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मेरा नाम किशोर है, मैं यू.पी. के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। बात सन् 2006 की है, मैं उस वक्त ग्यारहवीं कक्षा पास करके बारहवीं में आया था। मैं एक सीधा-सादा, शर्मीला लड़का हुआ करता था, पर पढ़ने में बहुत तेज़। आज से आठ-नौ साल पहले गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल 1 जुलाई को खुलते थे, पर गाँव के स्कूलों की कक्षाओं में अगस्त-सितम्बर से पहले रौनक नहीं होती थी।
गाँव में मेरा घर लगभग बीच में ही है। हमारे घर के ठीक पीछे एक घर है, जिसकी छत हमारी छत से मिली हुई है। उस घर में मेरे एक दूर के ताऊ जी रहते थे। उनकी एक इकलौती लड़की थी सीमा। वो लड़की हमारी बिरादरी में सबसे सुन्दर मानी जाती थी। बात सच भी थी। हालाँकि मैं लड़कियों के साईज़ नहीं नापता, पर कह सकता हूँ कि वो एक ऐसी लड़की थी, जिसे देखते ही आपके जैसे लोग, उसे अपने नीचे होने का सपना देखने लगें। गोल चेहरा, बड़ी आँखें, सुर्ख़ लाल होंठ, गुलाबी गाल और गोरा बदन, सभी के होश फाख़्ते करने वाले थे।
अगस्त का महीना था, सावन पूरा झूम रहा था, बारिशों का दौर शुरु हो गया था, पर गर्मी जस की तस थी। बिजली की सुविधाएँ गाँव में आज भी न के बराबर हैं, तब की तो बात ही क्या करें। इसलिए गर्मी से बचने के लिए हम छत पर ही बिछौना करके सोते थे। ताऊ जी की छत कच्ची थी और हमारी पक्की, इसलिए उनके घर के सदस्य हमारी छत पर ही सोते थे।
सामान्यतः मैं सीमा को दीदी कहकर बुलाता था क्योंकि वो मुझसे चार साल बड़ी थी। हम दोनों को अंताक्षरी खेलने का बहुत शौक था। जब भी मौका मिलता हम खेलने लग जाते।
एक दिन शाम को हल्की सी बारिश हो गई, जिसके कारण मेरे परिवार के लोग नीचे आँगन में ही सो गए, पर मैं ज़िद करके ऊपर छत पर ही चला गया। वहाँ ताई जी और सीमा पहले से लेटी थीं। सीमा ने मेरा बिछौना अपने पास ही करवाया और फिर हम अंताक्षरी खेलने लगे। हालाँकि गाँवों में (खासकर हमारे गाँव में) लड़का-लड़की के ज्यादा पास रहने को शक की नज़र से देखा जाता है, पर हम पर शक ना करने के दो कारण थे। पहला यह कि सीमा मेरी चचेरी बहन थी दूसरा यह कि वो मुझसे 4 साल बड़ी थी और 23 साल की थी। और फिर हम दोनों ही बहुत समझदार माने जाते थे, इसलिए हम पर शक शायद ही कोई करता।
अंताक्षरी ज्यादा देर नहीं चली, लगभग आधे घण्टे में ही सीमा को नींद आ गई और वह सो गई। पर मुझे नींद नहीं आ रही थी। हालाँकि मेरे मन में कोई गंदगी नहीं थी पर फिर भी मन अशान्त था। दरअसल कहीं पढ़ा था कि जब जाड़ों के बाद गर्मियाँ और गर्मियों के बाद बरसात शुरू हो यानि होली के आसपास और सावन के दिनों में मनुष्य में प्रेम और काम भावनाओं का कुछ ज्यादा ही विस्तार होता है, शायद इसी कारण अशान्त था। खैर थोड़ी देर में मैं भी सो गया।
थोड़ी देर ही हुई होगी कि ताई जी ने खर्राटे लेना शुरु कर दिया जिससे मेरी आँख खुल गईं। आँख खुलते ही मैंने पाया कि सीमा का एक हाथ मेरे सीने पर रखा था और एक टाँग मुड़कर मेरी टाँगों पर रखी थी। उसकी जाँघ मेरे शिश्न पर दबाब डाल रही थी, मतलब वो मेरी ओर करवट लेकर लेटी थी। उसकी साँसें मेरी गर्दन पर महसूस हो रहीं थीं।
