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नमस्कार दोस्तो, कैसे हो सब! आज इस कहानी में मैं अपनी लाइफ का पहला सेक्स, टीचर से सेक्स का वाकया आपके सामने रख रही हूँ.
मेरा नाम गीता है. मेरी उम्र 24 साल है, मैं 5 फुट 5 इंच लंबी हूँ. मेरी फिगर इस समय 34-28-36 की है. मैं बहुत हॉट हूँ. मेरे भरे भरे स्तन और उभरे हुए गोल चूतड़ देख किसी का भी मन डोल जाए.
मैं ज़िला स्तर तक की हॉकी की खिलाड़ी भी रह चुकी हूँ. मैं अन्तर्वासना की एक नियमित पाठक हूँ. इधर लोगों के किस्से पढ़ पढ़ कर मैंने भी सोचा कि क्यों ना अपनी ज़िंदगी की सेक्स लाइफ आप सब के साथ शेयर करूँ.
अब मेरी शादी हो चुकी है. मेरा पार्लर का बहुत बढ़िया काम चल रहा है. मेरे पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. मूल रूप से मैं पंजाबी हूँ. शुरू से ही मैं पढ़ाई के साथ खेलों में भी खूब भाग लेती थी. हॉकी में मेरी रुचि थी. इसलिए मैं हॉकी खेलने लगी. सुबह और शाम प्रेक्टिस के लिए जाती. जिसके कारण में पढ़ाई में अब ठीक ठाक सी ही रह गई, पर गेम पर मेरा ध्यान ज्यादा रहता था.
मेरे साथ खेलने वाली लड़कियां बहुत चालू थीं. अक्सर शाम को ग्राऊंड में अंधेरा हो जाने के बाद कोनों में लड़कों के साथ चूमा चाटी करते दिख जाती थीं. मुझपे भी यौवन भरपूर चढ़ चुका था.
मेरे पीटी टीचर विशाल, जो उम्र में इतने बड़े नहीं थे. उनको नई नई नौकरी मिली थी. वो अक्सर मुझे प्यासी नज़रों से देखते रहते थे. वो मेरी उभर चुकी चूचियों का जायज़ा अपनी आंखों से लेते और अपने पेंट में उभरते अपने टूल को सहला लेते.
तब तक मैं इन चीज़ों से दूर ही थी. पर गेम खेलने वाली लड़कियों की इमेज अक्सर लोगों के मन में वैसी ही बन जाती है.
विशाल सर बहुत फिट और हैंडसम थे. मेरी सहेलियां भी अब मुझे छेड़ने लगी थीं.
एक सुबह कपड़े बदलते वक्त मैंने बंद कमरे में शीशे के सामने खुद को गौर से निहारा. अपनी छाती को देखा, बहुत गोल और कड़क थीं, पहली बार मैंने अपने हाथ से अपनी चूचियों को पकड़ा, तो मेरे ज़िस्म में मुझे सिहरन सी महसूस हुई. मैंने बड़े गौर से अपने छोटे छोटे गुलाबी निप्पलों को देखा, मानो सॉफ्टी की गोल आइसक्रीम पर के गुलाबी चैरी का दाना रखा हो.
फिर मैंने धीरे से अपनी पैंटी को नीचे किया. उसपे भी थोड़े थोड़े बाल थे, जिसके बीच मेरी गुलाबी चूत थी.. जिसके होंठ सिले हुए थे. पहली बार मैंने अपनी रेशमी जांघों के बीच अपनी नाज़ुक सी चूत को उंगली से छेड़ा. तो मस्ती से मेरी आंखें बंद हो गईं. आज मुझे खुद एहसास हुआ कि मैं जवान हो चुकी हूँ.
कुछ पल अपनी जवानी को निहारने के बाद मैं तैयार होकर गेम के लिए आ गई. मैं गेम खेल ही रही थी कि मेरी नज़र विशाल सर पर गई. जिनकी नज़र मेरी दौड़ती हुई की उछाल लेती चूचियों पर थी. मेरा आज गेम में ध्यान ही नहीं था, फिर भी खेलती रही. गेम के बाद जब मैदान से बाहर आई तो पसीने से भीगी हुई थी. मेरी टी-शर्ट चूचों से चिपकी हुई थी. विशाल सर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, उनकी नज़र में वासना की लहरें दौड़ रही थीं.
