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प्रिय अन्तर्वासना पाठको अक्तूबर 2018 प्रकाशित हिंदी सेक्स स्टोरीज में से पाठकों की पसंद की पांच बेस्ट सेक्स कहानियाँ आपके समक्ष प्रस्तुत हैं…
दोस्तो, मेरा नाम परमजीत कौर है और मैं पटियाला, पंजाब में रहती हूँ। मैंने पहले अपनी कहानी मेरी छोटी सी गलती लिखवा कर आप सब की राय लेने के लिए भेजी थी, ताकि आपकी राय जान कर मैं कोई सही फैसला ले सकूँ कि मैंने अपने पड़ोस में रहने वाले एक लड़के से सम्बन्ध बनाए थे। मैंने उससे सेक्स तो नहीं किया था, मगर हाँ उसने मेरे सारे बदन को छू कर देखा था और मैंने उसका लंड चूसा और जब वो झड़ा तो मैंने अपनी पुरानी आदत अनुसार उसका माल भी पी लिया। मगर मैं चाहती थी कि जो गलती मैंने यहाँ तक करी, वो यहीं रुक जाए और मैं आगे कोई और गलती न कर दूँ; उस लड़के से मेरे सम्बन्ध और आगे न बढ़ें।
इसी लिए मैंने ये कहानी लिखवाई और अन्तर्वासना डॉट कॉम पर छापने के लिए भिजवाई ताकि मुझे और भी अन्तर्वासना डॉट कॉम पर कहानियाँ पढ़ने वाली औरतें और लड़कियां या पुरुष भी अपनी सही राय दें, और कोई और मेरे जैसी जो औरतें हैं, वो इस कहानी को पढ़ कर वो गलती न करें, जो मैंने की।
तो लोगों ने मेरी कहानी पढ़ कर क्या क्या विचार व्यक्त करे, वो भी सुनिए और मुझे क्या क्या राय दी गई, उनका ज़िक्र भी मैं अपनी इस कहानी में करूंगी।
मेरा नाम परमजीत कौर है और मैं इस वक़्त 45 साल की हूँ। मेरे दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की। शादी के करीब 15 साल बाद जब मैं करीब 35 साल की थी, तब मेरे पति की ज़्यादा शराब पीने से मौत हो गई। और पति के मरने के बाद मैं अपने ही पड़ोस में रहने वाले लड़के के साथ जो कुछ कर बैठी, वो तो आप पढ़ ही चुके हैं। अब आगे सुनिए।
पूरी कहानी यहाँ पढ़िए…
मैं अपने माँ पापा की इकलौती संतान हूँ, मेरे पापा का गांव में खुद का बहुत बड़ा बिज़नेस है। मेरी हाइट 5’4″ है, रंग गोरा है, आँखें नशीली हैं, गुलाबी उभरे हुए गाल है, मखमली होंठ है, मेरे बाल लंबे हैं, लंबी नुकीली नाक है, छाती 34 की कमर 28 और नितम्ब 35 के हैं। मैं अपनी कमर में एक चांदी की चैन पहनती हूँ, पैरों में पायल और नाक में छोटी सी नथ पहनती हूँ।
बारहवीं की परीक्षा होने के बाद मेरा रिजल्ट आया। अच्छे मार्क्स होने की वजह से मेरा अच्छे कॉलेज में कॉमर्स शाखा में एडमिशन मिलना तय था। मैंने और मेरे परिवार ने दो तीन कॉलेज शॉर्टलिस्ट किये थे। बहुत सोचने के बाद मेरी माँ ने शहर के एक कॉलेज में मेरा एडमिशन कराने का फैसला किया। उसकी दो वजह थी, एक तो उस शहर में मेरी मौसी रहती थी तो मुझे रहने की कोई प्रॉब्लम नहीं थी। और दूसरी बात के मेरी दादी अक्सर बीमार रहती थी तो मेरी मौसी हमेशा उसकी देखभाल करने गांव चली जाती थी, मेरे वहां होने से उनके पति के खाने पीने की टेंशन दूर हो जाती और मौसी भी ठीक से दादी का ख्याल रख पाती।
फिर एक दिन मैं और पापा एडमिशन लेने के लिए शहर आ गए। रात को ट्रेन में बैठ गए और सुबह शहर पहुँच गए। मेरे मौसी के पति जिन्हें मैं कर्नल अंकल बुलाती थी वह हमें लेने स्टेशन पर आ गए। फिर हम तीनों घर गए वहाँ फ्रेश हो कर कॉलेज एडमिशन लेने पहुंच गए, एडमिशन होने के बाद हम घर वापिस आ गए। हम सबने रात का खाना साथ में खाया, फिर पापा उसी रात की गाड़ी से वापस गांव चले गए।
मेरी मौसी स्कूल में टीचर थी पर दादी की बीमारी की वजह से उन्होंने स्वेच्छा से रिटायरमेंट ले ली, मौसाजी आर्मी में कर्नल रह चुके थे और अब रिटायर हो गए थे। उनका एक बेटा था उसकी शादी हो गयी थी, वो और उसकी बीवी दोनों अमेरिका में बस गए थे। शहर में आने के बाद मैं, मौसी और मौसा जी पहले दो तीन दिन शहर घूमे, वाटर पार्क गए बहुत एन्जॉय किया। फिर अगले हफ्ते से मैंने कॉलेज जॉइन किया और धीरे धीरे शहर की जिंदगी में घुलमिल गयी।