सीमा के हाथ, जाँघ और साँसों के स्पर्श का अहसास होते ही मेरे शरीर में मानो एक अद्भुत ऊर्जा की एक बड़ी सी लहर दौड़ गई। मेरे लण्ड को सिर्फ 3 सैकेण्ड लगी होंगी खड़े होने में। मैं केवल एक कच्छे में था। मेरा लण्ड खड़ा होने के बाद कच्छे और सीमा की हल्की सी सलवार में से भी उसकी मलाई सी मुलायम जांघ को महसूस कर रहा था। पहले तो मैं ताई जी को उनके खर्राटों की वजह से जगाना चाहता था, पर सीमा के उस अद्भुत कामुक स्पर्श ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया।
लण्ड इतना ज़ोर लगा रहा था मानो किसी भी क्षण कच्छे और सलवार को फाड़ता हुआ सीमा की जाँघ में छेद कर देगा। शरीर में इतनी बेचैनी हो गई थी कि लगता था कि फटने वाला हूँ। मैं पड़ा-पड़ा अपने यौवन के उस प्रथम नारी स्पर्श का आनन्द ले रहा था।
तभी सीमा हल्की सी अंगड़ाई लेते हुए मेरी तरफ और ज्यादा खिसकी। इससे उसके होंठ मेरी गर्दन पर छू गए, और मेरा लण्ड उसकी चूत के पास पहुँच गया। इस घटना ने मेरे अन्दर और भी अधिक उत्तेजना भर दी। इस प्रकार का अहसास मुझे पहली बार हो रहा था।
जब उत्तेजना ज्यादा बढ़ गई तो मैंने हिम्मत करके उसकी ओर करवट ली और अपना हाथ उसकी बगल में डाल दिया। उसके उरोजों को छूने की हिम्मत अभी नहीं आयी थी। उसकी ओर करवट लेने पर मेरा लण्ड उसके पेट पर टक्कर मारने लगा। सीमा ने सलवार कमीज पहनी थी, उसकी कमीज थोड़ी ऊपर उठी थी। इसी कारण मेरे लण्ड और उसके पेट के बीच बस मेरे कच्छे की परत थी।
मेरी इस पहल से सीमा हरकत में आई और मेरी कमर पर हाथ रखकर मुझे अपनी ओर खींचने लगी। अब मुझे पता चल गया कि वह भी जाग रही है, मगर हमने एक-दूसरे से कुछ बोला नहीं। जब उससे मैं एक हाथ से नहीं खिंचा तो उसने अपना दूसरा हाथ मेरी नीचे वाली बगल में डालकर मुझे दोनों हाथों से अपनी ओर खींचा। मौका पाकर मैंने भी उसकी नीचे वाली बगल में हाथ डालकर उसे अपने में समेटने की कोशिश करने लगा।
लगभग दस मिनट हमने एक दूसरे को कसकर भींचा। उस आलिंगन से ऐसा मज़ा आ रहा था जैसे… उफ़ बयां नहीं कर सकता। अब तक दोस्तों से सुना था कि लड़की को चोदने में बहुत मज़ा आता है मगर मुझे तो आज बस सीमा को कसकर गले लगाने में ही इतना मज़ा आ रहा था कि लग रहा था जन्नत में हूँ।
हमने धीरे-धीरे एक दूसरे को रगड़ना शुरु कर दिया। इस रगड़ ने मेरे अन्दर इतनी ऊर्जा भर दी कि एक-एक नस में खून की बाढ़ आ रही थी। हम लिपटे-लिपटे एक दूसरे को खूब ज़ोर से रगड़ रहे थे। मेरा लण्ड उसकी चूत से बस थोड़ा ही ऊपर रगड़ रहा था। उसके बिना ब्रा वाले उरोजों की घुण्डियों को मैं उसकी पतली सी कमीज के ऊपर से महसूस कर सकता था।
कुछ देर बाद सीमा ने मुझको खुद से थोड़ा दूर किया और एक हाथ से कच्छे के ऊपर से मेरे लण्ड को टटोलने लगी। उसका हाथ लगते ही मेरा लण्ड इतना व्याकुल हो गया जैसे मेरे शरीर को छोड़ उसके हाथों में चिपकना चाहता हो। मैं भी सही अवसर भाँपते हुए अपने एक हाथ से उसकी कमीज़ के बटन खोलने लगा। उसके स्तन थोड़ी देर में ही मैंने नंगे कर दिए और एक हाथ से ही उन्हें सहलाना शुरु कर दिया। मैंने जैसे ही उसकी चूचियों पर हाथ रखा वो सिहर उठी। इधर मुझे भी ऐसा लगा जैसे हाथों ने पहली बार कोई इतनी अनमोल चीज छुई हो।
