं. उनकी‌ दोनों जांघें जोरों से मुझ पर कस गईं और ‘आह्ह् … ईश्श आह्ह् … ईश्श … आआह्ह् … ईश्श … आआआह्ह …’ की आवाजें निकालते हुए वो अपनी चुत से गाढ़े गाढ़े सफेद रस को मेरे लंड पर उगलने लगीं, जोकि मेरे लंड के‌ सहारे बहते मेरे‌ कूल्हों तक‌ पहुंचने लगा.

अपनी चुत के रस से मेरे लंड को‌ नहलाने के बाद सुलेखा भाभी निढाल‌ सी होकर अब मेरे ऊपर ही‌ लेट गईं और लम्बी लम्बी सांसें लेने लगीं.

सुलेखा भाभी का तो रस स्खलित हो गया था जिससे‌ वो‌ अब शिथिल पड़ गयी थीं. मगर मेरे अन्दर का ज्वार तो अभी भी जोर मार रहा था.‌ मुझे पता था कि स्खलित के‌ बाद भाभी तो अब कुछ करने‌ से रहीं, इसलिए मैंने‌ अब खुद ही कमान‌ सम्भाल‌ ली.

मैंने पहले तो अब अपने‌ दोनों हाथों से भाभी के नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाकर उनकी चुत और मेरे लंड के बीच फासला बना लिया और फिर नीचे अपनी कमर को उचका उचका कर ताबड़तोड़ धक्के‌ लगाने शुरू कर दिए. इससे भाभी की ‘आआ … अह्ह्ह … उऊऊ … अह्ह्ह्ह …’ की कराहों के साथ साथ अब जोरों से ‘फाट् ट् … फाट् ट …’ की आवाजें भी निकलना शुरू हो गईं.

सुलेखा भाभी मेरे ऊपर निढाल होकर ढेर हो गयी थीं, मगर मेरे धक्के लगाने से वो अब फिर से कराहने‌ लगी थीं. क्योंकि मेरा मूसल लंड अब उनकी चुत के परखच्चे उड़ा रहा था. कुछ देर तो भाभी अब ऐसे ही कराहती रहीं, मगर फिर धीरे धीरे उनकी‌ कराहें सिसकारियों में बदल गईं और उनकी चुत में अब फिर से संकुचन सा होना शुरू हो गया.

शायद सुलेखा‌ भाभी फिर से उत्तेजित होने लगी थीं इसलिए उनकी सांसें भी अब गहरी हो गयी थीं.

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि सुलेखा भाभी इतनी जल्दी कैसे गर्म हो गयी थीं. इसलिए अपनी तसल्ली के लिए मैंने अब धक्के लगाने बन्द कर दिए. जिससे भाभी ने मुझे अब एक‌ बार तो घूर कर देखा और फिर ये क्या … भाभी अब खुद ही फिर से अपनी कमर को चलाने लगीं. शायद भाभी की ये प्यास ही थी, जिसने इतनी जल्दी उन्हें अब फिर से उत्तेजित कर दिया था.

सुलेखा भाभी ने अब कुछ देर‌ तो धक्के तो‌ लगाये और फिर मुझे‌ बांहों‌ में भरकर वो‌ फिर से‌ पलट गईं,‌ जिससे एक‌ बार फिर अब भाभी मेरे नीचे आ गईं और मैं उनके‌ ऊपर चढ़ गया. इस उल्टा पल्टी में मेरा लंड सुलेखा भाभी की चुत से बाहर निकल गया था मगर मुझे अपने‌ ऊपर खींचकर भाभी ने अब पहले तो अपनी दोनों‌ जांघों के‌ बीच दबा लिया और फिर खुद ही अपने एक‌ हाथ से मेरे लंड को पकड़कर अपनी चुत के मुँह पर लगा लिया. मैंने भी अब जोर से धक्का लगाकर एक ही झटके ने अपने‌ लंड को‌ उनकी चुत की गहराई तक उतार दिया, जिससे एक बार तो भाभी ‘आआआह्ह् … उऊऊच्च्च् …’ कहकर जोरों से कराह उठीं, मगर साथ ही उन्होंने इनाम के तौर पर दोनों हाथों से मेरे सिर को‌ पकड़ कर बड़े ही प्यार से मेरे गालों पर एक चुम्मा भी दे दिया.