अंधेरा से होने लगा था, मैं साईकल लेने साइकल स्टैंड की तरफ गई. वहां कोई नहीं था, सिर्फ मेरी ही साईकल रह गई थी. तभी विशाल सर मेरे पीछे आ गए और बोले- तुम बहुत अच्छी हॉकी खेलती हो गीता. मैंने सर झुका कर थैंक्स कहा.
इस वक्त मेरी सहेलियां रोज़ की तरह अपने आशिकों के साथ मैदान के दूसरे कोनों में घुस गई थीं.
मैं साइकल की तरफ बढ़ी, तभी सर ने पीछे से आकर मेरी कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ खींच मुझे अपने करीब लाते हुए कहा- मुझे तुम बहुत पसंद हो. उनकी अचानक से हुई इस हरकत से मैं थोड़ा घबरा गई और बोली- सर यह आप क्या कह रहे हैं? उन्होंने मुझे बांहों में कसते हुए कहा- गीता, तुझे देख पागल हो जाता हूँ.
उन्होंने यह कहते हुए मेरे होंठों पर होंठ टिका दिए. मेरे चूचे उनकी चौड़ी छाती से दब गए. मैं पहली बार किसी मर्द की बांहों में थी. सच बताऊँ तो मैं भी अच्छा फील कर रही थी. उन्होंने चूमते चूमते पीछे से मेरे चूतड़ों को दबाया.
सब भूल मैं उनसे कस कर लिपट गई. फिर मुझे ध्यान आया कि मैं कहां खड़ी हूँ. और ये याद आते ही मैं उनसे अलग हो गई और शर्माते हुए साईकल पकड़ निकल आई.
पूरी रात मैं उस घटना के बारे सोच रोमांचित होती रही. सुबह सबसे पहले मैदान पहुंच गई. सर भी आ गए, मेरी हॉकी स्टिक पकड़ बहाने से मेरे पास खड़े होकर बोले कि शाम को गेट पर मिलना. साईकल मत लाना, मैं छोड़ दूंगा.
मैं चुप रही, शाम को मैंने बहुत सोचा और पता नहीं क्या मन में आया कि मैंने वैसा ही किया. शाम को साईकल की हवा निकाल दी और ऑटो से मैदान पर आ गई. मेरे कदम भी आगे बढ़ने लगे और मन में कभी हां कभी ना सोचते गेट पर चली गई.
तभी सर आए और बोले- थैंक्स गीता आओ. उन्होंने कार का दरवाजा खोला और मुझे बिठा कार चलाने लगे.
सर- कैसी हो तुम? मैं- ठीक हूँ सर, लेकिन सर हम कहां जा रहे हैं? बोले- वहीं.. जहां कोई.. आता जाता नहीं, सिर्फ तुम और मैं.
उन्होंने मेरी जांघ को सहलाया और मेरा हाथ पकड़ कर अपनी जांघ पर रख दिया. वो चाहते थे कि मैं उनका लंड सहलाऊँ. पर मैं खेली खाई और बेशर्म नहीं थी.. तो मैंने हाथ हटा लिया. अब उन्होंने खुद ही मेरा हाथ लंड पर रखवा लिया. उफ़.. लोहे की मानो कोई रॉड हो.
तभी रास्ते में सुनसान सी जगह में एक अकेले से अध-बने घर के सामने गाड़ी रोक दी. ये घर अभी तैयार भी नहीं था, लेकिन सर ने उसके सामने ही कार रोक दी. उन्होंने खुद उतर कर गेट खोल कर कार अन्दर कर ली, फिर से गेट लॉक किया.
फिर सर बोले- आओ मेरी जान. मेरा हाथ पकड़ सर ने मुझे बाहर निकाला और मुझे बांहों में उठा एक कमरे में ले गए. वहां एक तख्तपोश जो काफी बड़ा था और जिसपे गद्दा बिछा हुआ था. उसपे मुझे लिटा दिया.
मैं- सर नहीं.. यह गलत है. वह बोले- प्यार में कुछ गलत नहीं होता.
वो मुझपे छाने लगे. उन्होंने मेरी टी-शर्ट उतार दी और ब्रा में कैद मेरे ताज़ा अनछुए चूचों को दबाया, तो मेरे मुख से मीठी मीठी आहें निकलने लगीं.
मुझे मज़ा आता देख उन्होंने मेरी ब्रा उतार दी और मेरे एक निप्पल को मुँह में लेकर चूसा. फिर उसपे जैसे ही ज़ुबान फेरी, मैं पागल होने लगी. उन्होंने एक एक कर अपने और मेरे बचे कपड़े भी उतार दिए.