व्याकुल होकर सीमा ने मेरा लण्ड कच्छे से बाहर निकाला और उसे हल्के से सहलाने लगी। फिर सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत पर रखकर मुझसे लिपटने लगी। पर मैंने उसे रोका और अपना बनियान उतार दिया, उधर सीमा ने भी अपनी बटन खुली कमीज़ उतार दी। चूँकि सीमा ने मेरा कच्छा नीचे कर दिया, जिसे मैंने पैरों से उतार दिया, अब मैं तो पूरा नंगा था और सीमा ऊपर से नंगी थी पर नीचे सलवार थी।
ताई जी अभी भी भयानक खर्राटे ले रहीं थीं, उनके खर्राटे हम भाई बहन को संतुष्ट कर रहे थे कि अभी कोई खतरा नहीं है। अब फिर से हम एक दूसरे से लिपट गए और एक दूसरे को अपने अंदर समेटने की कोशिश करने लगे। मैं अपने लण्ड को उसकी सलवार के ऊपर से ही रगड़ रहा था, और वो भी इसमे मेरा साथ दे रही थी।
इसी दौरान पश्चिम से चमक के साथ बादल उठना शुरू हो गया, हल्की-हल्की शीतल बयार चलने लगी, जिसने हमारी कामुकता को और बढ़ा दिया था। उस सुहाने मौसम में हम लिपटे हुए अपनी जवानी के रस का सम्पूर्ण आनन्द ले रहे थे। तभी सीमा ने मेरे गाल पर एक चुम्मा लिया। यह मेरे लिए एक और नया अहसास था। कमाल की बात थी कि पिछले एक घण्टे में मुझे जितने नए अनुभव हुए थे, पहले कभी इतने अनुभव एक साथ न हुए थे।
उसके चुम्मे के बाद मैंने भी उत्तर में एक बड़ा सा चुम्मा लिया।
इस बार न जाने क्यों उसकी हँसी छूट गई, जैसे ही वो हँसी मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये और उन्हें चूसने लगा। पहले तो उसने अपने होंठ बहुत कसकर आपस में भींचे रखे, पर थोड़ी देर बाद उसने अपने होंठ खोल दिए, और फिर वो मेरे और मैं उसके होंठों का कामुक रस पीने लगे।
फिर धीरे-धीरे मैं उसके नाड़े की ओर बढ़ा। मैंने उसका नाड़ा खोल दिया और धीरे से अपना हाथ उसकी चूत की ओर बढ़ाने लगा। वो शायद बहुत उत्तेजना में थी, इसीलिए उसने कोई विरोध नहीं किया। मैं उसकी चूत को सहलाने लगा, जो उसके रस से बिल्कुल भीग रही थी।
अभी तक कोई भी रस मैंने जबान से चखा था, आज पहली बार पता चला कि एक रस ऐसा भी है जो हाथों से भी चखा जा सकता है, जो कि बहुत नशीला भी होता है। अब सीमा ने मेरे कान में धीरे से कहा- अंदर घुसायेगा? मैंने हाँ में उत्तर दिया।
फिर बोली- बहुत धीरे से घुसाना, मम्मी पास में ही है. मैंने स्वीकृति में हाँ बोला।
फिर हम कामुक मिलन के लिए तैयार हो ही रहे थे कि अचानक बहुत तेज़ हवा चलने लगी। आँधी आ गई, हल्की-हल्की बूँदें भी थीं। इससे पहले कि ताई जी जाग जायें, हम होश में आए और एक दूसरे से अलग हो गए और फिर जल्दी-जल्दी कपड़े पहने। तभी बारिश तेज़ हो गई। वो अपने घर चली गई और मैं अपने घर। पर हम दोनों की प्यास अधूरी रह गई।
बारिश पूरी रात पड़ी और उस बारिश की रात में मेरी बेचैनी इतनी बढ़ी रही कि नींद नहीं आई। सुबह के समय थोड़ा बहुत सोया होऊँगा।