मैंने भी अब फिर से धक्के लगा‌कर अपने‌ लंड को‌ सुलेखा‌ भाभी‌ की चुत के अन्दर बाहर करना‌ शुरू कर दिया, जिससे अब फिर से भाभी के मुँह से‌ सिसकारियां फूटनी शुरू हो गईं.

सुलेखा भाभी की उत्तेजना तो जोर मार रही थी … मगर शायद वो थकी हुई थी. क्योंकि उनका एक बार स्खलित हो‌ चुका था और इसके लिए जो‌ भी मेहनत थी, वो सारी खुद भाभी ने ही की थी. भाभी ने अब धक्के लगाने में तो‌ मेरा साथ नहीं दिया मगर‌ फिर भी उन्होंने अपनी जांघों को पूरा फैलाकर अपने पैरों को मेरे पैरों पर रख लिया ताकि मुझे धक्के लगाने में आसानी हो जाए और मेरा पूरा लंड उनकी चुत में अन्दर तक‌ जाकर उनकी चुत की दीवारों की मालिश कर सके.

मैं भी अब अपने पूरे लंड को सुलेखा भाभी की चुत में अन्दर तक‌ पेलने लगा, जिससे भाभी‌ की सिसकारियां तेज हो गईं और अपने आप ही उनके पैर मेरे पैरों पर चढ़ गए. स्खलित के बाद सुलेखा भाभी‌ की चुत के अन्दर की दीवारें प्रेमरस से भीगकर अब और भी चिकनी और मुलायम हो गयी थीं जिससे मेरा लंड अब और भी कुशलता से उनकी चुत की मालिश कर रहा था.

यह खेल‌ खेलते खेलते मुझे‌ बहुत देर हो गयी थी, इसलिए मैं अब चरमोत्कर्ष के करीब ही था‌ मगर सुलेखा भाभी का एक बार रसखलित हो चुका था इसलिए मुझे पता था कि अबकी बार वो स्खलन में थोड़ा समय लेंगी.

मैं नहीं चाहता था कि सुलेखा भाभी‌ के स्खलन से पहले मेरा रस स्खलित हो जाए, इसलिए मैंने अब अपने धक्कों की गति को तो थोड़ा धीमा कर दिया और अपना एक हाथ आगे लाकर उनकी चूची को पकड़ लिया. मैं अब धीरे धीरे धक्के लगाते हुए भाभी‌ की दोनों चूचियों को भी मसलने‌ लगा जिससे भाभी मचल सी गईं. उन्होंने अपनी आंखें बन्द की हुई थीं और मुँह से सिसकारियां भरते हुए वो अपने खुद के ही होंठ को काट‌ रही थीं.

कसम से ऐसा करते हुए सुलेखा भाभी‌ का वो गोल गोल चेहरा इतना हसीन और मासूम सा लग रहा था कि मुझसे रहा नहीं गया. मैंने अब थोड़ा सा आगे होकर धीरे धीरे उनके होंठों को चूम‌ लिया. मगर जैसे मैंने उनके होंठों को चूमा, भाभी ने झट से अपनी आंखें खोल लीं और दोनों हाथों से मेरी गर्दन को पकड़कर मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया.

मेरे दोनों होंठों को मुँह ने भर कर सुलेखा भाभी उन्हें इतनी जोरों से चूसने लगीं कि कुछ देर तो मैं अब‌ भाभी के होंठों को चूमने के‌ लिए तरसता ही रह‌ गया. मगर फिर भाभी ने मुझ पर तरस दिखाते हुए मेरे एक‌ होंठ को आजाद कर दिया, जिससे मेरे हिस्से भी उनका एक होंठ आ ही गया. मैंने उसे तुरन्त ही अब अपने मुँह में भर लिया और जोरों से चूसने लगा. सुलेखा भाभी ने अब फिर से दरियादिली दिखाते हुए होंठ के साथ साथ अपनी जीभ को भी मेरे मुँह दे दिया.