जब मेरी नज़र उनके नाम की तरह उनके विशाल लंड पर गई, जो मेरी रेशमी दूध सी सफेद जांघों पर घिस रहा था.. तो मैं चौंक गई. मैं पहली बार किसी मर्दाना लंड को देख रही थी.
उन्होंने मेरी टांगें खोलीं और बीच आकर अपनी जुबान को मेरी चूत की फांकों पर लगा कर छेड़ा, तो मैं वासना की आग में जलने लगी. वो जैसे जैसे मेरी चूत में ज़ुबान आगे पीछे करते, मैं अपने चूतड़ उठा लुत्फ उठाती. इस काम में इतना मज़ा होगा सोच भी नहीं था.
अब सर ने खुद को घुमा लिया. उनका लंड मेरे मुँह की तरफ था और सर मेरी चूत को पागलों की तरह चाट रहे थे. लंड मेरे मुँह के पास था. सर ने कहा- चूसो गीता. मैंने सर के गर्म लंड को मुँह में डाल लिया और लंड चूसने लगी. हम दोनों ने करीब दस मिनट एक दूसरे को चूसा. इस बीच एक बार तो उनकी ज़ुबान की कामुक हरकतों से मेरी चूत पानी पानी हो गई.
फिर सर ने बड़े प्यार से मुझे सीधा लिटाया और पास पड़े कपड़ों को गोल सा करके मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिया. आने वाले दर्द से अनजान, मैं मस्ती में उनके नीचे लेटी हुई थी. तब उन्होंने लंड को थूक से गीला किया और उंगलियों से चूत की फांकों को फैला कर अपना सुपाड़ा सैट कर दिया, फिर मेरे दोनों कंधों पर हाथ टिकाए, मेरे होंठ मुँह में भर सर ने झटका दे मारा.
उस झटके ने मुझे होश में ला दिया. मेरी चूत में लंड फंस चुका था, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. बस दो तीन झटकों में सर का पूरा लंड मेरी कुंवारी चूत में घुस गया.
थोड़ा रुक कर सर ने आधा लंड निकाल फिर से घुसा दिया, ऐसा तीन चार बार करने से मुझे थोड़ा सुकून मिला. जब लंड आराम से चलने लगा, तो सर ने मेरे होंठ आज़ाद किए.
मैं- यह आपने क्या किया सर? सर- बेबी, बस पहली बार होता है.. एक बार पूरा स्वाद ले लो, फिर खुद मेरा लंड मांगा करोगी.
सर ने चुदाई की स्पीड बढ़ा दी, साथ साथ वे मेरे चूची को चूसने लगे. मुझे भी मज़ा आने लगा. सर की बात सही निकली, मैं खुद उनकी पीठ पर नाखून गाड़ कर, गांड उठा उठा चुदवाने लगी.
‘आह उह उफ़ उम्म्ह… अहह… हय… याह… सी सी आह उह ऊऊ …’ की आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. ‘आह करो करो..’ कह कर मैं झड़ने लगी. सर अभी भी मुझे चोदने में लगे थे. मेरी चूत पिघल गई और उसकी गर्मी से सर के लंड ने भी तेज बौछारें मेरी चूत में गिरा दीं.
सर ने मुझे बांहों में कस लिया और अपनी आखिरी बूंद तक लंड को मेरी चूत में झाड़ते रहे.
कुछ देर बाद हम अलग हुए. मैंने उठ कर देखा कि मेरी चूत फूल चुकी थी और सर के लंड पर खून था. मेरी जांघों पर भी खून लगा था. साफ सफाई कर कपड़े डालने लगी. मेरी छातियों पर जगह जगह निशान बन गए थे. सर ने मुझे कली से फूल बना दिया था.
अब रोज़ शाम को किसी कोने में सर का लंड चूसती और हफ्ते दस दिन बाद सर मुझे वहीं ले जाते और मेरी चूत को लंड खिला देते.
यह तो थी मेरी पहली चुदाई. अगली कहानी में बताऊंगी कि कैसे टूर्नामेंट खेलने गई और वहां कैसे मैंने बेशर्मों की तरह और लंड खाए.
कैसी लगी मेरी की कहानी, मेरी मेल आईडी पर मेल करके जरूर बताना. आपकी अपनी गीता [email protected]
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