सुबह-सुबह पिता जी ने जगाया और कहा कि आज तुझे मक्का रखवानी है। दरअसल हमारे एक खेत में मक्का उगी हुई है। वह खेत गाँव से बाहर ट्यूबवेल पर है। मैंने पिता जी से कहा- मेरे बस की नहीं है मक्का रखवानी, मुझे डर लगता है वहाँ। तो पिता जी बोले- अरे डरने की कौन सी बात है, सीमा भी तो रखवाती है अपनी मक्का वहाँ। सीमा का खेत भी बिल्कुल हमारे खेत से मिलकर है।
इतना सुनते ही मैं फट से तैयार हो गया खेत पर जाने के लिए, और जैसे ही मैंने बाहर जाकर देखा तो सीमा हमारे दरवाज़े पर खड़ी थी, वो मुझे बुलाने आई थी।
मुझे देखते ही वो शर्मा गई और आँखें नीचे झुका लीं। उसका चेहरा शर्म से लाल हो रहा था और वो मुझसे नज़र नहीं मिला पा रही थी। मैं भी उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था, मगर हमारे हाव-भाव बता रहे थे कि हम दोनों ही अपनी अधूरी प्यास को बुझाने के लिए बेचैन थे।
मैंने पिता जी से कहा- सीमा मुझे बुलाने आई है, मैं जाकर खेत में मक्का रखवा देता हूँ। पिता जी ने कहा- ठीक है, मगर टाँड पर मक्का रखते समय ध्यान रखना कि कहीं चोट न लग जाए।
गाँव से बाहर निकलते ही खेत शुरू हो जाते थे, हम दोनों खेत पर पहुँच गए। सीमा ने कहा- मैं अपने खेत से मक्का उठाकर लाती हूँ और तुम अपने खेत से ले आओ.
हम दोनों अपने-अपने खेतों से मक्का उठाकर लाने लगे और खेत की कोठरी में लाकर इकट्ठा करने लगे। जब सारा मक्का इकट्ठा हो गया तो उसको टाँड पर भी रखना था। मैंने सीमा से कहा कि वो नीचे से मक्का उठाकर मुझे उठाकर पकड़ाती रहे और मैं उसे ऊपर टाँड पर रख दूँगा।
सीमा ने गले में जो चुन्नी डाली हुई थी उसे कमर पर बाँध लिया और नीचे झुकते हुए मुझे मक्का की टोकरी भर कर पकड़ाने लगी। जब वो नीचे झुकती तो उसकी कमीज़ के अंदर लरज़ते उसके स्तनों की झलक भी मुझे मिल जाती जिसने बरसात की पहली रात की कामुकता को फिर से जगाना शुरू कर दिया। दो तीन-बार कमीज़ में लटकते उसके स्तनों को देखकर मेरे लण्ड ने अपना आकार लेना शुरू कर दिया और वो मेरे पजामे में खड़ा होकर उछलने लगा।
मेरी कामुकता बढ़ती ही जा रही थी इसलिए जब सीमा मक्के की टोकरी उठाकर ऊपर उठती हुई मेरी टाँगों को देखती तो मैं अपने लण्ड में जोश का एक झटका उसे दिखा देता। वो मेरे लण्ड की हरकत देख रही थी, मगर देखकर नज़रें झुका लेती थी। टोकरी उठाते-उठाते उसके गोरे गाल लाल हो चुके थे और इधर मेरे लण्ड का बुरा हाल हो रहा था। मन कर रहा था उसकी कमीज़ उतार कर उसके चूचों पर टूट पड़ूँ।
मैंने सोचा ये ऐसे ही शर्माती रही तो काम नहीं बनेगा। जब वो अगली टोकरी उठाकर देने लगी तो मैंने मक्का पर पैर फिसला दिया और गिरने का नाटक करते हुए जान-बूझ कर उसके बदन को लपक लिया। मेरे शरीर और मक्के की टोकरी दोनों का भार वो संभाल नहीं सकी और टोकरी उसके हाथ से छूट कर गिरने के साथ हम दोनों भी नीचे पड़ी मक्का पर गिर गए। मैं उसके ऊपर था और वो मेरे नीचे। उसने मेरी आँखों में देखा और मैंने उसकी।
वो मुस्कुरा दी और मुझे सिग्नल मिल गया। मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके रसीले अधरों का रसपान करने लगा। वो भी मेरी कमर पर हाथ लपेट कर मेरा साथ देने लगी। मेरा लण्ड तो पहले से ही तना हुआ था। मगर उसके लबों को चूसते हुए वो उसकी चूत में जाने के लिए ऐसे तड़प रहा था जैसे कोई प्यासा बिना पानी के मरने ही वाला हो।