मैंने भी अपना मुँह खोलकर उसका स्वागत किया और उसे होंठों से दबाकर जोरों से चूसने लगा‌ जिससे सुलेखा भाभी के मुँह का मीठा‌ मीठा व चिकना‌ सा स्वाद अब‌ मेरे मुँह में घुल गया. उत्तेजना के वश अब अपने आप ही मेरे धक्कों की गति फिर से बढ़ गयी थी.

सुलेखा भाभी की जीभ व होंठ को चूसते हुए मैं जोरों से धक्के लगाने लगा था जिससे भाभी‌ की सिसकारियां भी और तेज हो गईं‌‌ और उनके दोनों हाथ भी अपने‌ आप ही मेरी पीठ पर आकर रेंगने लगे‌.

कुछ देर सुलेखा भाभी की जीभ का स्वाद लेने‌ के बाद मैंने उनकी जीभ को छोड़ दिया और अपनी जीभ को‌ उनके मुँह में घुसा दिया. भाभी तो जैसे इसके लिए तैयार ही बैठी थीं, उन्होंने तुरन्त ही अपना मुँह खोलकर मेरी जीभ को अपने मुँह में भर लिया और उसे जोर से चूसने‌ लगीं.

सुलेखा भाभी को जल्दी से शिखर तक पहुंचाने के लिए मैं अब उन पर तीन तरफ‌ से हमला करने लगा, एक तरफ मेरा मूसल लंड उनकी चुत को उधेड़ रहा था, तो दूसरी तरफ मेरे होंठ उनको तपा रहे थे और अब तीसरी तरफ से मैंने उनकी चूचियों को भी मसलना शुरू कर दिया, जिससे भाभी अब कोयल के जैसे कूकने लगीं.

उनके पैर अब मेरी जांघों तक चढ़ गए और जोरों से सिसकारियां भरते हुए उन्होंने अब खुद भी नीचे से धक्के लगाने शुरू‌ कर दिए. सुलेखा भाभी का ये साथ पाते ही मैंने भी बहुत जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए, जिससे उनकी सिसकारियां और भी तेज हो गईं. उन्होंने मेरे होंठों को तो अब छोड़ दिया और दोनों हाथों से मेरी पीठ को पकड़कर जल्दी जल्दी अपनी कमर को उचकाते हुए मुँह से ‘इईईई … इश्श्शश … आआ … अह्ह्ह्हह …’ की आवाजें निकालने लगीं.

मुझे अब समझते देर नहीं लगी‌ कि सुलेखा भाभी भी अब अपने चरम के करीब ही हैं इसलिए मैं भी अब अपने सीने को ऊपर उठाकर अपने हाथों के बल हो गया और अपनी‌ पूरी ताकत व तेजी से धक्के लगाने लगा. अब तो सुलेखा भाभी जैसे पागल ही हो गयी थीं, वो जोरों से अपनी कमर को उचकाते हुए मुँह से बड़ी कामुकता से ‘इईईई … श्श्शशश … आआ … अह्ह्ह्हह …’ की किलकारियां सी मारने लगीं.

एक बार फिर से सुलेखा भाभी की किलकारीयों के साथ साथ कमरे में ‘फट … फट् ट …’ की आवाजें गूंजने लगीं. इस वक्त जितनी तेजी से भाभी अपनी कमर को उचका रही थीं, मैं उनसे दुगनी तेजी से धक्के लगा कर अपने लंड से उनकी चुत की धज्जियां सी उड़ा रहा था.

हम दोनों के ही शरीर अब पसीने से नहा गए और सांसें उखड़ने लगीं. सुलेखा भाभी का तो एक बार रस स्खलित हो गया था, मगर मैं अपने आप पर बहुत देर से संयम किये हुए था. मेरा सब्र का बाँध तो कब का टूट जाता, मगर मैं तो बस इसलिए ही रुका हुआ था कि एक बार फिर सुलेखा भाभी को उनके अंजाम तक पहुंचा दूँ.

आखिरकार मेरी कोशिश रंग लाई और कुछ ही देर बाद भाभी का बदन अब फिर से अकड़ने लगा … मेरा सब्र भी अब टूट ही गया था, इसलिए मैंने भी अब तीन चार ही धक्के अपने पूरे वेग से लगाये और सुलेखा भाभी को कस कर पकड़ लिया. भाभी की सिसकारियां अब पहले तो आहों में बदल गईं. उनकी आहें हिचकियों में बदलती चली गईं.