कर्नल अंकल की वजह से घर का माहौल बहुत स्ट्रिक्ट था। समय पर कॉलेज जाना, समय पर वापस आना, वो मेरी पढ़ाई पर भी काफी ध्यान देते थे। इस बीच दो तीन महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला, मौसी भी दो तीन बार छह सात दिन के लिए दादी के घर भी गयी थी। मैं शहर आयी उसी दौरान मौसी ने एक नौकरानी संगीता को काम पर रखा था, जिस वजह से मुझ पर काम का कोई बोझ ना पड़े और मेरी पढ़ाई अच्छे से हो सके।
पर जिस लड़की को हफ्ते में तीन चार बार चुदने का चस्का लगा हो उसको बिना चुदे नींद कैसे आएगी। मुझे अपने तीन चार बायफ़्रेंडस के मोटे लंड चुत में लेने की आदत सी हो गयी थी। कर्नल अंकल के स्ट्रिक्ट स्वभाव की वजह से मेरा लैंगिक कुपोषण हो रहा था। मेरी जवान बुर को लंड की जरूरत थी और वह ना मिलने से मैं मायूस रहने लगी थी।
पूरी कहानी यहाँ पढ़िए…
मेरे प्यारे दोस्तो, मेरा नाम सविता सिंह है, मेरी कहानी मेरे चाचा ससुर से चुद गयी मैं को आपने खूब प्यार दिया। आपके इसी प्यार ने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं आपके सामने अपने जीवन के और भी किस्से ले कर आऊँ।
तो कल दोपहर बाद मैं खाना खाकर अपने कमरे में बैठी, टीवी देख रही थी। चाचा जी अपने किसी दोस्त से मिलने गए थे, नहीं तो हो सकता है कि मैं उनके साथ सेक्स कर रही होती। मगर घर में अकेली थी तो टीवी देखने लगी। उसमें मैंने एक चेनल पर एक राजस्थानी शादी देखी। शादी देखते देखते मुझे एक पुरानी बात याद आई जब मैं अपने पति के साथ उनके ताऊ जी की लड़की की शादी में राजस्थान गई थी। वहीं मुझे वो मिला, जिसने मुझे संभोग का भरपूर सुख दिया और मैंने उसे सेक्स के बहुत से नए नए कारनामें करके दिखाये। उसका नाम शेर सिंह था, और वो मुझे वहीं शादी में मिला था। तो लीजिये आपके लिए मैं अपना एक और किस्सा लिख कर पेश कर रही हूँ, पढ़िये और मज़े करिये।
मेरे पति के पिताजी के एक बहुत पुराने दोस्त थे, मैं उन्हें पहले तो नहीं जानती थी, पता उस दिन लगा जब हमारे घर एक शादी का कार्ड आया। मैंने वो कार्ड अपने पति को दिखाया तो वो कार्ड देख कर बड़े खुश हुये- अरे आरती की शादी है, कमाल है इतनी बड़ी हो गई वो! मैंने पूछा- कौन आरती? वो बोले- अरे पिताजी के बहुत ही गहरे दोस्त हुआ करते थे रावत अंकल; हम उन्हें ताऊ जी ही कहते थे। पापा के साथ ही जॉब करते थे, फिर रिटाइरमेंट के बाद वो अपने गाँव चले गए, उनकी ही छोटी बेटी है। मुझे राखी बांधती थी। अंकल से सिर्फ तीन बेटियाँ ही थी, तो वो मुझे ही अपना बेटा मानते थे। बहुत प्यार था हमारे घरों में!
मैंने पूछा- क्या प्रोग्राम है फिर? पति बोले- ऑफिस में छुट्टी की अर्जी दे देता हूँ, सारा काम काज मुझे ही देखना पड़ेगा जाकर; तो हफ्ता दस दिन तो लग ही जाएंगे। तुम भी बहुत एंजॉय करोगी, बहुत ही मिलनसार और प्यार करने वाले लोग हैं। मैंने पूछा- चाचाजी भी जाएंगे साथ में? पति बोले- चाचाजी उन्हें जानते तो हैं, पर ज़्यादा प्यार हमारे ही घर से था। पूछ लेता हूँ चाचाजी से अगर चलना हुआ तो चल पड़ेंगे।
मैं यह सोच रही थी कि अगर चाचाजी साथ चलें तो क्या पता वहाँ भी चाचाजी से कुछ प्रेमालाप कर सकूँ। पति तो अब काम काज में बिज़ी होंगे, तो इनके पास तो टाइम होगा नहीं। मगर चाचाजी ने मना कर दिया। बाद में अकेले में मैंने भी चाचाजी से पूछा- अरे चाचू, चलते न यार, वहाँ पे भी अपना मस्ती करते!