सीमा ने मेरी हालत देखी और अपना एक हाथ मेरी कमर से हटाकर नीचे मेरे लण्ड पर ले जाकर उसे पजामे के ऊपर से ही सहलाने लगी। मेरी उत्तेजना अब मेरे काबू के बाहर हो गयी और मैंने उसके कमीज को उतरवाकर उसके स्तनों को नंगा करवा दिया। सफेद, कोमल, मखमली, मलाई जैसे श्वेत उसके उरेज़ और उनके बीच में तन चुके उसके निप्पल जैसे ही मैंने नज़रों के सामने देखे, मैं उन पर टूट पड़ा। मैं उसके स्तनों को इतनी ज़ोर से चूसने लगा कि उसकी चीख निकल गई।
मगर मेरी उत्तेजना मेरे वश में कहाँ थी, मैंने उसके स्तनों को चूसते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोलना शुरू कर दिया। नाड़ा खुलते ही उसकी चूत को अपनी हथेली से रगड़ने लगा और उसकी टाँगें स्वत: ही फैलने लगीं। मैंने उसकी सलवार को निकाल कर उसको बिल्कुल नंगी कर दिया और साथ ही अपना कुर्ता और पजामा भी निकाल दिया। मेरे कच्छे में तने मेरे लण्ड ने अपना कामरस छोड़-छोड़कर उस पर एक बड़ा सा धब्बा बना दिया था।
मैं नंगी पड़ी अपनी बहन सीमा पर लेट कर उसके होंठों को फिर से चूसने लगा और मेरे कच्छे में तना हुआ मेरा लण्ड उसकी जांघों के बीच में टकराने लगा। सीमा ने अपनी दोनों टांगें ऊपर उठाकर मेरी कमर पर रख लीं और मेरी नंगी कमर को सहलाते हुए मेरे होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी। उसके मखमली कोमल स्तनों को दबाए मेरी छाती से नीचे हाथ ले जाते हुए मैंने अपना कच्छा भी निकाल कर नीचे कर दिया और अपने लण्ड को उसकी चूत के मुंह पर सेट कर दिया।
मेरे लण्ड ने जैसे ही बहन की चूत के होंठों को छूआ तो मैं आनन्द के असीम सागर में गोते लगाने लगा। अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था और मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत में अंदर धकेल दिया। वो मुझसे लिपट गई और मेरी गर्दन को चूमने लगी।
मैंने उसको कस कर अपनी बाहों के आगोश में लिया और उसकी चूत में लण्ड को डालकर अंदर-बाहर करना शुरू किया। आह… आज समझ में आया कि नारी के तन में ऐसी क्या काबिलियत होती है तो जो मर्द को उसका गुलाम बना देती है।
मेरे आनन्द का अनुभव, जो उस समय मुझे मिल रहा था वो मैं बता नहीं सकता। मैंने उसके अधरों को चूसते हुए उसकी चुदाई शुरू कर दी। हम दोनों काम के रस को भोगने लगे।
पहली बार था तो मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाया और मैंने 3-4 मिनट के अंदर ही संयम खोकर उसकी चूत में अपने लण्ड से वीर्य की हर एक बूंद निचोड़ कर उसके नंगे कोमल बदन पर गिर गया। वो मेरे गालों को चूमती रही, मुझे प्यार करती रही।
उसके ऊपर से उठने का अब भी मन नहीं कर रहा था मगर डर था कि कहीं कोई देख न ले इसलिए हमने उठकर अपने कपड़े पहन लिए। उसके बाद मक्का को टाँड पर लगाकर घर आ गए। अब जब भी हमें मौका मिलता हम दोनों एक-दूसरे की प्यास बुझाने लगे।
नीचे लिखी मेल आई-डी पर इस कहानी के बारे में अपनी राय देना न भूलें। [email protected]
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