मैंने और सुलेखा भाभी ने अब एक दूसरे को जोरों से भींच लिया और हल्के हल्के धक्के लगाते हुए एक दूसरे के यौन अंगों‌ को अपने अपने प्रेमरस से सींचने लगे‌.

इस बार सुलेखा भाभी का स्खलन इतना उत्तेजक था कि हिचकियां लेते हुए एक बार तो वो सांस लेना भी भूल गईं. उनकी चुत की दीवारों के प्रसार और संकुचन को मैं काफी देर तक अपने लंड पर महसूस करता रहा.

अपनी अपनी कामनाओं को एकदूसरे पर उड़ेलकर हम दोनों ही अब एक दूसरे को बांहों में लिए लिए ही ढेर होकर बिस्तर पर गिर गए और लम्बी लम्बी सांसें लेने लगे.

कुछ देर तो हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे की बांहों में समाये पड़े रहे. फिर सुलेखा भाभी ने मेरी पीठ को थपथपाकर मुझे उठने का इशारा सा किया. मेरा अब भी उठने का दिल नहीं कर रहा था.

‘ऊऊ … क्या है? कुछ देर और लेटी रहो ना …’ सुलेखा भाभी पर पड़े पड़े ही मैंने कुनमुनाते हुए कहा. ‘ऊह … अह्ह … उठो ना … बहुत गर्मी‌ लग रही है.’ सुलेखा भाभी ने मेरे गालों को चूमते हुए कहा.

पसीने से हम दोनों के‌ ही बदन भीगे हुए थे जिससे शायद सुलेखा भाभी को दिक्कत हो रही थी. इसलिए मैं अब धीरे से उठकर भाभी के पास बैठ गया. मगर तभी मेरी नजर अनायास ही उनकी चुत पर चली गयी जिसमें से मेरे व उनके प्रेमरस का‌ बिल्कुल क्रीम जैसा गाढ़ा और सफेद‌ मिश्रण धीरे धीरे बहते हुए बाहर निकल रहा था. मिश्रित रस उनकी चुत के मुँह से निकलकर उनके नितम्बों की गहराई में समा‌ रहा था.

मेरे लिए तो ये बेहद ही अनूठा और उत्तेजक सा दृश्य था, जिसे मैं टकटकी लगाये बस देखता रह गया था. तभी शायद सुलेखा भाभी की नजर मुझ पर चली गयी. शर्म के मारे उन्होंने अब तुरन्त ही अपनी साड़ी व पेटीकोट से अपनी चुत को छुपा लिया और उठकर बिस्तर पर बैठ गईं.

बिस्तर पर बैठकर सुलेखा भाभी ने अब पास में ही पड़ी हुई अपनी पेंटी को उठा लिया और अपना मुँह दूसरी तरफ करके उस पेंटी से अपनी चुत व नितम्बों को साफ करने लगीं.

मैं अब भी बैठे बैठ सुलेखा भाभी को ही देख रहा था. अपनी चुत व नितम्बों को अच्छे से साफ‌ करने‌ के‌ बाद भाभी ने‌ पेंटी को‌ तो वापस बिस्तर पर पटक दिया और उठकर अपने‌ कपड़ों को सही करने लगीं.

मैं नहीं चाहता था कि सुलेखा भाभी अपने कपड़ों को ठीक करें, इसलिए मैंने उनका‌ हाथ पकड़कर फिर से अपनी तरफ खींच लिया. “ऊह्ह … छ छोड़ … अब क्या है?” सुलेखा भाभी ने कसमसाते हुए कहा. “इतनी जल्दी कहां जा रही हो?” मैंने सुलेखा भाभी को अपनी बांहों में भरकर उनके मखमली गालों को चूमते हुए कहा. “बस्स … अब … एक बार में तो ऐसी हालत कर दी कि अभी तक बदन दुख रहा है … मेरी हिम्मत नहीं है अब … बाकी की दवाई अब तुम‌ उन दोनों से ही ले लेना …”

सुलेखा भाभी ने‌ ताना सा मारते हुए कहा और मेरे पास से उठकर फिर से अपने कपड़े ठीक करने लगीं.