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यह कहानी है गाँव की एक जवान लड़की की… वो मुझे एक शादी के कार्यक्रम में मिली थी. मैं उसकी अनगढ़ अल्हड़ जवानी को चखना चाहता था.
मेरी पिछली कहानी बहू रानी के मायके में शादी और चुदाई में मैंने बताया था कि मैं और बहूरानी उनके चचेरे भाई की शादी में दिल्ली पहुंचे हुए थे जहां मैं अपनी अदिति बहूरानी को बंजारन के वेश में देखकर उस पर मोहित हो गया था और येन केन प्रकारेण उसकी मचलती नंगी जवानी को भोगने में कामयाब भी हो गया था. उसी शादी में मुझे कमलेश नाम की ग्रामीण बाला भी मिली थी जो कि रिश्ते में मेरी बहूरानी की भतीजी लगती थी यानि मैं एक तरह से उसका दादाजी लगता था. कमलेश के बारे में मैंने पिछली कहानी में बड़े विस्तार से लिखा था जिसमें मैंने उसके व्यवहार और रूप रंग और उसकी कामुक चेष्टाओं का विशद वर्णन किया था. कमलेश को सब लोग कम्मो नाम से ही बुलाते हैं तो अब मैं भी उसे इस कहानी में कम्मो नाम से ही संबोधित करूंगा.
तो पिछली कथा में बात यहां तक पहुंची थी कि बहूरानी ने मुझे कहा था कि मैं कम्मो को मार्केट ले जाऊं और उसे नया स्मार्टफोन दिलवा दूं; पैसे तो कम्मो के पास हैं.
तो मित्रो, पिछली कहानी से आपको याद होगा कि पिछली रात हम सब लोग साथ में डिनर कर रहे थे और कम्मो मुझे बड़े प्यार और अनुराग से सर्व कर रही थी … कभी दही बड़े, कभी रसगुल्ला कभी कुछ कभी कुछ. कहने का मतलब यह कि मुझे अपनी जगह पर से उठाना नहीं पड़ा और कम्मो ने काउन्टर से खाना ला ला कर भरपेट से कुछ ज्यादा ही खिला दिया था. उसके इस चाहत भरे खुशामदी व्यवहार को मैं समझ रहा था कि उसे कल मेरे साथ मार्केट जा के नया फोन जो लेना था.
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समलैंगिकों को भारतीय दंड संहिता से आज़ादी मिलने पर बहुत-बहुत बधाई। उम्मीद है कि एल जी बी टी समुदाय (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर ) की मुश्किलें कुछ कम हो गई होंगी, लेकिन समाज में आदर-सम्मान और बराबरी का हक़ पाने के लिए अभी एक लंबी लड़ाई बाकी है। कानून भले ही बदल गया हो मगर लोगों की मानसिकता बदलने में लंबा वक्त लगेगा। खुशी ज़रूर है कि एक शुरूआत तो हुई, अब उम्मीद की किरण ज्यादा साफ, ज्यादा रौशन हो गई है। 6 सितंबर को उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के दिन आंखों से आंसू आना लाज़मी था क्योंकि मरहम का अहसास वही कर सकता है जिसने दर्द को भी जी भर कर जिया हो।
इसी मौके पर अपनी जिंदगी की एक और घटना आप सबके साथ साझा करने का मन किया तो लिखने बैठ गया। बात उस वक्त की है जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था, लेकिन कहानी की पृष्ठभूमि ग्यारहवीं में ही तैयार होने लगी थी क्योंकि जब मैंने दसवीं उत्तीर्ण करने के बाद नये स्कूल में दाखिला लिया तो लड़कों की तरफ आकर्षण अपने चरम पर था। उस वक्त प्यार और हवस में फर्क करना बहुत मुश्किल था क्योंकि उम्र ही ऐसी थी। बस जो चेहरा पसंद आ गया, उसी के पीछे-पीछे चल दिए।
मेरी कक्षा में एक लड़का था जिसका नाम था गौतम। स्कूल गांव में था तो ज्यादातर लड़के जाटों के ही पढ़ते थे, वो भी जाट था। वो भी 18-19 साल का था और मेरी उम्र भी लगभग इतनी ही थी। उस वक्त उसी उम्र के लड़कों के लिए दिल में ज्यादा गुदगुदी होती थी। मन तो 25 साल तक के लड़कों के लिए भी मचल जाता था। फिर भी हम-उम्र लड़कों के जिस्म ज्यादा आकर्षक लगते थे। गौतम देखने में ठीक-ठाक था, शरीर भी मीडियम शेप में था। नई-नई जवानी में उभरता हुआ लंड, आज भी उसके बारे में सोचता हूं तो लंड खड़ा हो जाता है। स्कूल की टाइट ग्रे पैंट में उसकी जांघों की फिगर, उसके गोल-मटोल चूतड़ और उसकी स्कूल पैंट में चेन के पास उठा हुआ आकार मुझे अक्सर उसकी तरफ देखने के लिए मजबूर करता रहता था।
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