सुलेखा भाभी‌ का‌ ‘उन दोनों’ से मतलब नेहा और प्रिया से था. यानि‌ कि‌ सुलेखा भाभी‌ को‌ भी अब नेहा और प्रिया के साथ ये सब करने से कोई ऐतराज नहीं था. इसका मतलब मेरी तो अब निकल पड़ी थी.

खैर अपने कपड़े सही करने‌ के बाद सुलेखा‌ भाभी ने हम दोनों के‌ प्रेमरस से भीगी उस पेंटी को बिस्तर से उठाकर अपने‌ ब्लाऊज में छुपा‌ लिया और फिर धीरे से कमरे का दरवाजा खोलकर पहले तो‌ इधर उधर देखा और फिर झटके में कमरे से बाहर निकल गईं. सुलेखा‌ भाभी के‌ जाने‌ के बाद मैंने भी अब अपने‌ कपड़े‌ पहन‌ लिए और फिर से बिस्तर पर ढेर हो गया.

मगर कुछ देर बाद ही प्रिया मेरे कमरे में आ गयी. कमरे में आते ही उसने लगातार तीन चार थप्पड़ मेरे गालों पर लगा दिए. “अब तू ये क्या कर रहा है? नेहा दीदी तो ठीक हैं … मगर मम्मी? मम्मी को भी नहीं छोड़ा तुमने?” प्रिया ने गुस्से से तमतमाते हुए कहा.

एक बार तो अब मैं भी घबरा गया कि इसको‌ कैसे पता चल गया कि मेरे और सुलेखा भाभी के बीच कुछ हुआ है. मैंने दरवाजा तो बन्द किया हुआ था मगर शायद प्रिया ने हमें खिड़की से देख लिया था. भाभी को चोदते वक्त एक दो बार मुझे लगा भी था कि शायद खिड़की से कोई हमें देख रहा है, मगर सुलेखा भाभी के साथ मस्ती के चक्कर में मैंने ही ध्यान नहीं दिया था.

खैर मैंने अब जल्दी से खुद को सम्भाला और उसे सारी कहानी बताई, तब जाकर उसका गुस्सा कुछ शांत हुआ.

प्रिया के कमरे से बाहर जाने के कुछ देर बाद ही नेहा मेरे पास आ गयी … उसने मेरी पिटाई तो नहीं की, मगर उसका भी यही सवाल था. प्रिया के जैसे ही नेहा को भी मुझे अब सारी बात बतानी पड़ी … तब जाकर वो मानी.

चलो‌ मेरे लिए ये तो अच्छा ही हो गया‌ था‌ कि नेहा और प्रिया को भी सुलेखा भाभी के बारे में मालूम हो‌ गया‌ था. इससे मेरा काम‌ अब और भी आसान‌ हो गया‌ था क्योंकि अब प्रिया नेहा और सुलेखा भाभी तीनों को ही‌ एक‌ दूसरे के‌ बारे में मालूम हो गया था कि उनके मेरे साथ चुदाई के सम्बन्ध हैं‌ और तीनों को‌ ही‌ इससे शायद कोई‌ ऐतराज भी नहीं था.

इससे हुआ ये कि अब रोजाना ही मेरे सुलेखा भाभी, नेहा और प्रिया के साथ सम्बन्ध बनने शुरू हो गए.

मेरी तो‌ जैसे अब निकल‌ ही‌ पड़ी थी क्योंकि अब दिन में सुलेखा भाभी मेरे साथ रहतीं, तो रात में नेहा व प्रिया एक एक कर बारी बारी से मेरे पास आ जाती थीं.

बस अब उन तीनों को एक साथ एक ही बिस्तर पर चोदने की तमन्ना बाकी रह गई थी. ये भी पूरी हो ही जाएगी. जैसे ही उन तीनों की एक साथ चुदाई की कहानी बनेगी मैं आप सबके साथ सेक्स स्टोरी को साझा करूँगा.

मेरी कहानी आपको कैसी लगी, प्लीज़ मेल जरूर कीजिएगा. [email protected]

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